16/10/2023
#भिश्ती व #हुमायूं और #शेरशाह सुरी का युद्ध : भारत में पहले एक समुदाय जिसे भिश्ती नाम से जाना जाता है, अक्सर गर्मियों के दिनों में दिखाई देते थे इनका कार्य ही गर्मी में ज्यादा होता था ये पारंपरिक रूप जल वाहक होते थे, जो बकरी के चमडे से बने एक बैग में पानी को संग्रहित कर इधर-उधर ले जाते हैं ये भारत में मुगल काल में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे इन्हीं से जुड़ी है मुगल शासक हुमायूं की एक घटना या कहे वह भिश्ती अगर नहीं होता तो हुमायूं भी मारा गया होता ।
बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में एक बात लिखी है कि , 'मैंने अपने बेटे हुमायूँ को #हिसार फ़िरूज़ा के गवर्नर के नेतृत्व में #इब्राहिम #लोदी की अग्रिम टुकड़ी का सामना करने को भेजा था. जब उसने लोदी के सैनिकों को हरा दिया, तो मैंने हुमायूँ को हिसार फ़िरूज़ा जागीर के तौर पर उपहार स्वरूप दे दी.
नोट : महज 12 साल की उम्र में बाबर ने हुमायूँ को बदक्शाँ का गवर्नर भी बनाया था. और 17 साल की उम्र से भारत अभियान में हुमायूँ अपने पिता बाबर के साथ भी लड़ा था उसने बचपन से भारत में युद्ध देखा था । वर्ष 1530 में हुमायूँ भारत की गद्दी पर बैठा तो उसकी उम्र मात्र 27 साल थी ।
उसके एक युद्ध ने उसका जीवन बदल कर रख दिया था 1539 को #चौसा ( बिहार) में हुई लड़ाई में हुमायूँ की हार हुई थी. इस लड़ाई में हुमायूँ ने ख़ुद भाग लिया और उसकी बाँह में एक तीर भी लगा. जब उन्होंने अपने सैनिकों को आगे बढ़ने का आदेश दिया तो किसी भी सैनिक ने उनका आदेश नहीं माना विपक्षी सेना के अधिक प्रहार और सैन्य शक्ति से डर कर अचानक युद्ध के लिए सैनिक तैयार नहीं थे जिससे उनकी हार हो गई। हुमायूँ के सेनापति हिन्दूबेग चाहते थे कि वह गंगा के उत्तरी तट से जौनपुर तक अफगानों को वहाँ से खदेड़ दे, परन्तु हुमायूँ ने अफगानो की गतिविधियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया यह भी हार का एक कारण बना। ।
और हुमायूँ को अपनी जान बचाने के लिए युद्ध क्षेत्र से ही भागना पड़ा. गंगा को पार करते समय उनका घोड़ा नदी की तेज़ धार में बह गया. एक भिश्ती (मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति) ने अपनी मशक (खाल का बना पानी भरने का थैला) देकर हुमायूँ को डूबने से बचाया. दूसरी बार बादशाह बनने के बाद हुमायूं ने उस जान बचाने वाले भिश्ती को ढूंढ निकाला और उसे एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बनाया था। हुमायुं ने शाही कपड़े पहनवाकर भिश्ती को राजगद्दी पर बैठा दिया और दरबारियों से कहा आज के दिन यह बादशाह हैं और इन्हीं के हुक्म का पालन किया जाए। इतना कहकर हुमायुं वहाँ से चला गया। जब हुमायुं वहां से चला गया तो निजाम बादशाह वजीर को लेकर टकसाल पहुंचा और वहां बन रहे सिक्कों पर रोक लगा दी और चमड़े के सिक्के बनाने का आदेश दिया। जिसके बाद टकसाल में दिन-रात चमड़े के सिक्के बनने लगे। जिसके बाद पूरे राज्य में चमड़े के सिक्के भी चलन में आए
नोट :चमड़े के सिक्कों को चलन में लगभग 1325-1350 ई. के बीच शासक मोहम्मद तुगलक प्रारम्भ किया था
चौसा के भिश्ती निजाम को एक दिन के लिए ही दिल्ली की बादशाहत मिली थी लेकिन उसने चमडे का सिक्का चलाकर भारतीय इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। निजाम के द्वारा चलाया गया चमड़े का सिक्का आज भी पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है ।
नोट : बिहार राज्य के बक्सर जिले में चौसा नामक स्थल है
शेरशाह सूरी का जीत का कारण : शेर खाँ शेरशाह सूरी ने एक अफगान को दूत बनाकर भेजा था जिससे उसकी सेना को हुमायूँ की सेना की दुर्व्यवस्था कि जानकारी हो गई जिससे उसने अचानक रात में हमला कर दिया और बहुत से मुगल सैनिक अचानक हुए हमले में गंगा में कूद पड़े और डूब गये या कईयों अफगानों के तीरों के शिकार हो कर मारे गये।
नोट :शेरशाह सूरी ने पहले हुमायूँ के पिता बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया था जिन्होंने उन्हें बाद में उसके योग्यता को देखकर उसे पदोन्नत कर सेनापति भी बनाया था और फिर बिहार का राज्यपाल भी नियुक्त किया। 1537 में, जब हुमायूँ कहीं सुदूर अभियान पर थे तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्ज़ा कर बिहार क्षेत्र में सूरी वंश स्थापित किया था। और 1539 को चौसा युद्ध में हुमायूँ को हरा कर उसे देश छोड़ने पर मजबुर किया और उत्तर भारत में सूरी वंश की स्थापना की थी इनका शासन 5 साल ही रहा यानी लगभग 1540-1545 तक ही रहा।