Hiking Monks - by Himalayan Ripples

Hiking Monks - by Himalayan Ripples Uttarakhand has some more trekks to be explored and if you want to add some more adventure to your trip.Hiking monks is the destination you are searching..
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The Last Wooden Bridge of the Old Silk Route, situated in Budalas, locally know as Kinu Kutto, in  Nagar district of Gil...
29/03/2024

The Last Wooden Bridge of the Old Silk Route, situated in Budalas, locally know as Kinu Kutto, in Nagar district of Gilgit Baltistan, boasts a rich and storied past. Prior to the establishment of the Karakoram Highway, this bridge served as a crucial artery for traffic and trade, facilitating movement on foot and by caravan from Hunza to Gilgit and from Nagar to Gilgit.

This historic thoroughfare witnessed the passage of Muslim trade caravans from Yarkand, Tashkhurgan, and Kashgar, bound for both the Indian subcontinent and Saudi Arabia for the sacred pilgrimage of Hajj. Generations of travelers have embarked upon this route in pursuit of their journey to Arabia.

फूलदेई की हार्दिक शुभकामनाएं,,🥰🥰
14/03/2024

फूलदेई की हार्दिक शुभकामनाएं,,🥰🥰

Hiking Monks - by Himalayan Ripples ,,your travel partner🥰
01/02/2024

Hiking Monks - by Himalayan Ripples ,,your travel partner🥰

So Finally, the rain and snowfall 🥰🥰..In Uttrakhand and as per the report it's gonna stay for the next 3 days..So make y...
01/02/2024

So Finally, the rain and snowfall 🥰🥰..In Uttrakhand and as per the report it's gonna stay for the next 3 days..So make your plans..And for booking a tour plz contact Hiking Monks - by Himalayan Ripples your travel partner..

22/01/2024
उत्तरायणी/ संक्रान्ति मानने के हर क्षेत्र इलाके के अपने अपने रिवाज़ परम्परा हैं ।यहां जोशीमठ क्षेत्र /ब्लॉक में यह चुन्य...
18/01/2024

उत्तरायणी/ संक्रान्ति मानने के हर क्षेत्र इलाके के अपने अपने रिवाज़ परम्परा हैं ।
यहां जोशीमठ क्षेत्र /ब्लॉक में यह चुन्या त्यौहार है ।
एक दिन पहले शाम को चुन्या मुख्यतया और सम्भव हो तो मेल में आरसा बना लिया जाता है । दूसरे दिन अर्थात आज उसके बांटने खाने और कौओं को खिलाने का होता है ।
"ले कौआ चुन्या हमको दे पुन्या" की पुकार लगाते हुए बच्चे हमारे बचपने तक करते थे ..अब तो न कौवे रहे .. न उनको फुर्सत होगी ..कौन एक दिन के चुन्या के लिए इधर आए ।
तब ठंड भी बहुत थी ..आस पास बर्फ होती थी ..अब तो बर्फ क्या बारिश ही के लाले हैं .. ठंड दूर दूर तक नहीं ..धूप में ही ज्यादा बैठना सम्भव नहीं ।
खैर..चुन्या बनता है..गुड के पाक /राब में सात अनाजों के आटे को मिलाकर । अब सात अनाज इकट्ठा करना की मुश्किल है ।
गेहूं, चावल, कोदा , काली दाल ,जौ आदि खास औसत में मिलाकर गुड़ के राब में हल्का पतला कर तेल में पूरी की तरह तलना होता । इसमें सबसे मुश्किल ये बैटर बनाना ही होता । न ज्यादा गाढ़ा न पतला । इसमें ही सारी कारीगरी दिखती । बहुओं की असली परीक्षा कि चुन्या बनाने का शऊर है कि नहीं ।
जब सात अनाज उगाना ही नहीं तो मिले कहां से ।
पिछले कुछ सालों में नई बहुओं ने इसका सस्ता हल निकाला..बाजार के मैदे को चीनी के चाशनी में मिला तल दिया । पर उसमें वो चुन्या वाली बात न बनी । त्यौहार भर निपट गया । फिर जोशीमठ के आस पास के गांव से लोग पीठा/बैटर मंगा लेते थे या तीन चार उपलब्ध अनाज को पिसवा के बना लेते रहे ।
पिछले दो तीन साल से अब बाजार में कुछ दुकानों में तैयार पीठा मिल जाता है । पर बनाने की विशेषज्ञता अगल बगल की बूढ़ी और अनुभवी सास जिठानी से ही लेनी होती है जो अब विरल हैं ।
नहाना भी इस त्यौहार का मुख्य अंग हुआ । जो साल भर न नहाए उसे भी इस दिन जबरन नहाना होता है । जो इस ठंडे मुलुक में कुछ ज्यादा ही कठिन कार्य हुआ ..तब जब साधन न थे और ठंड जबरदस्त तीन चार फीट बर्फ में । तब यह सामुहिक कार्य होता था । सामुहिक चूल्हे पर धर्म अंगीठा जला कर पानी का देग चढ़ा दिया जाता और नम्बर से हरेक को नहला दिया जाता । शायद तब के समय में इसके बाद लोग गर्मी आने पर ही ..ऐसा साहस दोबारा करते हों ..!
जिनके घरों में शोक होता/जो चुन्या बना नहीं पाते उन्हें आस पड़ोस के लोग गांव वाले देने का चलन था । वैसे भी बना कर बांटने का रिवाज था । एक दूसरे की कारीगरी का भी इससे पता चलता । लोग अक्सर ही अपने घर के बन की तारीफ करते और दूसरों में मीन मेख निकालते..यह चुन्या पर कम बनाने वाले पर अर्थात बहुओं के शऊर (सगोर ) पर ज्यादा होता।
यह लिखने का कारण यह कि अबके अकेले होने से हमने भी नहीं बनाया ।
जो सज्जन इसे पढ़ द्रवित हों तो चखने को भेज दें । कम से कम त्यौहार का मान रह जाए.. ।

शेष.. चुन्या त्यौहार की शुभकामनाएं🙏🙏

Atul sati joshimath भेजी द्वारा लिखी गयी पोस्ट ,,🙏🙏

27/09/2023

Happy World Tourism Day.

Niti valley in local language Ni stands for Wind and Ti stands for water... Malari and Gamsali villages.... Higher Himal...
17/09/2023

Niti valley in local language Ni stands for Wind and Ti stands for water... Malari and Gamsali villages.... Higher Himalaya Heaven in Uttarakhand..

Let's see .. How many can identify the peaks,,,😍
14/12/2022

Let's see .. How many can identify the peaks,,,😍

List of Safe people at NIM base camp ...Prayers for missing ones🙏🏻🙏🏻🙏🏻
06/10/2022

List of Safe people at NIM base camp ...

Prayers for missing ones🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Reflections of Chaukhamba on Budha Madmaheshwar lake.Interestingly photo looks same upside down..Have a look and Do like...
29/09/2022

Reflections of Chaukhamba on Budha Madmaheshwar lake.Interestingly photo looks same upside down..Have a look and Do like the Page..

Happy Himalayan Day from Hiking Monks and Himalayan Ripples..Explore it Feel it admire it but dont exploit it....
09/09/2022

Happy Himalayan Day from Hiking Monks and Himalayan Ripples..Explore it Feel it admire it but dont exploit it....

Heart of beautiful Nagaland.. Kohima..City leaves you speechless in day as well as at night with it's beauty....Pic by -...
20/06/2022

Heart of beautiful Nagaland.. Kohima..City leaves you speechless in day as well as at night with it's beauty....Pic by - Albert Ngullie ji.....

22/05/2022

You must have seen pic of this natural phenomenon.This is Elephant fall nearby Shillong Meghalaya.
The name originated in the British era when the Englishmen spotted a giant rock that looked like an elephant near the fall. This rock was destroyed in the 1897 due to an earthquake...So next time do visit the place.... Credit -Ipsh*ta Roy..

It's season of joy..It is time for rhododendron to blossom..😘
17/02/2022

It's season of joy..It is time for rhododendron to blossom..😘

Courtesy : Anloroger sangmaWangala Festival of Meghalaya is a most popular festival among the Garos of Meghalaya, India....
26/11/2021

Courtesy : Anloroger sangma

Wangala Festival of Meghalaya is a most popular festival among the Garos of Meghalaya, India. Wangala Festival is a harvest festival held in honour of Saljong, the Sun-god of fertility. The celebration of the Wangala Festival marks the end of a period of toil, which brings good output of the fields.

04/11/2021

Wishing everyone a very very Happy deepawali,,,बग्वाल की भौत भौत बधे आप सब्यू तें
Credit -Pradeep Rana

Chopta Tunganath chandra shila trek..
15/10/2021

Chopta Tunganath chandra shila trek..

27/08/2021

If you are planning to visit to mountains please cancel plan for time being..Thanks

Gajendra Rautela ji द्वारा पठनीय जानकारी,, धन्यवाद सहित।लोकसंस्कृति का एक उत्सव- लौ/लय्यादिनांक-21 अगस्त 2021स्थान - झिं...
22/08/2021

Gajendra Rautela ji द्वारा पठनीय जानकारी,, धन्यवाद सहित।

लोकसंस्कृति का एक उत्सव- लौ/लय्या
दिनांक-21 अगस्त 2021
स्थान - झिंड बुग्याल, राँसी ऊखीमठ
सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र अपनी विशिष्ट और मौलिक संस्कृति के साथ-साथ भूमंडलीकरण के इस दौर में भी जीवंत लोकोत्सवों के लिए आज भी जाना जाता है।जिनमें से लौ/लय्या की एक खास जगह है। रुद्रप्रयाग जिले की मदमहेश्वर घाटी और कालीमठ घाटी के चुनिंदा स्थानों में होने वाले इस विशेष उत्सव की परंपरा भी अनूठी है। दरअसल आज भी तथाकथित रूप से पिछड़े कहे जाने वाले दुर्गम क्षेत्रों में कुछ मौलिकता अब भी बरकरार है। स्थानीय गढ़वाली भाषा में लौ/ लय्या कहे जाने वाले इस उत्सव की लोकपरंपरा के अनुसार फागुन-चैत्र (मार्च) महीने की किसी एक नियत तिथि को लोकमान्यता और रीति-रिवाजों के साथ स्थानीय ग्रामवासियों की भेड़-बकरियों को लेकर पाल्सी (चरवाहे) उच्च हिमालयी बुग्यालों में लगभग सात-आठ महीनों तक के लिए ( लगभग होली से दीवाली तक) ले जाते हैं तो इस दौरान सावन मास की समाप्ति तक इन भेड़ों के प्रवास को लगभग पाँच माह पूरे हो जाते हैं।इस दौरान इन भेड़ों की ऊन काफी हद तक बढ़ भी जाती है इसी ऊन की कटाई छंटाई और इस बीच नए जन्मे मेमनों को नमक खिलाने के लिए भेड़पालक पाल्सी सभी भेड-बकरियों को गांव के सबसे नजदीकी बुग्याल में एक निश्चित तिथि को उच्च हिमालयी क्षेत्र से वापस लेकर आते हैं । जहाँ पर इनके मालिकों के साथ साथ इनके कुछ खरीददार भी आते हैं। इस दौरान बहुत से ऐसे क्रियाकलाप होते हैं जो काफी रोमांचक होते हैं।जिनमें से मुख्य है पळया (जिसकी खास परवरिश हो) भेड़ का सामुहिक रूप से एक लोकतांत्रिक पद्धति से चुनाव करना और उसके पालक पाल्सी,उसके मालिक और उस भेड़ का सम्मान उसे ब्रह्मकमल की एक खूबसूरत माला पहना कर करना। और यही ब्रह्मकमल जो कि भेड़पालक पाल्सी उच्च हिमालयी क्षेत्र से अपने गांववासियों और भेड़ों के मालिकों के लिए बीसियों किलोमीटर नंगे पांव चलकर प्रसाद स्वरूप भी लाते हैं।और इसी तरह गांववासी भी अपने-अपने घरों से उनके लिए कल्यो (पूरी- पकौड़ी,घी आदि) बनाकर लाते हैं जिसका लेन-देन भी इसी दौरान किया जाता है। स्थानीय शिक्षक और ग्रामवासी रविन्द्र भट्ट बताते हैं कि "डेढ़-दो दशक पहले तक इसी लय्या के दौरान कई सारी खेल प्रतियोगिताएं भी हुआ करती थी जिसमें,कब्बडी,खो-खो और रडाघुस्सी (बैठकर फिसलना) आदि प्रमुख थी। लेकिन आज के दौर में यह सब समाप्त हो चुका है।"दिन भर इन सब गतिविधियों के साथ-साथ पाल्सी और भेड के मालिकों के बीच के मेहनताने की लेन-देन की प्रक्रिया भी इसी दिन सम्पन्न हो जाती है हालांकि नवजात मेमनों को नमक खिलाने और घर पर उनकी सुरक्षित परवरिश के लिए छोड़कर पुनः पाल्सी बड़ी भेड़-बकरियों के साथ आगामी दो-तीन महीनों के लिए अर्थात दीपावली तक के लिए पुनः वापस उच्च हिमालयी क्षेत्रों के लिए चले जाते हैं।यह सारी प्रक्रिया ही लौ अथवा लय्या कही जाती है।जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ होता है 'बाल काटना'।
सदियों से चली आ रही इस खूबसूरत और उत्पादक लोकपरंपरा में भी वक़्त के साथ-साथ आज बहुत से बदलाव भी नजर आते हैं। जिनमें से प्रमुख हैं लय्या के अवसर पर गाए जाने वाले लोकगीतों का ह्रास हो जाना और काटी गई ऊन का बुग्याळ में ही छोड़कर बर्बाद कर देना। इन दोनों के ही मूल में जो चीज दिखाई देती है वो है हमारा 'आधुनिक' हो जाना और अपनी लोकसंस्कृति के प्रति सम्मान न होना। इस बारे में जब स्थानीय ग्रामवासी और पाल्सी नरेन्द्र सिंह रावत से पूछा तो उन्होंने बताया कि '"लय्या के गीतों की जगह मोबाइल पर बजने वाले गीतों ने ले ली है और ऊन को कातने और उनके दौखे (शुद्ध ऊनी कोट) बनाने वाले न तो लोग रहे और न ही पहनने वाले इसलिए सभी चरवाहे अब ऊन काट कर जहां-तहां बुग्याल में ही छोड़ जाते हैं।यह सब देखना और करना बहुत दुखद तो होता ही है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं जब कोई खरीददार ही न हो तो।" वाकई में पूरे बुग्याल में सैकड़ों भेड़ों की ऊन का यूँ ही इधर उधर बिखरे पड़े होना बहुत दुखदाई और अफसोसजनक भी लगता है।इस विषय पर सरकार और उसका ऊन-रेशा बोर्ड को गंभीरतापूर्वक विचार कर कोई ठोस योजना बनानी चाहिए जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिले और हमारी धरोहर और विरासत को एक समुचित पहचान और आयाम भी ताकि हिमालयवासी भी सुरक्षित रहें और हिमालय भी।

@ गजेन्द्र रौतेला

Glimpses of panipat museum..
15/07/2021

Glimpses of panipat museum..

Nature.. Beauty.. Mountains..A magical cocktail of life waiting for you..
28/05/2021

Nature.. Beauty.. Mountains..A magical cocktail of life waiting for you..

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Hiking Monks - Let’s Explore the Unseen Himalayas

Introduction

The Himalayas, a Sanskrit word, which means “The Abode of Snow”, have been the subject of surprise and fascination for centuries. Assuming that it is just a giant mountain ranges, will be like lowering its other aspects and dimensions. Its biodiversity, the geographical region, the rivers, glacier, waterfall and more than that it’s enrich traditions and cultures are as fascinating as its magnificence.

The same thing reflects the growing culture and political boundaries in the states also. These small hill states i.e Himachal and Uttarakhand are not only diverse in the case of folk and rich culture, but also in the case of geographical extension.

These small states have received a lot of recognition in the map of India mostly in terms of religious tourism. Apart from this, these states also have lot of synergies within itself in form of beautiful meadows, scenic landscapes, snowclad gigantic mountains, panoramic glacier, historic passes and majestic holy rivers which have boasted immense possibilities of tourism.


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