15/05/2024
साल 2007, ये वो वर्ष था जब भारतीय क्रिकेट में लीग से हटकर बहुत कुछ नया होना शुरू हो चुका था। मार्च-अप्रैल 2007 में हुए 50-50 विश्वकप में भारत का सफर बेहद निराशाजनक रहा। टीम-मैनेजमेंट में बड़ा उथल-पुथल शुरू हुआ। पांच महीने बाद ही पहली बार आईसीसी ने टी-20 विश्वकप का भी आयोजन कराया, हार के गम को टीम इंडिया भुला न सकी थी फिर भी अनमने ढंग से युवाओं की टीम तैयार कर दक्षिण अफ्रीका भेजी गई लेकिन वहां जो हुआ उसने भारतीय क्रिकेट को बदलकर रख दिया। भारत टी-20 विश्वकप का पहला विजेता बना।
इन्हीं सब के साथ-साथ टीम में एक नए खिलाड़ी का उदय भी हो रहा था। स्थान था जयपुर का सवाई मानसिंह स्टेडियम और कैलेंडर में तारीख थी 18 नवंबर, जब पहली बार उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नौजवान लड़के को 'क्रिकेट के भगवान' ने टीम इंडिया की कैप थमाई।
नाम- प्रवीण कुमार। उंगलियों में ऐसी जादू जो नई गेंद से स्विंग भी करा सकता था, पुरानी गेंद से रिवर्स स्विंग भी। 2008 में ऑस्ट्रेलिया में सीबी ट्रॉफी में प्रवीण ने केवल 4 मैचों में 10 विकेट लेकर अपना रुतबा दुनिया को दिखा दिया था। क्या रेड बॉल क्रिकेट हो, क्या व्हाइट बॉल, प्रवीण की धारदार गेंदबाजी के सामने पोंटिंग-पीटरसन जैसे दिग्गज भी कई मर्तबा परेशान देखे गए।
पर परिस्थियों ने ऐसा मोड़ लिया कि दुनिया के कई धाकड़ बैटर्स को अपनी गेंदबाजी से परेशान करने वाले प्रवीण, खुद इतने परेशान हो गए, टूट गए कि फैसला कर लिया अब खुद को खत्म कर लेना है। डिप्रेशन-आत्महत्या के विचारों वाले इस भयानक दौर ने स्टार प्रवीण कुमार को 'जेन-ज़ी' के जहन से लगभग गुमनाम सा कर दिया।
चयनकर्ताओं द्वारा लंबे समय तक नजरअंदाज किए जाने और 2018 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, प्रवीण को बुरे दौर से गुजरना पड़ा, जहां उन्हें मानसिक समस्याओं और अकेलेपन ने घेर लिया। एक दफा तो हरिद्वार जाते समय प्रवीण ने रिवॉल्वर से खुद को मारने के बारे में भी सोच लिया था, शुक्र है गाड़ी में लगी बच्चों की तस्वीर सामने पड़ गई और इरादा बदल गया।
हाल ही में एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में प्रवीण ने डिप्रेशन के दौर के किस्से शेयर करते हुए बताया-
टीम इंडिया में जगह न मिल पाना, बार-बार बेबुनियाद आरोप लगाना, मेरी छवि खराब करने कोशिश, जिस प्रदेश के लिए इतना लंबा समय दिया उससे भी कोई मदद न मिल पाना, मुझे लगातार तोड़ रहा था। हर बार मन में सवाल आता, मैंने प्रदेश क्रिकेट के लिए इतना कुछ किया, वहां से भी कोई मदद नहीं मिल रही। ऐसी कौन सी गलती कर दी है? मेरी छवि को इतना क्यों खराब किया जा रहा है, लोग मुझे शराबी-गुस्सैल साबित करने में लगे हुए हैं? ये सब मेरे ही साथ क्यों?
मैं कई-कई घंटे लेटे हुए पंखे को देखते रहता। कई बार ख्याल आता खुद को खत्म कर लूं। ये वो दौर था जो किसी को भी तोड़ दे।
प्रवीण अपने कई इंटरव्यू में कहते रहे हैं कि 'मुझे लोगों ने शराबी साबित करने और छवि को खराब करने की भरसक कोशिश की। मैं शराब पीता जरूर था पर जिस तरह से हौवा उड़ाया गया उस तरह से बिल्कुल नहीं'