Shiwam Helicopter Sewa

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Shiwam Helicopter Sewa Chardham Helicopter Service in Association with Shiwam Helicopter Sewa and Khalsa Udaan found by Sardar Sewa Singh ji Matharu, Dehradun Uttarakhand

Our Company
Chardham Helicopter Service in Association with Shiwam Helicopter Sewa and Khalsa Udaan found by Sardar Sewa Singh ji Matharu, Dehradun Uttarakhand to introduce affordable helicopter NON Schedule Flight in North India, ownership to businessmen and leisure travelers. It was the first helicopter Service Provider for Chardham yata, All Charter in India to set the standard for quality of a

ircraft, safety and service. Initially the fleet consisted of new AS-350 B3 / Bell 4O7 executive class helicopters. Safety, however, goes deeper than that. The safe conduct of our passengers to and from their destinations is part of our commitment to customer service. And that means we are constantly seeing to the technical quality and overall maintenance of our fleet. We hold our staff, especially our pilots, to the highest standards of Ex INDIAN AIR FORCE personal and professional conduct. That means you can not only trust that the helicopter in which you are sitting is properly maintained, but that the man or woman behind the wheel has skills that are up to date as well. Piloting skill, after all, is perishable, like most human skills. It must be nurtured and maintained just as every other learned, trained skill. To ensure the safety of our passengers, the proper maintenance and use of our flying equipment, and conduct of our helicopter personnel, we engage in the following ongoing program of safety checks, maintenance, and protocols: – We maintain all of aircraft operator safety records to the highest and most current FAA USA certification standards. This means constantly monitoring and updating this paperwork as needed to keep it.

26/06/2016

उत्तराखंड के गढ़वाल में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में प्रसिद्ध केदरानाथ धाम के अलावा चार अन्य मंदिर कल्पेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और मदमहेश्वर भी हैं, जिनमें महादेव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। इन मंदिरों को सम्मिलित रूप से ‘पंचकेदार’ के नाम से जाना जाता है।

कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा, रुद्रनाथ में मुख, तुंगनाथ में भुजा और मदमहेश्वर में नाभि की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान पर पहुंचते हैं। गर्भगृह तक पहुंचने का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर गुजरता है।

रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2,286 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालुओं को एक किलोमीटर की दूरी से ही भगवान रुद्रनाथ के दर्शन हो जाते हैं। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम गांव से होकर द्रमुक गांव से गुजरता है लेकिन यह मार्ग कुछ कठिन होने के कारण श्रद्धालुओं को वहां तक पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए तीर्थयात्री दूसरे मार्ग से रुद्रनाथ जाना पसंद करते हैं जो गोपेश्वर के समीप सगर गांव से गुजरता है।

रद्रनाथ मंदिर की चारों दिशाओं में सूर्यकुंड, चंद्रकुंड, ताराकुंड और मानसकुंड नामक चार कुंड हैं। मंदिर से पर्वत श्रृंखलाओं के बीच नंदा देवी, त्रिशूल, नंदा घुंटी और दूसरी चोटियां दिखाई देती हैं जिनसे यह स्थान किसी देवलोक जैसा प्रतीत होता है। मंदिर के प्रांगण की सीढ़ियों के पास एक छोटा जलस्रोत है, जिसे नारद कुंड के नाम से जाना जाता है।

धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इसी स्थान पर उसका आत्मा वैतरणी पार करता है। इसके बाद ही वह आत्मा दूसरे जीवन में प्रवेश करता है। इसीलिए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के क्रिया, कर्म, तर्पण तथा उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रुद्रनाथ मंदिर में जाते हैं।

पंचकेदार में तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां भगवान शिव की भुजा रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है।

चौखम्बा शिखर की तलहटी में 3,289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर मंदिर में भगवान् शिव की पूजा-अर्चना नाभि लिंगम के रूप में की जाती है। उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में निर्मित इस मंदिर के आसपास प्राकृतिक सुषमा दर्शनीय है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव.पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि (सुहागरात) यहीं मनाई थी।

प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही ‘मोक्ष प्राप्ति’ के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं। मंदिर से केदारनाथ और नीलकंठ की पर्वत श्रेणियां दिखाई देती हैं।

मदमहेश्वर जाने के लिए एक रास्ता गोंडार से खड़ी चढ़ाई का है और दूसरा रास्ता मनसूना (ऊखीमठ के पास) से भी गुजरता है।

26/06/2016

उत्तराखंड का हिन्दू संस्कृति और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ जैसे कई सिद्ध तीर्थ स्थल हैं। सारी दुनिया में भगवान शिव के करोड़ों मंदिर हैं परन्तु उत्तराखंड स्थित पंच केदार सर्वोपरि हैं। भगवान शिव ने अपने महिषरूप अवतार में पांच अंग, पांच अलग-अलग स्थानों पर स्थापित किए थे। जिन्हें मुख्य केदारनाथ पीठ के अतिरिक्त चार और पीठों सहित पंच केदार कहा जाता है।

पंच केदार कहे जाने वाले तीर्थ
1 . केदारनाथ
2. मध्यमेश्वर
3. तुंगनाथ
4. रुद्रनाथ
5. कल्पेश्वर

18/05/2016
08/04/2016

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