Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज

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Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज हमारे द्वार संपूर्ण भारत के, तीर्थ स्थलों की धार्मिक यात्रा करवाई जाती है..

26/04/2024

😀😀😀आ रहे हैं हमारे भगवान, 10 may 2024 को अपने निवास स्थान केदारनाथ, नमः पार्वती पतयै हर हर महादेव 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज द्वारा आयोजित 10 दिवसीय श्री पशुपतिनाथ तीर्थ यात्रा, जिसमें यात्रियो...
09/04/2024

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज द्वारा आयोजित 10 दिवसीय श्री पशुपतिनाथ तीर्थ यात्रा, जिसमें यात्रियों द्वारा लुंबिनी, पोखरा, श्री पशुपति नाथ मंदिर काठमांडू(नेपाल), श्री सिर डोलेश्वर महादेव ,चंद्रगिरी, अयोध्या इत्यादि रमणीय स्थान के दर्शन कर देवाशीष को प्राप्त किया 🚩🚩🚩
🚩नमः पार्वती पतयै हर हर महादेव 🚩

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज के,द्वारा आयोजित 14 दिवसीय गंगासागर य़ात्रा में,य़ात्रियों को नैमिषारण...
12/01/2024

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज के,द्वारा आयोजित 14 दिवसीय गंगासागर य़ात्रा में,य़ात्रियों को नैमिषारण्य, प्रयागराज, वाराणसी काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग,काल भैरव,गया में पितृ तर्पण-श्राद्ध इत्यादि, बोधगया, गंगासागर, कोलकाता शहर भ्रमण, दक्षिणेश्वर काली, बेलूर मठ, कलकत्ता काली, ईडन गार्डन, विक्टोरिया मेमोरियल, देवघर बाबा बैघनाथ ज्योतिर्लिंग,अयोध्या श्री राम मंदिर इत्यादि रमणीय स्थलों का भ्रमण करवाया गया,🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
🚩हर हर महादेव 🚩

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज .‌ द्वारा आयोजित 10 दिवसीय श्रीधाम मथुरा-वृंदावन,गोकुल,नंदगांव,बरसान...
09/11/2023

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज .‌ द्वारा आयोजित 10 दिवसीय श्रीधाम मथुरा-वृंदावन,गोकुल,नंदगांव,बरसाना। ज्योतिर्लिंग उज्जैन महाकाल, ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर। मेहंदीपुर बालाजी (राजस्थान), ब्रह्मा सरोवर पुष्कर (राजस्थान) की यात्रा का शुभ समापन हुआ 🚩🚩🚩🚩🚩
हर हर महादेव 🚩🚩

*प्रसंग - ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं ?* अब तक *मैंने कई बार परमात्मा का नाम लिया। बहुत से लोग सोच सकते हैं, इस रॉकेट,क...
18/10/2023

*प्रसंग - ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं ?*

अब तक *मैंने कई बार परमात्मा का नाम लिया। बहुत से लोग सोच सकते हैं, इस रॉकेट,कंप्यूटर,ऐटम,मोबाइल के युग में भी ईश्वर का अस्तित्व है ? उसको मानने की जरूरत है क्या ? या कोई कपोल कल्पना हैं ? कह सकते हैं, सोचते होंगे ईश्वर, ईश्वर, ईश्वर, परमात्मा, तो उसका उत्तर मैं देता हूँ* और प्रवचन को विराम देने की ओर ले जाता हूँ। मशीन पर भी पर, महायन्त्र पर भी दो-चार मिनट बोलना है। *थोड़ा विचार कीजिये, ईश्वर को मत मानिए, परमात्मा को मत मानिये लेकिन अपने को तो मानते हैं ना ? अपना जीवन तो २४ घंटे अपने पास है ना ? हम हो या आप हमारी आपकी प्रवृत्ति का या निवृत्ति का नियामक कौन है ? हमारे आपकी चाह का सचमुच में विषय कौन है ? इस पर विचार करना चाहिए। मैं बोलता हूँ..., मृत्यु का भय, अमृतत्त्व की भावना, अमीबा को भी छेड़िए तो मौत से बचने का प्रयास करता है या नहीं ? मृत्यु का भय, अमृतत्त्व की भावना। जहाँ मृत्यु का भय रहता है, वहाँ अमृतत्त्व की भावना रहती है, ऐसा जीवन जहाँ मौत की छाया भी न पहुँच सके। इसका अर्थ क्या है ? हम वो होकर रहना चाहते हैं जहाँ मौत की छाया ही ना पहुँच सके, मौत का भय तो नहीं पहुंचता है, गाढ़ी नींद में किसी को मौत का भय लगता है क्या ? गाढ़ी नींद में किसी को मौत का भय लगता है ? गाढ़ी नींद में सर्दी,गर्मी,भूख,प्यास,किसी द्वन्द की प्राप्ति होती है ? गाढ़ी नींद मे काम,क्रोध,किसी लोभ, मोह, शोक किसी भी मनोविकार की पहुँच होती है ? गाढ़ी नींद में किसी को दुख प्राप्त होता है और गाढ़ी नींद में किसको आनंद नहीं प्राप्त होता है ? तो हम अपने वास्तविक स्वरूप की ओर, चाह के वास्तविक विषय की ओर सन्निकट पहुँच जाते हैं। हमारी आपकी चाह का वास्तविक विषय पहला कौन है ? सत, ऐसा जीवन ऐसा तत्व हो कर रहूँ। जहाँ मौत की छाया भी ना पहुँच सके, ऐसा ज्ञान जहाँ जड़ता की,अज्ञता की छाया भी ना पहुँच सके, ऐसा आनंद जहाँ दुख की छाया भी ना पहुँच सके, *असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय।।**इसका अर्थ क्या हुआ जी ?* *हम सत् चित् आनंद को प्राप्त करना चाहते हैं, मृत्यु,अज्ञता, जड़ता,दुख के चपेट से विनिर्मुक्त होकर रहना चाहते हैं। "हमारी चाह का जो विषय है, उसी का नाम परमात्मा है।"* बुरा ना मानो होली है। मैं उदाहरण देता हूँ; उदाहरण देता हूँ। क्योंजी किसी को भूख लगती हो और सृष्टि में भोजन का,अन्य का अस्तित्व ही ना हो, संभव है क्या ? हमको आपको भूख लगती है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध हैं कि भोजन का अस्तित्व है। हमको आपको प्यास लगती है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में जल का अस्तित्व है। हमको आपको नेत्र प्राप्त हैं तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में रूप का अस्तित्व है। हमको आपको कान प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि कान का विषय शब्द है। हमको आपको त्वक् प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व मे स्पर्श हैं,हमको आपको रसन्इंद्रिय प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में जल का रस अस्तित्व है, हमको आपको नासिका प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में गंध का अस्तित्व है। हमको आपको अनादिकाल से सत् चित् आनंद की प्यास लगी हुई है। सत् चित् आनंद होकर हम रहना चाहते हैं तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि कोई सच्चिदानंद तत्व है ओ वो हमसे भिन्न हुआ तो हमसे मिलेगा, बिछुड़ जायेगा फिर हमको मृत्यु का भय होगा ही, इसका मतलब क्या हुआ, "हमारी आपकी चाह का जो सचमुच में विषय हैं उसी का नाम परमात्मा हैं।" जल तरंग चिल्ला-चिल्लाकर कहे, जल कौन होता है ? तो जानकार कहेंगे,अरी ओ नादान, जल वही होता है जो तेरा जीवन होता है तेरी उत्पत्ति का स्थान ,तेरी स्थिति का स्थान, तेरी समृद्धि का स्थान जो, वहीं जल है अगर जीव कहता है, ईश्वर कौन होता है ? परमात्मा कौन होता है ? उसको कहना चाहिए जो तेरी चाह का असली विषय होता है। और एक बहुत महत्वपूर्ण बात है। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत आप सब जानते ही हैं। हमारे वैशेषिक दर्शन आदि ने है तो गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पहले ही उदभाषित कर रखा है थोड़ा विचार कीजिये, एक वृक्ष से कोई पत्ती गिरती हैं या फल गिरता है या यही हमने गेंदा का पुष्प लिया बल और वेगपूर्वक ऊपर उछाला, बल और वेग के निरस्त हो जाने पर गंगा ए. . गेंदा का पुष्प नीचे आएगा या नहीं ? क्यों आएगा ? क्योंकि पार्थिव हैं, पृथ्वी का कार्य हैं, गंधयुक्त है, गंधवती पृथ्वी है। इस दृष्टान्त के बल पर, इस दार्शनिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत है कि प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी की ओर आकृष्ट होता है । वहाँ पर अमेरिका में मान लीजिये, ब्रिटेन में मान लीजिये, हुआ ही था। आतंकवादियों के द्वारा या आतंकवादियों ने ११० मंजिल का भवन ढहा दिया था। आज कल ११० वीं मंजिल पर भी यांत्रिक विधा का आलंबन लेकर जल को पहुंचा चुके हैं। २५ वीं मंजिल पर, ११० वीं मंजिल पर भी जल से परिपूर्ण टोटी को खोलने पर जल की धारा नीचे क्यों प्रभावित होती है ? क्योंकि अंश हैं, उसका आकर्षण का केंद्र महोदधि समुद्र है। *प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी की ओर आकृष्ट होता है।* हम दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। दीप की शिखा ऊपर की ओर क्यों उठती है क्यूँ कि अंश है, अंशी कौन है ? नभो मंडल में विद्यमान आदित्य या सूर्य ? इसी प्रकार *हमारे आकर्षण का विषय* कौन हैं ? सत् चित् आनंद ऐसा जीवन जहाँ मौत, जड़ता दुख की पहुंच ना हो, *सच्चिदानंद* होकर हम रहना चाहते हैं, इसलिए सच्चिदानंद तत्व का अस्तित्व है।

_*पुरी पीठाधीश्वर, श्रीमज्जजगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराज*_

घोररुपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि । भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्।🚩🚩Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा ...
17/09/2023

घोररुपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि । भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्।🚩🚩
Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज , द्वारा आयोजित 10 दिवसीय तीर्थ यात्रा के छायाचित्र 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🙏🙏

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज  द्वारा आयोजित 10 दिवसीय, श्री चार धाम यात्रा (उत्तराखंड) के मनोरम ए...
13/06/2023

Yatra Book - यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज द्वारा आयोजित 10 दिवसीय, श्री चार धाम यात्रा (उत्तराखंड) के मनोरम एवं उच्च आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करने वाले क्षणों के छायाचित्र 🚩🚩🚩

यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज के द्वारा, 11 दिवसीय  #उत्तराखंड श्री  #चारधाम यात्रा का आयोजन किया जा रहा है, जो...
19/05/2023

यात्रा बुक टूर & तीर्थ यात्रा सर्विसेज के द्वारा, 11 दिवसीय #उत्तराखंड श्री #चारधाम यात्रा का आयोजन किया जा रहा है, जो भी सज्जन इस यात्रा में सम्मिलित होना चाहते हैं वह संपर्क करें एवं अपनी सीट आरक्षित कराएं।
॥हर हर महादेव॥🚩🚩

16/04/2023

उत्तराखंडी तीर्थ यात्रियों द्वारा भगवान श्री #पशुपतिनाथ (काठमांडू) के चरणों में रुद्राष्टाध्याई के पाठ के ,पश्चात श्री #लिंगाष्टकम का सामूहिक पाठ-पूजन किया गया🚩🚩

15/04/2023

#उत्तराखंडी परंपरा #रंगवाई- #पिछौड़ा के साथ श्री पशुपतिनाथ (काठमांडू) में लोगों द्वारा सदा #शिव का पूजन किया गया॥

#रुद्राष्टाध्यायी :
इसे #शुक्लयजुर्वेदीय #रुद्राष्टाध्यायी भी कहते हैं। रुद्राष्टाध्यायी दो शब्द रुद्र अर्थात् शिव और अष्टाध्यायी अर्थात् आठ अध्यायों वाला, इन आठ अध्यायों में शिव समाए हैं। वैसे तो रुद्राष्टाध्यायी में कुल दस अध्याय हैं परंतु आठ तक को ही मुख्य माना जाता है।

रुद्राष्टाध्यायी क्या है? :

#रुद्राष्टाध्यायी #यजुर्वेद का अंग है और #वेदों को ही सर्वोत्तम ग्रंथ बताया गया है। वेद शिव के ही अंश है वेद: शिव: शिवो वेद:। अर्थात् वेद ही शिव है तथा शिव ही वेद हैं, वेद का प्रादुर्भाव शिव से ही हुअा है। भगवान शिव तथा विष्णु भी एकांश हैं तभी दोनो को हरिहर कहा जाता है, हरि अर्थात् नारायण (विष्णु) और हर अर्थात् महादेव (शिव) वेद और नारायण भी एक हैं । यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में वेदों का इतना महत्व है तथा इनके ही श्लोकों, सूक्तों से पूजा, यज्ञ, अभिषेक आदि किया जाता है। शिव से ही सब है तथा सब में शिव का वास है, शिव, महादेव, हरि, विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, नीलकंठ आदि सब ब्रह्म के पर्यायवाची हैं। रुद्र अर्थात् ‘रुत्’ और रुत् अर्थात् जो दु:खों को नष्ट करे, वही रुद्र है।

रुद्रहृदयोपनिषद् में लिखा है कि रूद्र ही ब्रह्मा, विष्णु है सभी देवता रुद्रांश है और सबकुछ रुद्र से ही जन्मा है। इससे यह सिद्ध है कि रुद्र ही ब्रह्म है, वह स्वयम्भू

महिमा :

इसी रुद्र (शिव) के उपासना के निमित्त रुद्राष्टाध्यायी ग्रंथ वेद का ही सारभूत संग्रह है। जिस प्रकार दूध से मक्खन निकालते हैं उसी प्रकार जनकल्याणार्थ शुक्लयजुर्वेद से रुद्राष्टाध्यायी का भी संग्रह हुआ है। इस ग्रंथ में गृहस्थधर्म, राजधर्म, ज्ञान-वैराज्ञ, शांति, ईश्वरस्तुति आदि अनेक सर्वोत्तम विषयों का वर्णन है।

मनुष्य का मन विषयलोलुप होकर अधोगति को प्राप्त न हो और व्यक्ति अपनी चित्तवृत्तियों को स्वच्छ रख सके इसके निमित्त रुद्र का अनुष्ठान करना मुख्य और उत्कृष्ट साधन है। यह रुद्रानुष्ठान प्रवृत्ति मार्ग से निवृत्ति मार्ग को प्राप्त करने में समर्थ है। इसमें ब्रह्म (शिव) के निर्गुण और सगुण दोनों रूपों का वर्णन हुआ है। जहाँ लोक में इसके जप, पाठ तथा अभिषेक आदि साधनों से भगवद्भक्ति, शांति, पुत्र पौत्रादि वृद्धि, धन धान्य की सम्पन्नता और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है; वहीं परलोक में सद्गति एवं मोक्ष भी प्राप्त होता है। वेद के ब्राह्मण ग्रंथों में, उपनिषद, स्मृति तथा कई पुराणों में रुद्राष्टाध्यायी तथा रुद्राभिषेक की महिमा का वर्णन है।

वायुपुराण में लिखा है–

जो व्यक्ति समुद्रपर्यन्त, वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धनधान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के रुद्री[4] जप एवं रुद्राभिषेक का है। इसलिये जो भगवान शिव का ध्यान करके रुद्री का पाठ करता है, वह उसी देह से निश्चित ही रुद्ररूप हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।

इस प्रकार साधन पूजन की दृष्टि से रुद्राष्टाध्यायी का विशेष महत्व है।

प्राय: कुछ लोगों मे यह धारणा होती है कि मूलरूप से वेद के सुक्त आदि पुण्यदायक होते हैं अत: इन मन्त्रों का केवल पाठ और सुनना मात्र ही आवश्यक है। वेद तथा वेद के अर्थ तथा उसके गंभीर तत्वों से विद्वान प्राय: अनभिज्ञ हैं। वास्तव में यह सोच गलत है, विद्वान वेद और वान से मिलकर बना है, तो वेद के विद्या को जो जाने वही विद्वान है, इसके संदर्भ में उनको जानकारी होना आवश्यक है। प्राचीन ग्रंथों में भी वैदिक तत्वों की महिमा का वर्णन है।

निरुक्तकार कहते हैं कि जो वेद पढ़कर उसका अर्थ नहीं जानता वह भार वाही पशु के तुल्य है अथवा निर्जन वन के सुमधुर उस रसाल वृक्ष के समान है जो न स्वयं उस अमृत रस का आस्वादन करता है और न किसी अन्य को ही देता है। अत: वेदमंत्रों का ज्ञान अतिकल्याणकारी होता है–

अत: रुद्राष्टाध्यायी के अभाव में शिवपूजन की कल्पना तक असंभव है।

परिचय :

रुद्राष्टाध्यायी अत्यंत ही मूल्यवान है, न ही इससे बिना रुद्राभिषेक ही संभव है और न ही इसके बिना शिव पूजन ही किया जा सकता है। यह शुक्लयजुर्वेद का मुख्य भाग है। इसमें मुख्यत: आठ अध्याय हैं पर अंतिम में शान्त्यध्याय: नामक नवम तथा स्वस्तिप्रार्थनामन्त्राध्याय: नामक दशम अध्याय भी हैं।

इसके प्रथम अध्याय में कुल 10 श्लोक है तथा सर्वप्रथम गणेशावाहन मंत्र है, प्रथम अध्याय में शिवसंकल्पसुक्त है।

द्वितीय अध्याय में कुल 22 वैदिक श्लोक हैं जिनमें पुरुसुक्त (मुख्यत: 16 श्लोक) है। इसी प्रकार आदित्य सुक्त तथा वज्र सुक्त भी सम्मिलित हैं।

पंचम अध्याय में परम् लाभदायक रुद्रसुक्त है, इसमें कुल 66 श्लोक हैं। छठें अध्याय के पंचम श्लोक के रूप में महान महामृत्युंजय श्लोक है।

सप्तम अध्याय में 7 श्लोकों की अरण्यक श्रुति है प्रायश्चित्त हवन आदि में इसका उपयोग होता है।

अष्टम अध्याय को नमक-चमक भी कहते हैं जिसमें 24 श्लोक हैं।

इस लेख को पढ़ने वाले एवं रुद्राष्टाध्याई को श्रवण करने वाले सभी भक्तों को महादेव अपने शरणागति प्रदान करें 🚩🚩🚩
‌‌ ॥हर हर महादेव॥

यात्रा बुक तीर्थ यात्रा सर्विसेज के द्वारा आयोजित 8 दिवसीय, श्री  #पशुपतिनाथ तीर्थयात्रा  #काठमांडू ( #नेपाल) संपन्न हुई...
13/04/2023

यात्रा बुक तीर्थ यात्रा सर्विसेज के द्वारा आयोजित 8 दिवसीय, श्री #पशुपतिनाथ तीर्थयात्रा #काठमांडू ( #नेपाल) संपन्न हुई जिसमें समस्त यात्रियों को उच्च आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुए 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

-आगामी यात्रा 1 जून 2023 से 11 जून 2023 तक ,उत्तराखंड श्री चार धाम यात्रा बदरीनाथ ,केदारनाथ यमुनोत्री, गंगोत्री🚩🚩🙏

यात्रा बुक टूर एंड तीर्थ यात्रा सर्विसेज द्वारा आयोजित पांच दिवसीय ब्रज धाम यात्रा का आनंद पूर्वक समापन हुआ। इस तीर्थ या...
18/03/2023

यात्रा बुक टूर एंड तीर्थ यात्रा सर्विसेज द्वारा आयोजित पांच दिवसीय ब्रज धाम यात्रा का आनंद पूर्वक समापन हुआ। इस तीर्थ यात्रा के दौरान सुखमय अनुभूति के अनेक अवसर प्राप्त हुए, ॥जय श्री राधे-कृष्णा॥🚩

संपूर्ण विश्व के समस्त शिव भक्तों को  #महाशिवरात्रि की हार्दिक एवं अनंत- अनंत शुभकामनाएं🚩🙏🚩‘नमामीशमीशान निर्वाण रूपं। वि...
18/02/2023

संपूर्ण विश्व के समस्त शिव भक्तों को #महाशिवरात्रि की हार्दिक एवं अनंत- अनंत शुभकामनाएं🚩🙏🚩

‘नमामीशमीशान निर्वाण रूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद-स्वरूपं।’’

अर्थात भगवान शिव मुक्ति स्वरूप, सर्वव्यापक, साक्षात् ब्रह्म तथा वेद स्वरूप हैं। हम उनकी आराधना करते हैं। यह स्तुति हमें रामचरितमानस के उत्तरकांड में प्राप्त होती है।

अष्टादश पुराणों, वेदों, स्मृतियों में भगवान शिव की महिमा का वर्णन प्राप्त होता है जिनकी कृपा से काकभुषुंडि जी रामायण के श्रेष्ठ वक्ता बने।

ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शकंराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।’’

अर्थात भगवान शिव कल्याण एवं सुख के प्रदाता एवं मूल स्रोत हैं। वह महादेव उमापति सब शरीरों में जीव रूप से प्रविष्ट हैं, वे आदिकारण परमात्मा, सर्वव्यापक, अजन्मा, नित्य तथा कल्याण स्वरूप हैं, उन मंगलस्वरूप मंगलमयता की सीमा भगवान शिव को नमस्कार है।


महा शिवरात्रि भगवान शिव तथा मां पार्वती जी के शुभ विवाह की रात्रि है। कार्तिकेय जी तथा विघ्नहर्ता श्री गणेश जी जिनके सुपुत्र हैं, नंदी जिनके वाहन हैं, जो चंद्रमौलेश्वर हैं, जिनकी जटाओं में साक्षात् गंगा जी विराजित हैं, जो नीलकंठ हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, वेद और वेदांग जिनके स्वरूप हैं, वे भगवान शिव सर्वकाल में अपने भक्तों की रक्षा हेतु तत्पर रहते हैं। 🚩

🚩॥हर हर महादेव॥🚩

 #बग्वाल  #उत्तराखंड का राजकीय मेला..  #बग्वाल का अर्थ होता है , पत्थरों की बारिश या पत्थर युद्ध का अभ्यास। पत्थर युद्ध ...
08/02/2023

#बग्वाल #उत्तराखंड का राजकीय मेला..
#बग्वाल का अर्थ होता है , पत्थरों की बारिश या पत्थर युद्ध का अभ्यास। पत्थर युद्ध पहाड़ी योद्धाओं की एक विशिष्ट सामरिक प्रक्रिया रही है। महाभारत में इन्हे पाषाण योधि ,अशम युद्ध विराशद कहा गया है। जिस प्रकार वर्षाकाल की समाप्ति पर पर्वतों के राजपूत राजाओं द्वारा युद्धाभ्यास किया जाता था। ठीक उसी प्रकार छोटे -छोटे ठाकुरी शाशकों या मांडलिकों द्वारा भी वर्षाकाल की समाप्ति पर पत्थर युद्ध का अभ्यास किया जाता था जिसे बग्वाल कहा जाता था ।
कहा जाता है कि चंद राजाओं के काल में पाषाण युद्ध की परम्परा जीवित थी। उनके सेना में कुछ सैनिकों की ऐसी टुकड़ी भी होती थी ,जो दूर दूर तक मार करने में सिद्ध हस्त थी। बग्वाली पर्व के दिन इसका प्रदर्शन भी किया जाता था। कुमाऊं में पहले दीपावली के तीसरे दिन भाई दूज को बग्वाल खेली जाती थी इसलिए इस पर्व को बग्वाली पर्व भी कहा जाता है। पत्थर युद्ध पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग हुवा करता था। इसका सशक्त उदाहरण कुमाऊं की बूढी देवी परम्परा है।

कुमाऊं में पहले कई स्थानो में बग्वाल खेली जाती थी। चंद राजाओं तक बग्वाल का प्रचलन था लेकिन बाद में अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। अब केवल श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा वाराही मंदिर में बग्वाल खेली जाती है।

कुमाऊं में केवल अब एक ही बग्वाल मनाई जाती है। इसे श्रावणी पूर्णिमा के दिन अर्थात रक्षाबंधन के दिन चम्पावत जिले के देवीधुरा माँ बाराही के मंदिर में खेला जाता है। परम्परा के अनुसार आषाढ़ी मेला शुरू छपने के दिन ( श्रावण शुक्ल एकादशी ) के दिन इस पत्थर युद्ध में भाग लेने वाले ,महर व् फ़र्त्यालो के चार खामो – गहड़वाल ,चम्याल ,वालिग और लमगड़िया एवं सात थोको के मुखिया वाराही देवी के मंदिर में शुभमुहूर्त पर देवी के डोले की पूजा करते हैं। ऐसे सांगी पूजा कहा जाता है। इसके बाद ये लोग दूसरे को पारम्परिक रूप से पूर्णमासी की बग्वाल के लिए आमंत्रित करते हैं।

पूर्णिमा ( रक्षाबन्धन ) के दिन चारों खामों के मुखिया सुबह यहाँ आकर देवी की पूजा अर्चना करते हैं और देवी का प्रसाद लेकर अपने गावों में जाकर बितरित करते हैं। उसके बाद इस बग्वाल में स्वेच्छा से भाग लेने वाले जिन्हे द्योका ( देवी को अर्पित ) कहा जाता है। वे नीसाण (ध्वजा ) ढोल नगाड़े शंख घड़ियाल ,गाजे बाजों की ध्वनि के साथ , आत्मरक्षा के लिए छंतोलियां लेकर और हमला करने के लिए गोल पत्थर लेकर माँ वाराही धाम की ओर प्रस्थान करते हैं। इनके प्रस्थान से पहले महिलाएं इनकी आरती करती हैं अक्षत परखती हैं। और महिलाये उन्हें अस्त्र शस्त्र के रूप में खुद द्वारा चुने हुए गोल पत्थर देती हैं। पूरा माहौल युद्धमय होता है। और शकुनाखर (मंगल गीत ) गाकर उन्हें विदा करती हैं। प्राचीन काल की क्षत्राणियों की तरह विजय होकर लौटने की मंगल कामना करती हैं। इसमें एक और खास चीज होती है , इस पत्थर युद्ध में भाग लेने वाले योद्दा जी द्योका कहते हैं , यदि उसकी माता जीवित है तो वह योद्धा रणभूमि में जाने से पूर्व अपनी माँ को माँ वाराही स्वरूपा मानकर माँ का स्तनपान अवश्य करता है। चाहे वह कितनी भी उम्र का हो। इसके पीछे यह विश्वास होता है की मातृशक्ति काअमृत इस महायुद्ध में उसकी रक्षा करेगा।

द्योका ( पत्थर युद्ध में भाग लेने वाले ) को सांगी पूजन से बग्वाल के संपन्न होने तक कठोर अनुशासन, व्रत और नियमो का पालन करना पड़ता है। जैसे -मडुवे की रोटी , मसूर की दाल , मांस , मदिरा ,बहार का खाना ,स्त्री संसर्ग आदि का परहेज करना पड़ता है। वाराही धाम पहुंचने के बाद ये देवी गुफा की परिक्रमा करने के बाद रणक्षेत्र खोलिखाण दूबाचौड़ नामक मैदान के पांच फेरे लेने के बाद अपने पत्थर और छंतोलियों के साथ अपने नियत मोर्चे पर डट जाते हैं। इसमें कई रिश्तेदार एक दूसरे के विरुद्ध योद्धा रूप में खड़े दिखते हैं। इसके बाद युद्ध घोष के लिए बाजा बजता है तो सभी सावधान मुद्रा में तैयार हो जाते हैं। फिर नियत समय पर पुजारी जी युद्ध का शंखनाद करके पत्थर युद्ध आरम्भ की घोषणा करते हैं। दोनों तरफ से पहले थोड़ी देर कोरी बग्वाल ( बिना छत्रों की सुरक्षा के ) खेली जाती है। फिर थोड़ी देर में ,छत्रों की आड़ में ऐसी भयकर पत्थर वर्षा होती है ,कि उस समय कोई बाहरी शक्ति उनके बीच घुसने की हिम्मत नहीं कर सकती।

इसमें भाग लेने वाले योद्धाओं के अंदर ऐसा जोश ,और उन्माद होता है, उस समय पत्थर के चोट का दर्द भी महसूस नहीं होता। इन धड़ों के बीच होने वाले युद्ध में जब पुजारी को यह अनुमान हो जाता है कि ,लगभग एक आदमी के बराबर रक्त प्रवाह हो गया है। तब वो छत्रक की आड़ लेकर एक हाथ में चवर और शंख लेकर बचता बचाता युद्ध क्षेत्र के मध्य जाकर शंख बजाकर व् चवर हिलाकर युद्धविराम की घोषणा करता है। इसके बाद युद्धरत चारों खामे एक दूसरे को उत्सव के सफल समापन पर बधाई देते हैं। और रणक्षेत्र से विदाई लेते हैं। वर्तमान में राज्य सरकार की तरफ से स्वास्थ सेवा दी जाती है। मंदिर में किसी भी आपात स्थिति के लिए प्राथमिक सुरक्षा दस्ता तैनात रहता है।

लोक कथा –
लोक कथाओं के आधार पर माँ वाराही देवी के गणो को तृप्त करने के यहाँ के चारों क्षत्रिय धड़ों में से बारी -बारी से नरबलि देने का प्रावधान तांत्रिकों ने बनवाया था। कहते हैं एक बार चम्याल खाम की वृद्धा की एकलौते पौत्र की बलि देने की बारी आई तो ,वृद्धा अपने वंश के नाश का आभास से दुखी हो गई। उसने माँ वाराही देवी की पिंडी के पास घोर तपस्या करके माँ को खुश कर दिया। माँ ने प्रसन्न होकर बोला , यदि में गणो के लिए एक आदमी के बराबर रक्त की व्यवस्था हो जाय तो वो नरबलि के लिए नहीं बोलेंगी। तब सभी धड़े इस बात पर राजी हो गए कि नरबलि के लिए किसी को नहीं भेजा जायेगा ,बल्कि सब मिलकर एक मनुष्य के बराबर खून अर्पण करेंगे। कहते हैं ,तब से ये परम्परा चली आ रही है।

इतिहास –
नरबलि से सम्बंधित बग्वाल की यह लोक कथा या जनश्रुति कितनी वास्तविक और तथ्यपरक है , इसके सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य न मिलने के कारण इसके बारे में निश्चित रूप से कहना मुश्किल है। किन्तु प्राचीन और मध्यकालीन ऐतिहासिक तथ्य इस बात के प्रमाण अवश्य हैं कि ,पत्थर युद्ध हिमालयी क्षेत्रों के क्षत्रियों की परम्परागत सामरिक पद्धति का अभिन्न अंग होता था। इस सामरिक अभ्यास को वर्षाकाल के समापन के बाद एक उत्सव के रूप में मनाया जाता था। कालांतर में प्रशासनिक परिवर्तन आ जाने के कारण इनको अलग अलग रूपों में जोड़ दिया गया है। भाई दूज पर कुमाऊं में मनाई जाने वाली बग्वाली त्यौहार इसका सटीक उदाहरण है। दीपावली पर खेली जाने वाली बग्वाल का रूप बदल के अब केवल एक त्यौहार के रूप में रह गया है। इसी प्रकार कई अन्य उत्सव भी हैं जो बग्वाल (पत्थर युद्ध का अभ्यास ) के रूप में मनाये जाते थे। लेकिन अब उनका स्वरूप बदल चूका है। काली कुमाऊं में प्रचलित एक कहावत -” दस दसैं बीस बग्वाल , कालिकुमु फूलि भंडाव ” के आधार पर देखे तो पता चलता है ,कि केवल कुमाऊं मंडल में ही बीस बग्वाल खेली जाती थी। अर्थात बीस स्थानों पर उत्सव रूप में पत्थर युद्ध का अभ्यास होता था। लेकिन अब केवल एक ही बग्वाल रह गई है , जो श्रावणी पूर्णिमा के दिन देवीधुरा माँ वाराही के प्रांगण में मनाई जाती है।

🚩🚩॥जय मां #बाराही॥🚩🚩

 #उत्तराखंड जो ऐसे ही कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है । ऐसा ही एक स्थल रुद्रप्रयाग में स्थित है जिसे “ #त...
26/01/2023

#उत्तराखंड जो ऐसे ही कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है । ऐसा ही एक स्थल रुद्रप्रयाग में स्थित है जिसे “ #त्रियुगीनारायण मंदिर” से नाम से जाना जाता है |
#त्रियुगिनारायण मंदिर #त्रेता युग में स्थापित किया गया था , जबकि #केदारनाथ और #बद्रीनाथ #द्वारपर युग में स्थापित हुए | #त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान #शिव जी और माता #पार्वती का शुभ #विवाह स्थल है । त्रियुगीनारायण मंदिर के अन्दर सदियों से अग्नि जल रही है | इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और देवी पारवती ने विवाह किया था | मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम “त्रियुगी” हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है । त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी । यहां शिव पार्वती के विवाह में भगवान #विष्णु ने देवी पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था । जबकि ब्रह्मा जी ने शिव और पारवती जी के विवाह में पुरोहित बने थे । उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था । विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है , जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है । विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं , जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहा जाता हैं । यहां पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है और इस मंदिर अधिकांश लोग #त्रियुगीनारायण मंदिर के नाम से ही पुकारते हैं । इस मंदिर को लेकर मान्यता है इस मंदिर से भगवान शिव और देवी पार्वती का गहरा नाता है। यही वह जगह है जहां पर शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था क्योंकि निशानियों के तौर पर बहुत सी ऐसी चीजें यहां पर उपलब्ध हैं ।

#त्रियुगीनारायण मंदिर में भगवान विष्णु अपने #वामन रूप में पूजे जाते है और साथ ही साथ श्री बद्रीनाथ , भगवान रामचन्द्र जी की प्रतिमाएं भी गर्भगृह में मौजूद है । मंदिर में दीपदान अखंड प्रज्वलित रहता है इसी दीपदान के निकट ही शिव पार्वती की पाषण निर्मित प्रतिमा है। मंदिर में स्थित हवन कुण्ड भी निरंतर प्रज्वलित रहता है इसकी अग्नि में लकड़ी , घी, जौ- तिल अर्पित किया जाता है। इस कुण्ड की राख को लोग मस्तक पर लगते है जिसे लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है। साथ ही साथ मंदिर के आँगन यहाँ ब्रहाकुंड , रूद्रकुण्ड , सारस्वतकुण्ड , एवं सूर्यकुण्ड नाम से जानने वाले चार कुण्ड है, जिनमें स्नान व तर्पण की परंपरा है | ऐसा भी माना जाता है कि हवनकुंड से निकलने वाली राख भक्तो के वैय्वाहिक जीवन को सुखमय बना देती है |

#त्रियुगीनारायण मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड हैं , जो आज भी प्रज्ज्वलित रहता है । इसमें प्रसाद के रूप में लकड़ियां चढाई जाती है और लोग इस हवन कुंड की राख लेकर घर जाते हैं । इस हवन कुंड के बारे में यह माना जाता है कि इसी हवन कुंड में शिव पार्वती ने सात फेरे लिए थे । मंदिर के निकट पर एक ब्रह्मकुंड हैं और इस ब्रह्मकुंड के बारे में यह मान्यता है कि जब ब्रह्मा जी भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह कराने के लिए आए थे , तो उस समय उन्होंने इसी कुंड (ब्रह्मकुंड) में सबसे पहले स्नान किया था । इसके बाद ही ब्रह्मा जी ने भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह कराया था । वर्तमान समय में इस स्थान पर आने वाले लोग इस “ब्रह्मकुंड” को पवित्र मानकर इसमें स्नान करते हैं और ब्रह्म जी से आशीर्वाद लेते हैं ।

#विष्णुकुंड – भगवान विष्णु ने भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह में विशेष भूमिका यानी कि देवी पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी । ऐसे में विष्णु जी ने विवाह से पहले जिस कुंड में स्नान किया था । वह कुंड वर्तमान में “विष्णु कुंड” के नाम से जाना जाता है । इसके अलावा विवाह में शामिल होने से पहले सभी देवी-देवताओं ने जिस कुंड में स्नान किया , उसे “रुद्र कुंड” के नाम से जाना गया। इसके अलावा यहां पर एक स्तंभ बना है। कहते हैं कि इस स्तंभ में विवाह में शिव जी को एक जो गाय मिली थी। उसे इसी जगह पर बांधा गया था।

तीनो कुंडो में जल सरस्वती कुंड से आता है | सरस्वती कुंड का निर्माण भगवान् विष्णु की नाबी से हुआ था इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंडो में स्नान करने से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है , एवम् जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थल की यात्रा करते है ,वे अपने साथ अखंड ज्योति की विभूति भी ले जाते है , ताकि उनका वैवाहिक जीवन भगवान शिव और देवी पारवती के आशीर्वाद से मंगलमय बना रहे|

हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती ने माँ पार्वती के रूप में अपना दूसरा जन्म लिया था और भगवान शिव को पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की और उनकी इसी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी माँ पार्वती से विवाह के लिए तैयार हुए और त्रियुगीनारायण वही स्थान है , जहाँ भगवान शिव पार्वती का विवाह सभी देवताओं के समक्ष हुआ था इस विवाह में भगवान विष्णु जी विशेष रूप से माँ पार्वती के भाई बन के सम्मलित हुए और उसी विवाह की अग्नि आज भी ‘अखंड धूनी’ के रूप में विघमान है , जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने प्रज्वलित किया था । इस कारण निरन्तर जल रही उस अग्नि के कारण ही यह स्थान “त्रियुगी नारायण” के नाम से जाना जाता है ।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इन्द्रासन पाने के लिए राजा बलि को 100 यज्ञ करने थे | उनमे से राजा ने 99 यज्ञ पुरे किये , तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि को रोक दिया , जिससे की राजा बाली का यज्ञ भंग हो गया , इसलिए विष्णु भगवान् को इस स्थान पर वामन देवता के रूप में पूजा जाता है |
॥हर हर महादेव॥🙏

24/01/2023

#वाराणसी ( #काशी) जो संपूर्ण विश्व की सबसे #प्राचीनतम नगरी है एवं #सनातन संस्कृति का ज्ञान केंद्र व तंत्र शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र जैसे अनेक विषयों मूल का केंद्र रही है।
काशी में गंगा किनारे स्थित अट्ठासी 88 घाटों का अपना विशेष महत्व है, यहां पर स्थित #मणिकर्णिका घाट एवं राजा #हरिश्चंद्र घाट, जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति हेतु अपना विशेष ही महत्त्व रखते हैं।
॥हर हर महादेव॥🚩🛕🚩

यात्रा बुक तीर्थ यात्रा सर्विसेज ,के द्वारा आयोजित 3 जनवरी से 16 जनवरी के मध्य -श्री गंगासागर तीर्थ यात्रा के आनंददायक छ...
21/01/2023

यात्रा बुक तीर्थ यात्रा सर्विसेज ,के द्वारा आयोजित 3 जनवरी से 16 जनवरी के मध्य -श्री गंगासागर तीर्थ यात्रा के आनंददायक छायाचित्र 🚩🛕🚩

✒️✅-आगामी तीर्थ यात्रा ‌(3 अप्रैल से 10 अप्रैल) के मध्य श्री पशुपतिनाथ काठमांडू,(नेपाल) यात्रा🚩🛕🚩
Mob.✅ 7906888033
✅ 7500043498

कोटि कोटि नमन ॥  #हीरा  #बा॥ #नरेंद्र  #मोदी जैसे  #कोहिनूर  #हीरे को , जन्म देने वाली  #जननी आज श्री  #वैकुंठ  #धाम को ...
30/12/2022

कोटि कोटि नमन ॥ #हीरा #बा॥
#नरेंद्र #मोदी जैसे #कोहिनूर #हीरे को , जन्म देने वाली #जननी आज श्री #वैकुंठ #धाम को प्राप्त कर गई ॥🙏

ईश्वर आपको, अपने श्री चरणों में सर्वोच्च स्थान प्रदान करें॥ 🙏🙏

 #उत्तराखंड में स्थित,  #कालीमठ मंदिर  #रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है एवम् इस मंदिर को भारत के प...
23/12/2022

#उत्तराखंड में स्थित, #कालीमठ मंदिर #रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है एवम् इस मंदिर को भारत के प्रमुख सिद्ध शक्ति पीठों में से एक माना जाता है । #कालीमठ मंदिर हिंदू “देवी #काली” को समर्पित है । #कालीमठ मंदिर तन्त्र व साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामख्या व ज्वालामुखी के सामान अत्यंत ही उच्च कोटि का है । #स्कन्दपुराण के अंतर्गत #केदारनाथ के 62 अध्धाय में माँ काली के इस मंदिर का वर्णन है | #कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर स्थित दिव्य चट्टान को‘काली शिला’ के रूप में जाना जाता है , जहां देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं और कालीशीला के बारे में यह विश्वास है कि माँ दुर्गा ने शुम्भ , निशुम्भ और रक्तबीजदानव का वध करने के लिए कालीशीला में 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुयी थी | कालीशीला में देवी देवता के 64 यन्त्र है , माँ दुर्गा को इन्ही 64 यंत्रो से शक्ति मिली थी | कहते है कि इस स्थान पर 64 योगनिया विचरण करती रहती है | मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी । तब मां प्रकट हुई और असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने विकराल रूप धारण कर युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया।
कालीमठ मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है , मंदिर के अन्दर भक्त कुंडी की पूजा करते है , यह कुंड रजतपट श्री यन्त्र से ढखा रहता है । केवल पूरे वर्ष में शारदे नवरात्री में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और दिव्य देवी को बाहर ले जाया जाता है और पूजा केवल मध्यरात्रि में की जाती है, जब केवल मुख्य पुजारी मौजूद है | कालीमठ मंदिर सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक है, जिसमें शक्ति की शक्ति है | यह केवल ऐसी जगह है जहां देवी माता काली अपनी बहनों माता लक्ष्मी और माँ सरस्वती के साथ स्थित है । कालीमठ में महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है | इन मंदिरों का निर्माण उसी विधान से संपन्न है जैसा की दुर्गासप्तशती के वैकृति रहस्य में बताया है अर्थात बीच में महालक्ष्मी, दक्षिण भाग में महाकाली और वाम भाग में महासरस्वती की पूजा होनी चाहिए । स्थानीय निवासीओं के अनुसार, यह भी किवदंती है कि माता सती ने पार्वती के रूप में दूसरा जन्म इसी शिलाखंड में लिया था। वहीं, कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था । उसका रक्त जमीन पर न पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया । रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है । इस शिला पर माता ने उसका सिर रखा था । रक्तबीज शीला वर्तमान समय में आज भी मंदिर के निकट नदी के किनारे स्थित है |

इस मंदिर में एक अखंड ज्योति निरंतर जली रहती है एवम् कालीमठ मंदिर पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित हैं | कालीमठ मंदिर में दानवो का वध करने के बाद माँ काली मंदिर के स्थान पर अंतर्ध्यान हो गयी , जिसके बाद से कालीमठ में माँ काली की पूजा की जाती है | कालीमठ मंदिर की पुनर्स्थापना शंकराचार्य जी ने की थी | गांव कालीमठ मूल रूप से और अभी भी गांव ‘कवल्था’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि भारतीय इतिहास के अद्वितीय लेखक कालिदास का साधना स्थल भी यही रहा है । इसी दिव्य स्थान पर कालिदास ने माँ काली को प्रसन्न कर विद्वता को प्राप्त किया था । इसके बाद कालीमठ मंदिर में विराजित माँ काली के आशीर्वाद से ही उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं , जिनमें से संस्कृत में लिखा हुआ एकमात्र काव्य ग्रन्थ “मेघदूत” जो कि विश्वप्रसिद्ध है | “रुद्रशूल” नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं , जो बाह्मी लिपि में लिखे गए हैं । इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है।
मंदिर के नदी के किनारे स्थित कालीशीला के बारे में यह मान्यता है कि कालीमठ में माँ काली ने जिस शीला पर दानव रक्तबीज का वध किया , उस शीला से हर साल दशहरा के दिन वर्तमान समय में भी रक्त यानी खून निकलता है | यह भी माना जाता है कि माँ काली शिम्भ , निशुम्भ और रक्तबीज का वध करने के बाद भी शांत नहीं हुई , तो भगवान शिव माँ काली के चरणों के निचे लेट गए थे , जैसे ही माँ काली ने भगवान शिवजी के सीने में पैर रखा , तो माँ काली का क्रोध शांत हो गया और वह इस कुंड में अंतर्ध्यान हो गई , माना जाता है कि माँ काली इस कुंड में समाई हुई है और कालीमठ मंदिर में शिवशक्ति भी स्थापित है |

॥ जय मां काली ॥🚩🛕🚩🛕🚩

 #उत्तराखंड में  #लाखामंडल जहां  #दुर्योधन ने  #पांडवों को  #जलाकर मारने के लिए  #लक्षागृह का निर्माण करवाया.......🚩🚩🚩 #...
21/12/2022

#उत्तराखंड में #लाखामंडल जहां #दुर्योधन ने #पांडवों को #जलाकर मारने के लिए #लक्षागृह का निर्माण करवाया.......🚩🚩🚩
#लाखामंडल मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो कि उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसर-बावार क्षेत्र में स्थित है । यह मंदिर देवता भगवान #शिव और देवी #पार्वती को समर्पित हैं ,यह मंदिर शक्ति पंथ के बीच बहुत लोकप्रिय है क्योंकि उनका मानना ​​है कि इस मंदिर की यात्रा उनके दुर्भाग्य को समाप्त कर देगी । मंदिर अद्भुत कलात्मक काम से सुशोभित है । #लाखामंडल मंदिर का नाम दो शब्दों से मिलता है | लाख अर्थ “कई” औरमंडल जिसका अर्थ है “मंदिरों” या “लिंगम” मंदिर में दो शिवलिंग अलग-अलग रंगों और आकार के साथ स्थित हैं , “द डार्क ग्रीन शिवलिंग” द्वापर युग से संबंधित है , जब भगवान कृष्ण का अवतार हुआ था और “लाल शिव लिंग” त्रेता युग से संबंधित हैं , जब भगवान राम का अवतार हुआ था । लाखामंडल मंदिर को उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में बनाया गया है , जो कि गढ़वाल, जौनसर और हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रों में मामूली बात है | मंदिर के अंदर पार्वती के पैरों के निशान एक चट्टान पर देखे जा सकते हैं , जो इस मंदिर की विशिष्टता है । लाखामंडल मंदिर में भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश, भगवान विष्णु और भगवान हनुमान की मूर्तियां मंदिर के अंदर स्थापित हैं ।

मंदिर परिसर में स्थित दर्जनों पौराणिक लघु शिवालय , ऐतिहासिक और प्राचीन मूर्तियां पर्यटकों को अपनी ओर अत्यंत आकर्षित करती है | मंदिर में एक विशाल बरामदा है और उसके मध्य में एक बड़ा शिव लिंग मंच पर रखा गया है । मंदिर के बाहर मुख्य द्वार के दोनों ओर दो नंदी रखे जाते हैं । लाखामंडल मंदिर जहाँ स्थित है , उस क्षेत्र में यमुना नदी लाखामंडल गांव के साथ बहती है |
मान्यता है कि यहां पर महाशिवरात्रि को जो भी श्रद्धालु आता है। भगवान भोलेनाथ उसकी इच्छा अवश्य पूरी करते हैं एवम् साथ ही साथ महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में ज्योतिलिंग के सामने पूरी रात जागरण करने पर निसंतान दंपति को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

लाखामंडल मंदिर का एक ऐतिहासिक महत्व है और यह माना जाता है कि मंदिर का निर्माण #युधिष्ठिर द्वारा किया गया था । यह वह जगह है , जहां #दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए “ #लक्षग्राह” बनाया था , लेकिन किस्मत से पांडवों को शक्ति से देवता के द्वारा बचाया गया था । इसलिए भगवान शिव और देवी पार्वती की पवित्र शक्ति का जश्न मनाने के लिए यहां एक शक्ति मंदिर का निर्माण किया गया था । पांडव एक गुफा के माध्यम से भाग गए लखामंडल मंदिर से 2 किमी की दूरी पर गुफा समाप्त होती है । वर्तमान मंदिर का निर्माण 8 वीं सदी में कई पत्थर छवियों के साथ एक पौराणिक संघ के साथ किया गया था । मंदिर प्रांगण में दो मुर्तिया जो कि 6 फुटलम्बी है मंदिर के पास स्थापित की गयी हैं जिसे मंदिर के द्वारपाल के रूप में जाना जाता है । मंदिर के कई हिस्सों में शिवलिंग मंदिर परिसर में बिखरे हुए देखे जा सकते हैं । लाखामंडल मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक पत्थर रूप शिवलिंग स्थापित है यदि उस पर पानी डालने के बाद वह शिवलिंग चमकता है और शिवलिंग पर पानी डालने के दौरान कोई व्यक्ति स्वयं की छवि भी देख लेता है तो माना जाता है कि उस व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है और साथ ही साथ से उसे कष्टो से भी मुक्ति मिल जाती है |

स्थानीय लोगों के अनुसार , लाखामंडल मंदिर और आस-पास के इलाकों को ऐसा स्थान माना जाता है , जहां दुर्योधन ने “ #लक्षग्राह” घर में पांडवों को जीवित जलाकर साजिश रची। पौराणिक कथा के अनुसार, यह मंदिर पहली बार तब खोजा गया था जब एक गाय शिवलिंग पर हर दिन अपने दूध से नहलाती थी । एक दिन स्वामी ने अपनी गाय का पीछा किया और तब उन्हें इस मंदिर का पता चला । लाखामंडल मंदिर केदारनाथ मंदिर की एक प्रतिकृति है । ऐसी मान्यता है कि मंदिर में अगर किसी शव को इन द्वारपालों के सामने रखकर मंदिर के पुजारी उस पर पवित्र जल छिड़कें तो वह मृत व्यक्ति कुछ समय के लिए पुन: जीवित हो उठता है । जीवित होने के बाद वह भगवान का नाम लेता है और उसे गंगाजल प्रदान किया जाता है। गंगाजल ग्रहण करते ही उसकी आत्मा फिर से शरीर त्यागकर चली जाती है। लेकिन इस बात का रहस्य क्या है यह आज तक कोई नहीं जान पाया। दिल को लुभाने वाली यह जगह गुफाओं और भगवान शिव के मंदिर के प्राचीन अवशेषों से घिरा हुआ है । यहां पर खुदाई करते वक्त विभिन्न आकार के और विभिन्न ऐतिहासिक काल के हजारों शिवलिंग मिले हैं । देहरादून से 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लाखामंडल नामक स्थान पर है। यह मंदिर यमुना नदी की तट पर बर्नीगाड़ नामक जगह से कुछ दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के पीछे दो द्वारपाल स्थित हैं, जिनमें से एक का हाथ कटा हुआ है । अब ऐसा क्यों हैं यह बात एक रहस्य ही बना हुआ है।

॥ हर हर महादेव ॥

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Near RTO Office Road, Near Mukund Banquet Hall, Kusumkhera , Haldwani, UTTRAKHAND
Haldwani
263139

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