Tourist guide in Jodhpur

Tourist guide in Jodhpur I am tourist Guide in Jodhpur
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जोधपुर के 565 वा स्थापना दिवस से पूर्व एच एच महाराजा श्री गजसिंह जी साहिब द्वारा ख़त लिख कर नये मार्ग का नामकरण राव जोधा...
12/05/2023

जोधपुर के 565 वा स्थापना दिवस से पूर्व एच एच महाराजा श्री गजसिंह जी साहिब द्वारा ख़त लिख कर नये मार्ग का नामकरण राव जोधा जी के नाम से करने का अनुरोध किया गया था जिसे हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत साहिब ने तुरंत स्वीकार करके जोधपुर को गौरवांवित किया है !
Today’s Jodhpur Celebrate @ 565 Foundation day festival

आज जोधपुर स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर मेहरानगढ़ किले का प्रवेश सभी लोगों के लिए नि:शुल्क है, इसलिए मैं आप सभी से अनुरोध करना चाहता हूं कि कृपया इस ऐतिहासिक किले के इतिहास, हमारी समृद्ध संस्कृति और परंपरा को अपने परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों से परिचित कराएं। यह सुनहरा मौका है।

मेहरानगढ़ और बापजी हुकुम को धन्यवाद 🙏🙏

Shri Jagdish & Shri Ekling ji Temple Udaipur
23/04/2023

Shri Jagdish & Shri Ekling ji Temple Udaipur

02/04/2023

राज गणगौर मेहरानगढ़ जोधपुर

28/03/2023

Name - *Aarrian Sawant*

Work profile
⚜ *MOVIE's*
📍 *Salam Venky* - Playing a lead role - Kajol Devgan's Son - Directed by Revati (Released in Theatre this year and Amazon Prime)

📍 *Nevum Diaries* - Playing a lead role - Directed by Madhumita
(Awaiting relase date - Tentatively May 2023)

📍 *Dobaara*- Playing a lead role - Directed by Anurag Kashyap & starring opposite Tapsee Pannu (Released in Theatre last year and on Netflix)

📍 *Mumbai Pune Mumbai 3* - Marathi Movie - Playing a cameo of a friend to Mr. Swapnil Joshi

📍 *Superstar* - Played a lead role in a Gujarati Movie along with actress Rashmi Desai.
https://youtu.be/fYlb4WROA1w
https://youtu.be/-wCVzh343uw

⚜ *AWARDS* : Was nominated for *Best Child Actor* in GIFA for Gujarati Movie Superstar.

⚜ *WEB SERIES*
📍 *Gutar Gu* - Playing a lead role for this webseries expected to be released on Amazon Prime. as Sultan's Younger version.
(Awaiting release - Tentatively April 2023)

📍 *The Sultan Of Delhi* - Playing lead as Sultan's Younger version. Directed by Mr. Milan Luthria (Awaiting release )

📍 *L*D* - LOVE, SCANDAL AND DOCTORS now on ALTBalaji playing - Young Kartik (Lead)
https://www.altbalaji.com/show/350

📍Amazon - Mini TV (Short Story)
https://www.amazon.in/minitv/detail?name=Gupt%20Gyaan&contentId=amzn1.dv.gti.6b49d70b-5a99-46af-84e7-2966a65a4099&page=title&vodType=Movie&refMarker=avod_ex_and_mshp_ss_sb_gen_dp&mtvcid=amzn1.account.AFLWTEOIQZYYA34TIXGH7S2ETELA

⚜ *YOU TUBE*
📍 *Filtercopy* - Diwali Episode (Short Story)
https://youtu.be/BigiYh0AYK8

⚜ *TVC's*
📍 *Green Good Deeds* - No plastic bags - PSA Ad with *Mr. Amitabh Bacchhan*
https://youtu.be/_3tbIrul5sU
&
https://youtu.be/v5X3_P-LdP8

📍 *ITC Classmate Notebooks*
https://www.instagram.com/tv/Cbpym5AMeUC/?utm_medium=copy_link

📍 *BYJU's*
https://youtu.be/xOEWLeRHq6k

📍 *Goeld Frozen Food*
https://youtu.be/bnTzlT7eLLE

📍 *Big Bazaar* - Marathi TVC with Vikram Gokhale & Rohini Hattangdi
https://www.facebook.com/BigBazaar/videos/1947147762008874/

📍 *ManInfra Real Estate*
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2201161020169645&id=1960269444258805

📍 *Kissan Tomato Ketchup* - https://youtu.be/ZphICpE50CA

⚜ *DIGITAL COMMERCIALS*
📍 *Abbott*
https://youtu.be/dguKoYEOX0g

📍 *TVS Credit*
https://youtu.be/vUVNR3iz7FU

📍 *Kawan Parathas*
https://youtu.be/vXH1G_Cg1p8

⚜ *PRINT SHOOTS*
Have done a print shoot for brand
📍 *Indian Terrain*
📍 *RelianceTrends*
📍Om Apparels
📍vinamrata (Indian ethnic wear & western Party wear)

⚜ *DAILY SOAP*
📍 *Bhakarwadi* - Sony Sab TV
Played one of the lead role as Bandya in daily soap Bhakarwadi on Sony Sab TV for 2 yrs.
https://youtu.be/HdpkRufYqVI
https://youtu.be/tNgwIRnCWYw
https://youtu.be/9pqBCDjCZnY

📍 *Santoshi Maa* - &TV
Played a lead role in Santoshi Maa on & TV for 2 yrs

📍 *Kaala Teeka* - Zee TV
Played a character in Kaala-Teeka on Zee TV

For more videos of Aarrian - type the below on YouTube

Aarrian Sawant
https://www.youtube.com/channel/UC-CeobBmLPFmGw2kHPnPGnA

Instagram
https://instagram.com/aarrian.sawant?igshid=lfjz1ldlwlu4

AaRRian Tousar Child Actor movie 🎥 Hindi Dobaaraa2022
28/03/2023

AaRRian Tousar Child Actor movie 🎥 Hindi Dobaaraa2022

एक सेल्फी 🤳 तो बनती है
17/03/2023

एक सेल्फी 🤳 तो बनती है

🙏 Proud to our Jodhpur’s Women 🙏 #  woman day  #  Jodhpur       power   2023
08/03/2023

🙏 Proud to our Jodhpur’s Women 🙏
# woman day
# Jodhpur


power
2023

19/10/2022



Local Artist

07/10/2022

Rajasthan International folk festival
Riff2022
Mehrangard Jodhpur
Cultural music
Local artists

Beautiful Bedroom of Takhat vilas Takhat Vilas; the bed-chamber of Maharaja Takhat Singh (1843-73) is decorated from cei...
06/10/2022

Beautiful Bedroom of Takhat vilas

Takhat Vilas; the bed-chamber of Maharaja Takhat Singh (1843-73) is decorated from ceiling to floor with paintings on a variety of subjects; from Hindu gods and goddesses to European ladies. He was a great patron of the arts, and was the last Maharaja to wholly reside in Mehrangarh.
Mehrangarh Museum Jodhpur

Jodhpur Royal family
05/10/2022

Jodhpur Royal family

24/09/2022

Video

05/09/2022

The unsung heroes of india are proudly feathered in Hat's by Israelis, Germen's, Britisher's, French etc ..... Respect your Great
🙏Major Dalpat singh shekhawat🙏
🙏Captain Aman singh Jodha 🙏

Haifa War / हाइफा के युद्ध ने इज़राइल को आजाद करवाया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इज़राइल पर “ओटोमैन सम्राज्य” का आधिपत्य था। इस समय भारत में अंग्रेज़ी शासन था। हाइफा के युद्ध (Haifa war) में राजस्थान के रणबांकुरों ने भाग लिया था। Haifa war युद्ध इतना ऐतिहासिक हैं कि आज भी इज़राइल के स्कूलों में पढ़ाया जाता हैं।
हाइफा का युद्ध(Haifa war) कब हुआ था?- 23 सितंबर 1918.
हाइफा का युद्ध (Haifa war) किसके बिच हुआ - ओटोमैन सम्राज्य (जर्मन और तुर्क) और भारतीय सेना के बिच (अंग्रेजी शासन के अधीन).

सेनापति- दलपत सिंह (रावणा राजपूत).
मुख्य नेतृत्वकर्ता- कैप्टन अमान सिंह जोधा राठौड़

हाइफा का युद्ध (Haifa war) किसने जीता - भारतीय सेना.

हाइफा नामक जगह इजराइल में स्थित हैं। लगभग 14वीं शताब्दी से यहां पर “ओटोमैन सम्राज्य” का शासन था। 400 साल राज करने के पश्चात् भारतीय सेना की मदद से हाइफा (इजराइल) को आजादी मिली। 23 सितंबर 1918 का दिन इजराइल के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। अंग्रेजी शासन ने भारतीय सेना को आदेश दिया कि हाइफा को मुक्त करवाए।

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ़ से राजस्थान के जोधपुर रियासत की सेना, मैसूर और हैदराबाद के सैनिकों ने भाग लिया था। विश्व इतिहास में यह लड़ाई “हाइफा का युद्ध” (Haifa war) नाम से जाना जाता हैं। हैदराबाद रियासत के सभी सैनिक मुस्लिम थे इसलिए अंग्रेज़ी शासन ने उन्हें तुर्की के खलीफा के साथ युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया गया। जोधपुर और मैसूर के सैनिक युद्ध के लिए निकल पड़े।

जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह जी शेखावत इस युद्ध में सेना का नेतृत्व कर रहे थे। इनके साथ अमान सिंह जोधा भी मुख्य नेतृत्वकर्ता थे। दलपत सिंह जी का जन्म पाली (देवली) में हुआ था। अंग्रेजी शासन का आदेश मिलते ही जोधपुर रियासत की सेना तलवारों, भालों और तीर कमान के दम पर घोड़ों पर सवार होकर हाइफा की तरफ़ निकल पड़ी।
हाइफा पर कब्जा करने के लिए जोधपुर के वीर सपूत दलपत सिंह जी के एक इशारे का इंतजार कर रहे थे। दलपत सिंह जी और अमान सिंह जोधा का आदेश मिलते ही जोधपुर के रणबांकुरे दुश्मनों को मिटाने और हाइफा पर कब्जा करने के लिए निकल पड़े।
इस दौरान अंग्रेजी शासन के पास ख़बर आई कि दुश्मनों के पास बंदूके और आधुनिक हथियार (मशीन गन) हैं,तो उन्होंने दलपत सिंह जी को रुकने का हुक्म दिया क्योंकि उनके पास सिर्फ घोड़ों पर सवार सैनिकों, तलवारों और भालों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।

अंग्रेज़ी हुकूमत को दलपत सिंह जी और अमान सिंह जोधा ने ऐसा जवाब दिया कि उसके बाद उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। दलपत सिंह जी का सीधा और सटीक जवाब था कि “राजस्थानियों में वापस लौटने का रिवाज़ नहीं, जान चली जाए, शीश कट जाए पर पिछे तो नहीं हटेंगे या तो जीत हासिल करेंगे या रणभूमि में वीरगति को प्राप्त होंगे”।
हाइफा का युद्ध और दलपत सिंह” जी और कैप्टन अमान सिंह जोधा का नाम हमेशा के लिए विश्व इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होने वाला था।

हाइफा पहुंचते ही दलपत सिंह जी और अमान सिंह जोधा की सेना और ओटोमैन सम्राज्य (जर्मन, तुर्की) की सेना आमने सामने हो गई। तोपों के सामने अपना सीना तान कर परंपरागत तरीके से युद्ध प्रारम्भ हो गया। दलपत सिंह जी की सेना जोश और हौंसले से लबालब थी। दुश्मनों की गोलियों का सामना करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रहे हिंदू वीरों के आगे तोप और बंदूकों की चमक फीकी पड़ रही थी।

छाती पर गोलियां खाते हुए जोधपुर रियासत के करीब 900 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए,लेकिन तब तक इतिहास के पन्नों में यह युद्ध (Haifa war) हमेशा के लिए अमर हो चुका था। Haifa war विश्व इतिहास में एकमात्र ऐसा युद्ध था जो तलवारों और भालों के सामने बंदूके और तोपें होने के बाद भी तोप और तलवार की जीत हुई।

जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया जिनकी संख्या लगभग 1350 थी। इसमें नुकसान की बात की जाए तो लगभग 60 घोड़े मारे गए, 8 लोग भी मरे और 34 लोग बुरी तरह घायल हो गए।

भारतीय सेना ने दो जर्मन अधिकारियों, 35 ऑटोमन अधिकारियों, 17 तोपखाने बंदूकें और 11 मशीनगनों को अपने अधिकार में ले लिया। दलपत सिंह जी ने दुश्मनों के दांत खड़े कर दिए। ऐसा विश्व में पहली बार हुआ। 400 सालों से कब्जा जमाया बैठे ओटोमैन सम्राज्य का अंत हो गया। इसी युद्ध के परिणामस्वरूप भारत और इजराइल के सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं।

जोधपुर रियासत की सेना को सम्मान या हाइफा योद्धाओं को सम्मान-
Haifa ke Yudh में major dalpat Singh Shekhawat शहीद हुए। उनके साथ जोधपुर लांसर सवार तगत सिंह, सवार शहजाद सिंह, मेजर शेर सिंह, आइओएम(इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट) दफादार धोकल सिंह, सवार गोपाल सिंह और सवार सुल्तान सिंह बहुत ही बहादुरी के साथ लड़ते हुए इस युद्ध में शहीद हुए।

हाइफा युद्ध में प्राप्त अद्वितीय जीत से गदगद ब्रिटिश सेना ने कमांडर इन चीफ हाउस के नाम से एक भवन का निर्माण करवाया। एक चौराहे के समीप स्थित इस भवन में एक स्तम्भ पर तीन सैनिकों को की प्रतिमा का निर्माण करवाया गया है जो जोधपुर रियासत की सेना के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान था।

मेजर दलपत सिंह जी शेखावत को मिलिट्री क्रॉस जबकि कैप्टन अमान सिंह जोधा को सरदार बहादुर की उपाधि देते हुए इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट तथा ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एंपायर से सम्मानित किया गया। इजराइल की सरकार आज भी हाइफा, यरुशलम और रामलेह में बनी इन 900 सैनीकों की समाधियां बनी हुई हैं।
हाइफा दिवस
भारतीय सेना और हाइफा के महापौर, भारतीय दूतावास के लोग और वहां की आम जनता एक साथ प्रतिवर्ष 23 सितंबर को हाइफा दिवस मनाते हैं।

07/08/2022

कालबेलिया डांस

art




07/08/2022

कालबेलिया डांस

07/08/2022

Hand weaving durry

06/08/2022

Pottery work at pokaran

06/08/2022
06/08/2022

खड़ताल

06/08/2022

Cultural Tourism in western Rajasthan organization:-UNESCO

Murli & Algoza Langa music

06/08/2022
 #जन्मजयंती_विशेष 💐💐💐💐आज लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़ कि जन्मजयंती है , जो भारतीय इतिहास के सबसे बेहतरीन जनरल माने जात...
15/07/2022

#जन्मजयंती_विशेष 💐💐💐💐
आज लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़ कि जन्मजयंती है , जो भारतीय इतिहास के सबसे बेहतरीन जनरल माने जाते है....

वो सवा 6 फुट का लेफ्टिनेंट जनरल जिसने पाकिस्तान को पटकनी दे कर बनाया था बंगलादेश - जिसके जैसा मिलिट्री जीनियस आज तक आज़ाद भारत में नही हुआ

पढ़िये दास्तां ऐसे अनसुने भारतीय वीर की जो कभी कोई युद्ध नही हारा

वैसे तो उस वक़्त के हर भारतीय अफसर को वो 6 फुट 3 इंच की लम्बी कद काठी वाला जाबांज हमेशा याद रहेगा । 1971 विजय दिवस के असली हीरो सगत सिंह राठौर के बारे में जानने को 1971 से थोड़ा पीछे चलते हैं ...

बात है 1961 की ...
जनरल सगत सिंह के सैनिक जीवन का सबसे बड़ा ब्रेक तब आया जब उन्हें 1961 में ब्रिगेडियर का प्रमोशन देकर आगरा स्थित 50 पैराशूट ब्रिगेड का कमांडर बनाया गया और वो भी तब जबकि वो पैराट्रूपर नहीं थे। जनरल सगत सिंह की जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वी के सिंह बताते हैं, "आप उनकी कार्य क्षमता का अंदाजा सिर्फ इससे ही लगा सकते हैं कि उनको उस समय पैरा ब्रिगेड की कमान दी गई जब उनकी उम्र चालीस साल से ज़्यादा थी. पैरा ब्रिगेड की कमान तब तक सिर्फ़ पैराट्रूपर को ही दी जाती थी, किसी इंफ़ेंट्री अफ़सर को नहीं।"

"ब्रिगेडियर होते हुए भी उन्होंने उस उम्र में पैरा का प्रोबेशन पूरा किया। जब आप इसे पूरा कर लेते हैं तभी आपको विंग्स मिलते हैं जिससे पैराट्रूपर पहचाना जाता है। सगत जानते थे कि जब तक उन्हें विंग नहीं मिलते उन्हें अपनी ब्रिगेड का सम्मान नहीं मिलेगा. उन्होंने जल्द से जल्द अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के लिए एक दिन में दो दो जंप तक लिए."

1961 के गोवा ऑपरेशन में जनरल सगत सिंह की 50 पैरा को एक सहयोगी भूमिका में चुना गया था, लेकिन उन्होंने उन्हें दी गई ज़िम्मेदारी से कहीं बढ़ कर काम किया और गोवा को इतनी तेज़ी से आज़ाद कराया कि सभी दंग रह गए।
मेजर जनरल वी के सिंह बताते हैं, "18 दिसंबर को ऑपरेशन शुरू हुआ और 19 तारीख को ही उनकी बटालियन पंजिम के पास पहुंच गई. वहाँ सगत ने ही यह कह कर अपनी बटालियन को रोका कि रात हो गई है. पंजिम आबादी वाला इलाका है. रात में हमला करने से कैजुएलटीज़ हो सकती हैं।"
"सुबह उन्होंने नदी पार की. गोवा की सरकार ने पुल वगैरह तोड़ दिए थे. इन लोगों ने एक तरह से तैर कर नदी पार की. स्थानीय लोगों का उन्हें बहुत समर्थन मिला. 36 घंटे में उन्होंने पूरे पंजिम पर कब्ज़ा कर लिया."

जून 1962 आते आते 50 पैरा गोवा का अपना ऑपरेशन पूरा कर वापस आगरा आ गई. तभी आगरा के मशहूर क्लार्क्स शीराज़ होटल में एक दिलचस्प घटना घटी.
जनरल वी के सिंह बताते हैं, "जनरल सगत वहां सिविल ड्रेस में गए थे. वहाँ पर कुछ अमरीकी टूरिस्ट भी थे. वो बहुत ग़ौर से जनरल सगत को देख रहे थे. उन्हें लगा कि वो क्यों उन्हें देख रहे हैं. कुछ देर बाद उनमें से एक शख़्स ने आ कर उनसे पूछा कि क्या आप ब्रिगेडियर सगत सिंह हैं?"

"उन्होंने कहा हाँ, लेकिन आप ये क्यों पूछ रहे हैं? टूरिस्ट ने कहा कि हम अभी अभी पुर्तगाल से आ रहे हैं. वहाँ जगह जगह आपके पोस्टर लगे हुए हैं. आपके चेहरे के नीचे लिखा है कि जो आपको पकड़ कर लाएगा उसे हम दस हज़ार डॉलर का इनाम देंगे.
"जनरल सगत ने कहा ठीक है आप कहें तो मैं आपके साथ चलूँ. अमरीकी पर्यटक ने हंसते हुए कहा कि अभी हम पुर्तगाल वापस नहीं जा रहे हैं."

इसके बाद जनरल सगत सिंह को 17 माउंटेन डिविजन का जीओसी बनाया गया. उनकी इसी पोस्टिंग के दौरान नाथुला में चीनी सैनिकों की भारतीय सैनिकों से ज़बरदस्त भिड़ंत हुई.
1962 के बाद पहली बार जनरल सगत सिंह ने दिखाया कि चीनियों के साथ न सिर्फ़ बराबरी की टक्कर ली जा सकती है, बल्कि उन पर भारी भी पड़ा जा सकता है. जनरल वी के सिंह बताते हैं, "इत्तेफ़ाक से मैं उस समय वहीं पोस्टेड था. जनरल सगत सिंह ने जनरल अरोड़ा से कहा कि भारत चीन सीमा की मार्किंग होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं सीमा रेखा पर चलता हूँ. अगर चीनी विरोध नहीं करते हैं तो हम मान लेंगे कि यही बॉर्डर है और वहाँ पर हम फ़ेसिंग बना देंगे."

"जब उन्होंने ये करना शुरू किया तो चीनियों ने विरोध किया. उनके सैनिक आगे आ गए. कर्नल राय सिंह ग्रनेडियर्स की बटालियन के सीओ थे. वो बंकर से बाहर आकर चीनी कमांडर से बात करने लगे. इतने में चीनियों ने फ़ायर शुरू कर दिया. कर्नल राय सिंह को गोली लगी और वो वहीं गिर गए."
"गुस्से में भारतीय सैनिक अपने बंकरों से निकले और चीनियों पर हमला बोल दिया. जनरल सगत सिंह ने नीचे से मीडियम रेंज की आर्टलेरी मंगवाई और चीनियों पर फ़ायरिंग शुरू करवा दी. इससे कई चीनी सैनिक मारे गए. चीनी भी गोलाबारी कर रहे थे लेकिन नीचे होने के कारण उन्हें भारतीय ठिकाने दिखाई नहीं दे रहे थें."

"जब सीज़ फ़ायर हुआ तो चीनियों ने कहा कि आप लोगों ने हम पर हमला किया है. एक तरह से उनकी बात सही भी थी. हमारे सारे शव चीनी क्षेत्र में पाए गए. बाद में सगत सिंह के अफ़सर उनसे नाराज़ भी हुए कि आपने ख़ामख़ा की लड़ाई कर दी."

"हमारे करीब 200 लोग हताहत हुए. 65 लोग तो मारे गए. चीन के करीब 300 लोग हताहत हुए. लेकिन एक चीज़ ध्यान देने लायक थी कि 1962 की लड़ाई के बाद भारतीय सैनिकों के मन में चीनियों के प्रति जो दहशत बैठ गई थी, वो जनरल सगत सिंह के कारण ख़त्म हो गई. भारत के जवान को अहसास हो गया कि वो भी चीनियों को मार सकते हैं. पहली बार वी गेव द चाइनीज़ अ ब्लडी नोज़."

जनरल सगत सिंह के सैनिक करियर का वो स्वर्णिम क्षण था जब उन्हें नवंबर 1970 में 4 कोर की कमान दी गई. इसने 1971 के बांग्लादेश युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई.
जनरल रणधीर सिंह बताते हैं, "अगरतला आकर उन्होंने देखा कि यहां तो कोई इंफ़्रास्ट्रक्चर ही नहीं है. ब्रॉड गेज लाइन 1400 किलोमीटर दूर थी. उन्होंने फिर सब ठीक करने का बीड़ा उठाया. काफ़ी तादाद में इंजीनयर लगाए गए. हमारी किस्मत इस मामले में अच्छी रही कि पाकिस्तानी सेना ने मार्च से अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ अत्याचार शुरू कर दिए थे. इसकी वजह से बहुत सारे शरणार्थी त्रिपुरा आ गए थे."

जनरल सगत सिंह अपनी पत्नी और बेटे रणविजय सिंह के साथ
"इन शरणार्थियो की मदद से इंजीनियर्स ने इंफ़्रास्ट्रक्चर खड़ा किया. याद रखें, तकरीबन एक लाख सैनिकों को वहां आना था. करीब तीस हज़ार टन के सैनिक साज़ो-सामान को भी वहां पहुंचना था. 5000 गाड़ियां और 400 खच्चरों की व्यवस्था होनी थी. वहां एक सिंगल लेन रोड थी और पुल तो इतने कमज़ोर थे कि मीडियम रेंज गन भी उसके पार नहीं जा सकती थी."

युद्ध के दौरान जनरल सगत सिंह को फ़्लाइंग जनरल का नाम दिया गया. उनके एडीसी रहे लेफ़्टिनेंट जनरल रणधीर सिन्ह बताते हैं कि जनरल सगत सिंह सुबह छह बजे उठ कर हेलिकॉप्टर में जाते थे. अगरतला हैंडीक्रॉफ़्ट इंपोरियम ने उन्हें एक पिकनिक बास्केट दे रखी थी.

"मैं उसमें कोल्ड काफ़ी और सैंडविचेज़ लेकर चलता था. पूरे दिन जनरल साहब लड़ाई का ऊपर से जाएज़ा लेते थे. कई बार होता था कि जहाँ लड़ाई हो रही होती थी, वहीं वो लैंड कर जाते थे. शाम जब अँधेरा हो रहा होता था तब हेलिकॉप्टर वापस लैंड करता था...फिर वो ऑपरेशन रूम में जाते थे."
"नौ बजे आल इंडिया रेडियो के समाचार सुनने के लिए हम आफ़िसर मेस में आते थे. हम कभी बीबीसी लगाते थे, तो कभी ऑल इंडिया रेडियो. रात दस बजे जनरल सगत सिंह हुक्म पास करते थे मुझे कि कल का कार्यक्रम ये है. आप सब को सूचना दे दीजिए. इसके बाद वो डिनर खा कर रात बारह बजे अपने हट में जाकर सो जाते थे."

इसी तरह के एक हेलिकॉप्टर मुआयने के दौरान जनरल सगत के हेलिकॉप्टर पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलियाँ चलाईं थीं.

जनरल सगत सिंह के इस हेलिकाप्टर पर चली थीं गोलियां
जनरल रणधीर सिंह बताते हैं, "जनरल साहब देखना चाह रहे थे कि कहां-कहां लैंडिंग हो सकती है. हम मेघना नदी के साथ-साथ जा रहे थे. आशुगंज ब्रिज के पास हेलिकॉप्टर पर नीचे से मीडियम मशीन गन का फ़ायर आया. पायलेट बुरी तरह से घायल हो गया. हम लोगों पर जो उसके पीछे बैठे हुए थे, उनके खून के छींटे और माँस के टुकड़े आकर गिरे, जनरल साहब के माथे पर भी एक चोट लगी."

"लेकिन उस हेलिकाप्टर के सह पायलेट ने स्थिति पर नियंत्रण कर लिया और विमान को अगरतला वापस लाने में सफल हो गया. जब हेलिकाप्टर की जांच की गई तो पता चला कि उसमें गोलियों से 64 सुराख हो गए थे. जनरल सगत सिंह पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने एक और हेलिकॉप्टर लिया और दोबारा निकल पड़े निरीक्षण पर."
जनरल सगत सिंह को सबसे बड़ी वाह-वाही तब मिली जब उन्होंने चार किलोमीटर चौड़ी मेघना नदी को हेलिकॉप्टरों की मदद से एयर ब्रिज़ बना कर पार किया.

बांग्लादेश युद्ध में जनरल सगत सिंह की कमांड में काम कर रहे लेफ़्टिनेंट जनरल ओ पी कौशिक बताते हैं, "उन दिनों हमारे पास एमआई 4 हेलिकॉप्टर हुआ करते थे. उनमें उन दिनों रात में लैंड करने की काबलियत नहीं होती थी. लेकिन ज़्यादा से ज़्यादा सैनिक मेघना पार कराने के लिए जनरल सगत ने लाइटेड हैलिपैड बनाने का आदेश दिया. आपको अचंभा होगा कि हमने खाली मिल्क कैन में केरोसीन तेल डाल कर रोशनी की. एमआई हेलिकॉप्टरों में एक बार में आठ सैनिक बैठ सकते थे. हमने लगातार सैकड़ों फेरे लगा कर लगभग पूरी ब्रिगेड मेघना के पार उतार दी."

दिलचस्प ये है कि पूर्वी कमान के प्रमुख जनरल जग्गी अरोड़ा ने उन्हें मेघना नदी न पार करने के निर्देश दिए थे. जब वो मेघना नदी पार कर चुके तो उनके पास जनरल अरोड़ा का फ़ोन आया और दोनों के बीच ज़बरदस्त कहा-सुनी हुई.

जनरल सगत सिंह अपनी कमांड के सैनिकों का हालचाल पूछते हुए
जनरल कौशिक बताते हैं, "मैं उस समय जनरल सगत सिंह की बगल में ही बैठा हुआ था. कोलकाता से आर्मी कमांडर अरोड़ा का फ़ोन आया कि आपने मेघना नदी क्यों पार की? जनरल सगत सिंह ने कहा आपने मुझे जो काम सौंपा था मैंने उससे ज़्यादा कर दिखाया है."

"इस पर अरोड़ा संतुष्ट नहीं हुए. सगत ने कहा मेरी ये ड्यूटी बनती है कि अगर मुझे किसी कदम से देश का फ़ायदा होता दिखाई देता हो तो मैं वो कदम उठा सकता हूँ. मैंने न सिर्फ़ मेघना नदी पार की है बल्कि मेरे सैनिक तो ढाका के बाहरी इलाके में भी पहुंच चुके हैं. जनरल अरोड़ा ने आदेश दिया, नहीं आप अपने आगे बढ़ चुके सैनिकों को वापस बुलवाइए. सगत सिंह ने कहा मेरा कोई सैनिक वापस नहीं लौटेगा. अगर आप इससे सहमत नहीं है तो आप दिल्ली तक ये मामला पहुंचाइए. इसके बाद सगत सिंह ने गुस्से से फ़ोन रखते हुए कहा वो मुझसे सैनिक वापस बुलाने के लिए कह रहे है... ओवर माई डेड बॉडी."

इतना सब कुछ करने के बाद भी जनरल सगत सिंह को कोई वीरता पुरस्कार नहीं दिया गया. उन्हें सिर्फ़ भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म भूषण ही मिला. और तो और उनका प्रोमोशन भी नहीं हुआ.
मेजर जनरल वी के सिंह बताते हैं, "ये बहुत दुख की बात है कि 1971 की लड़ाई में जिनका प्रदर्शन सबसे अच्छा था. उन्हें कोई वीरता पुरस्कार नहीं मिला. तमाम लोगों को वीर चक्र और महावीर चक्र मिले, लेकिन सगत सिंह को नहीं मिला. दूसरे उनको प्रमोशन भी नहीं मिला. आर्मी चीफ़ न सही उनको आर्मी कमांडर तो बनाया जा सकता था. शायद इसकी वजह ये रही हो कि उनकी अपने ऊपर के अधिकारियों से अक्सर नोक-झोंक होती रहती थी."

जनरल सगत सिंह अपनी पौत्री मेघना सिंह के साथ
रिटायर होने के बाद जनरल सगत सिंह ने अपना जीवन जयपुर में बिताया.
उनकी पौत्री मेघना सिंह कहती हैं, "मेरे दादाजी एक ऐसे इंसान थे जिन्हें आप भीड़ में मिस कर ही नहीं सकते. वो छह फ़ीट तीन इंच लंबे थे. भारी आवाज़ थी उनकी. बहुत ही सौम्य. उनसे कोई भी बात कर सकता था. हम लोग हॉस्टल में रहते थे. जब हम छुट्टियों में घर आते थे तो वो हमारे फ़ार्म हाउस में उगने वाले फलों आम और चीकू को हमारे लिए करीने से प्लेट में काट कर हमारा इंतज़ार करते थे. खाने की मेज़ पर टेबिल मैनर्स के वो बहुत कायल थे. जयपुर में जब पहला पित्ज़ा हट खुला तो वो ही हमें पहली बार वहां लेकर गए थे."

जनरल सगत सिंह को भारत का सबसे निर्भीक जनरल माना जाता है. उन्होंने न सिर्फ़ कई ऑपरेशनों में जीत हासिल की बल्कि उस सबसे कहीं ज़्यादा काम किया जितना उन्हें करने के लिए दिया गया था. भारतीय सेना में उनको वही मुकाम हासिल है जो अमरीकी सेना में जनरल पैटन और जर्मन सेना में रोमेल को हासिल था.

भारत- पाकिस्तान युद्ध, 1971
उनके साथ काम कर चुके जनरल ओ पी कौशिक बताते हैं, "मैंने कई लड़ाइयां लड़ी हैं. 1962 में भारत चीन युद्ध के समय मैं कैप्टेन था. उसके बाद 1965 और 1971 के युद्ध में भी मैं था. सियाचिन और कश्मीर में भी मैं जनरल आफ़िसर कमांडिंग रह चुका हूँ. अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि मेरे विचार से भारतीय सेना का बेस्ट फ़ील्ड कमांडर जनरल सगत सिंह हुआ है."

"वो डिस्ट्रीब्यूशन करने यानी लोगों को ज़िम्मेदारी देने में बहुत तेज़ थें. वो काम को डिसेंट्रिलाइज़ करते थे और अपने जूनियर्स पर पूरा भरोसा देते थे. उनमें मोटिवेट करने की भी बहुत ज़बरदस्त भावना थी. अगर कोई ग़लती हो जाती थी तो वो इसके लिए जूनियर को ज़िम्मेदार नहीं ठहराते थे बल्कि उसे खुद सुधारने की कोशिश करते थे और अक्सर उस ग़लती को अपने ऊपर ले लेते थे."
जय श्री राम

आज़ादी के बाद से जोधपुर नगर के प्रमुख पेय जल स्त्रोत कायलना झील के विकल्प के रूप राजस्थान सरकार कोई उपलब्धि नहीं गिनाई ज...
29/05/2022

आज़ादी के बाद से जोधपुर नगर के प्रमुख पेय जल स्त्रोत कायलना झील के विकल्प के रूप राजस्थान सरकार कोई उपलब्धि नहीं गिनाई जा सकती जिस पर स्वतंत्र भारत में स्वच्छ लोकतंत्र की दुहाई देते हुए गर्व किया जा सके ।

यह दुर्भाग्य ही हैं जब 1875 से 1947 तक जोधपुर रियासत के शासकों ने जो लोक एवं जन कल्याण के कार्य किये हैं उनके मुक़ाबले यदि आज़ादी के बाद 1947 से 2020 लगभग 70 वर्ष के समय मे जोधपुर ने लगभग बहुत कुछ खोया ही हैं ।

ऊमेद सागर बाँध, जसवंतसागर , गुलाब सागर की नहरें , जवाई बाँध की नहर ओर सैंकड़ों तालाब कुएँ बावड़ियाँ हम खो चुके हैं इन वर्षों में यह सभी जल के स्त्रोत जो कभी शहर की प्यास बुझाते थे आज अतिक्रमण अौर प्रशासन व सरकार की घोर उपेक्षा के कारण लगभग नस्ट पर्याय हैं ।

जोधपुर के तत्कालीन महाराजा जसवन्तसिंहजी द्वितीया ( 1873-1895 ई. ) के छोटे भाई महाराजाधिराज प्रतापसिंह जी साहिब ईडर जिन्हें हम सब सर प्रताप के नाम से जानते हैं । सर प्रताप मारवाड़ के तीन महाराजाओं के सरंक्षक रहे । जोधपुर कचहरी भवन जो जुबली कोर्ट कहा जाता हैं उसके सामने 1926 ई मे उनके स्वर्गवास के बाद मूर्ति लगवाई गयी थी, जहाँ आज भी लोग उनके समक्ष आदर के साथ अपना मथा टेकते हैं ।

सर प्रताप ने अपने निजी ख़र्च से जोधपुर के लोगों के लियें कायलाना कि पहाड़ियों में एक बहुत बड़ी झील का निर्माण 1892 ई. में 65 हज़ार रुपये ख़र्च करके करवाई थी जिसका नाम “ प्रताप सागर “ रखा गया था लेकिन ओछी मानसिकता के कारण इसे कायलाना नाम दे दिया गया ताकि सर प्रताप के योगदान को भुला दिया जाये ।

जन अौर लोक कल्याण के निमित निर्मित यह झील आज पुरे जोधपुर शहर के बीस लाख लोगों की प्यास बुझा रहा हैं ।दुर्भाग्य हैं आज 70 वर्षों के बाद भी हमारी सरकारें इस झील का विकल्प नहीं बना पाई । जोधपुर ने तीन मुख्यमंत्री ओर अनेक केन्द्र मे मंत्री दिए लेकिन केवल श्री नरेन्द्रसिंह जी भाटी ओसियाँ जो केन्द्र में मंत्री थे तब राजीव गांधी लिफ़्ट नहर लेकर आए । इसके अलावा कोई उपलब्धि नहीं हैं जिसे गिनाया जा सके ।

केवल मथुरादास माथुर अस्पताल 40 वर्ष पूर्व अौर AIIMS 16 वर्ष पूर्व (स्वर्गीय श्री जसवन्तसिंहजी जसोल के प्रयास से बना ) के बने हैं जो चिकित्सा के क्षेत्र में गिनायें जा सकते हैं लेकिन दोनो ही इमारतें जगह जगह से जर्जर हो रही है जबकि दुसरी तरफ़ महाराजा उमैद सिंह जी साहिब के समय 1932 में बना गांधी अस्पताल व 1936 में बना उमैद जनाना अस्पताल आज भी वैसा ही क़ायम हैं इतना विशाल की आज भी सभी ज़रूरतें पुरी कर रहा है । कई छोटे चिकित्सालय भवन आज भी क़ायम हैं जो रियासत क़ालीन शिल्प कला के बेजोड़ स्मारक हैं।

सर प्रताप की दूरदर्शिता ओर उनके श्रेष्ठ प्रशासन की झलक आज भी “ प्रताप सागर “ तथाकथित कायलाना में देखी जा सकती हैं जो यह कहता हैं कि अभी तो में जवान हुआ हु । मेरा योंवन अभी बाक़ी हैं।

हम सब जोधपुर वासी सर प्रताप के इस अमुल्य उपहार के लियें कृतज्ञ हैं । ह्रदय से महाराजाधिराज सर प्रताप सिंहजी साहिब को कोटि कोटि नमन व वन्दन ।

 #राव_हम्मीर_देव_चौहाण रणथम्भौर "रणतभँवर के शासक थे। ये पृथ्वीराज चौहाण के वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इत...
12/05/2022

#राव_हम्मीर_देव_चौहाण

रणथम्भौर "रणतभँवर के शासक थे। ये पृथ्वीराज चौहाण के वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इतिहास में ''हठी हम्मीर के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। जब हम्मीर वि॰सं॰ 1339 (ई.स. 1282) में रणथम्भौर (रणतभँवर) के शासक बने तब रणथम्भौर के इतिहास का एक नया अध्याय प्रारम्भ होता है।हम्मीर देव रणथम्भौर के चौहाण वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण शासक थे। इन्होने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
राव हम्मीर देव चौहाण रणथम्भौर "रणतभँवर के शासक थे। ये पृथ्वीराज चौहाण के वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इतिहास में ''हठी हम्मीर के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। जब हम्मीर वि॰सं॰ 1339 (ई.स. 1282) में रणथम्भौर (रणतभँवर) के शासक बने तब रणथम्भौर के इतिहास का एक नया अध्याय प्रारम्भ होता है।हम्मीर देव रणथम्भौर के चौहाण वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण शासक थे। इन्होने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
जलालुद्दीन खिलजी ने वि॰सं॰ 1347 (ई.स. 1290) में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। सबसे पहले उसने छाणगढ (झाँइन) पर आक्रमण किया। मुस्लिम सेना ने कड़े प्रतिरोध के बाद इस दुर्ग पर अधिकार किया। तत्पश्चात् मुस्लिम सेना रणथम्भौर पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ी। उसने दुर्ग पर अधिकार करने के लिए आक्रमण किया लेकिन हम्मीर देव के नेतृत्व में चौहान वीरों ने सुल्तान को इतनी हानि पहुँचाई, कि उसे विवश होकर दिल्ली लौट जाना पड़ा। छाणगढ़ पर भी चौहानों ने दुबारा अधिकार कर लिया। इस आक्रमण के दो वर्ष पश्चात् मुस्लिम सेना ने रणथम्भौर पर दुबारा आक्रमण किया, लेकिन वे इस बार भी पराजित होकर दिल्ली वापस आ गए। वि॰सं॰ 1353 (ई.स. 1296) में सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करके अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना। वह सम्पूर्ण भारत को अपने शासन के अन्तर्गत लाने की आकांक्षा रखता था। हम्मीर के नेतृत्व में रणथम्भौर के चौहानों ने अपनी शक्ति को काफी सुदृढ़ बना लिया और राजस्थान के विस्तृत भूभाग पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के निकट चौहानों की बढ़ती हुई शक्ति को नहीं देखना चाहता था, इसलिए संघर्ष होना अवश्यंभावी था।
ई.स. 1299 में अलाउद्दीन की सेना ने गुजरात पर आक्रमण किया था। वहाँ से लूट का बहुत सा धन दिल्ली ला रहे थे। मार्ग में लूट के धन के बँटवारे को लेकर कुछ सेनानायकों ने विद्रोह कर दिया तथा वे विद्रोही सेनानायक राव हम्मीरदेव की शरण में रणथम्भौर चले गए। ये सेनानायक मीर मुहम्मद शाह और कामरू थे। सुल्तान अलाउद्दीन ने इन विद्रोहियों को सौंप देने की माँग राव हम्मीर से की, हम्मीर ने उसकी यह माँग ठुकरा दी। क्षत्रिय धर्म के सिद्धान्तों का पालन करते हुए राव हम्मीर ने, शरण में आए हुए सैनिकों को नहीं लौटाया। शरण में आए हुए की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझा। इस बात पर अलाउद्दीन क्रोधित होकर रणथम्भौर पर युद्ध के लिए तैयार हुआ।
अलाउद्दीन की सेना ने सर्वप्रथम छाणगढ़ पर आक्रमण किया। उनका यहाँ आसानी से अधिकार हो गया। छाणगढ़ पर मुसलमानों ने अधिकार कर लिया है, यह समाचार सुनकर हम्मीर ने रणथम्भौर से सेना भेजी। चौहान सेना ने मुस्लिम सैनिकों को परास्त कर दिया। मुस्लिम सेना पराजित होकर भाग गई, चौहानों ने उनका लूटा हुआ धन व अस्त्र-शस्त्र लूट लिए। वि॰सं॰ 1358 (ई.स. 1301) में अलाउद्दीन खिलजी ने दुबारा चौहानों पर आक्रमण किया। छाणगढ़ में दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में हम्मीर स्वयं युद्ध में नहीं गया था। वीर चौहानों ने वीरतापूर्वक युद्ध किया लेकिन विशाल मुस्लिम सेना के सामने कब तक टिकते। अन्त में सुल्तान का छाणगढ़ पर अधिकार हो गया।
तत्पश्चात् मुस्लिम सेना रणथम्भौर की तरफ बढ़ने लगी। तुर्की सेनानायकों ने हमीर देव के पास सूचना भिजवायी, कि हमें हमारे विद्रोहियों को सौंप दो, जिनको आपने शरण दे रखी है। हमारी सेना वापिस दिल्ली लौट जाएगी। लेकिन हम्मीर अपने वचन पर दृढ़ थे। उसने शरणागतों को सौंपने अथवा अपने राज्य से निर्वासित करने से स्पष्ट मना कर दिया। तुर्की सेना ने रणथम्भौर पर घेरा डाल दिया। तुर्की सेना ने नुसरत खाँ और उलुग खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। दुर्ग बहुत ऊँचे पहाड़ पर होने के कारण शत्रु का वह पहुचना बहुत कठिन था। मुस्लिम सेना ने घेरा कडा करते हुए आक्रमण किया लेकिन दुर्ग रक्षक उन पर पत्थरों, बाणों की बौछार करते, जिससे उनकी सेना का काफी नुकसान होता था। मुस्लिम सेना का इस तरह घेरा बहुत दिनों तक चलता रहा। लेकिन उनका रणथम्भौर पर अधिकार नहीं हो सका।

अलाउद्दीन ने राव हम्मीर के पास दुबारा दूत भेजा की हमें विद्रोही सैनिकों को सौंप दो, हमारी सेना वापस दिल्ली लौट जाएगी। हम्मीर हठ पूर्वक अपने वचन पर दृढ था। बहुत दिनों तक मुस्लिम सेना का घेरा चलूता रहा और चौहान सेना मुकाबला करती रही। अलाउद्दीन को रणथम्भीर पर अधिकार करना मुश्किल लग रहा था। उसने छल-कपट का सहारा लिया। हम्मीर के पास संधि का प्रस्ताव भेजा जिसको पाकर हम्मीर ने अपने आदमी सुल्तान के पास भेजे। उन आदमियों में एक सुर्जन कोठ्यारी (रसद आदि की व्यवस्था करने वाला) व कुछ रोना नायक थे। अलाउद्दीन ने उनको लोभ लालच देकर अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया। इनमें से गुप्त रूप से कुछ लोग सुल्तान की तरफ हो गए।
दुर्ग का धेरा बहुत दिनों से चल रहा था, जिससे दूर्ग में रसद आदि की कमी हो गई। दुर्ग वालों ने अब अन्तिम निर्णायक युद्ध का विचार किया। राजपूतों ने केशरिया वस्त्र धारण करके शाका किया। राजपूत सेना ने दुर्ग के दरवाजे खोल दिए। भीषण युद्ध करना प्रारम्भ किया। दोनों पक्षों में आमने-सामने का युद्ध था। एक ओर संख्या बल में बहुत कम राजपूत थे तो दूसरी ओर सुल्तान की कई गुणा बडी सेना, जिनके पास पर्येति युद्धादि सामग्री एवं रसद थी। राजपूतों के पराक्रम के सामने मुसलमान सैनिक टिक नहीं सके वे भाग छूटे भागते हुए मुसलमान सैनिको के झण्डे राजपूतों ने छीन लिएमुसलमान सैनिको के झण्डे राजपूतों ने छीन लिए व वापस राजपूत सेना दुर्ग की ओर लौट पड़ी। दुर्ग पर से रानियों ने मुसलमानों के झण्डो को दुर्गे की ओर आते देखकर समझा की राजपूत हार गए अतः उन्होंने जोहर कर अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया। किले में प्रवेश करने पर जौहर की लपटों को देखकर हमीर को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। उसने प्रायश्चित करने हेतु किले में स्थित शिव मन्दिर पर अपना मस्तक काट कर शंकर भगवान के शिवलिंग पर चढा दिया। अलाउद्दीन को जब इस घटना का पता चला तो उसने लौट कर दुर्ग पर कब्जा कर लिया। हम्मीर अपने वचन से पीछे नहीं हटा और शरणार्थियों को नहीं लोटाया चाहे इसके लिए उसे अपने पुरे परिवार की बलि ही क्यों न देनी पड़ी। इसलिए कहा गया है,,,
सिंह सवन सत्पुरूष वचन, कदली फलत इक बार।
तिरया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार ॥
यह पंक्ति हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर देव चौहान के बारे में लिखी गई है इस पंक्ति का तात्पर्य है कि राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का महाराजा हम्मीर देव चौहान सिंह के समान गुजरता था अर्थात उसने कभी छुपकर मुकाबला नहीं किया वो शेर की भाँति राज करता था। तत्पुरूष वचन का आशय है कि राजा हम्मीर देव दिया हुआ वचन निभाना अपना पहला कर्तव्य समझता था साथ ही जिस प्रकार कदली का फल पेड़ को एक बार ही फलता है उसी प्रकार राजा हम्मीर को भी क्रोध आने पर विजय प्राप्त होने पर ही क्रोध शांत होता था। त्रिया अर्थात औरत को शादी के वक्त एक बार ही तेल चढ़ाने की रस्म होती है उसी प्रकार हम्मीर भी किसी कार्य को बार बार दोहराने की बजाए एक ही बार में पूरा करना महत्व पूर्ण समझता था अर्थात राजा हम्मीर देव चौहान का हठ उसकी निडरता का प्रतीक रहा है। वो एकमात्र चौहान शासक था जिसने स्वतंत्र शासन को अपना अभिमान समझा और हम्मीर देव चौहान की यही स्वाभिमानता महाराणा प्रताप को दिल से भा गई और प्रताप ने मुगल शासक अकबर की जीवन पर्यन्त अधिनता स्वीकार नहीं की।

डॉक्टर दशरथ ने माना है कि हम्मीर देव चौहान के पिता महाराजा जैत्रसिंह ने हम्मीर का राज्यारोहण सन् 1282 में अपने ही जीवनकाल में कर दिया था। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार हम्मीर ज्येष्ठ पुत्र नहीं था तथापि वह रविवार को माघ मास में विक्रम संवत 1339 को राजगद्दी पर बैठा था। वहीं प्रबंधकोष के अनुसार हम्मीर देव चौहान का राज्यारोहण विक्रम संवत् 1343 के करीब बताया गया है।
हम्मीर महाकाव्य एवं प्रबंधकोष दोनों महाकाव्यों की रचना हम्मीर देव के समकालीन थी, दशरथ शर्मा ने हम्मीर देव का राज्याभिषेक विक्रम संवत् 1339 से 1343 के बीच ही स्वीकारा है और उनके पिता जैत्रसिंह ने हम्मीर देव को वसीयत के रूप में रणथम्भौर साम्राज्य का विस्तृत साम्राज्य संभलाया था लेकिन हम्मीर देव चौहान महत्वाकांक्षी शासक इस साम्राज्य से संतुष्ट नहीं था। भारतवर्ष के ऐतिहासिक शासकों में हम्मीर देव चौहान को हठीराजा हठपति रणपति एवं रणप्रदेश का चौहान नाम से पहचान बनाई। महाराजा हम्मीर देव चौहान के प्रिय घोड़े का नाम बादल था वही हम्मीर देव चौहान की रानी का नाम रंगदेवी और इनकी पुत्री का नाम पद्मला था जो कि हम्मीर देव को अत्यंत प्रिय थी। हम्मीर देव शैव धर्म का अनुयायी एवं भगवान शिव का परम भक्त था।

हम्मीरकालीन इतिहास के स्रोत

बलबन तथा गाध शिलालेख
न्यायचन्द्र सूरी द्वारा रचित हम्मीर महाकाव्य
जोधराज शारंगधर द्वारा रचित हम्मीर रासो
चन्द्रशेखर वाजपेयी द्वारा रचित हम्मीर हठ प्रबंध महाकाव्य
मुस्लिम लेखक अमीर खुशरों की कृतियाँ
जियाउद्दीन बरनी के ऐतिहासिक ग्रंथ
हम्मीर देव द्वारा रचित श्रृंगारहार
सूरतादेव द्वारा रचित हम्मीर पद्य काव्य
विद्या पति द्वारा रचित रूप परीक्षा
भट्टखेमा द्वारा रचित हम्मीर चौहान री उपलब्धियाँ
बीरमादेव द्वारा रचित रणघाटिनगर काव्य
सूरजन हाडा के समकालीन का सूरजनचरित्र आदि
सुधीर मौर्य का ऐतिहासिक उपन्यास हम्मीर
मुसलमान सैनिको के झण्डे राजपूतों ने छीन लिए व वापस राजपूत सेना दुर्ग की ओर लौट पड़ी। दुर्ग पर से रानियों ने मुसलमानों के झण्डो को दुर्गे की ओर आते देखकर समझा की राजपूत हार गए अतः उन्होंने जोहर कर अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया। किले में प्रवेश करने पर जौहर की लपटों को देखकर हमीर को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। उसने प्रायश्चित करने हेतु किले में स्थित शिव मन्दिर पर अपना मस्तक काट कर शंकर भगवान के शिवलिंग पर चढा दिया। अलाउद्दीन को जब इस घटना का पता चला तो उसने लौट कर दुर्ग पर कब्जा कर लिया। हम्मीर अपने वचन से पीछे नहीं हटा और शरणार्थियों को नहीं लोटाया चाहे इसके लिए उसे अपने पुरे परिवार की बलि ही क्यों न देनी पड़ी। इसलिए कहा गया है,,,
सिंह सवन सत्पुरूष वचन, कदली फलत इक बार।
तिरया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार ॥
यह पंक्ति हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर देव चौहान के बारे में लिखी गई है इस पंक्ति का तात्पर्य है कि राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का महाराजा हम्मीर देव चौहान सिंह के समान गुजरता था अर्थात उसने कभी छुपकर मुकाबला नहीं किया वो शेर की भाँति राज करता था। तत्पुरूष वचन का आशय है कि राजा हम्मीर देव दिया हुआ वचन निभाना अपना पहला कर्तव्य समझता था साथ ही जिस प्रकार कदली का फल पेड़ को एक बार ही फलता है उसी प्रकार राजा हम्मीर को भी क्रोध आने पर विजय प्राप्त होने पर ही क्रोध शांत होता था। त्रिया अर्थात औरत को शादी के वक्त एक बार ही तेल चढ़ाने की रस्म होती है उसी प्रकार हम्मीर भी किसी कार्य को बार बार दोहराने की बजाए एक ही बार में पूरा करना महत्व पूर्ण समझता था अर्थात राजा हम्मीर देव चौहान का हठ उसकी निडरता का प्रतीक
पोस्ट में किसी प्रकार की त्रुटि हो तो शमा प्रार्थी

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