Kinnaur :- Ardhanarishwar - ShivaShakti"Kinner Kailash"

Kinnaur :- Ardhanarishwar - ShivaShakti"Kinner Kailash" Kinner kailash situated in kinnaur
and also called Ardhnarishwar kailash
or Banasur Kailash
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सिलिंग महादेव" (किन्नौर)सौलारिंग की पहाडियां में यह स्थान हैं इस वायरल पोस्ट को पढ़े जानें। लोक मान्यताओं के अनुसार माता ...
13/07/2023

सिलिंग महादेव" (किन्नौर)
सौलारिंग की पहाडियां में यह स्थान हैं इस वायरल पोस्ट को पढ़े जानें।

लोक मान्यताओं के अनुसार माता गौरी ने यहीं पर भगवान शिव की प्राप्ति के लिए कठिन तपस्या की थी। उन्होंने अपने निवास स्थान के ठिक सामने #सिलिंग पर्वत के शिखर पर सिंह रूपी #शिवलिंग की स्थापना की और उस शिवलिंग की कठोर उपासना करती रही। अन्त में जब भगवान शिव, गौरी माता के तपस्या से प्रसन्न हुए तब भगवान शिव ने गौरी माता को शिव रूपी महादेव का वर प्रदान किया। गौरी माता के द्वारा उपासित वह प्राचीन शिवलिंग आज भी सिलिंग पर्वत माला के चोटी पर मौजूद है। इस शिवलिंग के दर्शन #शिमला से # किन्नौर आते वक्त कई जगहों से होते हैं। यह शिवलिंग आम लोगों में उतना प्रसिद्ध नहीं है, जितने की अन्य शिवलिंग है। जब कि यह शिवलिंग पौराणिक और मानव के समझ से परे, देवों के पूजनीय #शिवलिंग है। गौरी माता द्वारा पूजित शिवलिंग किन्नौर के निचार खण्ड में आता है। यह शिवलिंग #सुंगरा (ग्रोसनम) गांव के सामने सतलुज नदी के दुसरी ओर #सौलारिंग गांव के ऊपर सिलिंग पर्वत की चोटी पर स्थित है। इस पर्वत का नाम सिलिंग ( सिंह शिव लिंग) के कारण पड़ा । सिलिंग पर्वत प्रसिद्ध धौलाधार पर्वत माला का हिस्सा है। सिलिंग पर्वत की दुसरी तरफ "वाङपो घाटी" (भावा वैली) है। सौलारिंग से शिवलिंग तक पहुंच पाना नामुम्किन ही नहीं बल्कि असम्भव है। लेकिन भावा घाटी के #मुलिंग से केवल साहसी लोग उक्त शिवलिंग तक पहुंचने का साहस कर सकते है। आप... नारकंडा, किंगल, झाखड़ी, सराहन और तराण्डा, पौण्डा, बरी, काचे, कंगोस यानी पुरे क्षेत्र से इस शिवलिंग के साफ दर्शन कर सकते है। पौण्डा गांव के "थानङ कौलधारङ" से इस शिवलिंग के अविश्वसनीय दर्शन करने को मिलते है!
ग्रोसनम की गौरी माता आज के युग में भी इस शिवलिंग की पुजा नियम अनुसार करती है। यह शिवलिंग मानव के अलावा देवों के द्वारा पुजित, आलौकिक शिवलिंग है। जिसका रूप #सिंह और #हुवाहु लिंग जैसा है। यह सिंलिंग एक दिव्य लिंग है, जिसके दर्शन मात्र से आत्मशुद्धी के साथ साथ मानवीय इच्छाओं की पूर्ति भी होती है। क्योंकि यह शिवलिंग केवल देवों द्वारा पूजित शिवलिंग है। जब भी मानव इस दिव्य शिवलिंग के दर्शन करता है तो उस की अत्या रूह कांप उठती है। इस शिवलिंग के दर्शन एवं पूजा से पूर्व माता गौरी और महादेव जी का आशीर्वाद अवश्य लें।
Kinnaur Ab Tak

 #राजा बाणासुर #शोणितपुर_सराहन किन्नर पौराणिक कथाओं के नायक बाणासुर एक पौराणिक चरित्र को कई हिंदू पौराणिक ग्रंथों में शो...
11/07/2023

#राजा बाणासुर #शोणितपुर_सराहन

किन्नर पौराणिक कथाओं के नायक बाणासुर एक पौराणिक चरित्र को कई हिंदू पौराणिक ग्रंथों में शोणितपुर (सरहान बुशहर) के अजेय प्राचीन राजा के रूप में वर्णित किया गया है, कई हिंदू पुराणों के अनुसार बाणासुर एक हजार भुजाओं वाला असुर था।बाणासुर राजा बली का सबसे बड़ा पुत्र था। मत्स्य पुराण में माता का नाम विंध्यवली दिया गया है।उसका प्रभाव इतना प्रबल और भयंकर था कि उसके सामने अनेक राजा और देवता काँप उठते थे। बाणासुर भगवान शिव का एक उत्साही भक्त था। विश्वकर्मा द्वारा उन्हें दिए गए एक शिव रासलिंगन की पूजा करता था। जब भगवान शिव तांडव नृत्य कर रहे थे,तब उन्होंने अपनी हजार भुजाओं का उपयोग मृदंग बजाने के लिए किया था। त्रिलोक का स्वामी बनने की इच्छा से बाणासुर तप करने कैलाश मानसरोवर गया और मानसरोवर झील के पास वहां उसने भगवान शिव शक्ति की कठिन तपस्या की और शिव सती ने तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तो उसने कहा इस संसार में आप दोनो के अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए आप दोनो से बडकर इस संसार में क्या है।मुझे आप दोनो पुत्र के रूप में चाहिए। देवता साहिब ने उसे वरदान दे दिया और कहा की हमारी तरह बलवान 18 पुत्र पुत्रियां तेरे बेटे कहलाएंगे इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।

#बाणासुर की वंशावली:
ब्रह्म-मरीचि-कश्यप-हिरण्यकश्यप-
प्रह्लाद-विरोचन-बलि-बाणासुर

#जैसे ही बाणासुर वरदान प्राप्त करने के बाद मानसरोवर से नीचे की ओर वापिस आ रहा था तो वो राक्षस ताल पहुंचा वहां उसने देखा कि रास्ते में 7 बहने नदियां आपस में झगड़ रही है।तो बाणासुर वहां पहुंचा अब वो वरदान पाकर दिव्य पुरुष हो गया था।तो उसने सभी 7 बहनों के झगड़े को सुलझाया और सबको अपनी-अपनी राह दिखा दी,और अंत में सतलुज नदी को अपने साथ कैलाश के पत्थर से राह दिखाते हुए अपने साथ लाए और उस पत्थर को किन्नौर में ही स्थापित कर दिया जिसे लोग आज किन्नर कैलाश के नाम से जानते है।वो स्वयं बाणासुर द्वारा कैलाश से लाया गया शक्तिशाली पत्थर है।

किन्नर लोक कथाओं के अनुसार बाणासुर ने हिरमा (हिडिमा) से पहली मुलाकात मुलुट धार में की और दोनो को एक दूसरे से प्यार हो गया और गुपचुप तरीके से दोनों का गंधर्व विवाह हुआ। वे बाद में गोरबोरिंग गुफा सुंगरा में रहे और उनका मिलन 7 पुत्र पुत्रियों का कारण बना। शिव भगवान के वरदान के कारण सभी पुत्र महेश्वर कहलाए और पुत्रियां दुर्गा कहलवाई।जो सभी उनके समान ही तेजवान थे।और सभी अनेक शक्तियों के स्वामी थे।

उनके 7 पुत्र-पुत्रियां इस प्रकार से है:-1)चंडिका-कोठी गांव,2)सुंगरा मेशर-ग्रोसनाम,3)भाभा मेशर-ग्रामांग, 4)चगाओं मेशर-थोलंग राजग्रामांग घाटी,5)उषा(ऊखा)-निचार, 6)चित्रलेखा-तरंडा दुर्गा, 7)पिरासन-नाथपा। #नोट:-(महेश्वर कितने भाई -बहन हैं, ये तो कह पाना कठिन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार 7 महेश्वरों का वर्णन मिलता है परंतु कुछ कहानियों के अनुसार 18 महेश्वर भाई-बहन का जिक्र मिलता है। हम किसी भी मान्यता या कहानी का खंडन नहीं करना चाहते परंतु इस सन्दर्भ में कुछ भी लिख या कह पाना विवादास्पद होगा। बल्कि ये एक शोध का विषय है।तो इस संदर्भ में व्यर्थ की टिक्का टिप्पणी न करें।)
बाणासुर के पास सेना नही थी।तो उसने अपने पुत्रों को कहा की जाओ और क्षेत्र पर कब्जा करो।और उन्होंने सभी ठाकुरों को हरा दिया और सबके किलों पर विजय प्राप्त कि।और बाणासुर ने कामरू में अपना राज्य स्थापित किया।और राजधानी शोणितपुर ले गया और वहीं से वो राज करने लगा।
बाणासुर की पुत्री उषा ने सपने में भगवान श्रीकृष्‍ण के पौत्र और प्रद्युम्‍न के पुत्र अनिरुद्ध को देखा और प्यार हो गया। उषा की सखी चित्रलेखा ने अपनी माया से अनिरुद्ध का चित्र बनाया और उषा को दिखाकर पूछा, “क्या तुमने इन्‍हीं को सपने में देखा था? उषा ने कहा, हां यही हैं जिन्हें सपने में मैंने देखा और प्रेम हो गया। चित्रलेखा ने द्वारिका जाकर सोते हुए अनिरुद्ध को उनके पलंग समेत उठाकर उषा के म‍हल में पहुंचा दिया। नींद खुलने पर अनिरुद्ध के पूछने पर उषा ने बताया कि वह वाणासुर की पुत्री हैं और पति के रूप में उन्‍हें पाने की इच्छा रखती हैं। अनिरुद्ध भी उषा के सौंदर्य पर मोहित हो गए थे।पहरेदारों ने अनिरुद्ध की उपस्थिति के बारे में वाणासुर को सूचना दी।यही सोचकर युद्ध के लिए अस्‍त्र-शस्‍त्र के साथ वाणासुर अपनी पुत्री के महल में पहुंचा तो वहां उसने अनिरुद्ध को बैठा देखा।वाणासुर ने अनिरूद्ध को बंदी बना लिया। यह खबर द्वारिका पहुंची तो श्रीकृष्‍ण ने अपने भाई बलराम और पूरी सेना के साथ वाणासुर के नगरी शोणितपुर पर आक्रमण कर दिया। श्रीकृष्ण के संग वाणासुर का भयंकर युद्ध होने लगा। खुद को पराजित होता देख वाणासुर ने भगवान शंकर को याद किया। वरदान के अनुसार वाणासुर की मदद के लिए भगवान शिव रुद्रगणों के साथ श्रीकृष्ण से युद्ध करने आ गए। शिवजी के साथ श्रीकृष्ण का भयंकर संग्राम हुआ फिर श्रीकृष्ण की विनती पर भोलेनाथ वाणासुर को श्रीकृष्ण का रहस्य बताकर कैलाश चले गए।और बाणासुर की युद्ध में पराजय हुई।और बाणासुर स्वयं भगवान श्री कृष्ण की शरण में आ गया।
बाणासुर के अंत के बाद सभी भाई बहनों में बंटवारा हुआ।बंटवारा चंडिका कोठी देवी जी ने किया।और सभी भाई बहनों को हिस्सा बांट दिया।और अपने पास उन्होंने सायराग क्षेत्र रख दिया।और आज महेश्वर कुल पूरे किन्नौर में पूजित है। जय हो देवता साहिब महेश्वर जी की🙏❤️🙏

नोट:- उपरोक्त लिखित इतिहास जनश्रुति और लोक कथाओं एवं किस्से कहानियां पर आधारित है। इससे हम किसी भी समुदाय या धर्म को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते हैं।इसके पश्चात अगर हमसे कोई भी त्रुटि हुई हो तो हम क्षमा प्रार्थी हैं।

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