अग्निहोत्री ज्योतिष

अग्निहोत्री ज्योतिष Astrology is a science; not a fiction, based on facts & lengthy calculations of situations of planet of the relevant person. Agnihotri Astrologers

It is well known fact that the environment affects our feelings, colors cure the diseases, gems help the human beings in many ways and the Moon affects the so far placed sea. Thus, it is 100% true that the nearest star Sun, much bigger planets like Mercury, Venus, Mars, Jupiter, Saturn, Venkatesh (Uranus), Neptune, Pluto and natural satellites like the Moon do effect the human behaviour on this gl

orious Earth. And, it is left to us to predict what changes these will bring to a person by comparing the natal chart (Janam Kundli) of that individual with respect to the present situations of the said universal bodies. At the time of solar eclipse; it has been proved by the science that birds, animals and other creatures observe silence and stillness; while during lunar eclipse, the sea tides take place and affect the life of aquatic creatures. On the other hand even the Moon affects the menstrual period of the ladies as per its brightness. If the positions of the Earth, the Moon and the Sun are able to do such wonders then the situations of the above said universal bodies at the time of birth at a particular date and place do certainly affect the life-circle of the particular person. This can be predicted well in advance by following certain rules and regulations prescribed in various ancient Indian Astrological books as well as in Western Astrological books. The perfection in calculations leads to perfection in the predictions regarding past, present and future of an individual in this world. There are various methodologies, beliefs about the prediction-systems but the system of calculations remains the same except for some basis like Sayana system and Nirayana system of planetary situations, differences in Ayanamsa-calculation etc. Since average human beings are more prone to the errors than the modern calculators / computers, that’s why we have combined the power of machines and the science of ancient astrological books to produce a much accurate system of horoscope-casting. Thereafter; we can predict the nature, health, wealth, service, miseries, happiness, married-life, profession, finance, family, losses, gains, diseases, ups and downs, relationships with relatives and society, longevity, kinds of acts, rewards or punishments, enemies, expenditure, etc. The Western astrology is based on the Sun while the Indian astrology is based on the Moon; reason being that the change in position of the Moon in relation to the Earth is very fast and changes in human-life are also very fast. Some people argue that predictions made by astrologers adversely affect the concerned people psychologically but logically it is not true. If a person have some disease then he consults a doctor for the treatment of the same and it depends upon the knowledge of the doctor that whether he is able to cure the same or not. Similarly, predictions caution the person well in advance & suggest the ways to overcome the hurdles; as per the knowledge and experience of an astrologer, so that the relevant person must be able to take suitable measures well in time because ‘precaution is better than cure’.

27/10/2023

I, Deshraj Agnihotri owner of अग्निहोत्री ज्योतिष, declare that the contents available on Facebook are my personal contents except which have been shared under any name. I instruct Meta and other Facebook users that I do not allow any content from my Facebook account to be used in any manner. Using any content or part thereof shall be considered a violation of my right to privacy & legal action shall be taken accordingly.

16/05/2023

◆◆◆◆ नीचगत् ग्रहों का जीवन में प्रभाव ◆◆◆◆◆

◆नीच चन्द्र :-
★जिनका जन्मकालीन चन्द्रमा 210° से लेकर 213° के बीच अर्थात् 7 राशियाँ पार करके आठवीं राशि में 0°-0'-1" से 3°-0'-0" के बीच हो उन्हें "नीच- चन्द्र " का फल मिलता है ।

★जातक अपने मन की आज्ञा अनुसार चलता है । परम् हितैषी द्वारा कही हित की बात भी उसे विष तुल्य प्रतीत होती है । भगवान में उसका मन नहीं लगता । भौतिक प्रपञ्चों में ही उसकी प्रवृत्ति होती है । कई बार ऐसे जातक नास्तिक प्रवृत्ति के होते हैं और विषय-भोगों में ही उनकी विशेष रुचि होती है । इनमें से कुछ लोग surgeon का कार्य बड़ी कुशलता से करते हैं । जातक स्त्रीवर्ग पर भी धन का बहुत अपव्यय करता है ।

◆ विशेष:-
★ १. यदि सूर्य अथवा गुरु, या दोनों ही जन्मकुंडली में उच्च राशियों एवम् शुभ भावों में स्थित हों और उनकी चन्द्र पर पूर्ण या ७५ % दृष्टि हो तो जातक स्वात्मा अथवा गुरु की शरण ग्रहण करता है एवम् अपने नीचस्थ चन्द्रमा के कुफलों से छुटकारा प्राप्त करता है ।
★ २. यदि नीच का चन्द्र, जन्मकुंडली के षष्टम् भाव में विराजमान हो तो जातक रोगों एवम् अशुभ भोगों से छुटकारा पाता है परन्तु अन्य अवगुण उसमें उपरोक्त अनुसार ही रहते हैं ... ।

● शेष शुभेच्छा ।
● ॐ स्मरण...

क्रमशः...

29/03/2023
27/03/2023

अन्तर्जले देवगृहे वल्मीके मूषकस्थले कृतशौच
अवशिष्टा न च ग्राह्य: पञ्च मृत्तिका: ।।वशिष्ठ० ६-१५।।

#आग्रह्य_मिट्टी
निम्न पाँच प्रकार की मिट्टी कहीं भी प्रयुक्त नहीं की जाती अर्थात् अग्राह्य है :-
(१) जल के अन्दर की मिट्टी,
(२) मन्दिर की मिट्टी,
(३) वल्मीक (बाॅम्बी) की मिट्टी,
(४) चूहों द्वारा एकत्र की गई मिट्टी,
(५) शौच के अवशिष्ट वाली मिट्टी। ।
संकलन कर्त्ता >Deshraj Agnihotri

🙏🙏 #सिद्ध_कुंजिका_स्तोत्र (विशेष)🙏🙏■ दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव...
27/03/2023

🙏🙏 #सिद्ध_कुंजिका_स्तोत्र (विशेष)🙏🙏

■ दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है । जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते उन्हें केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है । जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दु:ख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए । लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं,जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

■ सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की पाठ -विधि
*कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है । कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन है:-

*नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है । इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए । अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर के सामान्य पूजन करे ।
अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाएं और देवी को हलवे या मिष्ठान्न का नैवेद्य भेंट करें । इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, दक्षिणा रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें । यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें । यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है, इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें ।

■ ध्यान रखने योग्य आवश्यक बातें
*देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है । साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरुरी है । बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं । कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए, इसका उल्टा प्रभाव >पाठ करने वाले पर ही हो सकता है । साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें, मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं ।

■ क्यों करें पाठ
सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् का पाठ समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन करने, ऋण मुक्ति हेतु, बाधा नाश हेतु, उन्नति हेतु, विद्या लाभ, शारीरिक सुख, रोग नाश, यश, सौभाग्य, विजय प्राप्ति और मानसिक सुख ...आदि हेतु किया जाता है । श्री दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य इस जप से प्राप्त कर सकते हैं । यह सिद्ध कुंजी है । जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए, भगवती आपकी सर्वविध सहायता करेंगी ।

■ सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा
भगवान शिव कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन करने की आवश्यकता नहीं है, केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है । इसके पाठ मात्र से मारण (बुरी कामनाओं से मुक्ति), मोहन (सद्गुणों को आकर्षित करना), वशीकरण (इन्द्रियों को वश में करना), स्तम्भन (बाधाओं, शत्रु एवं रोगादि को रोक देना) और उच्चाटन (शत्रु को उसके दुष्ट कर्म से विमुख करना) आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है । इसमें स्वर, व्यंजन की ध्वनि, योग और प्राणायाम हैं ।

■ संक्षिप्त मंत्र
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ (सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है)

■ संपूर्ण मंत्र
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे । ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्ज़वल प्रज्ज़वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।

■ कैसे करें पाठ
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए । प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होगी ।
(क) सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें । मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें ।
(ख) जितने पाठ एक साथ ( 1, 3, 5, 7, 9, 11) कर सकें, उसका संकल्प करें । अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें । कभी एक, कभी दो, कभी तीन न रखें।
(ग) सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
(घ) अनार का भोग लगाएं, लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें ।
(च) सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है ।
(छ) सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय
रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम है । रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें ।
(ज) लाल आसन पर बैठकर पाठ करें ।
(झ) घी का दीपक दायीं तरफ और सरसों के तेल का दीपक बायीं तरफ रखें अर्थात दोनों दीपक जलाएं ।
(ट) प्रारंभ एवं अंत में निम्न मंत्र को एक-एक बार अवश्य मानसिक रूप से पढ़ें :-
ॐ विशुद्ध ज्ञान देहाय, त्रिवेदी दिव्य चक्षुषे ।
श्रेय प्राप्ति निमित्ताय, नमः सोमार्द्ध धारिणे ।।

■ किस इच्छा के लिए कितने पाठ :-
(1) विद्या प्राप्ति के लिए....पांच पाठ (अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
(2) यश-कीर्ति के लिए.... पांच पाठ (देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
(3) धन प्राप्ति के लिए....9 पाठ (सफेद तिल से अग्यारी करें)
(4) मुकदमे से मुक्ति के लिए...सात पाठ (पाठ के बाद एक नींबू काट दें । ध्यान रखें कि दो ही हिस्से हों और इन दोनों हिस्सों को बाहर अलग-अलग दिशा में फैंक दें)
(5) ऋण मुक्ति के लिए....सात पाठ ( जौ की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें, जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो >उसका बस ध्यान कर लें)
(6) घर की सुख-शांति के लिए...तीन पाठ (मीठा पान देवी को अर्पण करें)
(7) स्वास्थ्य के लिए...तीन पाठ (देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
(8) शत्रु से रक्षा के लिए... 3, 7 या 11 पाठ (लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
(9) रोजगार के लिए...3,5, 7 या 11पाठ (एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)
(10) सर्वबाधा शांति... तीन पाठ (लौंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लौंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें)

■ श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
शिव उवाच :-
■ शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभं भवेत् ॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न चैवर्चनम् ॥२॥
कुंजिका पाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमं ॥४॥
■ अथ् मन्त्रः
॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्जवल प्रज्जवल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

■ स्तोत्र
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी ॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे॥२॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तुते ॥३॥
चामुण्डा चण्डमुंडघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि॥ ४॥
धां धीं धूं धूर्जट: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥५॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥६॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥७॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥७॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥८॥

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥९॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥१०॥

इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे सिद्ध कुंजिकास्तोत्रं संपूर्ण:

◆सूर्य को अनुकूल करने हेतु पाँच सरल उपाय◆           (मात्र आपकी श्रद्धा पर आधारित)★जन्मकुण्डली में सूर्य-दोष से मिलने वा...
27/03/2023

◆सूर्य को अनुकूल करने हेतु पाँच सरल उपाय◆
(मात्र आपकी श्रद्धा पर आधारित)

★जन्मकुण्डली में सूर्य-दोष से मिलने वाले रोग, अपयश एवं असफलता से बचने हेतु एवं मान-सम्मान, आरोग्य, आत्मबल प्राप्त्यर्थ निम्न उपाय अपनाएँ :-

(1)● प्रतिदित सुबह स्नानोपरान्त यथासम्भव सूर्योदय काल में सूर्य को >ताँबे के कलश से रक्त चंदन मिश्रित या लाल कनेर पुष्प युक्त या शक्कर युक्त अथवा तीनों या दो चीजों युक्त जल से "ॐ भुवनेश्वरी सहित घृणि: सूर्योsव्यानं आदित्त्यं ह्रीं चंद्रबिम्बं विंशदाद्यं वैवस्वतं नमो नम:" अथवा "ॐ भुवनेश्वराय नमो नमः" मंत्र को मन में बोलते हुए अर्घ्य दें ।

(2)● सूर्य प्रतिमा को लाल चंदन लगाकर इस सूर्य मंत्र का स्मरण करें या आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करें :-
"ॐ रश्मिमते समुद्यते देवासुर-नमस्कृते
विवस्वते भास्कराय भुवनेश्वराय नमो नमः ।।"

(3)● सूर्यदेव का ध्यान करते हुए लाल चंदन का तिलक प्रतिदिन स्नानोपरान्त अपने मस्तक पर लगाएँ ।

(4)● सूर्य से शुभ फल प्राप्त्यर्थ ताँबे का कड़ा रवि-पुष्य योग में अपने दाएँ हाथ में पहनें और उसको स्वयं हाथ से न उतारें ।

(5)● बछड़े वाली देशी गाय को रविवार को पानी में श्रद्धानुसार गेहूँ के दाने भिगोकर खिलाएँ अथवा शक्कर युक्त सतनाज़े का पेड़ा बछड़े एवं गाय दोनों को खिलाएँ ।

● शेष शुभेच्छा ।
● ॐ स्मरण...

25/07/2022

शिव षडक्षर स्तोत्रम् : ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥१॥ oṃkāraṃ biṃdus...

25/07/2022

🙏🙏🙏 कुंडली जीवित या मृतक की 🙏🙏🙏

अधिकतर ऐसा देखा गया है कि ज्योतिषी की परीक्षा के लिए लोग मृतक व्यक्ति की कुंडली दिखाकर पण्डित को बुद्धू बनाते हैं । ऐसी स्थिति मे यदि प्रश्नकर्ता पर सन्देह हो तो पहले कुंडली की परीक्षा कर लेवें ।

नियम
जन्म लग्न की राशि संख्या
लग्न से अष्टम राशि संख्या एवम्
प्रश्न लग्न की राशि संख्या (जिस समय कुंडली देखे उस समय जो लग्नस्थ राशि हो)
तीनों को एक साथ जोड़कर
जन्म के अष्टमेश स्थित राशि संख्या से गुना करने पर जो मिले
उसमें जन्म लग्नेश की राशि संख्या से भाग देने पर
यदि सम अंक शेष बचे तो मृतक की, विषम अंक शेष बचे तो जीवित की कुंडली होती है ।

उदाहरण~
किसी दिन 8:30am पर प्रश्न हुआ और उस समय पञ्चाङ्ग में 4 लग्न है !
जातक की जन्मलग्न राशि 3, अष्टम राशि 10, प्रश्न लग्न 4 , जन्म का अष्टमेश 8 राशि मे है ।
जन्म लग्नेश बुध 3 राशि मे है ।
अतः 3+10+4=17×8=136÷3
शेष 1 बचा जो कि विषम है । अतः यह कुंडली जीवित व्यक्ति की है ।

07/07/2022

||ॐ || सहस्र शीर्षं देवं विश्वाक्षं विश्वशंभुवम् ।
विश्वै नारायणं देवं अक्षरं परमं पदम् ॥

विश्वतः परमान्नित्यं विश्वं नारायणं हरिम् ।
विश्वं एव इदं पुरुषः तद्विश्वं उपजीवति ॥

पतिं विश्वस्य आत्मा ईश्वरं शाश्वतं शिवमच्युतम् ।
नारायणं महाज्ञेयं विश्वात्मानं परायणम् ॥

नारायण परो ज्योतिरात्मा नारायणः परः ।
नारायण परं ब्रह्म तत्त्वं नारायणः परः ।
नारायण परो ध्याता ध्यानं नारायणः परः ॥

यच्च किंचित् जगत् सर्वं दृश्यते श्रूयतेऽपि वा ।
अंतर्बहिश्च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ॥

अनन्तं अव्ययं कविं समुद्रेन्तं विश्वशंभुवम् ।
पद्म कोश प्रतीकाशं हृदयं च अपि अधोमुखम् ॥
अधो निष्ठ्या वितस्त्यान्ते नाभ्याम् उपरि तिष्ठति ।
ज्वालामालाकुलं भाती विश्वस्यायतनं महत् ॥

सन्ततं शिलाभिस्तु लम्बत्या कोशसन्निभम् ।
तस्यान्ते सुषिरं सूक्ष्मं तस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम् ॥

तस्य मध्ये महानग्निः विश्वार्चिः विश्वतो मुखः ।
सोऽग्रविभजंतिष्ठन् आहारं अजरः कविः ॥

तिर्यगूर्ध्वमधश्शायी रश्मयः तस्य सन्तता ।
सन्तापयति स्वं देहमापादतलमास्तकः ।
तस्य मध्ये वह्निशिखा अणीयोर्ध्वा व्यवस्थिताः ॥

नीलतोयद-मध्यस्थ-द्विद्युल्लेखेव भास्वरा ।
नीवारशूकवत्तन्वी पीता भास्वत्यणूपमा ॥
तस्याः शिखाया मध्ये परमात्मा व्यवस्थितः ।
स ब्रह्म स शिवः स हरिः स इन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट् ॥

ऋतं सत्यं परं ब्रह्म पुरुषं कृष्ण पिङ्गलम् ।
ऊर्ध्वरेतं विरूपाक्षं विश्वरूपाय वै नमो नमः ॥

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥

ॐ शांति शांति शांतिः

30/06/2022

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये

#हमारे_धर्म_की_विशेषता

24/06/2022
●●●श्री सूर्य-कवच (आरोग्य एवम् विजय प्राप्त्यार्थ)●●●● अथ् विनियोग :-ॐ अस्य श्री सूर्य-कवचस्य ब्रह्मा ऋषि: , अनुष्टप् छन...
23/05/2022

●●●श्री सूर्य-कवच (आरोग्य एवम् विजय प्राप्त्यार्थ)●●●

● अथ् विनियोग :-
ॐ अस्य श्री सूर्य-कवचस्य ब्रह्मा ऋषि: , अनुष्टप् छन्दः , श्री सूर्यो देवता: । आरोग्य च विजय प्राप्त्यर्थं , sहम् ----- , पुत्रो श्री ----- , पौत्रो श्री --------- ,--------गोत्रे जन्मौ , श्रीसूर्य-कवच-पाठे विनियोगः ~ ~ ~।

◆ अर्थ एवं विधान :-
(अपने शुद्ध दाएँ हाथ में आचमनी में जल भरकर लें , बाएँ हाथ से दायीं भुजा को स्पर्श करते हुए निम्न प्रकार से विनियोग करें )

"इस श्री सूर्य कवच के ऋषि ब्रह्मा हैं, छन्द अनुष्टुप् है एवं श्री सूर्य देवता हैं । आरोग्य एवम् विजय की प्राप्ति हेतु मैं ---- पुत्र श्री ---- पौत्र श्री----- ------गोत्र में जन्मा हुआ~ श्री सूर्य -कवच के पाठ के निमित्त स्वयं को नियोजित करता हूँ " ~

(~ ऐसा कहकर आचमनी के जल को~ हाथ को सीधा अर्थात् ऊपर की ओर रखते हुए ही~तीन बार थोड़ा-थोड़ा करके पृथ्वी पर छोड़ दें । उसके बाद निम्नलिखित श्री सूर्य कवच का अपने अभीष्ट अंगों को स्पर्श करते हुए जाप करें ।)

● अथ् श्री सूर्य-कवचं :-
★(१) प्रणवो मे शिरं पातु , घृणि: मे पातु भालकं ।।
सूर्योsव्यान नयनद्वन्दम् , आदित्य कर्णयुग्मकं ।।

अर्थ :-
मैं प्रणव को अपने शिर , घृणि को मस्तक , अव्यय सूर्य को दोनों नेत्रों एवम् आदित्य को दोनों कानों में धारण (प्रतिष्ठित) करता हूँ ।

★ (२) ह्रीं बीजम् मे मुखम् पातु , हृदयम् भुवनेश्वरी ।।
चंद्रबिम्बं विंशदाद्यम् पातु मे गुह्यदेशकम् ।।
शीर्षादि पादपर्यन्तम् सदा पातु वैवस्वत मनुत्तमः।।

अर्थ :-
मेरे मुख में ह्रीं बीज , हृदय में भुवनेश्वरी , कँ खँ गँ घँ चँ छँ जँ झँ टँ ठँ डँ ढँ तँ थँ दँ धँ पँ फँ बँ भँ आदि मेरे गुह्यदेश में ~ और शिर से पैरों तक मनुश्रेष्ठ श्री वैवस्वत जी सदैव विराजमान रहें ।

● विशेष :-
शुद्ध सूती अथवा ऊनी आसन पर पूर्वाभिमुख होकर ~प्रातःकाल इस कवच का प्रतिदिन कम से कम एक बार जाप अवश्य करना चाहिए ।

● ॐ स्मरण...

27/03/2022

■■ आजमाएँ और लाभ उठाएँ ■■

कृपया नीचे लिखी चीजें इकट्ठी मिक्स करके पेस्ट बनाएं :-

◆नीम के नव पल्लव (पत्ते),
◆काली मिर्च के 7 दाने,
◆कुछ आम के पुष्प-अंकुर,
◆तुलसी के 4 पत्ते,
◆शहद या गुड़ या शर्करा,
◆गंगाजल की 5-7 बूंदें,
◆शुद्ध जल ।

नव संवत्सर के प्रथम/तृतीय/पांचवें दिन अथवा वैसाखी वाले दिन प्रातःकाल मुख कुल्ला करके अथवा स्नानादि के बाद उपरोक्त पेस्ट की 5-7 ग्राम की एक गोली प्रत्येक सदस्य निराहार ग्रहण करें, ऊपर से थोड़ा सा पानी पी सकते हैं~ भोजन आधा घण्टा बाद करें ।

◆इस बार नव संवत्सर २०७९ विक्रमी, 2 अप्रैल 2022 को एवं वैसाख संक्रांति 14 अप्रैल 2022 को हैं और इनमें से कोई भी एक मुहूर्त्त उपरोक्त प्रयोग हेतु शुभ है ।

◆इस प्रयोग से लगभग एक वर्ष तक ज्वर-पीड़ा नहीं सताएगी । आजमाएँ, लाभ उठाएँ एवं अपने अनुभव वर्ष के अन्त में साँझा करें जी ।

● शेष शुभेच्छा ।
● ॐ स्मरण...

19/02/2022

16 श्रृंगार उसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
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हिन्दू महिलाओं के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है। विवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है। हर स्त्री चाहती थी की वे सज धज कर सुन्दर लगे यह उनके रूप को ओर भी अधिक सौन्दर्यवान बना देता है।

सोलह श्रृंगार के बार मे विस्तृत वर्णन।

पहला श्रृंगार: बिंदी👇
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संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है। भवों के बीच रंग या कुमकुम से लगाई जाने वाली भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना जरूरी समझती हैं। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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बिंदी को त्रिनेत्र का प्रतीक माना गया है. दो नेत्रों को सूर्य व चंद्रमा माना गया है, जो वर्तमान व भूतकाल देखते हैं तथा बिंदी त्रिनेत्र के प्रतीक के रूप में भविष्य में आनेवाले संकेतों की ओर इशारा करती है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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विज्ञान के अनुसार, बिंदी लगाने से महिला का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है. यह महिला को आध्यात्मिक बने रहने में तथा आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने में सहायक होता है. बिंदी आज्ञा चक्र को संतुलित कर दुल्हन को ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक होती है।

दूसरा श्रृंगार: सिंदूर👇
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उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है और विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, सौभाग्यवती महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर भरती है. लाल सिंदूर महिला के सहस्रचक्र को सक्रिय रखता है. यह महिला के मस्तिष्क को एकाग्र कर उसे सही सूझबूझ देता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर महिलाओं के रक्तचाप को नियंत्रित करता है. सिंदूर महिला के शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर उसे ठंडक देता है और शांत रखता है।

तीसरा श्रृंगार: काजल👇
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काजल आँखों का श्रृंगार है. इससे आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन और उसके परिवार को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नज़र का कुप्रभाव नहीं पड़ता. काजल से आंखों से संबंधित कई रोगों से बचाव होता है. काजल से भरी आंखें स्त्री के हृदय के प्यार व कोमलता को दर्शाती हैं।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, काजल आंखों को ठंडक देता है. आंखों में काजल लगाने से नुक़सानदायक सूर्य की किरणों व धूल-मिट्टी से आंखों का बचाव होता है।

चौथा श्रृंगार: मेहंदी👇
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मेहंदी के बिना सुहागन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। शादी के वक्त दुल्हन और शादी में शामिल होने वाली परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने पैरों और हाथों में
मेहंदी रचाती है। ऐसा माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मानयताओं के अनुसार, मेहंदी का गहरा रंग पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम से संबंध रखता है. मेहंदी का रंग जितना लाल और गहरा होता है, पति-पत्नी के बीच प्रेम उतना ही गहरा होता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मेहंदी दुल्हन को तनाव से दूर रहने में सहायता करती है. मेहंदी की ठंडक और ख़ुशबू दुल्हन को ख़ुश व ऊर्जावान बनाए रखती है।

पांचवां श्रृंगारः शादी का जोड़ा👇
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उत्तर भारत में आम तौर से शादी के वक्त दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा (घाघरा, चोली और ओढ़नी) पहनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में फेरों के वक्त दुल्हन को पीले
और लाल रंग की साड़ी पहनाई जाती है। इसी तरह महाराष्ट्र में हरा रंग शुभ माना जाता है और वहां शादी के वक्त दुल्हन हरे रंग की साड़ी मराठी शैली में बांधती हैं।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लाल रंग शुभ, मंगल व सौभाग्य का प्रतीक है, इसीलिए शुभ कार्यों में लाल रंग का सिंदूर, कुमकुम, शादी का जोड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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विज्ञान के अनुसार, लाल रंग शक्तिशाली व प्रभावशाली है, इसके उपयोग से एकाग्रता बनी रहती है. लाल रंग आपकी भावनाओं को नियंत्रित कर आपको स्थिरता देता है।

छठा श्रृंगार: गजरा👇
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दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार फीका सा लगता है। दक्षिण भारत में तो सुहागिन स्त्रियां प्रतिदिन अपने बालों में हरसिंगार के फूलों का गजरा लगाती है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, गजरा दुल्हन को धैर्य व ताज़गी देता है. शादी के समय दुल्हन के मन में कई तरह के विचार आते हैं, गजरा उन्हीं विचारों से उसे दूर रखता है और ताज़गी देता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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विज्ञान के अनुसार, चमेली के फूलों की महक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. चमेली की ख़ुशबू तनाव को दूर करने में सबसे ज़्यादा सहायक होती है।

सातवां श्रृंगार: मांग टीका👇
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मांग के बीचों-बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता
है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, मांगटीका महिला के यश व सौभाग्य का प्रतीक है. मांगटीका यह दर्शाता है कि महिला को अपने से जुड़े लोगों का हमेशा आदर करना है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मांगटीका महिलाओं के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे उनकी सूझबूझ व निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।

आठवां श्रृंगारः नथ👇
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विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि में चारों ओर सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि सुहागिन स्त्री के नथ पहनने से पति के स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है। उत्तर भारतीय स्त्रियां आमतौर पर नाक के बायीं ओर ही आभूषण पहनती है, जबकि दक्षिण
भारत में नाक के दोनों ओर नाक के बीच के हिस्से में भी छोटी-सी नोज रिंग पहनी जाती है, जिसे बुलाक कहा जाता है। नथ आकार में काफी बड़ी होती है इसे हमेशा पहने रहना असुविधाजनक होता है, इसलिए सुहागन स्त्रियां इसे शादी-व्याह और तीज-त्यौहार जैसे खास अवसरों पर ही पहनती हैं, लेकिन सुहागिन स्त्रियों
के लिए नाक में आभूषण पहनना अनिर्वाय माना जाता है। इसलिए आम तौर पर स्त्रियां नाक में छोटी नोजपिन पहनती हैं, जो देखने में लौंग की आकार का होता है।
इसलिए इसे लौंग भी कहा जाता है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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हिंदू धर्म में जिस महिला का पति मृत्युथ को प्राप्त हो जाता है, उसकी नथ को उतार दिया जाता है। इसके अलावा हिंदू धर्म के अनुसार नथ को माता पार्वती को सम्मान देने के लिये भी पहना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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जिस प्रकार शरीर के अलग-अलग हिस्सों को दबाने से एक्यूप्रेशर का लाभ मिलता है, ठीक उसी प्रकार नाक छिदवाने से एक्यूपंक्चर का लाभ मिलता है। इसके प्रभाव से श्वास संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। कफ, सर्दी-जुकाम आदि रोगों में भी इससे लाभ मिलते हैं। आयुर्वेद के अनुसार नाक के एक प्रमुख हिस्से पर छेद करने से स्त्रियों को मासिक धर्म से जुड़ी कई परेशानियों में राहत मिल सकती है। आमतौर पर लड़कियां सोने या चांदी से बनी नथ पहनती हैं। ये धातुएं लगातार हमारे शरीर के संपर्क में रहती हैं तो इनके गुण हमें प्राप्त होते हैं। आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म और रजत भस्म बहुत सी बीमारियों में दवा का काम करती है।

नौवां श्रृंगारः कर्णफूल👇
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कान में पहने जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है। विवाह के बाद स्त्रियों का कानों में कणर्फूल (ईयरिंग्स) पहनना जरूरी समझा जाता है।
इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को दूसरों की, खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, कर्णफूल यानी ईयररिंग्स महिला के स्वास्थ्य से सीधा संबंध रखते हैं. ये महिला के चेहरे की ख़ूबसूरती को निखारते हैं. इसके बिना महिला का शृंगार अधूरा रहता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्णपाली (ईयरलोब) पर बहुत से एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिन पर सही दबाव दिया जाए, तो माहवारी के दिनों में होनेवाले दर्द से राहत मिलती है. ईयररिंग्स उन्हीं प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव डालते हैं. साथ ही ये किडनी और मूत्राशय (ब्लैडर) को भी स्वस्थ बनाए रखते हैं।

दसवां श्रृंगार: हार या मंगल सूत्र👇
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गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है। हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हैं। गले
और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। इसी हार को सौंदर्य का रूप दे दिया गया है और श्रृंगार
का अभिन्न अंग बना दिया है। दक्षिण और पश्चिम भारत के कुछ प्रांतों में वर द्वारा वधू के गले में मंगल सूत्र पहनाने की रस्म की वही अहमियत है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित कर महिला के दिमाग़ और मन को शांत रखता है. मंगलसूत्र जितना लंबा होगा और हृदय के पास होगा वह उतना ही फ़ायदेमंद होगा. मंगलसूत्र के काले मोती महिला की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूत करते हैं।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलसूत्र सोने से निर्मित होता है और सोना शरीर में बल व ओज बढ़ानेवाली धातु है, इसलिए मंगलसूत्र शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकता है।

ग्यारहवां श्रृंगारः बाजूबंद👇
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कड़े के सामान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बाहों में पूरी तरह कसा जाता है। इसलिए इसे बाजूबंद कहा जाता है। पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना
जाता था और यह सांप की आकृति में होता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती और बुराई पर अच्छाई की जीत होती
है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद महिलाओं के शरीर में ताक़त बनाए रखने व पूरे शरीर में उसका संचार करने में सहायक होता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद बाजू पर सही मात्रा में दबाव डालकर रक्तसंचार बढ़ाने में सहायता करता है।

बारहवां श्रृंगार: कंगन और चूड़ियां👇
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सोने का कंगन अठारहवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों से ही सुहाग का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी
बड़ी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुख और सौभाग्यवती बने रहने का आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती थी, जो पहली बार ससुराल आने पर उसे उसकी सास ने
उसे दिये थे। इस तरह खानदान की पुरानी धरोहर को सास द्वारा बहू को सौंपने की परंपरा का निर्वाह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। पंजाब में स्त्रियां कंगननुमा डिजाइन का एक विशेष पारंपरिक आभूषण पहनती
है, जिसे लहसुन की पहुंची कहा जाता है। सोने से बनी इस पहुंची में लहसुन की कलियां और जौ के दानों जैसे आकृतियां बनी होती है। हिंदू धर्म में मगरमच्छ,
हांथी, सांप, मोर जैसी जीवों का विशेष स्थान दिया गया है। उत्तर भारत में ज्यादातर स्त्रियां ऐसे पशुओं के मुखाकृति वाले खुले मुंह के कड़े पहनती हैं, जिनके
दोनों सिरे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। पारंपरिक रूप से ऐसा माना जात है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी हानी चाहिए। यहां तक की सुहागन
स्त्रियां चूड़ियां बदलते समय भी अपनी कलाई में साड़ी का पल्लू कलाई में लपेट लेती हैं ताकि उनकी कलाई एक पल को भी सूनी न रहे। ये चूड़ियां आमतौर पर
कांच, लाख और हांथी दांत से बनी होती है। इन चूड़ियों के रंगों का भी विशेष महत्व है। नवविवाहिता के हाथों में सजी लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती
हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है। होली के अवसर पर पीली या बंसती रंग की चूड़ियां पहनी जाती है, तो सावन में तीज के मौके पर हरी और धानी चूड़ियां पहनने का रीवाज सदियों से चला आ रहा है। विभिन्न राज्यों में विवाह के मौके पर अलग-अलग रंगों की चूड़ियां पहनने की प्रथा है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियां पति-पत्नी के भाग्य और संपन्नता की प्रतीक हैं. यह भी मान्यता है कि महिलाओं को पति की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमेशा चूड़ी पहनने की सलाह दी जाती है. चूड़ियों का सीधा संबंध चंद्रमा से भी माना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियों से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि महिलाओं की हड्डियों को मज़बूत करने में सहायक होती है. महिलाओं के रक्त के परिसंचरण में भी चूड़ियां सहायक होती हैं।

तेरहवां श्रृंगार: अंगूठी👇
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शादी के पहले मंगनी या सगाई के रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। सीता का हरण करके रावण ने जब सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के माध्यम से सीता जी को अपना संदेश भेजा था। तब स्मृति चिन्ह के रूप में उन्होंनें अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी थी।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, अंगूठी पति-पत्नी के प्रेम की प्रतीक होती है, इसे पहनने से पति-पत्नी के हृदय में एक-दूसरे के लिए सदैव प्रेम बना रहता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, अनामिका उंगली की नसें सीधे हृदय व दिमाग़ से जुड़ी होती हैं, इन पर प्रेशर पड़ने से दिल व दिमाग़ स्वस्थ रहता है।

चौदहवां श्रृंगार: कमरबंद👇
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कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती हैं, इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई पड़ती है। सोने या
चांदी से बने इस आभूषण के साथ बारीक घुंघरुओं वाली आकर्षक की रिंग लगी होती है, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने
घर की स्वामिनी है।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, महिला के लिए कमरबंद बहुत आवश्यक है. चांदी का कमरबंद महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं को माहवारी तथा गर्भावस्था में होनेवाले सभी तरह के दर्द से राहत मिलती है. चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं में मोटापा भी नहीं बढ़ता।

पंद्रहवाँ श्रृंगारः बिछुवा👇
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पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कह जाता है। पारंपरिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण में छोटा सा शीशा लगा होता है, पुराने जमाने में संयुक्त परिवारों में नववधू सबके सामने पति के सामने देखने में भी सरमाती थी। इसलिए वह नजरें झुकाकर चुपचाप आसपास खड़े पति की सूरत को इसी शीशे में निहारा करती थी पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का विछुआ पहना जाता है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पेर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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महिलाओं के लिए पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनना शुभ व आवश्यक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि बिछिया पहनने से महिलाओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में संपन्नता बनी रहती है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं के पैरों की उंगलियों की नसें उनके गर्भाशय से जुड़ी होती हैं, बिछिया पहनने से उन्हें गर्भावस्था व गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है. बिछिया पहनने से महिलाओं का ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है।

सोलहवां श्रृंगार: पायल👇
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पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है। पुराने जमाने में पायल की झंकार से घर के
बुजुर्ग पुरुष सदस्यों को मालूम हो जाता था कि बहू आ रही है और वे उसके रास्ते से हट जाते थे। पायल के संबंध में एक और रोचक बात यह है कि पहले छोटी उम्र में ही लड़िकियों की शादी होती थी। और कई बार जब नववधू को माता-पिता की याद आती थी तो वह चुपके से अपने मायके भाग जाती थी। इसलिए नववधू के पैरों में ढेर सारी घुंघरुओं वाली पाजेब पहनाई जाती थी ताकि जब वह घर से भागने लगे तो उसकी आहट से मालूम हो जाए कि वह कहां जा रही है पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते
हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवी-लक्ष्मी का अपमान होता हैं।

धार्मिक मान्यता🙏🏻
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मान्यताओं के अनुसार, महिला के पैरों में पायल संपन्नता की प्रतीक होती है. घर की बहू को घर की लक्ष्मी माना गया है, इसी कारण घर में संपन्नता बनाए रखने के लिए महिला को पायल पहनाई जाती है।

वैज्ञानिक मान्यता💥
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वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी की पायल महिला को जोड़ों व हड्डियों के दर्द से राहत देती है. साथ ही पायल के घुंघरू से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है।
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