History of Himachal

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This page is about the unknown thrilling facts of ancient town Chamba that would give you goosebumps...

Sharma Brothers of Kangra Valley (Himachal Pradesh)Sh. Amarnath Sharma was an Army Officer hailing from Kangra Valley ha...
10/08/2023

Sharma Brothers of Kangra Valley (Himachal Pradesh)

Sh. Amarnath Sharma was an Army Officer hailing from Kangra Valley having 2 sons Somnath Sharma & Vishwanath Sharma, who later achieved great heights in their respective military career.

Major Somnath Sharma served Indian Army in various campaigns throughout his military career. During Kashmir Operations, 1948, he died for India and received India's 1st Paramveer Chakra which is the highest gallantry award in India.

Following the footsteps of his elder brother, General Vishwanath Sharma also did commendable job in Indian Army and later rose to the position of Army Chief of India. He became 14th Chief of Army Staff of India. General Vishwanath Sharma was 1st Army Chief to begin career in post-independence India Army. For his services, he was also honored with PVSM (Param Vishishta Seva Medal).

Kangra Valley of Himachal Pradesh is also called Veer-Bhumi owing to the past history of producing great military leaders. Youngsters of Kangra Valley still hold Army as their 1st career preference. Many of them have done great service for India and continue to do so.

Bandralta-Ramnagar Princely State, Jammu & Kashmirक्या आप जानते हैं? बन्द्राल्टा रियासत जम्मू और कश्मीर की प्रसिद्ध रिया...
08/08/2023

Bandralta-Ramnagar Princely State, Jammu & Kashmir

क्या आप जानते हैं?

बन्द्राल्टा रियासत जम्मू और कश्मीर की प्रसिद्ध रियासतों में से एक थी। इसकी स्थापना चम्बा राज्य के 24वें राजा विचित्र वर्मन के छोटे भाई बहत्तर देव वर्मन ने 1020 AD में की। बन्द्राल्टा रियासत, वर्मन राजवंश द्वारा स्थापित दूसरी रियासत थी। यह वर्तमान में रामनगर शहर के नाम से विख्यात है और उधमपुर से 38 किलोमीटर की दुरी पर है।

राजा बहत्तर ने वर्मन उपाधि के स्थान पर बंद्राल उपाधि को धारण किया। बंद्राल राजवंश वर्मन राजवंश से निकला पहला राजवंश था। बन्द्राल्टा रियासत पर बंद्राल राजवंश के कई राजाओं ने शासन किया। राजा भुपेन्द्रदेव बंदराल बन्द्राल्टा रियासत के अंतिम राजा थे।

पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने बन्द्राल्टा पर कब्ज़ा कर बंद्राल राजा को निष्काषित करके महाराजा गुलाब सिंह के छोटे भाई राजा सुचेत सिंह जम्वाल को बन्द्राल्टा राज्य का मुखिया नियुक्त किया। कालांतर में राजा सुचेत सिंह के वंशजो ने बन्द्राल्टा का नाम बदल कर रामनगर रख दिया।

वर्तमान में चम्बा के वर्मन राजवंश से निकले बंद्राल वंश के लोग जम्मू, रामनगर और उधमपुर में फैले हुए हैं।

चम्बा का विश्वप्रसिद्ध मिंजर मेला, चौगान में धूम-धाम से मनाया जा रहा है। यह मेला प्रत्येक चम्बावासी के दिल में महत्वपूर्...
25/07/2023

चम्बा का विश्वप्रसिद्ध मिंजर मेला, चौगान में धूम-धाम से मनाया जा रहा है। यह मेला प्रत्येक चम्बावासी के दिल में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और मिंजर के दौरान चम्बा में आनंद की लहर दौड़ जाती है। प्रत्येक व्यक्ति इस मेले का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

मिंजर मेले की शुरुआत आज से लगभग 1000 वर्ष पहले, राजा साहिल वर्मन के शासनकाल में हुई थी। कहते हैं, राजा साहिल वर्मन ने त्रिगर्त (काँगड़ा) के राजा को युद्ध में परास्त किया था। इस उपलक्ष्य पर उन्होंने मेले का आयोजन किया था, जो तदनन्तर प्रतिवर्ष मनाया जाने लगा और इस तरह मिंजर की शुरुआत हुई।

राजा साहिल वर्मन की मृत्यु के लगभग 500 साल बाद राजा प्रताप सिंह वर्मन, चम्बा के राजा बने। कहते हैं जब चम्बा के राजा प्रताप सिंह वर्मन, युद्ध अभियान में सफल होकर चम्बा लौटे, तब चम्बा के लोगों ने उनका धूम-धाम से स्वागत किया और उपहार में मक्की दी, चूँकि उस समय मक्की की फसल तैयार थी। मक्की के बालों के गुच्छे को भी मिंजर कहा जाता है। इससे मेले का मिंजर नामकरण हुआ।

राजा पृथ्वी सिंह वर्मन, राजा प्रताप सिंह वर्मन के परपोते थे। उन्होंने अपने शासनकाल में दिल्ली के बादशाह शाहजहाँ द्वारा आयोजित तीरंदाजी की प्रतियोगिता में भारत के सभी राजाओं को हराया और प्रतियोगिता जीत ली। उन्होंने शाहजहां से भेंटस्वरूप भगवन रघुनाथ की प्रतिमा ली।

राजा पृथ्वी सिंह को दिल्ली के ज़री गोटे के एक मुस्लिम कारीगर का काम बहुत पसंद आया और वह उसे भी आपने साथ चम्बा के आये। उसके द्वारा बनाई गयी मिंजर को सर्वप्रथम भगवान् लक्ष्मीनाथ को अर्पित किया गया। तब से लेकर आजतक भगवान लक्ष्मीनाथ को सर्वप्रथम उसी मिर्ज़ा परिवार को मिंजर अर्पित की जाती है। यह चम्बा के सांप्रदायिक सद्भावना और सहिष्णुता का जीता-जगाता उदाहरण है।

प्राचीन समय के इस मेले के दौरान वरुण देव की पूजा की जाती थी और उनसे अच्छी बारिश की कामना की जाती थी। चम्बा के राजा हाथी पर चढ़ कर इस मेले में हिस्सा लिया करते थे। मिंजर के अंतिम दिन में मिंजर को रावी नदी में प्रवाहित किया जाता था और एक भैंसे की बलि भी दी जाती थी। राजशाही की खत्म होने के बाद, अब मिंजर को प्रवाहित, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री करते हैं।

मिंजर मेला, हिमाचल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत उदाहरण है। यह मेला सभी लोगों के दिलों में महत्वपूर्ण स्थान रखा है। हर चम्बावासी इस मेले के लिए लालायित रहते हैं। एक हफ्ते की हर शाम को देश के मुख्य कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं और स्थानीय लोग बढ़-चढ़ कर इसमें भाग लेते हैं। आप सभी को मिंजर मेले की हार्दिक शुभकामनाएं।

13/07/2023

आजकल मंडी का भगवान शिव को समर्पित पंचवक्त्र मंदिर चारों और चर्चा का विषय बना हुआ है। भारी वर्षा से जनित भीषण बाढ़ में सैंकड़ों साल पुराना यह मंदिर अडिग खड़ा रहा। जहाँ सीमेंट, बजरी आदि से बानी इमारते नष्ट हो गयीं, वहीं इतना पानी इस मंदिर को हिला भी नहीं पाया।

स्थानीय लोगों की इस मंदिर के प्रति बहुत आस्था है और पंचवक्त्र महादेव की कृपा ही है, जो इस मंदिर को लाखों क्यूबिक पानी भी टस से मस नहीं कर पाया।

इस मंदिर का निर्माण राजा चैत्र सेन ने सोलहवीं शताब्दी में करवाया। इसके निर्माण के लगभग सौ वर्ष बाद मंडी के राजा सिद्ध सेन ने इसका जीर्णोद्धार कराया। मंडी और सुकेत के सेन राजाओं और मंडी की स्थानीय जनता की इस मंदिर के प्रति बहुत आस्था है। मंडी के राजाओं का अंतिम संस्कार पूर्वकाल से लेकर आजतक इस मंदिर के गर्भगृह के सामने होता है।

चाहे उत्तराखंड का केदारनाथ हो या मंडी का पंचवक्त्र मंदिर. हर बार आस्था, विज्ञान पर भारी पड़ी है। इसलिए उत्तराखंड और हिमाचल को देवभूमि कहा जाता है।

Saint Andrew's Church, Chambaचम्बा शहर में स्थापित यह चर्च, चम्बा के विभिन्न भव्य और ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक है। इसक...
10/07/2023

Saint Andrew's Church, Chamba

चम्बा शहर में स्थापित यह चर्च, चम्बा के विभिन्न भव्य और ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक है। इसके निर्माण के पीछे का इतिहास डॉक्टर जॉन हचिसन से शुरू होता है। डॉ. जॉन हचिसन एक चिकित्सक और मिशनरी थे, जो बीसवीं सदी के अंतिम दशक के दौरान चम्बा आये।

उस काल में कोढ़ का रोग उत्तर और मध्य भारत में फैला था। डॉ. जॉन हचिसन, कोढ़ के रोग के विशेषज्ञ थे, जिनको चम्बा में कोढ़ के रोग से ग्रसित मरीज़ों का इलाज करने के लिए बुलाया गया था। इन्होनें उत्कृष्ट सेवाएं दी और चम्बा के राजा की मदद से सरोल के में लेप्रोसी हॉस्पिटल की शुरुआत की जो भारत के नवीनतम कोढ़ अस्पतालों में से एक था।

डॉ. हचिसन, डॉक्टर होने के साथ-साथ एक मिशनरी भी थे. इनके प्रभाव में आकर, कई लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया। डॉ. हचिसन का चम्बा की एक चर्च खोलने का सपना था। लेकिन सत्ता और धन के अभाव में वे ऐसा नहीं कर सकते थे। डॉ. हचिसन से पहले विलियम फर्गुसन भी चम्बा में चर्च निर्माण की इच्छा व्यक्त कर चुके थे।

उनके इस सपने को पूरा किया चम्बा के राजा शाम सिंह वर्मन ने। राजा शाम सिंह वर्मन ने चर्च के लिए भूमि दान की और चर्च निर्माण का सारा खर्चा राजकीय कोष से दिया। राजमिस्त्री गोपाल दास ने राजा शाम सिंह के आदेशानुसार चर्च का निर्माण किया। इसकी आधारशिला 17 फरवरी 1899 को रखी गयी को डॉ. क्लीमेंट की उपस्थिति में रखी गयी, जोकि स्कॉटलैंड से इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आये थे।

यह चर्च 7 मई 1905 को बन कर तैयार हुई और तत्कालीन शासक राजा भूरी सिंह वर्मन ने इस चर्च को चम्बा के ईसाई समुदाय को भेंट किया। इस चर्च को चर्च ऑफ़ स्कॉटलैंड भी कहा जाता है और यह चर्च चम्बा के समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासतों के प्रतीकों में से एक है। यह चम्बा के शासकों और लोगों की धार्मिक सहिष्णुता और सद्भावना का जीता-जागता उदाहरण है।

Extremely rare photo of last Rajah of Chamba, Raja Lakshman Singh Varman at his Residential Palace, Chamba House at Laho...
30/06/2023

Extremely rare photo of last Rajah of Chamba, Raja Lakshman Singh Varman at his Residential Palace, Chamba House at Lahore during his childhood.

वज़ीर राम सिंह पठानियावज़ीर राम सिंह पठानिया, हिमाचल प्रदेश के प्रथम स्वतंत्र सैनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्...
26/06/2023

वज़ीर राम सिंह पठानिया

वज़ीर राम सिंह पठानिया, हिमाचल प्रदेश के प्रथम स्वतंत्र सैनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध शस्त्र उठाये थे और ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया था।

इनका जन्म नूरपुर में शाम सिंह पठानिया के घर में हुआ जो नूरपुर-पठानकोट के राजा, राजा बीर सिंह पठानिया के वज़ीर थे। जिस समय राम सिंह पठानिया, नूरपुर-पठानकोट राज्य के वज़ीर बने, उस समय अँगरेज़ मध्य भारत को जीतते हुए उत्तर की तरफ बढ़ रहे थे। अंग्रेज़ों ने 1845 में सिखों को युद्ध में हरा दिया और पंजाब को अपने अधीन कर लिए। अब अंग्रेज़ों का मंसूबा पहाड़ी रियासतों पर कब्ज़ा करना था।

उस समय, नूरपुर-पठानकोट के राजा जसवंत सिंह पठानिया, अभी बालक थे। इसका फायदा उठा कर अंग्रेज़ों ने नूरपुर को अंग्रेज़ों के अधीन घोषित कर दिया। यह बात वज़ीर राम सिंह पठानिया को बिलकुल भी रास न आयी और उन्होंने अंग्रेज़ों को विरुद्ध विद्रोह और युद्ध करने का निश्चय किया।

राम सिंह पठानिया ने 18 अगस्त 1848 को अपने कुछ सैनिकों के साथ मिल कर शाहपुर किले पर हमला किया। यह हमला इतना भयंकर था कि इसमें अधितकर यूरोपियन सैनिक मारे गए और जो बच गए वो भाग गए। इससे अँगरेज़ अफसर बौखला गए और सर हेनरी लॉरेंस ने भारी मात्रा में सेना और गोला-बारूद लेकर शाहपुर किले को घेर लिया। हथियारों की कमी होने के कारण राम सिंह पठानिया ने किले से पलायन किया और उन्होंने मऊ के जंगलों में छुप कर अंग्रेज़ों से गुरिल्ला युद्ध किया।

राम सिंह पठानिया ने इस दौरान अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाया और उन्होंने जसरोटिया और मिन्हास राजपूत सैनकों को अपने साथ मिला लिया और डल्ले कि धार पर सैन्य अड्डा लगाया। इस बीच ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर रोबर्ट पील का भतीजा जॉन पील भारी सेना सहित डल्ले कि धार पर पहुंचा। राम सिंह पठानिया और जॉन पील कि सेनाओ के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमे राम सिंह पठानिया ने जॉन पील को अपने तलवार 'चंडी' से मार दिया और युद्ध जीत लिया।

इसके कुछ समय बाद अंग्रेज़ों ने राम सिंह पठानिया को छल से मरने कि साजिश रची और उनके मित्र पहाड़ चंद को पैसे का लालच दिया। पहाड़ चंद ने राम सिंह कि जानकारी अंग्रेज़ों को दे दी। राम सिंह ब्रम्हा मुहूर्त में उठ कर नदी-किनारे जा कर पूजा-पाठ करते थे। जैसे कि वे पूजा पाठ करके लौटे, तब लगभग 20 से 25 अंग्रेज़ों ने उन पर हमला कर दिया। राम सिंह पठानिया ने पूजा के कमंडल के वार से 4 अंग्रेज़ों को मार दिया पर दुर्भाग्यवश उन्हें बंदी बना लिया. बंदी बनाने के पश्चात् उन्हें कालापानी कि सजा हुई और 11 नवंबर 1849 को महज़ 24 वर्ष का भारत माता का यह वीर सपूत देश के लिए वीर गति को प्राप्त हो गया।

कहा जाता है कि वज़ीर राम सिंह पठानिया निडर, साहसी और योद्धा होने के अलावा शक्ति-भक्त भी थे। उनकी तलवार का नाम चंडी था जिसका वज़न बयालीस सेर था। वे अपने जीवनकाल में दुश्मनो से वीरों की भांति अकेले ही लड़ते रहे।अपने जीवन के अंतिम वर्ष में भी कई दुश्मनो से घिर जाने के बावजूद भी लड़े और महज कमंडल से ही चार दुश्मनो को मौत के घाट उतार दिया।

वज़ीर राम सिंह पठानिया के अदम्य शौर्य के बारे में आज भी कहावत है - "अकेला पठानिया खूब लड़ैया, बल्ले पठानिया खूब लड़ैया, डल्ले दियां धारां डफली को बजदी, वह पठानिया खूब लड़ैया"

15/06/2023

Chandrasekhar Temple, Saho, Chamba

Chandrasekhar Temple is situated in Saho area of Chamba. Saho is a fertile plateau located a few kilometers away from Chamba Town. Its scenic beauty attracts the visitors. It was ruled by Ranas before the foundation of Chamba town by Raja Sahil Varman of Chamba. Later, Saho was administered by Rajah of Chamba with help of feudal Lords who belonged to Bijalwan branch of Varman dynasty.

Chandrasekhar Temple is very old and the origin of Shivlinga has been ascribed to mythological story of Ghumbhar Rishi during Pauranic Times. However, the temple was constructed by Satyaki Rana, on request of his wife Somprabha. Later, this temple was renovated and enlarged by Varman Rulers of Chamba.

Here is a short clip on Chandrashekhar Temple and is a part of an old documentary made by DD on majestic temples of Chamba.

सम्राट परमानंद चंद्र कटोच (पोरस)सम्राट परमानंद चंद्र कटोच, त्रिगर्त साम्रज्य के शक्तिशाली और कटोच राजवंश के 280 सम्राट थ...
11/06/2023

सम्राट परमानंद चंद्र कटोच (पोरस)

सम्राट परमानंद चंद्र कटोच, त्रिगर्त साम्रज्य के शक्तिशाली और कटोच राजवंश के 280 सम्राट थे। इन्होने ग्रीक सम्राट सिकंदर के साथ 326 ई.पु. को झेलम नदी के किनारे भीषण युद्ध किया था। आज हम आपको कटोच कुलभूषण सम्राट परमानन्द चंद्र के इतिहास से अवगत करवाएंगे।

त्रिगर्त साम्रज्य तीसरी ईसापूर्व में उत्तर भारत का एक शक्तिशाली साम्रज्य था, जिसमे वर्तमान हिमाचल, पंजाब, मुल्तान और हरियाणा के कुछ भाग शामिल थे। इस पर कटोच राजवंश का शासन था जिसके सम्राट थे परमानंद चंद्र कटोच।
उस समय भारत कई राज्यों में बंटा था, जिसमे प्रमुख था नन्द साम्राज्य जिस पर धनानंद का शासन था। उत्तरपश्चिमी भारत में तक्षिला और त्रिगर्त साम्रज्य प्रमुख थे। इस काल में मैसेडोनिया का राजा सिकंदर पारसी साम्राज्य के राजा डारियस को हरा कर भारत की तरफ कूच कर रहा था। उसने आपने मार्ग में आने वाले सभी राजाओं को जीत लिए था और जो भी उसका विरोध करता, सिकंदर उसे मौत के घाट उतार देता।

भारत में सिकंदर का सबसे पहले सामना तक्षिला के राजा अम्भी से हुआ, जिसने सिकंदर के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद सिकंदर ने वर्तमान कश्मीर के राजा अभिसार पर हमला करके उसे युद्ध में हराया। अब बारी त्रिगर्त राज्य की थी। सम्राट परमानंद चंद्र कटोच ने सिकंदर के आगे झुकने से मन कर दिया और उसकी विशालकाय सेना से युद्ध में संग्राम करने का निश्चय किया।

सम्राट परमानंद चंद्र कटोच और सिकंदर की सेनाओं का सामना झेलम नदी के किनारे पर हुआ। परमानंद चंद्र कटोच का नेतृत्व उनके दो पुत्र कर रहे थे। राजा अम्भी की सेना सिकंदर के साथ थी। युद्ध वर्षाऋतु के दौरान हुआ, झेलम नदी उफान पर थी, जिससे ग्रीक घुड़सवार सम्राट परमानंद की हाथियों को टक्कर नहीं दे सकते थे। सिकंदर ने तब नदी को घूम कर पार किया और दक्षिण से परमानंद चंद्र की सेना पर हमला किया जिसमें उनके बड़े पुत्र वीरगति को प्राप्त हो गए।

इसके बाद सिकंदर के सेना और कटोच राजपूतों में भीषण संग्राम हुआ जिसमें सिकंदर की सेना संख्या में अत्यधिक होने के कारण अंततः युद्ध में विजयी हुई।इस युद्ध में सम्राट परमानंद चंद्र कटोच को नौ घाव लगे और उन्होंने बहुत वीरता से युद्ध किया जिससे प्रभावित को कर सिकंदर ने राजा परमानन्द चंद्र कटोच सिंधु और ब्यास नदी के बीच के सेतरप का शासक घोषित किया, जो की पर्वतीय क्षेत्र था।

सिकंदर ने परमानंद चंद्र कटोच को फेगस की उपाधि दी जिसका अर्थ है पर्वतीय शेर, जो कालांतर में पोरस हो गयी और आज पुरे विश्व में सम्राट परमानंद चंद्र कटोच, पोरस के नाम से विख्यात हैं।

सम्राट परमानंद चंद्र कटोच के वीरता का उल्लेख ग्रीक सेनानायक और इतिहासकार टॉलेमी ने अपने लेखों में किया है। डिओडोरस, सिकंदर के सेनानायक ने लिखा है की परमानंद चंद्र के हाथियों ने ग्रीक सिपाहों को कुचल कर उनकी हड्डियों का चूरमा बना दिया। कयनेस ने इस युद्ध में दिखाई गई वीरता से आक्रांत हो कर सिकंदर हो वापस ग्रीस लौटने की सलाह दी।

इसके पश्चात सिकंदर ब्यास नदी के तट तक बढ़ा और उसने 12 स्तम्भों का निर्माण करवाया, जो आज लुप्त हो चुके हैं, पर जीक्ने अवशेष आज भी मौजूद हैं। हिमाचल प्रदेश के इंदोरा से सिकंदर भारत से वापस मुड़ा था. उस स्थान पर आज भी महादेव का मंदिर हैं। काँगड़ा के आज भी ग्रीक सिपाहियों की कब्रे मौजूद हैं और उनसे जुडी पुरातात्विक वस्तुएं वर्तमान में भी मिलती रहती हैं।

यह इतिहास ग्रीक और अँगरेज़ इतिहासकारों द्वारा वर्णित हैं। भारतीय इतिहासकार यह मानते हैं कि राजा परमानंद चंद्र कटोच ने युद्ध में सिकंदर को हराया और भारत से खदेड़ा था, जिसपर वे कई तथ्य और तर्क प्रस्तुत करते हैं। हालाँकि कई इतिहासकार, ग्रीक इतिहास से सहमति रखते हैं।

सिकंदर की मृत्यु 28 जून 323 ई.पु. को बेबीलोन में हुई और उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य उसके सेनानायकों ने आपस में बाँट लिया। सम्राट परमानन्द चंद्र कटोच का शासनक्षेत्र कालांतर में चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा बनाये गए अखंड भारत का हिस्सा बन गया।

कटोच राजवंश, त्रिगर्त पर राज करने वाला क्षत्रिय राजवंश है जो राजा सुशर्मा चंद्र, राजा परमानंद चंद्र से लेकर आज तक चला आ रहा है। कटोच राजा तब से लेकर मध्यकालीन युग के आक्रांतों जैसे महमूद गज़नी, तैमूर, मुहम्मद बिन तुग़लक़, दिल्ली के सुल्तानों और मुगलों से लोहा लेते रहे। कटोच कुलमाता माँ अम्बिका की कृपा से यह राजवंश अभी भी चला रहा है और वर्तमान में राजा ऐश्वर्य चंद्र कटोच, कटोच राजवंश के 489 महाराजा हैं।

General Alexander Cunningham was a British Engineer & Archeologist, who became 1st Director General of Archaeological Su...
02/06/2023

General Alexander Cunningham was a British Engineer & Archeologist, who became 1st Director General of Archaeological Survey of India. In that capacity, he played a crucial role in assessing and preserving rich archeological artefacts and history of Indian Subcontinent. His crucial work was the study of artefacts of Harappan Civilization.

General Cunningham came to Chamba State in the year 1839 and showed huge interest in discovering the rich heritage of the State owing to the fact that Chamba State had not faced foreign attacks of Huns, Arabs, Turks, Tughlaqs, Mughals and British.

He spent huge amount of time in Bharmaur in analyzing various historical artefacts. His main work in Chamba State was the historical study to Lakshana Devi Temple, Bharmaur. He writes about Lakshana Devi Temple that, Cunningham remarked, that "the pillars, architraves and the pediment of the doorway are all of wood, most elaborately and deeply carved". The door carvings have weathered and difficult to discern. In contrast, wrote Cunningham, the vestibule inside is well preserved and was "beautifully carved".

He also assessed the Indo Greek Coins found in Sarol and Lachori of Chamba. His work was very important for Chamba State and was used later in the establishment of Bhuri Singh Museum.

Chamba State was the only Hill State visited by the highest authority on Archaelogy of British India of that time. Not only its rich beauty, but also diverse history attracted historians and archaeologists towards it.

Raja Bhuri Singh Varman was the Rajah of Chamba State who had wide administrative experience and intimate knowledge of t...
21/05/2023

Raja Bhuri Singh Varman was the Rajah of Chamba State who had wide administrative experience and intimate knowledge of the State and its needs. He became Rajah of Chamba State after the abdication of throne by his elder brother Raja Sham Singh Varman in his favor due to his prolonged illness.

Mian Bhuri Singh was coronated by Sir Charles Rivaz, Governor of Punjab, as Rajah of Chamba. The title "Mian" which literally means Prince was used by the brothers, siblings & descendants of Rajas of most of Shimla & Punjab Hill States. After coronation, he endorsed the title of Rajah of Chamba.

After assuming power, Raja Bhuri Singh accelerated the growth and development of Chamba State in high pace. He established Dak Bungalow for Dignitaries visiting Chamba State and a commodious Guest House in the suburb of Dharogh.

Raja Bhuri Singh later established a Public Reading Room & Library for inculcating the habit of reading among the public of Chamba State. He upgraded the Middle School of Chamba to High School. Since, he had keen interest in history and arts, he later established Bhuri Singh Museum in the year 1908 with the help of European historians and archaeologists to conserve the rich artefacts and materials of historical values like old Inscriptions of the State, Greek Coins and Manuscripts etc.

Raja Bhuri Singh's revolutionary work is electrifying Chamba State in 1910 when most of the big States to cities like Delhi, Calcutta, Peshawar and Lahore etc. hadn't seen electricity. He established powerhouse at Saal with the help of European Engineers which is still functioning today to this date.

He had keen interest in foreign affairs and had good relations with other States as well as foreign states. He met Amir of Afghanistan in Agra in Viceregal Durbar in 1905. Raja Bhuri Singh was given the distinction of Knighthood by the Emperor of England in the year 1906.

Raja Bhuri Singh was succeeded by his son Tikka Ram Singh Varman. His eldest daughter Rattandei Sahiba was married to Raja Brijmohan Pal of Kutlehar State and younger daughter Dhandei Sahiba was married to Maharaja Hari Singh of Jammu & Kashmir.

The legacy of Raja Bhuri Singh is almost unparalleled of his contemporaries and he has immortalized himself in the history of Himachal Pradesh.

RSR 2, ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी थी जिसने बीसवीं सदी के प्रारम्भ में भारत में अपनी सेवाएं दी। अपनी सेवा काल के दौरान इन स...
10/05/2023

RSR 2, ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी थी जिसने बीसवीं सदी के प्रारम्भ में भारत में अपनी सेवाएं दी। अपनी सेवा काल के दौरान इन सैनिकों ने मैसूर, बैंगलोर, सूरत, पेशावर, दिल्ली, काबुल का दौरा किया। वर्ष 1918 को राजा भूरी सिंह वर्मन के शासनकाल के दौरान यह सैनिक चम्बा आये और कुछ समय के लिए चम्बा रहे। इस दौरान उन्होंने चम्बा के विभिन स्थानों के कई चित्र लिए, जो वर्तमान में ब्रिटिश और अमरीकी पुरालेखों में सुरक्षित है।

हमें ब्रिटिश सेना की इस टुकड़ी द्वारा लिए गए चित्र ब्रिटिश फोटोशेयर कंपनी ऐलीमी द्वारा मिले हैं। इन दुर्लभ चित्रों को पाने के लिए हमें कंपनी को 200 डॉलर यानी लगभग 16,000 रुपयों का भुगतान करना पड़ा। आशा है की आपको यह दुर्लभ चित्र पसंद आएंगे।

हमें आर्थिक तौर पर सहयोग करने के लिए, आप अपनी क्षमतानुसार राशि UPI ID historyhp@ybl पर भेज सकते हैं। आप न्यूनतम दस रूपए से अधिकतम राशि, अपनी क्षमतानुसार भेज सकते हैं। आपका सहयोग हमारे लिए प्रेरणा का काम करेगा जिससे हम आपके लिए ऐसी ही दुर्लभ जानकारियां शेयर करते रहेंगे।

यदि आपको पोस्ट पसंद आयी, तो इसे अधिकाधिक लाइक और शेयर करें। हमें कमेंट में ज़रूर बताएं की क्या आपको इस ऐतिहासिक तथ्य की पहले से जानकारी थी या नहीं?

30/04/2023

Chamunda Devi Temple is situated on a hillock above Chamba town in Muhalla Surara and is believed to pre-exist here even before foundation of Chamba State by Maru Varman in primordial form.

The sanctum sanctorum of the temple consists of images of Maa Chamunda, Maa Mindhal and Maa Baira Wali. Goddess Mindhal and Baira Wali have their respective temples in Pangi and Bairagadh also. The present design of temple is pyramidical and was built by Raja Raj Singh Varman who was a devotee of Goddess Chamunda.

It is said that Raja Raj Singh Varman of Chamba used to seek blessing of Maa Chamunda before marching to any battle. In this last battle, he paid his obeisance to Maa Chamunda and promised to come either victoriously or dead. Unfortunately, Raja Raj Singh Varman was defeated in Battle with Raja Sansar Chand Katoch of Kangra over a place called Rihlu which used to be a jagir of Ranis of Chamba and was forcefully occupied by Raja Sansar Chandra Katoch. In this Battle, Raja Raj Singh Varman was killed by a soldier named Jit Singh Purbea.

The large gong on the entrance of temple was dedicated by Pandit Vidyadhar in the year 1762.

A fair has been recently concluded here which is done every year in which Bairawali Maa comes to meet her sister Maa Chamunda, resides here from some time and thereafter leaves for Bairagadh. The locals of Chamba have deep faith in Maa Chamunda and devotees all over the world come here to seek blessings of Mata.

देव बाड़ू बड़ा (राजा वीरसेन)सुकेत रियासत, हिमाचल प्रदेश की सबसे प्राचीन रियासतों में से एक थी, जिसकी स्थापना राजा वीरसेन न...
26/04/2023

देव बाड़ू बड़ा (राजा वीरसेन)

सुकेत रियासत, हिमाचल प्रदेश की सबसे प्राचीन रियासतों में से एक थी, जिसकी स्थापना राजा वीरसेन ने की थी। प्राचीन काल में वर्तमान मंडी के क्षेत्र में आदमखोर डूंगर राक्षस लोग रहते थे जिनसे प्रजा पीड़ित थी। राजा वीरसेन ने उनका नाश करके प्रजा को भयमुक्त किया था। कालांतर में राजा वीरसेन के वंशजों ने मंडी, क्योंथल और किश्तवार राज्यों की स्थापना की।

राजा वीरसेन एक दिव्यपुरुष थे और भगवान शिव और माँ कलिका के अनन्य भक्त थे। इनके जीवनकाल में कई चमत्कारी घटनायें हुईं और कई लोकगाथाएँ लोगों में प्रचलित है।

तत्कालीन भरमौर पर किरातों ने हमला किया था जिसमे राजा लक्ष्मी वर्मन मारे गए थे और उनके पुत्र मुशान वर्मन थे, जो भेष बदल कर सुकेत में रह रहे थे। जब इस बात का राजा वीरसेन को पता चला, तो उन्होंने मुशान वर्मन की शादी अपनी पुत्री से की और भरमौर को किरातों से मुक्त करवा कर राजा मुशान वर्मन को पुनः चम्बा का राजा बनाया।

राजा वीरसेन को आज लोकदेवता बाड़ू बड़ा महाराज के रूप में जाना जाता है। आज भी देवता बाड़ू बड़ा गुर के माध्यम से अपने भक्तों से वार्तालाप करते है और अपने भक्तों के कष्टों का नाश करते हैं। मंडी, बिलासपुर, सिरमौर जैसे क्षेत्रों के लोगों की बाड़ू बड़ा महाराज की प्रति गहरी श्रद्धा है।

आज, चम्बा में ऐतिहासिक सूही मेला, रानी सुनैना की याद में मनाया जा रहा है, जिसका आरम्भ आज से लगभग 1000 वर्ष पहले चम्बा शह...
12/04/2023

आज, चम्बा में ऐतिहासिक सूही मेला, रानी सुनैना की याद में मनाया जा रहा है, जिसका आरम्भ आज से लगभग 1000 वर्ष पहले चम्बा शहर की स्थापना के कुछ वर्ष बाद हुआ। कहते हैं कि चम्बा शहर में पानी की बहुत कमी हुआ करती थी, जिसके कारण प्रजा अत्यंत पीड़ित थी। इस समस्या के समाधान के लिए राजा साहिल वर्मन ने बहुत उपाय किये, परन्तु सब व्यर्थ रहे। मान्यता है की राजा की कुलदेवी ने सपने में उनसे कहा की यदि कोई राजपरिवार का सदस्य अपना बलिदान दे तो यह समस्या दूर हो सकती है। राजा ने सोचा की यदि मैंने बलिदान दिया तो राजकाज कौन संभालेगा और यदि राजकुमार युगांकार ऐसा करते हैं तो वर्मन वंश खत्म हो जायेगा। ऐसे में रानी सुनैना ने चम्बा के पीड़ित प्रजा की भलाई के लिए समाधी लेने का फैंसला किया और मालूना नामक स्थान पर जा कर जीवित समाधी ली, जिसके उपरांत पानी का झरना फूटा जो तब से लेकर आज तक नौणा में सबकी प्यास बुझा रहा है।

समाधी लेने से पहले माता सुनैना ने अपनी कुछ इच्छाएं बताईं। उन्होंने कहा की जब उनके पुरे शरीर को चिन दिया जाए तब उनकी बेटी राजकुमारी चम्पावती उनके सिर पर सालनु लगायें। उनकी इच्छा थी कि प्रतिवर्ष उनकी याद में मेला लगे जिसमे केवल बच्चें और महिलाएं भाग लें और उनके वंश की कुंवारी कन्या सर्वप्रथम उनकी पूजा करें।

उन्होंने अपने चम्बा की लोगों की सुखी रहने की कामना की।

क्यूंकि माता सुनैना ने समाधी से पूर्व सुहे (लाल) रंग के कपडे पहने थे, इसलिए उन्हें सूही माता की संज्ञा मिली। कालांतर में जहाँ पर माता ने अंतिम बार विश्राम किया और जहाँ पर समाधी ली, वहां पर मंदिरों का निर्माण करवाया गया।

माता के मंदिर को जाने वाली सीढ़ियों का निर्माण राजा जीत सिंह वर्मन के पत्नी रानी शारदा देवी ने करवाया।

माता सुनैना को समर्पित यह मेला उनको बलिदान और अपनी प्रजा के लिया अपार स्नेह को दर्शाता है। पहले यह मेला पंद्रह दिन लगता था, अब तीन दिन लगता है। इस दौरान गद्दने पारम्परिक वस्त्र जैसे लुआचरी पहनती हैं और घुरई नाच करती है। साथ में वे गीत गतिं हैं जिसमे माता सुनैना की कहानी, बसोवा और मरुआ फूलों का ज़िक्र होता है।

ऐसा ही एक किस्सा हिमाचल के छरी नमक स्थान में देखने को मिलता है जहाँ पर पूर्व काल में जसपात राणा की बहु इंद्रावती, पानी की कमी को पूरा करने की लिया माता सुनैना की तरह ही समाधिस्त होती हैं। इसके पीछे क्या विज्ञानं या दिव्यलीला है, यह कोई नहीं जानता।

ऐसी ही हिमाचल की ऐतिहासिक जानकारी के लिया इस पेज को लाइक करें और पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें। आप सभी को ऐतिहासिक सूही मेले की हार्दिक शुभकामनाएं. जय सूही माता।

आज से 118 साल पहले, 4 अप्रैल 1905 को काँगड़ा घाटी में भूकंप आया था जिसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए थे और 53,000 पालतू जानव...
04/04/2023

आज से 118 साल पहले, 4 अप्रैल 1905 को काँगड़ा घाटी में भूकंप आया था जिसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए थे और 53,000 पालतू जानवर मरे थे । इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.8 थी और इसके कारण लाखों लोग बेघर हो गए थे। उस समय काँगड़ा पर पंजाब सरकार का शासन था। इससे सरकार को उस समय 2 करोड़ 90 लाख का नुक्सान हुआ था। आंकड़ों के अनुसार इस भूकंप से लगभग एक लाख घर ध्वस्त हुए थे। यहाँ तक की इसके कारण काँगड़ा का ब्रजेश्वरी मंदिर भी ध्वस्त हो गया था। तत्कालीन तबाही में ली गयीं कुछ तस्वीरें।

On the holy occasion of Ram Navami, a Coronation Ceremony was held today in the premises of Kangra Fort in which Raja Ai...
30/03/2023

On the holy occasion of Ram Navami, a Coronation Ceremony was held today in the premises of Kangra Fort in which Raja Aishwarya Chandra Katoch was coronated as 489th King of Katoch Dynasty. The coronation is done after around 400 years as the last coronation of Katoch King was done in 1679 AD.

Raja Aishwarya Chandra Katoch is the son of late Raja Aditya Dev Chandra Katoch & Chandresh Kumari Katoch, former MP from Jodhpur and former Minister of Culture, Government of India.

Katoch dynasty is believed to be one of the oldest Royal Dynasties in the World as it was started by Bhuma Chandra Katoch. Susharma Chandra of Trigarta was 234th King of Katoch Dynasty who attacked King Virat of Matsyadesha and supported Kauravs in mighty Mahabharat War. Porus was a Katoch King who fought against armies of Alexander The Great in Battle of Hydaspes. Raja Prithvi Chandra Katoch defeated one lakh soldiers of Muhammad bin Tuhlaq with an army of ten thousand men in Battle of Kangra. Kangra saw its glory with the rise of Maharaja Sansar Chandra Katoch who took his Kingdom to great heights. Katoch Dynasty ruled over Kingdom of Trigarta in ancient times.

Kangra in ancient times was called Trigarta and its area encompassed present day Punjab, Multan, Parts of HP & Jammu. Multan was the ancient capital of Trigarta, where Katochgarh Fort built around 8000 BC still exists. It is believed that Mangal Dev Katoch, a Scion of Katoch Dynasty populated by present day Mongolia and this claim has been supported by various Historians of Mongolia.

With the dawn of Democracy, rule went in hands of People. Most of Princely State Rulers even after merger of their States, have maintained the tradition of appointment of King and his Successors as it is an age old tradition for them.

We congratulate H.H. Raja Aishwarya Dev Katoch on his Coronation as 489th King of Katoch Dynasty.

चैत्र नवरात्री की दुर्गाष्टमी के पवन अवसर पर दर्शन कीजिये भगवतियों का। हमारी प्रार्थना है कि जगतजननी माँ दुर्गा आप सबके ...
29/03/2023

चैत्र नवरात्री की दुर्गाष्टमी के पवन अवसर पर दर्शन कीजिये भगवतियों का। हमारी प्रार्थना है कि जगतजननी माँ दुर्गा आप सबके कष्ट दूर करें, सबकी मनोकामना पूरी करें और सब पर अपनी कृपा बनाये रखें।

कराची हाउस, चम्बाकराची हाउस की स्थापना सोहन लाल जी ने चम्बा के चौगान बाजार में 20वीं सदी के आरम्भ में की थी। सोहन लाल जी...
18/03/2023

कराची हाउस, चम्बा

कराची हाउस की स्थापना सोहन लाल जी ने चम्बा के चौगान बाजार में 20वीं सदी के आरम्भ में की थी। सोहन लाल जी को वर्ष 1905 में राजा भूरी सिंह वर्मन ने राजकीय फोटोग्राफर नियुक्त किया। सोहन लाल जी ने अपने जीवन में चम्बा में कई गणमान्य लोगों, पंजाब की रियासतों के राजाओं, राजकीय समारोहों, मेलों, यात्राओं और अन्य समारोहों के चित्र लिए। सोहन लाल जी के बाद यह सिलसिला उनके पुत्र शाम सुन्दर ने बढ़ाया। कालांतर में इस स्टूडियो के देखरेख ब्रिजेन्दर सिंह वर्मन (आशा कुमारी जी के पति) ने की।

1900 से 1960 के बीच में कराची हाउस स्टूडियो में चम्बा में कई चित्र लिए गए। इन सबमें सबसे विशेष थे चम्बा की आम जनता के चित्र। वर्ष 1905 में आधुनिक फोटोग्राफी का आरम्भ हुआ था और तब के चम्बा के लोग, अपने चित्र लेने के लिए काफी उत्सुक रहते थे।

प्रस्तुत चित्र, चम्बा के लोगों के हैं, जिन्होंने वर्ष 1900 और 1960 के बीच कराची स्टूडियो में अपने चित्र खिंचवाए थे। इनमे से हम कुछ ही लोगों की पहचान कर पाए हैं। यदि इसमें आपके किसी दादाजी या दादीजी के चित्र हैं, तो कृपया कमेंट में जरूर बताएं। यह दुर्लभ जानकारी और चम्बा की जनमानस के दुर्लभ चित्र आपको पसंद आये तो कृपया इस पोस्ट को अधिकाधिक लाइक और शेयर करें।

चंबा के साहो में भगवान चंद्रशेखर का भव्य मंदिर है जो पौराणिक काल से ही श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। यह मंदिर...
01/03/2023

चंबा के साहो में भगवान चंद्रशेखर का भव्य मंदिर है जो पौराणिक काल से ही श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है।

यह मंदिर, चम्बा शहर की स्थापना से पहले से ही विद्यमान था। सराहन शिलालेख के अनुसार चंद्रशेखर मंदिर का निर्माण साहो के सात्यकि राणा और उनकी पत्नी सोमप्रभा द्वारा करवाया गया। कालांतर में चम्बा के राजा साहिल वर्मन ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।

मान्यता है कि पौराणिक काल में साल नदी के समीप एक साधु कुटिया बनाकर रहा करते थे। वह प्रतिदिन ब्रह्मा मुहुर्त में उठकर नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने गौर किया कि कोई उनसे पहले भी स्नान कर जाता है, क्योंकि नदी के किनारे चट्टान पर भीगे पैरों के निशान स्पष्ट दिखाई देते थे। सन्यासी को आश्चर्य हुआ कि कौन ऐसा व्यक्ति है, जो उनसे पहले स्नान कर चला जाता है। यह क्रम दो-तीन दिन तक चलता रहा, पर स्नान पर पहले पहुंचने के बाद भी वह यह राज नहीं जान पाए थे। यह सारी रचना भगवान शिव की रची हुई थी।

मुनि ने वहां ध्यानमग्न होने का निर्णय लिया। ध्यान टूटने पर उन्होंने तीन मूर्तियों को नदी में छलांग लगाते देखा। उचित समय जानकर मुनि ने अलख जगाई। फलस्वरूप एक मूर्ति वहां से कैलाश पर्वत भरमौर की ओर चली गई, जो मणिमहेश के रूप में विख्यात है। दूसरी ने चंद्रगुप्त के लिंग के रूप में नदी में डुबकी लगाई और लुढ़कते हुए चंबा नगरी में घुम्बर ऋषि के आश्रम के समीप रावी और साल नदी के पास ठहर गई। जबकि तीसरी चंद्रशेखर की वहीं स्नान चैकी पर शिविलंग शिला में बदल गई। इस प्रकार तीनों मूर्तियां भगवान शिव की प्रतिमूर्तियां थीं, जो शिवलिंग में परिवर्तित हो गईं। इस प्रकार यह मंदिर चमत्कारी है।

चंद्रशेखर मंदिर साहो में स्थापित नंदी बैल की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। पत्थर की इस मूर्ति में नंदी के गले में बंधी घंटी टन की आवाज देती है। कई वैज्ञानिक भी इस टन की आवाज का रहस्य जानने के लिए यहां माथापच्ची कर चुके हैं, लेकिन नतीजा कोई नहीं निकला। लिहाजा आज दिन तक यह रहस्य बना हुआ है कि एक पत्थर की घंटी को बजाने के बाद भी यह धातु जैसी आवाज क्यों देती है।

हालांकि कहा यह भी जाता है कि चट्टान को लेकर नंदी बैल की मूर्ति बनाई गई थी, लेकिन आज भी नंदी की इस मूर्ति को लेकर कई किवंदतियां हैं। बहरहाल, चंबा के इस मंदिर में विराजमान नंदी बैल की मूर्ति आज भी एक शोध का विषय बनी हुई है। रोचक पहलू यह है कि यह प्राचीन मंदिर खुद में कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है।

चंद्रशेखर मंदिर के प्रति लोगों की असीम आस्था है। महाशिवरात्रि के समय यहाँ पर श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते है और भगवन चंद्रशेखर महादेव के दर्शन पाते हैं। जन्माष्टमी और राधाष्टमी को भी लोग भारी संख्या में मंदिर में दर्शाने के लिए पहुंचते हैं।

यदि पोस्ट और इसमें वर्णित ऐतिहासिक जानकारी और पुराने चित्र आपको पसंद आये हो, तो इस पोस्ट को अधिकाधिक लाइक और शेयर करें। हमारी प्रार्थना है कि भगवान चंद्रशेखर आप सभी की मनोकामना पूर्ण करें। धन्यवाद !

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