26/06/2016
उत्तराखंड के गढ़वाल में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में प्रसिद्ध केदरानाथ धाम के अलावा चार अन्य मंदिर कल्पेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और मदमहेश्वर भी हैं, जिनमें महादेव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। इन मंदिरों को सम्मिलित रूप से ‘पंचकेदार’ के नाम से जाना जाता है।
कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा, रुद्रनाथ में मुख, तुंगनाथ में भुजा और मदमहेश्वर में नाभि की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान पर पहुंचते हैं। गर्भगृह तक पहुंचने का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर गुजरता है।
रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2,286 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालुओं को एक किलोमीटर की दूरी से ही भगवान रुद्रनाथ के दर्शन हो जाते हैं। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम गांव से होकर द्रमुक गांव से गुजरता है लेकिन यह मार्ग कुछ कठिन होने के कारण श्रद्धालुओं को वहां तक पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए तीर्थयात्री दूसरे मार्ग से रुद्रनाथ जाना पसंद करते हैं जो गोपेश्वर के समीप सगर गांव से गुजरता है।
रद्रनाथ मंदिर की चारों दिशाओं में सूर्यकुंड, चंद्रकुंड, ताराकुंड और मानसकुंड नामक चार कुंड हैं। मंदिर से पर्वत श्रृंखलाओं के बीच नंदा देवी, त्रिशूल, नंदा घुंटी और दूसरी चोटियां दिखाई देती हैं जिनसे यह स्थान किसी देवलोक जैसा प्रतीत होता है। मंदिर के प्रांगण की सीढ़ियों के पास एक छोटा जलस्रोत है, जिसे नारद कुंड के नाम से जाना जाता है।
धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इसी स्थान पर उसका आत्मा वैतरणी पार करता है। इसके बाद ही वह आत्मा दूसरे जीवन में प्रवेश करता है। इसीलिए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के क्रिया, कर्म, तर्पण तथा उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रुद्रनाथ मंदिर में जाते हैं।
पंचकेदार में तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां भगवान शिव की भुजा रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है।
चौखम्बा शिखर की तलहटी में 3,289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर मंदिर में भगवान् शिव की पूजा-अर्चना नाभि लिंगम के रूप में की जाती है। उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में निर्मित इस मंदिर के आसपास प्राकृतिक सुषमा दर्शनीय है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव.पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि (सुहागरात) यहीं मनाई थी।
प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही ‘मोक्ष प्राप्ति’ के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं। मंदिर से केदारनाथ और नीलकंठ की पर्वत श्रेणियां दिखाई देती हैं।
मदमहेश्वर जाने के लिए एक रास्ता गोंडार से खड़ी चढ़ाई का है और दूसरा रास्ता मनसूना (ऊखीमठ के पास) से भी गुजरता है।