23/08/2024
नटखट खेल महोत्सव
एक मुल्यांकन एक विचार एक समालोचना
सभी नगर पंचायत वासियो को मेरा प्रणाम
नटखट खेल महोत्सव की शुरूआत गाँव और गाँव के सफल नौकरीपेशा युवाओ के प्रयास से वर्ष 2021मे हुई थी।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेला के तत्कालीन अध्यक्ष हीराशंकर ने नटखट को मेला की चंदा राशि से लगभग21000का सहयोग भी किया था।मतलब मेला का सहयोग नटखट को उनके शैशव काल से ही मिला।यह एक और सवाल है कि हीराशंकर को उससे क्या मिला नाम पर कालिख भी पोती गई ।अब आईये महोत्सव के आयोजन पर यह एक खेल आयोजन के लिये शुरूआत था मात्र।
अब इसमे कैरम प्रतियोगिता भी होती है।कैरम एक indoor game है और इस खेल को मान्यता नही है कुछ वर्षो पहले रश्मि कुमारी नामक एक खिलाड़ी प्रचलित हुई थी।समप्रति वो कहाँ है और कैरम से उनको क्या फायदा हुआ ये सभी जानते है।साफ शब्दो मे कैरम को राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई मान्यता प्राप्त नही है।फिर अपने गाँव मे ऐसी प्रतियोगिता कोई नई बात नही है पिछले 20 वर्षो मे गाँव स्तर पर दस के लगभग ऐसा प्रतियोगिता आयोजित की जा चूकी है।नटखट ने कोई नया आयोजन नही किया।नटखट वालो से एक अपील कि अगली बार ताश खेल का आयोजन भी किया जाय ।जाने ताश खेल के जिला स्तर की कितनी प्रतिभाएँ गाँव के मचानों और दलानो पर दुपहरी की गर्मी मे खत्म हो रही है।
अब नटखट वाले निबंध और quiz programme भी करवा रहे है। मतलब खेल महोत्सव न होकर इसे आगामी संस्करण मे नटखट महोत्सव ही कहा जाय तो बेहतर होगा क्योंकि quiz programmeतो इस गाँव मे प्रतिवर्ष लगभग 10 जरूर होते है। quizzing का इतिहास इस गांव मे इतना समृद्ध है कि वर्ष 1991मे ही दुर्गा स्थान भगवती घर मे जिला स्तरीय quiz की शुरुआत श्री अजय झा उर्फ हरहर जी के प्रयासो से हो गई थी और तब से अब तक वहाँ निर्बाध हो रहा है और जिससे पढने वाले सैकड़ो छात्र छात्राओं को फायदा भी हुआ। मै नटखट quiz की संकल्पना देखकर कह सकता हुँ कि बेहतरीन कापी की जा रही है।वो नया कुछ नही कर रहे है मतलब खेल छूट गया।अब नटखट खेल महोत्सव को सांस्कृतिक विस्तार देते हुये भगवती स्थान मे आयोजित विद्द्यापति समारोह की तरह अगली बार मैथिली कलाकारों और नृत्य को प्रोत्साहन देना चाहिए।आखिर हमारा सांस्कृतिक संवर्धन भी तो होना चाहिए। निबंध तो छूट ही गया तो जो छात्रश्री गणेश जनगण द्वारा स्थापित पुस्तकालय गये होंगे या आदरणीय श्री विनय कर्ण द्वारा संचालित उग्राद्दा केन्द्र की परीक्षा दिये होंगे उनके लिये निबंध नया नही है लिखना तो हमारी परंपरा है ही।
अब बिहार भर की कबड्डी टीम आ रही है।ग्रामीण बुद्धिजीवी और बुद्दिगाह लोग सहयोग कर रहे है।अच्छी बात है लेकिन थोड़ा खुदगर्ज हो रहा हुँ कि ग्रामीणों के 90%योगदान वाले कार्यक्रम से ग्रामीण प्रतिभा को पोषण मिल भी रहा है या नही।तीन संस्करणो के बाद क्या दस संस्करण मे भी किसी को फायदा मिलेगा यह संदेहास्पद है।बनगांव को क्रीडा मैदान बनाने से बेहतर था कि आधारभूत संरचना का क्रय कर आस पडोस के गाँव के खिलाड़ी को मिलाकर एक जिला स्तरीय एथलेटिक्स दल तैयार किया जाय।लेकिन इसमे मेहनत होगी और ये event management नही है। अगर उपकरणों को उपलब्ध करवाकर समुचित तरीके से प्रशिक्षण दिलवाया जाय तो यह जरूर स्वागतयोग्य होगा।
सबसे बड़ी बात नटखट कही न कही ग्रामीणों के मेला की प्राथमिकता को दीमक की तरह चट कर रही है। एक ही समय मे दो दो कार्यक्रमो मे चंदा वो भी बड़ी राशि की मांग से स्वभाविक असहजता आती है फलस्वरूप मेला को निवाला बनना पड़ता है क्योंकि मेला परंपरा है इसमे event management नही है।
बाकी इस गाँव की शैक्षणिक और अक्षुण्ण सांस्कृतिक परंपरा को मेरा प्रणाम और अभिनंदन है हमेशा रहेगा ।एक बार पढियेगा क्या event management से इस गाँव का भला हो पायेगा या और भी समस्याएं जिन पर विमर्श हो सकता है इतनी बड़ी राशि से वो गौण हो रही है
प्रणाम