30/10/2024
श्रीमद्भागवत की कथा अनुसार श्री हिरण्यगर्भ से आदिनारायण और शेषनारायण दोनों एक साथ प्रकट होते हैं, इसलिये लक्ष्मणजी शेषनारायण के रूप में भगवान् के सहोदर हैं, यानी भाई "निज जननी के एक कुमारा" यह जो बोला गया, यहाँ पर शंका हुई यह तो दो भाई है, दो भाई एक कैसे? प्रकृति से भगवान् का प्राकट्य है और प्रकृति से ही शेषनारायण यानी लक्ष्मणजी का प्राकट्य है, इस नाते से भी भगवान् के सहोदर है।
ॐ हिरण्यगर्भ: समवत्तरताग्रे,भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।।
सदाचार पृथिवीं धामुतेमाम्, कस्मैदेवाय हविषा विधेम्।।
जिस प्रसाद से भरतजी का जन्म हुआ है उसी प्रसाद से हनुमानजी का जन्म हुआ है, "तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई" यह देह के नाते और अगर उपासना के नाते देखे तो जिस उपासना के भाव में श्रीभरतजी रहते हैं यानी हमेशा श्रीभरतजी की आँखो में आँसू मिलेंगे, उनकी झांकी का दर्शन करोगे तो डबडबाते मिलेंगे, कंपकंपाते होंठ, झुका हुआ सिर।
व्यग्रता, विनम्रता की मूर्ति बिल्कुल रोते हुए उनकी कभी आंखे देखो सूखी नही मिलेगी जैसे मीरा के नेत्र भी कभी सूखे नही मिलेंगे, चैतन्य महाप्रभु के नेत्र भी कभी सूखे नही मिलेंगे, ऐसे ही श्रीभरतजी के भी नेत्र कभी सूखे नही मिलेंगे, ह्रदय में श्रीराम और जानकीजी हैं और लक्ष्मणके ह्रदय में "जासुह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर"
पुलकगात हिय सिय रघुवीरू।
नाम जीह जपि लोचन नीरू।।
दैन्यता के उपासक हनुमानजी और भरतजी जिनको अपने अन्दर कोई गुण दिखाई ही नही देता, दास भाव के उपासक हनुमानजी साधु हैं और भरतजी भी साधु हैं, भरतजी तो केवल साधु हैं मगर हनुमानजी साधु-संत के रखवाले हैं, "तात भरत तुम सब विधि साधु" और हनुमानजी साधु-संत के रक्षक हैं "साधु संत के तुम रखवाले" और यह दो ही महापुरुष ऐसे हैं जिनकी चर्चा भगवान् करते हैं।
भरत सरिस को राम सनेही।
जगु जप राम रामु जप जेही।।
चौबीस घंटे प्रतिपल, प्रतिक्षण यदि भगवान् किसी का सुमिरन करते हैं तो भरतजी का और जब भगवान् किसी की चर्चा करते हैं तो हनुमानजी की, "तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई" भगवान् ने कहा देखो हनुमान सारा जगत तो मुझे प्रभु पुकारेगा लेकिन आज मेरी घोषणा है कि सारा जगत तुमको महाप्रभु कहकर पुकारेगा, भगवान् श्री रामजी प्रभु हैं और हनुमानजी महाप्रभु है।
इतना बड़ा स्थान, इतनी बडाई हनुमानजी को मिली लेकिन हनुमानजी तो संत है उन्हें अहंकार कभी नहीं हुआ, भगवान् जिसकी प्रशंसा करे उसकी तो बात ही कुछ और है, लेकिन श्रीहनुमानजी प्रशंसा से फूलते नही हैं, हमारी तो कोई यदि ईष्या में भी प्रशंसा कर दे या हमको मूर्ख बनाने के लिए भी प्रशंसा कर दे तो हम फूल कर कूप्पा हो जाते हैं।
भगवान् जिनकी प्रशंसा कर रहे है तो हनुमानजी को प्रसन्न होना चाहिये था लेकिन हनुमानजी एकदम भगवान् के चरणों में गिर पडे, प्रभु रक्षा करो, भगवान् ने कहा क्या बात है, मैं प्रशंसा कर रहा हूँ तुम कहते हो मेरी रक्षा करो।
क्या बात है राक्षसों से अकेले भिड रहे थे लंका में तब तो तुमने नही पुकारा मेरी रक्षा करो और मेरे चरणों में कहते हो कि मेरी रक्षा करो, हनुमानजी ने कहा बडे-बडे राक्षसों से अकेला भिड सकता हूँ मुझे बिल्कुल भय नही लगता, लेकिन प्रशंसा के राक्षस से बहुत भय लगता है।
क्योंकि इसी मुख से आपने एक बार नारदजी की प्रशंसा की थी, नारदजी की प्रशंसा की तो वह बन्दर बन गयें बल्कि मैं तो पहले से ही बन्दर हूँ, मुझे आप अब और क्या बनाना चाहते हो? यह हनुमानजी की दैन्यता है,।