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सर्वोपरि प्रेमी शिव शंकर सर्वोत्तम प्रिये पार्वतीसर्वश्रेष्ठ पति परमेश्वर शिव सदा सुहागन पार्वती.🌼🚩आज श्री शिव और शक्ति ...
18/09/2023

सर्वोपरि प्रेमी शिव शंकर सर्वोत्तम प्रिये पार्वती
सर्वश्रेष्ठ पति परमेश्वर शिव सदा सुहागन पार्वती.🌼🚩

आज श्री शिव और शक्ति की आराधना के पावन पर्व, #हरतालिका_तीज व्रत की सभी मातृशक्ति को हार्दिक शुभकामनाएँ...

सभी के लिए आरोग्य, ऐश्वर्य, की मङ्गल कामनाओं के साथ ईश्वर आपके सभी मनोरथ पूर्ण करें। सृष्टि की संवाहक नारी शक्ति को नमन वंदन प्रणाम..!🙏🚩

ॐ नमः पार्वते पतये हर हर महादेव...!🙏

"रक्षाबंधन विशेष।येन बद्धो बलि राजा।अब क्या अर्पित करोगे राजन? ,सारी धरती नापने के बाद विश्वरूप भगवान ने मुस्कराते हुए र...
30/08/2023

"रक्षाबंधन विशेष।

येन बद्धो बलि राजा।

अब क्या अर्पित करोगे राजन? ,सारी धरती नापने के बाद विश्वरूप भगवान ने मुस्कराते हुए राजा बलि से पूछा।

जिसका सारा संसार है उसे क्या अर्पित किया जा सकता है भगवन, सब कुछ आपका आपको ही समर्पित है।, बलि ने हाथ जोड़ा।

तो क्या आपका वचन असत्य जाएगा? एक पग अभी बचा है उसे कहाँ रखूं? भगवान ने पुनः पूछा।

बलि का वचन असत्य कैसे जाएगा, भक्त के वचन की लाज तो स्वयं भक्तवत्सल भगवान की ही जिम्मेदारी है। मेरा सिर आपकी सेवा में है। कृपया अपना पग मेरे सिर पर रखें।, बलि ने अपना मस्तक प्रस्तुत कर दिया।

वामन ने अपना पैर धरती पर रख दिया और बोले, बस राजन तुम अहंकारमुक्त हुए। मैं आपकी सहायता के लिए आया था। बिना मनुष्य हुए मनुष्यों पर शासन करना पाप है। आज से तुम निष्पाप हुए, मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ, यदि आपके मन में कोई इच्छा हो तो वह कहो मुझसे।

बलि ने अपना माथा प्रभु के चरणों मे रख दिया और बोले, प्रभुता पाकर किसे मद नही हो जाता है भगवन, मैं राज्य तभी चला सकता हूँ जब आप मेरे साथ मेरे रक्षक बन कर रहें।

एवमस्तु कहकर भगवान प्रहरी के वेश में आ गए और राजा बलि के साथ पाताल को चले गए।

वैकुंठ में विराजमान लक्ष्मी जी को जब यह वृत्तांत पता चला तो वह सोच में पड़ गयीं कि अब प्रभु वैकुंठ कैसे आएं! अन्तः वह एक रक्षासूत्र लेकर राजा बलि के दरबार में उपस्थित हुईं और उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें भाई बनाना चाहती हैं। बलि ने उनसे रक्षासूत्र बंधवा लिया और बहन से पूछा कि उसे क्या उपहार चाहिए? लक्ष्मी जी ने बलि से कहा कि कि मैं आपके उसी प्रहरी की पत्नी हूं उसके सुख-सौभाग्य और गृहस्थी की रक्षा करना भी बलि का भाई होने के नाते धर्म है अतः वह अपने रक्षक को मुक्त कर दें। बलि सब बात समझ गए और प्रभु को मुक्त कर उनके साथ वैकुण्ठ वास की सहमति दे दी, परंतु इसके साथ ही उन्होंने लक्ष्मीजी से आग्रह किया कि जब बहन-बहनोई उनके घर आ ही गए हैं तो कुछ मास और वहीं ठहर जाएं।

लक्ष्मीजी ने उनका आग्रह मान लिया और श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) से कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) तक विष्णु और लक्ष्मीजी वहीं पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहे। धनतेरस के बाद प्रभु जब लौटकर वैकुण्ठ को गए तो अगले दिन पूरे लोक में दीप-पर्व मनाया गया।

माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन से धनतेरस तक विष्णु लक्ष्मी संग राजा बलि के यहां रहते हैं। यही वह समय राजा बलि महाबलीपुरम वापस लौटते हैं। यही समय है जब केरल में ओणम मनाया जाता है जो महाबली के वापस आने का द्योतक है।

'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ,
तेन त्वाम् अभिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।

और हां राखी का मुहूर्त आपके कुल पुरोहित बताएं, मां बताए, दादी या बाबा बताएं वही सही है। रक्षा- सूत्र बंधन किसी मुहूर्त का मोहताज नहीं है, मुहूर्त से ज्यादा महत्वपूर्ण भाव है।

15/08/2023
*अंतिम समय में व्यक्ति के मुंह में क्यों दिया जाता है तुलसी और गंगाजल*हिन्दू धर्म में गंगाजल और तुलसी का मिलन बहुत ही पव...
25/12/2022

*अंतिम समय में व्यक्ति के मुंह में क्यों दिया जाता है तुलसी और गंगाजल*

हिन्दू धर्म में गंगाजल और तुलसी का मिलन बहुत ही पवित्र माना जाता है। गंगा जहां शिव से संबंध रखती है वहीं तुलसी श्रीहरि विष्णु से। दुनिया के सभी जलों में सबसे पवित्र जल गंगा के जल को माना जाता है और तुलसी को सबसे पवित्र पौधा माना जाता है। मरते वक्त या मरने के बाद या किसी के प्राण तन से नहीं निकल रहे हैं तो उसके मुंह में तुसली के साथ गंगा जल डाला जाता है। ऐसा क्यूं करते हैं? आइये इस रहस्य को जानते हैं।।

1. मान्यता अनुसार कहते हैं कि मुंह में गंगाजल और तुलसी रखने से यम के दूत यानी यमदूत मृतक की आत्मा को सताते नहीं है।

2. मान्यता अनुसार गंगाजल और तुलसी रखने से तन से प्राणा आसानी से निकल जाते हैं और किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है।

3. यह भी कहते हैं कि मरने वाला व्यक्ति भूखा और प्यासा नहीं मरे इसलिए उसके मुंह में तुलसी के साथ गंगाजल रखा जाता है। भूखा प्यासा व्यक्ति अतृप्त होकर भटकता रहता है।

4. तुलसी हमेशा भगवान व‌िष्णु के स‌िर पर शोभित होती हैं, मृत्यु के समय तुलसी पत्ता मुंह में डालने से व्यक्त‌ि को यमदंड का सामना नहीं करना पड़ता है।

5. गंगा को मोक्षदायिनी नदी भी कहा गया है इसीलिए ऐसी आम धारणा है कि मरते समय व्यक्ति को यह जल पिला दिया जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा ही एक मात्र ऐसी नदी है जहां पर अमृत कुंभ की बूंदें दो जगह गिरी थी।

6. गंगाजल का पानी बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु के कारण कभी सड़ता नहीं है। यदि किसी को गंगा जल पिला दिया जाए तो यह जीवाणु उसके शरीर में चला जाएगा और शरीर के भीतर गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को यह नष्ट कर देगा इसीलिए गंगाजल मुंह में डाला जाता है। गंगाजल में कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है। ऐसा भी मान्यता है कि कभी इसे पीने से कोई मरता हुआ व्यक्ति पुन: जीने की राह पर निकल पड़े। तुलसी का पत्ता भी व्यक्ति में जिवेषणा का संचार करता है।।

7. गंगाजल में प्राणवायु की प्रचुरता बनाए रखने की अदभुत क्षमता है। इस कारण मरते हुए व्यक्ति को गंगाजल पिलाया जाता है। गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है।

8. तुलसी और गंगाजल के साथ मृत्यु के समय व्यक्ति के मुंह में सोने का टुकड़ा रखने का भी प्रचलन है।। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

9. दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है।। मरने वालों को तुलसी खिलाने से उसके शरीर का शुद्धीकरण हो जाता है और वह अच्छा महसूस करता है।

10. तुलसी एक औषधि भी है। मरते समय तुलसी का पत्ता मुंह में रखने से प्राण त्यागने में कष्ट नहीं होता है क्योंकि इससे सात्विक भाव और निर्भिकता का भाव जन्मता है।

04/10/2022

एक दिन (संध्या के समय) सरयू के तट पर.....तीनों भाइयों संग टहलते *श्री राम* से *भरत भैया* ने कहा , "एक बात पूछूँ" ? *भईया* !!
*माता कैकई* ने आपको वनवास दिलाने के लिए मँथरा के साथ मिल कर जो 'षड्यंत्र' किया था , *क्या वह राजद्रोह नहीं था ?*
उनके *'षड्यंत्र'* के कारण....एक ओर राज्य के *भावी महाराज* और *महारानी* को (14) चौदह वर्ष का वनवास झेलना पड़ा....तो दूसरी ओर *पिता महाराज* की दु:खद मृत्यु हुई । ऐसे 'षड्यंत्र' के लिए (सामान्य नियमों के अनुसार) तो *मृत्युदण्ड* दिया जाता है , फिर आपने *माता कैकई* को *दण्ड* क्यों नहीं दिया ?
*राम मुस्कुराए*…....बोले, "जानते हो *भरत* !! किसी कुल में एक *चरित्रवान और धर्मपरायण पुत्र* जन्म ले ले , तो उसका जीवन उसके *असँख्य पीढ़ी के पितरों के अपराधों* का प्रायश्चित कर देता है । जिस *"माँ"* ने तुम *जैसे - महात्मा* को जन्म दिया हो , उसे *दण्ड* कैसे दिया जा सकता है ..*भरत ?"*
(भरत सन्तुष्ट नहीं हुए)
कहा , "यह तो *मोह* है भईया ; और "राजा_ का_ दण्डविधान" *मोह* से मुक्त होता है । कृपया *एक राजा की तरह* उत्तर दीजिये कि आपने *माता* को *दण्ड* क्यों नहीं दिया ?.......समझिए कि आपसे यह *प्रश्न* आपका अनुज नहीं , *अयोध्या का एक सामान्य नागरिक* कर रहा है ।

(राम गम्भीर हो गए)......कुछ क्षण के मौन के बाद कहा , "अपने सगे-सम्बन्धियों के किसी अपराध पर कोई *दण्ड न देना* ही इस सृष्टि का *'कठोरतम दण्ड'* है भरत !!”

*माता कैकई* ने अपनी एक भूल का बड़ा - कठोर *दण्ड* भोगा है । वनवास के (14) चौदह वर्षों में *हम - चारों भाई* अपने - अपने स्थान से परिस्थितियों से लड़ते रहे हैं ; पर *माता कैकई* हर क्षण मरती रही हैं ।

(अपनी एक भूल के कारण) उन्होंने अपना *पति खोया* , अपने *चार - बेटे खोए* , अपना समस्त *सुख - सम्मान खोया* , फिर भी वे उस "अपराध - बोध" से कभी *मुक्त न हो* सकीं । *वनवास समाप्त हो गया*....... तो परिवार के शेष - सदस्य *प्रसन्न और सुखी* हो गए ; पर *वे* कभी प्रसन्न न हो सकीं । *कोई 'राजा' किसी "स्त्री" को इससे कठोर - दण्ड क्या दे सकता है ?*

मैं तो सदैव यह सोचकर *दुखी हो जाता हूँ* कि "मेरे कारण (अनायास ही) *मेरी माँ* को इतना *कठोर - दण्ड* भोगना पड़ा ।"

*राम के नेत्रों में जल उतर* आया था , और *भरत - आदि भाई* मौन हो गए थे ।

(राम ने फिर कहा)....... "और उनकी भूल को *अपराध समझना* ही क्यों भरत !!......[यदि मेरा वनवास न हुआ होता] , तो संसार *'भरत' और 'लक्ष्मण' जैसे भाइयों के अतुल्य भ्रातृ - प्रेम* को कैसे देख पाता ? (मैंने) तो केवल अपने *माता-पिता की आज्ञा का पालन* मात्र किया था , पर (तुम - दोनों) ने तो *मेरे - स्नेह में* (14) चौदह वर्ष का *"वनवास"* भोगा । *"वनवास"* न होता तो यह संसार सीखता कैसे.......कि *भाइयों का सम्बन्ध होता कैसा है ?"* भरत के प्रश्न *मौन* हो गए थे । (वे अनायास ही बड़े भाई से लिपट गए) !!

✒️ *राम कोई नारा नहीं हैं । राम एक आचरण हैं , एक चरित्र हैं , एक जीवन* "जीने की शैली" *हैं ।*

👣 🙏 जय श्रीराम 🙏👣

सम्राट पृथ्वीराज चौहान का विवाह आठ राजघरानों में हुआ था उनका सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता हूँ।प्रथम विवाह - सम्राट पृथ्व...
12/07/2022

सम्राट पृथ्वीराज चौहान का विवाह आठ राजघरानों में हुआ था उनका सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता हूँ।

प्रथम विवाह -
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का प्रथम विवाह बाल्यकाल में ही राजा नाहर राय प्रतिहार परमार की पुत्री से होना निश्चित हो गया था,
परन्तु बाद में नाहर राय ने अपनी पुत्री का विवाह सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ करने से मना कर दिया।
इस पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने संदेश भिजवाया कि यदि यह विवाह नहीं हुआ तो युद्ध होगा और क्षत्रिय परम्परानुसार हम कन्या का हरण करके विवाह करने को बाध्य होंगे।
राजा नाहर राय ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात नहीं मानी और दोनों के बीच युद्ध हुआ जिसमें राजा नाहर राय की पराजय हुई तथा सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने कन्या का हरण कर विवाह किया था।

द्वितीय विवाह -
सम्राट पृथ्वीराज चैहान का दूसरा विवाह आबू के परमारों के यहां हुआ, राजकुमारी का नाम ‘‘इच्छानी’’ था।

तृतीय विवाह -
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का तीसरा विवाह उनके सामंत चन्दपुण्डीर/चाँद पुण्डीर की पुत्री से हुआ था।

चर्तुथ विवाह -
सम्राट पृथ्वीराज चैहान का चौथा विवाह दाहिमराज दायमा की पुत्री से हुआ और इसी रानी से सम्राट पृथ्वीराज चौहान को रयणसीदेव पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जो सबसे बड़े थे भाइयों में।

पंचम विवाह-
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का पांचवा विवाह राजा पदमसेन यदुवंशी की पुत्री पदमावती से हुआ।
व्रतांत इस प्रकार है कि पदमावती एक दिन बाग में विहार कर रही थी, तभी उसने वहाँ पर बैठे हुए एक शुक सुवा तोता को पकड़ लिया।
वह सुवा पृथ्वीराज चौहान के राज्य का था और शास्त्रवेता होने के कारण उसकी वाणी पर राजकुमारी मुग्ध हो गई तथा वह शुक को अपने पास रखने लगी।
उस शुक ने राजकुमारी को सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता एवं शौर्य की कहानी सुनाई, जिसके कारण राजकुमारी सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर मोहित हो गई तथा उस शुक के साथ ही पृथ्वीराज को यह संदेश भिजवाया कि ‘‘मैंने आपको अपना जीवनसाथी मान लिया है और अब अपने को आपकी भार्या मानती हूँ।’’ इसलिए मेरा वरण करें।
इस प्रकार सम्राट पृथ्वीराज चौहान का पांचवा विवाह हुआ।

षष्ठम् विवाह-
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का छठा विवाह देवगिरी के राजा तवनपाल यदुवंशी की पुत्री शशिवृता के साथ हुआ।
राजा तनवपाल यदुवंशी की रानी ने पृथ्वीराज के पास संदेश भिजवाया कि ‘‘हमारी पुत्री शशिवृता ने आपको पतिरूप में वरण करने का निश्चिय किया है। उसकी सगाई कन्नोज के महाराज जयचन्द गहरवार/राठौड़ के भाई वीरचन्द गहरवार के साथ हुई है, परन्तु कन्या ने मन ही मन आपको अपना पति मान कर स्वीकार किया हुआ है, अस्तु आप आकर उसका युक्ति-बुद्धि से वरण करें।’’
यही वह विवाह है जिसे पृथ्वीराज रासो में आधार मान कर काव्य ग्रन्थ रचा गया है।

सप्तम विवाह -
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का सातवां विवाह सारंगपुर मालवाद्ध के राजा भीम परमार की पुत्री इन्द्रावती के साथ खड़ग विवाह हुआ था।
जब सम्राट पृथ्वीराज चौहान विवाह हेतु सारंगपुर आ रहे थे, तब दूत से खबर मिली कि पाटण के राजा भोला सालंकी ने हमला कर दिया है।
यह समाचार पाकर सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने अपनी सैन्य शक्ति के साथ युद्धस्थल की ओर प्रस्थान किया और सामंतों से मंत्रणा कर विवाह हेतु अपना खड़ग आमेर के राजा पजवनराय कछवाहा के साथ सारंगपुर भिजवा दिया। निश्चित दिन राजकुमारी इन्द्रावती का सम्राट पृथ्वीराज चौहान के खड़ग से विवाह की रस्म पूरी हुई।

अष्ठम विवाह- कांगड़ के युद्ध के पश्चात जालंधर नरेश रघुवंश प्रतिहार हमीर की पुत्री के साथ सम्राट पृथ्वीराज चौहान का आठवां विवाह सम्पन्न हुआ।

इसके बाद के सभी विवाह जिनका वर्णन मिलता है वह मेरी साक्ष्य और विवेक की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।

अंत मे सिर्फ इतना कहना चाहूंगा,
मानो तो माँ गंगा,
ना मानो तो बहता पानी है।

चुंडावत मांगी (निशानी) सैनाणी सिर काट दे दियो क्षत्राणि! हाड़ी रानी हाड़ा वंश की राजकुमारी सहल कंवर सलूम्बर के युवा सामन...
11/07/2022

चुंडावत मांगी (निशानी) सैनाणी
सिर काट दे दियो क्षत्राणि!

हाड़ी रानी हाड़ा वंश की राजकुमारी सहल कंवर सलूम्बर के युवा सामन्त रतनसिंह चुंडावत की नवविवाहिता पत्नी थी।
रतनसिंह चुंडावत मेवाड़ के महाराणा राजसिंह सिसोदिया का सामंत था। महाराणा राजसिंह का विवाह चारूमति से होने वाला था, उसी समय औरंगजेब अपनी सेना लेकर मेवाड़ की ओर बढ़ा।

विवाह होने तक मुगल सेना को रोकने की जिम्मेदारी नवविवाहित राव रतनसिंह चुंडावत ने ली। जब वह युद्ध के मैदान में जा रहा था तो जाते हुए अपनी पत्नी की याद सताने लगी। चूंडावत ने अपने सेवक को भेजकर रानी से सैनाणी (निशानी) लाने को कहा ताकि युद्ध के मैदान में उसकी याद न सताएं। रानी ने सोचा कि मेरी यादों के कारण वे अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पायेंगे। अतः मैं कर्त्तव्य में बाधक क्यों बनूं।

चूंडावत की भुजाएं फड़क उठी। और शत्रुदल पर टूट पड़ा। हाड़ा सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे। वह शत्रु पर टूट पड़ा।

इतना अप्रतिम शौर्य दिखाया था कि उसकी मिसाल मिलना बड़ा कठिन है जीवन की आखिरी सांस तक वह लंड़ता रहा।
राव रतनसिंह युद्ध में विजयी रहा लेकिन वीरगति को प्राप्त हुआ।
हाड़ी रानी ने सेवक के हाथ से तलवार लेकर अपना सिर काट डाला। सेवक ने रानी का कटा सिर थाल में रखा और चूंडावत को भेंट किया ...... 🚩🚩

🟥गोरा-बादल 🟥वीरता और शौर्य की अद्भुत कहानी , जिन्होंने अपनी वीरता से खिलजी को उसकी ओकात दिखाई थी।जब जब भारत के इतिहास की...
03/07/2022

🟥गोरा-बादल 🟥

वीरता और शौर्य की अद्भुत कहानी , जिन्होंने अपनी वीरता से खिलजी को उसकी ओकात दिखाई थी।

जब जब भारत के इतिहास की बात होती हे तब तब राजपुताना के वीरो के लड़े युद्ध और उनकी वीरता के चर्चे आम होते हे . आज हम आपको भारत के ऐसे ही दो वीर “गौरा-बादल” की वीरता और पराक्रम की सच्ची कथा बताने जा रहे हे।

जो हम सबके लिए प्रेरणा प्रदान करने वाली हे . इतिहास को छू कर आने वाली हवा में एक बार साँस ले कर देखिए, उस हवा में घुली वीरता की महक से आपका सीना गौरवान्वित हो उठेगा. भले ही हममें से कई लोग अपने देश की माटी में सने अपने पूर्वजों के लहू की गंध ना ले पाए हों, किन्तु इतिहास ने आज भी भारत माँ के उन सपूतों की वीर गाथाओं को अपने सीने में सहेज कर रखा है।

इन्हीं शूरवीरों की वजह से ही हमारी आन-बान और शान आज तक बरकरार है. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह गौरव किसी धर्म विशेष या जाति विशेष का नहीं, अपितु यह गौरव है हम सम्पूर्ण भारतवासियों का।

गौरा और बादल ऐसे ही दो शूरवीरों के नाम है, जिनके पराक्रम से राजस्थान की मिट्टी बलिदानी है ।

🟥जीवन परिचय और इतिहास 🟥
गौरा ओर बदल दोनों चाचा भतीजे जालोर के चौहान वंश से सम्बन्ध रखते थे | मेवाड़ की धरती की गौरवगाथा गोरा और बादल जैसे वीरों के नाम के बिना अधूरी है. हममें से बहुत से लोग होंगे, जिन्होंने इन शूरवीरों का नाम तक न सुना होगा !

मगर मेवाड़ की माटी में आज भी इनके रक्त की लालिमा झलकती है. मुहणोत नैणसी के प्रसिद्ध काव्य ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ में इन दो वीरों के बारे पुख्ता जानकारी मिलती है. इस काव्य की मानें तो रिश्ते में चाचा और भतीजा लगने वाले ये दो वीर जालौर के चौहान वंश से संबंध रखते थे, जो रानी पद्मिनी की विवाह के बाद चितौड़ के राजा रतन सिंह के राज्य का हिस्सा बन गए थे।

ये दोनों इतने पराक्रमी थे कि दुश्मन उनके नाम से ही कांपते थे. कहा जाता है कि एक तरफ जहां चाचा गोरा दुश्मनों के लिए काल के सामान थे, वहीं दूसरी तरफ उनका भतीजा बादल दुश्मनों के संहार के आगे मृत्यु तक को शून्य समझता था. यहीं कारण था कि मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने उन्हें अपनी सेना की बागडोर दे रखी थी।

🟥राणा रतनसिंह को खिलजी की कैद से छुड़ाना 🟥
खिलजी की नजर मेवाड़ की राज्य पर थी लेकिन वह युद्ध में राजपूतों को नहीं हरा सका तो उसने कुटनीतिक चाल चली , मित्रता का बहाना बनाकर रावल रतनसिंह को मिलने के लिए बुलाया और धोके से उनको बंदी बना लिया और वहीं से सन्देश भिजवाया कि रावल को तभी आजाद किया जायेगा, जब रानी पद्मिनी उसके पास भजी जाएगी।इस तरह के धोखे और सन्देश के बाद राजपूत क्रोधित हो उठे, लेकिन रानी पद्मिनी ने धीरज व चतुराई से काम लेने का आग्रह किया। रानी ने गोरा-बादल से मिलकर अलाउद्दीन को उसी तरह जबाब देने की रणनीति अपनाई जैसा अलाउद्दीन ने किया था। रणनीति के तहत खिलजी को सन्देश भिजवाया गया कि रानी आने को तैयार है, पर उसकी दासियाँ भी साथ आएगी।

खिलजी सुनकर आन्दित हो गया। रानी पद्मिनी की पालकियां आई, पर उनमें रानी की जगह वेश बदलकर गोरा बैठा था। दासियों की जगह पालकियों में चुने हुए वीर राजपूत थे। खिलजी के पास सूचना भिजवाई गई कि रानी पहले रावल रत्नसिंह से मिलेंगी। खिलजी ने बेफिक्र होकर अनुमति दे दी। रानी की पालकी जिसमें गोरा बैठा था, रावल रत्नसिंह के तम्बू में भेजी गई।

🟥अलाउद्दीन खिलजी पर आक्रमण🟥
गोरा ने रत्नसिंह को घोड़े पर बैठा तुरंत रवाना कर और पालकियों में बैठे राजपूत खिलजी के सैनिकों पर टूट पड़े। राजपूतों के इस अचानक हमले से खिलजी की सेना हक्की-बक्की रहा गई वो कुछ समझ आती उससे पहले ही राजपूतों ने रतनसिंह को सुरक्षित अपने दुर्ग पंहुचा दिया , हर तरफ कोहराम मच गया था गोरा और बादल काल की तरह दुश्मनों पर टूट पड़े थे , और अंत में दोनों वीरो की भांति लड़ते हुवे वीरगति को प्राप्त हुवे |।

गोरा और बादल जैसे वीरों के कारण ही आज हमारा इतिहास गर्व से अभिभूत है. ऐसे वीर जिनके बलिदान पर हमारा सीना चौड़ा हो जाये, उन्हें कोटि-कोटि नमन | मेवाड़ के इतिहास में दोनों वीरों की वीरता स्वर्ण अक्षरों में अंकित है |।

हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या ...
01/07/2022

हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।

क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?

बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।

तो लीजिए प्रस्तुत है श्री हनुमान चालीसा जी अर्थ सहित!!

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श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★
📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★
📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★
📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★
📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★
📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★
📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★
📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★
📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★
📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★
📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★
📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★
📯《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★
📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★
📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★
📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★
📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★
📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★
📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★
📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★
📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★
📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★
📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★
📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★
📯《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★
📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★
📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★
📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★
📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★
📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★
📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★
📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★
📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★
📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★
📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★
📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
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🌹सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित👍👍

शबरी की कहानी। *शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।*शबरी की उम्र *...
30/06/2022

शबरी की कहानी।
*शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।*

शबरी की उम्र *दस वर्ष* थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी।

महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे। शबरी को समझाया *"पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।"*

अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- *कब आएंगे..?*

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। *महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।*

*आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए।* ये उलट कैसे हुआ। *गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ???*

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका।
महर्षि मतंग बोले-
*पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।*
*अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।*
*उनका कौशल्या से विवाह होगा।* फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।
*फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।* फिर प्रतीक्षा..

*फिर उनका विवाह कैकई से होगा।* फिर प्रतीक्षा..

फिर वो *जन्म* लेंगे, फिर उनका *विवाह माता जानकी से होगा।* फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा। *तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे।* तुम उन्हें कहना *आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये। उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।*

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। *अबोध शबरी* इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई।

*वह फिर अधीर होकर* पूछने लगी- *"इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???"*

महर्षि मतंग बोले- *"वे ईश्वर है, अवश्य ही आएंगे।* यह भावी निश्चित है। *लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते है। लेकिन आएंगे "अवश्य"...!*

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे। *इसलिए प्रतीक्षा करना।* वे कभी भी आ सकते है। *तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे। शायद यही मेरे तप का फल है।"*

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। *उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी।* वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें है।

*हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती।*

*कभी भी आ सकतें हैं।*
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा। *शबरी बूढ़ी हो गई।* लेकिन प्रतीक्षा *उसी अबोध चित्त से करती रही।*

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े। *शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी।*

*गुरु का कथन सत्य हुआ।* भगवान उसके घर आ गए। *शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया।*

*ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो। जय हो। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-*

*"कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?"*

राम मुस्कुराए- *"यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?"*

*"जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।*

राम ने कहा- *"तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।”*

*"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है। पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’।*

*”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है...!” (वानरी भाव)*

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। *”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...।" (मार्जारी भाव)*

राम मुस्कुराकर रह गए!!

भीलनी ने पुनः कहा- *"सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं!" तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी। यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”*

राम गम्भीर हुए और कहा-

*भ्रम में न पड़ो मां! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”*

*रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है।*

*राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था।”*

*"जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।"*

*राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि "शासन/प्रशासन और सत्ता" जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है।”*
(अंत्योदय)

*राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ!*

माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा-

*राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए।”*

*"राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है।”*

*"राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।”*

*"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है।”*

*"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए।”*

और

*"राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते है।”*

शबरी की आँखों में जल भर आया था।
उसने बात बदलकर कहा- *"बेर खाओगे राम..?”*

राम मुस्कुराए, *"बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां!"*

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा-
"बेर मीठे हैं न प्रभु..?”

*"यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है।”*

सबरी मुस्कुराईं, बोली- *"सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम!"*

*मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन*
*जय श्री राम🙏🏼🙏🏼*

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