Tourists Moments

Tourists Moments “The gladdest moment in human life is a departure into unknown lands.” It is a big world out the

26/05/2023

खुली आँखें रखो इन कैमरों में क्या रखा यारों
मशीनों की नज़र से असली मंज़र चूक जाते❤❤

20/11/2021
20/05/2021
21/02/2021

💕💕💕

😍😍😍😍
17/02/2021

😍😍😍😍

03/11/2020

22/09/2020

Mangi-Tungi, Nasik, Maharashtra.
Mangi-Tungi is a prominent twin-pinnacled peak with plateau in between, located near Tahrabad about 125 km from Nasik, Maharashtra, India. Mangi, 4,343 ft high above sea level, is the western pinnacle and Tungi, 4,366 ft high, the eastern.
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Dm for credit photo.

11/09/2020

The Ridge, Shimla 😍

Nature's fresh start.

And the earth itself. It smells differently in different places. But its loveliest fragrance is known only when it receives a shower of rain. And then the scent of wet earth rises as though it were giving something beautiful back to the clouds—a blend of all the fragrant things that grow in it. ✍️Ruskin Bond, Rain In The Mountains

📸 IG:

09/09/2020

*Greeting From India Travel Tourism
*3N/4D🏃‍♀🏃Special Kullu, Manali, Himachal Pardesh Tour package.

*. 7,499/- PP INR*
*pick up & Drop From Delhi volvo Station
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*📳Complimentary use Hotel WiFi*

Contect details 8091735823, 8493028656

07/09/2020

Khaliya top, Munsiyari, Uttarakhand 💚
📸 Abhijai Wilkinson

07/09/2020

Ladakh
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I@madhurnangia_photography

06/09/2020
04/09/2020

मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710) ने बादशाही खालिसे में शुमार मेवाड़ के परगनों पर पुनः अधिकार कर लिया था, इस समय मुगल बादशाह बहादुरशाह था।

बहादुरशाह के पास खबर पहुंची कि महाराणा अमरसिंह-२ ने जंग छेड़ दी है। वह भली भांति परिचित था कि किस तरह महाराणा राजसिंह जी के समय उसके पिता औरंगजेब को घोर असफलता हाथ लगी थी।

बहादुरशाह के दक्षिण से आगरा जाने के लिए पहले चित्तौड़ के पास वाला रास्ता मुकर्रर हुआ था, लेकिन उसने महाराणा अमरसिंह-२ का बर्ताव देखकर अपना रास्ता बदला और मुकंदरा के घाटे से हाड़ौती होकर चला गया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत

खुर्पाताल  उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित एक सुन्दर एवं लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यह झील समुद्रसतह से 1,635 मीटर की ...
04/09/2020

खुर्पाताल उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित एक सुन्दर एवं लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यह झील समुद्रसतह से 1,635 मीटर की दूरी पर स्थित है। खुर्पाताल ऊंचे पाइन और पुराने देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है। जो पहाड़ो की भव्य विशाल सौन्दर्य को पेश करता है। प्रकृति का यह सुन्दर टुकड़ा नैनीताल से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है।

प्रसिद्ध एंग्लर्स स्वर्ग के समान लगता है। यह झील शैवाल के बीज बनते ही अपना रंग बदलने लगती है।

नैनीताल से कालांढूगी रोड पर खुर्पाताल नाम का एक गांव बसा है। गांव का मुख्य आकर्षण गांव के सीढ़ीदार खेत एवं कुदरती झील है। यह ताल स्थानीय निवासियों के मुताबिक खुर्पाताल गांव पट्टी कुर्पाखा के अंतर्गत आता है। पूर्व में अंग्रेज कुर्पाखा बोलते-बोलते इसे खुर्पाताल कहने लगे तब से झील का नाम खुर्पाताल पड़ गया।

🥰🥰🥰👌👌👌
02/09/2020

🥰🥰🥰👌👌👌

Khajjiar Chamba ☮️
Himachal Pradesh ❤️
Dm for ©️

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हिमाचल के जिला कुल्‍लू में करीब 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह श्रीखंड महादेव सदियों से भगवान शिव के विशाल शिवलिंग रूप क...
14/07/2020

हिमाचल के जिला कुल्‍लू में करीब 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह श्रीखंड महादेव सदियों से भगवान शिव के विशाल शिवलिंग रूप का गवाह बनता रहा है।
श्रीखंड महादेव जाते वक्त रास्ते में खास तरह की चट्टानें भी मिलती हैं जिन पर कुछ लेख लिखे हैं। कहा जाता है भीम ने स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ियां बनाने के लिए इनका इस्तेमाल किया था। मगर समय की कमी के कारण पूरी सीढ़ियां नहीं बन पाई।

उत्तराखंड राज्‍य को देवताओं की भूमि ऐसे ही नहीं कहते। ऐसे ही नहीं कहा जाता कि यहां पर देवता आकर स्नान करते हैं। यहां विच...
14/06/2020

उत्तराखंड राज्‍य को देवताओं की भूमि ऐसे ही नहीं कहते। ऐसे ही नहीं कहा जाता कि यहां पर देवता आकर स्नान करते हैं। यहां विचरण करते हैं। चलिए, राज्य के ऐतिहासिक मंदिरों के रोचक रहस्यों की कड़ी में इस बार हम आपको बता रहे हैं कि ऐसे मंदिर के बारे में, जहां देवताओं ने आकर मुराद मांगी और उन्हें उसका मुराद का फल भी मिला।
बात हो रही है उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित सुरकंडा देवा का मंदिर। यह स्‍थान समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर ऊंचाई पर है।
जब हिमालय के राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया, तो अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। ऐसे में दक्ष की बेटी और भगवान शिव की पत्नी देवी सती नाराज हो गई।
अपने पति के अपमान के आहत माता सती ने राजा दक्ष के यज्ञ में आहूति दे दी। इससे भगवान शिव उग्र हो गए। उन्होंने माता सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण किया। इस दौरान नौ स्‍थानों पर देवी सती के अंग धरती पर पड़े। वे स्‍थान शक्तिपीठ कहलाए।
इसी में देवी सती का सिर जहां गिरा। वह स्‍थान माता सुरकंडा देवी कहलाया। पौराणिक मान्यता है कि देवताओं को हराकर राक्षसों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। ऐसे में देवताओं ने माता सुरकंडा देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना की कि उन्हें उनका राज्य मिल जाए। उनकी मनोकामना पूरी हुई और देवताओं ने राक्षसों को युद्घ में हराकर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्‍थापित किया।

कार्तिक स्वामी मंदिरउत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर हिन्दुओं का एक पवित्र स्थल है, जो भगवान...
13/06/2020

कार्तिक स्वामी मंदिर

उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर हिन्दुओं का एक पवित्र स्थल है, जो भगवान शिव के ज्येष्ट पुत्र कार्तिक को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर गढ़वाल हिमालय की बर्फीली चोटियों के मध्य स्थित है। माना जाता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है जिसका इतिहास 200 साल पुराना है। गढ़वाल की सैर पर निकले ऑफ बीट ट्रैवलर यहां मत्था टेकने जरूर आते हैं। हाल के वर्षों में यह मंदिर स्थल दूर-दराज के ट्रेकर्स और रोमांच के शौकीनों के मध्य काफी ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। चूंकि यह मंदिर पहाड़ी ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए यहां के प्राकृतिक नजारे देखने लायक हैं। यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन होता है।

भगवान कार्तिक की पूजा उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी की जाती है, जहां उन्हें कार्तिक मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां की शाम की आरती या संध्या आरती बेहद खास होती है, इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है। बीच-बीच में यहां महा भंडारा भी आयोजित किया जाता है, जो पर्यटकों और श्रद्दालुओं को काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है।

मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती है। इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। मंदिर मे...
12/06/2020

मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती है। इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। मंदिर में मूर्ति जागृत और साक्षात है। यह सिद्धपीठ श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र है। धारी गांव के पांडेय ब्राह्मण मंदिर के पुजारी हैं। जनश्रुति है कि यहां मां काली प्रतिदिन तीन रूप प्रात: काल कन्या, दोपहर युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं। प्राचीन देवी की मूर्ति के इर्द-गिर्द चट्टान पर एक छोटा मंदिर स्थित था। मां धारी देवी का मंदिर अलकनंदा नदी पर बनी 330 मेगावाट श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की झील से डूब क्षेत्र में आ गया। यहां से मां काली का रूप माने जाने वाली धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया। उस दौरान कुछ लोगों का कहना था की प्रतिमा जैसे ही हटाई गई उसके कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही का मंजर देखने को मिला।
कहते हैं यहीं मां काली की कृपा से महाकवि कालिदास को ज्ञान मिला था। शक्ति पीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।

देवभूमि के द्वितीय केदार, जहां महादेव के लिए मर्यादा पुरुषोतम राम ने किया तपउत्तराखंड के पंच केदारों में से एक तुंगनाथ म...
11/06/2020

देवभूमि के द्वितीय केदार, जहां महादेव के लिए मर्यादा पुरुषोतम राम ने किया तप
उत्तराखंड के पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर अन्य केदारों से अलग ही महत्व रखता है। ये मंदिर विशेष महत्ता इसलिए रखता है क्योंकि ये स्थान भगवान राम से भी जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि यहां भगवान रामचंद्र ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे। पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम प्रसिद्ध तुंगनाथ की स्थापना कैसे हुई, ये बात लगभग किसी शिवभक्त से छिपी नहीं। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद बेहद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वो महर्षि व्यास के पास गए। महर्षि व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं। व्यास ऋषि की सलाह पर वे सभी शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन भगवान शंकर महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा का रुप धारण कर वहां से निकल गए।

लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए। कहते हैं कि तुंगनाथ में "बाहु" यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। ये मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। पंचकेदारों में ये मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और चोपता से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। यहां आपको असीम शांति का अनुभव होता है। उत्तराखंड की प्यारी और खूबसूरत वादियों के बीच ये जगह आपके लिए किसी अतुलनीय और दिव्य जगह से कम नहीं है। इसके साथ ही यहां के बुग्याल इस कदर खूबसूरत हैं कि लोग इस जगह को मिनी स्विटजरलैंड कहते हैं। इतनी खूबसूरती से भरे वातावरण में पहुंचकर आप खुद को धन्य समझेंगे।

चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चंद्रशिला पहुंचकर आप विराट हिमालय की सुदंर छटा का आनंद ले सकते हैं। सर्दियों के वक्त बर्फ पड़ने की वजह से भगवान शंकर को यहां से मक्कूमठ लाया जाता है। इस दौरान ग्रामीण पूरे ढोल, नगाड़ों के साथ भगवान शिव को ले जाते हैं और गर्मियों में वापस रखते हैं। ब्रिटिश शासनकाल में कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि जिसने अपने जीवन में चोपता नहीं देखा, उसका जीवन व्यर्थ है।

Valley of Flowers National Park जिसे आम तौर पर सिर्फ़ “फूलों की घाटी” कहा जाता है , भारत का एक राष्ट्रीय उद्यान है , जो उ...
10/06/2020

Valley of Flowers National Park जिसे आम तौर पर सिर्फ़ “फूलों की घाटी” कहा जाता है , भारत का एक राष्ट्रीय उद्यान है , जो उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र के हिमालयी क्षेत्र में चमोली जिले में स्थित है । नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं । फूलो की घाटी उद्यान 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है । चमोली जिले में स्थित फूलों की घाटी को विश्व संगठन , यूनेस्को द्वारा सन् 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया । हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ , यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया । वैसे तो कहते हैं कि नंदकानन के नाम से इसका वर्णन “रामायण और महाभारत” में भी मिलता है | यह माना जाता है कि यही वह जगह है जहाँ से हनुमानजी भगवान राम के भाई लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाए थे परन्तु स्थानीय लोग इसे “परियों और किन्नरों का निवास” समझ कर यहाँ आने से अब भी कतराते हैं , हालाकि आधुनिक समय में ब्रितानी पर्वतारोही फ़्रैंक स्मिथ ने 1931 में इसकी खोज की थी और तब से ही यह एक पर्यटन स्थल बन गया।

किंवदंती है कि रामायण काल में हनुमान संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो इत्तेफाक से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1968 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी। फूलों की घाटी में भ्रमण के लिये जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सर्वोत्तम माना जाता है ।
कहा जाता है की यहाँ के फूलों में अद्भुत औषधीय गुण होते हैं और यहाँ मिलने वाले सभी फूलों का दवाइयों में इस्तेमाल होता है। और हृदय रोग, अस्थमा, शुगर, मानसिक उन्माद, किडनी, लीवर और कैंसर जैसी भयानक रोगों को ठीक करने की क्षमता वाली औषधिया भी यहाँ पाई जाती है | इसके अलवा यहाँ सैकड़ों बहुमूल्य जड़ी-बूटियाँ और वनस्पति पाए जाते हैं जो की अत्यंत दुर्लभ हैं और विश्व में कही और नहीं पाए जाते, जो की इस घटी को और भी अधिक सुन्दर और महत्वपूर्ण बना देते है | फूलों की घाटी , गोविंदघाट के माध्यम से हेमकुंड साहिब के रास्ते पर स्थित है | घांघरिया गांव से 2 किमी की दूरी पर स्थित, यह क्षेत्र बर्फ से ढकी पहाड़ियों से घिरा है। यात्री यहाँ सफेद और पीले अनेमोनेस, दिंथुस, कैलेंडुला, डेज़ी, हिमालय नीले
अफीम और घाटी में स्नेक लिली जैसे फूलों की 300 से अधिक प्रजातियों को देख सकते हैं। फूलों की घाटी तक पहुँचने के लिए चमोली जिले का अन्तिम बस अड्डा गोविन्दघाट 275 किमी दूर है । यहाँ से प्रवेश स्थल की दूरी 13 किमी है जहाँ से पर्यटक 3 किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं। जोशीमठ से गोविन्दघाट की दूरी 19 किमी है।

उम्मीद करते है कि आपको चमोली जिले में स्थित प्रसिद्ध एवम् लोकप्रिय पर्यटन स्थल “ फूलो की घाटी ” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |

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देवभूमि उत्तराखंड में देवप्रयाग से 35 किलोमीटर दूर स्थित मां चन्द्रबदनी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। मां भग...
10/06/2020

देवभूमि उत्तराखंड में देवप्रयाग से 35 किलोमीटर दूर स्थित मां चन्द्रबदनी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। मां भगवती का यह मंदिर श्रीनगर टिहरी मोटर मार्ग पर है। मान्यता है कि माता सती का कटि भाग यहां स्थित चन्द्रकूट पर्वत पर गिरने से यहां सिद्धपीठ की स्थापना हुई। इसलिए यहां का नाम चन्द्रबदनी पड़ा। यहां माता की मूर्ति के दर्शन कोई नहीं कर सकता है। पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर मां चन्द्रबदनी को स्नान कराते हैं।

आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने यहां शक्तिपीठ की स्थापना की। मंदिर में देवी मां का श्रीयंत्र है। मंदिर के गर्भगृह पर एक शिला पर उत्कीर्ण इस श्रीयंत्र के ऊपर चांदी का बड़ा छत्र है। इस सिद्धपीठ में आने वाले श्रद्धालुओं को मां कभी खाली हाथ नहीं जाने देतीं। स्कंदपुराण, देवी भागवत एवं महाभारत में इस सिद्धपीठ का वर्णन है। प्राचीन ग्रंथों में यहां का उल्लेख भुवनेश्वरी सिद्धपीठ नाम से है। भक्त यहां सिर्फ श्रीयंत्र के ही दर्शन करते हैं।

है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है
07/06/2020

है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को

कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है

सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है
04/06/2020

सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में
मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है

04/05/2020

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