28/05/2021
स्वास्थ्य विज्ञान एवं आयुर्वेद:
इसमें कभी कोई शक नहीं किया जा सकता है। कि,आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। इसमें दवा के साथ सर्जरी का प्रावधान भी था। लेकिन समयान्तराल में ज्ञान-विज्ञान की कुछ कड़ियाँ टूटने पर तकनीक विलुप्त हो जाती हैं। विलुप्त हो चुकी कड़ियों को विकसित करने और उन्हें आपस में जोड़ने पर किसी भी व्यवस्था को पुनः सक्रिय किया जा सकता है।
पूरी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति, हर्बल्स,खनिज,भस्म,जैव अवशेषों एवं प्राकृतिक उत्पादों पर आधारित है। जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति ऐलाॅपैथी की अधिकांशतः दवायें संश्लेषित विधियों से तैयार की जाती हैं। संबंधित तत्वों को अधिकतर कैल्शियम के पेस्ट में प्रवाहित करके टेबलेट्स तैयार की जाती हैं।
जब शारीरिक व्याधियों को नष्ट करने वाले गुण प्राकृतिक पदार्थों में ही उपलब्ध हैं। तब उनका उपयोग करते हुए शरीर में संबंधित तत्वों की आपूर्ति क्यों नहीं की जा सकती है?
क्या शारीरिक तत्वों की आपूर्ति केवल संश्लेषित विधि से तैयार की गयी मेडीसिन से ही की जा सकती है?
आधुनिकता की चकाचौंध में लोग विज्ञान एवं वैज्ञानिक थ्योरी से ही भ्रमित हैं। विज्ञान कोई विशेष प्रकार का पदार्थ नहीं होता है। बल्कि विज्ञान एक धारणा होती है। जो तत्व एवं यौगिक पदार्थों की संरचना, प्राकृतिक गुण, उन पर तापमान का प्रभाव और उनकी उपयोगिता के सिद्धांतों पर विकसित होती है। प्रत्येक सिद्धांत के मूल में एक दर्शन होता है।
यह आवश्यक नहीं है कि उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करने वाले ही वैज्ञानिक हो सकतें हैं।यह कटु सत्य है कि एक दार्शनिक अवश्य ही वैज्ञानिक होता है।
जब शब्द और भाषाओं से आगे बढ़ कर मन, गति और ध्वनि के सिद्धांत भी विज्ञान की श्रेणियों में आते हैं। तब इस प्रकार के कौन से यौगिक पदार्थ हैं। जिनमें तत्वों की परमाणु संरचनायें नहीं पायी जातीं हैं।
कर्णप्रिय ध्वनियों के द्वारा मानसिक अवस्थाओं को बदला जा सकता है। और स्वस्थ मन का शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
biochemistry के सिद्धांतों पर तत्वों के जैविक प्रभाव के आधार पर दवाओं का निर्माण किया जाता है।
उदाहरण के लिए:
यदि किसी के शरीर को प्रोटीन की आवश्यकता है।
1. प्रोटीन अंकुरित अनाजों, दालों, दूध, पनीर, मटर, और अनेक सब्जियों में पाया जाता है।
2. प्रोटीन अंडा, मछली, मांस में भी पाया जाता है।
3. और प्रोटीन गधा के पेशाब में भी पाया जाता है।
4. प्रोटीनयुक्त केमिकल्स को संश्लेषित करके भी प्रोटीन प्राप्त किया जा सकता है।
यह प्रोटीन बनाने वाली फार्मा कंपनी तय करतीं हैं कि उन्हें प्रोटीन कौन से स्रोतों से प्राप्त करना है।
मानवीय सभ्यता काल में जितने भी मसाले और herbs विकसित हुये हैं। वे सभी दवाओं के रूप में विकसित हुये हैं।और herbs में सभी व्याधियों को नियंत्रित करने की क्षमता विद्यमान हैं। लेकिन यह तभी संभव है।जब दृष्टिकोण वैज्ञानिक होता है। व्यापारिक दृष्टिकोण सिर्फ अपना माल बेचने के लिए दूसरे उत्पादों में दोषारोपण करते हैं।
अब प्रोटीन तो प्रोटीन ही होता है। जो जंतुओं के DNA और वनस्पतियों में RNA के निर्माण का मुख्य घटक होता है।