04/11/2020
-मौकापरस्त कश्मीर केंद्रित गुपकार घोषणा के नाम पर गठित पीपुल्स एलायंस की चाल पर कुछ सवाल और उनके जवाब
-क्या ये गुपकार समझौते वाले लोग भी इन सवालों का जवाब दे सकते हैं
-अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने से जम्मू कश्मीर के लोगों को बहुत लाभ मिला है। खासकर वह लोग जो बहुत सारे अधिकारों से वंचित थे वो अधिकार उन्हें प्राप्त हुए हैं। पर कुछ राजनीतिक दल और नेता जिनका अलगाववाद का धंधा बंद हुआ है वो इस के बारे में भ्रम फैला रहे हैं। चंद कश्मीर केंद्रित नेताओं द्वारा श्रीनगर के गुपकार स्थान पर अपने अलीशान बंगलों में बैठ कर घोषणा करते हुए इसे गुपकार का नाम दे दिया था। अनुच्छेद 370 और 35-ए को वापिस लागू करने की मांग पर इस घोषणा पर अमल करवाने के लिए इन नेताओं ने पीपुल्स एलायंस फार गुपकार घोषणा का गठन किया। यह केवल एक जनता को गुमराह करने के लिए मौकापरस्त साजिश है। क्या गुपकार घोषणा के नाम पर गठित पीपुल्स एलायंस के तथाकथित नेता निम्नलिखित कुछ सवालों के जवाब दे सकते हैं। पीपुल्स एलायंस के नेताओं में नेकां से फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी से महबूबा मुफ्ती, सीपीएम से मोहम्मद युसूफ तारीगामी, पीपुल्स कान्फ्रेंस से सज्जाद लोन, अवामी नेशनल कान्फ्रेंस और जेकेपीएम के नेता शामिल हैं।
1. प्रश्न: अनुच्छेद 370 और 35-ए के हटने से जम्मू कश्मीर की बेटियों को समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। 72 साल तक जम्मू कश्मीर की बेटियों के अधिकारों का हनन होता रहा पर तब ये नेता चुप थे। क्या गुपकार समझौता बेटियों को दोबारा उनके अधिकारों से वंचित करना चाहता है।
उत्तर: हकीकत में यह नेकां, पीडीपी, सीपीएम और सीपीआईएम सरीखे संगठन जम्मू कश्मीर में बेटियों को समान अधिकार देने के पक्ष में कभी नहीं रहे। गुपकार घोषणा वाले नेता आज भी चाहते हैं कि जब जम्मू कश्मीर की किसी बेटी की शादी राज्य के बाहर हो जाए तो वह जम्मू कश्मीर नागरिक नहीं रहनी चाहिए।
2 प्रश्न: अनुच्छेद 370 और 35-ए के हटने से पाकिस्तान से आये शरणार्थी जिन्हें वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी कहते हैं , वाल्मीकि समाज और गोरखा समाज को समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। क्या ये नेता इस बात से आहत हुए हैं।
उत्तर: 1947 में जब वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी पाकिस्तान के सियालकोट से जम्मू कश्मीर में आकर वापस लखनपुर से पंजाब की ओर जा रहे थे तो उस समय शेख अब्दुल्ला ने इन लोगों को वापस जम्मू में जाकर बसने और उनको सभी सुविधाएं देने का वादा किया था। शेख अब्दुल्ला के बाद उनके बेटे फारुक अब्दुल्ला और फारुक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला भी जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों को जम्मू कश्मीर की स्थायी नागरिकता नहीं मिली। यह लोग जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव भी नहीं लड़ सकते थे। इससे बड़ा मानवाधिकारों का हनन और कहीं नहीं हुआ कि यह लोग सात दशकों तक वगैर स्थायी नागरिकता के जम्मू कश्मीर में रहे। वाल्मीकि और गोरखा समाज की भी यहीं हालत रही। कश्मीर केंद्रित पीपुल्स एलायंस के नेता इस बात से आहत हुए हैं कि वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी, वाल्मीकि और गोरखा समाज में कोई मुसलमान नहीं है, इसलिए इनको जम्मू कश्मीर की नागरिकता कैसे अब मिल गई। क्योंकि अगर अनुच्छेद 370 और 37-ए नहीं हटते तो मानवाधिकारों के हनन के शिकार वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों, गोरखा और वाल्मीकि समाज को जम्मू कश्मीर की नागरिकता कभी नहीं मिलती।
3. प्रश्न: अनुच्छेद 370 केे कारण जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति के गुजर, बकरवाल, गद्दी और सिप्पी समाज के लोगों को राजीनीतिक आरक्षण से वंचित रखा गया । पर उन्हें ये आरक्षण अब अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने के बाद प्राप्त हुआ है। पर अपने आप को गुज्जर समाज का प्रितिनिधि बताने वाले ये नेता इस बात से भी आहत हैं।
उत्तर: कश्मीर केंद्रित मौकापरस्त पीपुल्स एलायंस के नेताओं ने कभी नहीं चाहा कि जनजाति, एसटी वर्ग से संबंधित मुस्लिम घुमंतु गुज्जर और बकरवालों को जम्मू कश्मीर में राजनीतिक आरक्षण मिले। क्योंकि विधानसभा में एसटी वर्ग के लिए सीटें आरक्षित होने से कश्मीरी राजनीति का संतुलन बिगड़ जाता, इसलिए जम्मू कश्मीर की सत्ता पर काबिज रहे नेताओं ने इस वर्ग को आज तक आरक्षण के लाभ से वंचित रखा। गद्दी और सिप्पी जाहिर तौर पर हिंदू वर्ग से संबंधित घुमंतु जाति है, इसलिए कश्मीर केंद्रित एलायंस वाले नेताओं ने इनकी भी चिंता कभी नहीं की। इस बात यह गुपकार घोषणा के नाम पर पीपुल्स एलायंस बनाने वाल नेताओं को अब इस बात की चिंता है कि कश्मीर में एसटी वर्ग के लिए विधानसभा सीटेें आरक्षित होने से इस वंचित वर्ग की भी राजनीति में दखल कायम हो जाएगी।
4. प्रश्न: अनुच्छेद 370 हटने से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का रास्ता साफ हुआ है। जम्मू कश्मीर के पिछड़े वर्गों को ये आरक्षण उपलब्ध नहीं था। क्या इससे भी अब्दुल्ला, मुफ्ती आदि परेशान और आहत हैं।
उत्तर: जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 होने की वजह से पिछड़े वर्ग ओबीसी को ओएससी अथवा अदर सोशल का कास्ट का दर्जा प्राप्त था और दो प्रतिशत आरक्षण। अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने के बाद इसे केंद्र शासित प्रदेश सरकार ने दो से बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दिया था। हालांकि निर्धारित अनुपात से यह अभी भी कम है, लेकिन केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद इस दिशा में पहल हुई। कश्मीर में मुसलमानों में ओबीसी वर्ग से संबंधित लोग भी इस सुविधा से वंचित रहे हैं, जिन्हें अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे नेताओं ने हमेशा चाहा कि वह उनके ही नारे लगाते रहें, लेकिन अब गुपकार वाले नेता परेशान हैं कि अगर इस वर्ग को भी आरक्षण मिलने पर यह लोग उनके सामने खड़े हो जाएंगे और खानदानी सियासत की विरास्त खत्म हो जाएगी। ओबीसी वर्ग को गुपकार वाले नेताओं ने मुख्यमंत्री रहते हुए कभी भी इंसाफ नहीं दिया।
5. प्रश्न: अनुच्छेद 370 के हटने से पंचायत और नगर पालिकाओं के सशक्तिकरण का रास्ता साफ हुआ है। केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में 73 एवम 74 संशोधन को लागू किया है। इससे पंचायत और नगर पालिकाओं को प्रशासनिक और वितीय अधिकार मिले हैं। इससे लोकतंत्र को मजबूत करने में काफी मदद मिलेगी। क्या इससे भी गुपकार वाले नेता आहत हैं।
उत्तर: जम्मू कश्मीर के इतिहास में आज तक तीन बार ही सरपंचों और पंचों के चुनाव हुए हैं। यहां पर सरपंचों और पंचों को मनोनीत करने भी पहले परंपरा रही है। सरपंचों और पंचों को जम्मू कश्मीर सरकार के मंत्री और विधायक खासकर सत्ता पक्ष वाले नेता अपना कार्यकर्ता समझते थे। जम्मू कश्मीर के सत्ताधारी किसी भी दल ने नहीं चाहा कि जम्मू कश्मीर में पंचायत राज पूर्ण रुप से लागू हो। इसका प्रमाण है कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जम्मू कश्मीर को ग्रामीण विकास के लिए मिलने वाली अनुदान राशि को इसलिए केंद्र ने रोक दिया था कि यहां पर पंचायतें अस्तित्व में नहीं थी। इसके बाद मजबूरी में उस समय तीस साल बाद जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव करवाए गए थे। अब बदले हुए नये जम्मू कश्मीर में सरकार पंचायत उप चुनाव करवाने जा रही है।
पंचायती राज की बाते करने वाले गुलाम नबी आजाद भी जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वह भी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जम्मू कश्मीर में संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों को लागू नहीं करवा सके। अब यह काम अनुच्छेद 370 हटने के बाद हुआ है। इससे गुपकार घोषणा करने वाले नेता परेशान हैं कि अब विधायकों, मंत्रियांे को सरपंचों, ब्लाक विकास परिषद के चेयरमैनों और भविष्य में बनने जा रहे जिला विकास परिषदों के चेयरमैनों के पीछे भी चलना पड़ेगा। इसकी प्रकार स्थानीय निकायों के अंतर्गत आने वाले निगमों, नगर पालिकाओं और नगर परिषदों के पार्षदों के अधिकारों में भी बढ़ोतरी अब हुई है। सत्ता का केंद्र पंचायतों, ब्लाकों और जिलों तक जनता के हाथ पहुचने से गुपकार घोषणा वाले तथाकथित नेता अब परेशान हैं, इनको इस बात का भी डर सता रहा है कि खासकर इससे कश्मीर में नई लीडरशिप उभर सकती है।
6. प्रश्न: अनुच्छेद 370 हटने से जम्मू कश्मीर के लोगों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त हुआ है। ये अधिकार पूरे देश में 2002 से प्राप्त था।
उत्तर: कश्मीर केंद्रित नेताओं ने कभी नहीं चाहा कि सभी को जम्मू कश्मीर में शिक्षा मिले। कश्मीर केंद्रित और सत्ता पर काबिज रहे इन नेताओं की सोच भी इस संदर्भ में कश्मीर में भी खासकर श्रीनगर के आसपास तक ही सीमित रही। नये कालेजों और स्कूलों को खास वर्ग को लाभान्वित करने के लिए ही स्थापित किया गया। जम्मू स्थित एग्रीकल्चर कालेज और आर्युवेदिक कालेज को शेख अब्दुल्ला के सत्ता पर काबिज रहते समय बंद कर दिया गया था। अब बदले हुए परिदृष्य में कश्मीर केंद्रित नेताओं की दखल के बगैर शिक्षा संस्थानों की हर जम्मू कश्मीर में इस सुविधा से वंचित स्थानों पर स्थापना होने से यह राजनेता परेशान हैं।
7. प्रश्न: नए भूमि स्वामित्व कानून से बड़े औद्योगिक घराने जम्मू कश्मीर में आएंगे जिससे रोजगार के नए अवसर प्रधान होंगे। अब जम्मू कश्मीर के युवाओं को बड़े शहरों में नोकरी की तलाश में नहीं जाना पड़ेगा, इससे क्यों आहत हैं गुपकार घोषणा करने वाले कश्मीर केंद्रित नेता।
उत्तर: हकीकत में जम्मू कश्मीर में निवेश के लिए औद्योगिक घरानों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत भूमि अधिग्रहण थी, अगर कोई आता भी था तो उसे अनुच्छेद 370 और 35-ए की वजह से कश्मीर केंद्रित नेताओं की राजनीति का भी शिकार होना पड़ता था, प्रक्रिया भी बडी टेडी थी। अब नये भूमि स्वामित्व कानून से सभी अड़चनों को दूर करते हुए सरकार ने 24000 कनाल भूमि उद्योग विभाग को नय इंडस्ट्रियल ऐस्टेट बनाने और पुराने इंडस्ट्रियल एस्टेट का दायरा बढ़ाने के लिए ट्रांस्फर कर दी है। खास बात यह है कि यह उद्योग उन जिलों में स्थापित किए जाएंगे यहां पर पहले से उद्योग स्थापित नहीं हैं। नये भूमि स्वामित्व कानून से उद्योगपतियों को राजनेताओं के पास चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, वह सीधे अपना प्रोजेक्ट संबंधित विभाग को देंगे, प्रोजेक्ट मंजूर होने की स्थिति में उन्हें भूमि मुहैया करवाने की पेशकश भी विभाग कर देगा। इस कानून से कश्मीर केंद्रित नेताओं की सरकार और विभाग के बीच बिचैलिएं वाली भूमिका अब खत्म हो जाएगी, इससे गुपकार घोषणा वाले नेता आहत होकर इसका विरोध कृषि भूमि के बहाने कर रहे हैं।
कश्मीर केंद्रित नेताओं की दूसरी बड़ी दिक्कत इस कानून के विरोध की सेना और अर्ध सैनिक बलों को सामरिक महत्व वाली भूमि मिलने से संबंधित नियम से है। क्योंकि अब सेना के कोर कमांडर को जम्मू कश्मीर में सामरिक महत्व वाली भूमि अधिग्रहण करने के लिए मंत्रियों और अफसरों के पास चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। यह एक सीधी और सरल प्रक्रिया होगी, इसमें भी कृषि उपयोगी भूमि को बाहर रखा गया है। गुपकार घोषणा करने वाले नेता अब इस नियम का भी विरोध कर लोगों को गुमराह कर रह हैं कि सेना का जहां मन करेगा वहां पर सेना जमीन ले लेगी।
8. प्रश्न: अनुच्छेद 370 और 35-ए जो एक अलगाववाद का चेहरा बन गए थे। उनके हटने से ऐसी अलगाववादी सोच को चोट पहुंची है और देश विरोधी ताकतें परास्त हुई हैं।
उत्तर: जाहिर तौर पर कश्मीर में पिछले सत्तर साल से अनुच्छेद 370 और 35-ए की आड़ में अलगाववाद और इसके जरिए आतंकवाद की दुकानदारी चलाने वालों की दुकानें भी बंद हो गई हैं। अब गुपकार स्थित अपने अलीशान बंगलों में बैठ कर जनता को गुमराह करने के लिए घोषणाएं करने वाले नेता इस बात से आहत है कि अलगाववाद और आतंकवाद का एजेंडा खत्म होने की वजह से उनके द्वारा केंद्र सरकार को ब्लैक मेल करने की दशकों से चली आ रही रिवायत भी खत्म हो गई। अब गुपकार घोषणा के नाम पर पीपुल्स एलायंस के अध्यक्ष बने फारुक अब्दुल्ला को यह सफाई भी देनी पड़ रही है कि उनका मौका परस्त कश्मीर केंद्रित गठबंधन देश विरोधी नहीं बल्कि भाजपा विरोधी है।
9 प्रश्न: क्या जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 विकास और रोजगार में बड़ा रोडा था।
उत्तर: जम्मू कश्मीर का देश से विलय महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 में किया था, इसके बाद कौनसी ऐसी मजबूरी उस समय केंद्र की कांग्रेसी सरकार को थी कि सात साल बाद 1954 में अनुच्छेद 370 को लागू कर जम्मू कश्मीर की विधानसभा को संसद से भी अधिक शक्ति दे दी थी। विश्व के किसी भी देश अथवा भारत के अन्य किसी भी राज्य में ऐसा गलत कदम आज तक नहीं उठाया गया। इसी अलग दर्जे से निकले हुए शब्द अलग ने बाद में अलगाववाद का रुप ले लिया था। अनुच्छेद 370 की वजह से बाहरी लोग आकर जम्मू कश्मीर में उद्योग एवं कारोबार स्थापित नहीं कर सकते थे, तो रोजगार के संसाधन कैसे पैदा होते।
10 प्रश्न: अनुच्छेद 370 वाले नागरिकता के प्रावधान को लेकर क्यों आहत हैं गुपकार गैंग के सदस्य।
उत्तर: अनुच्छेद 370 के अंतर्गत सबसे वचित्र व्यवस्था कैसी थी कि जम्मू कश्मीर का नागरिक तो देश के किसी भी कोने में अपना घर बनाकर बस सकता था, लेकिन देश के अन्य राज्यों का नागरिक जम्मू कश्मीर का नागरिक बनकर अपना घर नहीं बना सकता था। इस अनुच्छेद ने देश के नागरिकों को दो हिस्सों में बांट दिया था, जिसकी वजह से देश के लोग पहले जम्मू कश्मीर के नागरिक नहीं हो सकते थे, अब यह व्यवस्था बदल गई है। इससे गुपकार गैंग के लोग परेशान और आहत हैं।
11 प्रश्न: क्या जम्मू कश्मीर के विलय पत्र में ऐसी शर्त रखी गई कि अनुच्छेद 370 को लागू किया जाएगा।
उत्तर: जम्मू कश्मीर के देश से किए गए महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय के दौरान हस्ताक्षरित पत्र में ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि अनुच्छेद 370 को लागू किया जाएगा। यह विलय पत्र देश की सभी अन्य रियासतों के एक जैसा ही था, तो इसके बावजूद भी अनुच्छेद 370 को लागू किया जाना गलत था।
12: प्रश्न: अनुच्छेद 370 से जम्मू कश्मीर कोई लाभ, पांच अगस्त, 2019 से पहले हुआ था, कश्मीर केंद्रित नेता खासकर गुपकार गैंग क्यों इसके हटने से आहत है।
उत्तर: जम्मू कश्मीर को देश में अलग दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 से इस पूर्व राज्य में कोई लाभ नहीं हुआ। इससे स्थानीय नागरिकों में अलगाव की भावना पैदा होती थी और आतंकवाद का सबसे बडा कारण भी यहीं अनुच्छेद था। जम्मू और लद्धाख के पिछड़ेपन का कारण भी अनुच्छेद 370 था। इसकी वजह से कश्मीर केंद्रित राजनीति हावी रही और जम्मू एवं ल़द्धाख के लोगों के साथ दूसरे दर्जे जैसे नागरिकों का व्यवहार होता था। इस अनुच्छेद की वजह से संसद द्वारा पारित प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते थे, एक ही देश में दो निशान और दो विधान कैसे हो सकते थे। अब कश्मीर केंद्रित राजनीति के हाशिए पर आने से गुपकार गैंग के तथाकथित नेता परेशान हैं, क्योंकि अब उनको लग रहा है कि स्थानीय निकायों के साथ पंचायतों को भी पूर्ण अधिकार मिलने से नये जम्मू कश्मीर में कश्मीर केंद्रित राजनीति की दखल नहीं रही। क्योंकि अनुच्छेद 370 की वजह से ही कश्मीर केंद्रित राजनीति को बल मिला था।
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