Prithvi yatra

Prithvi yatra you can get information about Indian temple,

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30/10/2020

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Prithvi Yatra is an online place that covers Indian Temple with its mythological details and spiritual beliefs.

05/10/2020

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03/10/2020

ब्लॉग को पढ़ते नहीं हैं क्या ?
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अरे पढ़ते रहते तो बहुत मंदिर के बारे में जानकारी मिल गई होती

30/09/2020
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29/09/2020

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29/09/2020

Read my blog everyday
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28/09/2020

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You must read

24/09/2020

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पर आप मंदिर की यात्रा कर सकते हैं।
जहां आपको मिलेगा आपके क्षेत्र का मंदिरों कि जानकारी ।

19/09/2020

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पृथ्वी यात्रा
मेरे इस ब्लॉक को अधिक से अधिक संख्या में शेयर करें ताकि हमारे जो बड़े बुजुर्ग हैं मंदिरों की दर्शन कर खुद को कृतार्थ कर सकें। भगवान का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे

19/09/2020

अगर आप चाहते हैं कि आपके नजदीक के मन्दिरों की जानकारी मै अपने ब्लॉग में लिखूं तो आप मुझे वॉट्सएप कर सकते हैं।
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19/09/2020

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पर जा कर आप अपने नजदीक के मंदिरों के बारे में भी जान सकते हैं।
बिहार के कौन से जिले में कौन मंदिर है आप को पूरी जानकारी मिलेगी।

19/09/2020

जो भगवान को प्राप्त करना चाहता है वो जरूर पढ़े।
Prithviyatra
क्युकी आप को मिलता है यहां मंदिरों कि जानकारी

Prithviyatra.blogspot.comआप बिहार के सभी जिले के मंदिरों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।, पढ़ें मेरा ब्लॉग और ज...
19/09/2020

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आप बिहार के सभी जिले के मंदिरों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।, पढ़ें मेरा ब्लॉग और जाने कहां कौन सा मंदिर है।

Prithvi Yatra is an online place that covers Indian Temple with its mythological details and spiritual beliefs.

18/09/2020

Prithviyatra
आप को भारत के सभी मंदिरों की जानकारी देती है।
मेरे ब्लॉग को जरूर से जरूर पढ़ें ।

17/09/2020

आशापुरी मंदिर, घोसरावाँ नालंदा बिहार

आशापुरी मंदिर बिहार राज्य के नालंदा जिले के घोषरावां नामक गांव में स्थित है इस मंदिर की भव्यता और प्रसिद्धि पूरे राज्य में विख्यात है।

यह मंदिर माता भगवती को समर्पित है यहां भगवती के आशापुरी रूप की पूजा होती है, गांव में और मंदिर हैं , लेकिन आशापुरी मंदिर की मान्यता हीं कुछ और है,भगवती का मंदिर संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है मंदिर में दो गर्भगृह है ,यह मंदिर सलोभर भक्तों से भरा हुआ रहता है लेकिन, मंगलबार के दिन भक्तों कि ज्यादा भीड़ रहती है।

भगवती का मूर्ति काले पत्थरों से बना हुआ है। यहां की मूर्ति बहुत हीं पौराणिक है लगभग हजारों साल पुराना यह मंदिर यहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी हैं।

मनोकामना पूर्ण होने के कारण हीं इनका नाम आशापुरी देवी के रूप में जाना जाता है। यहां भक्त बड़ी भारी संख्या में उपस्थित होकर अपने कष्ट को दूर करने के लिए भगवती से प्राथना करते हैं ।मान्यता के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण पाल वंश के शासक राजा घोष ने कराया था उन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम घोषरावां पड़ा। कहा जाता है कि बौद्ध काल में 18 सौ बौद्ध भिक्षु पहुंकर मन्नत मांगते थे। इस मंदिर में मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है जो मां दुर्गा के नौ रूप में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजित हैं। घोसरावां मंदिर के पुजारियों के मुताबिक यहां के मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने हीं पहली बार पूजा की थी।

इसकी स्थापना के पीछे की कहानी यह है कि यहां एक गढ़ हुआ करता था, जिस पर मां आशापुरी विराजमान थी गढ़ पर ही आज भी मां का मंदिर बना हुआ है,उसको तोड़ा नहीं गया है मंदिर अब नया बना है लेकिन माता का स्थापना जहां था वहीं पर अभी भी है

ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक जब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय अपने समृद्धि के दौर में था तो उस दौरान यहां भी पढ़ाई होती थी।

इस मंदिर को और प्रसिद्धि मिली ही पावापुरी के कारण क्यूं की भगवान महावीर जैन का यहीं पावापुरी में निर्वाण हुआ था।

नवरात्रि के समय में यहां खासकर लोग 9 दिन बड़ी पवित्रता का अनुशासन का पालन करते और करवाते हैं , 9 दिन पूजा के दौरान महलाओं को सिर्फ नवरात्रि में मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। इसका क्या करण है वो साफ साफ नहीं कहा जा सकता है । यहां के लोगों से बात कर के पता चला है कि ये मान्यता है पहले से चली आ रही है। इसी कारण यहां सिर्फ नवरात्रि के 9 दिन महिलाओं का प्रवेश वर्जित है । इसके बाद सालो भर महिला पूजा कर सकते हैं

यहां हरेक मंगलबार को होने वाली पूजा में क्षेत्र के लोगों द्वारा पशुबली भी दी जाती है, भक्त यहां अपने संकल्प को पूरा होने पे पूर्व संकल्पित माता के सामने पशुबाली देते हैं।

यहां का ये भी एक अलग दृश्य देखने को मिलता है। जहां पूजा का एक अलग रूप समझ आता है । यहां पर बहुत संख्या में मंत्र शिद्घ के लिए लोग जाप भी करते हैं। घोषरावां गांव के हीं ब्राह्मण के द्वारा मंदिर में पूजा पाठ करवाया जाता है । इस मंदिर का मुख्य पुजारी हर एक सप्ताह में बदल दिया जाता है। गांव में अलग अलग ब्रह्मण के परिवारों द्वारा सप्ताह में पूजा करवाया जाता है।

ब्राह्मण अपने भगवती का पूजा और सेवा को अपना पूर्वजों का धरोहर स्वरूप मान कर करते हैं और हमेशा लोगों के कल्याण के लिए पूजा पाठ किया करते हैं।

मंदिर परिसर में हीं बहुत सारी दुकानें हैं। जिसमे नाना प्रकार के पूजा पाठ की सामग्री हमेशा उपलब्ध रहती है मंदिर में यात्रियों के लिए रहने कि उत्तम व्यवस्था और स्नानघर का भी प्रबंध है यहां पीने के लिए सीतल जल की भी व्यवस्था की गई है।

यहां कैसे पहुंचा जा सकता है

आशापुरी मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पावापुरी है।

हवाई मार्ग से अगर आप यात्रा करके यहां आना चाहते हैं तो यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पटना है।

राजधानी पटना से सड़क मार्ग के द्वारा बड़े आसानी से पहुंचा जा सकता है।

PrithviyatraYahan par aap ko milega bharat ke har mandir ke baare me jankariprithviyatra.blogspot.com
15/09/2020

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Yahan par aap ko milega bharat ke har mandir ke baare me jankari
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29/08/2020

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07/08/2020

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सोमनाथ मंदिरसोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है  भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रथम स्थान प्राप्त ...
17/07/2020

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला मंदिर है
यह मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, यह भारतीय इतिहास और हिंदू के चुनिंदा महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिरों में से एक है।

यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माने या जाने बाला मंदिर है ।

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
यह मंदिर हिंदुओं के उत्थान और पतन के इतिहास का प्रतीक है ।
सोमनाथ मंदिर अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इस मंदिर को इतिहास में बहुत बार तोड़ा गया और बहुत बार इसका निर्माण किया गया ।

यह मंदिर दुनिया के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है यह धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी बहुत मायने रखता है।
इस मंदिर में प्रतिदिन शाम 7:00 बजे से लेकर के 9:00 बजे तक लाइट शो चलाया जाता हैजिसमें मंदिर के इतिहास के बारे में दिखाया जाता है इसको देखने के लिए लोग और भगवान सोमनाथ का पूजन करने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग खींचे चले आते हैं।
12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान रखने वाला यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हिंदुओं का सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है।

सोमनाथ मंदिर का वर्णन शिव पुराण में और वेदों में किया गया है,
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम्॥१॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥२॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥३॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥४॥

शिवपुराण की कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों के साथ चंद्रदेव (सोम) ने विवाह किया,लेकिन 27 पत्नियों में से वह सबसे अधिक प्यार हरोनी नामक पत्नी से करते थे, इस बात को लेकर के रोहिणी के अलावा सभी पुत्रियां अपने पिता दक्ष प्रजापति के पास अपने पति का शिकायत की,

दक्ष प्रजापति गुस्से में आकर के चंद्रदेव को श्राप दिया कि तेरा प्रतिदिन धीरे-धीरे तेरा तेज खत्म होता जाएगा,
श्राप के कारण चंद्र देव का धीरे-धीरे करके उनका तेज खत्म होता गया
श्राप से व्याकुल होकर के चंद्रदेव ने भगवान शिव की तपस्या की तपस्या करके भगवान को प्रसन्न ने किया।
भगवान उसके कष्ट का निवारण किए फिर चंद्र देव के द्वारा भगवान शिव की स्थापना की गई और उस क्षेत्र को उस मंदिर का नाम सोमनाथ मंदिर रखा गया।

महमूद गजनी ने सोमनाथ मंदिर पर 17 बार आक्रमण किया, मंदिर के स्वर्ण को लूटकर ले गया। इसको बार-बार खंडित किया गया।
बहुत सारे मुगल शासकों ने भगवान शिव के इस मंदिर को तोड़कर समाप्त करने की कोशिश की।

आठवीं सदी में सिंध के अरबी गवर्नर जुनायेद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी,गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 1815 ईस्वी में इसका तीसरी बार निर्माण किया इस मंदिर की महिमा और कृति दूर दूर तक फैली थी
अरब यात्री अलबरूनी ने अपने यात्रा वृतांत में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद गजनबी ने 1024 में कुछ 5000 लुटेरे साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया 50000 लोग मंदिर के अंदर हाथ जोड़कर पूजा अर्चना कर रहे थे उन लुटेरों ने सभी लोगों के कत्ल कर दिए।

इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे पांचवीं बार गिराया गया।
मुगल बादशाह औरंगजेब ने से पुनः 1706 में गिरा दिया ।

इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने बनाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया
लेकिन सन 1026 में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन 1064 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था।

सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अन्तिम मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया था।
इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है।

Somnath Temple

Somnath Temple is located in Saurashtra of Gujarat, one of the 12 Jyotirlingas of Lord Shiva is the first to get a temple.
This temple is one of the oldest temples in India, one of the most important ancient temples of Indian history and Hinduism.

It is the first temple to be known or known as Jyotirlinga among the 12 Jyotirlingas of India.

It is said about this temple located in Veraval port of Saurashtra region of Gujarat that it was built by Chandra Dev himself, it is mentioned in the Rigveda.
This temple symbolizes the history of the rise and fall of Hindus.
Somnath temple being very magnificent, this temple was broken many times in history and it was constructed many times.

This temple is one of the famous temples of the world, it is very important for tourists as well as being a religious place.
A light show is conducted daily from 7:00 pm to 9:00 pm in this temple, which shows about the history of the temple, people to see it and people from far and wide to worship Lord Somnath. They are drawn.
This Somnath Jyotirlinga, which holds the first place among the 12 Jyotirlingas, is the largest faith center of Hindus.

The Somnath temple is described in the Shiva Purana and in the Vedas,

According to the legend of Shivpuran, Chandradev (Som) married Daksha Prajapati's 27 daughters, but out of the 27 wives, he was most in love with a wife named Haroni, adding that all the daughters, except Rohini, were his father Daksha. Prajapati complained to her husband,

Daksha Prajapati got angry and cursed Chandradev that your day will be slowly ending,
Due to the curse, Chandra Dev was gradually reduced to his fast.
Disturbed by the curse, K Chandradev pleased Lord Shiva by doing austerities to Lord Shiva.
The Lord relieved his suffering, then Lord Shiva was established by Chandra Dev and the area was named that temple Somnath Temple.

Mahmud Ghazni attacked Somnath temple 17 times, looting the temple's gold. It was repeatedly fragmented.
Many Mughal rulers tried to destroy this temple of Lord Shiva by destroying it.

In the eighth century, the Arab governor of Sindh, Junaid, sent his army to destroy it, Gurjara Pratihara king Nagabhatta built it for the third time in 1815 AD The glory and masterpiece of this temple spread far and wide.
The Arab traveler Alberuni wrote a description of it in his travelogue so that Mahmud Ghaznabi attacked the Somnath temple in 1024 with some 5000 robbers and looted his property and destroyed 50,000 people with folded hands inside the temple. Those robbers killed all the people.

After this it was rebuilt by Raja Bhima of Gujarat and Bhoja of Malwa.
When the Delhi Sultanate occupied Gujarat in 1297, it was dropped for the fifth time.
The Mughal emperor Aurangzeb again dropped in 1706.

The temple that stands at this time was built by the Home Minister of India, Sardar Ballabhbhai Patel, and on 1 December 1995, the President of India, Shankar Dayal Sharma dedicated it to the nation.
But in 1026, the Shivling that was broken by Mahmud Ghazni, it was the Adi Shivling. The Shivalinga, which was then consecrated, was disbanded in 1300 by Alauddin's army. After this, many times the temple and Shivling were fragmented. It is said that the Devdwaras kept in Agra Fort belong to Somnath Temple. Mahmud Ghazni took these gates with him during the robbery in 1064 AD.

The new temple is built by the temple trust at the original temple site of Somnath Temple. The last temple was built by Raja Kumar Pal at this place. Saurashtra Chief Minister Uchhangarai Navalshankar Dhebar excavated here on 19 April 1940.
After this, the Archaeological Department of the Government of India has installed the Jyotirling of Shiva on the Brahmashila obtained by excavation.

अमरनाथअमरनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान शिव के स्वरूप अमरनाथ हिंदुओं के लिए प्रमुख स्थानों में से एक है अमरना...
09/07/2020

अमरनाथ

अमरनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान शिव के स्वरूप अमरनाथ हिंदुओं के लिए प्रमुख स्थानों में से एक है अमरनाथ ज्योतिर्लिंग कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में पहाड़ों की गुफा में अवस्थित है

समुद्र तल से अमरनाथ गुफा की ऊंचाई 13600 फुट है।
अमरनाथ गुफा 16 मीटर लंबा और 29 मीटर चौड़ा है। गुफा 13 मीटर ऊंचा है।
अमरनाथ गुफा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में से एक है अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि यही वह स्थान है जहां पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व कथा सुनाई थी इसी कारण इस क्षेत्र को अमरनाथ कहा जाता है।

इस स्थान की प्रमुख विशेषता यह है कि यहीं पर प्राकृतिक रूप से हिम रूप में शिवलिंग का निर्माण होता है।
प्राकृतिक रूप से हिम शिवलिंग का निर्माण होने के कारण इसको स्वयंभू और हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है।
आश्चर्य की बात है गुफा के चारो तरफ बर्फ गिरती है लेकिन वो भुरभुरी और कमजोर होती है । लेकिन गुफा में को बर्फ का शिवलिंग बनता है वो ठोस बर्फ की होती है

बहुत दुर्गम स्थान में होने के कारण भी भक्त यहां बड़े श्रद्धा पूर्वक दर्शन करने आते हैं।, कठिन रास्ते और बरफों से घिरा होने के कारण भी भगवान के भक्त यहां आने से कतराते नहीं है।

शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती को भगवान शिव ने यहीं पर अमरत्व कथा सुनाई थी, जिसको सुन कर सुक - सिसु शुकदेव जी अमर हो गए ।

आज भी इस गुफा में कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है जिसको श्रद्धालु लोग कहते हैं कि यह अमर पक्षी है। ये भी भगवान शिव के अमर तत्व कथा सुनकर अमर हुए।
जिस भी श्रद्धालु को यह पक्षियों का जोड़ा दिखाई देता है तो ऐसा माना जाता है कि भगवान का साक्षात दर्शन हो गया और और जिस भक्त को दर्शन दिया हो उस वक्त की सारी मनोकामनाएं उसकी कष्ट करते हो जाती है और उसका जीवन मुक्त हो जाता है।

भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी पार्वती को एक ऐसी कथा सुनाई जिसमें इस स्थान का वर्णन उसमें किया गया। कालांतर में इस कथा को अमर कथा के नाम से विख्यात है।

कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने अपने गले के नागों को अनंतनाग में छोड़ा, अपने माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के नाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये सभी जगह अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के शुरुआत में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी एक चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ में बहुत सारी गुफाएं हैं अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं

अमरनाथ यात्रा प्रारंभ कैसे करें

अमर नाथ यात्रा पर जाने के दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलगांव और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। लाचार या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगांव से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है। और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है।

क्योंकि पाकिस्तान से आतंकवादियों की गतिविधियां होती रहती है इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। फिर भी रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। भारत सरकार इस मार्ग के द्वारा किए हुए यात्रा में अगर यात्रियों को कोई भी असुविधा होती हो तो इसकी की जवाबदेही भारत सरकार नहीं लेती है।

क्योंकि पहले ही यात्रियों को बताया जाता है कि इस मार्ग से यात्रा करना सुरक्षा की दृष्टि से और सबसे ज्यादा कठिन मार्ग है यात्री आसान मार्ग से यात्रा प्रारंभ करें।

जम्मू पहलगाम से अमरनाथ 315 किलोमीटर की दूरी पर है। यह पूरी दुनिया में विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है।

पहलगाम में अनेक श्रद्धालुओं के द्वारा या गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों को पैदल यात्रा यहीं से आरंभ करनी होती है।

पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं।

इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई और देवता लोग विजय हुए थे,
लिद्दर नदी के किनारे होते हुए पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का पुल बना रहता है

चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है।
यहीं से पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से 11,120 फुट की ऊँचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुँच कर आराम करते हुए यहां बैठते हैं , यहां से फिर प्रकृतिक अद्भुत दृश्य दिखता है बर्फ के पर्वतों के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है।
प्राचीन कहानियां के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।

शेषनाग से पंचतरणी 8 मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊँचाई क्रमश: 13,500 फुट व 14,500 फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहाँ पांच छोटी-छोटी धाराएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं ऑक्सीजन की व्यवस्था सरकार के द्वारा कराई जाती है

अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल 8 किलोमीटर बच जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है।
कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुँच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में ख़तम हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। अमरनाथ भगवान का दर्शन करके भक्त खुद को भाग्यशाली मानते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में सबसे कठिन अस्थल पर होने के कारण भगवान के इस बर्फानी रूप का दर्शन करके भक्त जन्म जन्मांतर के पापों का नाश करते हैं।

Amarnath

Amarnath is one of the two Jyotirlingas in the form of Lord Shiva. Amarnath is one of the prominent places for Hindus. Amarnath Jyotirlinga is located in a cave of mountains in the northeast of the city of Srinagar in the state of Kashmir.

The height of the Amarnath cave is 13600 feet above sea level.

The Amarnath cave is 16 meters long and 29 meters wide. The cave is 13 meters high.

Amarnath Cave is one of the Jyotirlingas of Lord Shiva. Amarnath is called the pilgrimage place of pilgrimage because this is the place where Lord Shiva narrated the immortality story to Mata Parvati, hence the region is called Amarnath.

The main feature of this place is that it is here that Shivalinga is formed naturally in snow form.

It is also called Swayambhu and Himani Shivling due to the formation of snow lingam naturally.

Surprisingly, snow falls all around the cave but it is brittle and weak. But in the cave, there is a snow Shivling that is made of solid ice.

Being in a very inaccessible place, devotees visit here with great reverence. Even due to being surrounded by difficult roads and snow, devotees of God do not hesitate to come here.

According to Shiva Purana, Lord Shiva was told immortality story here by Lord Shiva, upon hearing that Suk - Sisu Shukdev ji became immortal.

Even today, a pair of pigeons are seen in this cave, which the devotees say that it is an immortal bird. These too became immortal after hearing the immortal elements of Lord Shiva.

Whenever a devotee sees this pair of birds, then it is believed that the God has appeared and and the devotee who has appeared, then gets all the wishes of that time, and his life gets liberated.

Lord Shiva narrated to his Ardhangini Parvati a story in which this place was described in it. Later this legend is known as Amar Katha.

Some scholars are of the opinion that when Lord Shankar was taking Parvati to narrate the immortal tale, he left his serpent snake in Anantnag, brought his forehead sandalwood to Chandanbadi, other fleas on flea tops and the serpent of the neck. Left at a place called Sheshnag. All these places still visit the Amarnath Yatra. Amarnath cave was first known to a Muslim shepherd in the early sixteenth century. Even today a quarter of the offerings are made to the descendants of that Muslim shepherd. Surprisingly, there are many caves in Amarnath, while moving on the path of Amaravati river, many more small and big caves are seen. They are all snow covered

How to start Amarnath Yatra

There are two ways to go on Amar Nath Yatra. One from Pahalgam and the other from Sonamarg Baltal. That is, to reach Pahalgaon and Baltal by any ride, you have to use your feet to go further from here. Passengers may be arranged for helplessness or old age. The road leading from Pahalgaon is considered simple and convenient. The distance from Baltal to the Amarnath cave is only 14 kilometers. And it is a very inaccessible way and is also suspicious from safety point of view.

Because the activities of terrorists continue to happen from Pakistan, the government does not consider this route to be safe and motivates most travelers to go to Amarnath via Pahalgam. Still, people who are fond of adventure and risk-taking prefer to travel through this route. People traveling through this route travel at their own risk. If the Government of India has any inconvenience to the passengers during the journey through this route, then the Government of India does not take responsibility for it.

Because already the passengers are told that traveling through this route is the most difficult route from safety point of view and the passengers should start the journey by easy route.

Amarnath is 315 km from Jammu Pahalgam. It is also a famous tourist destination all over the world and the natural beauty of this place is seen on sight. Government bus is available from Jammu and Kashmir tourism center to reach Pahalgam.

In Pahalgam, langars are arranged by many devotees or by NGOs. Pilgrims have to start the trek from here.

The first stop after Pahalgam is Chandanbadi, which is 8 km from Pahalgam. The pilgrims spend the first night here. Camps are organized here for night stay.

On the second day, the climb of the Pisu Valley begins. According to Janushruti, it is said that there was a fierce battle between the gods and demons in the Pissu Valley in which the demons were defeated and the gods were conquered,

The journey of the first phase through the banks of the river Lidder is not difficult. From Chandanwadi, there is a natural ice bridge on this river.

The next stop is at Sheshnag, 14 kilometers from Chandanbadi. This route is steep and dangerous.

This is where the flea valley is visited. Flea Valley is a very risky place in Amarnath Yatra. The flea valley is 11,120 feet above sea level. Travelers reach Sheshnag and sit here, resting from here, there is again a natural scenic view, amidst the snowy mountains, there is a beautiful lake of blue water. By looking into this lake, the confusion arises that the sky has not come down in this lake. This lake is spread over one and a half kilometers in length.

According to ancient stories, Sheshnag is inhabited by the Sheshnag Lake and within twenty four hours Sheshnag once darshans outside the lake, but these darshans are lucky only. Pilgrims stay here for the night and start the third day journey from here.

Panchtarni is 8 miles from Sheshnag. The route has to cross the Beauvaill Top and Mahagunas Pass, which are 13,500 feet and 14,500 feet in height respectively. All the way from Mahagunas peak to Panchatarni is downhill. This place is named Panchtarni due to five small streams flowing here. This place is covered with high peaks of mountains from all sides. The cold is also more due to the height. Due to lack of oxygen, pilgrims have to make security arrangements here, oxygen is provided by the government.

The cave of Amarnath survives only 8 km from here and snow remains frozen on the way. On the same day, you can spend the night by staying near the cave and on the second day you can return to Panchatarni by offering pooja in the morning.

Some travelers reach Sheshnag by evening. This path is quite difficult, but on reaching the holy cave of Amarnath, all the fatigue of the journey is over in an instant and there is a feeling of amazing spiritual bliss. Devotees consider themselves lucky by seeing Amarnath Lord.

Devotees destroy the sins of birth after birth by seeing this blissful form of God, being at the most difficult place in Dwadash Jyotirlinga.

08/07/2020

पंचबदन महादेव स्थान मंझवे जमुई

भगवान शिव के अद्भुत मंदिरों में एक बिहार राज्य के जमुई जिले के मंझवे के पहाड़ के किनारे भगवान शिव के पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है।
पहाड़ के किनारे होने के कारण मंदिर, यहां पर आने वाले भक्तों के लिए श्रद्धा और विश्वास का एक प्रमुख केंद्र बिंदु है।
यह मंदिर कितना प्राचीन है कि इसके निर्माण के बारे में सही सही जानकारी बताया नहीं जा सकता, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा रघुनंदन प्रसाद के द्वारा किया गया।

इस मंदिर के बगल में एक विशाल बरगद का पेड़ है जिसकी उम्र 200 वर्ष से अधिक बताई जाती है।
वर्तमान में इस मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में श्री विभूति पांडे जो कि म़ंझवे ग्राम के निवासी हैं,
इनका कहना है कि इनके पूर्वज इस मंदिर में सेवा देते आ रहे हैं और आगे भी सेवा देते रहेंगे।

भगवान शिव के पंचमुख शिवलिंग में होने के कारण इस शिवलिंग की चर्चा पूरे क्षेत्र में की जाती है। मंदिर के कुछ दूरी पर है पहाड़ से निकलने वाली जलधारा की एक कुंड है। जिससे सदैव जल की धारा प्रवाहित होती रहती है। इस कुंड की गहराई 8 फीट है।

इस को भी देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पर आते हैं।
नजदीक में पहाड़ होने के कारण अधिक संख्या में लोग पिकनिक मनाने के लिए भी यहां पर आते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उसके जीवन में हमेशा सुख शांति और समृद्धि की प्राप्ति होता रहे।

प्राकृतिक छटाओं के बीच मंदिर होने के कारण हमेशा यहां पर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है, विशेषकर इस मंदिर में शिवरात्रि में भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें से भगवान का रुद्राभिषेक जलाभिषेक करा करके शिव पार्वती विवाह का आयोजन किया जाता है इसको देखने के लिए भी भक्त बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचते हैं।
यहां पर कैसे पहुंचें।
जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है। सड़क माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जमुई है।

Panchbadan Mahadev sthan Manjhve Jamui

One of the amazing temples of Lord Shiva is the Panchamukhi Shivling of Lord Shiva, situated on the banks of the Manjhave mountain in Jamui district of Bihar state.

Being a mountain side, the temple is a major focal point of reverence and faith for the devotees who visit here.

How ancient this temple is that the exact information about its construction cannot be told, but the villagers say that this temple was built by King Raghunandan Prasad.

Next to this temple is a huge banyan tree whose age is said to be more than 200 years.

Presently as the main priest of this temple, Shri Vibhuti Pandey who is a resident of Manjhve village,

They say that their ancestors have been serving in this temple and will continue to serve.

As Lord Shiva is in the Panchmukh Shivling, this Shivling is discussed throughout the region. There is a pool of water coming out of the mountain at some distance from the temple. Due to which the stream of water always flows. The depth of this pool is 8 feet.
People come from far and wide to see this too.

Due to the nearby mountains, a large number of people also come here for a picnic and pray to God that there will always be happiness, peace and prosperity in his life.

Due to having a temple amidst natural terraces, there is always a crowd of tourists, especially in this temple a grand event is held at Shivaratri, of which Shiva Parvati marriage is organized by performing Rudrabhishek Jalabhishekam to see it as well. Devotees reach here in large numbers.

How to get here

The distance of the temple from the district headquarters is only 15 kilometers. It is easily accessible by road.

The nearest railway station from here is Jamui.

पंचबदन महादेव स्थान मंझवे जमुईभगवान शिव के अद्भुत मंदिरों में एक बिहार राज्य के जमुई जिले के मंझवे के पहाड़ के किनारे भग...
06/07/2020

पंचबदन महादेव स्थान मंझवे जमुई

भगवान शिव के अद्भुत मंदिरों में एक बिहार राज्य के जमुई जिले के मंझवे के पहाड़ के किनारे भगवान शिव के पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है।
पहाड़ के किनारे होने के कारण मंदिर, यहां पर आने वाले भक्तों के लिए श्रद्धा और विश्वास का एक प्रमुख केंद्र बिंदु है।

यह मंदिर कितना प्राचीन है कि इसके निर्माण के बारे में सही सही जानकारी बताया नहीं जा सकता, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा रघुनंदन प्रसाद के द्वारा किया गया।

इस मंदिर के बगल में एक विशाल बरगद का पेड़ है जिसकी उम्र 200 वर्ष से अधिक बताई जाती है।
वर्तमान में इस मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में श्री विभूति पांडे जो कि म़ंझवे ग्राम के निवासी हैं,
इनका कहना है कि इनके पूर्वज इस मंदिर में सेवा देते आ रहे हैं और आगे भी सेवा देते रहेंगे।

भगवान शिव के पंचमुख शिवलिंग में होने के कारण इस शिवलिंग की चर्चा पूरे क्षेत्र में की जाती है। मंदिर के कुछ दूरी पर है पहाड़ से निकलने वाली जलधारा की एक कुंड है। जिससे सदैव जल की धारा प्रवाहित होती रहती है। इस कुंड की गहराई 8 फीट है।

इस को भी देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पर आते हैं।
नजदीक में पहाड़ होने के कारण अधिक संख्या में लोग पिकनिक मनाने के लिए भी यहां पर आते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उसके जीवन में हमेशा सुख शांति और समृद्धि की प्राप्ति होता रहे।

प्राकृतिक छटाओं के बीच मंदिर होने के कारण हमेशा यहां पर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है, विशेषकर इस मंदिर में शिवरात्रि में भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें से भगवान का रुद्राभिषेक जलाभिषेक करा करके शिव पार्वती विवाह का आयोजन किया जाता है इसको देखने के लिए भी भक्त बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचते हैं।

यहां पर कैसे पहुंचें।

जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है। सड़क माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जमुई है।

Panchbadan Mahadev sthan Manjhve Jamui

One of the amazing temples of Lord Shiva is the Panchamukhi Shivling of Lord Shiva, situated on the banks of the Manjhave mountain in Jamui district of Bihar state.

Being a mountain side, the temple is a major focal point of reverence and faith for the devotees who visit here.

How ancient this temple is that the exact information about its construction cannot be told, but the villagers say that this temple was built by King Raghunandan Prasad.

Next to this temple is a huge banyan tree whose age is said to be more than 200 years.

Presently as the main priest of this temple, Shri Vibhuti Pandey who is a resident of Manjhve village,

They say that their ancestors have been serving in this temple and will continue to serve.

As Lord Shiva is in the Panchmukh Shivling, this Shivling is discussed throughout the region. There is a pool of water coming out of the mountain at some distance from the temple. Due to which the stream of water always flows. The depth of this pool is 8 feet.
People come from far and wide to see this too.

Due to the nearby mountains, a large number of people also come here for a picnic and pray to God that there will always be happiness, peace and prosperity in his life.

Due to having a temple amidst natural terraces, there is always a crowd of tourists, especially in this temple a grand event is held at Shivaratri, of which Shiva Parvati marriage is organized by performing Rudrabhishek Jalabhishekam to see it as well. Devotees reach here in large numbers.

How to get here

The distance of the temple from the district headquarters is only 15 kilometers. It is easily accessible by road.

The nearest railway station from here is Jamui.

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