18/10/2023
*प्रसंग - ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं ?*
अब तक *मैंने कई बार परमात्मा का नाम लिया। बहुत से लोग सोच सकते हैं, इस रॉकेट,कंप्यूटर,ऐटम,मोबाइल के युग में भी ईश्वर का अस्तित्व है ? उसको मानने की जरूरत है क्या ? या कोई कपोल कल्पना हैं ? कह सकते हैं, सोचते होंगे ईश्वर, ईश्वर, ईश्वर, परमात्मा, तो उसका उत्तर मैं देता हूँ* और प्रवचन को विराम देने की ओर ले जाता हूँ। मशीन पर भी पर, महायन्त्र पर भी दो-चार मिनट बोलना है। *थोड़ा विचार कीजिये, ईश्वर को मत मानिए, परमात्मा को मत मानिये लेकिन अपने को तो मानते हैं ना ? अपना जीवन तो २४ घंटे अपने पास है ना ? हम हो या आप हमारी आपकी प्रवृत्ति का या निवृत्ति का नियामक कौन है ? हमारे आपकी चाह का सचमुच में विषय कौन है ? इस पर विचार करना चाहिए। मैं बोलता हूँ..., मृत्यु का भय, अमृतत्त्व की भावना, अमीबा को भी छेड़िए तो मौत से बचने का प्रयास करता है या नहीं ? मृत्यु का भय, अमृतत्त्व की भावना। जहाँ मृत्यु का भय रहता है, वहाँ अमृतत्त्व की भावना रहती है, ऐसा जीवन जहाँ मौत की छाया भी न पहुँच सके। इसका अर्थ क्या है ? हम वो होकर रहना चाहते हैं जहाँ मौत की छाया ही ना पहुँच सके, मौत का भय तो नहीं पहुंचता है, गाढ़ी नींद में किसी को मौत का भय लगता है क्या ? गाढ़ी नींद में किसी को मौत का भय लगता है ? गाढ़ी नींद में सर्दी,गर्मी,भूख,प्यास,किसी द्वन्द की प्राप्ति होती है ? गाढ़ी नींद मे काम,क्रोध,किसी लोभ, मोह, शोक किसी भी मनोविकार की पहुँच होती है ? गाढ़ी नींद में किसी को दुख प्राप्त होता है और गाढ़ी नींद में किसको आनंद नहीं प्राप्त होता है ? तो हम अपने वास्तविक स्वरूप की ओर, चाह के वास्तविक विषय की ओर सन्निकट पहुँच जाते हैं। हमारी आपकी चाह का वास्तविक विषय पहला कौन है ? सत, ऐसा जीवन ऐसा तत्व हो कर रहूँ। जहाँ मौत की छाया भी ना पहुँच सके, ऐसा ज्ञान जहाँ जड़ता की,अज्ञता की छाया भी ना पहुँच सके, ऐसा आनंद जहाँ दुख की छाया भी ना पहुँच सके, *असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय।।**इसका अर्थ क्या हुआ जी ?* *हम सत् चित् आनंद को प्राप्त करना चाहते हैं, मृत्यु,अज्ञता, जड़ता,दुख के चपेट से विनिर्मुक्त होकर रहना चाहते हैं। "हमारी चाह का जो विषय है, उसी का नाम परमात्मा है।"* बुरा ना मानो होली है। मैं उदाहरण देता हूँ; उदाहरण देता हूँ। क्योंजी किसी को भूख लगती हो और सृष्टि में भोजन का,अन्य का अस्तित्व ही ना हो, संभव है क्या ? हमको आपको भूख लगती है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध हैं कि भोजन का अस्तित्व है। हमको आपको प्यास लगती है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में जल का अस्तित्व है। हमको आपको नेत्र प्राप्त हैं तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में रूप का अस्तित्व है। हमको आपको कान प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि कान का विषय शब्द है। हमको आपको त्वक् प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व मे स्पर्श हैं,हमको आपको रसन्इंद्रिय प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में जल का रस अस्तित्व है, हमको आपको नासिका प्राप्त है तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि विश्व में गंध का अस्तित्व है। हमको आपको अनादिकाल से सत् चित् आनंद की प्यास लगी हुई है। सत् चित् आनंद होकर हम रहना चाहते हैं तो डंके की चोट से यह तथ्य सिद्ध है कि कोई सच्चिदानंद तत्व है ओ वो हमसे भिन्न हुआ तो हमसे मिलेगा, बिछुड़ जायेगा फिर हमको मृत्यु का भय होगा ही, इसका मतलब क्या हुआ, "हमारी आपकी चाह का जो सचमुच में विषय हैं उसी का नाम परमात्मा हैं।" जल तरंग चिल्ला-चिल्लाकर कहे, जल कौन होता है ? तो जानकार कहेंगे,अरी ओ नादान, जल वही होता है जो तेरा जीवन होता है तेरी उत्पत्ति का स्थान ,तेरी स्थिति का स्थान, तेरी समृद्धि का स्थान जो, वहीं जल है अगर जीव कहता है, ईश्वर कौन होता है ? परमात्मा कौन होता है ? उसको कहना चाहिए जो तेरी चाह का असली विषय होता है। और एक बहुत महत्वपूर्ण बात है। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत आप सब जानते ही हैं। हमारे वैशेषिक दर्शन आदि ने है तो गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पहले ही उदभाषित कर रखा है थोड़ा विचार कीजिये, एक वृक्ष से कोई पत्ती गिरती हैं या फल गिरता है या यही हमने गेंदा का पुष्प लिया बल और वेगपूर्वक ऊपर उछाला, बल और वेग के निरस्त हो जाने पर गंगा ए. . गेंदा का पुष्प नीचे आएगा या नहीं ? क्यों आएगा ? क्योंकि पार्थिव हैं, पृथ्वी का कार्य हैं, गंधयुक्त है, गंधवती पृथ्वी है। इस दृष्टान्त के बल पर, इस दार्शनिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत है कि प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी की ओर आकृष्ट होता है । वहाँ पर अमेरिका में मान लीजिये, ब्रिटेन में मान लीजिये, हुआ ही था। आतंकवादियों के द्वारा या आतंकवादियों ने ११० मंजिल का भवन ढहा दिया था। आज कल ११० वीं मंजिल पर भी यांत्रिक विधा का आलंबन लेकर जल को पहुंचा चुके हैं। २५ वीं मंजिल पर, ११० वीं मंजिल पर भी जल से परिपूर्ण टोटी को खोलने पर जल की धारा नीचे क्यों प्रभावित होती है ? क्योंकि अंश हैं, उसका आकर्षण का केंद्र महोदधि समुद्र है। *प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी की ओर आकृष्ट होता है।* हम दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। दीप की शिखा ऊपर की ओर क्यों उठती है क्यूँ कि अंश है, अंशी कौन है ? नभो मंडल में विद्यमान आदित्य या सूर्य ? इसी प्रकार *हमारे आकर्षण का विषय* कौन हैं ? सत् चित् आनंद ऐसा जीवन जहाँ मौत, जड़ता दुख की पहुंच ना हो, *सच्चिदानंद* होकर हम रहना चाहते हैं, इसलिए सच्चिदानंद तत्व का अस्तित्व है।
_*पुरी पीठाधीश्वर, श्रीमज्जजगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराज*_