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74 वे स्वतंत्रता दिवस की अनंत शुभकामनाएं।
15/08/2020

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Beauty Of Ladakh...
11/07/2020

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            #अलवरराजस्थान के सिंह द्वार नाम से प्रसिद्ध अलवर की स्थापना रावराजा प्रताप सिंह द्वारा की गई। यहां के प्रमुख...
12/06/2020

#अलवर

राजस्थान के सिंह द्वार नाम से प्रसिद्ध अलवर की स्थापना रावराजा प्रताप सिंह द्वारा की गई। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल निम्नलिखित है:-

1.जैन मंदिर तिजारा
2.मुसि महारानी की छतरी
3.विजय मंदिर पैलेस
4.हॉप सर्कस

5. #सरिस्का:- राजस्थान का दूसरा टाइगर प्रोजेक्ट यह पर्यटक और पर्यटन की दृष्टि से काफी अच्छा स्थल है। यहां पर महाराजा जय सिंह ने #ड्युक_ऑफ_एडिनबर्ग की यात्रा के लिये 1902 में एक शानदार महल सरिस्का पैलेस बनवाया था।

6.सिलीसेढ़ महल
7.पांडुपोल
8.बाला किला अलवर दुर्ग
9.काकंवाड़ी दुर्ग

10नीमराणा का किला:- पंचमहल के नाम से विख्यात इस किले का निर्माण 1464 ई. में चौहान शासकों द्वारा करवाया गया था

11.नीमराणा की बावड़ी

 अजमेर का पुष्कर मंदिरपुष्कर !! यहाँ ब्रह्मा जी का एक मन्दिर है।  पुष्कर अजमेर शहर से १४ की.मी दूरी पर स्थित है।  आखिर क...
12/06/2020


अजमेर का पुष्कर मंदिर

पुष्कर !! यहाँ ब्रह्मा जी का एक मन्दिर है। पुष्कर अजमेर शहर से १४ की.मी दूरी पर स्थित है। आखिर क्यूं है ब्रह्माजी का सिर्फ ‘एक ही मंदिर ? आखिर क्या छुपा है ‘रहस्य’ यहाँ ? क्या आप जानते हैं कि क्यों नहीं होती ?

राजस्थान के पुष्कर जिले में बना भगवान ब्रह्मा का मंदिर ( Brahma Temple Pushkar ) अपनी एक अनोखी विशेषता की वजह से न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह ब्रह्मा जी एकमात्र मंदिर है । भगवान ब्रह्मा को हिन्दू धर्म में संसार का रचनाकार माना जाता है।

आइये इस मंदिर के इतिहास के बारे में कुछ ज्ञानार्जन करें ।

ऐतिहासिक तौर पर यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन है। संगमरमर और पत्थर से बना यह मंदिर पुष्कर झील के पास स्थित है जिसका शिखर लाल रंग से रंगा हुआ है। इस मंदिर के केंद्र में भगवान ब्रह्मा के साथ साथ उनकी दूसरी पत्नी गायत्री कि प्रतिमा भी स्थापित है। इस मंदिर का यहाँ की स्थानीय गुर्जर समुदाय से विशेष लगाव है। मंदिर ( Brahma Temple Pushkar ) की देख-रेख में लगे पुरोहित वर्ग भी इसी समुदाय के लोग हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री भीगुर्जर समुदाय से ही थीं।

आइये जानने की कोशिश करते हैं कि इस स्थान का नाम ‘पुष्कर’ कैसे पड़ा ?

हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। ब्रह्मा जी ने जब उसका वध किया तो उनके हाथों से तीन जगहों पर पुष्प गिरा । इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बन गई थी । एक झील जो यहाँ बनी थी और जो पुष्प यानी फूल के गिरने के कारण बनी थी अतः इस जगह का नाम पुष्कर पड़ा । कहा जाता है कि इस घटना के बाद ब्रह्माजी ने यहाँ यज्ञ करने का फैसला किया था । सनातन प्रथा के अनुशार यज्ञ में पूर्णाहुति के लिए साथ में पत्नी का होना अनिवार्य है । ब्रह्माजी की पत्नी सरस्वती का उस समय ना होने की अवस्था में ब्रह्माजी ने गुर्जर समुदाय की एक कन्या ‘गायत्री’ से विवाह कर इस यज्ञ को पूर्ण किया था ।



एक लोकोक्ति के अनुशार ब्रह्माजी जब यज्ञ की पूर्णाहुति पर बैठे थे उसी दौरान देवी सरस्वती वहां पहुंच गई । उन्होंने जब ब्रह्माजी के बगल में दूसरी कन्या को साथ बैठा देखा तो वह क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद भी उनके इस अनुचित कार्य के लिए कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी। क्रोध शांत होने पर हालाँकि बाद में इस श्राप के असर को कम करने के लिए उन्होंने यह वरदान दिया कि चुकि पुष्कर में उन्होंने यज्ञ कार्य संपन्न कराया है अतः एक मात्र स्थान पुष्कर में उनकी उपासना संभव होगी।

चूंकि विष्णु ने भी इस कार्य में ब्रह्मा जी की मदद की थी इसलिए देवी सरस्वती ने उन्हें भी यह श्राप दिया था कि उन्हें भी अपनी पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। कहा जाता है कि इस श्राप ही के कारण विष्णु भगवन जब राम के रूप में अवतरित हुवे तो उन्हें अपने 14 साल के वनबास के दौरान अपनी पत्नी से अलग रहना पड़ा था।

ब्रह्माजी की पूजा सिर्फ पुष्कर ( Brahma Temple Pushkar ) में ही की जाती है, इस सम्बन्ध में एक और कारण भी प्रकाश में आता है । हिन्दू धर्मग्रन्थ ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा जब सृष्टिकर्म करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि “तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है,अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।” तब इस घटना के बाद कहते हैं कि नारद जी भी बड़े दुखित हुवे थे, क्योंकि उनके पिता ब्रह्मा ने उन्हें अनायाश ही श्रापित किया था । अतः तब नारद ने भी अपने पिता ब्रह्मा को शाप देते हुवे कहा था कि —”हे तात! आपने बिना किसी कारण के, बिना सोचे – विचारे मुझे शाप दिया है, अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके भी मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।”

तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।

हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ( Brahma Temple Pushkar ) ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा जी का मंदिर स्थापित है। ब्रह्मा के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है, किंतु वे आधुनिक हैं।

यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल सम्राट् औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं जो राजपूताना के देशी राज्यों के धनीमानी व्यक्तियों द्वारा बनाए गए हैं। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। सर्ग ६२ श्लोक २८ में विश्वामित्र के यहाँ तप करने की बात कही गई है। सर्ग ६३ श्लोक १५ के अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। साँची स्तूप दानलेखों में, जिनका समय ई. पू. दूसरी शताबदी है, कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् १२५ का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर ३००० गायों एवं एक गाँव का दान किया था।

इन लेखों से पता चलता है कि ई. सन् के आरंभ से या उसके पहले से पुष्कर, तीर्थस्थान के रूप में विख्यात था। स्वयं पुष्कर में भी कई प्राचीन लेख मिले है जिनमें सबसे प्राचीन लगभग ९२५ ई. सन् का माना जाता है। यह लेख भी पुष्कर से प्राप्त हुआ था और इसका समय १०१० ई. सन् के आसपास माना जाता है। पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को “तीर्थराज” कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को “पुष्करराज” कहा जाता है। पुष्कर ( Brahma Temple Pushkar ) की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है।

पुष्कर सरोवर तीन हैं – ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर, कनिष्क पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक ओर सनकादि की मूर्तियाँ हैं,तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं। पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर ( Brahma Temple Pushkar ) है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं।

हिन्दुओं के लिए पुष्कर ( Brahma Temple Pushkar ) एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है। वर्तमान समय में इसकी देख–रेख की व्यवस्था सरकार ने सम्भाल रखी है। अतः तीर्थस्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफ़ी मदद मिली है। यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहाँ आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।

 मेवाड़ के कुंभलगढ़ फोर्ट की दीवार दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है इस फोर्ट का निर्माण महान योद्धा महाराणा कुम्भा ने शि...
12/06/2020


मेवाड़ के कुंभलगढ़ फोर्ट की दीवार दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है इस फोर्ट का निर्माण महान योद्धा महाराणा कुम्भा ने शिल्पी मंडन की देख रेख में करवाया था यह दुर्ग महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है इसके निर्माण में 10 साल (1448-1458) लगे थे. यह दीवार 36 किलोमीटर लंबी है. और पंद्रह फीट चौड़ी है. माना जाता है कि इस पर एक साथ दस घोड़े दौड़ सकते हैं ।

(कुम्भलगढ़, राजस्थान)

01/06/2020

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