Viraat Ramayan Mandir

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Viraat Ramayan Mandir Worlds largest Hindu temple"Viraat Ramayan Mandir" under construction at Janaki Nagar, Village: Bahuara & Kaithwaliya, Chakia-Kesariya Road, East Champaran

The temple is constructed on a site of 190 acres constituting 18 Spires. The Sanctum Sanctorum of the 2400x1400 ft temple shall be at a height of 405 ft which shall house Bhagawan Ram, Maa Sita, Rama Bhakta Hanuman and Maharshi Valmiki. The hall leading to darshan can accommodate up to 25000 devotees who can experience clear darshan and holy prayers.

23/11/2019

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम का वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-
> दसवाँ दिन
46. धनुर्वेदे च निष्ठितः- इसके द्वारा भगवान् श्रीराम को धनुष चलाने की विद्या में निष्णात बताया गया है। यह सर्वविदित है कि उन्होंने विश्वामित्र से सभी प्रकार के अस्त्रों एवं शस्त्रों को चलाने की शिक्षा ली थी।
47. सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः- सभी शास्त्रों के तत्त्व को जानने वाले।
48. स्मृतिमान्- यहाँ स्मृति शब्द का प्रयोग दो अर्थों में आया है। एक अर्थ है कि भगवान् श्रीराम सभी स्मृति-ग्रन्थों के जानकार हैं। स्मृति-ग्रन्थ आचार, धर्म एवं न्याय तीनों को परिभाषित करता है, अतः स्मृतिमान् शब्द से श्रीराम की दक्षता इन तीनों शास्त्रों में भी दिखायी गयी है। स्मृति का दूसरा अर्थ है- स्मरण रखना। अध्ययन किये गये विषयों को तथा भक्तों की पुकार को वे स्मरण रखते हैं।
59. प्रतिभानवान्- सुनी-अनसुनी बातों पर विचार करते समय अचानक स्फूर्ति को प्रतिभा कहते हैं। इस प्रकार की स्फूर्ति रखनेवाले।
50. सर्वलोकप्रियः- सभी लोगों के प्रिय। अथवा स्वर्ग आदि सभी लोकों में प्रिय।
क्रमशः>> (कल का पोस्ट देखें)
www.mahavirmandirpatna.org

23/11/2019

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् #श्रीराम_का_वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-
> ग्यारहवाँ दिन
51. साधुः- साधु शब्द की व्याख्या करते हुए वाल्मीकि रामायण के टीकाकारों ने मृदु एवं मधुर स्वभाव का उल्लेख किया है- साधुर्मृदुमधुरस्वभावः। यह साधु शब्द का व्यापक अर्थ है। जिनका स्वभाव कोमल एवं मधुर हो, उसे साधु कहते हैं।
52, अदीनात्मा- जिनका मन कभी कृपणता से भरा हुआ न हो, जो स्वयं को छोटा न समझें तथा किसी भी परिस्थिति में दबकर न रहें। भगवान् श्रीराम की यह विशेषता है कि वे घोर संकट में भी थोड़ा भी दबकर नहीं रहते है, परिस्थितयों से समझौता नहीं करते हैं।
53. विचक्षणः- लौकिक एवं अलौकिक कार्य करने में कुशल व्यक्ति को विचक्षण कहते हैं। इस शब्द का सामान्य अर्थ है- विद्वान्। श्रीराम इन दोनों प्रकार से विचक्षण कहे गये हैं।
54. सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः- जिस प्रकार सभी नदियाँ समुद्र तक पहुँचने के लिए प्रयत्न करती है अर्थात् जिस प्रकार समुद्र सभी नदियों के द्वारा सेवित होता है, उसी प्रकार श्रीराम सभी अच्छे लोगों के द्वारा सेवित हैं तथा सभी अच्छे लोग उन्हीं तक पहुंचना चाहते हैं।
55. आर्यः- आर्य शब्द का सामान्य अर्थ है- हमेशा चलनेवाला। गति के अर्थ में ऋ धातु से यह शब्द बना है। तिलक टीकाकार के अनुसार भगवान् श्रीराम सभी लोगों के द्वारा पूज्य हैं अतः उन्हें आर्य कहा गया है- आर्यः सर्वपूज्यः।
> कल का पोस्ट देखें।

23/11/2019

The Hanuman Temple Trust in Patna on Wednesday sent two truck loads of 'Govind Bhog' rice from Kaimur to Ayodhya for being used in bhog and the kitchen.

23/11/2019


One of the holiest Hindu temples dedicated to Lord Hanuman| Making a difference through its philanth

23/11/2019

Acharya Kishore Kunal expressed happiness after the Supreme Court's decision on Ayodhya land dispute. He thanked all and said that with the blessings of Lord...

23/11/2019

मंदिर का नक्शा ट्रस्ट तय करेगा: किशोर कुणाल हिन्दी न्यूज़ वीडियो। एनडीटीवी खबर पर देखें समाचार वीडियो मंदिर का नक....

23/11/2019

...

23/11/2019

पटना. राज्यपाल फागू चौहान ने मंगलवार को पटना जंक्शन के समीप महावीर मंदिर में पूजा-अर्चना कर राज्य और राज्यवासियों ...

23/11/2019

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् #श्रीराम_का_वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-

> तेरहवाँ दिन- (अंतिम किस्त)

61. धैर्येण हिमवान् इव- धीरता के भाव को धैर्य कहते हैं। स्थिर रहना विचलित नहीं होना धीरता है। इस विशेषता के लिए हिमालय संस्कृत काव्य जगत में सबसे प्रसिद्ध उपमान रहा है। किनती भी आँधी क्यों न आवे, हिमालय कभी डिगता नहीं, वह धीरतापूर्वक अविचल खड़ा रहता है। श्रीराम में भी यह विशेषता है कि किसी भी परिस्थिति में वे अपना आपा नहीं खोते रहे हैं।

62. विष्णुना सदृशो वीर्ये- विष्णु के समान वीरता वाले। भगवान् श्रीराम विष्णु ही हैं, तब सदृशः का प्रयोग क्यों का गया? इसका उत्तर देते हुए तिलक टीकाकार कहते हैं कि मनुष्य के रूप में जन्म लेने के कारण उपाधि भेद से सभी स्थानों पर उन्हें प्रजापति अथवा विष्णु के समान कहा गया है।
63. सोमवत्प्रियदर्शनः- चन्द्रमा के समान सौम्य दर्शन वाले। जिस प्रकार चन्द्रमा सभी व्यक्तियों को सुन्दर ही दीखता है, उसी प्रकार भगवान् श्रीराम की प्रजा एव उनके भक्त उन्हें प्रिय रूप मंि सुन्दर रूप में ही देखते हैं।

64. कालाग्निसदृशः क्रोधे- प्रलय काल की अग्नि के समान क्रोधवाले। जब श्रीराम अपने स्त्रुओं पर कुपित होते हैं तो उनका क्रोध काल की अग्नि अर्थात् सभी का अन्त करनेवाले अग्नि के समान हो जाता है। देवतागण भी युद्ध में उनके क्रोध से काँप जाते हैं। श्रीराम की इस विशेषता का उल्लेख आदिकवि वाल्मीकि ने इन शब्दों में किया है- कस्य विभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे।

65. क्षमया पृथिवीसमः- पृथ्वी का नाम ही क्षमा एवं क्ष्मा है। अपने प्रति की गयी बुराई को भी पृथ्वी से अधिक कोई नहीं भूलती है। धरती को हल के फाल से चीरते हैं फिर भी अपना घाव भूलकर हमारे लिए अन्न ही देती है। क्षमा करने में, किये गये अपराध को भूल जाने में माता पृथ्वी सर्वोपरि हैं। भगवान् श्रीराम भी क्षमावान् हैं। वे भी पृथ्वी की तरह क्षमा कर देते हैं।

66. धनदेन समस्त्यागे- दूसरे को कुछ देने में धनद अर्थात् कुबेर प्रसिद्ध हैं। भगवान् श्रीराम भी उसी प्रकार सबकुछ अपने भक्तों को देते रहते हैं।

67. सत्ये धर्म इवापरः- सत्य में धर्म की मूर्ति के समान। भगवान् श्रीराम को वाल्मीकि ने धर्म का मूर्त रूप कहा है- रामो विग्रहवान् धर्मः। धर्म तो निराकार है, किन्तु यदि उसकी मूर्ति की कल्पना की जाये तो श्रीराम के समान वह मूर्ति होगी। इसी बात को यह कहा गया है।

>
हरियाणा से प्राप्त श्रीराम की 5वीं शती की मृण्मय मूर्ति-( Los Angeles County Museum of Art में संरक्षित) साभार।

23/11/2019

पटना के महावीर मन्दिर की पहल, 60 क्वींटल चावल अयोध्या भेजा।

बिहार के गोविन्द भोग चावल से अयोध्या में रामलला का बनेगा भोग, रोज पांच हजार भक्त भी ग्रहण करेंगे प्रसाद।

कैमूर के मोकरी गांव का गोविन्द भोग चावल सबसे सुगंधित।

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23/11/2019

#महावीर_मन्दिर_न्यास
मुख्यमन्त्री स्वास्थ्य राहत कोष से मिली 3 करोड़ 90 लाख रुपये की राशि

महावीर वात्सल्य में होगा बच्चों के दिल में जन्मज़ात छिद्र का इलाज।
: http://www.mahavirvaatsalya.com/
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जन्मजात ह्रदय में छिद्र का होगा नि:शुल्क ऑपरेशन।महावीर मन्दिर न्यास पटना को मुख्यमंत्री स्वास्थ्य राहत कोष से 3 करोड़ 90 ...
23/11/2019

जन्मजात ह्रदय में छिद्र का होगा नि:शुल्क ऑपरेशन।

महावीर मन्दिर न्यास पटना को मुख्यमंत्री स्वास्थ्य राहत कोष से 3 करोड़ 90 लाख की अनुदान।
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जन्मजात ह्रदय में छिद्र का होगा नि:शुल्क ऑपरेशन।

महावीर मन्दिर न्यास पटना को मुख्यमंत्री स्वास्थ्य राहत कोष से 3 करोड़ 90 लाख की अनुदान। : http://www.mahavirvaatsalya.com/
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17/11/2019

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मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् #श्रीराम_का_वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-

> नौवाँ दिन

41. धाता- पिता के समान सभी प्रजाओं के पालन-पोषण करने में समर्थ।

42. रिपुनिषूदनः- शत्रुओं का संहार करनेवाले। जो स्वयं संसार के स्वामी हों उनका शत्रु कैसा? इसलिए इस शब्द का अर्थ कहा गया है कि भक्तों और आश्रित लोगों के शत्रुओं का विनाश करनेवाले तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य इन छह शत्रुओं का नाश करनेवाले।

43. रक्षिता जीवलोकस्य- भगवान् श्रीराम जीवलोक की रक्षा करनेवाले हैं। रक्षिता शब्द का अर्थ रक्षक होता है। भगवान् श्रीराम सभी लोगों के लोक-व्यवहार के प्रवर्तक हैं अर्थात् संसार के जीव जो कुछ भी करते हैं उन कार्यों को करानेवाले श्री राम ही हैं। उन्हीं की कृपा से जीव प्राण धारण करते हैं।

44. धर्मस्य परिरक्षिता- धर्म की रक्षा करनेवाले। भगवान् श्रीराम धर्म के रक्षक हैं। जहाँ कहीं भी धर्म की रक्षा में बाधा उत्पन्न होती है तो वे स्वयं इस कार्य को करते हैं।

45. वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञः- चारों वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद तथा छह वेदाङ्ग- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द एवं ज्यौतिष् इनके तत्त्वों को जानने वाले अर्थात् सभी विद्याओं के ज्ञाता। यहाँ पर वेद शब्द के ग्रहण से चारों उपवेदों का भी ग्रहण होता है- चार उपवेद हैं- आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद तथा अर्थशास्त्र।

क्रमशः>> (कल का पोस्ट देखें)

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16/11/2019

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मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् #श्रीराम_का_वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-

> आठवाँ दिन

36. शुचिः- शुचिः शब्द का अर्थ पवित्र होता है। प्रातःस्नान आदि से, प्राणायाम के अभ्यास से, प्रत्याहार आदि से राग एवं द्वेष का परित्याग करनेवाले भगवान् श्रीराम सभी परिस्थितियों में बाह्य एवं आन्तरिक शुद्धिवाले हैं।

37. वश्यः- पिता, आचार्य एवं देवता के वशमें रहनेवाले। मर्यादापुरुषोत्तम की दृष्टि से वश्य शब्द की यह व्याख्या होगी। किन्तु भक्तों के वश में रहनेवाले भगवान् श्रीराम हैं, यह भक्ति की परम्परा की दृष्टि से व्याख्या होती है। जब कोई भक्त आर्त भाव से भगवान् को पुकारता है तो भगवान् वश में होकर भक्त के पास दौड़े चले आते हैं। भक्ति-परम्परा के इस तथ्य को भागवत-पुराण में स्पष्ट किया गया है- अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज । साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः ॥ (श्रीमद्भा॰ ९ । ४ । ६३) भगवान् दुर्वासा से कहते हैं कि मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ, मैं भक्तों के अधीन रहता हूँ। अतः वाल्मीकि रामायण में भी भगवान् श्रीराम को वश्यः कहा गया है।

38. समाधिमान्- यद्यपि समाधि को योगशास्त्र का अन्तिम अंग माना गया है, किन्तु वाल्मीकि रामायण के व्याख्याकारों नें इस माधिमान् शब्द की व्याख्या दूसरे ढंग से की है। तिलक टीकाकार लिखते हैं कि श्रीराम अपने तत्त्व में लीन रहते हैं। उनका अपना तत्त्व ही ब्रह्मतत्त्व है, जिसमें वे हमेशा लीन रहते हैं। रामायणशिरोमणि टीकाकार गोविन्दराज ने लिखा है कि अपने आश्रितों के पालन के विषय में चिन्तन करनेवाले। भक्तों का परिपालन करने की चिन्ता करना ही भगवान् की समाधि की अवस्था होती है।

39. प्रजापतिसमः- प्रजाओं के स्वामी ब्रह्मा आदि के समान। प्रजा की उत्पत्ति, पालन एवं संहार करने में ब्रह्मा, विष्णु महेश के गुणों से परिपूर्ण। तिलक टीकाकार ने यहाँ एक प्रश्न उठाया है कि जब राम स्वयं ब्रह्म हैं तब समः शब्द का व्यवहार क्यों किया गया है? समः अर्थात् समान शब्द का व्यवहार वहाँ होता है, जहाँ तुलना तो की जाती है पर कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य रहती है। इसका समाधान करते हुए वे कहते हैं कि यद्यपि श्रीराम ब्रह्म ही है, तथापि शोक मोह आदि जो मनुष्य के धर्म हैं वे भी श्रीराम के व्यक्तित्व में हम देखते हैं, वे सगुण हैं अतः ब्रह्म के साथ भिन्नता है। किन्तु वे भी परशुराम को भार्गव लोक प्रदान करते हैं, जटायु को मोक्ष प्रदान करते हैं तथा सभी अयोध्यावासियों को एक साथ मोक्ष प्रदान करने में समर्थ हैं अतः उन्हें ब्रह्म के समान कहा गया है।

40. श्रीमान्- सभी प्रकार के ऐश्वर्य सम्पन्न श्रीराम। नित्य विभूतियों को धारण करनेवाले श्रीराम।

क्रमशः>> (कल का पोस्ट देखें)

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16/11/2019

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Mahavir Mandir is one of the holiest Hindu temples dedicated to Lord Hanuman, located in Patna, Bihar, India.

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Enthused by the Supreme Court verdict, the secretary of the trust, Kishore Kunal, had earlier announced here that the Patna-based religious body will contribute Rs 10 crore for the construction of a temple for Ram Lalla.

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16/11/2019

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Ayodhya, Nov 11 (UNI) After decks have been cleared for the construction of a Ram temple in Ayodhya, various organisations joined their hands for donations and help for the construction of the temple.

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16/11/2019

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AYODHYA: Devotees visiting the Ram temple site from outside Ayodhya will soon be offered a community meal and also get to taste delicious sweets akin to

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16/11/2019

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> छठा दिन
26. प्रतापवान्- भगवान् श्रीराम प्रतापी हैं। प्रतापी को ही प्रतापवान् भी कहा जाता है। दोनों का अर्थ एक ही है। प्रखर ताप जिससे उत्पन्न हो उसे प्रताप कहते हैं। दुष्टों के नाश के सन्दर्भ में श्रीराम प्रतापी हैं।
27. पीनवक्षा- पीन का अर्थ मोटा होता है। और वक्षस् का अर्थ छाती होता है। जिनकी छाती मोटी हो अर्थात् हृष्ट-पुष्ट हो उसे पीनवक्षा कहते हैं। श्रीराम की छाती बडी है, इससे उनकी वीरता का बोध होता है।
28. विशालाक्षो- अक्षिः का अर्थ है आँख। विशाले अक्षिणी यस्य स विशालाक्षः। बहुब्रीहौ सक्थ्यक्ष्णोः स्वाङ्गात् सूत्र से षच् प्रत्यय होकर विशालाक्षः शब्द बना। अर्थात् जिनकी आखें बड़ी-बड़ी हों। भगवान् श्रीराम की आँखों की उपमा कमल के दल से दी गयी है। यह भी शुभलक्षण माना गया है।
29. लक्ष्मीवान्- लक्ष्मी शब्द का एक अर्थ शोभा भी है। इस अर्थ में श्रीराम के सभी अंग शोभा से सम्पन्न हैं, यह भाव है। लक्ष्मी भगवान् विष्णु की पत्नी मानी गयी हैं। भगवान् श्रीराम विष्णु के अवतार हैं। अतः जगज्जननी जानकी लक्ष्मी हैं। इस अर्थ में भी लक्ष्मीवान् हैं।
30. शुभलक्षणः- शरीर के चिह्न को लक्षण कहते हैं। जिससे हम किसी वस्तु की पहचान करते हैं वह लक्षण कहलाता है। भगवान् श्रीराम के सभी लक्षण शुभ हैं।
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16/11/2019

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Ayodhya After Verdict रामलला के पक्षकारों एवं धर्माचार्यों की यह चाहत बयां हो रही है कि रामजन्मभूमि पर जो मंदिर बने वह अद्भुत-अद...

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16/11/2019

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पटना : आचार्य किशोर कुणाल ने दावा किया है कि अयोध्या में जहां बाबरी मस्जिद का ढांचा खड़ा था, उसके गर्भ गृह के बीच ही भ...

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16/11/2019

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Mahavir Mandir is one of the holiest Hindu temples dedicated to Lord Hanuman, located in Patna, Bihar, India.

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16/11/2019

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नई द‍िल्ली। अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए पटना का Mahavir Mandir न्यास हर साल दो करोड़ रुपये देगा।

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16/11/2019

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पटना का हनुमान मंदिर बहुत जल्द अयोध्या में राम मंदिर के श्रद्धालुओं के लिए लंगर लगाएगा। इसमें पटना हनुमान मंदिर क....

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16/11/2019

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16/11/2019

राम मंदिर के दर्शन के लिए अयोध्या के बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बिहार का महावीर मंदिर ट्रस्ट सामुदायिक भो...

13/11/2019

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् #श्रीराम_का_वर्णन आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत है। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही महर्षि वाल्मीकि के प्रश्नों के उत्तर देते हुए नारद भगवान् श्रीराम के गुणों का विस्तृत वर्णन करते है। इन्हें हम क्रमशः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं-

> चौथा दिन

16. महेष्वासः- धनुष का संधान करनेवालों में महान्। यह नाम विष्णु सहस्रनाम में भी आया है। भगवान् विष्णु के सहस्रनामों में 183वाँ नाम महेष्वासः है। इसके व्याख्याकारों ने लिखा है कि भगवान् विष्णु का यह रूप रामावतार में प्रकट हुआ है। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के महान् धनुर्धर होने का वर्णन अनेक स्थानों पर आया है।

17. गूढजत्रुः- कंधा और बाँह के जोड़ को जत्रु कहते हैं। वीर पुरुष के लक्षण में यह कहा गया है कि कंधा और बाँह की संधि कसी हुई हो, वह ढीला-ढाला न हो। श्रीराम के वर्णन में गूढजत्रुः से इसी बात की पुष्टि की गयी है।

18.अरिन्दमः- शत्रुओं का दमन करनेवाले। अरि अर्थात् शत्रु और दमः यानी दमन करनेवाले। भगवान् श्रीराम शत्रुओं का दमन करनेवाले हैं।

19. आजानुबाहुः- जानु अर्थात् घुटना, बाहु अर्थात् भुजा। इसप्रकार जानुबाहु का अर्थ हुआ जिनकी भुजा घुटनों तक लम्बी हो। सामान्य व्यक्ति की भुजा घुटना से ऊपर तक ही रह जाती है, किन्तु महापुरुषों की भुजाएँ लम्बी होती है और घुटनों तक पहुँच जाती है। यह दिव्य पुरुष का लक्षण है।

20.सुशिराः- सुन्दर शिराओं वाले। शिरा अर्थात् Muscle होता है। सुन्दर शिराएँ होना वीरता का लक्षण है।
क्रमशः>> (कल का पोस्ट देखें)

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