झारखंड दर्पण

झारखंड दर्पण झारखंड की सभ्यता और संस्कृति की विरासत

झारखंड की संस्कृति और परंपरा को जोहार।
07/09/2023

झारखंड की संस्कृति और परंपरा को जोहार।

शहर की दवा और गांव की हवा बराबर होती है।
08/08/2023

शहर की दवा और गांव की हवा बराबर होती है।

07/06/2023
जितनी गौरवशाली हमारी संस्कृति है उतनी ही वैभवशाली हमारी कला है! जोहार झारखंड दर्पण
19/03/2023

जितनी गौरवशाली हमारी संस्कृति है उतनी ही वैभवशाली हमारी कला है!
जोहार झारखंड दर्पण

जोहार झारखंड।
16/01/2023

जोहार झारखंड।

झारखंड के सभी साथियों को जोहार।अभी हमें उलगुलान जारी रखना होगा क्योंकि 👉*अभी सिर्फ 1932 स्थानीय नीति का का प्रस्ताव कैबि...
16/09/2022

झारखंड के सभी साथियों को जोहार।
अभी हमें उलगुलान जारी रखना होगा क्योंकि 👉

*अभी सिर्फ 1932 स्थानीय नीति का का प्रस्ताव कैबिनेट से पास हुआ है-
*आगे प्रस्ताव का प्रारूप बनेगा
*बिल के रूप में विधानसभा में पेश किया जाएगा
*बिल पर चर्चा होगी
*बिल विधानसभा में पास होगा
*बिल को राज्यपाल के पास भेजा जाएगा
*राज्यपाल से अनुमोदित होगा
*राज्यपाल से अनुमोदन मिलने के बाद कानून बन जाएगा
(पर कानून को झारखंड में लागू नहीं किया जाएगा)
*इस कानून को नवी अनुसूची में डालने के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा
*केंद्र सरकार बिल के रूप में लोकसभा में पेश करेगी
*लोकसभा में इस पर चर्चा होगी
*लोकसभा में बिल पारित होगा
*फिर राज्यसभा में बिल को भेजा जाएगा
*राज्यसभा में बिल पर चर्चा होगी
*राज्यसभा में बिल पास होगा
*राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए भेजा जाएगा
*राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त होने के बाद
*नवीं अनुसूची में डाल दिया जाएगा
*तब जाकर यह कानून प्रभावी होगा
*सब कुछ ठीक रहा तो 2-3 साल का समय लग सकता है
*नहीं तो 10 -12 साल भी लग सकते हैं
*तब तक संघर्ष करते रहना है
*जय झारखंड 🙏

हम झारखंडियों की यही पहचान,1932 का खतियान।
04/09/2022

हम झारखंडियों की यही पहचान,
1932 का खतियान।

आदिवासी ने पत्थर से हथियार बनाया और शिकार करना सिखाया। आदिवासी ने अग्नि की शोध की और खाना पकने लगा। आदिवासी ने पहिया बना...
28/08/2022

आदिवासी ने पत्थर से हथियार बनाया और शिकार करना सिखाया। आदिवासी ने अग्नि की शोध की और खाना पकने लगा। आदिवासी ने पहिया बनाया, वाहन-बैलगाड़ी चलने लगी। आदिवासी ने हल बनाया और खेती होना शुरू हुई। आदिवासी ने जड़ी बूटी पहचानी, दवा बनने लगी। आदिवासी असभ्य,अनपढ़ नहीं मानव सभ्यता की जड़ है।

आदिवासी महिला को क्यों नहीं मिलता समान अधिकार?
28/08/2022

आदिवासी महिला को क्यों नहीं मिलता समान अधिकार?

18/07/2022
 #पाचाटिसावन मास में धान रोपाई के पूर्व पांच गुच्छे को पुजन।
18/07/2022

#पाचाटि
सावन मास में धान रोपाई के पूर्व पांच गुच्छे को पुजन।

देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में माननीय मुख्यमंत्री श्री Hemant Soren  ने परिवार संग पूजा-अर्चना की।
10/07/2022

देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में माननीय मुख्यमंत्री श्री Hemant Soren ने परिवार संग पूजा-अर्चना की।

 #टांगीनाथ_धाम गुमला, झारखंड।टांगी का एक अर्थ फरसा भी होता है और माना जाता है कि गुमला जिले के टांगीनाथ धाम में जो फरसा ...
03/05/2022

#टांगीनाथ_धाम गुमला, झारखंड।

टांगी का एक अर्थ फरसा भी होता है और माना जाता है कि गुमला जिले के टांगीनाथ धाम में जो फरसा है, वह भगवान परशुराम का है। किंवदंती है कि पिता जमदग्नि के आदेश पर अपनी मां रेणुका वध कर दिया तो बाद में काफी पछतावा हुआ। प्रायश्चित के लिए वे इसी जंगल में आए तो अपना फरसा गाड़कर तपस्या करने लगे। तपस्या करने के बाद वे यहां से चले गए और फरसा यहीं रहा गया। परशुराम भगवान शिव के शिष्य थे और झारखंड प्राचीन काल से ही शिव भूमि रही है। एक और किंवदती यह है कि यह भगवान शिव का त्रिशूल है। यह जमीन में धंसा हुआ है। जमीन पर इसकी ऊंचाई करीब आठ फीट है। बहुत पहले यहां करीब त्रिशूल के नीचे छह फीट तक खोदाई की गई थी, लेकिन त्रिशूल का अंतिम भाग नहीं मिला। स्थानीय लोगों का मानना है कि त्रिशूल की कुल लंबाई 17 फीट के ऊपर है।

नहीं लगा है आज तक जंग
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लोहे के इस प्राचीन त्रिशूल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वर्षा और पानी को झेलते हुए भी आज तक जंग नहीं लगा है। यह खुले में सैकड़ों सालों से पड़ा है। इसके पीछे अवधारणा यही है कि रांची और आसपास के इलाके में असुर जनजाति लौह गलाने की तकनीक में दक्ष थे। इनके लोहे में जंग नहीं लगता था। इस त्रिशूल का निर्माण गुप्त काल में पांचवीं-छठवीं शताब्दी का माना जाता है। असुर आज भी इस इलाके में रहते हैं और पांच दशक पहले तक वे इस काम में सिद्ध थे।

खंडित प्रतिमाएं और पुरावशेष
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राजधानी रांची से 165 किमी दूर गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के मझगांव के निकट टांगीनाथ पहाड़ी पर यह धाम है। यहां अनेक टूटी-फूटी प्रतिमाएं हैं। इनमें सबसे अद्भुत है नौ घोड़े पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा। इनके अलावा भैरव, खंडित स्तंभ, वास्तुखंड, पशु आकृति, शिवलिंग आदि पुरावशेष यहां हैं।
जशपुर के राजा ने कराया था निर्माण
पुराविद् डा. हरेंद्र प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण छत्तीसगढ़ के राजा मान सिंह ने कराया था। वे निस्संतान थे। टांगीनाथ के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। यद्यपित, त्रिशूल या कहें फरसा यहां बहुत पहले से था, जहां लोग पूजा करते थे। इसकी ख्याति भी दूर-दूर तक थी। यह कब, कैसे खंडहर में बदल गया, कहना मुश्किल है। विधिवत यहां खोदाई से ही सही-सही जानकारी मिल सकती है। 1915 में राय साहब चुन्नी लाल राय ने पहले-पहल इस पर एक लेख लिखा था।

बैगा जनजाति कराती है पूजा
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यहां के पुजारी को लेकर भी एक मान्यता है।
वर्तमान पुजारी राम कृपाल साय बैगा हैं। टांगीनाथ पर शोध करने वाले डा. संतोष भगत कहते हैं इनके पूर्वज सूरत मांझी एवं मूरत मांझी सरगुजा स्टेट के कर्मचारी थे। कुछ अज्ञात कारणों से राजा नाराज हो गए और दोनों भाइयों को जंजीर में बांधकर जमीन के नीचे दबा दिया, परंतु टांगीनाथ की कृपा से ये भागने में सफल रहे। चलते-चलते ये नवाडीह-मझगांव के निकट रुके। सपने में टांगीनाथ ने दर्शन दिया और वे पूजा-अर्चना में तल्लीन हो गए। इस घटना के बाद इनके वंशज की पूजा कराते आ रहे हैं। लोग इन्हें बैगा कहते हैं। ये मूलत: अहिर पैक जनजाति के माने जाते हैं।
(संजय कृष्ण के आलेख)

03/05/2022

महुआ के फूल।

 #त्रिकुट_पहाड़_देवघरचर्चा में क्यों है? संथाल परगना के देवघर जिले में स्थित त्रिकुट पहाड़ पर हुए रोपवे हादसे में तीन लो...
13/04/2022

#त्रिकुट_पहाड़_देवघर
चर्चा में क्यों है? संथाल परगना के देवघर जिले में स्थित त्रिकुट पहाड़ पर हुए रोपवे हादसे में तीन लोगों की मौत।

#कहां है त्रिकुट पहाड़?
झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के देवघर जिले से 13 किलोमीटर की दूरी पर देवघर-दुमका रोड पर त्रिकुट पर्वत स्थित है. इस पर्वत के एक तरफ बाबा वैद्यनाथ बसते हैं तो दूसरी तरफ थोड़ी दूरी पर दुमका की तरफ नागनाथ बाबा बासुकीनाथ का मंदिर है. यहां इस पर्वत के तीन शिखर हैं जिसे ब्राह्मा, विष्णु और महेश के मुकुट के तौर पर जाना जाता है, साथ ही दो छोटे पर्वत शिखर गणेश और कार्तिक के नाम से जाने जाते हैं. इसलिए इसे त्रिकुट पर्वत के नाम से ख्याति प्राप्त है.

#रावण के #पुष्पक_विमान का था यहां हेलीपैड

पौराणिक कथाओं की मानें तो त्रेता युग में जटायू और लंकापति रावण के बीच मां सीता का हरण कर ले जाते समय यहीं युद्ध हुआ था. इसके साथ ही एक कहानी यह भी है कि यहां रावण अपने पुष्पक विमान से आता था और यहीं वन में तपस्या करता और अपने विमान को यहीं रखता था.

तीन में से 2 चोटी ही है ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित
त्रिकुट पर्वत घने जंगलों से आच्छादित बेहद मनोरम स्थान है. जहां प्रसिद्ध त्रिकुटाचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद का आश्रम स्थित है. इसकी तीन में से दो चोटियों पर ही लोग पहुंचते हैं क्योंकि तीसरी चोटी पर ढलान ज्यादा होने के कारण यह ट्रेकिंग के लिए असुरक्षित है. 2400 फीट से ज्यादा ऊंचाई वाली इसकी सबसे ऊंची चोटी के शीर्ष पर जाने के लिए यहां रोपवे बनाया गया है. इसी रोपवे में यह हादसा हुआ है. यह एशिया के सबसे ऊंचे रोपवे में से एक है. इस रोपवे की लंबाई 2 हजार 512 फीट होने के साथ यहां एक साथ 26 ट्रॉलियां आती जाती रहती हैं और सिर्फ 8 मिनट में यह रोमांचक सफर पूरा हो जाता है और लोग पर्वत के शिखर तक पहुंच जाते हैं.

विश्व का सबसे बड़ा शालिग्राम पत्थर भी है यहां
एशिया के सबसे ऊंचे रोपवे वाले इस त्रिकुट पर्वत पर विश्व का सबसे बड़ा शालिग्राम पत्थर भी मौजूद है, जिसे देखने के लिए लोग यहां आते हैं. आपको बताते चलें कि इसे 'विष्णु टॉप' के नाम से जाना जाता है. यह पत्थर सिर्फ दो कोण पर टिका है और दोनों के बीच 14 इंच का फासला है. इसके बारे में यह मान्यता है कि इसके बीच से पार होकर निकल जानेवाले के सारे ग्रह कट जाते हैं. यहां हाथी की आकृति का एक चट्टान और शेष नाग की आकृति का एक पत्थर भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. इस हाथी पहाड़ वाली चट्टान की ऊंचाई 40 फिट से ज्यादा है.

बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ भी विराजते हैं यहां
त्रिकुट पर्वत के नीचे बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ विराजते हैं. इस महादेव के बारे में कथा है कि इसे रावण ने स्थापित किया था. यहां के लोगों की मानें तो माता सीता ने यहां दीप जलाए थे जो अभी भी यहां है और लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां आते हैं.

#यहां_देखने_लायक_जगहें
त्रिकुट पर्वत पर देखने लायक जगहों में हनुमान छाती, सीता दीप, रावण के पुष्पक विमान का हेलीपैड, अंधेरी गुफा, सुसाइड प्वाइंट, शालीग्राम शिला और गणेश पर्वत हैं. इसके अलावा पेड़ पौधों की हरियाली आपका मन मोहने के लिए काफी है. यहां आपको बहते कई झरने भी देखने को मिल जाएंगे. बरसात के मौसम में यहां का दृश्य काफी मनोहारी होता है!

भारत के टॉप 5 में शामिल हुई सरहुल की शोभा यात्रा।
10/04/2022

भारत के टॉप 5 में शामिल हुई सरहुल की शोभा यात्रा।

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