D.N.College Hisar

D.N.College Hisar 01662-233136, 01662-228872 Drawing upon his life-long experience as a teacher and later as a Principal of D.A.V.
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Dayanand College, Hisar owes its existence to the dream, vision and missionary zeal of a selfless and distinguished educationist Late Lala Gian Chand Mahajan, later christened as Swami Munishwaranand. A teacher by profession, a social crusader by inclination and a saint by temperament, Lala Gian Chand Mahajan shaped the destiny of this institution for the first nine formative years as its Principa

l. College, Jalandhar, a premier college of North India, Lala Gian Chand laid the firm foundations of this nursery of higher education and put it on sound footing.

Hahaha
10/04/2022

Hahaha

जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा!जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, एकदम जर्जर बूढ़ा, तब तू क्या थोड़ा मेरे पास रहेगा? मुझ पर थोड़ा धीरज तो रखेगा ...
07/04/2022

जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा!

जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, एकदम जर्जर बूढ़ा, तब तू क्या थोड़ा मेरे पास रहेगा? मुझ पर थोड़ा धीरज तो रखेगा न? मान ले, तेरे महँगे काँच का बर्तन मेरे हाथ से अचानक गिर जाए या फिर मैं सब्ज़ी की कटोरी उलट दूँ टेबल पर, मैं तब बहुत अच्छे से नहीं देख सकूँगा न! मुझे तू चिल्लाकर डाँटना मत प्लीज़! बूढ़े लोग सब समय ख़ुद को उपेक्षित महसूस करते रहते हैं, तुझे नहीं पता?

एक दिन मुझे कान से सुनाई देना बंद हो जाएगा, एक बार में मुझे समझ में नहीं आएगा कि तू क्या कह रहा है, लेकिन इसलिए तू मुझे बहरा मत कहना! ज़रूरत पड़े तो कष्ट उठाकर एक बार फिर से वह बात कह देना या फिर लिख ही देना काग़ज़ पर। मुझे माफ़ कर देना, मैं तो कुदरत के नियम से बुढ़ा गया हूँ, मैं क्या करूँ बता?

और जब मेरे घुटने काँपने लगेंगे, दोनों पैर इस शरीर का वज़न उठाने से इनकार कर देंगे, तू थोड़ा-सा धीरज रखकर मुझे उठ खड़ा होने में मदद नहीं करेगा, बोल? जिस तरह तूने मेरे पैरों के पंजों पर खड़ा होकर पहली बार चलना सीखा था, उसी तरह?

कभी-कभी टूटे रेकॉर्ड प्लेयर की तरह मैं बकबक करता रहूँगा, तू थोड़ा कष्ट करके सुनना। मेरी खिल्ली मत उड़ाना प्लीज़। मेरी बकबक से बेचैन मत हो जाना। तुझे याद है, बचपन में तू एक गुब्बारे के लिए मेरे कान के पास कितनी देर तक भुनभुन करता रहता था, जब तक मैं तुझे वह ख़रीद न देता था, याद आ रहा है तुझे?

हो सके तो मेरे शरीर की गंध को भी माफ़ कर देना। मेरी देह में बुढ़ापे की गंध पैदा हो रही है। तब नहाने के लिए मुझसे ज़बर्दस्ती मत करना। मेरा शरीर उस समय बहुत कमज़ोर हो जाएगा, ज़रा-सा पानी लगते ही ठंड लग जाएगी। मुझे देखकर नाक मत सिकोड़ना प्लीज़! तुझे याद है, मैं तेरे पीछे दौड़ता रहता था क्योंकि तू नहाना नहीं चाहता था? तू विश्वास कर, बुड्ढों को ऐसा ही होता है। हो सकता है एक दिन तुझे यह समझ में आए, हो सकता है, एक दिन!

तेरे पास अगर समय रहे, हम लोग साथ में गप्पें लड़ाएँगे, ठीक है? भले ही कुछेक पल के लिए क्यों न हो। मैं तो दिन भर अकेला ही रहता हूँ, अकेले-अकेले मेरा समय नहीं कटता। मुझे पता है, तू अपने कामों में बहुत व्यस्त रहेगा, मेरी बुढ़ा गई बातें तुझे सुनने में अच्छी न भी लगें तो भी थोड़ा मेरे पास रहना। तुझे याद है, मैं कितनी ही बार तेरी छोटे गुड्डे की बातें सुना करता था, सुनता ही जाता था और तू बोलता ही रहता था, बोलता ही रहता था। मैं भी तुझे कितनी ही कहानियाँ सुनाया करता था, तुझे याद है?

एक दिन आएगा जब बिस्तर पर पड़ा रहूँगा, तब तू मेरी थोड़ी देखभाल करेगा? मुझे माफ़ कर देना यदि ग़लती से मैं बिस्तर गीला कर दूँ, अगर चादर गंदी कर दूँ, मेरे अंतिम समय में मुझे छोड़कर दूर मत रहना, प्लीज़!

जब समय हो जाएगा, मेरा हाथ तू अपनी मुट्ठी में भर लेना। मुझे थोड़ी हिम्मत देना ताकि मैं निर्भय होकर मृत्यु का आलिंगन कर सकूँ। चिंता मत करना, जब मुझे मेरे सृष्टा दिखाई दे जाएँगे, उनके कानों में फुसफुसाकर कहूँगा कि वे तेरा कल्याण करें। तुझे हर अमंगल से बचायें। कारण कि तू मुझसे प्यार करता था, मेरे बुढ़ापे के समय तूने मेरी देखभाल की थी।

मैं तुझसे बहुत-बहुत प्यार करता हूँ रे, तू ख़ूब अच्छे-से रहना। इसके अलावा और क्या कह सकता हूँ, क्या दे सकता हूँ भला। ■
_____________

(यह रचना बांग्लादेश निवासी मुहम्मद शुभ द्वारा मूलतः बांग्ला में लिखी गई है। जिसका हिंदी अनुवाद उत्पल बनर्जी ने किया है)

02/01/2022

🌺🙏🌺

कहाँ गुम हो गए संयुक्त परिवार


एक वो दौर था जब पति,
अपनी भाभी को आवाज़ लगाकर
घर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था ।
पत्नी की छनकती पायल और
खनकते कंगन
बड़े उतावलेपन के साथ
पति का स्वागत करते थे ।

बाऊजी की बातों का.. ”हाँ बाऊजी"
"जी बाऊजी"' के अलावा
दूसरा जवाब नही होता था ।

आज बेटा बाप से बड़ा हो गया,
रिश्तों का केवल नाम रह गया

ये "समय-समय" की नही,
"समझ-समझ" की बात है

बीवी से तो दूर, बड़ो के सामने
अपने बच्चों तक से बात नही करते थे
आज बड़े बैठे रहते हैं
हम सिर्फ बीवी से बात करते हैं!

दादाजी के कंधे तो मानो,
पोतों-पोतियों के लिए
आरक्षित होते थे, काका ही
भतीजों के दोस्त हुआ करते थे ।

आज वही दादू - दादी
वृद्धाश्रम की पहचान है,
चाचा - चाची बस
रिश्तेदारों की सूची का नाम है ।

बड़े पापा सभी का ख्याल रखते थे
, अपने बेटे के लिए जो खिलौना खरीदा
वैसा ही खिलौना परिवार के
सभी बच्चों के लिए लाते थे ।

'ताऊजी'
आज सिर्फ पहचान रह गए
और,......
छोटे के बच्चे
पता नही कब जवान हो गये..??

दादी जब बिलोना करती थी,
बेटों को भले ही छाछ दे
पर मक्खन तो
केवल पोतों में ही बाँटती थी।

दादी ने
पोतों की आस छोड़ दी
क्योंकि,...
पोतों ने अपनी राह
अलग मोड़ दी ।

राखी पर बुआ आती थी,
घर मे नही
मोहल्ले में,
फूफाजी को
चाय-नाश्ते पर बुलाते थे।

अब बुआजी,
बस दादा-दादी के
बीमार होने पर आते है,
किसी और को
उनसे मतलब नही
चुपचाप नयननीर बरसाकर
वो भी चले जाते हैं ।

शायद मेरे शब्दों का
कोई महत्व ना हो,
पर कोशिश करना,
इस भीड़ में
खुद को पहचानने की,

कि,.......

हम "ज़िंदा है"
या
बस "जी रहे" हैं"
अंग्रेजी ने अपना स्वांग रचा दिया,
"शिक्षा के चक्कर में
संस्कारों को ही भुला दिया"।

बालक की प्रथम पाठशाला परिवार
पहला शिक्षक उसकी माँ होती थी,
आज
परिवार ही नही रहे
पहली शिक्षक का क्या काम...??

"ये समय-समय की नही,
समझ-समझ की बात है!

कुछ साल बाद
हम दो ,हमारे दो के चक्कर में
परिवार खत्म हो जाएगा ।
मामा रहेगा, तो मौसी नही होगी
मौसी होगी तो मामा नही होगा
चाचा होगा तो बुआ नही होगी
बुआ होगी तो चाचा नही होगा ।

काका ,काकी ,बड़े पापा बड़े मम्मी
बुआ ,फूफा ,मामा मामी
मौसी मौसा ,ताऊ ताई जी
न जाने ऐसे कितने रिश्तों के
संबोधन के लिए तरसेंगे ।।

28/04/2021

हम कितनें मासूम हैं..

#जो लॉक डाउन की खबर सुनते ही गुटके की कीमत ₹5 से ₹7 कर देते हैं..🙄

#जो डॉक्टरों द्वारा विटामिन सी अधिक लेने की कहने पर 50 रुपये प्रति किलो का नींबू 150 रुपये प्रति किलो बेचने लगते हैं..🙄

#जो 40-50 रुपए का बिकने वाला नारियल पानी ₹100 का बेचने लगते हैं..🙄

#जो मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी सुनते हैं, तो ऑक्सीजन की कालाबाजारी शुरू कर देते हैं..🙄

#जो दम तोड़ते मरीजों की दुर्दशा देखते हैं तो रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करनी शुरू कर देते हैं..🙄

#जो अपना ईमान बेच कर इंजेक्शन में पैरासिटामोल मिलाकर बेचने लगते हैं..🙄

#जो डेड बॉडी लाने के नाम पर पानीपत से फरीदाबाद तक के ₹36000 मांगने लगते हैं..🙄😢😢🙏

#जो मरीज को दिल्ली गाजियाबाद मेरठ नोएडा स्थित किसी हॉस्पिटल में पहुंचाने की बात करते हैं तो एंबुलेंस का किराया 10 से 15 हजार किराया मांगने लगते हैं..🙄

क्या वास्तव में हम बहुत मासूम हैं.. या लाशों का मांस नोचने वाले गिद्ध...
गिद्ध तो मरने के बाद अपना पेट भरने के लिए लाशों को नोचता है पर हम तो अपनी तिजोरियां भरने के लिए जिंदा इंसानों को ही नोच रहे हैं, कहाँ लेकर जाएंगे ऐसी दौलत या फिर किसके लिए ?..😢

कभी सोचा है आपने?? एक बार सोचना जरूर..🤔

एक दिन हिसाब सबको देना पड़ेगा, जनता की अदालत में नहीं तो ईश्वर की अदालत में...😢🙏🙏🙏
हिंदुस्तान को आज कोरोना नहीं मार रहा
इंसान इंसान को मार रहा है

26/04/2021
25/04/2021

from the wall of shyam .
देश के गाँवों में बहुत बड़ी आपदा आने वाली है, मैं अपने गाँव में आया हुआ हूँ हर आदमी के बदन दर्द और बुख़ार जैसा है लेकिन लोग इसे साधारण फ़्लू की तरह देख रहे हैं और कह रहे हैं कि ये तो सब को हो रहा है। कोरोना अभी गाँव आना शुरू हुआ है, जब इसका असर देखने को मिलेगा तब लाशें गिनना मुश्किल होगा.

लेकिन सरकार गाँव के हेल्थ सिस्टम से एकदम ग़ायब है. यहाँ न महामारी को लेकर कोई प्रचार है, न टेस्टिंग है न ट्रेसिंग है. ऊपर से पंचायत चुनाव शुरू हो चुके हैं. मेरे घर के सामने से हर मिनट कोई न कोई निकल रहा है जिसके समर्थक नारे लगा रहे हैं “फलाने भैया जीतेगा”.

बात केवल मेरे गाँव की नहीं है, बल्कि मेरे दोस्तों ने बताया कि उनके भी गाँव में भी कोरोना को लेकर लापरवाही बरती जा रही है और सरकार इन जगहों पर एकदम अनुपस्थित है. अभी तक हमने शहरों को मरते देखा, शहरों में टूटा फूटा ही सही लेकिन स्वास्थ्य सिस्टम तो है, लेकिन गाँव में क्या होगा?

गाँव के लिए ये वो समय है जिस समय के खो जाने पर शहर वाले पीछे से लाठी पीट रहे हैं. जो हम आज बात कर रहे हैं कि तैयारी वाले समय में शहरों में तैयारियाँ नहीं कीं गईं, गाँव के मामले में ये वही वाला समय है, यानी रोकने का समय, युद्ध स्तर पर तैयारी का समय. लेकिन सरकार इस ओर आँख मूँदे हुए है. अगले कुछ महीने बाद देखने को मिलेगा जो हालत आज दिल्ली, लखनऊ, रायपुर, कानपुर, पुणे, जयपुर, मुंबई है कि वो हर गाँव की होगी, पर इस देश में चिल्लाते रहो, चिल्लाते रहो, सुनता कौन है इस देश में.

23/04/2021

*दवाइयां इंजेक्शन और ऑक्सीजन ब्लैक* करने वाले सुन लो ।

कच्छ भूकंप के दौरान की एक घटना हैं।
पुलिस राहत कार्य कर रही थी। एक बूढ़ा आदमी एक सुंदर घर के मलबे के बाहर बैठा था। मकान ढह गया। पुलिस आई, उस के पुत्रवधू का शव मलबे से निकला ..शरीर पर हर जगह गहने थे .. पुलिस ने कहा "ये गहने रख लो, आप को काम आयेंगें !
फटी आँखों वाले उस आदमी ने कहा .. ले लो .. सब कुछ ... जो करना है करो .. लेकिन, मुझे यह गहने नहीं चाहिए उस बुड्ढे ने कहा, जब मोरबी का डैम टूटा था, तब मैंने ये सारे गहने मृत्य लोगो के गले से लूट के अपने घर ला कर अपने पुत्र वधु को पहनाए थे।

*आज मेरी बहू ने वो ही गहने पहने हुये है जो में लूट के लाया था, "मुझे कुछ नहीं चाहिए, सर!" वह रोया। आप लै लिजिये......कच्छ की इस कहानी को ध्यान में रखें, और कोरोना के इस संकट के समय में मनुष्य की मजबूरी का लाभ ना उठाएं

20/04/2021

A request to all +45 , pl get vaccination in next 10 days without giving any second thought.
Once it gets open for +18 then it will be very much difficult to get appointments and waiting time can be for few hours instead of few minutes which is now a days.

Just act take ur dose now and protect urself and families!!!

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