Upadhyay Trips

Upadhyay Trips Only this your One page for a Digitally Explore Indian Historical Moments, Temples, Cities, Caves, Canons, Railway stations, Train Trips etc.

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 10चंद्रेह मंदिर, चेदि वंश, सीधी, मध्य प्रदेश। नौबीं शताब्दी का ऐतिहासिक चन्द्रेह शिव ...
17/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 10
चंद्रेह मंदिर, चेदि वंश, सीधी, मध्य प्रदेश।

नौबीं शताब्दी का ऐतिहासिक चन्द्रेह शिव मंदिर था जो रीवा से लगभग 35 किमी आगे मध्य प्रदेश के सीधी जिले में स्थित है। यह मंदिर मुख्य शहरों और बाजारों से कोसों दूर एक वियावान स्थान पर एक नदी के किनारे स्थित था। मुख्य राजमार्ग से भी इसकी दूरी लगभग दस किमी के आसपास थी। यहाँ तक पहुँचने से पहले मेरे मन में अनेकों चिंताएं और जिज्ञासाएं थीं।

मैं नदी की दिशा में पैदल ही चन्द्रेह मंदिर की तरफ रवाना हो चला। यह अत्यंत ही भयावह व सुनसान क्षेत्र था किन्तु बहुत ही शांत, प्राकृतिक और रमणीक था। प्राकृतिक सुंदरता यहाँ चहुंओर दिखाई पड़ रही थी। यह इतनी सुन्दर थी कि मैं चाहकर भी इसकी सम्पूर्ण सुंदरता को कैमरे में कैद नहीं कर सकता था क्योंकि कैमरा जितनी जगह कवर कर सकता था वह इसकी सुंदरता का एक छोटा सा भाग मात्र था। चन्द्रेह जाने वाला यह सड़कमार्ग काफी शानदार बना हुआ है। मैं पैदल ही इस स्थान की सुंदरता को देखते हुए आगे बढ़ता जा रहा था और अब अकेलेपन का डर सा मेरे अंदर से समाप्त हो चुका था। मेरे ठीक बराबर में सोन नदी अपने तेज प्रवाह के साथ बह रही थी और उसके दूसरी तरफ बीहड़ों की पहाड़ियों के बीच सूर्य भी अस्त होने की कगार पर था।
..

मैंने उस ऑटो वाले से पहले ही पूछ लिया था कि यहाँ से हत्था जाने के लिए मुझे वापसी में कोई ना कोई साधन तो मिल जाएगा ना, तब उसने कहा था कि आपको निश्चित ही जाने के लिए कुछ ना कुछ अवश्य मिल जायेगा। ऑटो वाले की बात पर विश्वास करने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। कुछ ही समय में मुझे चन्द्रेह गाँव दिखाई देने लगा, गाँव के नजदीक पहुँचते ही यहाँ के ऐतिहासिक शिव मंदिर की दिशा बताता हुआ बोर्ड लगा है और एक विशाल द्वार भी बना हुआ है। सड़क से 300 मीटर की दूरी पर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चन्द्रेह मंदिर दिखाई देता है।
..

मैंने ढलते हुए दिन को देखते हुए यहीं इसी गाँव में किसी घर में रुकने का विकल्प भी तलाश लिया था। सर्वप्रथम मैंने इसके द्वार का फोटो खींचा और ठीक गेट के नजदीक बने सरकारी हैडपम्प से जी भर कर ठंडा पानी पिया। नदी के किनारे स्थित होने के कारण यह अत्यंत शीतल जल देने वाला नल था। इसी के ठीक समीप चन्द्रेह मंदिर का इतिहास और इसकी महत्ता बताती प्रस्तर पट्टिका भी लगी हुई है। प्रस्तर पट्टिका के अनुसार चन्द्रेह का निर्माण 972 ई. में चेदि वंश के प्रारम्भिक काल में चेदि शासकों के गुरु और मत्त मयूर नामक शैव सम्प्रदाय के शैव योगी द्वारा पूर्ण हुआ था।
..

इस मंदिर का निर्माण सोन और बनास नदी के संगम पर भगवान शिव की आराधना के लिए करवाया गया था, मंदिर के साथ साथ यहाँ शैव विहार और मठ की भी स्थापना हुई, जिसकी पुष्टि यहाँ लगे संस्कृत भाषा में लिखे दो प्राचीन शिलालेख करते हैं। मंदिर की संरचना शिवलिंग के योनिपीठ मतलब शिवलिंग के समान ही प्रतीत होती है, इस प्रकार का दूसरा मंदिर केरल के त्रिवेंद्रम शहर में परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। शांत और रमणीक स्थान पर यह मंदिर स्थित है। चेदि वंश के प्रारम्भिक काल में चन्द्रेह मंदिर के बाद अशोक नगर के कदवाया मंदिर और शिवपुरी स्थित सुरवाया शिव मंदिरों की भी स्थापना हुई।
..

इसके पश्चात जब बुंदेलखंड की भूमि पर चंदेल शासकों को राज्य स्थापित हुआ तो उन्होंने ऐसे ऐतिहासिक मंदिरों को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका प्रमाण खजुराहो के मंदिर आज भी देते हैं। चन्द्रेह मंदिर की संरचना का प्रकार अद्वितीय है। मंदिर के नजदीक ही ऐतिहासिक मठ भी स्थित है जिसकी दीवारों में संस्कृत भाषा में लिखे प्राचीन शिलालेख आज भी दिखाई देते हैं। प्राचीनकाल में चेदि शासको के गुरु प्रबोधशिव द्वारा इस मंदिर की देख रेख का कार्य पूर्ण होता था और आज पुरातत्व विभाग द्वारा इसकी देखरेख की जाती है। मैंने जैसे ही इस मंदिर के फोटो लेने के लिए कैमरा निकाला और एक दो फोटो लेने लगा तभी पुरातत्व विभाग में नौकरी करने वाले यहाँ के प्रबंधक की नजर मुझपर पड़ गई और उसने मुझे कैमरे से फोटो खींचने के लिए मना कर दिया। मजबूरन इतनी दूर इस मंदिर के नजदीक आकर भी मुझे इसके ज्यादातर फोटो अपने मोबाइल से ही लेने पड़े।
..

यहाँ ज्यादा समय ना रुककर मैं यहाँ से वापस हो गया। मेरे बाद यहाँ तीन और लड़के भी मंदिर की विडिओग्राफी करने के इरादे से यहाँ आये जो की यूटूबर थे और मंदिर का विडिओ बनाकर अपने यूट्यूब चैनल पर प्रसारित करते। मैं पैदल ही इस मंदिर से भंवरसेन के पुल की ओर चल दिया। रास्ता सुनसान था, सूरज भी पूर्णतः अब ढलने की कगार पर था, नजदीक में सोन नदी अपने तेज प्रवाह के साथ बह रही थी और मेरे दूसरी ओर पहाड़ियों और चट्टानों साम्राज्य स्थापित था। मनोहारी रास्ते को देखते हुए मैं जल्द ही भंवरसेन पुल के नजदीक पहुंचा और उसी स्थान पर खड़ा हो गया जहाँ मुझे वह ऑटो वाला उतार कर गया था, यहाँ संजय नेशनल पार्क जाने के लिए एक बोर्ड भी लगा हुआ था।

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 9लक्ष्मण मंदिर, सिरपुर, छत्तीसगढ़।यह एक ऐतिहासिक मंदिर है जिसे सोमवंशीय शासक महाशिवगु...
13/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 9
लक्ष्मण मंदिर, सिरपुर, छत्तीसगढ़।

यह एक ऐतिहासिक मंदिर है जिसे सोमवंशीय शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता रानी वासटा ने अपने पति हर्षगुप्त की स्मृति में सन 625 से 650 ईस्वी के बीच बनवाया था।

यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। परन्तु इसे लक्ष्मण मंदिर क्यों कहा जाता है यह आज भी एक गूढ़ रहस्य है।

लाल बलुआ कार ईंटों से निर्मित यह मंदिर अपने उस समय की याद दिलाता है जब सिरपुर महज एक गांव नहीं बल्कि इतिहास का प्रमुख नगर और सोमवंशीय राजाओं की राजधानी था।

इस मंदिर की देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और इसे देखने के लिए 15 रु /- प्रति भारतीय टिकट लगती है। यह टिकट मंदिर के दर्शन करने के लिए लगती है, हमें तो यह बाहर से ही दिखाई दे रह था इसलिए टिकट लेना पर्याप्त नहीं समझा।

यहाँ बने बाथरूम में निधि तो नहा चुकी थी, बस मैं और आकाश ही बिना नहाये घूम रहे थे।

यहाँ और भी ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं जिनमे महात्मा बुद्ध का मंदिर सर्वोपरि है यह तीवरदेव बौद्ध विहार कहलाता है, इसका निर्माण सोमवंशीय शासक तीवरदेव के समय में हुआ जो हर्षगुप्त के बड़े भाई और महाशिव बालार्जुन के दादा थे।

यहाँ पंचतंत्र की कहानियों के पात्रों का पत्थरों पर उत्कीर्ण अभिलेखन है। लौटते हुए हमने इस मंदिर को भी बखूबी देखा और इसके बाद वापस हाईवे आकर खल्लारी देवी के मंदिर जाने वाले प्रवेश द्वार को देखा।

यहाँ के मंदिरों की बनावट वाकई अद्भुत है, इसके बाद हमने कोडार डैम को भी देखा। यह मौसम छत्तीसगढ़ पर्यटन के अनुकूल नहीं था।

यहाँ के लिए सबसे उपयुक्त मौसम मानसून का ही है जब यहाँ चारों तरफ हरियाली और नदियों में पानी भरपूर मात्रा में मिलता है। सिरपुर घूमने के बाद हम महासमुंद की तरफ वापस लौट लिये।

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 8विजयालय चोलेश्वरम मंदिर, त्रिची, तमिलनाडू।वर्तमान में तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर और गं...
10/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 8
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर, त्रिची, तमिलनाडू।

वर्तमान में तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंड चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर चोल स्थापत्य के मुख्य उत्कृष्ट उदाहरण तो हैं ही किन्तु इसके निर्माण से भी सैकड़ों वर्षों पूर्व भी एक साधारण से गाँव की विशाल चट्टान पर,

प्रथम चोल सम्राट विजयालय ने अपनी विजयों के फलस्वरूप आठवीं शताब्दी में एक शानदार शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे उन्होंने अपने ही नाम से सम्बोधित किया ''विजयालय चोलेश्वर कोविल'' जिसका अर्थ है विजयालय चोल के ईश्वर का मंदिर।

मंदिर की वास्तुकला और शैली बेहद शानदार है इसी कारण यह इतने वर्षों के पश्चात भी ज्यों का त्यों स्थित है।

तिरुमयम किला देखने के बाद मैं त्रिची की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचा, क्योंकि इसी राजमार्ग पर स्थित नारतामलाई नामक स्थान पर मुझे पहुंचना था जहाँ आठवीं शताब्दी में प्रथम चोल सम्राट विजयालय ने द्रविड़ शैली में एक शानदार शिव मंदिर का निर्माण कराया था।
..

वक़्त के धारों में चोल शासक, उनका शासन और राज्य तो समाप्त हो गए किन्तु उनके द्वारा निर्मित चोलकालीन स्थापत्य की यह शानदार शिल्पकला आज भी उस समय की महत्ता को उजागर करती है जब आधुनिक युग के मुकाबले सभी साधन सीमित थे।

जब मशीनरी का दूर दूर तक कोई नाम नहीं था। अगर कुछ था, तो वह था सम्राटों की दूरदर्शी सोच और उनके बुलंद हौंसले, जिन्होंने उन सम्राटों को इतिहास में सदा सदा के लिए अमर कर दिया था।
..

मध्यकाल के दौरान दक्षिण भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए, इस्लामी कट्टरपंथियों और शासकों ने अपना पूरा जोर लगाया था, किन्तु दक्षिण भारतीय लोगों की अपने धर्म के प्रति आस्था और संस्कृति के चलते, वे दक्षिण भारत में हिन्दू मंदिरों का विनाश करने में असफल रहे, यही कारण था कि दक्षिण भारत में प्राचीन हिन्दू मंदिर आज भी अपनी ऐतिहासिक यादों को सहेजे हुए, गर्व से खड़े हैं। विजयालय चोलेश्वर शिव मंदिर इसका जीता जागता उदाहरण सिद्ध होता है।
...

तिरुमयम से एक खाली बस मुझे पुडुकोट्टई आने के लिए मिल गई और कुछ समय बाद मैं पुडुकोट्टई में था। यहाँ का मौसम काफी गर्म था जबकि यह जनवरी का महीना था। मैंने एक जूस की दुकान पर जाकर मौसमी का जूस पिया और पुडुकोट्टई बस स्टैंड पहुंचा।

त्रिची के बाद पुडुकोट्टई एक मुख्य जंक्शन पॉइंट है, जहाँ चारों दिशाओं में चोलकालीन सभ्यता के अवशेष बिखरे पड़े हैं। तिरुकट्टलई का ऐतिहासिक मंदिर पुडुकोट्टई में स्थित है जोकि चोलकालीन है और चोल राजाओं द्वारा निर्मित है।

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 7ककनमठ मंदिर, मुरैना, म. प्र.।चम्बल नदी के आसपास के बीहड़ों में प्राचीनकाल से ही मानवो...
08/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 7
ककनमठ मंदिर, मुरैना, म. प्र.।
चम्बल नदी के आसपास के बीहड़ों में प्राचीनकाल से ही मानवों का बसेरा रहा है चाहे ये बीहड़ देखने में कितने भयावह क्यों ना लगें परन्तु मनुष्य एक ऐसी प्रजाति है जो धरती के किसी भी भाग में अपने जीवन यापन की राह ढूंढ ही लेता है।

सदियों से चम्बल के बीहड़ों में अनेकों सभ्यताओं का जन्म हुआ, अनेकों शासकों ने अपने किले, अपने महल और अपने राज्य यहाँ स्थापित किये और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने और आने वाली पीढ़ियों को अपने वजूद, अपने काल और अपनी संस्कृति का सन्देश देने के लिए अनेकों मंदिरों, भवनों और इमारतों का निर्माण कराया।

इन्हीं वंशों में एक काल था कछवाहा वंश के राजाओं का, जिन्होंने चम्बल के दूसरी तरफ एक विशाल राज्य का निर्माण किया और अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया। गुजरते हुए वक़्त के साथ राजा, उनकी सेना और उनका राज्य समाप्त हो गया किन्तु उनके बनवाये हुए मंदिर और इमारतें आज भी उनकी बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण बनकर जीवित हैं।

मथुरा से 70 किमी दूर दक्षिण दिशा में चम्बल नदी पार करते ही मध्य प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है और मुरैना इस राज्य पहला जिला पड़ता है। 11 वीं शताब्दी में मुरैना कछवाहा वंश की राजधानी रहा है जिसका केंद्र मुरैना से 23 किमी पूर्व की ओर सिहोनियां था।

सिहोनिया ही कछवाहा वंश की राजधानी था जहाँ 11 वीं शताब्दी में राजा कीर्तिराज ने अपनी रानी काकनवती की ईच्छा पूर्ति के लिए एक शिव मंदिर का निर्माण कराया जिसका नाम उन्होंने रानी के नाम पर ही काकनमठ रखा।

खुजराहो के मंदिर शैली में बना यह मंदिर 115 फ़ीट ऊँचा है जिसे बनाने में किसी भी तरह के चूने या अन्य मसाले का इस्तेमाल नहीं हुआ है। आज एक हजार साल बाद भी यह मंदिर अनेकों प्राकतिक आपदा और वक़्त की मार को सहते हुए भी अजेय खड़ा है।

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 6तटवर्ती मंदिर / SHORE TAMPLEMahabalipuram, Tamilnaduसमुद्र के किनारे स्थित शोर मंदिर...
07/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 6
तटवर्ती मंदिर / SHORE TAMPLE
Mahabalipuram, Tamilnadu

समुद्र के किनारे स्थित शोर मंदिर, महाबलीपुरम अथवा तमिलनाडू का ही नहीं, अपितु पूरे भारतवर्ष की एक मुख्य ऐतिहासिक धरोहर के रूप विद्यमान है। यह समुद्र के किनारे रेतीले भूभाग में बना हुआ है इसीकारण इसे तटवर्ती मंदिर अथवा शोर मंदिर कहते हैं।

इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में पल्लव शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय द्वारा किया गया था, उस समय यहाँ एक बड़ा व्यस्त बंदरगाह था जो पल्लव शासकों द्वारा प्रयोग किया जाता था। ग्रेनाइट के बड़े बड़े पत्थरों से निर्मित होने के कारण यह एक संरचनात्मक मंदिर ( रॉक कट टेम्पल ) के रूप में दिखाई देता है।

सन 1984 में यूनेस्को ने महाबलीपुरम में स्थित अन्य स्मारकों से अलग इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत किया।

मार्को पोलो और उनके बाद आये अन्य यूरोपीय यात्रियों के वर्णन से ज्ञात होता है कि वह इसे सात पैगोडा के नाम से जानते थे और यह बात तब सच साबित होती नजर आई जब यहाँ सन 2004 में आई सुनामी के दौरान अन्य छ मंदिरों के अस्तित्व नजर में आये, जो आज समुद्र में डूबे हुए हैं।

उनमें से एकमात्र यही मंदिर अब मौजूदा रूप में दिखाई देता है। मंदिर के आसपास अनेकों ऐसी चट्टानें भी दिखाई देती हैं जिनपर विभिन्न तरह की आकृतियाँ भी नजर आती हैं जिनपर अनेकों पशु पक्षियों के रूप में दिखाई देती हैं।

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 5महादेवी मंदिर, इत्तगि, कर्नाटक ! 2021इत्तगि का महादेव अथवा महादेवी मंदिर का वर्णन भा...
05/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 5
महादेवी मंदिर, इत्तगि, कर्नाटक ! 2021

इत्तगि का महादेव अथवा महादेवी मंदिर का वर्णन भारतीय इतिहास की किताब में मिलता है जिसके बारे में प्रचलित है कि दशवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच कल्याणी के चालुक्य राजाओं ने इसका निर्माण करवाया था।

उन्होंने यहाँ अलग अलग बारह ज्योतिर्लिंग के मंदिरों का निर्माण करवाया था जिनके अवशेष आज भी यहाँ देखे जा सकते हैं।

इतना ही नहीं, मंदिर के पीछे वाले भाग में और इन बारह ज्योतिर्लिंगों के समीप एक पुष्करिणी भी दिखाई देती है जिसकी सरंचना बहुत ही सुन्दर प्रतीत होती है।

इसके अलावा इस मंदिर के समीप एक ऐतिहासिक धर्मशाला भी बनी हुई है जो तीर्थ यात्रियों के रुकने के उद्देश्य से बनबाई गई थी।

मंदिर के अनेक ध्वंशावशेष इस मंदिर के इर्द गिर्द और तालाब के चारों ओर बिखरे पड़े हैं जिनसे साबित होता है बारहवीं शताब्दी में इत्तगि एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

इत्तगि के महादेवी मंदिर की संरचना बहुत ही भव्य है इसका शिखर सफ़ेद पत्थरों से निर्मित है जिससे यह और भी सुन्दर लगता है।

नागर शैली में बने इस मंदिर की सुंदरता सबसे अलग है जो इत्तगि आने वाले यात्रियों को दिल से खुश कर देती है।

माना जाता है यहाँ और भी मंदिर बने हुए थे जो समय के प्रभाव के चलते अथवा विजय नगर पर हुए उस महाविनाश ध्वस्त हो गए हैं।

मंदिर के साथ साथ इस तालाब को भी पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन किया हुआ है जिसका मतलब है कि इन मंदिरों की मूर्तियां और उनके अवशेष आज भी इस तालाब में दबे हुए हैं।

पुरातत्व विभाग ने अब यहाँ खुदाई पर रोक लगा रखी है अन्यथा इत्तगि, लकुण्डी की तरह ही महान ऐतिहासिक सम्पदा से भरपूर ग्राम साबित हो सकेगा।

इत्तगि की इस ऐतिहासिक धरोहर को देखने के बाद मेरी आज की यह यात्रा पूर्ण हो गई।

अब मुझे यहाँ से हम्पी की ओर रवाना होना था जिसके लिए मैं मंदिर से पैदल मुख्य रोड पर आया जो कि अभी सुनसान अवस्था में था।

दिन ढलने की कगार पर था और मैं शहरों की चकाचौंध से दूर कर्नाटक के एक छोटे से गाँव में था जहाँ से किसी भी शहर को पहुँचने के लिए, किसी भी तरह के साधन के मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे।

परन्तु मुझे अपने भगवान पर पूरा भरोसा था, जिन्होंने मुझे इत्तगि तक पहुंचा दिया अब वही आगे भी पहुंचाएंगे। अपना बैग हाथ में लिए मैं इत्तगि के मुख्य रास्ते पर किसी गाडी का इंतज़ार करने लगा।

अब दिन पूर्ण रूप से ढलने ही वाला था कि एक लोडिंग ऑटो मुझे कुकनूर जाने के लिए मिल गया। इस लोडिंग ऑटो में पीछे की तरफ लकड़ी के बड़े बड़े तख्ते सवारियों के बैठने के लिए लगे हुए थे।
अब जो भी हो मुझे कुकनूर जाने का साधन मिल ही गया था और अँधेरा होते होते मैं कुकनूर पहुँच गया।
विस्तृत यात्रा वर्णन के लिए नीचे क्लिक कीजिए।
https://upadhyaytrips.blogspot.com/2021/04/ittagi.html?m=1

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 4महिषासुर मर्दिनी मंदिर, लाफा चैतुरगढ़ किला, छ. ग.।    चैतुरगढ़ किले को लाफागढ़ के नाम ...
01/03/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 4
महिषासुर मर्दिनी मंदिर, लाफा चैतुरगढ़ किला, छ. ग.।

चैतुरगढ़ किले को लाफागढ़ के नाम भी जाना जाता है। इस किले का निर्माण राजा पृथ्वीदेव ने करवाया था, इसके निर्माण की तिथि को लेकर इतिहासकारों में अभी काफी मतभेद हैं।

यह किला मैकाल पर्वत श्रेणी के एक उच्चतम शिखर पर स्थित है जिसकी प्राचीरें पूर्णतः प्राकृतिक हैं और कहीं कहीं इन प्राचीरों को उच्च बनाने के लिए दीवारों का निर्माण भी किया गया है। चैतुरगढ़ किले को छत्तीसगढ़ के छत्तीस गढ़ों में से एक माना जाता है।

किले में प्रवेश के चार द्वार हैं जिनमें सबसे मुख्य सिंहद्वार है जिसके समीप ऐतिहासिक महिषासुर मर्दिनी का सुन्दर मंदिर स्थापित है।

इस मंदिर का जीर्णोंद्धार सातवीं शताब्दी में वाणवंशीय शासक मल्ल देव ने करवाया था तथा इसके पश्चात 1100 वीं शताब्दी में जाजल्लदेव ने इस किले का जीर्णोद्धार करवाया।
..

चैतुरगढ़ किले में सबसे मुख्य महिषासुर मर्दिनी का मंदिर दर्शनीय है, इसके अलावा इस मंदिर से 2 किमी दूर शंकरखोल नामक एक प्राकृतिक गुफा है जहाँ भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग स्थापित है।

शंकरखोल के समीप ही किले का दूसरा मुख्य द्वार मेनका द्वार के नाम से जाना जाता है जहाँ किले के महलों के भग्नावेश आज भी देखने को मिलते हैं। इस किले के प्रांगण में एक हैलीपैड भी बना हुआ है।

यहाँ काफी मात्रा में लोग पिकनिक मनाने और प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने के लिए परिवार सहित यहाँ आते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेते हैं। किले के प्रांगण में तीन तालाब भी हैं और श्रृंगी नामक एक झरना भी दर्शनीय है। यहाँ आने का सबसे उत्तम समय सुबह से दोपहर का बेस्ट रहता है।

चैतुरगढ़, छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है और यह उच्च पर्वतीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण अत्यंत दुर्गम भी है। पाली से 25 किमी दूर लाफा नामक स्थान है और इससे आगे 30 किमी दूर चैतुरगढ़ का किला स्थित है।

मैकाल पर्वत श्रेणी में स्थित चैतुरगढ़, समुद्र तल से लगभग 3060 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। चैतुरगढ़ जाने का मार्ग घने जंगलों के बीच पर्वतीय मार्ग जिन्हें घाट भी कहा जाता है, से होकर गुजरता है।

जिस पर्वत पर चैतुरगढ़ का किला स्थित है वह पर्वत मैकाल पर्वत के उच्चतम शिखरों में से एक है और यह स्थान दिव्य जड़ी बूटियों, औषधीय वृक्षों, गुप्त गुफाओं, पर्वतों और झरनों के मध्य स्थित है इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहा जाता है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में भी यहाँ का तापमान 30 डिग्री सेग्री से अधिक नहीं होता है।
विस्तृत यात्रा वर्णन के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक कीजिए।
https://upadhyaytrips.blogspot.com/2021/08/lafa-chaturgarh-fort.html?m=1

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं -3श्री ज्वालादेवी शक्तिपीठ धाम, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।      ज्वाला देवी का मंदिर काफी ...
28/02/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं -3
श्री ज्वालादेवी शक्तिपीठ धाम, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।
ज्वाला देवी का मंदिर काफी बड़ा और साफ़ स्वच्छ बना हुआ है, शाम के समय यह और भी रमणीक हो जाता है।
हम शाम के समय मंदिर में पहुंचे, और थोड़ी देर मंदिर के सामने खुले फर्श पर बैठे रहे मंदिर खुलने में अभी समय था, फिर भी भक्तों की कोई कमी नहीं थी, लाइन लगाकर खड़े हुए थे, जब मंदिर खुला तो हम सबने देवी माँ के दर्शन किये, दर्शन करने के बाद एक हॉल पड़ता है जिसमे अकबर द्वारा चढ़ाया हुआ सोने का छत्र रखा हुआ है।

यहाँ माता की कोई मूर्ति नहीं है बस पहाड़ के तलहटी में से ज्योति निरंतर निकलती रहती है, इस ज्योति को माँ ज्वाला देवी का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है।

कहा जाता है 500 वर्ष पहले यह ज्योति इतनी विशाल थी की इसका प्रकाश दिल्ली तक दिखाई देता था। मुग़ल सम्राट अकबर ने जब प्रकाश का कारण जानना चाहा तो माँ के भक्तों ने इसे माँ ज्वालादेवी की महिमा बताया। अकबर इस सत्य को खुद आजमाकर स्वीकार करना चाहता था।

माँ के एक भक्त जिनका नाम ध्यानू भगत था के घोड़े का सर काटकर अकबर ने कहा कि अगर यह अग्नि वास्तव में तुम्हारी देवी माँ है और इनमे खुदा के बराबर शक्ति है तो अपनी माँ से कहो इस घोड़े को पुनर्जीवित कर दे।

ध्यानू भगत ने माँ का ध्यान किया किन्तु घोडा पुनः जीवित नहीं हुआ। अकबर सहित समस्त सेनापति और सेना ध्यानू भगत का उपहास करने लगे। इसपर माँ को संतुष्ट होता ना देख ध्यानु भगत ने अपना शीश काटकर माँ के चरणों में अर्पित कर दिया। भक्त की ऐसी भक्ति को देखकर माँ प्रसन्न हो गई और उन्होंने घोड़े सहित ध्यानु भगत का शीश ज्यों का त्यों जोड़ दिया।

अकबर और उसके समस्त सेनानायक माँ की इस महिमा को देखकर भौंचक्के रह गए। सम्राट अकबर का अभिमान चूर हो गया था वो माँ के दर्शन के लिए व्याकुल सा होने लगा किन्तु माँ ने उसे दर्शन नहीं दिए।

अकबर सवा मन का सोने का छत्र लेकर दिल्ली से नंगे पैर इस ज्वालामुखी पर्वत तक आया और माँ के लिए ये छत्र भेंट किया किन्तु माँ को उस अभिमानी राजा की ये भेंट पसंद नहीं आई और उन्होंने इसे किसी अन्य धातु में तब्दील करके दूर फेंक दिया।

अकबर ने जब उस छत्र को देखा तो उसकी सभा में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो इस सोने के छत्र के बदले हुए धातु का नाम भी बता सकता। आज भी यह छत्र मंदिर के पास एक बड़े हॉल में सुरक्षित रखा हुआ है।
विस्तृत यात्रा वर्णन के लिए क्लिक कीजिए👇

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं -2श्री बज्रेश्वरी देवी, नगरकोट धाम, कांगड़ा।श्री बज्रेश्वरी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश...
27/02/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं -2
श्री बज्रेश्वरी देवी, नगरकोट धाम, कांगड़ा।

श्री बज्रेश्वरी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है, यह नौवीं शताब्दी का ऐतिहासिक मंदिर है जहां महमूद गजनवी ने सर्वप्रथम आक्रमण कर मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई और यहां से बहुत सारा धन लूटकर ले गया।

मंदिर की संरचना कुछ इस प्रकार की है कि इसे देखने में तीन धर्मों का बोध होता है, इसके तीनों गुम्बद मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे की तर्ज पर निर्मित किए गए हैं, इसप्रकार का यह समूचे देश में एकमात्र मंदिर है।

यह अकबर के शासनकाल में नगरकोट के नाम से विख्यात था और आज भी माता के भक्त इनके धाम को नगरकोट वाली माता के नाम से ही जानते हैं। यह हमारी कुलदेवी हैं और मैं हमेशा अपनी कुलदेवी माता से मिलने आता रहता हूं, आइए एक नजर मेरी यात्रा पर भी डालिए....

शाम के समय मातारानी के दिव्य दर्शन कर हम काफी देर नगरकोट मंदिर के प्रांगण में रुके और वहीँ प्रतिदिन चलने वाले लंगर में खाना खाकर अपने रूम पर वापस आकर सो गए।

इस मंदिर के प्रांगण में समय बिताते हुए अनायास ही मुझे एहसास हुआ वाकई यह जगह कितनी शांत और आनंदप्रिय है, ऐसा लगता ही नहीं है कि हम कहीं बाहर आये हुए हैं यहाँ आकर हर इंसान को यही अनुभव होता है जैसे वो अपने घर में है जबकी हम अपने घर से हज़ारों मील दूर थे।

सुबह हो चुकी थी, और जल्द ही सुबह उठकर मैंने माता के दरवाजे पर जाकर उनको प्रणाम किया, यही पास में जमुनामाई जी की गद्दी है जहाँ हमारे पूर्वजों की यात्राओं का लेखा जोखा रहता है,
इसबार भी मेरी यात्रा का लेखा जोखा उनके पोथी पत्रों में नोट हो चुका था।

कहते हैं श्री ब्रजेश्वरी देवी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की कुलदेवी हैं और उनके भक्त यहाँ ऐसे ही खिंचे चले आते हैं जैसे चुम्बक से लोहा खिंचा चला आता है। मैं पिछली बार जब यहाँ आया था तो अच्छरा माता का मंदिर भी देखा था, तब मैंने मन ही मन सोचा था कि जब कल्पना को लेकर यहाँ आऊंगा तो अच्छरा माता के दर्शन के जरूर करूँगा। बस यही सोचकर कल्पना को बुलाया और बाणगंगा नदी के पास स्थित अच्छरा देवी के दर्शन को निकल पड़ा।

काँगड़ा की गलियों में से होकर हम रास्ता भटक गए एक मुस्लिम सम्प्रदाय के व्यक्ति ने हमारा आगे का मार्गदर्शन किया और हमें एक ऐसे स्थान पर पहुंचा दिया जहाँ हमने स्वयं को एक ऊँचे पहाड़ पर खड़ा पाया, हमारे सामने बाणगंगा नदी और उसके दूसरी तरफ रेलवे लाइन थी।

हम उस पहाड़ से धीरे धीरे नीचे उतरे और बाणगंगा नदी तक गए कुछ फोटो ग्राफ़ी करने के बाद हम अच्छरा माता के दर्शन करने चल दिए। अच्छरा माता के बारे में मान्यता है कि निसंतान स्त्रियां अगर यहाँ आकर सच्चे मन से उनकी आराधना करें तो उनको संतान की प्राप्ति निश्चित होती है।

यहाँ एक झरना बहता है जिसके नीचे मैंने कल्पना से स्नान करने को कहा और उसने बड़े खुश होकर यहाँ स्नान किया। तत्पश्चात हम यहाँ से उसी पहाड़ को चढ़कर वापस मंदिर की तरफ रवाना हो लिए।

आज के पूरे दिन का हमारा प्लान धर्मशाला और ,मैक्लोड गंज में बिताने का था। इसलिए माँ, बड़े मामा, किशोर मामा को मंदिर पर छोड़कर हम मैक्लोडगंज घूमने चले गए और शाम को अँधेरा होने तक हम वापस आ गए।

For more details pls click on below link
https://upadhyaytrips.blogspot.com/2018/04/kangra-2018.html?m=1

 #ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 1 Temple टेढ़ा मंदिर, हिमाचल प्रदेश।Trip at - Jun 2013रास्ता एक दम सुनसान था, मेरा अक...
05/02/2024

#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 1 Temple
टेढ़ा मंदिर, हिमाचल प्रदेश।
Trip at - Jun 2013
रास्ता एक दम सुनसान था, मेरा अकेले चलने में मन नहीं लग रहा था इसलिए मैंने मोबाइल का म्यूजिक प्लेयर चालु किया और गाना सुनने लगा। यहाँ पत्थरों पर जगह जगह टेडा मंदिर लिखकर मंदिर की दिशा बताई गई है, मैं इन्ही के सहारे मंदिर की तरफ चलता ही जा रहा था। करीब एक घंटे के बाद मैं टेडा मंदिर में पहुँच गया। पहुंचते ही पुजारी ने मुझे पहले नल का रास्ता बताया और कहा - जाओ, पहले पानी पीलो, नल उस तरफ है और फिर दर्शन कर लेना। मैंने ठीक ऐसा ही किया, मंदिर में ही एक प्रसाद की भी दुकान है, प्रसाद लेकर मैं मंदिर में गया वहां पुजारी पहले से ही मेरी प्रतीक्षा में बैठा था।

मैंने मंदिर में पहले दर्शन किये, यह प्रभु श्री राम का मंदिर है, यह मंदिर 1905 ई,.में आये भूकम्प के कारण टेडा हो गया था। मंदिर के ठीक सामने है सीता जी की गुफा। जिसमे सीता जी की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। बाहर चाय और कोल्ड्रिंक की एक शर्माजी की दुकान है, मेरी शर्मा जी काफी मित्रता सी हो गई, मैं काफी देर उनके पास बैठा रहा और उन्होने मुझे इतने ऊँचे पहाड़ पर एक थम्प्सअप पिलाई। यहाँ से ठीक सामने और पहले वाले रास्ते से काफी आसान रास्ता जाता है, जो गोरखनाथ की डिब्बी पर पहुंचता है ।रास्ता एक दम सुनसान था, मेरा अकेले चलने में मन नहीं लग रहा था इसलिए मैंने मोबाइल का म्यूजिक प्लेयर चालु किया और गाना सुनने लगा। यहाँ पत्थरों पर जगह जगह टेडा मंदिर लिखकर मंदिर की दिशा बताई गई है, मैं इन्ही के सहारे मंदिर की तरफ चलता ही जा रहा था। करीब एक घंटे के बाद मैं टेडा मंदिर में पहुँच गया। पहुंचते ही पुजारी ने मुझे पहले नल का रास्ता बताया और कहा - जाओ, पहले पानी पीलो, नल उस तरफ है और फिर दर्शन कर लेना। मैंने ठीक ऐसा ही किया, मंदिर में ही एक प्रसाद की भी दुकान है, प्रसाद लेकर मैं मंदिर में गया वहां पुजारी पहले से ही मेरी प्रतीक्षा में बैठा था।

मैंने मंदिर में पहले दर्शन किये, यह प्रभु श्री राम का मंदिर है, यह मंदिर 1905 ई,.में आये भूकम्प के कारण टेडा हो गया था। मंदिर के ठीक सामने है सीता जी की गुफा। जिसमे सीता जी की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। बाहर चाय और कोल्ड्रिंक की एक शर्माजी की दुकान है, मेरी शर्मा जी काफी मित्रता सी हो गई, मैं काफी देर उनके पास बैठा रहा और उन्होने मुझे इतने ऊँचे पहाड़ पर एक थम्प्सअप पिलाई। यहाँ से ठीक सामने और पहले वाले रास्ते से काफी आसान रास्ता जाता है, जो गोरखनाथ की डिब्बी पर पहुंचता है ।
Pls click on below link 🔗 for more details
https://upadhyaytrips.blogspot.com/2013/06/teda-mandir.html?m=1

भरतपुर किला, जिसे लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है। कल महाराष्ट्र से ब्रजभूमि पधारे आभासी मित्रों के साथ, भरतपुर की इस ...
17/01/2024

भरतपुर किला, जिसे लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
कल महाराष्ट्र से ब्रजभूमि पधारे आभासी मित्रों के साथ, भरतपुर की इस ऐतिहासिक यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

आगामी यात्रामेवाड़ की वीरभूमि पर...Coming soon...
10/01/2024

आगामी यात्रा
मेवाड़ की वीरभूमि पर...
Coming soon...

09/01/2024

तेली का मंदिर, ग्वालियर किला।
6 Jan 2024

A Short Trip of Gwalior Fort
06/01/2024

A Short Trip of Gwalior Fort

31/12/2023

Happy New year to all Traveler & Our Followers 💓💓💓💓💓💓

अपरिहार्य कारण और कोहरे की वजह से ट्रेन की धीमी गतिशीलता के कारण इस वर्ष की कर्नाटक यात्रा रद्द है। जल्द ही एक नई ऐतिहास...
31/12/2023

अपरिहार्य कारण और कोहरे की वजह से ट्रेन की धीमी गतिशीलता के कारण इस वर्ष की कर्नाटक यात्रा रद्द है। जल्द ही एक नई ऐतिहासिक यात्रा प्लान की जाएगी और पुनः नए ऐतिहासिक स्थलों को अपने सभी यात्री बंधुओं के मार्गदर्शन के लिए Upadhyay Trips ke यात्रापटल पर प्रकाशित किया जाएगा।🙏
इसके साथ ही सभी यात्रा बंधुओं को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉🎊💥🇮🇳🙏

 #हेलिकॉप्टर_से_करिए_मथुरा_वृन्दावन_व_गोवर्धन_की_परिक्रमादेश में पहली बार धार्मिक स्थल की हवाई परिक्रमा होगी। अब श्रद्धा...
21/12/2023

#हेलिकॉप्टर_से_करिए_मथुरा_वृन्दावन_व_गोवर्धन_की_परिक्रमा

देश में पहली बार धार्मिक स्थल की हवाई परिक्रमा होगी। अब श्रद्धालु व पर्यटक हेलिकॉप्टर से मथुरा, वृन्दावन एवं गोवर्धन की परिक्रमा कर सकेंगे। पर्यटन विभाग ने 30 साल तक पीपी मॉडल पर हेलिकॉप्टर सेवा के लिए मेसर्स राजस एयरो स्पोर्ट एंड एडवेंचर प्रा.लि. के साथ करार किया है।

आगरा, मथुरा और दिल्ली तक होने वाली इस हेलिकॉप्टर सेवा के लिए हैलीपैड तैयार हैं। आगरा में इनर रिंग रोड पर हैलीपैड बना है, जबकि मथुरा में गोवर्धन में हैलीपैड तैयार है। हेलिकॉप्टर में छह सीट होंगी। आगरा आने वाले पर्यटक हेलिकॉप्टर से ताजमहल का एरियल व्यू ले सकेंगे। धार्मिक नगरी में तीन तरह से सुविधा होगी। जिसमें परिक्रमा, सामान्य भ्रमण व कनेक्टिविटी शामिल है। गोवर्धन में गिरिराज पर्वत की 21 किलोमीटर की परिक्रमा हेलिकॉप्टर से सात मिनट में पूरी की जा सकेगी।

25 दिसम्बर को भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है। उस दिन हेलिकॉप्टर सेवा का उद्घाटन हो सकता है।

🙏💐 जय श्री राधे 💐🙏
🙏💐जय श्री कृष्णा💐🙏

बीदर - क्राउन ऑफ़ कर्नाटक बीदर में पर्यटन स्थल    यूँ तो बीदर पूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक नगर है, बहमनी सल्तनतकाल की स्थापत्...
21/11/2023

बीदर - क्राउन ऑफ़ कर्नाटक
बीदर में पर्यटन स्थल

यूँ तो बीदर पूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक नगर है, बहमनी सल्तनतकाल की स्थापत्य कला के अनेकों उदाहरण यहाँ देखे जा सकते हैं, जिनमें महमूद गँवा का मदरसा, बीदर का शाही किला और अस्तूर स्थित बहमनी सल्तनत के सुल्तानों के मकबरे मुख्य हैं ।

इन सबके अलावा यहाँ श्री झरनी नर्सिंह जी का मंदिर है जो प्राकृतिक रूप से पहाड़ की तलहटी में स्थित है। पापनाश शिव मंदिर भी देखने योग्य है और

इतना ही नहीं, बीदर शहर सिख धर्म के लिए भी बहुत महत्त्व रखता है क्योंकि यहाँ प्रथम सिख गुरु नानकदेव जी ने यहाँ की यात्रा की और अमृतकुंड की स्थापना कर, बीदर के लोगों को मीठे पानी का उपहार दिया।

बीदर शहर, कर्नाटक के उत्तर में सबसे पहला शहर है इसलिए यह कर्नाटक का ताज़ भी कहलाता है।

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर....2021

सम्पूर्ण यात्रा विवरण के लिए नीचे लिंक पर क्लिक कीजिए 👇
https://upadhyaytrips.blogspot.com/2021/02/bidar.html?m=1

Nilgiri Railway
18/11/2023

Nilgiri Railway

चोल साम्राज्य की सीमा से निकलकर अब मैं चेर राज्य की सीमा में प्रवेश कर चुका था। कोयंबटूर पहुंचकर मैंने अपनी यात्रा की शु...
18/11/2023

चोल साम्राज्य की सीमा से निकलकर अब मैं चेर राज्य की सीमा में प्रवेश कर चुका था। कोयंबटूर पहुंचकर मैंने अपनी यात्रा की शुरुआत की,

हालांकि यह यात्रा ऐतिहासिक यात्रा पटल पर ही निर्धारित थी किन्तु किसी स्थापत्य कला या मंदिरों की खोज में नहीं थी, बल्कि एक पर्यटन पर्वतीय स्थल की यात्रा थी जो भाप के इंजन से चलने वाली रेलगाड़ी द्वारा पूरी होनी थी।

यह रेलयात्रा नीलगिरि रेलवे की यात्रा थी जिसकी शुरुआत ब्रिटिश राज के दौरान 1908 ई. में हुई थी। सन 2005 में इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी थी और आज यह भारतवर्ष के मुख्य पर्यटन स्थल ऊँटी जिसे अब उदगमंडलम कहा जाता है तक अपनी सेवा देती है।

नीलगिरि रेलवे एक मीटर गेज रेल लाइन है जो कोयंबटूर के नजदीक स्थित मेट्टुपलायम से नीलगिरि पर्वतीय स्थल उदगमंडलम के बीच स्थित है।

पूर्व में यह लाइन केवल मेट्टुपलायम से कन्नूर के बीच संचालित थी जिसे बाद में बढ़ाकर उदगमंडलम तक कर दिया गया।

मेट्टुपलायम से कन्नूर के बीच एक स्टीम इंजन पांच - छः बोगी की ट्रेन को ऊपर तक लेकर जाता है और कन्नूर के बाद डीजल इंजन द्वारा उदगमंडलम का सफर तय होता है।

मैंने स्टीम के इंजन बचपन में ट्रैक पर चलते हुए देखे थे। आज काफी सालों बाद मैं किसी ऐसी ट्रेन में सफर कर रहा हु जो स्टीम इंजन से चलेगी।

* नीलगिरी रेलवे की एक यात्रा *
4 जनवरी 2023
अधिक जानकारी और यात्रा के चित्र देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए।
https://upadhyaytrips.blogspot.com/2023/11/nilgiri-railway.html?m=1

चांदनी के किरदार....इत्तेफाक से आज तीनों ही दुनिया में नहीं हैं।
16/09/2023

चांदनी के किरदार....
इत्तेफाक से आज तीनों ही दुनिया में नहीं हैं।

🎈Happy Janmashtami 🎈भगवान श्री कृष्ण के अवतरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
07/09/2023

🎈Happy Janmashtami 🎈
भगवान श्री कृष्ण के अवतरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

माही, केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी का पश्चिमी तट पर एक मात्र शहर है। माही की स्थापना का श्रेय फ्रांसीसियों को जाता है जि...
30/06/2023

माही, केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी का पश्चिमी तट पर एक मात्र शहर है। माही की स्थापना का श्रेय फ्रांसीसियों को जाता है जिन्होंने भारत में समुद्री तटों पर चार शहरों में अपनी बस्तियां स्थापित की थीं, उन्ही में से एक माही है।
🌴
समुद्र के किनारे माही नदी के तट पर स्थित यह बहुत शांत और सुंदर शहर है। केरल राज्य के बीच यह एकमात्र शहर है जो पुडुचेरी प्रदेश का एक भाग है।
🌴
माही शहर में माही नदी अरब सागर में मिलती है, यहां नदी के किनारे से समुद्र तक रिवर साइड वॉकवे देखने व घूमने योग्य है, साथ ही माही का लाइट हाउस, टैगोर पार्क, सेंट थॉमस चर्च, फ्रेंच सभ्यता में बने पुराने भवन, दफ्तर और केरल शैली में बना भगवान श्री कृष्ण का मंदिर दर्शनीय है।
🌴
यूं तो माही एक छोटा शहर है किंतु अपनी ऐतिहासिकता के आधार पर यह देश में मुख्य भूमिका रखता है और साथ ही भारत में फ्रांसीसियों के अधिकार की याद दिलाता है। यहां आज भी मुख्य रूप से मलयालम व इंग्लिश के साथ फ्रेंच भाषा भी बोली जाती है।
🏝️
माही केरल के कन्नूर और कोझिकोड( कालीकट ) नगर से जुड़ा हुआ है, भारतीय रेलवे के माही रेलवे स्टेशन से यह नजदीक है। अगर आप कभी केरला की यात्रा पर आएँ तो माही को अवश्य अपनी लिस्ट में शामिल रखें।
🙏
🌴कोंकण v मालाबार की मानसूनी यात्रा पर 🌴

⛱️🛟🚢🛳️🌴

आज मैं अपने मित्र सोहन सिंह और अपनी पत्नी कल्पना के साथ मानसूनी रेलयात्रा पर हूं। हमारी यह यात्रा मथुरा से शुरू होकर केर...
26/06/2023

आज मैं अपने मित्र सोहन सिंह और अपनी पत्नी कल्पना के साथ मानसूनी रेलयात्रा पर हूं। हमारी यह यात्रा मथुरा से शुरू होकर केरल की राजधानी त्रिवेंद्रम तक निर्धारित है। अभी फिलहाल हम गुजरात में हैं, आज का पूरा दिन ट्रेन में ही रहा और अब आज रात के बाद हम कल सुबह कोंकण रेलवे की खूबसूरत यात्रा पर होंगे।
कोंकण रेलवे में यात्रा का सर्वोत्तम समय मानसून ही है अतः कल की रेलयात्रा का एक अलग ही आनंद होगा।
आप सभी मित्रों के साथ साझा की जाने वाली यह रेल यात्रा एक यादगार यात्रा साबित होगी।
धन्यवाद

17/05/2023

Address

Behind ATV Project
Mathura
281004

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Upadhyay Trips posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Upadhyay Trips:

Videos

Share


Other Mathura travel agencies

Show All

You may also like