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Uttarakhand, A beautiful and famous place in India with several pilgrimage sites along with the hill stations, and the origin of two rivers, the Ganges and the Yamuna, are among the most sacred rivers in Hinduism from this state. Every year international and national tourists visit Uttarakhand for Explorations, Trekking, Yoga, Meditation, and several other adventure activities.

अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस: पहाड़ों के संरक्षण का संकल्पहर साल 11 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (Inter...
11/12/2023

अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस: पहाड़ों के संरक्षण का संकल्प
हर साल 11 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (International Mountain Day) मनाया जाता है। यह दिन उन पहाड़ों को श्रद्धांजलि देने का दिन है जो हमारे ग्रह के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पहाड़ न केवल हमें प्राकृतिक सौंदर्य और मनोरंजन प्रदान करते हैं, बल्कि जल संसाधनों को भी नियंत्रित करते हैं और जैव विविधता के समृद्ध केंद्र हैं।

इतिहास:

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की शुरुआत 1992 में हुई जब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन में पर्वतीय विकास पर एक अध्याय शामिल किया गया। इस अध्याय को "नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन: सतत पर्वतीय विकास" नाम दिया गया।

इसके बाद, 2002 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया। इस वर्ष के दौरान पहाड़ों के महत्व और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।

अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस का पहला आधिकारिक समारोह 11 दिसंबर 2003 को हुआ। तब से हर साल इस दिन को मनाया जाता है ताकि लोगों को पहाड़ों के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया जा सके।

थीम:

हर साल अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की एक अलग थीम होती है जो पहाड़ों से संबंधित किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करती है। 2023 वर्ष का विषय है "पहाड़ों के लोगों के लिए: लचीलापन का निर्माण"। यह विषय पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की चुनौतियों और उनके अनुकूलन क्षमता को उजागर करता है।

भारत में पहाड़ों का महत्व:

भारत पहाड़ों से समृद्ध देश है। हिमालय और कराकोरम जैसे पर्वत श्रृंखलाएं भारत के उत्तर में स्थित हैं और देश के भौगोलिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक अभिन्न अंग हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएं न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता का खजाना हैं, बल्कि भारत के कृषि और जल संसाधनों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

हमें क्या करना चाहिए?

पहाड़ों के संरक्षण के लिए हम सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। हम पहाड़ों को प्रदूषण से मुक्त रखने, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करने और पर्यटन को टिकाऊ तरीके से संचालित करने के लिए प्रयास कर सकते हैं।

आइए इस अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस पर पहाड़ों के संरक्षण के लिए अपना संकल्प दोहराएं और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करें।

#पर्वतदिवस #सुरक्षितपर्वत #स्वच्छपहाड़

Max pahad ka jahaz...! 🎶♥️🙏
11/12/2023

Max pahad ka jahaz...! 🎶♥️🙏

पहाड़ी शादियों में 8-10 मैक्स तो नॉर्मल हैं🥰

जानते हैं, तिलवाड़ा गाँव का इतिहास बहुत गहरा है। यहाँ के लोगों की जीवनशैली और संस्कृति की बुनियादी धारा इस इतिहास के अंग...
10/12/2023

जानते हैं, तिलवाड़ा गाँव का इतिहास बहुत गहरा है। यहाँ के लोगों की जीवनशैली और संस्कृति की बुनियादी धारा इस इतिहास के अंग-अंग में बसी है।

कहते हैं यहाँ के लोग पारंपरिक तरीके से जल, भूमि और वन्य जीवन के संरक्षण में विशेष रुचि रखते थे। गाँव की जमीनों पर खेती करके, पानी की संरक्षा करके और प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करके वे अपने परिवारों को पोषण प्रदान करते थे।

इस इतिहास में उनकी मजबूत संघर्षाशीलता, गाँव के पुराने मंदिर, ऐतिहासिक स्थलों की महत्ता, और उनकी संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा शामिल है।

जब भी कोई यहाँ की बात करता है, तो वह उनकी संवेदनशीलता, प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जिम्मेदारी, और सामुदायिक संगठन में उनकी क्षमता की बात करता है। तिलवाड़ा गाँव ने समय के साथ बदलाव में हिस्सा लिया है, लेकिन इसकी मूल धारा में संस्कृति और परंपराएँ हमेशा से मजबूत बनी हैं। 🙏♥️🎶

तिलवाड़ा

15/11/2023
09/01/2023

🙏😓

09/01/2023

🙏

09/01/2023

असीमित महेतवंशाओं के साथ हमारी सरकार जो की बाहरी लोगो को बढ़ा रही है और उत्तराखण्डियों का शोषण हो रहा है।
अनियंत्रित और अनावश्यक कार्य जो विकास के नाम पर हो रहा है। इसकी बरपाई करने की क्षमता नहीं है हमारे नेताओं में ।
फिर भी अतुल जी जैसे लोग समाज के साथ खड़े है। अगर आज भी उत्तराखण्डियों की आंखे नही खुली तो व्यर्थ है जीवन तुम्हारा।

जय उत्तराखंड जय केदारखंड जय बद्रीविशाल।

🙏 उत्तराखंड बचाओ।

तो भुला! उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक सूदूर गांव है, और इस गांव तक पहुंचने के लिए आपको सीधे 5 किलोमीटर चढ़ाई चढ़ने...
20/12/2022

तो भुला!

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक सूदूर गांव है, और इस गांव तक पहुंचने के लिए आपको सीधे 5 किलोमीटर चढ़ाई चढ़ने के बाद 2700 मीटर की ऊंचाई प्राप्त होती है। बस यखी बटी आया है ये "भोट्या" हमारा...
हिमालय की ऊंची नीची डांडी कांठीयों से ठुमक ठुमक कर आया अपना "भोट्या" दा बॉस..

इसके यहां देहरादून में आने के पीछे बस इसकी किस्मत है या किसी गांव वाले की मजबूरी, ये आपकी अपनी सोच है? बस हम इतना चाहते हैं कि ये "भोट्या" जो की अपनी कुछ प्रमुख विशेषताएं रखता है जैसे कि अपने परिवेश और अपने डेरे के प्रति पूर्णतयः वफ़ादारी, तो क्यों न इसके नये डेरे (घर) का सही चुनाव किया जाये..

हिमालय की ऊंची नीची डांडी कांठीयों से ठुमक ठुमक तक आया अपना भोट्या दा बॉस..

हिमालय के मनोरम बुग्यालों और जंगलों की उबड-खाबड़ पगडंडियों से होते हुवे "भोट्या" को देहरादून तक आने में 200 से 250 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ा। कभी पैदल, तो कभी अपनी मां की पीठ पर, कभी किसी बकरी की पीठ पर तो कभी अपने मालिक की गोद पर।

तो "भोट्या" का नया परिवेश और डेरा(घर) कैसा हो?

जरा बतलाईए बल!

इनबॉक्स फॉर इनक्वेरी

Mukesh Karasi जी की वॉल सेकेदारनाथ की यह तस्वीर 1882 में भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने खींची थी. यह वो समय था जब हमारे पुरखे...
26/05/2022

Mukesh Karasi जी की वॉल से
केदारनाथ की यह तस्वीर 1882 में भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने खींची थी. यह वो समय था जब हमारे पुरखे मानते थे कि ऊंचे हिमालयी इलाकों में इंसानी दखल कम से कम होना चाहिए. वे ऐसा मानते ही नहीं थे, अपने बरताव में इसका ख्याल भी रखते थे. जैसे बुग्यालों में जाने के ये अलिखित कायदे थे कि वहां जोर-जोर से न बोला जाए या खांसा भी धीरे से जाए. बताते हैं कि तब यात्री गौरीकुंड से सुबह-सुबह निकलते थे और 14 किलोमीटर दूर केदारनाथ के दर्शन करके शाम तक वापस आ जाते थे. हमारे पुरखों ने केदारनाथ में जैसे भव्य मंदिर बना दिया था वैसे ही वहां रात बिताने के लिए और भवन भी वे बना ही सकते थे, लेकिन कुछ सोचकर ही उन्होंने ऐसा नहीं किया होगा. सोच शायद यही रही होगी कि जिस फसल से पेट भर रहा है उसके बीज हिफाजत से रखे जाएं. यानी करोड़ों लोगों का जीवन चलाने वाली गंगा-यमुना जैसी कितनी ही सदानीरा नदियों के स्रोत जिस हिमालय में हैं उसे कम से कम छेड़ा जाए .... लेकिन जिन इलाकों में जोर से न बोलने तक की सलाह थी वहां आज भयानक शोर है. यह शोर सड़कों और सुरंगों के लिए पहाड़ों को उड़ाते डायनामाइट का हो या साल-दर-साल बढ़ते श्रद्धालुओं को धाम पहुंचाने के लिए दिन में दसियों चक्कर लगाते हेलीकॉप्टरों का, इसने प्रकृति की नींद में खलल पैदा कर रखा है. अमरनाथ से लेकर #केदारनाथ तक ऊंचे हिमालय में बसे हर तीर्थ का हाल एक जैसा है. नदियों के रास्ते में बेपरवाही से पुस्ते डालकर बना दिए गए मकान, रास्तों पर जगह-जगह फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों और थैलियों के अंबार और तीर्थों में फिल्मी गानों की पैरोडी पर लाउडस्पीकर से बजते कानफाड़ू गाने इशारा कर रहे हैं कि व्यवस्था के सुधरने की मांग करने से पहले एक समाज के रूप में हमें भी खुद को सुधारने की जरूरत है. नहीं सुधरेंगे तो यह परिमार्जन देर-सबेर प्रकृति खुद ही कर लेगी और वह कितना क्रूर हो सकता है यह हम देख ही रहे हैं.. ॐ हिमालये तू केदारम् ॐ

26/05/2022
उत्तराखंड पुलिस के सौजन्य से  उत्तराखंड चारधाम यात्रा में सुगमता, सुरक्षा और मदद के लिए इस उत्तराखंड पुलिस संपर्क सूची क...
11/05/2022

उत्तराखंड पुलिस के सौजन्य से

उत्तराखंड चारधाम यात्रा में सुगमता, सुरक्षा और मदद के लिए इस उत्तराखंड पुलिस संपर्क सूची को अपने साथ रखें और बाकी सबके साथ साझा भी करें। यात्रा के दौरान किसी भी तरह की सहायता के लिए आप हमसे इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। आपकी यात्रा शुभ व मंगलमय हो।

यात्रा पूरे छः महीने खुली रहेगी, अतः आप से निवेदन है कि आप थोड़ा रुक कर जुलाई अगस्त, सिंतबर में यात्रा करें।केदारनाथ बदरी...
09/05/2022

यात्रा पूरे छः महीने खुली रहेगी, अतः आप से निवेदन है कि आप थोड़ा रुक कर जुलाई अगस्त, सिंतबर में यात्रा करें।

केदारनाथ बदरीनाथ जाना है और मई जून में ही जाना है
ये ज़िद्द फिर किसी त्रासदी को बुलाएगी, ये तय है।

केदारग्राम एक बेहद छोटा सा गांव है जिसकी कुल क्षमता 10000 लोग एक बार मे झेलने की है।
वहां अधिकतम एक रात में 10000 लोगों के रुकने की व्यवस्था है इतने ही लोगों के भोजन की व्यवस्था हो सकती है।
लेकिन 6 मई को कपाट खुलने के पहले दिन ही सुबह गौरीकुंड तक 20000 लोग पहुंच गए ।
इस भीड़ को प्रशासन को नियंत्रित करने में पसीना आ गया।और लोगो को गौरीकुंड में ही रोक दिया गया।
कल 7 मई की रात को केदारग्राम की हालत ये थी कि एक भी होटल, गेस्टहाउस, धर्मशाला में एक भी कमरा नही था।
छोटे छोटे होटल्स के कमरे 12000 रुपये / रूम पर नाईट तक मे बिक गए।
लोग खुले आसमान के नीचे 2℃ में अलाव के भरोसे सोए और खाने का कुछ तो पता ही नही।
कल को किसी के साथ कुछ उन्नीस बीस बात हो जाये तो यही भीड़ उत्तराखंड पुलिस, उत्तराखंड सरकार को कोसेगी कि ये देखो जी हम मर रहे थे इन्होंने कुछ ना किया।
जबकि उत्तराखण्ड सरकार ने आपको मई जून में ही आने के लिए इनवाइट नही किया है
आप अपनी जिद्द अपनी मर्ज़ी से गए हो लेकिन कुछ बात हो जाएगी तो कोसोगे आप सरकार को...

अब तो पूरी दुनिया को पता है कि पारिस्थितिक रूप से ये बहुत नाजुक इलाका है,
2013 के वो 48 घंटे कोई भुला नही होगा।
ये बात लोग क्यों नही समझ रहे
ये समझ नही आ रहा कि सबको कपाट खुलते ही 5 किलोमीटर की लाइन लगा के ही दर्शन क्यों करने है
जबकि दर्शन 6 महीने खुले है।
क्या दो महीने बाद बाबा केदार वहां नही रहेंगे
या सितम्बर में बाबा के दर्शन करेंगे तो पुण्य नही मिलेगा....
अक्टूबर में आपको वहां हज़ार लोग भी नही मिलेंगे तब आपको दर्शन क्यों नही करने हैं।
अभी ना होटल मिल रही ना टैक्सी
ना हेलीकॉप्टर...लेकिन जाना सबको मई जून में ही है।

मई जून में ही केदारनाथ बद्रीनाथ जाऊंगा ये ज़िद्द बहुत भारी पड़ सकती है, बहुत भारी ...
हाथ जोड़कर निवेदन है मान जाइये...
वरना 2013 की तरह फिर भोले त्रिनेत्र खोल देंगे तो झेल नही पाओगे...
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

09/04/2022

शहरों की प्यास बुझाने के लिए उत्तराखंड के एक और गांव का बलिदान, शायद कुछ लोग इस खूबसूरत गांव को याद रखेंगे।

किसी का विकास किसी का विनाश।

जय बद्रीविशाल जय हो।।🙏

  👍राफ्टिंग के दौरान होने वाले हादसों को रोकने के लिए उत्तराखंड पुलिस द्वारा महत्वपूर्ण गाइडलाइन जारी की गई है। नियमों क...
15/03/2022

👍
राफ्टिंग के दौरान होने वाले हादसों को रोकने के लिए उत्तराखंड पुलिस द्वारा महत्वपूर्ण गाइडलाइन जारी की गई है।
नियमों का पालन न करने वालो पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी।

*मुझे पहाड़ों से प्यार है...* _हम पहाड़ों में नहीं हैं।  वास्तव में, पहाड़ हम में हैं।"_◆ पर्वत दुनिया की छह सबसे महत्वप...
12/12/2021

*मुझे पहाड़ों से प्यार है...*

_हम पहाड़ों में नहीं हैं। वास्तव में, पहाड़ हम में हैं।"_

◆ पर्वत दुनिया की छह सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों का घर हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं।

◆ विश्व की लगभग 85% पक्षी, स्तनधारी जीव, और उभयचर प्रजातियां पर्वतों में हीं रहतीं हैं।

◆ विश्व के 60 से 80% जल-संसाधनों का उदगम स्थल पर्वतों में ही स्थित हैं।

◆ विश्व के लगभग 50% जैव-विविधता के 'हॉट-स्पॉट' पर्वतीय क्षेत्रों में ही हैं।

◆ 25% स्थलीय प्रजातियों के प्राकृतवास पर्वतों में ही है।

◆ यद्यपि, दुर्भाग्य से, जलवायु परिवर्तन और अति-दोहन ने पहाड़ों के जीवन को संकट में डाल दिया है।

◆ यह उन लोगों की आजीविका को भी प्रभावित करता है जो पहाड़ों में रहते हैं और अस्तित्व को और अधिक कठिन बनाते हैं।

◆ इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की थीम *सतत पर्वतीय पर्यटन* है।

◆ पहाड़ों में सतत पर्यटन अतिरिक्त और वैकल्पिक आजीविका विकल्प बनाने और गरीबी उन्मूलन, सामाजिक समावेश, साथ ही साथ परिदृश्य और जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है।

◆ यह प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को संरक्षित करने, स्थानीय शिल्प और उच्च मूल्य के उत्पादों को बढ़ावा देने और स्थानीय त्योहारों जैसे कई पारंपरिक प्रथाओं का जश्न मनाने का एक तरीका है।

◆ पर्वतीय पर्यटन वैश्विक पर्यटन का लगभग 15 से 20 प्रतिशत आकर्षित करता है। पर्यटन, हालांकि, कोविड -19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है, जो सभी महाद्वीपों पर अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका, सार्वजनिक सेवाओं और अवसरों को प्रभावित करता है।

◆ इस संकट को पर्वतीय पर्यटन और प्राकृतिक संसाधनों और आजीविका पर इसके प्रभाव पर पुनर्विचार करने, इसे बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और इसे अधिक लचीला, हरित और समावेशी भविष्य की दिशा में उपयोग करने के अवसर के रूप में देखा जा सकता है।

*_पर्वतों की रक्षा करने की जिम्मेदारी हमारी है, इसलिए हमें पर्वतों और पर्वतजनों से प्यार करना चाहिए तथा अपने पहाड़ों की रक्षा और संरक्षण के लिए पर्वतों की हरीतिमा, सौंदर्यता, और प्राकृतिक परिदृश्य को यथावत रखने में हर संभव योगदान करना चाहिए!_*

_मैं पर्वत हूँ..._
_पीर भरा- कठोर मेरा जीवन_
_श्रम-संकल्पित मेरे पर्वत-जन।_

_मैं पर्वत हूँ..._
_देख प्रकृति चहुँ ओर_
_मैं होता आत्म-विभोर_
_नृत्यगान कर उल्लसित मेरा मन।_

️🏔️⛰️🏕️
*शुभ अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस !!*

Written By Unknown

Pic : Har ki Dun (Forest guest house behind) taken by us during our visit last year in December last week.



उत्तराखंड का अन्वेषण करेंउत्तराखंड पर्यटन के साथ पुनर्परिभाषितहम उत्तराखंड के लोगों, स्थिरता, पर्यटन, कार्यस्थल, होमस्टे...
02/12/2021

उत्तराखंड का अन्वेषण करें
उत्तराखंड पर्यटन के साथ पुनर्परिभाषित
हम उत्तराखंड के लोगों, स्थिरता, पर्यटन, कार्यस्थल, होमस्टे, विविधता और सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिकता का समर्थन करने का संकल्प लेते हैं।

बूढ़ा केदार एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध के रूप में दर्शन दिए थे। महाभारत के महाकाव्य युद्ध के बाद, जब पांडव अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े। उन्होंने भृगु पर्वत पर ऋषि बालखिली को देखा। ऋषि ने उन्हें दो नदियों के संगम पर एक बूढ़े व्यक्ति से मिलने के लिए कहा जो वहां ध्यान कर रहा था।
जब पांडव वहां पहुंचे तो बूढ़ा गायब हो गया और एक विशाल शिवलिंग प्रकट हुआ। ऋषि ने उन्हें अपने पापों से मुक्त होने के लिए शिवलिंग को गले लगाने के लिए कहा।
कैसे पहुंचें बूढ़ा केदार
बूढ़ा केदार जिला मुख्यालय से लगभग 85 किमी दूर है जो "नई टिहरी" है। नई टिहरी से बूढ़ा केदार के लिए सीधी बस सेवा है। घनसाली से आप छोटे वाहनों से भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। भक्त धौंतारी और उत्तरकाशी होते हुए बूढ़ा केदार पहुंच सकते हैं।
उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल में बुद्ध केदार भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र स्थान है। इस स्थान पर एक शिवलिंग है जिसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है। यह बाल गंगा और धर्म गंगा के संगम पर स्थित है।

बूढ़ा केदार हरे भरे देवदार के जंगलों से ढकी खड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। पहाड़ी गढ़वाल हिमालय के बीच खेती के लिए कई झोपड़ियों और सीढ़ीदार खेतों से युक्त, बूढ़ा केदार आगंतुक को पहाड़ी लोगों के जीवन की एक झलक देता है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जगह स्वर्ग है, यहां कई तरह के पक्षी देखे जा सकते हैं।

बूढ़ा केदार का स्थान
बूढ़ा केदार नई टिहरी से 60 किमी दूर स्थित है।






LIKE AND SHARE FOR SUPPORTING TOURISM IN UTTARAKHANDEXPLORE UTTARAKHAND with Uttarakhand Tourism RedefinedWe pledge to S...
18/11/2021

LIKE AND SHARE FOR SUPPORTING TOURISM IN UTTARAKHAND

EXPLORE UTTARAKHAND
with Uttarakhand Tourism Redefined
We pledge to Support the People of Uttarakhand, Sustainability, Tourism, Workcation, Homestays, Diversity, and most important Spirituality.

HERE WE ARE SUPPORTING.!

An imaginative stay in an antique century-old Kumaoni house, devoted to prosperous art and inheritance of Uttarakhand. Nestled in one of the remote villages of Almora District, Deholi (Near Chaubatiya Gardens, Ranikhet) and altogether managed & restored by the natives of village Deholi.

Connect to know more.!



उत्तराखण्ड के लोक पर्व इगास - बग्वाल (बुढ़ दीवाली) की हार्दिक शुभकामनाएंक्यों मनाते हैं इगास-*400 साल पुरानी है इगास मानन...
14/11/2021

उत्तराखण्ड के लोक पर्व इगास - बग्वाल (बुढ़ दीवाली) की हार्दिक शुभकामनाएं

क्यों मनाते हैं इगास-

*400 साल पुरानी है इगास मानने की परंपरा*

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले बीर भड़ #माधो_सिंह_भंडारी के नेतृत्व में टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार और श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों सेयोद्धाओं को बुलाकर सेना तैयार की गई थी और तिब्बत पर हमला बोलते हुए तिब्बत सीमा पर मुनारें गाड़ दी थी। इस दौरान बर्फ से पूरे रास्ते बंद हो गए। कहा जाता है कि पूरे #गढ़वाल में उस साल दिवाली नहीं मनाई गई, लेकिन दीवाली के ग्यारह दिन बाद जब माधो सिंह युद्ध जीत कर वापस गढ़वाल पहुंचे तब पूरे इलाक़े के लोगों ने भव्य तरीक़े से दीवाली मनाई, तबसे ही गढ़वाल में इसे कार्तिक माह की #एकादशी यानी #इगास #बग्वाल के रूप में मनाया जाता है।

*उत्तराखण्ड बनने के 21 साल बाद घोषित हुई छुट्टी*

दरअसल पृथक राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड में लगातार मांग उठ रही थी कि इगास को सरकार खूब प्रचारित और प्रसारित करे ताकि इस लोकपर्व का संरक्षण और संवर्धन हो सके। सरकार ने इगास पर्व पर राजकीय अवकाश की घोषणा की हैं और इसे व्यापक स्तर पर उल्लास के साथ मानने का आह्वान किया है। इगास 14 नवम्बर रविवार को होने के कारण धामी सरकार ने सोमवार 15 नवंबर की छुट्टी यानी राजकीय अवकाश घोषित किया है।

🙏

नमस्ते  🙏 आने वाले दिनों में हम कुछ महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की पूरी सूची इनके साथ साझा करेंगेउत्तराखंड, भारततो आज हम बात ...
13/09/2021

नमस्ते 🙏 आने वाले दिनों में हम कुछ महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की पूरी सूची इनके साथ साझा करेंगे

उत्तराखंड, भारत

तो आज हम बात करते हैं जंगली भिंडी की

वानस्पतिक नाम (परिवार): एबेलमोस्कस मोस्चैटस मेडिक। मालवेसी।

स्थानीय नाम : जंगली भिंडी

प्रयुक्त भाग: जड़, बीज

सबसे पहले, यह समझना महत्वपूर्ण है कि "टिकाऊ" का क्या अर्थ है।

यहां बताया गया है कि हम इसे कैसे परिभाषित करते हैं:

जिम्मेदारी से सोर्स किया गया और ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त नहीं करता है।

किसानों और उनके समुदायों को वापस देता है।

हरे से पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन चक्र बनाए रखता है

जंगली भिंडी के उपयोग

चेहरे के सांवलेपन में इसके लिए जंगली भिंडी के रस को निकालकर उसमे बराबर मात्रा में गन्ने का रस मिला लें, फिर इसे अपने चेहरे पर लगा लें, इससे त्वचा की रंगत निखरती है और सांवलापन दूर होता है।

बीपी में इसके लिए जंगली भिंडी की जड़ के रस को निकालकर नियमित रूप से सुबह के समय पीना चाहिए, इससे हाई बीपी कंट्रोल रहता है।

ताकत के लिए इसके लिए जंगली भिंडी के बीजों को शाम के समय पानी में भिगो दें, फिर सुबह खाली पेट इन बीजों को चबा चबाकर खाने से कमजोरी दूर होती है और शरीर मजबूत और ताकतवर बनता है।

खून की कमी में इसके लिए जंगली भिंडी की सब्जी बनाकर खानी चाहिए, इसमें हिमोग्लोबिन को बढ़ाने के तत्व होते हैं, जिससे खून की कनी दूर होती है।

दांतों के लिए विटामिन सी से भरपूर जंगली भिंडी को 100 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन किसी भी रूप में सेवन करने से दांतों से जुडी हर समस्या दूर हो जाती है।


हिमालय श्रृंखला में पौधे आधारित चिकित्सा पर ज्ञान की समृद्ध विरासत है। औषधीय पौधे प्रमुख खेलते हैं दुनिया भर से आजीविका में भूमिका। भारत का एक हिमालयी राज्य उत्तराखंड भी निर्भर करता है चिकित्सा और पारंपरिक चिकित्सा के लिए औषधीय पौधे। इस राज्य के लोग अपने लिए पौधों का उपयोग करते हैं प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली मुख्य रूप से चिकित्सा पद्धतियों और औषधीय के पारंपरिक ज्ञान पर निर्भर करती है जड़ी बूटी। पारंपरिक चिकित्सा पर पिछले अध्ययनों में से कई पारंपरिक दावों वाले वैज्ञानिक आउटपुट के रूप में हैं प्रभावशीलता के जो विभिन्न बीमारियों के प्रबंधन में सहायक होते हैं। इस संबंध में कई देशी औषधि लेख में सूचीबद्ध पौधे स्थानीय लोगों द्वारा महत्वपूर्ण रूप से उपयोग किए जाते हैं, जिन्हें दस्तावेज करने की आवश्यकता थी। इसमें परिदृश्य में हम इस राज्य से कुछ औषधीय पौधों को उनके औषधीय गुणों के साथ दस्तावेज करने का प्रयास करते हैं।



















WEATHER UPDATE 13 TO 19 SEPT 2021Well, looks like the weather is finally calming down, at least till 19 Sep 21. That is ...
13/09/2021

WEATHER UPDATE 13 TO 19 SEPT 2021

Well, looks like the weather is finally calming down, at least till 19 Sep 21. That is what it looks like today.

However, do be careful on treks,
as there is enough moisture trapped,
and the general tendency is that in the noon hours
as heating takes place,
the moisture rises, forming clouds over mountain tops,
and giving a bit of a shower,
how intense will this shower be, cannot be predicted.

So do not blindly start a trek, if you have started, look ahead what is going on, on top of the mountains,
if the build up does not look healthy, turn back. There is always another day, another month, another year to do what you want.

Stay safe.

By Ramesh Tahlan

जौनसार-बावर परगना व हिमाचल के लोग चार भाई महासू को कुल देवता के रूप में पूजते व मानते हैं। जौनसार-बावर के हनोल में महासू...
11/09/2021

जौनसार-बावर परगना व हिमाचल के लोग चार भाई महासू को कुल देवता के रूप में पूजते व मानते हैं। जौनसार-बावर के हनोल में महासू देवता का प्राचीन भव्य मंदिर है। जिसे पांडवकालीन समय का बताया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार चार भाई महासू देवता में सबसे बड़े बाशिक महासू, दूसरे नंबर के बोठा महासू, तीसरे नबंर के पवासी महासू व चौथे नबंर के चालदा महासू हैं। इनमें बोठा महासू का मंदिर हनोल में, बाशिक महासू का मैंद्रथ में और पवासी महासू का मंदिर बंगाण क्षेत्र के ठडियार व देवती-देववन में है। जबकि चालदा महासू देवता जौनसार-बावर, बंगाण, फतह-पर्वत व हिमाचल क्षेत्र के प्रवास पर रहते हैं। मान्यतानुसार चालदा महासू हमेशा प्रवास पर रहते हैं। देव पालकी को क्षेत्रीय लोग पूजा-अर्चना के लिए एक जगह से दूसरे जगह प्रवास पर ले जाते हैं। देवता के प्रवास पर रहने से कई खतों में दशकों बाद चालदा महासू के दर्शन लोगों को नसीब होते हैं। कुछ इलाकों में तो देवता के दर्शन की चाह में पीढि़यां गुजर जाती है। चालदा महासू इन दिनों हिमाचल के प्रवास पर थरोच मंदिर में है। 32 साल के लंबे इंतजार बाद हिमाचल से चालदा महासू 29 नवबंर को प्रवास पर कोटी-कनासर आएंगे। जिसके लिए कंडमाण क्षेत्र मशक खत, भरम खत, कैलौऊ खत व धुनौऊ खत के लोगों की महापंचायत में चालदा महासू के कोटी प्रवास का कार्यक्रम फाइनल किया गया। महापंचायत में रायशुमारी के बाद धुनौऊ खत के स्याणा शमशेर ¨सह चौहान की अगुआई में चार खतों के संभ्रात लोग बीते गुरुवार को हिमाचल के थरोच मंदिर गए और देवता से इजाजत लेकर चालदा महासू के प्रवास का कार्यक्रम घोषित किया। खत स्याणा शमशेर ¨सह ने कहा 23 नवबंर को हिमाचल के थरोच मंदिर से चालदा महासू कोटी-कनासर के लिए प्रस्थान करेंगे और 29 नवबंर को प्रवास पर कोटी-कनासर पहुंचेंगे। मौके पर स्याणा फतेह ¨सह चौहान, स्याणा पूरण ¨सह चौहान गोरछा, स्याणा संजय, स्यणा पूरण ¨सह कैलोऊ, इंद्र ¨सह आदि मौजूद रहे।

Post by : Ajay
Chalda Maharaja Mohana Temple Jagra 🙏
Mahasu Chalda Devta Mandir Bisoi Nagthat-Kalsi

आज सुबह महसूस करे गए भूकंप के झटके : उत्तराखंडके गोपेश्वर से कुछ दूर रहा केंद्र कोई जान माल की हानि की खबर नहीं |       ...
11/09/2021

आज सुबह महसूस करे गए भूकंप के झटके : उत्तराखंडके गोपेश्वर से कुछ दूर रहा केंद्र कोई जान माल की हानि की खबर नहीं |





09/09/2021

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आप सभी को हिमालय दिवस की हार्दिक शुभकामनाये , आशा करते हैं कि हिमालयी क्षेत्र को बचाया जा सके  |सुंदर लाल बहुगुणा, अनिल ...
09/09/2021

आप सभी को हिमालय दिवस की हार्दिक शुभकामनाये , आशा करते हैं कि हिमालयी क्षेत्र को बचाया जा सके |

सुंदर लाल बहुगुणा, अनिल जोशी और राधा बहन सहित प्रसिद्ध पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा 2010 में शुरू की गई एक पहल, हिमालय दिवस यह संदेश फैलाने के लिए मनाया जाता है कि हिमालय के लिए सतत विकास और पारिस्थितिक स्थिरता के समाधान उतने ही अनूठे होने चाहिए जितने कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र ही।

हिमालय दिवस या हिमालय दिवस इस वर्ष 9 सितंबर को लगातार इक्कीसवें वर्ष मनाया जा रहा है |

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04/09/2021

KEDARKANTHA !

Kedar-Kantha Trek- Uttarakhand
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इस जगह से जुड़ी कई अलग-अलग किंवदंतियां हैं। ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब संत ऑगस्टा ने इस स्था...
03/09/2021

इस जगह से जुड़ी कई अलग-अलग किंवदंतियां हैं। ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब संत ऑगस्टा ने इस स्थान का दौरा किया, तो यह दो राक्षसों से भयभीत था, जिन्हें आतापी कहा जाता था- वातापी। ये राक्षस भेष बदलकर लोगों को अपने स्थान पर दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित करते थे। मासूम संत उनके प्रस्ताव को स्वीकार करते थे और उनके स्थान पर जाते थे। ऐसा माना जाता है कि जब लोग उनके घर जाते थे तो एक राक्षस खुद को बौना बना लेता था और चढ़ाए जाने वाले भोजन में छिप जाता था। ऐसा करके वह व्यक्ति के शरीर में घुस जाता था और फिर उसे काट देता था दूसरे राक्षस द्वारा बुलाए जाने पर अंदर से बाहर। तब दो राक्षसों ने उस व्यक्ति को खा लिया। लोग दो राक्षस भाइयों से घबरा गए और उन्होंने संत ऑगस्टा से मदद मांगी। लोगों की समस्या सुनकर अगस्ता भोजन करने के लिए राक्षसों के स्थान पर गया। राक्षसों का इस्तेमाल किया उसी चाल से और संत ऑगस्टा ने कुछ मंत्र करना शुरू कर दिया। इसने राक्षसों में से एक को मार डाला। अन्य बाद में संत ऑगस्टा के साथ युद्ध में मारा गया। इस तरह यहां रहने वाले लोगों को छुटकारा मिला संत ऑगस्टा की मदद से दो राक्षस से।

अगस्तमुनि रुद्रप्रयाग में केदारनाथ के रास्ते में स्थित है।
मंदाकिनी नदी के ऑस्ट्यमुनि केदारनाथ मंदिर के रास्ते में स्थित है। यह के लिए एक छोटा सा बाजार स्थल भी है
आसपास के गांव।)

Pic by : Namaste Pahad

ऐसा माना जाता है कि एक बार देवी पार्वती, लक्ष्मीजी और सरस्वती ने अपने पति ब्रह्मा, विष्णु को भेजा और महेश देवी अनुसूया क...
03/09/2021

ऐसा माना जाता है कि एक बार देवी पार्वती, लक्ष्मीजी और सरस्वती ने अपने पति ब्रह्मा, विष्णु को भेजा और महेश देवी अनुसूया की ताकत की परीक्षा लेंगे। जब वे आश्रम पहुंचे तो देवी अनुसूया ने भोग लगाया उन्हें खाना. लेकिन उन्होंने खाना नहीं लिया और उसके सामने एक शर्त रखी। कि वे स्वीकार करेंगे भोजन केवल एक शर्त पर जब वह बिना कपड़े पहने भोजन परोसेगी। यह सुनकर देवी अनुसूया परेशान हो गईं कि वह ऐसा कैसे कर सकती हैं। अटलास्ट, देवी ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने पति के बारे में सोचती है। अचानक, उसे एक अंतर्ज्ञान हुआ कि ये ऋषि देवता हैं और वे हैं उसकी ताकत का परीक्षण। उसके बाद उसने एक शर्त रखी कि वह ऐसा करने के लिए राजी है लेकिन उसके लिए उन्हें करना होगा उसके पुत्रों का रूप धारण करो। देवताओं ने इसके लिए सहमति व्यक्त की, और फिर उसने उन्हें भोजन कराया। बाद में तीन देवता वहां अनुसूया के पुत्रों के रूप में रहने लगे। जब देवता वापस नहीं पहुंचे पारलॉक, तब देवी पार्वती, लक्ष्मीजी और सरस्वती ने देवी अनुसूया से माफी मांगी और उनसे अनुरोध किया उनके पतियों को वापस। उसके बाद वह मान गई और तभी से इस जगह को मां सती के नाम से जाना जाता है।

अनुसूया देवी मंदिर और अत्रि मुनि आश्रम
चमोली में सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक अनुसूया देवी मंदिर है, जो देवी सती को समर्पित है। वह एक महान ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी थीं और सप्त ऋषियों में से एक थीं (सप्त का अर्थ है सात और ऋषि संस्कृत में ऋषि हैं)। ऐसा कहा जाता है कि देवी अनुसूया पूरी तरह से अपने पति को समर्पित थीं। यह चोपता से 30 किमी दूर स्थित है। यह हिमालय की गोद में स्थित है जो तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।

दिसंबर के महीने में, दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर, हर साल बड़े मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें कई भक्त और पर्यटक शामिल होते हैं। वे रात भर हाथों में दीप जलाकर भजनों के माध्यम से देवी सती की पूजा करते हैं।
Pic By : Mr. Sudhagar Gopal

अनुसूया देवी मंदिर और अत्री मुनि आश्रम

किंवदंतियों में कहा गया है कि महर्षि अंग्यारी ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी, जिससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। और उन...
03/09/2021

किंवदंतियों में कहा गया है कि महर्षि अंग्यारी ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी, जिससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। और उन्होंने यहां अंग्यारी महर्षि को दर्शन दिए। यह भी कहा जाता है कि उस समय गंगा, गोमती, और भागीरथी नदियां भी यहां अवतरित हुईं। समय के साथ गंगा नदी और भागीरथी नदी धीरे-धीरे गायब हो गए, लेकिन गोमती नदी के कुछ हिस्से आज भी यहां मौजूद हैं। अंग्यारी महादेव मंदिर दो भागों में है, मुख्य मंदिर पैदल मार्ग के ऊपर स्थित है और मंदिर का दूसरा भाग पैदल मार्ग के नीचे स्थित है, पास का जल स्रोत है, जो किया गया है वर्षों से लगातार बहते हुए इस नदी का पानी शिवलिंग पर खिलाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि हर यहां जो मनोकामना पूरी होती है जो सावन के महीने में सच्चे मन से यहां आती है।

अंग्यारी महादेव ग्वालदम में उत्तराखंड के घने जंगल में स्थित है। इस पवित्र मंदिर में स्थानीय लोगों के लिए कई धार्मिक मूल्य। इन आध्यात्मिक मूल्यों के साथ- भगवान शिव के कई भक्त और ट्रेकिंग के प्रति उत्साही भी यहां आते हैं और भगवान भोलेनाथ का अद्भुत रूप देखते हैं। इस पवित्र अंग्यारी महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए तीर्थयात्रियों को 4-5 किमी पैदल यात्रा करनी पड़ती है। तीर्थयात्रियों को कुछ का सामना करना पड़ता है उत्तराखंड के इस पवित्र मंदिर के मार्ग पर कठिनाई। आमतौर पर, भगवान शिव के मंदिर का मार्ग है दुर्गम और दुर्गम या तीर्थयात्रियों को खड़ी लकीरें चढ़नी पड़ती हैं लेकिन अंग्यारी महादेव का मार्ग मंदिर बहुत अलग है, तीर्थयात्रियों को 2 किमी खड़ी चढ़ाई, फिर एक सीधा रास्ता, फिर 1 किमी, और फिर घाटी के लिए आधा किलोमीटर नीचे । इस मंदिर का मार्ग काफी फिसलन भरा है और बुरांस के घने बांज जंगलों से होकर गुजरता है। इहे प्लेस साल के हर महीने में ठंडा रहता है। सावन के महीने में यहां खूबसूरत हरियाली देखने को मिलती है।

PIC BY: Rohit Khati



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03/09/2021

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