झारखंड दर्पण

झारखंड दर्पण झारखंड की सभ्यता और संस्कृति की विरासत

झारखंड की संस्कृति और परंपरा को जोहार।
07/09/2023

झारखंड की संस्कृति और परंपरा को जोहार।

शहर की दवा और गांव की हवा बराबर होती है।
08/08/2023

शहर की दवा और गांव की हवा बराबर होती है।

07/06/2023
जितनी गौरवशाली हमारी संस्कृति है उतनी ही वैभवशाली हमारी कला है! जोहार झारखंड दर्पण
19/03/2023

जितनी गौरवशाली हमारी संस्कृति है उतनी ही वैभवशाली हमारी कला है!
जोहार झारखंड दर्पण

जोहार झारखंड।
16/01/2023

जोहार झारखंड।

झारखंड के सभी साथियों को जोहार।अभी हमें उलगुलान जारी रखना होगा क्योंकि 👉*अभी सिर्फ 1932 स्थानीय नीति का का प्रस्ताव कैबि...
16/09/2022

झारखंड के सभी साथियों को जोहार।
अभी हमें उलगुलान जारी रखना होगा क्योंकि 👉

*अभी सिर्फ 1932 स्थानीय नीति का का प्रस्ताव कैबिनेट से पास हुआ है-
*आगे प्रस्ताव का प्रारूप बनेगा
*बिल के रूप में विधानसभा में पेश किया जाएगा
*बिल पर चर्चा होगी
*बिल विधानसभा में पास होगा
*बिल को राज्यपाल के पास भेजा जाएगा
*राज्यपाल से अनुमोदित होगा
*राज्यपाल से अनुमोदन मिलने के बाद कानून बन जाएगा
(पर कानून को झारखंड में लागू नहीं किया जाएगा)
*इस कानून को नवी अनुसूची में डालने के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा
*केंद्र सरकार बिल के रूप में लोकसभा में पेश करेगी
*लोकसभा में इस पर चर्चा होगी
*लोकसभा में बिल पारित होगा
*फिर राज्यसभा में बिल को भेजा जाएगा
*राज्यसभा में बिल पर चर्चा होगी
*राज्यसभा में बिल पास होगा
*राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए भेजा जाएगा
*राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त होने के बाद
*नवीं अनुसूची में डाल दिया जाएगा
*तब जाकर यह कानून प्रभावी होगा
*सब कुछ ठीक रहा तो 2-3 साल का समय लग सकता है
*नहीं तो 10 -12 साल भी लग सकते हैं
*तब तक संघर्ष करते रहना है
*जय झारखंड 🙏

हम झारखंडियों की यही पहचान,1932 का खतियान।
04/09/2022

हम झारखंडियों की यही पहचान,
1932 का खतियान।

आदिवासी ने पत्थर से हथियार बनाया और शिकार करना सिखाया। आदिवासी ने अग्नि की शोध की और खाना पकने लगा। आदिवासी ने पहिया बना...
28/08/2022

आदिवासी ने पत्थर से हथियार बनाया और शिकार करना सिखाया। आदिवासी ने अग्नि की शोध की और खाना पकने लगा। आदिवासी ने पहिया बनाया, वाहन-बैलगाड़ी चलने लगी। आदिवासी ने हल बनाया और खेती होना शुरू हुई। आदिवासी ने जड़ी बूटी पहचानी, दवा बनने लगी। आदिवासी असभ्य,अनपढ़ नहीं मानव सभ्यता की जड़ है।

आदिवासी महिला को क्यों नहीं मिलता समान अधिकार?
28/08/2022

आदिवासी महिला को क्यों नहीं मिलता समान अधिकार?

18/07/2022
 #पाचाटिसावन मास में धान रोपाई के पूर्व पांच गुच्छे को पुजन।
18/07/2022

#पाचाटि
सावन मास में धान रोपाई के पूर्व पांच गुच्छे को पुजन।

देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में माननीय मुख्यमंत्री श्री Hemant Soren  ने परिवार संग पूजा-अर्चना की।
10/07/2022

देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में माननीय मुख्यमंत्री श्री Hemant Soren ने परिवार संग पूजा-अर्चना की।

 #टांगीनाथ_धाम गुमला, झारखंड।टांगी का एक अर्थ फरसा भी होता है और माना जाता है कि गुमला जिले के टांगीनाथ धाम में जो फरसा ...
03/05/2022

#टांगीनाथ_धाम गुमला, झारखंड।

टांगी का एक अर्थ फरसा भी होता है और माना जाता है कि गुमला जिले के टांगीनाथ धाम में जो फरसा है, वह भगवान परशुराम का है। किंवदंती है कि पिता जमदग्नि के आदेश पर अपनी मां रेणुका वध कर दिया तो बाद में काफी पछतावा हुआ। प्रायश्चित के लिए वे इसी जंगल में आए तो अपना फरसा गाड़कर तपस्या करने लगे। तपस्या करने के बाद वे यहां से चले गए और फरसा यहीं रहा गया। परशुराम भगवान शिव के शिष्य थे और झारखंड प्राचीन काल से ही शिव भूमि रही है। एक और किंवदती यह है कि यह भगवान शिव का त्रिशूल है। यह जमीन में धंसा हुआ है। जमीन पर इसकी ऊंचाई करीब आठ फीट है। बहुत पहले यहां करीब त्रिशूल के नीचे छह फीट तक खोदाई की गई थी, लेकिन त्रिशूल का अंतिम भाग नहीं मिला। स्थानीय लोगों का मानना है कि त्रिशूल की कुल लंबाई 17 फीट के ऊपर है।

नहीं लगा है आज तक जंग
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लोहे के इस प्राचीन त्रिशूल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वर्षा और पानी को झेलते हुए भी आज तक जंग नहीं लगा है। यह खुले में सैकड़ों सालों से पड़ा है। इसके पीछे अवधारणा यही है कि रांची और आसपास के इलाके में असुर जनजाति लौह गलाने की तकनीक में दक्ष थे। इनके लोहे में जंग नहीं लगता था। इस त्रिशूल का निर्माण गुप्त काल में पांचवीं-छठवीं शताब्दी का माना जाता है। असुर आज भी इस इलाके में रहते हैं और पांच दशक पहले तक वे इस काम में सिद्ध थे।

खंडित प्रतिमाएं और पुरावशेष
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राजधानी रांची से 165 किमी दूर गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के मझगांव के निकट टांगीनाथ पहाड़ी पर यह धाम है। यहां अनेक टूटी-फूटी प्रतिमाएं हैं। इनमें सबसे अद्भुत है नौ घोड़े पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा। इनके अलावा भैरव, खंडित स्तंभ, वास्तुखंड, पशु आकृति, शिवलिंग आदि पुरावशेष यहां हैं।
जशपुर के राजा ने कराया था निर्माण
पुराविद् डा. हरेंद्र प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण छत्तीसगढ़ के राजा मान सिंह ने कराया था। वे निस्संतान थे। टांगीनाथ के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। यद्यपित, त्रिशूल या कहें फरसा यहां बहुत पहले से था, जहां लोग पूजा करते थे। इसकी ख्याति भी दूर-दूर तक थी। यह कब, कैसे खंडहर में बदल गया, कहना मुश्किल है। विधिवत यहां खोदाई से ही सही-सही जानकारी मिल सकती है। 1915 में राय साहब चुन्नी लाल राय ने पहले-पहल इस पर एक लेख लिखा था।

बैगा जनजाति कराती है पूजा
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यहां के पुजारी को लेकर भी एक मान्यता है।
वर्तमान पुजारी राम कृपाल साय बैगा हैं। टांगीनाथ पर शोध करने वाले डा. संतोष भगत कहते हैं इनके पूर्वज सूरत मांझी एवं मूरत मांझी सरगुजा स्टेट के कर्मचारी थे। कुछ अज्ञात कारणों से राजा नाराज हो गए और दोनों भाइयों को जंजीर में बांधकर जमीन के नीचे दबा दिया, परंतु टांगीनाथ की कृपा से ये भागने में सफल रहे। चलते-चलते ये नवाडीह-मझगांव के निकट रुके। सपने में टांगीनाथ ने दर्शन दिया और वे पूजा-अर्चना में तल्लीन हो गए। इस घटना के बाद इनके वंशज की पूजा कराते आ रहे हैं। लोग इन्हें बैगा कहते हैं। ये मूलत: अहिर पैक जनजाति के माने जाते हैं।
(संजय कृष्ण के आलेख)

03/05/2022

महुआ के फूल।

 #त्रिकुट_पहाड़_देवघरचर्चा में क्यों है? संथाल परगना के देवघर जिले में स्थित त्रिकुट पहाड़ पर हुए रोपवे हादसे में तीन लो...
13/04/2022

#त्रिकुट_पहाड़_देवघर
चर्चा में क्यों है? संथाल परगना के देवघर जिले में स्थित त्रिकुट पहाड़ पर हुए रोपवे हादसे में तीन लोगों की मौत।

#कहां है त्रिकुट पहाड़?
झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के देवघर जिले से 13 किलोमीटर की दूरी पर देवघर-दुमका रोड पर त्रिकुट पर्वत स्थित है. इस पर्वत के एक तरफ बाबा वैद्यनाथ बसते हैं तो दूसरी तरफ थोड़ी दूरी पर दुमका की तरफ नागनाथ बाबा बासुकीनाथ का मंदिर है. यहां इस पर्वत के तीन शिखर हैं जिसे ब्राह्मा, विष्णु और महेश के मुकुट के तौर पर जाना जाता है, साथ ही दो छोटे पर्वत शिखर गणेश और कार्तिक के नाम से जाने जाते हैं. इसलिए इसे त्रिकुट पर्वत के नाम से ख्याति प्राप्त है.

#रावण के #पुष्पक_विमान का था यहां हेलीपैड

पौराणिक कथाओं की मानें तो त्रेता युग में जटायू और लंकापति रावण के बीच मां सीता का हरण कर ले जाते समय यहीं युद्ध हुआ था. इसके साथ ही एक कहानी यह भी है कि यहां रावण अपने पुष्पक विमान से आता था और यहीं वन में तपस्या करता और अपने विमान को यहीं रखता था.

तीन में से 2 चोटी ही है ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित
त्रिकुट पर्वत घने जंगलों से आच्छादित बेहद मनोरम स्थान है. जहां प्रसिद्ध त्रिकुटाचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद का आश्रम स्थित है. इसकी तीन में से दो चोटियों पर ही लोग पहुंचते हैं क्योंकि तीसरी चोटी पर ढलान ज्यादा होने के कारण यह ट्रेकिंग के लिए असुरक्षित है. 2400 फीट से ज्यादा ऊंचाई वाली इसकी सबसे ऊंची चोटी के शीर्ष पर जाने के लिए यहां रोपवे बनाया गया है. इसी रोपवे में यह हादसा हुआ है. यह एशिया के सबसे ऊंचे रोपवे में से एक है. इस रोपवे की लंबाई 2 हजार 512 फीट होने के साथ यहां एक साथ 26 ट्रॉलियां आती जाती रहती हैं और सिर्फ 8 मिनट में यह रोमांचक सफर पूरा हो जाता है और लोग पर्वत के शिखर तक पहुंच जाते हैं.

विश्व का सबसे बड़ा शालिग्राम पत्थर भी है यहां
एशिया के सबसे ऊंचे रोपवे वाले इस त्रिकुट पर्वत पर विश्व का सबसे बड़ा शालिग्राम पत्थर भी मौजूद है, जिसे देखने के लिए लोग यहां आते हैं. आपको बताते चलें कि इसे 'विष्णु टॉप' के नाम से जाना जाता है. यह पत्थर सिर्फ दो कोण पर टिका है और दोनों के बीच 14 इंच का फासला है. इसके बारे में यह मान्यता है कि इसके बीच से पार होकर निकल जानेवाले के सारे ग्रह कट जाते हैं. यहां हाथी की आकृति का एक चट्टान और शेष नाग की आकृति का एक पत्थर भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. इस हाथी पहाड़ वाली चट्टान की ऊंचाई 40 फिट से ज्यादा है.

बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ भी विराजते हैं यहां
त्रिकुट पर्वत के नीचे बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ विराजते हैं. इस महादेव के बारे में कथा है कि इसे रावण ने स्थापित किया था. यहां के लोगों की मानें तो माता सीता ने यहां दीप जलाए थे जो अभी भी यहां है और लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां आते हैं.

#यहां_देखने_लायक_जगहें
त्रिकुट पर्वत पर देखने लायक जगहों में हनुमान छाती, सीता दीप, रावण के पुष्पक विमान का हेलीपैड, अंधेरी गुफा, सुसाइड प्वाइंट, शालीग्राम शिला और गणेश पर्वत हैं. इसके अलावा पेड़ पौधों की हरियाली आपका मन मोहने के लिए काफी है. यहां आपको बहते कई झरने भी देखने को मिल जाएंगे. बरसात के मौसम में यहां का दृश्य काफी मनोहारी होता है!

भारत के टॉप 5 में शामिल हुई सरहुल की शोभा यात्रा।
10/04/2022

भारत के टॉप 5 में शामिल हुई सरहुल की शोभा यात्रा।

महुआ। जोहार झारखंड।
01/04/2022

महुआ। जोहार झारखंड।

सुविचार
29/10/2021

सुविचार

 #गांधी_दर्शनदक्षिण अफ्रीका से भारत आये मुझे ढाई साल हो चुके हैं। इसका चौथाई समय मैनें भारतीय रेलों के  तीसरे दर्जे में ...
02/10/2021

#गांधी_दर्शन
दक्षिण अफ्रीका से भारत आये मुझे ढाई साल हो चुके हैं।

इसका चौथाई समय मैनें भारतीय रेलों के तीसरे दर्जे में सफर करते गुजारा है। यह मेरी चॉइस थी, जिससे आम भारतीय यात्रियों से मिलने, बात करने का अवसर मिलता है। लाहौर से कलकत्ता और कराची से केरल तक सफर किया, और भारत के सभी रेलवे सिस्टम में यात्रा कर चुका हूँ। उनके अफसरों को यात्रियों की अवस्था पर कई पत्र भी लिखे हैं। अब वक्त है कि यह बात प्रेस और जनता तक भी पहुचाई जाये।

इस महीने 12 तारीख को मैनें बॉम्बे से मद्रास का टिकट लिया, जिसमे 13 रुपए 9 आने चुकाए। डिब्बे में 22 यात्रियों के लिए सिर्फ बैठने की सीट थी। मुझे दो रातों का सफर करना था, लेकिन शायिका नही थी। पूना आते आते 22 लोग भर चुके थे, लेकिन इसलिए कि कुछ तगड़े लोग औरों को घुसने नही दे रहे थे। बैठे बैठे हम कुछ सो पाए, पर रायचूर के बाद स्थिति गम्भीर हो गयी। लोग घुसते गए।

रोकने वालों को रेलवे के आड़े हाथों लिया और डिब्बे में पैसेंजर ठूंस दिए। एक मेमन व्यापारी ने ज्यादा विरोध किया तो कर्मचारियों ने पहले उसे पकड़कर इन्सल्ट किया, फिर टर्मिनल आने पर अफसरों को सौप दिया। जमीन पर सोए लोगो, गंदगी औऱ भीड़ के बीच बाकी की यात्रा हुई।

पूरी यात्रा में कोच एक बार भी साफ नही हुई। पीने का पानी बेहद गंदा था, और आधी यात्रा के बाद खत्म हो गया। यात्रियों को बेचा जा रहा भोजन, चाय और रिफ्रेशमेंट बहुत गंदे थे, और गंदगी भरे हाथों से दिए जा रहे थे।

मद्रास पहुचने पर गाड़ी वाले ने निर्धारित से ज्यादा पैसे मांगे। मैनें कहा कि उसे निर्धारित पैसे लेने होंगे, या गाड़ी से उतारने के लिए उसे पुलिस बुलानी होगी।
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वापसी यात्रा भी कोई बेहतर नही थी। डिब्बा पहले ही भरा था। मुझे कोई सीट नही मिली। मेरा प्रवेश निश्चित ही निर्धारित यात्री संख्या के ऊपर था। 9 के केबिन में 12 यात्री थे। एक यात्री एक प्रोटेस्टेंट सहयात्री पर चिल्लाने लगा और लगभग धक्का देकर बाहर की कर दिया,पर लोगो ने बीच बचाव किया। शौचालय में पानी नही था। डिब्बा बड़ी बुरी हालत में था।

सहयात्री बहुरंगी थे। दो पंजाबी मुसलमान, दो शिक्षित तमिलियन, दो मुस्लिम व्यापारी मौजूद थे। उन सबने थोड़े आराम के लिए रेल कर्मचारियों को रिश्वत दी थी। एक पंजाबी तीन दिन से सफर कर रहा था, पर सो न पाया था, वो बुरी तरह थका था। एक नए बताया कि टिकट के लिए 5 रुपये रिश्वत दी है। दो को लुधियाना जाना था, काफी लंबा सफर था।

जो मैं बता रहा हूँ, यह एक्सेप्शन नही नॉर्मल है। रायचूर, ढोंध, सोनपुर, चक्रधरपुर, पुरुलिया, आसनसोल और दूसरे जंक्शन स्टेशनों पर मुसाफिरखाने देखे। ये टूटे फूटे, डरावने, गंदे और शोर से भरे थे। बेंच कम थी, लोग जमीनों पर गंदगी के बीच पसरे थे। मक्खियां झूम रही थी, लोग असभ्य गाली गलौज की भाषा मे बात कर रहे थे। जो हाल थे, उसे बताने की ताकत मेरे शब्दों में नही है। लोग यात्रा के दौरान उपवास रखते हैं, तो इसका मतलब अब समझ मे आता है।
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पहले दर्जे के किराए तीसरे दर्जे का पांच गुना है। पर क्या तीसरे दर्जे के लोगो को उन सुविधाओं का पांचवा भाग भी मिलता है? जो दसवां भाग भी नही है। जबकि असलियत यह है कि तीसरे दर्जे का यात्री पहले दर्जे को मिलने वाली सुविधाओं का भार उठाता है।

यात्रा के दौरान साफ सफाई, सभ्यता की एक बेहतरीन शिक्षा जो भारत के अशिक्षित और सफाई निस्पृह लोगो को दी जा सकती है, वह अवसर गंवा दिया जाता है।

दूसरे सुझावों के साथ मैं यह विनम्रता के साथ यह कहना चाहूंगा कि राजा, महाराज, इंपीरियल काउंसलर और अन्य जो उच्च दर्जे के डिब्बो में यात्रा करते हैं, उन्हें तीसरे दर्जे के डिब्बे में यात्रा करवाई जाए।

- महात्मा गांधी

 ".Sidhu Murmu and Kanhu Murmu were the leader of the Santhal rebellion (1855–1856), the rebellion in present-day Jharkh...
30/06/2021

".
Sidhu Murmu and Kanhu Murmu were the leader of the Santhal rebellion (1855–1856), the rebellion in present-day Jharkhand and Bengal (Purulia and Bankura) in eastern India against both the British colonial authority and the corrupt zamindari system.
Santals lived in and depended on forests. In 1832, the British demarcated the Damin-i-koh region in present day Jharkhand and invited Santhals to settle in the region. Due to promises of land and economic amenities a large numbers of Santhals came to settle from Cuttack, Dhalbhum, Manbhum, Hazaribagh, Midnapore etc. Soon, mahajans and zamindars as tax-collecting intermediaries deployed by British dominated the economy. Many Santals became victims of corrupt money lending practices. They were lent money at exorbitant rates when they never repay then their lands were forcibly taken, they were forced into bonded labour. This sparked the Santal rebellion.
On 30 June 1855, two Santal rebel leaders, Sidhu Murmu and Kanhu Murmu (related as brother) along with Chand and Bairab, mobilized about 10,000 Santals and declared a rebellion against British colonists. The Santals initially gained some success but soon the British found out a new way to tackle these rebels. Instead, they forced them to modern fi****ms and war elephants, stationed themselves at the foot of the hill. When the battle began, the British officer ordered his troops to fire without loading bullets. The Santals, who did not suspect this trap set by the British war strategy, charged with full potential. This step proved to be disastrous for them. As soon as they neared the foot of the hill, the British army attacked with full power and this time they were using bullets. Although the revolution was suppressed, it marked a great change in the colonial rule and policy. The day is still celebrated among the Santal community. It is called “Hool Divas” these days.
Sido Kanhu Murmu University is named upon them. Indian post also issued a ₹ 4 stamp in 2002 honouring them.

Hool Divas

The beginning
The day the tribals of Jharkhand took up arms against the British i.e. revolted, the day is celebrated as 'Hul Kranti Divas'. About 10 thousand tribals gave their lives in this war
First fight for independence
Although the first battle of independence is considered in 1857, the tribals of Jharkhand raised the flag of rebellion in 1855 itself. The rebellion began on 30 June 1855 from the village of Bhagnadih in the existing Sahebganj district under the leadership of Sidhu and Kanhu. On this occasion, Sidhu gave the slogan, 'Do or die, British leave our soil'
Start of movement
On June 30, 1855, about 50 thousand tribals from 400 villages reached Bhaganadih village and the movement began. In this meeting, it was announced that they would no longer give goods. After this, the British, Sidhu, Kanhu, Chand and Bhairav - ordered the arrest of these four brothers. The Inspector, who was sent there to arrest the four brothers, was killed by the Santhalis by cutting his neck. During this time, there was a fear among the government officials about this movement.
The British sent troops to the area and fiercely arrested the tribals and opened fire on the rebels. Martial law was imposed to control the agitators. The awards were also announced by the British Government for the arrest of the agitators. Chand and Bhairav were martyred in the battle of British and agitators in Bahraich.
In his book 'Annals of Ruler Bengal', the famous English historian Hunter wrote, "The Santhals were not aware of surrender, due to which the Dugdugi kept ringing and the people kept fighting." As long as a single agitator was alive, he kept fighting. Around 10 thousand tribals gave their lives in this war. Sidhu and Kanhu were also arrested by luring money to Sidhu and Kanhu's close associates and then on July 26, the two brothers were hanged openly on a tree in Bhaganadih village. In this way, Sidhu, Kanhu, Chand and Bhairav, these four brothers became their indelible place in Indian history forever.

World Environment Day Special.
05/06/2021

World Environment Day Special.

 #औद्योगिक_क्रांति का अर्थ कारण एवं आविष्कारक तथा लाभ और उसके प्रभाव:-................औद्योगिक क्रांति का अर्थ:- औद्योगि...
29/05/2021

#औद्योगिक_क्रांति का अर्थ कारण एवं आविष्कारक तथा लाभ और उसके प्रभाव:-................

औद्योगिक क्रांति का अर्थ:- औद्योगिक क्रांति का साधारण अर्थ है- हाथों द्वारा बनाई गई वस्तुओं के स्थान पर आधुनिक मशीनों के द्वारा व्यापक स्तर पर निर्माण की प्रक्रिया को उद्योगिक क्रांति कहा जाता है।

औद्योगिक क्रांति का प्रारंभ:-.............
औद्योगिक क्रांति का प्रारंभ 18 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुई। क्योंकि 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की शक्ति क्षीण होने पर प्रांतीय एवं क्षेत्रीय शासकों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। इनमें बंगाल, बिहार व उड़ीसा अवध, हैदराबाद, मैसूर और मराठा प्रमुख थे। इसी सदी में यूरोप में फ्रांस और इंग्लैंड के के बीच विश्व में उपनिवेश हुआ व्यापार से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कई वर्षों तक निरंतर युद्ध होता रहा। इंग्लैंड और फ्रांस के राजा अपने अपने देश की कंपनियों का पूरा समर्थन करते और उन्हें मदद देते थे।
क्योंकि इंग्लैंड के पास उपनिवेशों के कारण कच्चे माल और पूंजी की अधिकता थी।

उपनिवेश का अर्थ होता है – जब एक देश दूसरे देश के लोगों पर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं। तब दूसरा देश पहले देश का उपनिवेश राज्य बन जाता है। और पहला राज्य दूसरे राज्य का सर्वेसर्वा मुख्य देश बन जाता है। और वह अपने उपनिवेशों के द्वारा राज्य के सभी संसाधनों का प्रयोग करके अपने हित में काम करता है। जिससे मुख्य देश उन्नति करता चला जाता है और दूसरा देश अवनति की ओर चला जाता है।

इंग्लैंड में सबसे पहले औद्योगिक क्रांति की शुरुआत सूती कपड़ा उद्योग से हुई।

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कारण:-

18 वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के लिए इंग्लैंड की परिस्थितियां बहुत अनुकूल थी। समुद्र पार के व्यापार के द्वारा जिसमें दासों का व्यापार भी शामिल है। जिससे इंग्लैंड ज्यादा मुनाफा कमाने लगा और यूरोपीय देशों के व्यापार की होड़ में एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा जिसका कोई प्रतिबंध नहीं था।

इसके निम्न कारण इस प्रकार थे।...........
1. इंग्लैंड में खनिज संपदाओं जैसे- लोहे और कोयले के असीमित भंडार थे।

2. इंग्लैंड ने खोजी यात्राओं के द्वारा कई उपनिवेशस्थापित कर लिया था। और उपनिवेश से सरलता पूर्वक कच्चा माल प्राप्त हो सकता था।

3. नवीन भौगोलिक खोजों के फल स्वरुप थोड़े समय में ही इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और हालैंड आदि यूरोपीय देशों ने संसार के कोने-कोने में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये इससे उन्हें सस्ते दर पर कच्चा माल व श्रमिक उपलब्ध हुए। और उन कच्चे मालों को अधिक उत्पादन के साथ बेचकर लाभ कमाने की मंडी मिल गई।

4. लाभ कमाने की इच्छा से यूरोप के देशों में औद्योगिक दिशा में अधिक औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यापारिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो गई। कि सभी औद्योगिक देश अधिक उत्पादन करने के लिए अधिक से अधिक माल बेचकर अधिक लाभ कमाने के प्रयास के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों की स्थापना की।

5. इंग्लैंड की अनुकूल नीतियां यूरोप के देश युद्धों में फंसकर अपने जन धन की हानि कर रहे थे उस समय इंग्लैंड अपने उद्योगों के विकास व विस्तार में लगा हुआ था। और उद्योग व् व्यापार तथा विकास के लिए कानून भी बनाये।

6. इंग्लैंड में विशेषकर कृषि प्रणाली में पर्याप्त परिवर्तन हो गया था। जिसके कारण कृषि कार्य मशीनों द्वारा होने लगा।

7. कारखानों की स्थापना के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। यूरोप व इंग्लैंड के लोगों के पास काफी मात्रा में धन था। इसलिए उन्हें किसी से सहयोग लेने की आवश्यकता नही पड़ी।

8. यातायात एवं आवागमन की सुविधा के लिए मोटर इंजन के अविष्कार से यातायात में सुविधा हो गई।

9. अंग्रेज इंग्लैंड के कारखानों से तैयार माल जैसे कपास, कपड़ा, चाय पत्ती, कपड़ा रंगने के लिए तैयार नील जहाजों के माध्यम से भारत और यूरोप में अधिक दाम में बेचते थे। उनके व्यापार में वृद्धि हुई।

अविष्कारक:- ...........
1773 ईस्वी में एक अंग्रेज अविष्कारक जॉन के ने फ्लाइंग शटल नामक मशीन का आविष्कार किया इस मशीन के द्वारा एक व्यक्ति कम समय में अधिक कपड़ा बन सकता था।

1764 ई० में जेम्स हरग्रीव्ज ने सूत कातने वाली मशीन स्पिनिंग जेनी बनाई इस मशीन में 8 तकुवे लगे होते हैं। और इस मशीन से एक व्यक्ति 8 व्यक्तियों के बराबर सूत काटने में सक्षम था।

1769 ई० में रिचर्ड आर्क राइट ने वाटरफ्रेम नामक मशीन बनाने में सफलता प्राप्त की। इससे पक्का सूत काता जाता था। यह मशीन पानी की शक्ति से चलती थी।

1812 ई० में हेनरी बेल ने स्टीमर बनाया।

1814 ई० में जार्ज स्टीफेन्सन ने रेल इंजन का निर्माण किया।

1846 ई० में एलिहास हो ने सिलाई की मशीन का आविष्कार किया।

इस प्रकार परिवहन के साधन पक्की सड़क के निर्माण की विधि विद्युत तार, टेलीफोन आदि के अविष्कार हुए। जिन कार्यों को मनुष्य करने में असीमित था और श्रम और पर्याप्त समय लगता था अब वह और कम से कम श्रम में पूरे हो जाते हैं।

लाभ:-

1. नवीन आविष्कारों के फलस्वरुप नवीन तकनीकी का विकास हुआ जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ गई।

2. यातायात के साधनों का तेजी से विकास हुआ तथा मानव के लिए अब यातायात सरल और सुविधाजनक हो गया।

3. नागरिकों का जीवन निरंतर सुख सुविधा पूर्ण होता चला गया।

4. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई लोगों के लिए विदेशी व्यापार सुविधाजनक हो गया।

5. विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर खोजे जारी रही जिससे कई नई प्रौद्योगिकी खोजें हुई।

औद्योगिक क्रांति का प्रभाव:-...................

यूरोप महाद्वीप के विभिन्न देशों पर औद्योगिक क्रांति का प्रभाव पड़ा। वह प्रभाव औद्योगिक क्रांति ने यूरोप के सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया है।

1.आर्थिक प्रभाव:-

विशाल कारखानों की स्थापना से उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई। समाज में लोगों के रहन-सहन का दर्जा ऊंचा होने लगा। आयात तथा संचार के साधनों में वृद्धि हुई। बड़े बड़े नगरों की स्थापना हुई। जनसंख्या में वृद्धि हुई। बैंकिंग सुविधाओं का विकास हुआ।

2.सामाजिक प्रभाव:-

औद्योगीकरण से समाज में वर्ग भेद का उदय हो गया। समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया- पूँजीपति तथा श्रमिक।
पूंजीपतियों की दया पर आश्रित हो गये। धनी वर्ग के लोग महलों में रहने लगे। बढ़ती हुई जनसंख्या और नगरीकरण के कारण मजदूर वर्ग के रहने के लिए आवास सुलभ नहीं हो पाए और चारों ओर गंदगी और अस्वस्थकारी वातावरण पैदा हो गया।

3.राजनीतिक प्रभाव:-

धनी वर्ग के लोग अपने औद्योगिक हितों की पूर्ति के लिए राजनीति में हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया वह धन के बल पर संसद में पहुंचने लगे और उन्हें अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मजदूरों के हितों की अपेक्षा करनी प्रारंभ कर दी। और श्रमिक वर्ग के लोगों ने पूंजीपतियों के अत्याचार व शोषण के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ कर दिया। जिससे विवश होकर सरकार को फैक्ट्री एक्ट बनाने पड़े और मजदूरों को सुविधाएं भी प्रदान करनी पड़ी।

राजा राम मोहन राय का आदर्श संकल्पबंगाल में अकाल पड़ा, उसी समय राजा राममोहन राय का विवाह भी था। परिजनों ने विवाह संस्कार ...
23/05/2021

राजा राम मोहन राय का आदर्श संकल्प

बंगाल में अकाल पड़ा, उसी समय राजा राममोहन राय का विवाह भी था। परिजनों ने विवाह संस्कार का भव्य आयोजन करने की योजना बनाई। लेकिन राम मोहन राय को यह बात पसंद नहीं थी कि एक तरफ लाखों लोग भूख से मर रहे हैं और दूसरी तरफ हम अपने धन की शान दिखाएं। उन्होंने विवाह करने से ही इन्कार कर दिया।

परिवार के लोग बहुत दुखी हुए, उन्हें बहुत मनाया, लेकिन वे नहीं माने। अंत में वे इस शर्त पर विवाह करने को तैयार हुए कि विवाह पर व्यय होने वाला सारा धन अकाल पीड़ितों पर व्यय किया जाएगा।

विवाह की दावत में किसी जमींदार या धनपति को न बुला कर अकाल पीड़ितों को ही बुलाया जाएगा। उनके लिए सात दिनों तक भोजन की व्यवस्था की जाएगी। इस बात पर उनके माता-पिता राजी हो गए और ससुर पक्ष को भी ऐसा ही करने के लिए तैयार कर लिया गया। यही गुण उन्हें विशिष्ट और आदरणीय बनाते हैं। जब मानवता पर संकट आता है तो सज्जन पुरुष अपनी पूरी क्षमता के साथ लोगों के कष्टों को कम करने के लिए आगे आ जाते हैं।

जो कुछ नया करना चाहते हैं या समाज के बने-बनाए रिवाजों में कुछ बदलाव करना चाहते हैं, उन्हें अनेक तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन आरंभ किया तो उनका विरोध करने के लिए एक दूसरी लॉबी खड़ी हो गई। लेकिन वे अपने लक्ष्य पर स्थिर रहे। इससे बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल के हजारों भूमिहीन किसानों को लाभ हुआ।

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