Travel Stories

Travel Stories Travel Stories is a platform exploring & expressing travel experiences from untouched places around the country...
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09/01/2018

Collapse the light into earth.



Pic credits Nitin Kanojia

10/01/2017

When clouds touches the mountains in our beautiful city almora.

04/09/2016

Ever wondered, how HIMALAYAS look when you see them just in front of you?
Well, here's a snapshot :D
Travel Maniacs
- Travel Stories by Neha & Varun

01/09/2016

If you haven't been to Tungnath yet, you are missing a major chapter in your Travel Diaries!

29/08/2016

When you travel, you discover the beauty of life… again & again!

27/08/2016

Even watching these HIMALAYAS is divine!
At this time, they are snow less, yet mesmerize. :)

23/08/2016

These roads leads to HAPPINESS...
A moment while driving to Mukteshwar Temple!

20/08/2016

Sitting here, I am always revitalized & refreshed!

18/08/2016

How many pages did you read? :D

17/08/2016

There's God's Village! :) Can you see that?

16/08/2016

Untouched from the modern world… these lives are purest & liveliest on earth. You may find heaven there!

13/08/2016

Can you see that peak of Himalaya... I want to be there!
Was seeing it from my balcony in Kasol :)

12/08/2016

The biggest rainbow I've ever seen in my life....
My camera could capture only its one side!

06/08/2016

A God's Tribe...

"Malana", a village nestled atop an untouched hill, adorned by the sky, and embracing ages old traditions and beliefs. Most of the people today acknowledge this heavenly adobe for the purest form of cannabis or hash, but we have forgotten that that’s not the only identity it has.

Malana is a tribe left by Lord Pashuram, the sixth Vishnu, and even today, his father, sage Jamdagni is worshiped here as Jamlu Devta. Jamdagni founded this village and defined some laws of life for the people here, which are strictly followed even today.

It's a kind of village that is unbelievable to exist in today’s high-tech, easily accessible and rational world. Yet, it’s one of the most incredible, unique and beautiful place, which demands you to trek hard up to the hill to experience this heaven.

- Neha Sen 'Snehi'
Travel Stories

05/04/2015

कसार देवी अल्मोड़ा ।।
चित्र- मनमोहन चौधरी अल्मोड़ा ।।

15/01/2015

Donate for the cause; Donate for Uttarakhand's culture & nature!
आर्थिक सहयोग - 'लोकरंग संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान कार्यशाला', के लिए।

लोकरंग बच्चों के अंदर उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूकता व सम्मान पैदा करने के उद्देश्य से एक और कार्यशाला करने जा रहा है। अगर आप लोकरंग के उद्देश्य में आर्थिक योगदान करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करिये।

कुछ ही समय पहले, लोकरंग टीम एक कार्यशाला करके लौटा है, जो की लोकरंग फाउंडेशन का छटा प्रोजेक्ट था। अब जल्द ही हम आपको अपने अगले पड़ाव से अवगत कराएंगे।

लोकरंग के अभी तक के प्रोजेक्ट्स के बारे जानने के लिए इस लिंक पर जाएं।
Link: http://www.lokrang.org/projects/

उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के संयोजन और संवर्धन की मुहीम में लोकरंग फाउंडेशन का सहयोग कीजिये। आपकी एक छोटा सा सहयोग भी एक बेहतर कल ला सकता है।

Your little possible contribution can play a major role in Lokrang's initiative.

Account Details:
Lokrang Foundation
Account no: 0153000110057450
Punjab National Bank
MICR Code: 110024076,
IFSC Code: PUNB0015300
Branch: Sansad Marg, New Delhi

अधिक जानकारी के लिए व्यक्तिगत तोर पर संपर्क करें व जुड़े रहे।
Official Number: +91-9899173901

( नोट - हमारा प्रयास उत्तराखंडी संस्कृति, लुप्त होती विरासतों, का संयोजन, सवर्धन और प्रचार-प्रसार ! हमारी इस मुहीम से जुड़िये ! )

Neha Sen
Co-Founder & Vice Chairman,
Lokrang Foundation (लोकरंग फाउंडेशन)
Email - [email protected]
Web - www.lokrang.org
Blog - http://blog.lokrang.org/
page- https://www.facebook.com/Lokrang
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14/01/2015

सभी उत्तराखंडी मित्रों को 'लोकरंग' की तरफ से उत्तरायणी, घुघतिया व खिचड़ी सक्रांत/ मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ !

आप सभी के लिए ये घुघूती, जतार, हुडको की सौगात ! इस त्यौहार का हम सभी साल भर इंतज़ार करते है मुझे बचपन से ये त्यौहार बहुत पसंद हैं, और घुघूती बनाना और खाना भी पसंद हैं !! मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती हैं यह त्यौहार पुरे भारत के राज्य में किसी न किसी रूप में मनाया जाता हैं !!

काले कौवा आ ले, घुघूती माला खा ले. तू ली जा बड , मैं कै दी जा सुनु घड़. ले कौवा लगड़, मैं कै दी जा सुनु सगड़. काले कौवा आ ले, घुघूती माला खा ले...

काले कव्वे काले, घुगुती माला खा ले |.. काले कव्वे आ, लगड़...

आप भी अपनी चित्र/तस्वीरें सांझा कीजियेगा !

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08/01/2015

आर्थिक सहयोग - 'लोकरंग संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान कार्यशाला', के लिए।

लोकरंग बच्चों के अंदर उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूकता व सम्मान पैदा करने के उद्देश्य से एक और कार्यशाला करने जा रहा है। अगर आप लोकरंग के उद्देश्य में आर्थिक योगदान करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करिये।

कुछ ही समय पहले, लोकरंग टीम एक कार्यशाला करके लौटा है, जो की लोकरंग फाउंडेशन का छटा प्रोजेक्ट था। अब जल्द ही हम आपको अपने अगले पड़ाव से अवगत कराएंगे।

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आर्थिक सहयोग - 'लोकरंग संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान कार्यशाला', के लिए।

लोकरंग बच्चों के अंदर उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूकता व सम्मान पैदा करने के उद्देश्य से एक और कार्यशाला करने जा रहा है। अगर आप लोकरंग के उद्देश्य में आर्थिक योगदान करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करिये।

कुछ ही समय पहले, लोकरंग टीम एक कार्यशाला करके लौटा है, जो की लोकरंग फाउंडेशन का छटा प्रोजेक्ट था। अब जल्द ही हम आपको अपने अगले पड़ाव से अवगत कराएंगे।

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18/12/2014

Snow snow everywhere... :D

Pic courtsy - Nitin Kanojia

12/12/2014

Internship for College Students/ Undergraduates
Online Marketing Executive/Social Media Executive

We are looking for an Online Marketing Executive/Social Media Executive. Interested Undergraduates & Freshers can mail their CV at [email protected] or inbox me at Facebook.

- Neha Sen
Co-Founder & Vice Chairman
Lokrang Foundation
www.lokrang.org

16/11/2014

Full Coverage: 'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'

लोकरंग परिवार को यह बताते हुए बेहद ख़ुशी हो रही है, की लोकरंग टीम "लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'" का सफल आयोजन कर लौट आई है।

पहले और दूसरे दिन के बारे में हम पहले ही बता चुके हैं, इसलिए शुरुवात तीसरे दिन से करते हैं।

………………………………………………………………………

तीसरा दिन व अंतिम दिन:

कार्यशाला के अंतिम व प्रदर्शन के दिन की शुरुवात बच्चों को एक बार फिर से उन्हें सिखाई गई बातों को याद दिला कर की गई। साथ ही, उन्हें लोकरंग व सम्पदा के उदेश्यों के बारे में बताया गया।

तीसरे दिन के कार्यक्रमों की शुरुवात स्वरस्वती माँ की वंदना और स्वागत गीत से की गई। इसके बाद बच्चों ने एक बहुत ही सुन्दर लोक नृत्य का प्रदर्शन किया जो की गढ़वाल की संस्कृति को उजागर करता था। बच्चों ने एक बेहतरीन कला का प्रदर्शन करते हुए, विज्ञान व अन्धविश्वास पर आधारित, उम्मीद से भी बढ़ कर, एक सीख देने वाले नाटक का प्रदर्शन किया। और फिर, एक और खूबसूरत लोक नृत्य का प्रदर्शन किया गया।

इसके बाद, प्रतियोगिताओं में पहला, दूसरा व तीसरा स्थान प्राप्त करने वाले बच्चों को सराहा गया और पुरूस्कार व प्रमाण पत्र दिए गए। साथ ही, लोकरंग व सम्पदा कार्यशाला के दो सर्वोत्तम छात्रों को और तीसरे दिन तीन बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले बच्चों को भी सराहा गया और पुरूस्कार व प्रमाण पत्र दिया गया।

कार्यशाला का अंत सभी सहभागियों को धन्यवाद करते हुए किया गया।

…………………………………………………………………………………

दूसरा दिन:

कार्यशाला के दूसरे दिन की शुरुवात पहले दिन में सिखाई गई बातों को याद दिलाने से की गई। इस दिन बच्चों को 'Career Guidance' दी गई और इसी से दिन की शुरुवात की गई। उन्हें बताया गया की किस तरह से उन्हें अपने लिए एक सही लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए व उसके लिए पूरी लगन लगा कर मेहनत करनी चाहिए। बच्चों से उनके करियर के बारे में चर्चा की गई व उन्हें बताया गया कि उनके लिए बहुत ही प्रकार के व्यवसाय हैं जिनका चुनाव वो अपने क्षमता व पसंद के अनुसार कर सकते हैं। उन्हें ये एहसास कराया गया की अपनी एक पहचान बनाना कितना ज़रूरी है और एक 'पहचान' क्या होती है।

कार्यशाला के दूरसे दिन डॉ डी र पुरोहित जी ने बच्चों को उत्तराखंड की संस्कृति, मेले व त्योहारों के बारे में विस्तार में बताया व प्रेसेंटेशन दी। उन्होंने उत्तराखंड के मंदिरो व उनसे जुडी प्रथाओ और इतिहास के बारे में बताया व समझाया। पुरोहित जी ने बच्चों को हिंदी, इंग्लिश, कुमाऊनी व गढ़वाली के लिए भी जागरूक किया। उनके द्वारा सुनाई गई छोटी छोटी सीख देने वाली कहानियाँ, बच्चों को बेहद पसंद आई। साथ ही, लोक गायक संजय पाण्डेय ने बच्चों को कई होलियां व लोक गीत गए कर सुनाए।

इस दिन बच्चों को संस्कृति व प्रकृति के ओर उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में विस्तार से बताया गया। साथ ही, उत्तराखंड में होती प्राकृतिक आपदाओं के मूल कारणों व उस से बचने के उपायों के बारे में बताया गया। बच्चों को संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूक किया गया।

दूसरे दिन के दूरसे भाग में, कई प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया, जिसमे बच्चों में बहुत ही उत्साहित होकर भाग लिया।

…………………………………………………………………………………

पहला दिन:

लोकरंग टीम ने बच्चों को संस्कृति व प्रकृति के मूल अर्थ व महत्व के बारे में बताया। उन्हें संस्कृति व प्रकृति की ओर उनकी जिम्मेदारियों के लिए जागरूक करने का प्रयत्न किया। साथ ही, डॉ राकेश भट्ट ने बच्चों को उत्तराखंड की संस्कृति के कुछ मूल विषयों पर जानकारी दी व बच्चों को जागरूक किया। और, बच्चों को रंगमंच व लोक नृत्य का ज्ञान व अभ्यास भी दिया गया।

पहले दिन का उद्देश्य था की बच्चों के अंदर उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूकता व सम्मान पैदा करना।
………………………………………………………………………………

यह बच्चों के साथ ही साथ हमारे लिए भी एक अच्छा अनुभव रहा, जिसमे बच्चों को कुछ जानकारी देने व नई बातें सीखने में हम सफल रहे। इसके ७, ९ व ११ कक्षा के लगभग २५० बच्चों ने भाग लिया था।

'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'
स्थान: जी आई सी, कीर्ति नगर, (श्रीनगर) टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
दिनांक: 7, 8, 9 नवम्बर' 2014

- नेहा सेन
Co-Founder & Vice Chairman
Lokrang Foundation (लोकरंग फाउंडेशन)
Email - [email protected]
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page- https://www.facebook.com/Lokrang
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कुछ झलकियाँ: 'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला' (7, 8, 9 Nov'2014)

निबंध प्रतियोगिता में भाग लेते छात्र।

स्थान: जी आई सी, डांगचौरा, (श्रीनगर) टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
दिनांक: 7, 8, 9 नवम्बर' 2014
Picture: Gokul Papola (Team Lokrang)
( https://www.facebook.com/PhotographyGokul )

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12/11/2014

लोकरंग परिवार को यह बताते हुए बेहद ख़ुशी हो रही है, की लोकरंग टीम 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला' का सफल आयोजन कर लौट आई है।

यह बच्चों के साथ ही साथ हमारे लिए भी एक अच्छा अनुभव रहा, जिसमे बच्चों को कुछ जानकारी देने व नई बातें सीखने में हम सफल रहे। इसके ७, ९ व ११ कक्षा के लगभग २५० बच्चों ने भाग लिया था।

पहला दिन: लोकरंग टीम ने बच्चों को संस्कृति व प्रकृति के मूल अर्थ व महत्व के बारे में बताया। उन्हें संस्कृति व प्रकृति की ओर उनकी जिम्मेदारियों के लिए जागरूक करने का प्रयत्न किया। साथ ही, डॉ राकेश भट्ट ने बच्चों को उत्तराखंड की संस्कृति के कुछ मूल विषयों पर जानकारी दी व बच्चों को जागरूक किया। और, बच्चों को रंगमंच व लोक नृत्य का ज्ञान व अभ्यास भी दिया गया।

पहले दिन का उद्देश्य था की बच्चों के अंदर उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूकता व सम्मान पैदा करना।

जल्द ही हम आपके सामने पूरा विवरण रखेंगे। तब तक के लिए आपके सामने कुछ तस्वीरें पेश हैं।

'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'
स्थान: जी आई सी, कीर्ति नगर, (श्रीनगर) टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
दिनांक: 7, 8, 9 नवम्बर' 2014

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लोकरंग परिवार को यह बताते हुए बेहद ख़ुशी हो रही है, की लोकरंग टीम 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला' का सफल आयोजन कर लौट आई है।

यह बच्चों के साथ ही साथ हमारे लिए भी एक अच्छा अनुभव रहा, जिसमे बच्चों को कुछ जानकारी देने व नई बातें सीखने में हम सफल रहे। इसके ७, ९ व ११ कक्षा के लगभग २५० बच्चों ने भाग लिया था।

पहला दिन: लोकरंग टीम ने बच्चों को संस्कृति व प्रकृति के मूल अर्थ व महत्व के बारे में बताया। उन्हें संस्कृति व प्रकृति की ओर उनकी जिम्मेदारियों के लिए जागरूक करने का प्रयत्न किया। साथ ही, डॉ राकेश भट्ट ने बच्चों को उत्तराखंड की संस्कृति के कुछ मूल विषयों पर जानकारी दी व बच्चों को जागरूक किया। और, बच्चों को रंगमंच व लोक नृत्य का ज्ञान व अभ्यास भी दिया गया।

पहले दिन का उद्देश्य था की बच्चों के अंदर उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूकता व सम्मान पैदा करना।

जल्द ही हम आपके सामने पूरा विवरण रखेंगे। तब तक के लिए आपके सामने कुछ तस्वीरें पेश हैं।

'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'
स्थान: जी आई सी, डांगचौरा, (श्रीनगर) टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
दिनांक: 7, 8, 9 नवम्बर' 2014

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20/10/2014

लोकरंग फाउंडेशन को आर्थिक सहयोग देने के लिए जानकारी।

लोकरंग बच्चों को, हमारे भविष्य को, उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से एक कार्यशाला करने जा रहा है। अगर आप इसमें भागीदारी करना चाहते हैं और आर्थिक मदद करने के इक्छुक हैं, तो हमसे संपर्क कर सकते हैं।

Account Details:
Lokrang Foundation
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Punjab National Bank
MICR Code: 110024076,
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Branch: Sansad Marg, New Delhi

अधिक जानकारी के लिए व्यक्तिगत तोर पर संपर्क करें व जुड़े रहे।
Official Number: +91-9711869852

( नोट - हमारा प्रयास उत्तराखंडी संस्कृति, लुप्त होती विरासतों, का संयोजन, सवर्धन और प्रचार-प्रसार ! हमारी इस मुहीम से जुड़िये ! )

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लोकरंग फाउंडेशन को आर्थिक सहयोग देने के लिए जानकारी।

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17/10/2014

लोकरंग बच्चों को, हमारे भविष्य को, उत्तराखंड की संस्कृति व प्रकृति के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से एक कार्यशाला करने जा रहा है। अगर आप भी इसमें भागीदारी करना चाहते हैं, तो हमसे संपर्क करें।

आप किसी भी निम्न प्रकार से सहयोग कर सकते हैं।

- Mentor-ship (Teachers)
- Volunteer
- Guidance
- Financial

'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'
स्थान: जी आई सी, कीर्ति नगर, (श्रीनगर) टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
दिनांक: 7, 8, 9 नवम्बर' 2014

अधिक जानकारी के लिए व्यक्तिगत तोर पर संपर्क करें व जुड़े रहे।
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आप किसी भी निम्न प्रकार से सहयोग कर सकते हैं।

- Mentor-ship (Teachers)
- Volunteer
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'लोकरंग एवं सम्पदा 'संस्कृति व प्रकृति संयोजन और संवर्धन अभियान' कार्यशाला'
स्थान: जी आई सी, कीर्ति नगर, (श्रीनगर) टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
दिनांक: 7, 8, 9 नवम्बर' 2014

अधिक जानकारी के लिए व्यक्तिगत तोर पर संपर्क करें व जुड़े रहे।
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09/10/2014

लोकरंग उत्तराखंड के विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यशाला करने के लिए विद्यालयों का चयन कर रहा है। आप अगर किसी विद्यालय को नामांकित करना चाहते हों या किसी विद्यालय में वर्कशॉप के लिए कोई मदद या सुझाव देना चाहते हों, तो संपर्क करें।

अधिक जानकारी के लिए व्यक्तिगत तोर पर संपर्क करें।

चित्र - लोकरंग 'संस्कृति संयोजन और सवर्धन अभियान' कार्यशाला (2011)

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चित्र - लोकरंग 'संस्कृति संयोजन और सवर्धन अभियान' कार्यशाला (2011)

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08/10/2014

'रानीखेत'

रानीखेत उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के अंतर्गत एक पहाड़ी पर्यटन स्थल है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक एक लघु हिल स्टेशन है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 85 किमी. की दूरी पर स्थित यह अच्छी पक्की सड़क से जुड़ा है। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालयी श्रेणियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग रानीखेत समुद्र तल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। छावनी का यह शहर अपने पुराने मंदिरों के लिए मशहूर है। उत्तराखंड की कुमाऊं की पहाड़ियों के आंचल में बसा रानीखेत फ़िल्म निर्माताओं को भी बहुत पसन्द आता है। यहां दूर-दूर तक रजत मंडित सदृश हिमाच्छादित गगनचुंबी पर्वत, सुंदर घाटियां, चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़, घना जंगल, फलों लताओं से ढके संकरे रास्ते, टेढ़ी-मेढ़ी जलधारा, सुंदर वास्तु कला वाले प्राचीन मंदिर, ऊंची उड़ान भर रहे तरह-तरह के पक्षी और शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य आकर्षण का केन्द्र है।[1] रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए पिण्डारी ग्लेशियर, कौसानी, चौबटिया और कालिका पहुँचा जा सकता है। चौबटिया में प्रदेश सरकार के फलों के उद्यान हैं। इस पर्वतीय नगरी का मुख्य आकर्षण यहाँ विराजती नैसर्गिक शान्ति है।

स्थिति:

रानीखेत, उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले में है। रानीखेत समुद्र तल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। रानीखेत कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिला के अंतर्गत आने वाला एक छोटा पर एक सुन्दर पर्वतीय नगर हैं। रानीखेत में ज़िले की सबसे बड़ी सेना की छावनी स्थापित हैं, जहाँ सैनिकों को प्रशिक्षित किया जाता हैं। रानीखेत की दूरी नैनीताल से 63 किमी, अल्मोड़ा से 50 किमी, कौसानी से 85 किमी और काठगोदाम से 80 किमी हैं। मनोरम पर्वतीय स्थल रानीखेत लगभग 25 वर्ग किलोमीटर में फैला है। कुमाऊं क्षेत्र में पड़ने वाले इस स्थान से लगभग 400 किलोमीटर लंबी हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखला का ज़्यादातर भाग दिखता हैं। इन पर्वतों की चोटियां सुबह-दोपहर-शाम अलग-अलग रंग की मालूम पड़ती हैं।

नामकरण:

एक किवदंती के अनुसार रानीखेत का नाम रानी पद्मिनी के कारण पड़ा। रानी पद्मिनी राजा सुखदेव की पत्नी थीं, जो वहां के राज्य के शासक थे। रानीखेत की सुंदरता देख राजा और रानी बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने वहीं रहने का फैसला कर किया। रानीखेत के कई इलाकों पर कुमांऊनी का शासन था पर बाद में यह ब्रिटिश शासकों के हाथ में चला गया। अंग्रेजों ने रानीखेत को छुट्टियों में मौज-मस्ती के लिए हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया और 1869 में यहां कई छावनियां बनवाईं जो अब 'कुमांऊ रेजीमेंटल सेंटर' है। इस पूरे क्षेत्र की मोहक सुंदरता का अनुमान कभी नीदरलैण्ड के राजदूत रहे वान पैलेन्ट के इस कथन से लगाया जा सकता है- जिसने रानीखेत को नहीं देखा, उसने भारत को नहीं देखा। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले कोई रानी अपनी यात्रा पर निकली हुई थीं। इस क्षेत्र से गुजरते समय वह यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से मोहित होकर रात्रि-विश्राम के लिए रुकीं। बाद में उन्हें यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने यहीं पर अपना स्थायी निवास बना लिया। चूंकि तब इस स्थान पर छोटे-छोटे खेत थे, इसलिए इस स्थान का नाम 'रानीखेत' पड़ गया। अंग्रेज़ों के शासनकाल में सैनिकों की छावनी के लिए इस क्षेत्र का विकास किया गया। क्योंकि रानीखेत कुमाऊं रेजिमेन्ट का मुख्यालय है, इसलिए यह पूरा क्षेत्र काफी साफ-सुथरा रहता है। यहां का बाज़ार तो अद्भुत है। पहाड़ के उतार (यानी खड़ी चढ़ाई) पर बना हुआ। इसलिए इसे 'खड़ा बाज़ार' कहा जाता है।[2]

मौसम:

रानीखेत में गर्मी के दिनों में मौसम सामान्य, जुलाई से लेकर सितम्बर तक का मौसम बरसात का और फिर नवंबर से फरवरी तक बर्फबारी और ठंड वाला होता है। रानीखेत का हर मौसम घूमने का आनंद देता है। वैसे तो रानीखेत साल में कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे अच्छा समय है मार्च से जून तक का होता है। अगर आप ठंड में जाना चाहें तो सितम्बर से नवंबर के बीच जाएं, जब वहां का मौसम सबसे बढ़िया होता है।

पर्यटन:

रानीखेत की सुंदरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। दूर-दूर तक फैली घाटियां, घने जंगलों में सरसराते चीड़ के पेड़ यहां की सुंदरता में चार चांद लगते हैं। दुनिया भर से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी यहां मौज-मस्ती करने के लिए आते हैं। रानीखेत से 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ का विशाल मैदान है। उसके पास ही कलिका में कालीदेवी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। द्वाराहाट के पास ही 65 मंदिर बने हुए हैं, जो कि तत्कालीन कला के बेजोड़ नमूनों के रुप में विख्यात हैं। बद्रीकेदार मंदिर, गूजरदेव का कलात्मक मंदिर, दूनागिरि मंदिर, पाषाण मंदिर और बावड़िया यहां के प्रसिद्ध मंदिर हैं। द्वाराहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर दूनागिरी मंदिर है। यहां से आप बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं। दूनागिरी में चोटी पर दुर्गाजी समेत कई अन्य मंदिर भी हैं, जहां पर आसपास के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। इसके कुछ ही दूरी पर शीतलाखेत है, जो पर्यटक गांव के नाम से जाना जाता है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां पर दिखने वाले खूबसूरत नज़ारे पर्यटकों को खूब भाते हैं। रानीखेत से लगभग सात किलोमीटर दूरी पर है- कलिका मंदिर। यहां मां काली की पूजा की जाती है। यहां पर पौधों की बहुत ही बढ़िया नर्सरी भी हैं। ऊपर में गोल्फ कोर्स है और उसके पीछे बर्फ से ढंका हुआ पहाड़ बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। रानीखेत में इसके अलावा और भी मनोरम स्थल है। यहां का बालू बांध मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है। रानीखेत से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर भ्रमण करने की भी कई जगह हैं जैसे अल्मोड़ा जहां हिमालय पहाड़ों का सुंदर दृश्य मन को मोह लेता है। रानीखेत का चौबटिया गार्डन पर्यटकों की पहली पसंद है। इसके अलावा यहां का सरकारी उद्यान और फल अनुसंधान केंद्र भी देखे जा सकता है। इनके पास में ही एक वाटर फॉल भी है। कम भीड़-भाड़ और शान्त माहौल रानीखेत को और भी ख़ास बना देता है।

प्रमुख दर्शनीय स्थल:

कटारमल सूर्य मन्दिर
माँ कलिका मंदिर
गोल्फ़ कोर्स
चौबटिया गार्डन
बिन्सर महादेव मंदिर
कटारमल सूर्य मन्दिर
हेड़ाखान मंदिर
द्वाराहाट
झूला देवी मंदिर
कुमाऊँ रेजिमेंट का संग्रहालय

Source: Internet

( नोट - हमारा प्रयास उत्तराखंडी संस्कृति, लुप्त होती विरासतों, का संयोजन, सवर्धन और प्रचार-प्रसार ! हमारी इस मुहीम से जुड़िये ! )

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'रानीखेत'

रानीखेत उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के अंतर्गत एक पहाड़ी पर्यटन स्थल है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक एक लघु हिल स्टेशन है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 85 किमी. की दूरी पर स्थित यह अच्छी पक्की सड़क से जुड़ा है। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालयी श्रेणियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग रानीखेत समुद्र तल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। छावनी का यह शहर अपने पुराने मंदिरों के लिए मशहूर है। उत्तराखंड की कुमाऊं की पहाड़ियों के आंचल में बसा रानीखेत फ़िल्म निर्माताओं को भी बहुत पसन्द आता है। यहां दूर-दूर तक रजत मंडित सदृश हिमाच्छादित गगनचुंबी पर्वत, सुंदर घाटियां, चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़, घना जंगल, फलों लताओं से ढके संकरे रास्ते, टेढ़ी-मेढ़ी जलधारा, सुंदर वास्तु कला वाले प्राचीन मंदिर, ऊंची उड़ान भर रहे तरह-तरह के पक्षी और शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य आकर्षण का केन्द्र है।[1] रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए पिण्डारी ग्लेशियर, कौसानी, चौबटिया और कालिका पहुँचा जा सकता है। चौबटिया में प्रदेश सरकार के फलों के उद्यान हैं। इस पर्वतीय नगरी का मुख्य आकर्षण यहाँ विराजती नैसर्गिक शान्ति है।

स्थिति:

रानीखेत, उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले में है। रानीखेत समुद्र तल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। रानीखेत कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिला के अंतर्गत आने वाला एक छोटा पर एक सुन्दर पर्वतीय नगर हैं। रानीखेत में ज़िले की सबसे बड़ी सेना की छावनी स्थापित हैं, जहाँ सैनिकों को प्रशिक्षित किया जाता हैं। रानीखेत की दूरी नैनीताल से 63 किमी, अल्मोड़ा से 50 किमी, कौसानी से 85 किमी और काठगोदाम से 80 किमी हैं। मनोरम पर्वतीय स्थल रानीखेत लगभग 25 वर्ग किलोमीटर में फैला है। कुमाऊं क्षेत्र में पड़ने वाले इस स्थान से लगभग 400 किलोमीटर लंबी हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखला का ज़्यादातर भाग दिखता हैं। इन पर्वतों की चोटियां सुबह-दोपहर-शाम अलग-अलग रंग की मालूम पड़ती हैं।

नामकरण:

एक किवदंती के अनुसार रानीखेत का नाम रानी पद्मिनी के कारण पड़ा। रानी पद्मिनी राजा सुखदेव की पत्नी थीं, जो वहां के राज्य के शासक थे। रानीखेत की सुंदरता देख राजा और रानी बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने वहीं रहने का फैसला कर किया। रानीखेत के कई इलाकों पर कुमांऊनी का शासन था पर बाद में यह ब्रिटिश शासकों के हाथ में चला गया। अंग्रेजों ने रानीखेत को छुट्टियों में मौज-मस्ती के लिए हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया और 1869 में यहां कई छावनियां बनवाईं जो अब 'कुमांऊ रेजीमेंटल सेंटर' है। इस पूरे क्षेत्र की मोहक सुंदरता का अनुमान कभी नीदरलैण्ड के राजदूत रहे वान पैलेन्ट के इस कथन से लगाया जा सकता है- जिसने रानीखेत को नहीं देखा, उसने भारत को नहीं देखा। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले कोई रानी अपनी यात्रा पर निकली हुई थीं। इस क्षेत्र से गुजरते समय वह यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से मोहित होकर रात्रि-विश्राम के लिए रुकीं। बाद में उन्हें यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने यहीं पर अपना स्थायी निवास बना लिया। चूंकि तब इस स्थान पर छोटे-छोटे खेत थे, इसलिए इस स्थान का नाम 'रानीखेत' पड़ गया। अंग्रेज़ों के शासनकाल में सैनिकों की छावनी के लिए इस क्षेत्र का विकास किया गया। क्योंकि रानीखेत कुमाऊं रेजिमेन्ट का मुख्यालय है, इसलिए यह पूरा क्षेत्र काफी साफ-सुथरा रहता है। यहां का बाज़ार तो अद्भुत है। पहाड़ के उतार (यानी खड़ी चढ़ाई) पर बना हुआ। इसलिए इसे 'खड़ा बाज़ार' कहा जाता है।[2]

मौसम:

रानीखेत में गर्मी के दिनों में मौसम सामान्य, जुलाई से लेकर सितम्बर तक का मौसम बरसात का और फिर नवंबर से फरवरी तक बर्फबारी और ठंड वाला होता है। रानीखेत का हर मौसम घूमने का आनंद देता है। वैसे तो रानीखेत साल में कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे अच्छा समय है मार्च से जून तक का होता है। अगर आप ठंड में जाना चाहें तो सितम्बर से नवंबर के बीच जाएं, जब वहां का मौसम सबसे बढ़िया होता है।

पर्यटन:

रानीखेत की सुंदरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। दूर-दूर तक फैली घाटियां, घने जंगलों में सरसराते चीड़ के पेड़ यहां की सुंदरता में चार चांद लगते हैं। दुनिया भर से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी यहां मौज-मस्ती करने के लिए आते हैं। रानीखेत से 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ का विशाल मैदान है। उसके पास ही कलिका में कालीदेवी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। द्वाराहाट के पास ही 65 मंदिर बने हुए हैं, जो कि तत्कालीन कला के बेजोड़ नमूनों के रुप में विख्यात हैं। बद्रीकेदार मंदिर, गूजरदेव का कलात्मक मंदिर, दूनागिरि मंदिर, पाषाण मंदिर और बावड़िया यहां के प्रसिद्ध मंदिर हैं। द्वाराहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर दूनागिरी मंदिर है। यहां से आप बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं। दूनागिरी में चोटी पर दुर्गाजी समेत कई अन्य मंदिर भी हैं, जहां पर आसपास के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। इसके कुछ ही दूरी पर शीतलाखेत है, जो पर्यटक गांव के नाम से जाना जाता है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां पर दिखने वाले खूबसूरत नज़ारे पर्यटकों को खूब भाते हैं। रानीखेत से लगभग सात किलोमीटर दूरी पर है- कलिका मंदिर। यहां मां काली की पूजा की जाती है। यहां पर पौधों की बहुत ही बढ़िया नर्सरी भी हैं। ऊपर में गोल्फ कोर्स है और उसके पीछे बर्फ से ढंका हुआ पहाड़ बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। रानीखेत में इसके अलावा और भी मनोरम स्थल है। यहां का बालू बांध मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है। रानीखेत से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर भ्रमण करने की भी कई जगह हैं जैसे अल्मोड़ा जहां हिमालय पहाड़ों का सुंदर दृश्य मन को मोह लेता है। रानीखेत का चौबटिया गार्डन पर्यटकों की पहली पसंद है। इसके अलावा यहां का सरकारी उद्यान और फल अनुसंधान केंद्र भी देखे जा सकता है। इनके पास में ही एक वाटर फॉल भी है। कम भीड़-भाड़ और शान्त माहौल रानीखेत को और भी ख़ास बना देता है।

प्रमुख दर्शनीय स्थल:

कटारमल सूर्य मन्दिर
माँ कलिका मंदिर
गोल्फ़ कोर्स
चौबटिया गार्डन
बिन्सर महादेव मंदिर
कटारमल सूर्य मन्दिर
हेड़ाखान मंदिर
द्वाराहाट
झूला देवी मंदिर
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