16/11/2019
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मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् #श्रीराम_का_वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-
> आठवाँ दिन
36. शुचिः- शुचिः शब्द का अर्थ पवित्र होता है। प्रातःस्नान आदि से, प्राणायाम के अभ्यास से, प्रत्याहार आदि से राग एवं द्वेष का परित्याग करनेवाले भगवान् श्रीराम सभी परिस्थितियों में बाह्य एवं आन्तरिक शुद्धिवाले हैं।
37. वश्यः- पिता, आचार्य एवं देवता के वशमें रहनेवाले। मर्यादापुरुषोत्तम की दृष्टि से वश्य शब्द की यह व्याख्या होगी। किन्तु भक्तों के वश में रहनेवाले भगवान् श्रीराम हैं, यह भक्ति की परम्परा की दृष्टि से व्याख्या होती है। जब कोई भक्त आर्त भाव से भगवान् को पुकारता है तो भगवान् वश में होकर भक्त के पास दौड़े चले आते हैं। भक्ति-परम्परा के इस तथ्य को भागवत-पुराण में स्पष्ट किया गया है- अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज । साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः ॥ (श्रीमद्भा॰ ९ । ४ । ६३) भगवान् दुर्वासा से कहते हैं कि मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ, मैं भक्तों के अधीन रहता हूँ। अतः वाल्मीकि रामायण में भी भगवान् श्रीराम को वश्यः कहा गया है।
38. समाधिमान्- यद्यपि समाधि को योगशास्त्र का अन्तिम अंग माना गया है, किन्तु वाल्मीकि रामायण के व्याख्याकारों नें इस माधिमान् शब्द की व्याख्या दूसरे ढंग से की है। तिलक टीकाकार लिखते हैं कि श्रीराम अपने तत्त्व में लीन रहते हैं। उनका अपना तत्त्व ही ब्रह्मतत्त्व है, जिसमें वे हमेशा लीन रहते हैं। रामायणशिरोमणि टीकाकार गोविन्दराज ने लिखा है कि अपने आश्रितों के पालन के विषय में चिन्तन करनेवाले। भक्तों का परिपालन करने की चिन्ता करना ही भगवान् की समाधि की अवस्था होती है।
39. प्रजापतिसमः- प्रजाओं के स्वामी ब्रह्मा आदि के समान। प्रजा की उत्पत्ति, पालन एवं संहार करने में ब्रह्मा, विष्णु महेश के गुणों से परिपूर्ण। तिलक टीकाकार ने यहाँ एक प्रश्न उठाया है कि जब राम स्वयं ब्रह्म हैं तब समः शब्द का व्यवहार क्यों किया गया है? समः अर्थात् समान शब्द का व्यवहार वहाँ होता है, जहाँ तुलना तो की जाती है पर कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य रहती है। इसका समाधान करते हुए वे कहते हैं कि यद्यपि श्रीराम ब्रह्म ही है, तथापि शोक मोह आदि जो मनुष्य के धर्म हैं वे भी श्रीराम के व्यक्तित्व में हम देखते हैं, वे सगुण हैं अतः ब्रह्म के साथ भिन्नता है। किन्तु वे भी परशुराम को भार्गव लोक प्रदान करते हैं, जटायु को मोक्ष प्रदान करते हैं तथा सभी अयोध्यावासियों को एक साथ मोक्ष प्रदान करने में समर्थ हैं अतः उन्हें ब्रह्म के समान कहा गया है।
40. श्रीमान्- सभी प्रकार के ऐश्वर्य सम्पन्न श्रीराम। नित्य विभूतियों को धारण करनेवाले श्रीराम।
क्रमशः>> (कल का पोस्ट देखें)