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Uttarakhand, A beautiful and famous place in India with several pilgrimage sites along with the hill stations, and the origin of two rivers, the Ganges and the Yamuna, are among the most sacred rivers in Hinduism from this state. Every year international and national tourists visit Uttarakhand for Explorations, Trekking, Yoga, Meditation, and several other adventure activities.

अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस: पहाड़ों के संरक्षण का संकल्पहर साल 11 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (Inter...
11/12/2023

अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस: पहाड़ों के संरक्षण का संकल्प
हर साल 11 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (International Mountain Day) मनाया जाता है। यह दिन उन पहाड़ों को श्रद्धांजलि देने का दिन है जो हमारे ग्रह के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पहाड़ न केवल हमें प्राकृतिक सौंदर्य और मनोरंजन प्रदान करते हैं, बल्कि जल संसाधनों को भी नियंत्रित करते हैं और जैव विविधता के समृद्ध केंद्र हैं।

इतिहास:

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की शुरुआत 1992 में हुई जब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन में पर्वतीय विकास पर एक अध्याय शामिल किया गया। इस अध्याय को "नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन: सतत पर्वतीय विकास" नाम दिया गया।

इसके बाद, 2002 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया। इस वर्ष के दौरान पहाड़ों के महत्व और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।

अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस का पहला आधिकारिक समारोह 11 दिसंबर 2003 को हुआ। तब से हर साल इस दिन को मनाया जाता है ताकि लोगों को पहाड़ों के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया जा सके।

थीम:

हर साल अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की एक अलग थीम होती है जो पहाड़ों से संबंधित किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करती है। 2023 वर्ष का विषय है "पहाड़ों के लोगों के लिए: लचीलापन का निर्माण"। यह विषय पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की चुनौतियों और उनके अनुकूलन क्षमता को उजागर करता है।

भारत में पहाड़ों का महत्व:

भारत पहाड़ों से समृद्ध देश है। हिमालय और कराकोरम जैसे पर्वत श्रृंखलाएं भारत के उत्तर में स्थित हैं और देश के भौगोलिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक अभिन्न अंग हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएं न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता का खजाना हैं, बल्कि भारत के कृषि और जल संसाधनों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

हमें क्या करना चाहिए?

पहाड़ों के संरक्षण के लिए हम सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। हम पहाड़ों को प्रदूषण से मुक्त रखने, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करने और पर्यटन को टिकाऊ तरीके से संचालित करने के लिए प्रयास कर सकते हैं।

आइए इस अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस पर पहाड़ों के संरक्षण के लिए अपना संकल्प दोहराएं और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करें।

#पर्वतदिवस #सुरक्षितपर्वत #स्वच्छपहाड़

Max pahad ka jahaz...! 🎶♥️🙏
11/12/2023

Max pahad ka jahaz...! 🎶♥️🙏

पहाड़ी शादियों में 8-10 मैक्स तो नॉर्मल हैं🥰

15/11/2023
09/01/2023

असीमित महेतवंशाओं के साथ हमारी सरकार जो की बाहरी लोगो को बढ़ा रही है और उत्तराखण्डियों का शोषण हो रहा है।
अनियंत्रित और अनावश्यक कार्य जो विकास के नाम पर हो रहा है। इसकी बरपाई करने की क्षमता नहीं है हमारे नेताओं में ।
फिर भी अतुल जी जैसे लोग समाज के साथ खड़े है। अगर आज भी उत्तराखण्डियों की आंखे नही खुली तो व्यर्थ है जीवन तुम्हारा।

जय उत्तराखंड जय केदारखंड जय बद्रीविशाल।

🙏 उत्तराखंड बचाओ।

तो भुला! उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक सूदूर गांव है, और इस गांव तक पहुंचने के लिए आपको सीधे 5 किलोमीटर चढ़ाई चढ़ने...
20/12/2022

तो भुला!

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक सूदूर गांव है, और इस गांव तक पहुंचने के लिए आपको सीधे 5 किलोमीटर चढ़ाई चढ़ने के बाद 2700 मीटर की ऊंचाई प्राप्त होती है। बस यखी बटी आया है ये "भोट्या" हमारा...
हिमालय की ऊंची नीची डांडी कांठीयों से ठुमक ठुमक कर आया अपना "भोट्या" दा बॉस..

इसके यहां देहरादून में आने के पीछे बस इसकी किस्मत है या किसी गांव वाले की मजबूरी, ये आपकी अपनी सोच है? बस हम इतना चाहते हैं कि ये "भोट्या" जो की अपनी कुछ प्रमुख विशेषताएं रखता है जैसे कि अपने परिवेश और अपने डेरे के प्रति पूर्णतयः वफ़ादारी, तो क्यों न इसके नये डेरे (घर) का सही चुनाव किया जाये..

हिमालय की ऊंची नीची डांडी कांठीयों से ठुमक ठुमक तक आया अपना भोट्या दा बॉस..

हिमालय के मनोरम बुग्यालों और जंगलों की उबड-खाबड़ पगडंडियों से होते हुवे "भोट्या" को देहरादून तक आने में 200 से 250 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ा। कभी पैदल, तो कभी अपनी मां की पीठ पर, कभी किसी बकरी की पीठ पर तो कभी अपने मालिक की गोद पर।

तो "भोट्या" का नया परिवेश और डेरा(घर) कैसा हो?

जरा बतलाईए बल!

इनबॉक्स फॉर इनक्वेरी

Mukesh Karasi जी की वॉल सेकेदारनाथ की यह तस्वीर 1882 में भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने खींची थी. यह वो समय था जब हमारे पुरखे...
26/05/2022

Mukesh Karasi जी की वॉल से
केदारनाथ की यह तस्वीर 1882 में भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने खींची थी. यह वो समय था जब हमारे पुरखे मानते थे कि ऊंचे हिमालयी इलाकों में इंसानी दखल कम से कम होना चाहिए. वे ऐसा मानते ही नहीं थे, अपने बरताव में इसका ख्याल भी रखते थे. जैसे बुग्यालों में जाने के ये अलिखित कायदे थे कि वहां जोर-जोर से न बोला जाए या खांसा भी धीरे से जाए. बताते हैं कि तब यात्री गौरीकुंड से सुबह-सुबह निकलते थे और 14 किलोमीटर दूर केदारनाथ के दर्शन करके शाम तक वापस आ जाते थे. हमारे पुरखों ने केदारनाथ में जैसे भव्य मंदिर बना दिया था वैसे ही वहां रात बिताने के लिए और भवन भी वे बना ही सकते थे, लेकिन कुछ सोचकर ही उन्होंने ऐसा नहीं किया होगा. सोच शायद यही रही होगी कि जिस फसल से पेट भर रहा है उसके बीज हिफाजत से रखे जाएं. यानी करोड़ों लोगों का जीवन चलाने वाली गंगा-यमुना जैसी कितनी ही सदानीरा नदियों के स्रोत जिस हिमालय में हैं उसे कम से कम छेड़ा जाए .... लेकिन जिन इलाकों में जोर से न बोलने तक की सलाह थी वहां आज भयानक शोर है. यह शोर सड़कों और सुरंगों के लिए पहाड़ों को उड़ाते डायनामाइट का हो या साल-दर-साल बढ़ते श्रद्धालुओं को धाम पहुंचाने के लिए दिन में दसियों चक्कर लगाते हेलीकॉप्टरों का, इसने प्रकृति की नींद में खलल पैदा कर रखा है. अमरनाथ से लेकर #केदारनाथ तक ऊंचे हिमालय में बसे हर तीर्थ का हाल एक जैसा है. नदियों के रास्ते में बेपरवाही से पुस्ते डालकर बना दिए गए मकान, रास्तों पर जगह-जगह फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों और थैलियों के अंबार और तीर्थों में फिल्मी गानों की पैरोडी पर लाउडस्पीकर से बजते कानफाड़ू गाने इशारा कर रहे हैं कि व्यवस्था के सुधरने की मांग करने से पहले एक समाज के रूप में हमें भी खुद को सुधारने की जरूरत है. नहीं सुधरेंगे तो यह परिमार्जन देर-सबेर प्रकृति खुद ही कर लेगी और वह कितना क्रूर हो सकता है यह हम देख ही रहे हैं.. ॐ हिमालये तू केदारम् ॐ

26/05/2022
उत्तराखंड पुलिस के सौजन्य से  उत्तराखंड चारधाम यात्रा में सुगमता, सुरक्षा और मदद के लिए इस उत्तराखंड पुलिस संपर्क सूची क...
11/05/2022

उत्तराखंड पुलिस के सौजन्य से

उत्तराखंड चारधाम यात्रा में सुगमता, सुरक्षा और मदद के लिए इस उत्तराखंड पुलिस संपर्क सूची को अपने साथ रखें और बाकी सबके साथ साझा भी करें। यात्रा के दौरान किसी भी तरह की सहायता के लिए आप हमसे इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। आपकी यात्रा शुभ व मंगलमय हो।

यात्रा पूरे छः महीने खुली रहेगी, अतः आप से निवेदन है कि आप थोड़ा रुक कर जुलाई अगस्त, सिंतबर में यात्रा करें।केदारनाथ बदरी...
09/05/2022

यात्रा पूरे छः महीने खुली रहेगी, अतः आप से निवेदन है कि आप थोड़ा रुक कर जुलाई अगस्त, सिंतबर में यात्रा करें।

केदारनाथ बदरीनाथ जाना है और मई जून में ही जाना है
ये ज़िद्द फिर किसी त्रासदी को बुलाएगी, ये तय है।

केदारग्राम एक बेहद छोटा सा गांव है जिसकी कुल क्षमता 10000 लोग एक बार मे झेलने की है।
वहां अधिकतम एक रात में 10000 लोगों के रुकने की व्यवस्था है इतने ही लोगों के भोजन की व्यवस्था हो सकती है।
लेकिन 6 मई को कपाट खुलने के पहले दिन ही सुबह गौरीकुंड तक 20000 लोग पहुंच गए ।
इस भीड़ को प्रशासन को नियंत्रित करने में पसीना आ गया।और लोगो को गौरीकुंड में ही रोक दिया गया।
कल 7 मई की रात को केदारग्राम की हालत ये थी कि एक भी होटल, गेस्टहाउस, धर्मशाला में एक भी कमरा नही था।
छोटे छोटे होटल्स के कमरे 12000 रुपये / रूम पर नाईट तक मे बिक गए।
लोग खुले आसमान के नीचे 2℃ में अलाव के भरोसे सोए और खाने का कुछ तो पता ही नही।
कल को किसी के साथ कुछ उन्नीस बीस बात हो जाये तो यही भीड़ उत्तराखंड पुलिस, उत्तराखंड सरकार को कोसेगी कि ये देखो जी हम मर रहे थे इन्होंने कुछ ना किया।
जबकि उत्तराखण्ड सरकार ने आपको मई जून में ही आने के लिए इनवाइट नही किया है
आप अपनी जिद्द अपनी मर्ज़ी से गए हो लेकिन कुछ बात हो जाएगी तो कोसोगे आप सरकार को...

अब तो पूरी दुनिया को पता है कि पारिस्थितिक रूप से ये बहुत नाजुक इलाका है,
2013 के वो 48 घंटे कोई भुला नही होगा।
ये बात लोग क्यों नही समझ रहे
ये समझ नही आ रहा कि सबको कपाट खुलते ही 5 किलोमीटर की लाइन लगा के ही दर्शन क्यों करने है
जबकि दर्शन 6 महीने खुले है।
क्या दो महीने बाद बाबा केदार वहां नही रहेंगे
या सितम्बर में बाबा के दर्शन करेंगे तो पुण्य नही मिलेगा....
अक्टूबर में आपको वहां हज़ार लोग भी नही मिलेंगे तब आपको दर्शन क्यों नही करने हैं।
अभी ना होटल मिल रही ना टैक्सी
ना हेलीकॉप्टर...लेकिन जाना सबको मई जून में ही है।

मई जून में ही केदारनाथ बद्रीनाथ जाऊंगा ये ज़िद्द बहुत भारी पड़ सकती है, बहुत भारी ...
हाथ जोड़कर निवेदन है मान जाइये...
वरना 2013 की तरह फिर भोले त्रिनेत्र खोल देंगे तो झेल नही पाओगे...
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

09/04/2022

शहरों की प्यास बुझाने के लिए उत्तराखंड के एक और गांव का बलिदान, शायद कुछ लोग इस खूबसूरत गांव को याद रखेंगे।

किसी का विकास किसी का विनाश।

जय बद्रीविशाल जय हो।।🙏

  👍राफ्टिंग के दौरान होने वाले हादसों को रोकने के लिए उत्तराखंड पुलिस द्वारा महत्वपूर्ण गाइडलाइन जारी की गई है। नियमों क...
15/03/2022

👍
राफ्टिंग के दौरान होने वाले हादसों को रोकने के लिए उत्तराखंड पुलिस द्वारा महत्वपूर्ण गाइडलाइन जारी की गई है।
नियमों का पालन न करने वालो पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी।

*मुझे पहाड़ों से प्यार है...* _हम पहाड़ों में नहीं हैं।  वास्तव में, पहाड़ हम में हैं।"_◆ पर्वत दुनिया की छह सबसे महत्वप...
12/12/2021

*मुझे पहाड़ों से प्यार है...*

_हम पहाड़ों में नहीं हैं। वास्तव में, पहाड़ हम में हैं।"_

◆ पर्वत दुनिया की छह सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों का घर हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं।

◆ विश्व की लगभग 85% पक्षी, स्तनधारी जीव, और उभयचर प्रजातियां पर्वतों में हीं रहतीं हैं।

◆ विश्व के 60 से 80% जल-संसाधनों का उदगम स्थल पर्वतों में ही स्थित हैं।

◆ विश्व के लगभग 50% जैव-विविधता के 'हॉट-स्पॉट' पर्वतीय क्षेत्रों में ही हैं।

◆ 25% स्थलीय प्रजातियों के प्राकृतवास पर्वतों में ही है।

◆ यद्यपि, दुर्भाग्य से, जलवायु परिवर्तन और अति-दोहन ने पहाड़ों के जीवन को संकट में डाल दिया है।

◆ यह उन लोगों की आजीविका को भी प्रभावित करता है जो पहाड़ों में रहते हैं और अस्तित्व को और अधिक कठिन बनाते हैं।

◆ इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की थीम *सतत पर्वतीय पर्यटन* है।

◆ पहाड़ों में सतत पर्यटन अतिरिक्त और वैकल्पिक आजीविका विकल्प बनाने और गरीबी उन्मूलन, सामाजिक समावेश, साथ ही साथ परिदृश्य और जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है।

◆ यह प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को संरक्षित करने, स्थानीय शिल्प और उच्च मूल्य के उत्पादों को बढ़ावा देने और स्थानीय त्योहारों जैसे कई पारंपरिक प्रथाओं का जश्न मनाने का एक तरीका है।

◆ पर्वतीय पर्यटन वैश्विक पर्यटन का लगभग 15 से 20 प्रतिशत आकर्षित करता है। पर्यटन, हालांकि, कोविड -19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है, जो सभी महाद्वीपों पर अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका, सार्वजनिक सेवाओं और अवसरों को प्रभावित करता है।

◆ इस संकट को पर्वतीय पर्यटन और प्राकृतिक संसाधनों और आजीविका पर इसके प्रभाव पर पुनर्विचार करने, इसे बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और इसे अधिक लचीला, हरित और समावेशी भविष्य की दिशा में उपयोग करने के अवसर के रूप में देखा जा सकता है।

*_पर्वतों की रक्षा करने की जिम्मेदारी हमारी है, इसलिए हमें पर्वतों और पर्वतजनों से प्यार करना चाहिए तथा अपने पहाड़ों की रक्षा और संरक्षण के लिए पर्वतों की हरीतिमा, सौंदर्यता, और प्राकृतिक परिदृश्य को यथावत रखने में हर संभव योगदान करना चाहिए!_*

_मैं पर्वत हूँ..._
_पीर भरा- कठोर मेरा जीवन_
_श्रम-संकल्पित मेरे पर्वत-जन।_

_मैं पर्वत हूँ..._
_देख प्रकृति चहुँ ओर_
_मैं होता आत्म-विभोर_
_नृत्यगान कर उल्लसित मेरा मन।_

️🏔️⛰️🏕️
*शुभ अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस !!*

Written By Unknown

Pic : Har ki Dun (Forest guest house behind) taken by us during our visit last year in December last week.



उत्तराखंड का अन्वेषण करेंउत्तराखंड पर्यटन के साथ पुनर्परिभाषितहम उत्तराखंड के लोगों, स्थिरता, पर्यटन, कार्यस्थल, होमस्टे...
02/12/2021

उत्तराखंड का अन्वेषण करें
उत्तराखंड पर्यटन के साथ पुनर्परिभाषित
हम उत्तराखंड के लोगों, स्थिरता, पर्यटन, कार्यस्थल, होमस्टे, विविधता और सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिकता का समर्थन करने का संकल्प लेते हैं।

बूढ़ा केदार एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध के रूप में दर्शन दिए थे। महाभारत के महाकाव्य युद्ध के बाद, जब पांडव अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े। उन्होंने भृगु पर्वत पर ऋषि बालखिली को देखा। ऋषि ने उन्हें दो नदियों के संगम पर एक बूढ़े व्यक्ति से मिलने के लिए कहा जो वहां ध्यान कर रहा था।
जब पांडव वहां पहुंचे तो बूढ़ा गायब हो गया और एक विशाल शिवलिंग प्रकट हुआ। ऋषि ने उन्हें अपने पापों से मुक्त होने के लिए शिवलिंग को गले लगाने के लिए कहा।
कैसे पहुंचें बूढ़ा केदार
बूढ़ा केदार जिला मुख्यालय से लगभग 85 किमी दूर है जो "नई टिहरी" है। नई टिहरी से बूढ़ा केदार के लिए सीधी बस सेवा है। घनसाली से आप छोटे वाहनों से भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। भक्त धौंतारी और उत्तरकाशी होते हुए बूढ़ा केदार पहुंच सकते हैं।
उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल में बुद्ध केदार भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र स्थान है। इस स्थान पर एक शिवलिंग है जिसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है। यह बाल गंगा और धर्म गंगा के संगम पर स्थित है।

बूढ़ा केदार हरे भरे देवदार के जंगलों से ढकी खड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। पहाड़ी गढ़वाल हिमालय के बीच खेती के लिए कई झोपड़ियों और सीढ़ीदार खेतों से युक्त, बूढ़ा केदार आगंतुक को पहाड़ी लोगों के जीवन की एक झलक देता है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जगह स्वर्ग है, यहां कई तरह के पक्षी देखे जा सकते हैं।

बूढ़ा केदार का स्थान
बूढ़ा केदार नई टिहरी से 60 किमी दूर स्थित है।






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18/11/2021

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An imaginative stay in an antique century-old Kumaoni house, devoted to prosperous art and inheritance of Uttarakhand. Nestled in one of the remote villages of Almora District, Deholi (Near Chaubatiya Gardens, Ranikhet) and altogether managed & restored by the natives of village Deholi.

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