07/09/2022
यात्रा .... किन्नर कैलाश यात्रा .....
भाग ..5... शिव का सानिध्य....।
.....।।.।। शिव को समर्पित...।।.।।
शिव रूपी पवित्र शिला से निकलने वाली अलौकिक शक्ति ने शिथिल शरीरों,निस्तेज चेहरों को ऊर्जा से भर दिया |
हृदय में अतुलनीय आनंद का सागर लहरा उठा....।
पांच तत्वों से बने शरीर में छठे तत्व शिवत्व की अनुभूति होने लगी....
महादेव की कृपा देखकर यात्रियों के नेत्र सजल और कंठ अवरुद्ध हो गये।
संपूर्ण वातावरण शिवमय ..... आनंदमय... शांतिमय...।
सूर्य की किरणों के परावर्तन से प्रतिपल नई सुंदर दृश्य रचना का निर्माण हो रहा था.. ।
हमें किन्नर कैलाश पर पहुंचे अभी आधा घंटा ही हुआ था की अचानक मेघों का गर्जन शुरू हो गया..।
वायु अपने प्रचंड शीतल प्रवाह से हमें भौतिक संसार में वापस ले आई...
शायद अहंकारी इंद्र इस स्वर्गीय क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप से आशंकित रहते है।
काले मेघों के समूह ने कुछ ही समय मैं एक कुशल सेनापति की तरह सूर्य की किरणों को पर्वत क्षेत्र में आने से रोक दिया। सुरमई अंधेरा चारों तरफ पांव पसारने लगा।
कुछ ही पल में मेघों का गर्जन,बिजली का चमकना और शीतल तूफानी हवा का प्रकोप बढ़ने लगा।
...शायद यह इंद्रजाल था.....
यहां क्षुद्र ह्रदय इंद्र जीवन प्रदान करने वाले मेघों का अनावश्यक अपव्यय कर रहे हैं।
और गंगा यमुना के मैदानों के मध्य में मेरी जन्मभूमि के पशु पक्षी कृषक सभी वर्षा की प्रतीक्षा में हैं।
देवेंद्र का व्यवहार उन निरंकुश राजाओं की तरह था। जो राज्य की राजधानी और महलों पर अनावश्यक भोग विलास के लिए , राज्य की अधिकांश प्रजा के अति आवश्यक संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं।
रंग बदलती शिला जीवंत से सुसुप्त लगने लगी , मानो शिव समाधि की अवस्था में जा रहे हों।
पर्वत शिखर मानव के रहने के लिए नहीं हैं। वह तो अनवरत यात्रा के कुछ पल के पड़ाव मात्र हैं।
शिव को प्रणाम और आत्मसात करते हुए हम लोग
संकीर्ण ह्रदय देवेंद्र के फैलाए इंद्रजाल का सामना करते हुए चट्टानों के चक्रव्यूह से अंधेरा होते होते निकल आए। झरने को पार करते समय रात्र हो चुकी थी।
अब डेढ़ घंटे की कठिन सीधी चढ़ाई पार करके चैन की सांस ली अब रास्ता सामान्य था लेकिन अंधेरे में भटकने का डर बना हुआ था। रात्रि के 11:00 बजे हम लोग गणेश मैदान पर अपने कैंप में पहुंच चुके थे।
हर... हर ....महादेव..।।
यात्रा अनवरत जारी है....।।।।।