आजकल मंडी का भगवान शिव को समर्पित पंचवक्त्र मंदिर चारों और चर्चा का विषय बना हुआ है। भारी वर्षा से जनित भीषण बाढ़ में सैंकड़ों साल पुराना यह मंदिर अडिग खड़ा रहा। जहाँ सीमेंट, बजरी आदि से बानी इमारते नष्ट हो गयीं, वहीं इतना पानी इस मंदिर को हिला भी नहीं पाया।
स्थानीय लोगों की इस मंदिर के प्रति बहुत आस्था है और पंचवक्त्र महादेव की कृपा ही है, जो इस मंदिर को लाखों क्यूबिक पानी भी टस से मस नहीं कर पाया।
इस मंदिर का निर्माण राजा चैत्र सेन ने सोलहवीं शताब्दी में करवाया। इसके निर्माण के लगभग सौ वर्ष बाद मंडी के राजा सिद्ध सेन ने इसका जीर्णोद्धार कराया। मंडी और सुकेत के सेन राजाओं और मंडी की स्थानीय जनता की इस मंदिर के प्रति बहुत आस्था है। मंडी के राजाओं का अंतिम संस्कार पूर्वकाल से लेकर आजतक इस मंदिर के गर्भगृह के सामने होता है।
चाहे उत्तराखंड का केदारनाथ हो या मंडी का प
Panchavaktra Temple, Mandi
Chandrashekhar Temple, Saho
Chandrasekhar Temple, Saho, Chamba
Chandrasekhar Temple is situated in Saho area of Chamba. Saho is a fertile plateau located a few kilometers away from Chamba Town. Its scenic beauty attracts the visitors. It was ruled by Ranas before the foundation of Chamba town by Raja Sahil Varman of Chamba. Later, Saho was administered by Rajah of Chamba with help of feudal Lords who belonged to Bijalwan branch of Varman dynasty.
Chandrasekhar Temple is very old and the origin of Shivlinga has been ascribed to mythological story of Ghumbhar Rishi during Pauranic Times. However, the temple was constructed by Satyaki Rana, on request of his wife Somprabha. Later, this temple was renovated and enlarged by Varman Rulers of Chamba.
Here is a short clip on Chandrashekhar Temple and is a part of an old documentary made by DD on majestic temples of Chamba.
Chamunda Devi Temple is situated on a hillock above Chamba town in Muhalla Surara and is believed to pre-exist here even before foundation of Chamba State by Maru Varman in primordial form.
The sanctum sanctorum of the temple consists of images of Maa Chamunda, Maa Mindhal and Maa Baira Wali. Goddess Mindhal and Baira Wali have their respective temples in Pangi and Bairagadh also. The present design of temple is pyramidical and was built by Raja Raj Singh Varman who was a devotee of Goddess Chamunda.
It is said that Raja Raj Singh Varman of Chamba used to seek blessing of Maa Chamunda before marching to any battle. In this last battle, he paid his obeisance to Maa Chamunda and promised to come either victoriously or dead. Unfortunately, Raja Raj Singh Varman was defeated in Battle with Raja Sansar Chand Katoch of Kangra over a place called Rihlu which used to be a jagir of Ranis of Chamba and was forcefully occupied by Raja Sansar Chandra Katoch. In this Battle, Raja Raj Singh Varman was killed by a soldier named Jit Singh Purbea.
The large gong on the entrance of temple was dedicated by Pandit Vidyadhar in the year 1762.
A fair has been recently concluded here which is done every year in which Bairawali Maa comes to meet her sister Maa Chamunda, resides here from some time and thereafter leaves for Bairagadh. The locals of Chamba have deep faith in Maa Chamunda and devotees all over the world come here to seek blessings of Mata.
Destination Himalayas (Chamba Part)
A memorable documentary made by Doordarshan team on Chamba and Bharmaur Valley, their cultural heritage, traditions and terrain.
This video is Episode 3 of DD Archives and in this video wonderful jouney of Chamba is shown.
Please watch this full episode and don't forget to like and share it.
देवभूमि का चमत्कार
हिमाचल को यूँ ही देवभूमि नहीं कहा जाता, मैं अधिक कुछ नहीं कहूंगा। केवल वीडियो को पूरा देख्ने और ईश्वर के दिव्य चमत्कार का स्वयं साक्षात्कार करें।
।। हिमाचली शिवस्तुति ।।
हिमाचल प्रदेश भगवान सदाशिव का निवास्थान है। यहाँ के पारम्परिक शिवभजनो की बात ही कुछ निराली है। "शिव कैलाशों के वासी" एक प्रमुख शिवस्तुति है जो सबके ह्रदय में शिवभक्ति को स्फुटित करती है। प्रस्तुत वीडियो में हिमाचल के सुप्रसिद्ध कलाकार मोहित चौहान और विश्वविख्यात आद्यात्मिक सध्गुरु द्वारा यह भजन महाशिवरात्रि के अवसर पर गाया गया है। यदि यह वीडियो आपको अच्छी लगी, तो अधिकाधिक लाइक और शेयर करें।
।। हर हर महादेव ।।
Mystery Man of Himachal
The mysterious person credited with laying down of Shimla-Kalka raliway track, one of the best Engineer of H.P. without a degree. Watch the story of Baba Bhalku of Shimla.
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धुड़ू नचैया जटा ओ खलारी ओ
सदाशिव के तांडव, गंगा और गौरा की लीलाओं और महादेव के रहस्यों को संजोए हुए अदभुत चम्ब्याली रचना "धुड़ू नचैया जटा ओ खलारी ओ"। यह अद्वितीय चम्ब्याली भजन सदियों से हिमाचलवासियों के घरों में गया जाता है, विशेषकर नवाले के अवसर पर। यह भजन शिवभूमि चम्बा के अति प्राचीन शिव को समर्पित गान में से एक है।
शिवपुराण में वर्णित शिवलीलाओं को इस भजन में बड़े ही कवितात्विक ढंग से चम्ब्याली धुन में गया गया है। इसका पूरा आनंद ले और अधिकाधिक लाइक और शेयर करे।
भलेई माता चम्बे वसदी .........
Latest Chambyali Hymn by Rajeev Jaryal .....................
लोकगाथा
भारतवर्ष के इतिहास में चंद्रवंशी क्षत्रियों का सर्वोपरि महत्व है। इसी महान वंश में महाराजा भरत, राजराजेश्वर ययाति, राजेश्वर परीक्षित और सम्राट विक्रमादित्य जैसे महानायकों का जन्म हुआ था। महाभारत के पांडवों का उदय भी इसी राजवंश से हुआ, जिनके वंशज कालान्तर में कई शाखाओं में विभाजित हो गए जिनमे पठानिया राजवंश प्रमुख है।
पठानिया राजाओं की राजधानियों में वर्तमान समय के नूरपुर, होशियारपुर, शाहपुर और पठानकोट आदि क्षेत्र शामिल थे। १९वीं शताब्दी में नूरपुर में महाराजा वीर सिंह पठानिया का शासन था।
राजा वीर सिंह पठानिया के वज़ीर शाम सिंह पठानिया के घर पर १० अप्रैल १८२४ को राम सिंह का जन्म हुआ। वजीर राम सिंह पठानिया भारतवर्ष के महान सपूतों में गिने जाते हैं। 1846 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति का ध्वजारोहण करने वाले त्याग, तपस्या व अद्भुत साहस के प्रतीक इस 24 वर्षीय नवयुवक ने अपने मुट्ठी भर साथियों के बल पर अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी थी।
इतिहासकरों के अनुसार नौ मार्च 1846 में अंग्रेज-सिक्ख संधि के कारण वर्तमान हिमाचल प्रदेश की अधिकांश रियासतें सीधे अंग्रेजी साम्राज्य के आधीन आ गई थीं। राजा वीर सिंह अपने दस वर्षीय बेटे राज कुमार जसवंत सिंह को नूरपुर की राजगद्दी का उत्तराधिकारी छोड़कर स्वर्ग सिधार गए, अंग्रेजों ने राजकुमार जसवंत सिंह की अल्पावस्था का लाभ उठाते हुए उन्हें केवल पांच हजार रुपये वार्षिक देकर उनके सारे अधिकार ले लिए और इस रियासत को अपने शासन में मिलाने की घोषणा कर दी।
वीर राम सिंह पठानिया बाल्यकाल से ही पराक्रमी थे, वे अंग्रेजों के इस षड्यंत्र को सहन नहीं कर सके और उन्होंने गुप्त रूप से रियासत के पठानिया व कटोच राजपूत नवयुवकों की एक सेना तैयार कर ली।
1846 में जब दूसरा अंग्रेज-सिख युद्ध आरंभ हुआ, तो राम सिंह पठानिया ने अपने साथियों संग 14 अगस्त की रात्रि ममून कैंट लूटकर शाहपुरकंडी के दुर्ग पर धावा बोल दिया। इस आक्रमण से अंग्रेज बुरी तरह घबराकर भाग खड़े हुए। 15 अगस्त 1846 की सुबह राम सिंह पठानिया ने अपना केसरिया ध्वज यहां लहरा दिया और नूरपुर रियासत से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही राजकुमार जसवंत सिंह को रियासत का राजा तथा खुद को उनका वजीर घोषित कर दिया।
इस घोषणा से पहाड़ी राजाओं में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई तथा जसरोटा के क
Then & Now
Make a journey of Chamba town from ancient times to present time.....
Must watch till end. Please like, comment and Share ...........................
भद्रकाली के चम्बा में स्थापित होने की अमर कहानी
१५वीं सदी के मध्य में चम्बा के राजा प्रताप सिंह वर्मन को भलेई माता द्वारा मंदिर स्थापित करने के लिए हुआ स्वप्नादेश, जिसके कारण आज हम भलेई गांव में भद्रकाली माता का अद्भुत और अकल्पनीय मंदिर का दर्शन करते हैं। प्रस्तुत वीडियो में इसी गाथा को गीत के माध्यम से जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। कृपया इसे पूरा देख्ने और अधिकाधिक लाइक और शेयर करे।
The Poetic Influence of Chamba
चम्बा रियासत उत्तर भारत की उन अभूतपूर्व रियासतों में से एक थी, जिनमे कला, संस्कृति और कविता का अद्भुत विकास हुआ। बहुत सी कविताओं को स्थानीय भाषाओँ में जैसे चम्ब्याली, भटियाती और चुराही में बनाया और गायन किया गया। कहा जाता है की जब प्राचीन समय में कलाकार इन्हे गाते थे तो वनों में निवास करने वाले पशु पक्षी स्वतः ही इनकी और आकर्षित होते थे। ऐसे कई उदहारण भारतीय इतिहास में मिलते है जैसे तानसेन और बैजू बावरा के गायन सी वनप्राणियों का उनकी और आकर्षित होना। प्रस्तुत वीडियो में दी गयी कविता, चम्बा में मध्यकाल में रची गयी है और इसे आज भी घरों घरों में लोग बड़ी ही चाव से गाते हैं।
यदि आप इस कविता को धयानमग्न हो कर सुनते हैं, तो आपको परमानंदा की अनुभूति होगी। इसके रागों में मानसिक तनाव दूर करने की क्षमता है। कृपया इस वीडियो को पूरा देखने और इस कविता का पूरा आनंद लें।
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Best Cultural Song of Chamba
चम्बा के प्रतापी राजा राम सिंह वर्मन पर बना प्रशंसायुक्त मनोहर गीत "ओ राजा राम सिंगहा, शहर चम्बा तेरा"
यह गीत वर्तमान समय में भी चम्बा के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता देता है और चम्बा के विकास में चम्बा के राजा राम सिंह की कर्मठता का साक्षात्कार करवाता है।
इस गीत तो पूरा सुने और अधिकाधिक शेयर करे
Kullu Dusshera Revived
First Coloured video on Kullu Dusshera (1960), famous all over the world for its unique style and fashion. Must watch and Share. For more videos like this, please like our page History of Himachal...
प्रचंड दक्षिणकाली
भगवती कालिका का रौद्र रूप माँ बन्नी के रूप में पीर पंजाल की दिव्याभायुक्त पहाड़ियों पर ८५०० फुट की ऊंचाइयों पर स्थित है। चम्बा शहर, मेरु वर्मन के समय से ही शक्तिपूजन के लिए विख्यात है। यहाँ के मंदिर, यन्त्र-तन्त्र क्रियाऍं मुख्यतः भगवती आदिशक्ति को समर्पित हैं। इन्हीं मंदिरों में भगवती बन्नी का मंदिर, माँ काली के भयंकर रूप के लिए, चम्बा के जनमानस के हृदय में समाहित है।
चम्बा के देवी-देवताओं में माँ भलेई भी कलिका का प्रसिद्ध रूप हैं, परन्तु माता भलेई और माता बन्नी में विशेष रूपांतर है। माँ भलेई भद्रकाली का रूप है, जो कलिका का सौम्यता का रूप है। यह रूप माँ कलिका ने भक्तों को प्रसाद और दर्शन देने के लिए धारण किया था। बात करें माँ बन्नी की तो यह रूप दक्षिणकाली का है, जो माँ काली ने असुरों का विध्वंस करने के लिए धारण किया था। माता के गुर (चेले) में जब दक्षिणकाली माँ बन्नी का प्रवेश होता है, तब उसमे अनोखी शक्ति आ जाती है और उसकी क्रिया परमाधभूत होती है। यह रूप माँ कलिका का सबसे फलदालक रूप है क्यूंकि इस रूप में भगवती की ऊर्जा अनंत होती है।
इस वीडियो को पूरा देखें और माँ बन्नी के आशीर्वाद प्राप्ति के लिए उन्हें नमस्कार करें।
!! जय महाकालिका दक्षिणकाला भगवती माँ बन्नी !!
धनकुबेर कमरुनाग
प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब होने के साथ-साथ हिमाचल, ख़ज़ानों से भी सुसज्जित है। देवी-देवताओं की तपभूमि और मन को दिव्य शांति प्रदान करने वाले हिमाचल के मंदिरो में कामरु नाग के मंदिर का विशेष महत्व है। यह मंदिर मंडी में है और इसका इतिहास महाभारतकालीन है। कहते हैं महाबली भीम के पौत्र बर्बरीक यहाँ पर कामरु नाग के रूप में विराजित हैं और भक्तों को आशीर्वाद और कृपा प्रदान करते हैं।
इसी मंदिर के सामने एक झील है जिसे कामरु झील कहा जाता है।
कहते हैं जब पांडव बर्बरीक से मिलने इस स्थान पर आये तब वार्तालाप करते हुए बर्बरीक ने भीम को कहा कि उसे बड़ी प्यास लग रही है, तब भीम ने उसकी प्यास बुझाने के लिए अपनी हथेली को ज़ोर से भूमि पर मारा और उस प्रहार के कारण उस स्थान पर एक झील का निर्माण हो गया, जिसे आज कामरु झील के नाम से जानते हैं। मान्यता है की इस झील पर सर्वप्रथम पांडवों ने आपने सोने चांदी के आभूषण इस झील में विसर्जित किये और तब से इस झील पर मन्नत पूरी होने पर सोना चांदी डालने की परंपरा है।
भक्त द्वापरयुग से इसमें इतना सोना चांदी विसर्जित कर चुके है कि मानना है कि इस झील में खरबों की कीमत का खज़ाना है। आज भी यहाँ पर यही परंपरा जारी है
कहते हैं कि एक बार कुछ तत्वों ने यहाँ पर चढ़े चढ़ावे को चुराने का प्रयास किया। ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही वो चोर झील में प्रवेश करने लगे, तब उनकी आँखों कि ज्योति चली गयी और जब उन्होंने धन को वापिस रख दिया तो उनकी चक्षुजयोति वापिस आ गयी।
ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर अश्वथामा, बर्बरीक से मिलने आते हैं और कई घटनाएं इस बात का प्रमाण है।
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!! जय कामरु नाग !!
आदिशक्ति माँ चामुंडा
चम्बा शहर के शिखर पर मणि के सामान तेजरूप भगवती चामुंडा का मंदिर अपने आप में एक आध्यात्मिकता, भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक है, जो आदिकाल से चम्बा शहर पर अपनी कृपा बनाए हुए रखा है। इस मंदिर के इतिहास की पूरी जानकारी नहीं है। मान्यता है कि यह मंदिर चम्बा नगर बसने से पहले ही बसा था और स्वयंभू था। यदि आप इस मंदिर के बाहर लगे पुरातत्व विभाग का लेख पढ़ें, तो उसमे साफ़-साफ़ लिखा है कि यह मंदिर किसने बनाया और कब बनाया, इसका कुछ भी अता पता नहीं है। स्थानीय भक्तों के अनुसार यह मंदिर सतयुग के समय का है और कुछ के अनुसार यह मंदिर दशराग के युद्ध के बाद बना। इन सभी मान्यताओं में एक मान्यता सबसे अचंभित करने वाली है। कई इतिहासकार मानते है की यही वह स्थान है जहाँ से भगवती चामुंडा का उद्भव भगवती अम्बिका से हुआ और दैत्यों से युद्ध करते-करते माँ चामुंडा ने चण्ड-मुंड दैत्यों का उस स्थान पर वध किया जिस स्थान पर आज का कांगड़ा का चामुंडा मंदिर है।
मान्यताएं कईं भी हों पर यहाँ पर कुछ क्षण समय बिताने पर भगवती माँ चामुंडा के आशीर्वाद की अनुभूति होती है यह स्थान चम्बा के अति प्राचीन और दिव्य शक्ति वाला स्थान है।
स्थानीय निवासिओं के अनुसार एक बार की बात है चम्बा में ३ शताब्दी पहले के अँगरेज़ अफसर आया और उसने नगर के ऊपर उस मंदिर को देखा और वहां जाने की इच्छा व्यक्त की। अफसर की इच्छानुसार राजा के दूत उसे मंदिर दिखाने ले चले और भगवती चामुंडा की दिव्य शक्तिओं और सप्तशती की कहानियां सुनाने लगे। यह सब सुन कर अँगरेज़ को यकीन नहीं हुआ और उसने माँ चामुंडा की परीक्षा लेने की सोची। ऐसी परीक्षा जैसी आज तक किसी ने न ली हो। उसने अपनी तलवार निकली और अपनी ऊँगली काट ली और कहा कि
"यदि तुम्हारी माँ में शक्ति है तो कल तक यह ऊँगली फिर से आ जाएगी अन्यथा तुम्हारी माँ झूठी है"
कहते है की अगले दिन सच में उसकी ऊँगली चमत्कारी रूप से जुड़ गयी थी और उसने माता के दरबार में ५० किलो का घंटा चढ़ाया जो आज भी इस मंदिर के मुख्य द्वार पर देखा जा सकता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में यह मंदिर भगवती चामुंडा के उन गिने-चुने मंदिरों में से एक है, जहाँ पर चमत्कार होना आम बात है। सभी चम्बावासी बड़े ही सौभाग्यशाली हैं कि माँ चामुंडा हम सब पर अपनी कृपा बनाये हुए हैं।
!! जय भगवती आदिशक्ति माँ चामुंडा !!
The Transition Of Shimla
Slideshow on changing of our Capital, "Queen of Hill Stations" -Shimla, from British era to Present time.
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