12/06/2020
भाई-बहनों, शुक्रवार का दिन हम देवी शक्ति के रूप में मानते हैं, हजारों भारतीय देवी स्वरूप शक्तियों ने अपने कर्म, व्यवहार और बलिदान से विश्व में आदर्श प्रस्तुत किया है, प्राचीनकाल से ही भारत में दिव्य देवताओं के साथ महान् देवीयों को भी समान सम्मान मिला है इसीलिए भारतीय संस्कृति और धर्म में देवी शक्ति का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
हमारे हिन्दू देवीयों ने जहां हिंदू धर्म को प्रभावित किया वहीं इन्होंने शास्त्रों में इन देवी शक्तियों के योगदान को कभी भी भूलाया नहीं जा सकता, उन्हीं देवीयों में आज हम राधा रानी किशोरीजी का चिन्तन और भक्ति करने की कोशिश करेंगे, लोग पूछते है कि क्या राधा किशोरीजी भगवान् श्री कृष्णजी की प्रेमिका थीं? यदि थीं तो फिर भगवान् श्री कृष्णजी ने उनसे विवाह क्यों नहीं किया?
भगवान् श्री कृष्णजी ने अपने जीवनकाल में आठ विवाह किया, तो क्या उन्हें राधाजी से विवाह करने में कोई दिक्कत थी? भगवान् श्री कृष्णजी की आठ पत्नियों के नाम- रुक्मणिजी, जाम्बवन्तीजी, सत्यभामाजी, कालिन्दीजी, मित्रबिन्दाजी, सत्याजी, भद्राजी और लक्ष्मणाजी, यह सभी भगवान् की पटरानीयाँ थी।
भाई-बहनों! मैं यह आर्टिकल शास्त्र सम्मत लिखने की पूरी कोशिश करूँगा, कृपया आपको यह पोस्ट पूरी पढ़नी है, कहते हैं कि राधाजी और भगवान् श्री कृष्ण के प्रेम की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी, कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में, नंदगांव और बरसाने से मथुरा कोई ज्यादा दूर नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि जब ग्यारह वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गयें थे, तो इतनी लघु अवस्था में गोपियों के साथ प्रेम या रास की कल्पना कैसे की जा सकती है? मथुरा में उन्होंने कंस से लोहा लिया और कंस का अंत करने के बाद तो जरासंध उनकी जान का दुश्मन बन गया था जो शक्तिशाली मगथ का सम्राट था और जिसे कई जनपदों का सहयोग था।
जरासंध से दुश्मनी के चलते श्रीकृष्ण को कई वर्षों तक तो भागते रहना पड़ा था, जब परशुरामजी ने उनको सुदर्शन चक्र दिया तब जाकर कहीं आराम मिला, लेकिन इसके पीछे का सच भी जानेंगे की कोशिश करते हैं, सज्जनों! महाभारत या भागवत् पुराण में राधाजी के नाम का विशेष उल्लेख नहीं मिलता, फिर यह राधाजी नाम की सखी भगवान् श्री कृष्णजी के जीवन में कैसे आ गई?
कहीं यह मध्यकाल के कवियों की कल्पना तो नहीं? यह सच है कि श्री कृष्णजी से जुड़े ग्रंथों में राधाजी का नाम नहीं है, शुकदेवजी ने भी भागवत् में राधाजी का नाम नहीं लिया, यदि भगवान् श्री कृष्णजी के जीवन में राधा का जरा भी महत्व था, तो क्यों नहीं राधा का नाम कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में मिलता है? या कहीं ऐसा तो नहीं की वेद व्यासजी ने जानबूझकर श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम प्रसंग को नहीं लिखा?
माना जाता है कि मध्यकाल या भक्तिकाल में राधाजी और कृष्णजी की प्रेमकथा को विस्तार मिला, अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया और कृष्ण के योद्धा चरित्र को नुकसान पहुंचा, राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय ने की, निम्बार्क, चैतन्य, बल्लभ, राधावल्लभ, स्वामी हरिदास का सखी- ये संप्रदाय राधा-कृष्ण भक्ति के पाँच स्तंभ बनकर खड़े हैं।
निम्बार्क का जन्म 1250 ईस्वी में हुआ, इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई, उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थे? पांचों संप्रदायों में सबसे प्राचीन निम्बार्क और राधावल्लभ दो संप्रदाय हैं, दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया।
राधावल्भ संप्रदाय के लोग कहते हैं कि राधावल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीकृष्ण वंशी अवतार कहे जाने वाले और वृंदावन के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने वाले रसिकाचार्य हित हरिवंशजी महाप्रभु के संप्रदाय की प्रवर्तक आचार्य राधा हैं, इन दोनों संप्रदायों में राधाष्टमी के उत्सव का विशेष महत्व है।
निम्बार्क व राधावल्लभ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ वृंदावन है, निम्बार्क संप्रदाय के विद्वान कहते हैं कि श्री कृष्ण सर्वोच्च प्रेमी थे, उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था, वैष्णवाचार्यों ने भी अपने-अपने तरीकों से उनकी आराधना की है, निम्बार्क संप्रदाय कहता है कि श्याम और श्यामा का एक ही स्वरूप हैं, भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं के लिए स्वयं से राधा का प्राकट्य किया और दो शरीर धारण कियें।
लेकिन यह तो भक्तिभाव में कही गई बाते हैं, इनमें तथ्य कहां है? इतिहास अलौकिक बातों से नहीं बनता, ऐसी बातें करने वालों को झूठा माना जाता हैं, आखिर सच क्या है? राधाजी का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है, पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानुजी नामक गोप की पुत्री थीं, वृषभानुजी वैश्य यानी व्यापारी थे।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उसका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था, उस जमाने में स्त्री का विवाह किशोर अवस्था में ही कर दिया जाता था, बरसाना और नंदगाव के बीच एक अन्य गाँव का फासला है, महाभारत के सभी प्रमुख पात्र पितामहा भीष्मजी, गुरू द्रोणाचार्य, व्यासजी, दानवीर कर्ण, महान् धनुर्धारी अर्जुन, युधिष्ठिरजी सभी ने श्रीकृष्ण के महान-चरित्र की प्रशंसा की है।
उस काल में भी परस्त्री से संबंध रखना दुराचार माना जाता था, यदि श्रीकृष्ण का भी राधाजी नामक किसी औरत से संबंध हुआ होता तो श्रीकृष्ण पर भी अंगुली उठाई जाती? बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था, बरसाने से मात्र कुछ दूरी पर नंदगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पालक पिता नंदजीजी का घर था।
होली के दिन यहां इतनी धूम होती है कि दोनों गांव एक हो जाते थे, बरसाने से नंदगाव टोली आती थी और नंदगांव की टोली बरसाना जाती थी, कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गयें लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था।
राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ मुझे मई 2017 में जाने का सौभाग्य मिला, बरसाना में राधाजी को लाड़ली कहा जाता है, बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं, उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है, मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं, यहीं पर कभी-कभी श्री कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते थे।
गौरतलब है कि मथुरा में कृष्ण के जन्म के बाद कंस के सभी सैनिकों को नींद आ गई थी और वासुदेव की बेड़ियां किसी चमत्कार से खुल गई थीं, तब वासुदेवजी भगवान कृष्ण को नंदगांव में नंदरायजी के यहां आधी रात को छोड़ आयें थे,नंदजी के घर लाला का जन्म हुआ है, ऐसी खबर धीरे-धीरे गांव में फैल गयीं, यह सुनकर सभी नंदगांववासी खुशियां मनाने लगे।
श्री कृष्णजी ने नंदगांव में रहते हुए पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि कई असुरों का वध किया, यहां के घाट और उसके पास अन्य मनोरम स्थल हैं, जैसे- गोविंद घाट, गोकुलनाथजी का बाग, बाजनटीला, सिंहपौड़ी, यशोदा घाट, रमणरेती आदि, जहाँ मैंने भी आनन्द के साथ दर्शन का लाभ लिया, एवम् वहाँ मुझे राधारानी के बारे में जानने का अवसर मिला।
गोकुल क्या है? गोकुल यमुना के तट पर बसा एक गांव है, जहां सभी नंदों की गायों का निवास स्थान था, यहीं पर रोहिणीजी ने बलरामजी को जन्म दिया, बलरामजी माता देवकीजी के सातवें गर्भ में थे जिन्हें योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया था, यह स्थान गोप लोगों का गढ़ था।
श्री चैतन्य महाप्रभु के ब्रज आगमन के पश्चात श्रीवल्लभाचार्यजी ने यमुना के इस मनोहर तट पर श्रीमद्भागवत का पारायाण किया था, इनके पुत्र श्रीविट्ठलाचार्यजी और उनके पुत्र श्रीगोकुलनाथजी की बैठकें भी यहां पर हैं, गोकुल के पास काम्यवन से भगवान् श्री कृष्णजी का नाता जरूर था, कहते हैं कि राधाजी की कृष्णजी से पहली मुलाकात नंदगांव और बरसाने के बीच हुयीं।
एक-दूसरे को देखने के बाद दोनों में सहज ही एक-दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ गया, माना जाता है कि यहीं से राधा-कृष्ण के प्रेम की शुरुआत हुई, इस स्थान पर आज एक मंदिर है, इसे संकेत स्थान कहा जाता है, मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है, उस वक्त श्री कृष्ण की उम्र क्या रही होगी?
यहां हर साल राधाजी के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है, इन दिनों लाड़ली मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्घालु आते हैं और राधा-कृष्ण के प्रथम स्थल पर आकर इनके शाश्वत प्रेम को याद करते हैं, वृंदावन मथुरा से ज्यादा दूर नहीं है। मथुरा कंस का नगर है, श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातियों के साथ नंदगांव से वृंदावन में आकर बस गए थे।
विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है, यहां श्रीकृष्ण ने कालिया का दमन किया था, भाई-बहनों! मुझे लगता है कि पोस्ट बहुत बड़ी बन गयी है और मुझे तजुर्बा है कि बड़ी पोस्ट आप लोग पढ़ते नहीं, भगवान् श्री कृष्णजी और किशोरीजी राधा रानी के बारे में बहुत कुछ है, अत: इसी विषय पर किसी और दिन जानने की कोशिश करेंगे, आज शुक्रवार की सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हो।
जय श्री राधे राधे!
जय श्री कृष्ण!