Kashi Walk

Kashi Walk बनारस शहर को देखने के कई नजरिये है। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया है ।
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12/03/2022
20/01/2022
  - श्री प्रकाश | कानूनविद व समाजसेवी ||बनारस|धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले संविधान सभा के सदस...
03/08/2021

- श्री प्रकाश | कानूनविद व समाजसेवी ||बनारस|

धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले संविधान सभा के सदस्य पद्मविभूषण श्री प्रकाश का जन्म काशी की पुण्य धरती पर आज ही के दिन यानी 3 अगस्त सन् 1890 को डॉ. भगवान दास के घर हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक काशी में ही प्राप्त की। बनारस के सेन्ट्रल हिंदू स्कूल से उन्होंने माध्यमिक शिक्षा और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बी.ए. की परिक्षा उत्तीर्ण की।

वे एक अच्छे कानूनविद् थे। उन्होंने कानून की पढ़ाई इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्विद्यालय से पूरी की।

पद्मविभूषण श्री प्रकाश महोदय स्वतंत्र भारत में पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री भी रहे, इसके अलावा उन्होंने कुछेक राज्यों में राज्यपाल का पदभार भी संभाला।

पद्मविभूषण श्री प्रकाश समाज सेवा में भी हमेशा अग्रणी रहे। वाराणसी में उन्होंने अग्रवाल समाज, काशी सेवा समिति तथा अन्य कई संस्थाओं की स्थापना की। वे महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के परम मित्र थे, उन्होंने इन लोगों के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई।

आज उनके जन्म दिन के अवसर पर काशी वॉक के पूरे परिवार की तरफ से इस महान विभूति को शत् शत् नमन।

लेखन : रंजना पटेल(टीम "काशी वॉक")
https://www.facebook.com/ranjana.patel.520
संपादन : स्मृति सिंह(टीम"काशी वॉक")
https://www.facebook.com/smritisingh29
पोस्टर : राजन विश्वकर्मा(टीम"काशी वॉक")
https://www.facebook.com/rajan.vishawakarma.12
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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

दही - गुड़ खिलाकर शिव गोविंद भाई को  भारत वॉक की यात्रा मंगलमय होने की कामना के साथ उन्हें कल विदा किया गया। आप अभी प्रया...
03/08/2021

दही - गुड़ खिलाकर शिव गोविंद भाई को भारत वॉक की यात्रा मंगलमय होने की कामना के साथ उन्हें कल विदा किया गया। आप अभी प्रयागराज पहुंच चुके हैं और अगला गंतव्य चित्रकूट है, यात्रा वृतांत इसी तरह से आपको बताता रहूँगा।

  - जटार घाट(चोर घाट)।इस घाट का निर्माण ग्वालियर के राजा जीवाजी राव शिंदे के दीवान बालाजी चिम्नाजी जटार ने करवाया था। इस...
26/07/2021

- जटार घाट(चोर घाट)।

इस घाट का निर्माण ग्वालियर के राजा जीवाजी राव शिंदे के दीवान बालाजी चिम्नाजी जटार ने करवाया था। इस घाट के ऊपर में बहुमंजिला इमारत का निर्माण भी उन्होंनें ही करवाया था। ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स प्रिंसेप ने इस घाट को चोर घाट कहा है, क्योंकि स्थानीय लोगों का कहना था कि पहले इस घाट पर स्नान करने वाले लोगों के सामान चोरी हो जाते थे। इसलिए यह घाट चोर घाट के नाम से प्रचलित हो गया। घाट पर बाला जी जटार द्वारा निर्मित कराया हुआ "लक्ष्मीनारायण" का प्राचीन मंदिर भी स्थित है, जो अपने निर्माण कला का अनूठा उदाहरण माना जाता है। यह मंदिर रंगबिरंगी कांच से निर्मित है। जिसके कारण इसे जड़ाऊ मंदिर भी कहा जाता है। घाट स्थित गंगा में कालगंगा तीर्थ की भी स्थिति मानी जाती है।
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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  - राम घाट। जयपुर के राजा सवाई मानसिंह ने इस घाट और घाट पर ही स्थित राम पंचायतन मंदिर का निर्माण करावाया था। यहाँ रामपं...
12/07/2021

- राम घाट।

जयपुर के राजा सवाई मानसिंह ने इस घाट और घाट पर ही स्थित राम पंचायतन मंदिर का निर्माण करावाया था। यहाँ रामपंचायतन मंदिर स्थित होने के कारण ही इस घाट का नाम "राम घाट" पड़ा। इस मंदिर को औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिया गया था फिर 18 वीं शताब्दी में इसका पुनःनिर्माण सवाई मान सिंह ने करवाया। पहले यह घाट मेहता घाट तक विस्तृत था। पुरातन ग्रंथों के अनुसार घाट के सामने गङ्गा में राम, ताम्रवराह, इन्द्रद्युम्न और इक्ष्वाकु तीर्थों की उपस्थिति मानी जाती है। इस घाट के बगल में ही संग वेद विद्यालय स्थापित है, जहाँ वेद की शिक्षा दी जाती है तथा शांति निकेतन में संगीत और संस्कृति की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस घाट पर रामनवमी पर गङ्गा में स्नान व दर्शन की विशेष मान्यता है। इस घाट पर महाराष्ट्र के लोक देवता खंडोबा का मंदिर भी स्थित है। मराठी समुदाय के लोग खंडोबा देवता का पूजन करते हैं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। बनारस महायोजना-2031 के तहत इस घाट के 200 मीटर के अंदर कोई भी दुकान और भवन निर्माण पर रोक लगा दिया गया है।
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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  - मेहता घाट। वर्ष 1960 के शुरुआत में पश्चिम बंगाल के व्यापारी बल्लभ राम शालिग्राम मेहता ने घाट की जमीन खरीद कर इसे पक्...
10/07/2021

- मेहता घाट।

वर्ष 1960 के शुरुआत में पश्चिम बंगाल के व्यापारी बल्लभ राम शालिग्राम मेहता ने घाट की जमीन खरीद कर इसे पक्का घाट बनावाया तभी से इसे "मेहताघाट" के नाम से जाना जाने लगा। पहले यह राम घाट का ही कच्चा हिस्सा था। इस घाट पर कोई मंदिर तो नही है लेकिन इसके ऊपरी हिस्से में मेहता अस्पताल एवं प्रसिद्ध सांगवेद संस्कृत विद्यालय स्थित है। घाट के पास महाराष्ट्र के लोगों की अधिकता है। यह घाट पक्का एवं स्वच्छ है। इस घाट का धार्मिक महत्व कम होने के कारण यहाँ स्थानीय निवासी ही स्नान करते हैं।
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  - गणेश घाट। 18वीं सदी के पहले पूणे के अमृतराव पेशवा ने अग्निश्वर और रामघाट के एक हिस्से का पक्का निर्माण कराया और इसे ...
04/07/2021

- गणेश घाट।

18वीं सदी के पहले पूणे के अमृतराव पेशवा ने अग्निश्वर और रामघाट के एक हिस्से का पक्का निर्माण कराया और इसे नई पहचान दी। उन्होंने यहाँ अमृत विनायक(गणेश भगवान) मंदिर का निर्माण कराया। इस प्रचीन मंदिर के स्थित होने के वजह से ही इस घाट का नाम "गणेश घाट" पड़ा। यह घाट भोंसले घाट के बाद स्थित है। देवों में प्रथम होने की वजह से गणेश घाट की मान्यता विशेष तौर पर है। गंगा और भगवान गणेश से जुडे़ सभी प्रमुख आयोजन इस घाट और मंदिर पर किए जाते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र के लोगों की आस्था भी इस घाट और मंदिर के प्रति काफी है।
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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  : लाल बहादुर शास्त्री।|स्वतंत्रता सेनानी एवम् राजनेता||वाराणसी|जन्म - भारत के दूसरे प्रधानमंत्री एवम् स्वतंत्रता सेनान...
24/06/2021

: लाल बहादुर शास्त्री।|स्वतंत्रता सेनानी एवम् राजनेता||वाराणसी|

जन्म - भारत के दूसरे प्रधानमंत्री एवम् स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 में वाराणसी के मुगलसराय में हुआ था।

पारिवारिक जीवन - सत्य और अहिंसा के पुजारी, मुख्य रूप से पूर्ण रूपेण गाँधीवादी नेता श्री लाल बहादुर शास्त्री के पिता का नाम श्री मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था, जो की प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे। उनकी माता का नाम श्रीमती राम दुलारी था। बचपन में सभी लाल बहादुर शास्त्री को नन्हें के नाम से पुकारते थे। उनका विवाह श्री गणेश प्रसाद की पुत्री ललिता के साथ हुआ। उन्होंने अपने विवाह में दहेज स्वरूप बस एक चरखा और कुछ मीटर हाथों से बुना हुआ कपड़ा लेकर अपनी सादगी का परिचय दिया।

शिक्षा-दीक्षा - भारत रत्न श्री लाल बहादुर शास्त्री की प्रारंभिक शिक्षा उनके पिता के देहांत हो जाने के कारण उनके ननिहाल में हुई। आगे जाकर उन्होंने हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। उसके उपरांत उन्होंने वाराणसी के ही महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि ली।

राजनीतिक जीवन - श्री लाल बहादुर शास्त्री के राजनीतिक मार्गदर्शक श्री पुरुषोत्तम टंडन, पंडित गोविंद बल्लभ पंत और श्री जवाहर लाल नेहरू रहे। श्री लाल बहादुर शास्त्री ने स्वतंत्रता संग्राम में खुलकर भागीदारी की। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ सन् 1921 में असहयोग आंदोलन, सन् 1930 में दांडी मार्च और सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में पूर्ण रूप से सक्रिय भूमिका निभाई। श्री जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल में वो उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव नियुक्त हुए। पंडित गोविंद बल्लभ पंत के कार्यकाल में उन्हें उत्तर प्रदेश के पुलिस एवम् परिवहन मंत्रालय सौंपा गया। परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने पहली बार महिला कंडक्टर्स की नियुक्ति की एवम् पुलिस मंत्री के रूप में उन्होंने ही पहली बार भीड़ नियंत्रण के लिए लाठी चार्ज की जगह पानी की बौछार का इस्तेमाल शुरू किया।

प्रधानमंत्री कार्यकाल - भारत रत्न श्री लाल बहादुर शास्त्री 9 जून सन् 1964 से 11 जनवरी सन् 1966 तक अठारह माह के लिए भारत के दूसरे प्रधानमंत्री रहे। उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध हुआ। जिसमें उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए पाकिस्तान को युद्ध में करारी शिकस्त दी।

मृत्यु - 11 जनवरी सन् 1966 में ताशकंद सोवियत संघ रूस में श्री लाल बहादुर शास्त्री की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयुब खान के साथ युद्ध समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर करने के उपरांत रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गई।
उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

लेखन : रंजना पटेल(टीम "काशी वॉक")
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  - भोंसले घाट(नागेश्वर घाट)। महाराष्ट्र के नागपुर क्षेत्र के भोंसले वंश के महाराजा ने सन् 1795 में घाट पर एक महल का निर...
23/06/2021

- भोंसले घाट(नागेश्वर घाट)।

महाराष्ट्र के नागपुर क्षेत्र के भोंसले वंश के महाराजा ने सन् 1795 में घाट पर एक महल का निर्माण करवाया। इसी वजह से घाट का नाम "भोंसले घाट" पड़ा। काशी की महत्ता का सम्मान करते हुए घाट को पक्का और यहाँ महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कला के तौर पर महल का निर्माण करवाया गया था। पहले घाट को "नागेश्वर घाट" के नाम से पुकारा जाता था, क्योंकि घाट पर एक बहुत पुराना नागेश्वर नाथ मंदिर है, जिसका काशी के 12 ज्योतिर्लिंगों में भी प्रमुख स्थान है। घाट पर ही मराठा स्थापत्य कला का प्रतीक महल आज भी मौजूद है जिसमें लक्ष्मीनारायण और रघुराजेश्वर आदि शिव मंदिर विराजमान हैं। घाट पर ही महल का प्रवेश द्वार है। घाट पर ज्यादातर महाराष्ट्र से आने वाले सैलानियों का जमावड़ा रहता है।
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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  - गंगा महल घाट(द्वितीय)2nd।ग्वालियर के महाराजा सियाजी राव सिंधिया ने सन् 1864 में इस घाट को खरीदा और इसका पुर्ननिर्माण...
20/06/2021

- गंगा महल घाट(द्वितीय)2nd।

ग्वालियर के महाराजा सियाजी राव सिंधिया ने सन् 1864 में इस घाट को खरीदा और इसका पुर्ननिर्माण करवाया और यहीं एक विशाल महल का भी निर्माण करवाया। घाट पर इस महल की स्थिति के कारण ही इस घाट को "गंगा महल घाट" कहा जाता है। महल में प्रवेश करने के दो रास्ते घाट से ही बने हुए हैं। इस महल में कृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्रि, रामनवमी व अन्य त्यौहारों पर कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। इस घाट पर एक बहुत पुराना लक्ष्मीनारायण का मंदिर भी स्थित है। अभी यह घाट काफी स्वच्छ रहता है। घाट की धार्मिक उपयोगिता कम होने के बावजूद भी यहाँ स्थानीय लोग प्रतिदिन स्नान करते हैं। सिंचाई विभाग द्वारा राज्य सरकार के सहयोग से सन् 1988 में घाट का मरम्मत का कार्य करवाया गया।

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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  : गोपीनाथ कविराज।|लेखक एवम् मनीषी||बनारस|जन्म - महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज का जन्म 7 सितंबर सन् 1887 को एक बंगा...
19/06/2021

: गोपीनाथ कविराज।|लेखक एवम् मनीषी||बनारस|

जन्म - महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज का जन्म 7 सितंबर सन् 1887 को एक बंगाली परिवार में ब्रिटिश भारत के धमरई जिला ढाका में एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री बैकुंठनाथ बागची था। कविराज उन्हें सम्मान में कहा जाता था।

शिक्षा-दीक्षा - संस्कृत, योग और तंत्र के प्रकांड विद्वान महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज की शिक्षा-दीक्षा जयपुर और वाराणसी में हुई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा श्री मधुसूदन ओझा और विद्वान शशिधर 'तर्क चूड़ामणि' के निर्देशन में जयपुर में हुई। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा वाराणसी के क्वींस कॉलेज से पूरी की। क्वींस कॉलेज से एम. ए. करने के बाद वे 1923 से 1937 तक वाराणसी के शासकीय संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य रहे। इसके साथ ही वे सरस्वती भवन ग्रंथमाला के संपादक भी रहे थे।

ग्रंथ - श्री श्री विशुद्धनंद प्रसंग, तांत्रिक साधना, अखंड योग, भारतीय साधना की धारा, श्री कृष्ण प्रसंग, मृत्यविज्ञान और कर्मरहस्य, त्रिपुर रहस्य, गोरख सिद्धांत संग्रह, साहित्य चिंतन, सिद्ध भूमि ज्ञानगंज(बंगाली)।

सम्मान - सन् 1964 में उन्हें तांत्रिक बाग्ड:य में शाक्त दृष्टि के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार(संस्कृत) प्राप्त हुआ। उन्हें सन् 1964 में ही भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण प्राप्त हुआ। सन् 1956 में काशी हिंदू विश्विद्यालय से उन्हें डी.लिट की उपाधि मिली।

मृत्य -12 जून सन् 1976 को काशी में इस महान मनीषी का देहांत हो गया।

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  - संकठा घाट(यमेश्वर घाट)।इस घाट का निर्माण विश्वम्भर दयाल की पत्नी ने सन् 1825 में करवाया था। घाट पर संकठा देवी का मंद...
15/06/2021

- संकठा घाट(यमेश्वर घाट)।

इस घाट का निर्माण विश्वम्भर दयाल की पत्नी ने सन् 1825 में करवाया था। घाट पर संकठा देवी का मंदिर स्थित होने से घट घाट का नाम "संकठा घाट" पड़ा। पहले इस घाट का नाम यमेश्वर घाट था। घाट के आस-पास के क्षेत्र को देवलोक कहा जाता था। पहले यह घाट गंगा महल तक फैला हुआ था। घाट पर ही बड़ौदा के राजा का महल बना हुआ है, जिसे उनकी महारानी ने बनवाया था। घाट क्षेत्र में यमेश्वर शिव एवं हरिश्चन्द्रेश्वर मंदिर स्थित होने के कारण पहले यह घाट श्मशान घाट था। जब पाँचों पांडव अज्ञातवास में थे तो उस समय वह आनंद वन (काशी को पहले आनंद वन भी कहते थे) आये थे और माँ संकठा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर बिना अन्न-जल ग्रहण किये ही एक पैर पर खड़े होकर पाँचों भाईयों ने पूजा की थी। इसके बाद माँ संकठा प्रकट हूईं और आशीर्वाद दिया कि गौ माता की सेवा करने पर उन्हें लक्ष्मी व वैभव की प्राप्ति होगी। पुरोहितों के मतानुसार घाट के सम्मुख वीर व चन्द्र आदि तीर्थ की मान्यता है। घाट क्षेत्रों में गुजराती, मराठी समाज की अधिकता है। वर्ष 1965 में सिंचाई विभाग की ओर से घाट को पुन: नया स्वरूप दिया गया था। घाट पर चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र पर काफी श्रद्धालुओं का आगमन होता है। गंगा दशहरा व दीपावली पर घाट पर विशेष आयोजन होते है।
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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  - सिंधिया घाट(सिंदे घाट)((वीरेश्वर घाट))।इस घाट का निर्माण ग्वालियर के सिंधिया वंश की महारानी बैजाबाई सिंधिया द्वारा स...
14/06/2021

- सिंधिया घाट(सिंदे घाट)((वीरेश्वर घाट))।

इस घाट का निर्माण ग्वालियर के सिंधिया वंश की महारानी बैजाबाई सिंधिया द्वारा सन् 1835 में कराया गया था। इसलिए इस घाट का नाम "सिंधिया घाट" पड़ा। इस घाट को शिन्दे व वीरेश्वर घाट भी कहा जाता था। वीरेश्वर नामक आस्थावान व्यक्ति ने घाट पर आत्मवीरेश्वर शिव मंदिर बनवाया था, इसलिए इस घाट को "वीरेश्वर घाट" कहा जाता था। यह घाट मणिकर्णिका घाट के उत्तरी ओर स्थित है, यहाँ हिन्दू धर्म के लोग वीरेश्वर की पूजा अर्चना करते हैं और संतान होने की कामना करते हैं। घाट पर प्रसिद्ध रत्नेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर पीसा की प्रसिद्ध मीनार से भी अधिक कोण(लगभग 9°) पर झुका हुआ है। घाट के पास गंगा में हरिश्चंद्र एवं पर्वत तीर्थ की उपस्थिति मानी जाती है। घाट पर वीरेश्वर शिव के अलावा पर्वतेश्वर एवं दत्तात्रेयेश्वर (शिव एवं दत्तात्रेय) मंदिर भी हैं। घाट के पास ज़्यादातर गुजराती व मराठी समुदाय के लोग बसे हैं। घाट पर शैव, वैष्णव, कबीर, नानक पंथ के साधु सन्यासी रहते हैं। सन् 2014 में इस घाट का मरम्मत और विकास "नंदी" समूह के द्वारा हुआ था।

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बनारस दुनिया का प्राचीनतम जीवंत शहर है। इस शहर को देखने के कई नजरिये हैं। 'काशी वॉक' बनारस को देखने का एक नया नजरिया लेकर आया है, जिसमें हर्ष जायसवाल (स्टोरीटेलर, गाइड, मेंटर & स्पीकर) आपको न केवल बनारस दिखाते हैं बल्कि साथ में सुनाते हैं इस शहर की कहानियाँ, आपको ले जाते हैं सबसे प्राचीन जगहों पर, महसूस कराते हैं आपको बनारस का अध्यात्म। तो 'काशी वॉक' में आपका स्वागत है।

  : गोस्वामी तुलसी दास। |संत एवम् कवि| |बनारस|जन्म - गोस्वामी तुलसी दास का जन्म सन् 1511(संवत् 1589) सोरों, शूकर क्षेत्र...
11/06/2021

: गोस्वामी तुलसी दास। |संत एवम् कवि| |बनारस|

जन्म - गोस्वामी तुलसी दास का जन्म सन् 1511(संवत् 1589) सोरों, शूकर क्षेत्र कासगंज, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका जन्म स्थान विवादित है। कुछ लोग उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गाँव में मानते हैं।

पारिवारिक जीवन - गोस्वामी तुलसी दास पंडित आत्माराम दुबे और हुलसी के पुत्र थे। जन्म के कुछ दिन पश्चात ही उनकी माता का देहांत हो गया, जिसकी वजह से उनके पिता ने बालक तुलसी को अशुभ मानकर उन्हें चुनिया नाम की दासी को सौंप दिया।
गोस्वामी तुलसी दास का विवाह पंडित दीनबंधु पाठक की कन्या रत्नावली के साथ हुआ था, जिससे उन्हें अत्यधिक प्रेम था। इसी प्रेम वश एक दिन जब वह अपने मायके में थी तो, उनसे मिलने के लिए आधी रात में गोस्वामी तुलसी दास तूफान में उफनती नदी को पार करके उनके पास पहुँच गए। रत्नावली को इस बात का बहुत बुरा लगा। लोकलज्जा के भय से उन्होंने तुसली दास को कुछ इस तरह फटकार लगाई-

अस्ति चर्म मय देह मम्, जा में ऐसी प्रीति
नेकू जो होती राम से, तो कहे भव भीति?

पत्नी की इस फटकार से गोस्वामी तुलसी दास को भयंकर आघात पहुँचा, जिसके कारण वे सांसारिक जीवन से विमुख होकर श्री राम की भक्ति में लीन हो गए। उन्होंने काशी में संकट मोचन मंदिर की स्थापना करके हनुमान जी के सानिध्य में महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की, जो उनकी श्री राम के प्रति अनन्य भक्ति का उदाहरण है।

गुरु - गोस्वामी तुलसी दास ने अपने जन्म के साथ ही राम नाम का उच्चारण किया। इसलिए उनका बचपन का नाम रामबोला पद गया था। गुरु नरहरि दास ने बालक रामबोला का नामकरण तुलसीदास किया, और अयोध्या में राम-मंत्र देकर उनका दीक्षा संस्कार किया।

भाषा - भक्तिकाल की सगुण धारा के महान कवि एवम् संत गोस्वामी तुलसी दास की रचनाएँ संस्कृत एवं अवधी में हैं। उन्होंने उस काल की आम बोल चाल की भाषा अवधी को अपनी रचनाओं में विशेष बल दिया ताकि वह आम जन तक पहुँच सके।

रचनाएँ - गोस्वामी तुलसी दास की सबसे प्रमुख एवं विश्व प्रसिद्ध रचना रामचरित मानस महाकाव्य है। जिसकी विषयवस्तु हिंदू पवित्र ग्रंथ रामायण से ली गई है। उसके अलावा उन्होंने विनय-पत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य-संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, बरवै रामायण जैसी अन्य कई रचनाएँ की हैं।

मृत्यु - काशी के अस्सी घाट के किनारे सन् 1623( संवत् 1680) को श्रावण मास की सप्तमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम राम जपते-जपते अपने प्राण त्याग दिए। जो कुछ इस तरह वर्णित है-

संवत सोलह सै असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।
लेखन : रंजना पटेल(टीम "काशी वॉक")
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संपादन : स्मृति सिंह(टीम"काशी वॉक")
https://www.facebook.com/smritisingh29
पोस्टर : राजन विश्वकर्मा(टीम"काशी वॉक")
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  - मणिकर्णिका घाट। माँ पार्वती जी के कान का कुंडल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिस कारण घाट स्थित कुंड का नाम मणिकर्णिक...
10/06/2021

- मणिकर्णिका घाट।

माँ पार्वती जी के कान का कुंडल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिस कारण घाट स्थित कुंड का नाम मणिकर्णिका कुंड व घाट का नाम "मणिकर्णिका घाट" पड़ा। घाट को महाराष्ट्र के पेशवा बाजीराव के सहयोग से सदाशिव नायक ने पक्का करवाया था। पहले इस घाट का नाम चक्रपुष्कर्णी कुंड था। जिसे प्रभु विष्णु ने शिव की तपस्या करते समय अपने चक्र से बनाया था। यह घाट काशी के पाँच मुख्य घाट तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं शिव यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र बोलते हैं एवं मोक्ष प्रदान करते हैं। काशी की पंचक्रोशी यात्रा इसी घाट पर स्नान के साथ शुरू होती है। यहॉं चिता लगातार जलती रहती है। शवदाह, पिंडदान, तर्पण, मनौती व अन्य धार्मिक कार्यों के लिए यह घाट प्रमुख है। कार्तिक माह में यहाँ रामलीला का आयोजन होता है। तंत्र साधना में लीन तांत्रिकों को यहाँ सदैव देखा जा सकता है। दीपावली की रात तंत्र साधना के लिए देश-विदेश से तांत्रिक यहाँ आते हैं। घाट पर विष्णु चरण पादुका चबूतरा है, जहाँ विष्णु के चरण चिन्ह बने हैं। 40 वर्ष पहले तक इस पर केवल विशिष्ट व्यक्तियों का जिला अधिकारी की आज्ञा से शवदाह होता था। वर्तमान में पूरी तरह से प्रतिबंधित है। चैत्र नवरात्र के सप्तमी के दिन महाश्मशान महोत्सव होता है जिसमें नगर वधूओं के नाचने की परंपरा अकबर काल से ही आमेर के राजा सवाई मान सिंह के समय से शुरू होकर अब तक चली आ रही है। कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। इस घाट पर रत्नेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, वास्तुकला व नागर शैली में बने इस मंदिर के नौ डिग्री कोण पर झुका हुआ होने के कारण यह सभी को मोहित करती है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सुंदरीकरण एवं विस्तारीकरण परियोजना के तहत इस घाट का मरम्मत करवाया जा रहा है।
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  - ललिता घाट। इस घाट के पास ललिता देवी का मंदिर स्थापित है, इसे नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह ने बनवाया था। ललिता देवी ...
07/06/2021

- ललिता घाट।

इस घाट के पास ललिता देवी का मंदिर स्थापित है, इसे नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह ने बनवाया था। ललिता देवी को काशी के नवगौरियों में स्थान प्राप्त है तथा घाट स्थित गंगा को ललिता तीर्थ माना जाता है, इसलिये इस घाट का नाम "ललिता घाट" पड़ा। इस घाट पर प्रसिद्ध नेपाली मंदिर और ललिता गौरी मंदिर स्थापित है। राजा बहादुर शाह के पुत्र गिरवन युद्ध बिक्रम शाह देव ने एक मंदिर (जिसे अब नेपाली मंदिर कहा जाता है), एक धर्मशाला और ललिता घाट का निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया था। वहीं नेपाली समाज द्वारा लकड़ी से समराजेश्वर का मंदिर बनवाया गया, जो नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का प्रतीक है इसीलिए यह मंदिर नेपाली मंदिर भी कहलाता है। नेपाल नरेश महाराज राजेंद्र वीर विक्रम शाह द्वारा अपनी महारानी लक्ष्मी देव शाह की स्मृति में बनवाया गया यह देवायतन देश में पद्मनाभ पुरम के प्राचीन राज प्रासाद के बाद देश का दूसरा काष्ठ शिल्प वैभव है। मंदिर की श्रृंगारिक नक्काशी आकर्षित करती है जो कि काठमांडू शैली में निर्मित है। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर कलात्मक एवं पगोड़ा शैली का अनोखा मिसाल है। इस मंदिर की कलाकृति खजुराहो के कलाकृतियों से मिलती जुलती है। घाट पर ही सिद्धगिरि एवं उमरावगिरि मठ भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। राजस्थानी समाज के जवाहर मल ने यहॉं मुमुक्षुओं के लिए मोक्ष भवन का निर्माण कराया। मंदिर की देखरेख और संरक्षण अभी नेपाल सरकार के पास है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण व सुंदरीकरण परियोजना के तहत ललिता घाट से मणिकर्णिका घाट तक कॉरिडोर बनाया जा रहा है।
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  - मीर घाट(जरासंध घाट)।इस घाट व घाट पर स्थित एक भव्य किले का निर्माण उस समय के काशी के फौजदार रहे मीर रूस्तम अली ने सन्...
06/06/2021

- मीर घाट(जरासंध घाट)।

इस घाट व घाट पर स्थित एक भव्य किले का निर्माण उस समय के काशी के फौजदार रहे मीर रूस्तम अली ने सन् 1735 में करवाया था, उन्हीं के नाम पर इस घाट का नाम "मीर घाट" पड़ा। इस घाट का पुराना नाम जरासंध घाट था, क्योंकि घाट स्थित गंगा में जरासंध तीर्थ की स्थिति मानी जाती है। यह घाट दशाश्वमेध घाट के उत्तर में स्थित है। जरासंधेश्वर और वृद्धादित्य के चित्र भी यहाँ मौजूद हैं। जेम्स प्रिंसेप ने भी इस घाट का वर्णन किया है। घाट पर जरासंधेश्वर शिव मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर और विशालाक्षी देवी का मंदिर स्थित है। विशालाक्षी देवी का मंदिर द्रविड़ वस्तुशैली में बना हुआ है। इसका निर्माण दक्षिण भारतीय वास्तु परंपरा के अनुरूप हुआ है। काशी की नौ गौरी में शामिल विशालाक्षी देवी की वजह से चैत्र व शारदीय नवरात्रि को यहाँ पूजन, स्नान व दान की विशेष मान्यता है। घाट पर दो विशेष मठ स्थापित हैं जिनमें एक भजनाश्रम मठ है, जिसकी संपूर्ण व्यवस्था कलकत्ता के स्वर्गीय गनपत राय खेमका ट्रस्ट द्वारा की जाती है। ये मुख्यतः विधवाओं के लिए है, दूसरा मठ नानक पंथी सिखों का है, जिसके द्वारा समय समय पर गरीबों को निःशुल्क भोजन व दवा वितरण किया जाता है।
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