17/03/2024
#ऐतिहासिक_मंदिरों_की_श्रृंखलाएं - 10
चंद्रेह मंदिर, चेदि वंश, सीधी, मध्य प्रदेश।
नौबीं शताब्दी का ऐतिहासिक चन्द्रेह शिव मंदिर था जो रीवा से लगभग 35 किमी आगे मध्य प्रदेश के सीधी जिले में स्थित है। यह मंदिर मुख्य शहरों और बाजारों से कोसों दूर एक वियावान स्थान पर एक नदी के किनारे स्थित था। मुख्य राजमार्ग से भी इसकी दूरी लगभग दस किमी के आसपास थी। यहाँ तक पहुँचने से पहले मेरे मन में अनेकों चिंताएं और जिज्ञासाएं थीं।
मैं नदी की दिशा में पैदल ही चन्द्रेह मंदिर की तरफ रवाना हो चला। यह अत्यंत ही भयावह व सुनसान क्षेत्र था किन्तु बहुत ही शांत, प्राकृतिक और रमणीक था। प्राकृतिक सुंदरता यहाँ चहुंओर दिखाई पड़ रही थी। यह इतनी सुन्दर थी कि मैं चाहकर भी इसकी सम्पूर्ण सुंदरता को कैमरे में कैद नहीं कर सकता था क्योंकि कैमरा जितनी जगह कवर कर सकता था वह इसकी सुंदरता का एक छोटा सा भाग मात्र था। चन्द्रेह जाने वाला यह सड़कमार्ग काफी शानदार बना हुआ है। मैं पैदल ही इस स्थान की सुंदरता को देखते हुए आगे बढ़ता जा रहा था और अब अकेलेपन का डर सा मेरे अंदर से समाप्त हो चुका था। मेरे ठीक बराबर में सोन नदी अपने तेज प्रवाह के साथ बह रही थी और उसके दूसरी तरफ बीहड़ों की पहाड़ियों के बीच सूर्य भी अस्त होने की कगार पर था।
..
मैंने उस ऑटो वाले से पहले ही पूछ लिया था कि यहाँ से हत्था जाने के लिए मुझे वापसी में कोई ना कोई साधन तो मिल जाएगा ना, तब उसने कहा था कि आपको निश्चित ही जाने के लिए कुछ ना कुछ अवश्य मिल जायेगा। ऑटो वाले की बात पर विश्वास करने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। कुछ ही समय में मुझे चन्द्रेह गाँव दिखाई देने लगा, गाँव के नजदीक पहुँचते ही यहाँ के ऐतिहासिक शिव मंदिर की दिशा बताता हुआ बोर्ड लगा है और एक विशाल द्वार भी बना हुआ है। सड़क से 300 मीटर की दूरी पर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चन्द्रेह मंदिर दिखाई देता है।
..
मैंने ढलते हुए दिन को देखते हुए यहीं इसी गाँव में किसी घर में रुकने का विकल्प भी तलाश लिया था। सर्वप्रथम मैंने इसके द्वार का फोटो खींचा और ठीक गेट के नजदीक बने सरकारी हैडपम्प से जी भर कर ठंडा पानी पिया। नदी के किनारे स्थित होने के कारण यह अत्यंत शीतल जल देने वाला नल था। इसी के ठीक समीप चन्द्रेह मंदिर का इतिहास और इसकी महत्ता बताती प्रस्तर पट्टिका भी लगी हुई है। प्रस्तर पट्टिका के अनुसार चन्द्रेह का निर्माण 972 ई. में चेदि वंश के प्रारम्भिक काल में चेदि शासकों के गुरु और मत्त मयूर नामक शैव सम्प्रदाय के शैव योगी द्वारा पूर्ण हुआ था।
..
इस मंदिर का निर्माण सोन और बनास नदी के संगम पर भगवान शिव की आराधना के लिए करवाया गया था, मंदिर के साथ साथ यहाँ शैव विहार और मठ की भी स्थापना हुई, जिसकी पुष्टि यहाँ लगे संस्कृत भाषा में लिखे दो प्राचीन शिलालेख करते हैं। मंदिर की संरचना शिवलिंग के योनिपीठ मतलब शिवलिंग के समान ही प्रतीत होती है, इस प्रकार का दूसरा मंदिर केरल के त्रिवेंद्रम शहर में परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। शांत और रमणीक स्थान पर यह मंदिर स्थित है। चेदि वंश के प्रारम्भिक काल में चन्द्रेह मंदिर के बाद अशोक नगर के कदवाया मंदिर और शिवपुरी स्थित सुरवाया शिव मंदिरों की भी स्थापना हुई।
..
इसके पश्चात जब बुंदेलखंड की भूमि पर चंदेल शासकों को राज्य स्थापित हुआ तो उन्होंने ऐसे ऐतिहासिक मंदिरों को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका प्रमाण खजुराहो के मंदिर आज भी देते हैं। चन्द्रेह मंदिर की संरचना का प्रकार अद्वितीय है। मंदिर के नजदीक ही ऐतिहासिक मठ भी स्थित है जिसकी दीवारों में संस्कृत भाषा में लिखे प्राचीन शिलालेख आज भी दिखाई देते हैं। प्राचीनकाल में चेदि शासको के गुरु प्रबोधशिव द्वारा इस मंदिर की देख रेख का कार्य पूर्ण होता था और आज पुरातत्व विभाग द्वारा इसकी देखरेख की जाती है। मैंने जैसे ही इस मंदिर के फोटो लेने के लिए कैमरा निकाला और एक दो फोटो लेने लगा तभी पुरातत्व विभाग में नौकरी करने वाले यहाँ के प्रबंधक की नजर मुझपर पड़ गई और उसने मुझे कैमरे से फोटो खींचने के लिए मना कर दिया। मजबूरन इतनी दूर इस मंदिर के नजदीक आकर भी मुझे इसके ज्यादातर फोटो अपने मोबाइल से ही लेने पड़े।
..
यहाँ ज्यादा समय ना रुककर मैं यहाँ से वापस हो गया। मेरे बाद यहाँ तीन और लड़के भी मंदिर की विडिओग्राफी करने के इरादे से यहाँ आये जो की यूटूबर थे और मंदिर का विडिओ बनाकर अपने यूट्यूब चैनल पर प्रसारित करते। मैं पैदल ही इस मंदिर से भंवरसेन के पुल की ओर चल दिया। रास्ता सुनसान था, सूरज भी पूर्णतः अब ढलने की कगार पर था, नजदीक में सोन नदी अपने तेज प्रवाह के साथ बह रही थी और मेरे दूसरी ओर पहाड़ियों और चट्टानों साम्राज्य स्थापित था। मनोहारी रास्ते को देखते हुए मैं जल्द ही भंवरसेन पुल के नजदीक पहुंचा और उसी स्थान पर खड़ा हो गया जहाँ मुझे वह ऑटो वाला उतार कर गया था, यहाँ संजय नेशनल पार्क जाने के लिए एक बोर्ड भी लगा हुआ था।