29/05/2022
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महामृत्युंजय मन्त्र
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” ओउम् त्रयम्बकं यजामहे, सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बंधनात मृत्योमुक्षीय मामतात ”
अक्सर ब्राह्मण बोलते है महामृत्युंजय जाप कराओ | जो व्यक्ति मृत्यु के नजदीक होता है और भयभीत होता है हम सोचते है शायद मृत्यु टल जायेगी |
मृत्युंजय
अगर इसको अलग अलग करो तो मृत्यु और जय यानि मृत्यु पर जीत शास्त्र कहते है कि मन्त्र ऐसा है अगर कोई इसे एकाग्रता से जपे या लीन हो जाए तो ये मन्त्र उसे शिवत्व का अनुभव करा देता है जो जन्म मरण से मुक्त करने वाला है | आज ये जाप हमे गुरु ने करवाया है, अपने स्वरूप का निश्चय देके, सत्य की बात बताके गुरु खुद हमारे साथ बैठकर ये जाप करता है और करवाता है, तू देह नहीं है, तू आत्मा है, तू ब्रह्म स्वरूप है, तू सच्चिदानंद स्वरूप है, तू शिवत्व है | इन्होंने हमे सरल भाषा में इस मंत्र का अर्थ बताया -:
"ओउम्"
उस परम सत्य का एक चिन्ह है ओउम् | ओउम् एक short name दे दिया पर वास्तव में तो ये पूर्ण विराट सत्ता का सूचक है | ओउम् से साधना की शुरुआत है, ओउम् पर ही साधना का विराम है | गुरु ने बताया ओउम् को जानने के लिये तुम आते हो, बीच की सारी यात्रा तय करते हो चाहे वो वैराग है, त्याग है षटसम्पति है चाहे प्रारब्ध पर विश्वास है ओउम् तत्व से शुरुआत है,
साधना – ओउम् तत्व का विचार है,
सिद्धि – ओउम् तत्व का अनुभव है “ओउम् मैं हो जाऊं”
"त्रयम्बकं"
माना तीन नेत्र वाले
* तीन नेत्र वाले भगवान शिव को जब प्रलय करनी होती है तब खोलते है सबको पता है |
* जब काम देव भस्म करना था तब तीजा नेत्र खोला |
* एक शिव पार्वती की कहानी आती है, पार्वती ने शिव की दोनों आँखे बंद की तो सृष्टि में अँधेरा होने लगा तब भगवान ने तीजा नेत्र खोला |
* हमे गुरु ने तीजा नेत्र से मतलब विवेक से बताया है जिसमे हमारी मनोमय सृष्टि की प्रलय होती है | पहले मैं मेरे में, स्वार्थ, इच्छओं में, कामनाओं में जी रहे थे | गुरु ने तीसरा नेत्र विवेक जगा कर सारी सृष्टि लय की है | दिव्य दृष्टि जो गुरु से मिलती है |
"यजामहे"
माना वंदन करते है जब तक अपने स्वरूप में पहुंचते नहीं, आस्था रखते है, आस्था रखकर भक्ति करते है, श्रद्धा रखते है | एक तरह से वंदन करते है
‘मुझको मुझसे मिला दो मेरे ईश्वर'
भक्त बार बार प्रार्थना करता है मैं वही तत्व स्वरूप हूँ तो फिर