29/11/2021
प्राचीन काल से शादी विवाह आदि उत्सवों में मालू के पत्तल, छोटे बड़े दोने उपयोग होते रहे हैं, मालू की पत्तल पर खाने का अपना अलग ही स्वाद है, स्वास्थवर्धक भी है, पर्यावरण की दृष्टि भी उपयोगी है, उपयोग के बाद पत्तो को जानवर खा लेते हैं उन्हें भोजन मिल जाता है, और कचरा निस्तारण भी हो जाता है, पर अब वक्त के साथ-साथ यह लगभग खत्म हो गया।
अब इनका स्थान थर्माकोल,प्लास्टिक ने ले लिया जो पर्यावरण के लिए घातक तो है इनमें भोजन करने के कारण इंसान कैंसर से मर रहा है और जानवर इनको खा कर मर रहे हैं और जो बच जाता है वह समुद्र में जाकर मिलता है वहां भी नुकसान ही है। आधुनिक तकनीकी के समय में जो जो आविष्कार हुए हैं सब ने पर्यावरण का सत्यानाश कर दिया साथ ही इंसान को आलसी और निठल्ला बना दिया।
यज्ञ अनुष्ठान में मालू पात शुभ माना जाता हैं, विवाह के विषय में एक कथन है(हल्दी हाथ ,मालू पात), विवाह में जिस प्रकार हल्दी लगाना शुभ माना जाता है उसी प्रकार मालू पात भी शुभ माना जाता है।
मालू के पत्तों को ढककर रख दिया जाय ताकि पत्तो पर हवा न लगे तो मालू के पत्ते महीनों तक खराब नहीं होते। बारिश से बचने के लिए मालू के पत्तों से छाता भी बनता है, मालू की बेल की छाल बहुत मजबूत होती है, इससे मजबूत कालीन बनती है जो कई वर्षो तक चलती है।
मालू के पत्तों के अनेक उपयोग हैं, जो हमें अपने पूर्वजों के द्वारा उपहार में मिली हुई संपति है, हम सब का कर्तव्य है जन, जंगल, जमीन,पर्यावरण को बचाना 🙏
साभार 🙏
🌹🙏🌹🙏