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10/01/2022
10/10/2021

Sir Devkund Waterfall

19/09/2021

DM for Chipla Kedar Trek

😍 Our one more camp site, between the nature, on Himalaya...Visit us...                                                 ...
17/09/2021

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Join the beautiful journey with nature.
10/09/2021

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Limited seats available.
10/09/2021

Limited seats available.

Parvati Sarovar | Adi Kailash Yatra💐📍 आदि कैलाश और ओम पर्वत यात्रा 2021-22🙏💐 { जीप यात्रा 6 रात / 7 दिन  }फोन और वट्सप न...
10/09/2021

Parvati Sarovar | Adi Kailash Yatra💐

📍 आदि कैलाश और ओम पर्वत यात्रा 2021-22🙏💐
{ जीप यात्रा 6 रात / 7 दिन }

फोन और वट्सप नम्बर ☎️ +919219636637

यात्रा विवरण :

Day 1 : हल्द्वानी काठगोदाम टू धारचूला ( 230 किलोमीटर बाय टैक्सी )

अरली मॉर्निंग 6:00 -6:30 काठगोदाम और बस स्टेशन से
यात्रियों के ग्रुप को पिक किया जाएगा,और यात्रा का पहला दिन प्रारंभ किया जाएगा ,यात्रियों को पहला दिन जागेश्वर धाम मन्दिर के दर्शन के लिए अल्मोड़ा लिया जाएगा , जिससे यात्री मन्दिर में दर्शन आशीर्वाद के साथ अपनी यात्रा शुरू करेंगे , और पुनः आगे अपने पड़ाव धारचूला पहली दिन के लिए निकल जाएंगे ,
यात्रा के दौरान रास्तो मैं काफी पुराने मन्दिरे भी है वे सारे मन्दिरो के दर्शन यात्रियों को कराते हुए आगे बढ़ेंगे , जिससे दर्शन के बाद यात्रियों को पोसिटिव एनर्जी मिलेगी ,
रात्रि स्टेय कुमाऊं मंडल के होटल्स मैं होगा जहां पर व्यवस्था और खाने व साफ़-सफाई की उचित व्यवस्था है ।
रात का खाना कुमाऊं मण्डल होटल्स में ही रहेगा, और पूरे यात्रा के दौरान खाना शुद्ध शाकाहारी दिया जाएगा ,खाने के बाद या खाने के समय मे यात्रियों को मीठा दिया जाएगा, जिससे पहली रात यात्रा का भोजन के समय मुँह मिठास के साथ शुरू होगी ।
- यात्रियों को हलद्वानी काठगोदाम से धारचूला के यात्रा के दौरान निम्नलिखित मन्दिरो के दर्शन कराए जाएंगे ।
1 :- जागेश्वर धाम मन्दिर
2 :- गुरना मन्दिर
3 :- महादेव गुफा
4 :- धौला देवी मन्दिर
5 :- डोल आश्रम

DaY 2 : यात्रियों को इनर लाइन परमिट के लिए सरकारी अस्पताल में मेडिकल रिपोर्ट के लिए भेजा जाएगा,

सुबह नास्ता के बाद यात्रियों को मेडीकल जांच के लिए सरकारी अस्पताल लिया जाएगा ।

मेडिकल जांच होने के बाद यात्री स्वयं से लोकल धारचूला मार्केट व नेपाल घूम सकते है और यहाँ के लोकल व्यू और साइडसीन के नजारो का लुप्त उठा सकते है ।
धारचूला के पास मैं ही अंतराष्ट्रीय झूला पुल स्थिति है जहाँ से व्यकित नेपाल के ओर आवाजाही कर सकते है ।
और नेपाल के चीजे को ख़रीद ( पर्चेस ) भी कर सकते है ।

दोपहर का भोजन व रात्रि का भोजन होटल्स मैं ही रहेगा, जिस होटल्स पर आप रुके होंगे ।।

DaY 3 :- धारचूला टू नप्लच्यू / नावी गाँव ( बाय टैक्सी )

आदि कैलाश यात्रा की शुरुआत धारचूला से प्रारंभ किया जाएगा , व आपको मालिपा,बुद्धि ,छियालेख, गर्ब्यांग ,सीती होते हुए नप्लच्यू में स्टे कराया जाएगा ,
( यात्रा की शुरुआत नास्ता करने के बाद होगी )
नप्लच्यू गाँव से यात्रियों को दोपहर भोजन के बाद नप्लच्यू गाँव/ मन्दिर व गुंजी गाँव मे घुमाया जाएगा , और गुंजी ( मनेला ) के ठीक मध्य के एक पहाड़ मे प्राकृतिक रूप से बना ' शिव ,भोलेनाथ जी व गणेश जी का एक सौन्दर्य चित्रण स्थिति है व यात्रियों को इनके दर्शन कराये जाएंगे ।
और साथ ही महाभारत के रचियाताकार महर्षि वेदव्यास जी का एक प्रसिद्ध व प्राचीन मन्दिर के दर्शन भी करवाये जाएंगे ।

दोपहर का भोजन व रात्रि का भोजन होम स्टे मैं ही रहेगा, जिस जगह पर आप रुके होंगे ।।

DaY 4 : गुंजी टू नाभीढांग ( बाय टेक्सी )
इस दिन यात्रियों को सुबह के नास्ता के बाद जीप में नाभीढांग के लिए रवाना किया जाएगा ,नाभीढांग से ही यात्रियों को ओम पर्वत , पार्वती माता जी के नावी के पर्वत का दर्शन कराया जाएगा,
व कालापानी मन्दिर ,महर्षि वेदव्यास जी का गुफा , शेषनाग पर्वत ,पांडव पर्वत के दर्शन कराया जाएंगा।।

दिन का भोजन पैकिंग रहेगा , यात्री 5 बजे वापस नाभीढांग से
नप्लच्यू आ जाएंगे , यात्रियों का रात्रि विश्राम नप्लच्यू गाँव मे रहेगा । रात्रि भोजन होम स्टे में रहेगा ।।

DaY 5 : नाभीढांग टू जोलिंगकोंग , (बाय टैक्सी )
इस दिन यात्रियों को सुबह के नास्ते के बाद जीप में जोलिंगकोंग आदि कैलाश दर्शन के लिए रवाना किया जाएगा ,जहाँ पर यात्रि, आदि कैलाश ,गौरी कुंड ,व पार्वती सरोवर के दर्शन एवं पाठ पूजा करेंगे । इस दिन यात्रियों के पास पूरा समय रहता है जोलिंगकोंग एक्सप्लोर करने के लिए व फोटोग्राफी के लिए ।

दोपहर का भोजन व रात्रि का भोजन जोलिंगकोंग मैं ही रहेगा, जिस जगह पर आप रुके होंगे ।।

Day 6 : जोलिंगकोंग टू धारचूला , (बाय टैक्सी )
यात्रियों को इस दिन सुबह जल्दी उठकर आदि कैलाश जी के दर्शन करके नास्ता कराने के बाद वापस धारचूला की ओर रवाना कर दिया जाएगा ।
रात्री विश्राम कुमाऊं मंडल गेस्ट हाउस में रहेगा ।

दोपहर का भोजन व रात्रि का भोजन होटल्स मैं ही रहेगा, जिस होटल्स पर आप रुके होंगे ।।

DaY 7 : धारचूला टू हल्द्वानी काठगोदाम ( 230 किलोमीटर बाय टैक्सी )
इस दिन यात्रियों को सुबह के नास्ता के बाद धारचूला से हल्द्वानी काठगोदाम पहुँचा दिया जाएगा,
और यात्रा के आखरी दिन यात्री काफी खुशहाली से अपने यात्रा को सपन्न करेंगें ।
यात्रियों को यात्रा के आखरी दिन उत्तराखंड के प्रसिद्ध मिठाई बाल मिठाई से भेंट देकर हल्द्वानी काठगोदाम के लिए पहुचा दिया जाएगा ।। और यात्रियों को अलविदा कह कर अपने यात्रा को सम्पन्न किया जाएगा ।

( सुंदर यात्रा के बाद घर की ओर वापसी )

*ट्रेक की जानकारी/तथ्य:*
• क्षेत्र: कुमाऊं (उत्तराखंड)
• ग्रेड: आसान व मध्यम
• अधिकतम ऊंचाई: 5945 मीटर
• यात्रा हल्द्वानी से शुरू और समाप्त हल्द्वानी में होती है।
• यात्रा का समय : जून से अक्टूबर।
• बैच साइज़ : 6 से 30
• सर्विस : हल्द्वानी से हल्द्वानी तक।

• पैकेज में शामिल:*
• परिवहन : हल्द्वानी से हल्द्वानी।
• आवास : होटल और होम स्टे।
• सभी भोजन (शाकाहारी), जिसमें पहले दिन रात के खाने से लेकर सातवें दिन के नाश्ते तक सब कुछ शामिल है।
• ट्रेक के दौरान सभी भोजन (शाकाहारी)।
• ट्रेक के दौरान प्राकृतिक झरने का पानी।
• यात्रा कार्यक्रम के अनुसार सभी दर्शनीय स्थल।
• बोनफायर केवल होम स्टे में प्रदान करेंगें ।
• संगीत

सपोट टीम **
• अनुभवी ट्रेक गाइड और सपोर्ट स्टाफ।

*पैकेज मैं बहिष्कृत:*
• किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत खर्च
• किसी भी आपात स्थिति से हुआ कोई खर्च।
• अल्कोहल पेय।
• कोई भी व्यक्तिगत गियर।
• निजी सामान ले जाने के लिए कुली।

यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया मुझे वापस लिखें या मुझे सीधे कॉल करें ।।
फोन और वट्सप नम्बर +91 9219636637

आदि कैलाश धाम: अब तक हम मुख्य रुप से कैलाश मानसरोवर के बारें में सुनते या जानते आ रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि एक ...
10/09/2021

आदि कैलाश धाम:
अब तक हम मुख्य रुप से कैलाश मानसरोवर के बारें में सुनते या जानते आ रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि एक और कैलाश है जो की भारत में ही है और उसे कैलाश के समान ही दर्जा प्राप्त है। यहां पहुंचना भी इतना मुश्किल नहीं और खर्चा भी श्री कैलाश मानसरोवर की अपेक्षा बेहद कम, और वह है आदि कैलाश। यह पंच कैलाश में से एक है...

माना जाता है कि जब महादेव कैलाश से बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने आ रहे थे तो यहां उन्होंने पड़ाव डाला था। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है।

समुद्रतल से 6191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आदि कैलाश भारत देश के उत्तराखण्ड राज्य में तिब्बत सीमा के समीप है और देखने में यह कैलाश की प्रतिकृति ही लगता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह ही आदि कैलाश यात्रा भी रोमांच और खूबसूरती से लबरेज है, इसमें भी 105 किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती है।

आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है। आदी कैलाश में भी कैलाश के समान ही पर्वत है। मानसरोवर झील की तर्ज में पार्वती सरोवर है। आदि कैलाश के पास गौरीकुंड है। कैलाश मानसरोवर की तरह ही आदी कैलाश की यात्रा भी अति दुर्गम यात्रा मानी जाती है।
आदि कैलाश जिसे छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है, तिब्बत स्थित श्री कैलाश मानसरोवर की प्रतिकृति है। विशेष रूप से इसकी बनावट और भौगोलिक परिस्थितियां इसे कैलाश के समकक्ष ही बनाती हैं। प्राकृतिक सुंदरता इस क्षेत्र में पूर्ण रूप से फैली हुई है। लोग यहां आकर आपार शांति का अनुभव करते हैं।

यहां भी कैलाश मानसरोवर की भांति आदि कैलाश की तलहटी में पार्वती सरोवर है जिसे मानसरोवर भी कहा जाता है। इस सरोवर में कैलाश की छवि देखते ही बनती है। सरोवर के किनारे ही शिव और पार्वती का मंदिर है।

इस क्षेत्र को ज्योलिंगकॉन्ग के नाम से भी जाना जाता है।

वैसे एक कथा यह भी है इस स्थान के बारे में की जब महादेव कैलाश से बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने आ रहे थे तो यहां उन्होंने पड़ाव डाला था। एक लम्बे सफ़र के बाद जब आप इस जादुई दुनिया में प्रवेश करते हैं तब आपको अनुभूति होगी की आखिर महादेव ने इस स्थान को अपने वास के लिये क्यों चुना।

आदि कैलाश का इतिहास-
प्रकृति की अनुपम कृति में भारत का मुकुट हिमालय, अपनी अदभुत सौन्दर्यता व रहस्यमय कृतियों का भंडार है। चारों दिशाओं में फैली भू-लोकि हरियाली और कल-कल छल-छल करते झरने, चहचहाती चिड़ियां और चमकती हुई हिमालय श्रृखंलाए सम्पूर्ण प्रकृति से परिपूर्ण हिमालय को सर्मपित है जो कैलाश वासी शिव का प्रिय स्थल है। यहां भगवान शिव व माता पार्वती निवास करते है। जिनके स्वरूप की, समस्त शास्त्रों व वेदों में यथावत पुष्टी की गयी है।

ओम पर्वत –
पृथ्वी पर आठ पर्वतों पर प्राकृतिक रूप से ॐ अंकित हैं जिनमे से एक को ही खोजा गया हैं और वह यही ॐ पर्वत हैं, इस पर्वत पर बर्फ इस तरह पड़ती हैं की ओम का आकार ले लेती हैं आदि कैलाश यात्रियों को पहले गूंजी पहुचना पड़ता हैं। यहां से वे ॐ पर्वत के दर्शन करने जाते हैं। उसके बाद वापस गूंजी आकर, आदि कैलाश की ओर प्रस्थान करते हैं। ॐ पर्वत की इस यात्रा के दौरान हिमालय के बहुत से प्रसिद्ध शिखरों के दर्शन होते हैं।

आदि कैलाश यानि छोटा कैलाश-
आदि कैलाश को छोटा कैलाश के नाम से जाना जाता है और पार्वती सरोवर को गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। इन दोनों तीर्थस्थलों को कैलाश पर्वत और तिब्बत की मानसरोवर झील के समतुल्य माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है।

इसके रास्ते में मनमोहक ओम पर्वत पड़ता है। इस पर्वत की विशेषता यह है कि यह गौरी कुंड जितना ही सुन्दर है और इस पर्वत पर जो बर्फ जमी हुई है वह ओम के आकृति में है। इस स्थान मे वह शक्ति है जो यहां आने वाले नास्तिक को भी आस्तिक में बदल देती है। गुंजी तक इस तीर्थस्थल का रास्ता भी कैलाश मानसरोवर जैसा ही है। गुंजी पहुंचने के बाद तीर्थ यात्री लिपू लेख पास पहुंच सकते हैं।

इसके बिल्कुल पीछे चीन पड़ता है। आदि कैलाश यात्रा करने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है. इस परमिट को धारचुला के न्यायधीश के कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है। परमिट प्राप्त करने के लिए पहचान-पत्र और अपने गंतव्य स्थलों की सूची न्यायधीश को देनी होती है। आदि कैलाश यात्रा के लिए बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है, जिनमें बहुत सारी पासपोर्ट साइज फोटो की आवश्यकता होती है।

परमिट प्राप्त करने के बाद बुद्धि के रास्ते गुंजी पहुंचना होता है. इसके बाद जौलिंगकोंग के लिए आगे की यात्रा शुरू की जा सकती है। जौलिंगकोंग से आदि कैलाश और पार्वती सरोवर थोडी ही दूर पर है, वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह आदि कैलाश तीर्थस्थल कुमाऊँ के पिथौरागढ जिले में है.,यह तिब्बत की सीमा के निकट है।

ऐसे पहुंचे आदि कैलाश-

आदि कैलाश यात्रा का शुभारंभ दिल्ली से होता है। दूसरे दिन यात्रा दिल्ली से काठगोदाम पहुंचते हैं, उसी दिन अल्मोड़ा में रात्रि विश्राम कर तीसरे रोज यात्रा वाया सेराघाट होते हुए धारचूला के लिए पातालभुवनेश्वर मंदिर के दर्शन कर यात्री विश्राम डीडीहाट में करते है।
अगले दिन डीडीहाट से धारचूला पहुंचते हैं, यात्रा का धारचूला तक का सफर केएमवीएन बस से होता है। जबकि इससे आगे का सफर चालीस किमी कच्ची सड़क में छोटी टैक्सियों से लखनपुर तक की जाती है। इस बीच तवाघाट, मांगती, गर्भाधार जैसे कई पड़ाव पड़ते है, लखनपुर के बाद का यात्रा रूट पैदल ही है।

इससे आगे बुद्धि, छियालेक, गुंजी, कुट्टी होते हुए ज्योलिंगकांग पहुंचते हैं। ज्योलिंगकांग से आदि कैलाश के दर्शन होते हैं। आदि कैलाश से 2 किमी आगे खूबसूरत पार्वती सरोवर है, आदि कैलाश पर्वत की जड़ में गौरीकुंड स्थापित है।

पार्वती सरोवर और गौरीकुंड में स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है। पार्वती सरोवर में यात्रियों द्वारा स्नान करने के बाद यात्री गौरी कुंड पहुंचकर यात्रा वापसी करती हैं। वापसी के वक्त यह यात्री दल नांभी में एक होम स्टे कर कालापानी नांभीडांग होते हुए ओम पर्वत के दर्शन करने पहुंचता है। फिर इसी रूट से दल रिटर्न होकर धारचूला पहुंचता है।

ऐसे समझें कितने दिन में पहुंचा जा सकता है आदि कैलाश?
आदि कैलाश तक पहुचने के लिए लगभग 17 या 18 दिन लगते हैं वहां पहुचे से स्वर्ग जैसा अनुभव होता हैं| लम्बी पैदल यात्रा, आध्यामिकता के लिए अक्सर, पर्यटकों को अपनी महिमा का आनन्द लेने के लिए आकर्षित करता हैं।

आदि कैलाश जाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के कुमाउं मंडल के धारचूला से 17 किमी तवाघाट, तवाघाट से 17 किमी पांगू, पांगू से 18 किमी दूर नारायण आश्रम तक वाहन से जाया जा सकता है। वहां से 11 किमी सिर्खा, सिर्खा से 14 किमी गाला, गाला से 23 किमी बूंदी, बूंदी से 9 किमी गर्ब्यांग, गर्ब्यांग से 10 किमी गुंजी, गुंजी से 29 किमी कुटि, कुटि से 9 किमी चलकर ज्योलिंकांग पहुंचा जा सकता है।

ज्योलिंगकांग से आदी कैलाश के दर्शन होते हैं। आदी कैलाश से 2 किमी आगे खूबसूरत पार्वती सरोवर है। आदी कैलाश पर्वत की जड़ में गौरीकुंड स्थापित है। पार्वती सरोवर और गौरीकुंड में स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है।

कुछ खास...
आदि कैलाश, उत्तराखंड राज्य के तिब्बत सीमा की काफी प्रभावशाली ऊंचाई पर स्थित है। आदि कैलाश को माउंट कैलाश की एक प्रतिकृति के रूप में जाना जाता है। यह भारत- तिब्बती सीमा के निकट भारतीय क्षेत्र में स्थित है। आदि कैलाश की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 6191 मीटर है।

आध्यात्म का केन्द्र...
आदि कैलाश शान्तपूर्ण एवं आध्यात्म का केन्द्र माना जाता है। यह हिन्दू भक्तों की एक लोकप्रिय तीर्थ यात्रा है। आदि कैलाश, जिसे छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है तिब्बत स्थित श्री कैलाश मानसरोवर की प्रतिकृति है।

प्राकृतिक सुंदरता इस क्षेत्र में पूर्ण रूप से फैली हुई है। यहां आकर शान्ति का अनुभव होता है। यहां भी कैलाश मानसरोवर की भांति आदि कैलाश की तलहटी में पर्वतीय सरोवर है, जिसे मानसरोवर भी कहा जाता है। इस सरोवर में कैलाश की छवि देखते ही बनती है।

सरोवर के किनारे ही शिव और पार्वती का मंदिर है। साधु-सन्यासी तो इस तीर्थ की यात्रा प्राचीन समय से करते रहे है। लेकिन आम जनता को इसके बारे में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद पता चला। इससे पहले यात्री मानसरोवर की यात्रा करते थे।

पंच कैलाश का महत्व (PANCH KAILASH);-

सनातनधर्मियों यानि हिंदुओं के जीवन में पंच कैलाश दर्शन का बहुत बड़ा महत्व है...पूर्ण रूप से महादेव शिव का निवास स्थान 'कैलाश पर्वत' जो तिब्बत में स्थित है को ही माना जाता है और इसके साथ ही महादेव शिव के प्रमुख चार निवास और भी हैं, जिन्हें उप कैलाश भी कहा जाता है
1-कैलाश मानसरोवर MOUNT KAILASH AND MANSAROVAR (TIBET - CHINA)
2- श्रीखंड SHRIKHAND MAHADEV (HIMACHAL PRADESH)
3-किन्नौर कैलाश KINNER KAILASH (HIMACHAL PRADESH)
4-मणिमहेश, MANIMAHESH KAILASH (HIMACHAL PRADESH)
5-ओम पर्वत /आदि कैलाश ADI KAILASH - OM PARBAT (UTTRAKHAND)

: पंच कैलाश-
आदि कैलाश, कैलाश मानसरोवर, मणिमहेश, श्रीखंड, किन्नौर कैलाश.... इन सबकी यात्रा करने से धार्मिक यात्रा पूर्ण मानी जाती है। जिनमे 'श्रीखंड कैलाश' हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में, 'मणिमहेश कैलाश' हिमाचल प्रदेश के चम्बा में, 'किन्नौर कैलाश' हिमाचल के किन्नौर में, तथा 'आदि कैलाश' उत्तराखंड में तिब्बत व् नेपाल की सीमा पर जोंगलीकोंग में विराजमान है। इन पांचो कैलाशों को एक रूप में पंचकैलाश' भी कहते है।

10/09/2021

श्रीखण्ड महादेव, हिमाचल

😍 Khela Village, Dharchula, Uttarakhand
07/09/2021

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😊 traveling keeps you Happy & Young. So, keep travelling.DM for paid Collaboration.                            ***ir    ...
11/08/2021

😊 traveling keeps you Happy & Young. So, keep travelling.

DM for paid Collaboration.

***ir

07/08/2021

Don't travel in "भेड़ चाल" . Explore the unexplored places.
Video credit~ Tripoto

Ruinsara Lake8 Days Trek.For booking, or query, DM me.
29/07/2021

Ruinsara Lake
8 Days Trek.
For booking, or query, DM me.

Beautiful Uttrakhand during monsoon.
28/07/2021

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18/07/2021

DM for Rudranath Trek

Beautiful view, from our camp site at Bashalkanda, Sarhan, Himachal, India.
15/07/2021

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😍 If you are adventure lover, then explore the whole Lahol Spiti Circuit &  world's most dangerous road with us.        ...
07/07/2021

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Spiti Circuit,Fix departure...Book now...
30/06/2021

Spiti Circuit,
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View from balcony of our Home Stay at Jana, near Jana waterfall, Manali.
18/06/2021

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Our beautiful home stay location .You are cordially invited here. (District~ Bilaspur, Himachal)                        ...
17/06/2021

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You are cordially invited here. (District~ Bilaspur, Himachal)

Unexplored location by travellers andOur New Home Stay site.
14/06/2021

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Our New Home Stay site.

 #जागेश्वर_धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतता प्रदान कर रहे हैं।...
12/06/2021

#जागेश्वर_धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतता प्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग २५० मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे २२४ मंदिर स्थित हैं।

उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे।
जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग २५० छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी शिलाओं से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है!
जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूण के नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।

पौराणिक सन्दर्भ ~
पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था।
आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।
स्त्रोत- कुछ मैं, कुछ गूगल 😉

 #ऋषिकेशहिमालय का प्रवेश द्वार ऋषिकेश, जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषि...
12/06/2021

#ऋषिकेश
हिमालय का प्रवेश द्वार ऋषिकेश, जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शान्त वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊँचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं।

प्रचलित कथाएँ ~
ऋषिकेश से सम्बन्धित अनेक धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकण्ठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना लक्ष्मण झूला इसका प्रमाण माना जाता है। विक्रमसंवत 19960 में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि ऋषि रैभ्य ने यहाँ ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हृषीकेश के रूप में प्रकट हुए। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है।

चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, खूबसूरत झरने, हरे-भरे घास के मैदान और प्रकृति की दिलकश खूबसूरती,जी हां हम बात कर रहे ...
10/06/2021

चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, खूबसूरत झरने, हरे-भरे घास के मैदान और प्रकृति की दिलकश खूबसूरती,
जी हां हम बात कर रहे हैं अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए दुनियाभर में मशहूर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित एक छोटी सी घाटी थाची वैली (thachi valley) की। दिल्ली से लगभग 485 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थाची वैली की खूबसूरती किसी जन्नत से कम नहीं है। अगर आप शहर की भागदौड़ से दूर ऐसे स्थान की सैर करना चाहते हैं जो बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कटा हुआ हो और साथ ही आपके बजट के अनुकूल भी हो, तो यकीन मानिए आपकी तलाश थाची वैली पर आकर खत्म हो जाएगी। आप यहां आपको पता चलेगा कि यह घाटी शहरी सभ्यता से बहुत दूर है। इस जगह की खास बात यह भी है कि यहां अन्य पर्यटन स्थलों की तरह पर्यटकों की ज्यादा भीड़ भी नहीं रहती है।

हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित थाची वैली एक छोटी और खूबसूरत जगह है। दुनिया से कटे हुए इस खुबसूरत पर्यटन स्थल के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। हालांकि इसकी खूबसूरती किसी भी मामले में कम नहीं है। यहां के बर्फीले पहाड़, कई सारे खुबसूरत झरने, हरे-भरे घास के मैदान देखकर आप रोमांचित हो उठेंगे। अगर आप प्रकृति से प्यार करते हो तो थाची वैली की खूबसूरती आपको बिलकुल निराश नहीं करेगी। यहां की अद्भुत सुन्दरता के बीच आप अपने परिवार के साथ आदर्श समय बिता सकते हैं।
थाची वैली में ट्रेकिंग के लिए कई ट्रेक मौजूद हैं, जिनमें से थाची-सपोनी धार ट्रेक, थाची ​​गांव-बीड पठार पीक ट्रेक प्रमुख है। थाची वैली की असली सुंदरता का आनंद लेना हो तो आपको थाची-सपोनी धार ट्रेक पर जरूर जाना चाहिए। ट्रेकिंग के अलावा थाची वैली में पर्यटक पैराग्लाइडिंग का आनंद भी ले सकते हैं। थाची वैली में पर्यटकों के लिए बिठु नारायण मंदिर, हिडिम्बा पीक, चुंजवाला पीक और सपोनी धार जैसे आकर्षक स्थल मौजूद हैं। यहां पर्यटकों के रुकने के लिए थाची और पनाला में कैंपिंग और छोटे गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।

कैसे पहुंचें थाची वैली~

दिल्ली से लगभग 485 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थाची वैली जाने के लिए औट से बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। औट जाने के लिए मंडी, कुल्लू और मनाली के लिये बहुत सी बसें उपलब्ध हैं। मंडी, कुल्लू और मनाली जाने के लिये दिल्ली से सीधी बसें चलती हैं। थाची वैली से नजदीकी हवाई अड्डा लगभग 44 किलोमीटर दूर भुंतर हवाई अड्डा है।

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