09/07/2020
अमरनाथ
अमरनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान शिव के स्वरूप अमरनाथ हिंदुओं के लिए प्रमुख स्थानों में से एक है अमरनाथ ज्योतिर्लिंग कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में पहाड़ों की गुफा में अवस्थित है
समुद्र तल से अमरनाथ गुफा की ऊंचाई 13600 फुट है।
अमरनाथ गुफा 16 मीटर लंबा और 29 मीटर चौड़ा है। गुफा 13 मीटर ऊंचा है।
अमरनाथ गुफा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में से एक है अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि यही वह स्थान है जहां पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व कथा सुनाई थी इसी कारण इस क्षेत्र को अमरनाथ कहा जाता है।
इस स्थान की प्रमुख विशेषता यह है कि यहीं पर प्राकृतिक रूप से हिम रूप में शिवलिंग का निर्माण होता है।
प्राकृतिक रूप से हिम शिवलिंग का निर्माण होने के कारण इसको स्वयंभू और हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है।
आश्चर्य की बात है गुफा के चारो तरफ बर्फ गिरती है लेकिन वो भुरभुरी और कमजोर होती है । लेकिन गुफा में को बर्फ का शिवलिंग बनता है वो ठोस बर्फ की होती है
बहुत दुर्गम स्थान में होने के कारण भी भक्त यहां बड़े श्रद्धा पूर्वक दर्शन करने आते हैं।, कठिन रास्ते और बरफों से घिरा होने के कारण भी भगवान के भक्त यहां आने से कतराते नहीं है।
शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती को भगवान शिव ने यहीं पर अमरत्व कथा सुनाई थी, जिसको सुन कर सुक - सिसु शुकदेव जी अमर हो गए ।
आज भी इस गुफा में कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है जिसको श्रद्धालु लोग कहते हैं कि यह अमर पक्षी है। ये भी भगवान शिव के अमर तत्व कथा सुनकर अमर हुए।
जिस भी श्रद्धालु को यह पक्षियों का जोड़ा दिखाई देता है तो ऐसा माना जाता है कि भगवान का साक्षात दर्शन हो गया और और जिस भक्त को दर्शन दिया हो उस वक्त की सारी मनोकामनाएं उसकी कष्ट करते हो जाती है और उसका जीवन मुक्त हो जाता है।
भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी पार्वती को एक ऐसी कथा सुनाई जिसमें इस स्थान का वर्णन उसमें किया गया। कालांतर में इस कथा को अमर कथा के नाम से विख्यात है।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने अपने गले के नागों को अनंतनाग में छोड़ा, अपने माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के नाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये सभी जगह अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के शुरुआत में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी एक चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ में बहुत सारी गुफाएं हैं अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं
अमरनाथ यात्रा प्रारंभ कैसे करें
अमर नाथ यात्रा पर जाने के दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलगांव और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। लाचार या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगांव से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है। और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है।
क्योंकि पाकिस्तान से आतंकवादियों की गतिविधियां होती रहती है इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। फिर भी रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। भारत सरकार इस मार्ग के द्वारा किए हुए यात्रा में अगर यात्रियों को कोई भी असुविधा होती हो तो इसकी की जवाबदेही भारत सरकार नहीं लेती है।
क्योंकि पहले ही यात्रियों को बताया जाता है कि इस मार्ग से यात्रा करना सुरक्षा की दृष्टि से और सबसे ज्यादा कठिन मार्ग है यात्री आसान मार्ग से यात्रा प्रारंभ करें।
जम्मू पहलगाम से अमरनाथ 315 किलोमीटर की दूरी पर है। यह पूरी दुनिया में विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है।
पहलगाम में अनेक श्रद्धालुओं के द्वारा या गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों को पैदल यात्रा यहीं से आरंभ करनी होती है।
पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं।
इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई और देवता लोग विजय हुए थे,
लिद्दर नदी के किनारे होते हुए पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का पुल बना रहता है
चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है।
यहीं से पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से 11,120 फुट की ऊँचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुँच कर आराम करते हुए यहां बैठते हैं , यहां से फिर प्रकृतिक अद्भुत दृश्य दिखता है बर्फ के पर्वतों के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है।
प्राचीन कहानियां के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी 8 मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊँचाई क्रमश: 13,500 फुट व 14,500 फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहाँ पांच छोटी-छोटी धाराएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं ऑक्सीजन की व्यवस्था सरकार के द्वारा कराई जाती है
अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल 8 किलोमीटर बच जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है।
कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुँच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में ख़तम हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। अमरनाथ भगवान का दर्शन करके भक्त खुद को भाग्यशाली मानते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में सबसे कठिन अस्थल पर होने के कारण भगवान के इस बर्फानी रूप का दर्शन करके भक्त जन्म जन्मांतर के पापों का नाश करते हैं।
Amarnath
Amarnath is one of the two Jyotirlingas in the form of Lord Shiva. Amarnath is one of the prominent places for Hindus. Amarnath Jyotirlinga is located in a cave of mountains in the northeast of the city of Srinagar in the state of Kashmir.
The height of the Amarnath cave is 13600 feet above sea level.
The Amarnath cave is 16 meters long and 29 meters wide. The cave is 13 meters high.
Amarnath Cave is one of the Jyotirlingas of Lord Shiva. Amarnath is called the pilgrimage place of pilgrimage because this is the place where Lord Shiva narrated the immortality story to Mata Parvati, hence the region is called Amarnath.
The main feature of this place is that it is here that Shivalinga is formed naturally in snow form.
It is also called Swayambhu and Himani Shivling due to the formation of snow lingam naturally.
Surprisingly, snow falls all around the cave but it is brittle and weak. But in the cave, there is a snow Shivling that is made of solid ice.
Being in a very inaccessible place, devotees visit here with great reverence. Even due to being surrounded by difficult roads and snow, devotees of God do not hesitate to come here.
According to Shiva Purana, Lord Shiva was told immortality story here by Lord Shiva, upon hearing that Suk - Sisu Shukdev ji became immortal.
Even today, a pair of pigeons are seen in this cave, which the devotees say that it is an immortal bird. These too became immortal after hearing the immortal elements of Lord Shiva.
Whenever a devotee sees this pair of birds, then it is believed that the God has appeared and and the devotee who has appeared, then gets all the wishes of that time, and his life gets liberated.
Lord Shiva narrated to his Ardhangini Parvati a story in which this place was described in it. Later this legend is known as Amar Katha.
Some scholars are of the opinion that when Lord Shankar was taking Parvati to narrate the immortal tale, he left his serpent snake in Anantnag, brought his forehead sandalwood to Chandanbadi, other fleas on flea tops and the serpent of the neck. Left at a place called Sheshnag. All these places still visit the Amarnath Yatra. Amarnath cave was first known to a Muslim shepherd in the early sixteenth century. Even today a quarter of the offerings are made to the descendants of that Muslim shepherd. Surprisingly, there are many caves in Amarnath, while moving on the path of Amaravati river, many more small and big caves are seen. They are all snow covered
How to start Amarnath Yatra
There are two ways to go on Amar Nath Yatra. One from Pahalgam and the other from Sonamarg Baltal. That is, to reach Pahalgaon and Baltal by any ride, you have to use your feet to go further from here. Passengers may be arranged for helplessness or old age. The road leading from Pahalgaon is considered simple and convenient. The distance from Baltal to the Amarnath cave is only 14 kilometers. And it is a very inaccessible way and is also suspicious from safety point of view.
Because the activities of terrorists continue to happen from Pakistan, the government does not consider this route to be safe and motivates most travelers to go to Amarnath via Pahalgam. Still, people who are fond of adventure and risk-taking prefer to travel through this route. People traveling through this route travel at their own risk. If the Government of India has any inconvenience to the passengers during the journey through this route, then the Government of India does not take responsibility for it.
Because already the passengers are told that traveling through this route is the most difficult route from safety point of view and the passengers should start the journey by easy route.
Amarnath is 315 km from Jammu Pahalgam. It is also a famous tourist destination all over the world and the natural beauty of this place is seen on sight. Government bus is available from Jammu and Kashmir tourism center to reach Pahalgam.
In Pahalgam, langars are arranged by many devotees or by NGOs. Pilgrims have to start the trek from here.
The first stop after Pahalgam is Chandanbadi, which is 8 km from Pahalgam. The pilgrims spend the first night here. Camps are organized here for night stay.
On the second day, the climb of the Pisu Valley begins. According to Janushruti, it is said that there was a fierce battle between the gods and demons in the Pissu Valley in which the demons were defeated and the gods were conquered,
The journey of the first phase through the banks of the river Lidder is not difficult. From Chandanwadi, there is a natural ice bridge on this river.
The next stop is at Sheshnag, 14 kilometers from Chandanbadi. This route is steep and dangerous.
This is where the flea valley is visited. Flea Valley is a very risky place in Amarnath Yatra. The flea valley is 11,120 feet above sea level. Travelers reach Sheshnag and sit here, resting from here, there is again a natural scenic view, amidst the snowy mountains, there is a beautiful lake of blue water. By looking into this lake, the confusion arises that the sky has not come down in this lake. This lake is spread over one and a half kilometers in length.
According to ancient stories, Sheshnag is inhabited by the Sheshnag Lake and within twenty four hours Sheshnag once darshans outside the lake, but these darshans are lucky only. Pilgrims stay here for the night and start the third day journey from here.
Panchtarni is 8 miles from Sheshnag. The route has to cross the Beauvaill Top and Mahagunas Pass, which are 13,500 feet and 14,500 feet in height respectively. All the way from Mahagunas peak to Panchatarni is downhill. This place is named Panchtarni due to five small streams flowing here. This place is covered with high peaks of mountains from all sides. The cold is also more due to the height. Due to lack of oxygen, pilgrims have to make security arrangements here, oxygen is provided by the government.
The cave of Amarnath survives only 8 km from here and snow remains frozen on the way. On the same day, you can spend the night by staying near the cave and on the second day you can return to Panchatarni by offering pooja in the morning.
Some travelers reach Sheshnag by evening. This path is quite difficult, but on reaching the holy cave of Amarnath, all the fatigue of the journey is over in an instant and there is a feeling of amazing spiritual bliss. Devotees consider themselves lucky by seeing Amarnath Lord.
Devotees destroy the sins of birth after birth by seeing this blissful form of God, being at the most difficult place in Dwadash Jyotirlinga.