30/01/2023
भारत का आखिरी गांव 'माणा', स्वर्ग से कम नहीं है यहां का नजारा....
इस बार हमनें उत्तराखंड के प्रसिद्ध चारधाम यात्रा के प्रमुख दो धामों श्री केदारनाथ जी एवं श्री बद्रीनाथ जी की यात्रा की । अत्यंत ही मनमोहक व आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण यात्रा थी यह । इन दो धामों के बारे में कतिपय
आप सभी लोग जानते होंगे और इनके बारे में विस्तृत साहित्य भी उपलब्ध है
अतः पाठकों इस बार मैं आपको ले चलूँगा एक अद्भुत यात्रा पर जो है भारत का आखिरी गाँव और इस स्थल की खोज वस्तुतः इसी यात्रा की देन है ।
क्या अपने कभी विचार किया है की भारत का आखरी गांव कौन सा है ? वहाँ का जीवन कैसा है ? इतना ही नहीं भारत के इस अंतिम गांव से सीधा स्वर्ग के लिए रास्ता जाता है। तो चलिए जानते हैं भारत के इस अनोखे और अंतिम गांव के बारे में –
दरसअल हम बात कर रहे है भारत के आखिरी गांव माणा के बारे में जिसे देखने के लिए न केवल देसी पर्यटक बल्कि विदेशी पर्यटक भी खूब पहुंचते है। इस गांव का पौराणिक नाम मणिभद्र है। माणा गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों की वजह से भी मशहूर है। उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत का आखिरी गांव है, जिसे माणा गांव के नाम से जाना जाता है। यह गांव चीन की सीमा से कुछ ही दूरी पर है। यहां का इतिहास महाभारत काल के समय से जुड़ा है।
उत्तराखंड के चमोली जिले में जब आप बद्रीनाथ (Badrinath) से भी तीन किलोमीटर की ऊंचाई पर जाएंगे तो आपको एक गांव मिलेगा, इस गांव को माणा गांव (Mana Village) के नाम से जाना जाता है । ये गांव चीन की सीमा से लगा हुआ है और भारत का आखिरी गांव है।
माणा गांव हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है और समुद्र तल से करीब 10,135 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है । भारत और तिब्बत की सीमा से लगे इस गांव में रडंपा जाति के लोग रहते हैं । इस गांव के बारे में पहले लोग बहुत कम जानते थे लेकिन पक्की सड़कें बनने के बाद हर कोई इसके बारे में जानता है। इस गांव के आसपास कई देखने लायक पर्यटक स्थल मौजूद हैं। यहां सरस्वती नदी और अलकनंदा नदियों का भी संगम देखने को मिलता है। साथ ही यहां कई प्राचीन मंदिर और गुफाएं भी हैं, जिन्हें देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ रहती है।
माणा गांव का इतिहास महाभारत के समय से जुड़ा हुआ है । कहा जाता है कि पांडव इसी रास्ते से स्वर्ग की ओर गए थे । जब पांडव इस गांव से होते हुए स्वर्ग जा रहे थे तो उन्होंने यहां मौजूद सरस्वती नदी से रास्ता मांगा था, लेकिन सरस्वती नदी ने उन्हें रास्ता नहीं दिया । इसके बाद महाबली भीम ने दो बड़ी-बड़ी चट्टानों को उठाकर नदी के ऊपर रखकर अपने लिए रास्ता बनाया और इस पुल को पार करके वे आगे बढ़े, इसी पुल को भीम पुल कहा जाता है ।
यहां पर अधिकतर मकान लकड़ी से बने हुए हैं । गाँव में घूमते हुए मैंने यह महसूस किया की वहाँ बुजुर्गों की संख्या ज्यादा थी । स्थानीय लोगों से पूछने पर यह पता चला की अधिकतर नौजवान परिवार सहित रोजगार की तलाश में शहरों में जा बसे हैं ।
यहीं पर एक दुकान भी है, जहां पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है ‘हिंदुस्तान की आखिरी दुकान। उत्तराखंड (Uttrakhand) घूमने आने वाले लोग जब भी बद्रीनाथ धाम जाते हैं तो माणा गांव जरूर घूमते हैं ।
माणा गाँव के कुछ पर्यटक स्थल :-
- सरस्वती नदी
सरस्वती नदी बेशक विलुप्त हो चुकी है, लेकिन आपको माणा गांव में आज भी इसके दर्शन हो जाएंगे । यहां गांव के अंतिम छोर पर चट्टानों के बीच से एक झरना गिरता हुआ दिखाई देता है जिसका पानी कुछ दूर जाकर अलकनंदा नदी में मिलता है । इसे सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माना जाता है ।
- व्यास गुफा
व्यास गुफा के बारे में बताया जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने यहां वेद, पुराण और महाभारत की रचना की थी और भगवान गणेश उनके लेखक बने थे। ऐसी मान्यता है कि व्यास जी इसी गुफा में रहते थे। वर्तमान में इस गुफा में व्यास जी का मंदिर बना हुआ है।
- भीम पुल
माणा गांव का इतिहास महाभारत के समय से जुड़ा हुआ है । कहा जाता है कि पांडव इसी रास्ते से स्वर्ग की ओर गए थे । जब पांडव इस गांव से होते हुए स्वर्ग जा रहे थे तो उन्होंने यहां मौजूद सरस्वती नदी से रास्ता मांगा था, लेकिन सरस्वती नदी ने उन्हें रास्ता नहीं दिया । इसके बाद महाबली भीम ने दो बड़ी-बड़ी चट्टानों को उठाकर नदी के ऊपर रखकर अपने लिए रास्ता बनाया और इस पुल को पार करके वे आगे बढ़े, इसी पुल को भीम पुल कहा जाता है ।
माणा गांव जड़ीबूटियों के लिए भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यहां मिलने वाली सभी जड़ी-बूटियां सेहत के लिहाज से बहुत लाभकारी हैं। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इस गांव में आता है, उसकी गरीबी दूर हो जाती है मई से अक्टूबर महीने के बीच यहां बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं। माणा गांव आने का यह समय सबसे बेस्ट माना जाता है। छह महीने तक यहां खासी चहल-पहल रहती है। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाने पर यहां पर आवाजाही बंद हो जाती है।
ऐसे पहुंचे माणा गांव
- हरिद्वार और ऋषिकेश से माणा गांव तक एनएच 58 के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। बद्रीनाथ धाम से करीब तीन किलोमीटर की ऊंचाई पर यह गाँव स्थित है ।
- यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार में है, जो यहां से 275 किमी है।
- यहां से आप उत्तराखंड रोडवेज बस या टैक्सी के जरिए माणा गांव पहुंच सकते हैं।
पाठकों मेरे पिछले लेखों के लिए आपके द्वारा मिले अपार प्रेम के लिए आप सभी का आभार । मेरा प्रयास रहेगा की इसी प्रकार आप के लिए नए लेखों का सृजन करता रहूँ ।
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संतोष चौबे