Yadram ki Kalam Se

Yadram ki Kalam Se मैं घुम्मकड़। डाक्टर घुम्मकड़ आपको घुम्मकड़ी दुनिया की सैर करवाता हूं।

12/05/2024

देवभूमि उत्तराखंड की ओर - 12

"घूमने का कोई मौसम नहीं होता, जब दिल करे तब घूमिये"...याने हर मौसम घूमने का मौसम है। क्यूँ की हर मौसम का अपना आनंद है। मन में घूमने की ललक हो तो जेठ की धूप भी चांदनी सी लगती है । अक्सर लोग मौसम का इंतज़ार ही करते रह जाते हैं और घूमने का समय हाथ से निकल जाता है।
कहते हैं कि यात्राएं सिखाती हैं, दिमाग की खिड़कियां खोलती हैं, ज्ञान के नये चंवर डुलाती हैं और बदलाव की वाहक होती हैं।
चोपता पहुंचने के लिए दो रास्तों से होकर तुंगनाथ तक पहुंचा जा सकता है। पहला ऋषिकेश से गोपेश्वर (चमोली) होकर और दूसरा ऋषिकेश से ऊखीमठ (रुद्रप्रयाग) । तुंगनाथ मंदिर पहुंचने के लिए चोपता से चार किलोमीटर की चढ़ाई पर पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है। मंदिर के कपाट मयी से नवंबर तक खुले रहते हैं , और सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार
तुंगनाथ पांडवों द्वारा निर्मित पंच केदार मंदिरों की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। कहा गया है कि ऋषि व्यास ऋषि ने पांडवों को सलाह दी थी कि चूंकि वे कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान अपने ही रिश्तेदारों (कौरव, उनके चचेरे भाई) को मारने के दोषी थे, इसलिए उनके कृत्य को केवल भगवान शिव द्वारा माफ किया जा सकता है। पांडवों ने उनकी क्षमा और आशीर्वाद मांगने के लिए, पूजा और आराधना करते हुवे प्रत्येक स्थान पर भगवान शिव के मंदिर बनाकर पंच कैलाश की स्थापना की। । हर एक की पहचान शिव के शरीर के एक हिस्से से होती है; तुंगनाथ की पहचान उस स्थान के रूप में की जाती है जहां बाहु (हाथ) देखे गए थे ।‌ केदारनाथ में कूबड़ देखा गया । रुद्रनाथ में प्रकट हुआ सिर। मध्यमहेश्वर में उनकी नाभि और पेट उभर आये। और कल्पेश्वर में उनकी जटा।
यह भी कहा गया है कि पांडवों को दर्शन देने के बाद शिव जी इस क्षेत्र से बैल के रूप में गायब हो गए। बाद में उनके धड़ का ऊपरी हिस्सा काठमांडू में दिखाई दिया। अब उस स्थान पर पशुपतिनाथ मंदिर है। शिव जी भुजाएं उत्तराखंड के तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में, बाल कल्पेश्वर में और केदारनाथ में बैल के कूबड़ के रूप में प्रकट हुवे। उत्तराखंड के इन पांचों स्थानों को पंच केदार कहा जाता है।
यात्रा गेट के सामने खाने पीने की कई दुकानें हैं। हमने एक दुकान से किराये पर डंडा लिया। चढ़ाई में‌ डंडा बहुत उपयोगी होता है। यह तीसरी टांग का काम करता है। साथ में पानी की बोतल ले ली। जो बोतल यहाँ 30 रुपए की है। ऊपर तुंगनाथ रास्ते में खुली दो दुकानों में 60 रुपए की मिलती है। शिवजी महाराज का जयकारा लगा , हम तुंगनाथ महादेव के दर्शन को चल पड़े। दाहिनी तरफ बोर्ड लगा था : धीरे- धीरे रूक रूक कर चलें, सांस नहीं फुलेगा।
तुंगनाथ की यात्रा एक तरफ से लगभग 4 किलोमीटर है और इसे पूरा करने में हमें 3 घंटे लगे । रास्ते में हरे-भरे जंगल, आश्चर्यजनक हिमालयी परिदृश्यों की झलक थी । बीच-बीच में बहती जलधारा और पक्षियों की चहचहाहट की आवाज चढा़ई की थकान को कम कर रही थी।
जैसे त़ैसे, थोड़ी थोड़ी दुरी पर बैठते हम पहुँच ही गये भगवान भोले भंडारी की चौखट पर।

बुढापे की लाठीहम सभी घर के लोग घर में बैठे गपशप कर रहे थे तभी मेरी बहन ने मुझसे एक प्रश्न पूछा कि भैया यह बताओ आदमी के ब...
05/05/2024

बुढापे की लाठी
हम सभी घर के लोग घर में बैठे गपशप कर रहे थे तभी मेरी बहन ने मुझसे एक प्रश्न पूछा कि भैया यह बताओ आदमी के बुढ़ापे का सहारा उसकी बेटी होती है या उसका बेटा ।
मैंने कहा बहन यह प्रश्न ना करो तो अच्छा है क्योंकि इससे कोई तो खुश होगा किसी को दुख ।
जब सभी सदस्य जिद करने लगे तो
मैने कहा बुढापे का सहारा बेटा या बेटी नहीं “बहू” होती है ।
अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा या बेटी बुढ़ापे की लाठी होती है ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे ।
ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है । बहु के आ जाने के बाद बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर डाल देता है।
और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी ।
मेरा तो यही मानना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करते हैं। एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती है । कौन कब और कैसी चाय पीते है , क्या खाना बनाना है , शाम में नाश्ता में क्या देना , रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है । अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है ।
अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चली जाएं , तो पूरे घर की धुरी हिल जाती है । परंतु यदि बेटा 15 दिन की यात्रा पर भी चला जाये तो भी बहू के भरोसे घर सुचारू रूप से चलता रहता है ।
बिना बहू के सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो । वे चाय नाश्ता से लेकर खाने के लिये छटपटा जाएंगे ।
क्योंकि बेटे के पास समय नही है और अगर बेटे को समय मिल जाये भी तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है ।
ये लगभग सभी घरों की कहानी है ।मैंने तो ऐसी बहुएं देखी है जिसने अपनी सास की बीमारी में तन मन से सेवा की है । इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती हैं बुढ़ापे की असली लाठी ।
एक बात और सच है कि हममें अक्ल होनी चाहिए कि हर वक्त मेरा राजा बेटा मेरी रानी बेटी की रट छोड़ मेरी अच्छी बहु रानी की रट भी लगानी चाहिए ।
अपनी बहू में सिर्फ कमिया न ढूंढे, उसकी अच्छाइयों की कद्र करें ।

देवभूमि उत्तराखंड की ओर - 1चाहे आप कितने बड़े घुमक्कड़ क्यूँ ना हों घर, परिवार और नौकरी की बंदिशों के बीच आप सारा साल तो घ...
30/04/2024

देवभूमि उत्तराखंड की ओर - 1
चाहे आप कितने बड़े घुमक्कड़ क्यूँ ना हों घर, परिवार और नौकरी की बंदिशों के बीच आप सारा साल तो घूमते घामते नहीं रह सकते ना ? इसलिए आप जितना भी घुमें, उसे अपने जेहन में समेट कर रखें। ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा। कहते हैं कि यात्राएं सिखाती हैं, दिमाग की खिड़कियां खोलती हैं, ज्ञान के नये चंवर डुलाती हैं, बदलाव की वाहक होती हैं । किसी ने ठीक ही कहा है :
सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां, जिंदगानी गर कुछ रही तो, नौजवानी फिर कहां''।।
तो दोस्तों जैसा हमारा पांच घुमक्कड़ों का प्रोग्राम बना, हमने मंगलवार 9 अप्रैल 24 सुबह 5 बजे नाश्ता, वास्ता और लंच के साथ घर से एक सप्ताह की विदाई ली। आऊटर रिंग रोड से होते हुवे अक्षरधाम को अपनी आँखों में संजोए हाईवे की ओर रुक्सत हुवे।
स्वामिनारायण अक्षरधाम मन्दिर एक अनोखा सांस्कृतिक तीर्थ है। इसे ज्योतिर्धर भगवान स्वामिनारायण की पुण्य स्मृति में बनवाया गया है। इसके मुख्य देव भगवान स्वामीनारायण है।मूल रूप से, अक्षरधाम शब्द को दो शब्दों 'अक्षर' से लिया गया है जिसका अर्थ है अनन्त और 'धाम' जिसका अर्थ है निवास, जिसका अर्थ है एक साथ परमात्मा या शाश्वत का निवास। यह परिसर १०० एकड़ भूमि में फैला हुआ है। दुनिया का सबसे विशाल हिंदू मन्दिर परिसर होने के नाते २६ दिसम्बर २००७ को इसे गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स में शामिल किया गया।
60 रुपये के टोल का भुगतान कर हमने कोई 7 बजे उस मुजफ्फरनगर शहर को पार कर लिया जिसका पुराना नाम सरवट था, को शाहजहाँ ने अपने एक प्रमुख सरदार सय्यैद मुजफ्फर खान जहांगीर के नाम पर खेरा और सूज्डू को मिलाकर मुजफ्फरनगर नाम दिया। यहीं से दाहिनी तरफ कोई 28 किलोमीटर दूर पवित्र तीर्थ शुक्रताल को नमन कर हम हरिद्वार की ओर बढ चले। गंगा के किनारे शुक्रताल वो पवित्र स्थान है जहां शुकदेव गोस्वामी ने 5000 साल पहले अभिमन्यु के पुत्र महाराज परिक्षित को पवित्र भागवत पुराण की कथा सुनाई थी।
जैसे ही हमने चारों धामों के द्वार हरिद्वार में प्रवेश किया, कनखल का रास्ता दिखाई दिया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल ही वो जगह है जहां राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ किया था और सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर उस यज्ञ में खुद को दाह कर लिया था।
माता सती के अग्निदाह के बाद शिव के गण वीरभद्र ने राजा दक्ष की वध कर दिया था बाद में शिवजी ने उनके धड़ को वश्व के सिर से जोड़ दिया था। इसी घटना की याद में यहां पर दक्षेश्वर मदिर बना हुआ है।
बताते हैं कि दक्षेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग धरती लोक के साथ पाताल लोक में भी स्थित है. विश्व में दक्षेश्वर महादेव शिवलिंग एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो आकाशमुखी नहीं बल्कि पातालमुखी है. वहीं, उन्होंने बताया कि भगवान शिव दुनिया के सबसे पहले सर्जन थे, जिन्होंने सबसे पहले राजा दक्ष को बकरे का सिर लगाया था।
....इससे आगे भाग-2 में

27/04/2024

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