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बनारस ......तुम घाट बनारस बनो कभी, मैं गंगा जल बन जाऊंगीफिर बार-बार हिलकोरें बन तेरे क़दमों को छू आऊंगी,तुम काशी के शिव ...
09/06/2022

बनारस ......
तुम घाट बनारस बनो कभी, मैं गंगा जल बन जाऊंगी
फिर बार-बार हिलकोरें बन तेरे क़दमों को छू आऊंगी,
तुम काशी के शिव बनो कभी, मैं नंदी तेरी बन जाऊंगी
कोई कानों में कुछ मांगे तो उसे तुम तक मैं पहुंचाऊंगी,
तुम बनो बीएचयू गेट कभी, मैं लंका तेरी बन जाऊंगी
तुम पहलवान लस्सी बनना मैं पान गिलोरी होऊंगी,
तुम बनो वाटिका काशी की, मैं उनमें पुष्प बन जाऊंगी
तेरे प्रेम की सौंधी ख़ुशबू को अपने अंदर महकाऊंगी,
तुम शहर बनारस हो जाना, मैं इश्क़ तेरा बन जाऊंगी
तुम शाम कहो यदि कभी कहीं मैं सुबह-ए-बनारस लाऊंगी.!

भगवान शिव ने क्रोधित होकर यहाँ खोला अपना तीसरा नेत्र ...........*प्रकट हुईं नयना देवी जिन्होंने नदी में लगा दिया मणियों ...
06/06/2022

भगवान शिव ने क्रोधित होकर यहाँ खोला अपना तीसरा नेत्र ...........
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प्रकट हुईं नयना देवी जिन्होंने नदी में लगा दिया मणियों का ढेर ….
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हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थों में से एक मणिकर्ण धार्मिक एकता का प्रतीक माना जाता है। यहां पर पार्वती नाम की एक नदी बहती है, जिसके एक ओर शिव मंदिर है तो दूसरी ओर गुरु नानक देव का ऐतहासिक गुरुद्वारा। नदी से जुड़े होने के कारण दोनों ही धार्मिक स्थलों का वातावरण बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है। कहा जाता है इस स्थान पर क्रोधित हुए भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला था।
मणिकर्ण के बारे में................
यहां की नदी में क्रीड़ा करते हुए एक बार माता पार्वती के कान के आभूषण की मणि पानी में गिर गई और पालात लोक में चली गई। ऐसा होने पर भगवान शिव ने अपने गणों को मणि ढूंढने को कहा। बहुत ढूंढने पर भी शिव-गणों को मणि नहीं मिली। इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। तीसरा नेत्र खुलते ही उनके नेत्रों से नयना देवी प्रकट हुईं। इसलिए, यह जगह नयना देवी की जन्म भूमि मानी जाती है। नयना देवी ने पाताल में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने को कहा तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट कर दी।
मान्यताओं के अनुसार, शेषनाग ने देवी पार्वती के मणि के अलावा भी कई मणियां भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से उन्हें भेंट की थी। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी मणि पहचान कर उसे धारण करने को कहा था, बाकि सभी मणियों को पत्थर के रूप में बना कर यहां की नदी में डाल दिया था। कहा जाता है शेषनाग की भेजी गई मणियां आज भी पत्थर के रूप में यहां नदी में मौजूद हैं। मणिकर्ण भगवान राम की भी प्रिय जगहों में से एक थी। कहा जाता है कि श्रीराम ने कई बार इस जगह पर भगवान शिव की आराधना और तपस्या की है। आज श्रीराम की तपस्या स्थली पर श्रीरघुनाथ मंदिर है।
यहां पर शिव मंदिर के पास ही एक गर्म पानी का स्रोत भी है। यह गर्म पानी शीतल जल वाली पार्वती नदी से कुछ दूरी पर ही है। इस में गर्म जल कहां से आता है, यह बात आज तक रहस्य बनी हुई है। इस गर्म पानी के स्रोत में गुरुद्वारे का प्रसाद बनाने के लिए चावल पकाए जाते हैं। चावल को बर्तन में रख कर इस यहां पर रख दिया जाता है तो कुछ ही मिनट में पक जाते हैं। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि कोई भी इसमें हाथ तक नहीं डाल सकता। इस स्त्रोत के जल को पार्वती नदी के पानी में मिला कर नहाने के योग्य बनाया जाता है।
पार्वती नदी के इस ओर शिव मंदिर है और दूसरी ओर गुरुद्वारा। यहां का यह सुंदर दृश्य देखने लायक है। यहां पर आने वाले सभी भक्त चाहे वह हिंदू हो या सिख दोनों ही जगह से दर्शनों का लाभ लेते हैं। गुरुद्वारे से सामने ऊंची पर्वत चोटियां हैं, जिसे हरेन्द्र पर्वत कहते हैं। कहा जाता है इस जगह पर भगवान ब्रह्मा ने तप किया था। यहां से कुछ दूरी पर ब्रह्म गंगा और पार्वती गंगा का संगम होता है।
मणिकर्ण से लगभग 40 कि.मी. की दूरी पर भुंतर हवाई अड्डा है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर सड़क मार्ग से मणिकर्ण पहुंचा जा सकता है। मणिकर्ण से सबसे पास में जोगिन्द्रनगर रेल्वे स्टेशन है। मणिकर्ण से वहां की दूरी लगभग 125 कि.मी. है। मणिकर्ण से लगभग 34 कि.मी. की दूरी पर कुल्लू है। कुल्लू से सड़क मार्ग लेकर मणिकर्ण आ सकते हैं।

दुनियाँ का सबसे अद्भुत रहस्यमयी कावडिया पहाड़.............*भारतीय प्रदेश मध्यप्रदेश के मध्य स्थित इंदौर जिले से लगभ 75 क...
25/02/2022

दुनियाँ का सबसे अद्भुत रहस्यमयी कावडिया पहाड़.............
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भारतीय प्रदेश मध्यप्रदेश के मध्य स्थित इंदौर जिले से लगभ 75 कीलोमीटर दूर देवास जिले के अंतर्गत बागली तहसील के उदयपुरा गांव के पास सीता वाटिका से लगभग 10 किमी उत्तर में वनप्रदेश के रास्ते पोटलागांव से 1 किमी की दूरी पर कावड़िया पहाड़ है। यहाँ रहस्यमयी पहाड़ स्थित है जिसे देखने के लिए कई लोग आते रहते हैं।
इसे कावडिया पहाड़ी कहते हैं। इस पहाड़ी के बनने के बारे में भिन्न-भिन्न मान्यता हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र मालवा के अंतर्गत आता है। इस पहाड़ को देखने के बाद आप इसे पहाड़ करने के बजाया कहेंगे कि यह तो तराशे गए पत्थरों के पील्लरों का ढेर है। इसे कुछ लोग वंडर ऑफ नेचर कहते हैं तो कुछ लोगों के अनुसार ये पील्लर भीम ने लाकर रखे थे।
नेचर ऑफ वंडर..............
कुछ लोगों के अनुसार यह प्राकृतिक रूप से बना पहाड़ है। ये चट्टानें या छड़ें दूर से लोहे की बनी दिखाई देती हैं लेकिन ये पत्थरों, मिट्टी और खनिजों से मिलकर बनी हैं। यहां जमीन से 50-60 फीट ऊंची पत्थरों की लंबी-लंबी चट्टानें खड़ी हैं जो किसी बड़ी छड़ों के भूमि के गढ़े होने का आभास देती हैं। ये लगभग एक जैसी शेप और साइज में हैं। ऐसा लगता है जैसे इन्हें किसी फैक्टरी में बनाकर यहां लगा दिया गया हो या किसी वास्तुकार ने तराशा हो।
विचित्र आवाज करती हैं ये चट्टानें................
इन चट्टानों को किसी छोटे पत्थर या धातु से बजाने पर इनमें से लोहे की रॉड से निकलने वाली जैसी आवाज सुनाई देती है। कहीं कहीं इनमें से घंटी के स्वर भी जैसी आवाज भी निकलती है।
पांडवों ने बनाया ...............
जनश्रुति है कि महाभारतकाल में इस वन प्रदेश में पांडवों ने अज्ञातवास हेतु भ्रमण किया था और भीम ने 3 फुट व्यास के 10 से 30 फुट लंबी कॉलम-बीम आकार के लौह-मिश्रित पत्थर इकट्ठे किए थे, जो सात स्थानों पर सात पहाड़ियों के रूप में हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई 40-45 फुट की है। भीम का उद्देश्य इन पत्थरों से सात महल बनाने का रहा होगा, ऐसा माना जाता है।
प्रसिद्ध पुरातत्वविद प्रो. वाकणकर ने भी पहाड़ियों के इन पत्थरों का अनुसंधान किया था। नर्मदा परिक्रमा करने वाले धावड़ीकुंड से चलकर इन पौराणिक और दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करते हुए तरानीया, रामपुरा, बखतगढ़ होते हुए चौबीस अवतार जाते हैं। पुरातत्व, पर्यावरण, वनभ्रमण की दृष्टि से कावड़िया पहाड़, कनेरी माता, सीताखोह और धावड़ी देखने योग्या स्थान है।
धार्मिक स्थल..............
धावड़ी कुंड.............
इस क्षेत्र में ही हिन्दुओं का तीर्थ धाराजी भी आता है, जो अब डूब में चला गया है। यह बहुत ही प्रचीन स्थल है। यहां धावड़ी कुंड महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां संपूर्ण नर्मदा 50 फुट से गिरती है, जिसके फलस्वरूप पत्थरों में 10-15 फुट व्यास के गोल (ओखल के आकार के) गड्ढे हो गए हैं। बहकर आए पत्थर इन गड्ढों में गिरकर पानी के सहारे गोल-गोल घूमते हैं, जिससे घिस-घिसकर ये पत्थर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं। इन पत्थरों को बाण या नर्मदेश्वर महादेव का नाम दे दिया जाता है।
सीता वाटिका..............
नर्मदाजी का यह सबसे बड़ा जलप्रपात है। जलप्रपात से उत्तर में लगभग 10 किमी. पर सीता वाटिका, जिसे सीता वन भी कहते हैं, में सीता मंदिर भी स्थित है। कहा जाता है कि यहा महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था और सीताजी ने यहां निवास किया था। यहां पर 64 योगिनियों और 52 भैरवों की विशाल मूर्तियां भी हैं। समीप ही सीताकुंड, रामकुंड और लक्ष्मणकुंड हैं। सीतावाटिका से 6 कि.मी. की दूरी पर सीता खोह भी है।
कनेरी माता...................
सीताकुंड में हमेशा पेयजल उपलब्ध रहता है। सीता वाटिका से 16 किमी. पूर्व में कनेरी माता (जयंती माता) का मंदिर है, जिसकी तलहटी में कनेरी नदी बहती है, जिसमें विभिन्न रंगों की कनेर की झाड़ियां हैं। यह स्थान पूर्णतः घने जंगल में से होकर यहां हिंसक पशुओं का वास भी है।

गलता जी मंदिर ........गलताजी, जयपुर, राजस्थान स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल है।राजस्थानी पहाड़ियों के बीच एक प्राचीन हिंदू ...
03/02/2022

गलता जी मंदिर ........

गलताजी, जयपुर, राजस्थान स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल है।
राजस्थानी पहाड़ियों के बीच एक प्राचीन हिंदू तीर्थ स्थल ...
गलता जी मंदिर .. जिस को लोग स्विट्ज़रलैंड मंदिर भी बोलते है।🙏

इस मंदिर की स्थापना सवाई 18वीं शताब्दी के काज मानसिंह के राज में दीवान राव ने की थी। अरावली की पहाड़ियों से घिरा ये मंदिर गुलाबी पत्थरों से बना है। इस मंदिर परिसर में दो कुंड बने हुए हैं। जिसमें सावन के दिनों में आसपास के जिले के लोग बड़ी संख्या में स्नान करने पहुंचते हैं। गलता जी मंदिर के अलावा यहां बालाजी और सूर्य मंदिर भी हैं। कई किताबों में इस मंदिर को मंकी टैंपल भी कहा गया है। क्योंकि यहां बड़ी संख्या में बंदर रहते हैं।

एक संत ने 100 साल की थी तपस्या............

कहा जाता है कि संत गालव ने अपनी पूरी जिंदगी इसी स्थान पर बिताई थी। जिसके साथ वे 100 साल तपस्या करते रहे। जिससे खुश होकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि वे जिस स्थान पर बैठे हैं वो हमेशा पूजी जाएगी। साथ ही यहां का पानी पवित्र होगा। जिसके बाद गालव के सम्मान में यहां एक मंदिर बनवाया गया। जिसका नामकरण भी गालव के नाम पर किया गया। जो गालव से गलता बना। कहा जाता है कि गलता कुंड में स्नान करने से ही आपके सारे पाप धुल जाते हैं।

Gangotri, Uttarakhand
28/09/2021

Gangotri, Uttarakhand

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