Handyman Travels

Handyman Travels Handyman Travels is based at Lala Ka Bazaar, Meerut, established by Mr. Ravi Mohan Agrawal. We specialize in student's group tours, both outbound & inbound.
(1)

Our aim is utmost satisfaction of everyone. Now we have added selling Cactuses & Succulents.

I couldn't stop laughing! She's an Army wife.https://youtu.be/048Gk2lwBhwShe’s superb 👌🏼👌🏼My kids say she reminds em of ...
04/05/2023

I couldn't stop laughing!
She's an Army wife.

https://youtu.be/048Gk2lwBhw

She’s superb 👌🏼👌🏼

My kids say she reminds em of ME 🤪🤪🤣🤣

My name is Harpriya Bains. I am a stand-up comedian based out of Delhi. I have been doing Stand up for the last 5 years. This is my first YouTube Video and m...

वर्ष 1979 में जाधव 10 वीं की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे...
04/05/2023

वर्ष 1979 में जाधव 10 वीं की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे।

तभी उनकी नजर लगभग 100 मृत सांपों के विशाल गुच्छे पर पड़ी। आगे बढ़ते गए तो पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव जन्तुओं से अटा पड़ा एक मरघट सा था। मृत जानवरों के शव के कारण पैर रखने की जगह नही थी। इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने जाधव के किशोर मन को झकझोर दिया।
हज़ारो की संख्या में निर्जीव जीव जन्तुओ की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात सोने न दिया। गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़ पौधे ही नही उग रहे हैं, तो नदी के रेतीले तटों पर जानवरों को बाढ़ से बचने का आश्रय कहाँ मिले? जंगलों के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले? बात जाधव के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने होंगे।

50 बीज और 25 बांस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने। ये आज से 35 साल पुरानी बात है। उस दिन का दिन था और आज का दिन, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इन 35 सालों में जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला।

क्या आप भरोसा करेंगे कि एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर,100 से ज्यादा हिरन, जंगली सुअर, 150 जंगली हाथियों का झुण्ड, गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे हैं, अरे हाँ सांप भी जिसने इस अद्भुत नायक को जन्म दिया।
जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाने सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साइकल से जाने के बाद, नदी पार करते और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साइकल से 5 किलोमीटर तय कर घर पहुँचते। इनके लगाये पेड़ो में कटहल, गुलमोहर, अन्नानाश, बांस, साल, सागौन, सीताफल, आम, बरगद, शहतूत, जामुन, आडू और कई औषधीय पौधे हैं। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर दिखाने वाले साधक से महज़ पांच साल पहले तक देश अनजान था।

यह लौहपुरुष अपने धुन में अकेला आसाम के जंगलो में साइकिल में पौधो से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में गुमनाम सफर कर रहा था। सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्ड फोटोग्राफर “ #जीतू_कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “The Molai Forest” यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी। दूसरी फिल्म #आरती_श्रीवास्तव की “ ” जिसमें जाधव की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं और परेशानियों को दिखाया। तीसरी फिल्म “ ” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गई।

एक अकेले व्यक्ति ने वन विभाग की मदद के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर इतने पिछड़े इलाके से कि जिसके पास पहचान पत्र के रूप में “राशन कार्ड” तक नहीं है, ने हज़ारो एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया। जानने वाले सकते में आ गए उनके नाम पर आसाम के इन जंगलो को “मिशिंग जंगल” कहते हैं (जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से हैं)। जीवन यापन करने के लिए इन्होने गाय पाल रखी हैं। शेरों द्वारा आजीविका के साधन उनके पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई। शेरों ने मेरा नुकसान किया क्योंकि वो अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नहीं जानते।

आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे। एक साल पहले महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत होने वाले जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी में दिनचर्या लीन हैं। तमाम सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के नाम पर लाखो रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण, वन-विभाग वो मुकाम हासिल न कर पाये जो एक अकेले की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया। साइकिल पर जंगली पगडंडियों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी-भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी।

कभी कभी “अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है।”

Girishchandra Pokhriyal की पोस्ट से साभार

#रिपोस्ट

04/05/2023
04/05/2023
04/05/2023

अधिकांशतः मुस्लिम बडे-बडे मंचों पर एक विशेष एजेंडा के अन्तर्गत अपने समुदाय के साथ भेदभाव, व प्रतिनिधित्व न मिलने की आवाज उठाते है, अमेरिका मे भी एक मुस्लिम युवती ने एक मंच पर अपने तय ऐजेंडे के अन्तर्गत ऐसी ही आवाज उठायी वहा उसे क्या जबाब मिला जरा सुनिये ...👌👌👌✅✅✅💯💯💯.
⬇⬇

इस फोटो के चारों तरफ तीन घेरे बने हुए हैं जो सबसे पहला घेरा है उसमें 27 नक्षत्रों के नाम हैं और उनकी पोधो के भी नाम साथ ...
03/05/2023

इस फोटो के चारों तरफ तीन घेरे बने हुए हैं जो सबसे पहला घेरा है उसमें 27 नक्षत्रों के नाम हैं और उनकी पोधो के भी नाम साथ में लिखे हुए हैं।

दूसरे घेरे में 12 राशियों के नाम लिखे हुए हैं साथ में उनके पौधों के नाम भी लिखे हुए हैं।

तीसरे गहरे में नौ ग्रहों के नाम लिखे हुए हैं और उनसे संबंधित पेड़ पौधों के नाम भी लिखे हुए हैं।

जहां पर पेड़ पौधे जड़ी बूटियां वृक्ष का नाम लिखा हुआ है तो उन में उन नक्षत्रों का या उन राशियों का या उन ग्रहों का वास होता है यदि हम उन पर पौधों जड़ी बूटियों या वृक्षों की पूजा करते हैं या उनको हम रतन की तरह धारण करते हैं तब भी हमें वह जड़ी बूटियां पेड़ पौधे वृक्ष लाभ प्रदान करते हैं। 🙏

03/05/2023

जल संदेश...

02/05/2023

दुनिया के सबसे खतरनाक कमांडो उसमें से एक भारतीय कमांडो *मार्कोस* कुछ विवरण इनके बारे में जानिए इस वीडियो में।

.          🔴 ाहुबली_का_स्मरण🔴1699 में जब पिता दशमेश ने 'खालसा' सजाई थी तो उसके साथ विजय हुंकार करते हुए कहा था "राज करेग...
02/05/2023

. 🔴 ाहुबली_का_स्मरण🔴

1699 में जब पिता दशमेश ने 'खालसा' सजाई थी तो उसके साथ विजय हुंकार करते हुए कहा था "राज करेगा खालसा, आकि रहे न कोई"।

पिता दशमेश के इस "जयघोष" के संकल्प को मूर्त रूप देने को प्रस्तुत हुए "बाबा बंदा सिंह बहादुर" और "हरिसिंह नलवा"।

एक ने उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से जो 'देबबंद' से शुरू होकर 'कश्मीर' तक जाता था, वहां के हिन्दुओं को अभय दिया तो दूसरे ने पंजाब के बाद पेशावर तक के हिन्दू और सिखों को अपनी सुरक्षा छाया में निर्भय कर दिया।

💥 "पिता दशमेश" की आकांक्षा को पूर्ण करने वाला एक "संन्यासी" था और दूसरा "क्षत्रिय सिख" जिसने "गुरदयाल उप्पल" और "धर्मा कौर" के घर जन्म लिया था और बड़े सामान्य परिवार में जन्मा ये वीर अपनी योग्यता से केवल 14 साल की उम्र में "धर्म के सूर्य" सम्राट रणजीत सिंह की आँखों का ऐसा तारा बन गया था कि महाराज उसके बिना रह ही नहीं पाते थे।

पूर्ण वैदिक और पूर्ण पौराणिक "महाराज रणजीत सिंह" ने शिकार के दौरान उनपर हमला करने वाले एक शेर को अकेले ही मार गिराने के बाद हरिसिंह को "नलवा" (प्रतापी सम्राट नल नाम पर) नाम दिया था और इस अजेय सेनापति ने उनके लिए उस अफगानिस्तान को जीत लिया जिसे अजेय और दुर्गम समझा जाता रहा था।

"महाराज रणजीत सिंह" ने भारत-भूमि की सीमा का पश्चिमी दिशा में जहाँ तक विस्तार का स्वप्न देखा, 'नलवा' की तलवार उसे साकार करती गई।

स्पेन के फर्डिनांड, बप्पा रावल, नागभट्ट द्वितीय और बंदा सिंह बहादुर के बाद हरिसिंह नलवा ही थे, जिनके नाम से आकियों (आक्रान्ताओं) की रातों की नींद उड़ जाया करती थी।

शोले फिल्म का मशहूर डायलॉग "यहाँ से पचास-पचास मील दूर जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है, सो जा नहीं तो गब्बर आ जायेगा" दरअसल हरिसिंह नलवा के जीवनवृत से चुराया हुआ है। अफ़गानी माएं अपने बच्चों को सुलाते हुए कहा करतीं थी :- "सो जा नहीं तो नलवा आ जायेगा"।

"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" "कटक से अटक" तक के जिस भारत के सांस्कृतिक एक्य की बात अपने बौद्धिक सत्रों में करता है उसे राजनैतिक रूप से सदियों बाद "नलवा" ने एक कर साकार कर दिया था।

1813 ई. में अटक, 1818 ई. में मुल्तान,1819 .में कश्मीर और फिर 1823 ई. में पेशावर .....एक के बाद इन प्रदेशों को जीतकर रणजीत सिंह की सीमा का विस्तार हरिसिंह नलवा ने ही किया था।

एक कुशल सेनापति "सरदार हरि सिंह नलवा" एक संत भी थे जो नानक जी के "सरबत का भला" से लेकर पिता दशमेश के स्वप्न "राज करेगा ख़ालसा" के "रणंजय" भी थे। इन दोनों महान गुणों को एकसाथ शिरोधार्य करने वाले "नलवा" 'बंदा सिंह बहादुर' की श्रेणी में थे।

्रैल को 1837 ईo में जमरूद में भयंकर लड़ाई हुई, हरिसिंह नलवा उस वक़्त गंभीर रूप से बीमार थे पर "रणंजय" नलवा ने बिस्तर पर पड़े रहने की बजाये युद्ध-भूमि में जाना स्वीकार किया और जैसे ही अफ़गानों ने सुना कि "नलवा" युद्धभूमि में आ गया है, वो भागने शुरू हो गए, जो भागे नहीं उनके हाथ से भय से तलवारें छूटने लगी।

इस बुखार की हालत में भी उन्होंने अफगानों की 14 तोपें छीन लीं पर छल से दो गोलियां उन्हें मारी गई और उन्होंने शरीर छोड़ दिया। शरीर त्यागने के बाद अफगान उत्साहित न हों और उनकी अपनी सेना हतोत्साहित न हो इसके लिए उनकी इच्छा के अनुरूप उनके "शरीरांत" की बात छुपाई गई और उनके मृत शरीर को किले के परकोटे पर तीन दिनों तक बैठे हुए अवस्था में लाकर रखा गया मानो ये वीर वहीं से सेना का निरीक्षण कर रहे हों।

युद्धभूमि में उनकी इस उपस्थिति से जीत की ओर बढ़ रहे अफ़गानों को पराजय का सामना करना पड़ा और अपनी सेना को विजयश्री का वरण करवाकर ही उनकी आत्मा ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।

हरिसिंह ने राष्ट्र की सीमाओं को विस्तृत किया था और समर-भूमि में बलिदान देकर अमर हो गए थे, ये बात हममें से कितनों को पता है?

आत्मचिंतन करिये, अपने वीरों के प्रति अपनी कृतघ्नताओं पर सोचिये और हो सके तो "हरिसिंह नलवा" को उनकी पुण्यतिथि पर कुछ देर के लिए ही सही याद कर लीजिए;
ताकि हमारे कुछ पापों का परिमार्जन हो सके।
*वन्दे भारत मातरम्*
🙏🙏🙏🙏🙏

Address

Lala Ka Bazaar
Meerut City
250002

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Handyman Travels posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Handyman Travels:

Videos

Share

Category


Other Travel Agencies in Meerut City

Show All