19/08/2023
सहस्त्रताल-थाती बूढाकेदार से सहस्त्रताल तक प्राकृतिक सुन्दरता का अद्भुत सफर
सहस्त्रताल उतराखण्ड के टिहरी गढवाल में खतलिंग ग्लेशियर के पश्चिम में स्थित झीलों का समूह है, जो उतरकाशी व टिहरी जिले की सीमा पर स्थिति होने के बावजूद पूर्णतः टिहरी गढवाल में पडता है,सहस्त्रताल का शाब्दिक अर्थ- अनेकों ताल से है, जहां एक के बाद एक ताल है जिनकी संख्या अनुमानित 1000 बतायी जाती है.
सहस्त्रताल हिमाच्छादित व दुर्लभ क्षेत्र होने के कारण अब तक केवल 7 तालों की ही पहचान हो पायी है जिनके नाम- भीम ताल, दर्शन ताल, लम्ब ताल, लिंग ताल, मांत्री ताल, नरसिंग ताल, कालाताल है.
जहां पर्यटक पहुंचते है और स्ऩान आदि करते है वह वास्तव में दर्शन ताल के नाम से जाना जाता है लेकिन पर्यटक इसे सहस्त्रताल समझते है जबकि सहस्त्र ताल का शब्दिक अर्थ ही अनेकों ताल से है.
हिमालय के मध्य श्रेणी में स्थित यह सहस्त्रताल लगभग 15000 फीट की ऊंचाई पर पूर्णत: हिमच्छादित स्थान है जहां साल के 8-9 माह बर्फ जी चादर बिछी रहती, और जून से अगस्त तक ही सहस्त्रताल रेंज बिना बर्फ के रहता है.
अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां तापमान सामान्य से बहुत कम रहता है तथा साल के अधिकांश महीनों में तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है,तथा वायुदाब की कमी के कारण यहां पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की कमी महसूस की जाती है.
खतलिंग ग्लेशियर के पश्चिम में स्थित सहस्त्रताल गंगोत्री ग्लेशियर, केदारनाथ, सतोपंथ रेंज के लगभग में ही पडता है जो हिमाच्छादित होने के कारण बालगंगा,धर्मगंगा व पिलंग(लिंगताल) नदी स्रोतों में से एक है.
धार्मिक आस्था :-
15000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह ताल धार्मिक आस्था के लिए क्षेत्रीय गॉवों में विख्यात है जहां लोग जून से अगस्त के मध्य धर्म की यात्रा करते है, सहस्त्रताल में लोग आस्था की ढुबकी लगाकर अपने पित्रों का आव्हान करते है व घर के देवी देवता की मूर्ती स्नान करके पुण्य के भागी बनते है,
लोगों का मानना है कि मौसम कितना भी खराब क्यों न रहे लेकिन सहस्त्रताल में ढुबकी लगाते ही मौसम साफ हो जाता है जो कि आस्था का मुख्य केन्द्र है.
सहस्त्रताल ट्रेक :-
टिहरी जिले में भिलंगना के सुदूरवर्ती गॉव बूढाकेदार से सहस्त्रताल का ट्रेक शुरू होता है, जो लगभग 45 किमी का ऊंचे पहाडों, घने जंगलों, बुग्यालों, फूलों की घाटियों व प्राचीन मान्यताओं वाले स्थानों से होता हुआ ताल तक का पूर्ण रोमांच से भरपूर पैदल ट्रेक है,
सहस्त्रताल ट्रेक उतरकाशी के भटवाडी से भी शुरू होता है जो लाटा कूश कल्याण होता हुआ ताल तक ट्रेकिंग रूट बनाता है लेकिन ज्यादा प्रचलित व लोकप्रिय ट्रैक बूढाकेदार वाला माना जाता है क्योंकि इस ट्रेक पर महासरताल (मान्यता के अनुसार नाग देवता का ताल) भी पडता है जिससे कि ट्रैकिंग करने वालों को एक साथ दो ट्रैकिंग का लुफ्त मिल जाता है.
बूढाकेदार से सहस्त्रताल ट्रैक पर पढने वाले प्रमुख व प्रसिद्ध स्थान :-
बूढाकेदार से लगभग 45 किमी का सहस्त्रताल ट्रैक कम से कम 6-7 दिन का पूरा ट्रैक है जिसके मध्य पडने वाले कुछ प्रमुख व प्रसिद्ध स्थल है जिनकी अपनी कुछ स्थानीय व कुछ धार्मिक मान्यताएं है जिस वजह से वह स्थान पूजनीय व प्राकृतिक सुन्दरता से देखने योग्य बन जाता है
बूढाकेदार से ट्रेक शुरू होते ही-
महासरताल, मैलटॉप, अर्जुन की कुर्सी,
लछकाबडा की उकाल(चढाई)- यहां बहुत छोटे बडे झरनों के बीच से होते हुए ,
देवाटॉप तथा क्यार्की बुग्याल पहुंचते है जहां विस्तृत रूप में फैले छोटी घास के मैदान है. आगे चलकर
खुखली की उकाल पडता है स्थानीय मत के अनुसार यहां लोग अपने परिवार वालों की चौंरीं (समाधि) लगाते है कहा जाता है की जीवित मृत लोगों की यहां चौरीं लगाने से वह व्यक्ति के लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाता है,
कुछ आगे चलकर एक भव्य ताल पडता है लिंगताल,
लिंगताल के मध्य एक लिंग नुमा शिला है जो प्रत्येक वर्ष अपना स्थान बदलती है इस शिला की आकृति के नाम पर ही इसे लिंगताल कहा जाता है,
लिंग ताल से आगे चलकर मांत्री का उढार व मांत्री का ताल नामक जगह पडती है जो प्रकृति का अद्वितीय रूप है यहां देखने पर लगता है कि ताल व आसमान एक दूसरे से जुडे है जो अकल्पनीय दृश्य बनाते है,
इस पूरे रोमांचक ट्रेक के बाद आता है सहस्त्रताल (दर्शनताल) ,
सहस्त्रताल (दर्शनताल)वही स्थान है जहां तक टैकिंग करने वालों का अन्तिम पडाव होता है. इसके आगे गंगी ताल (भीम ताल) व अन्य सेकडों तालों का समूह है जो सालभर हिमाच्छादित रहने की वजह से जाने योग्य नही रहते है
सहस्त्रताल ट्रेकिंग से वापसी का दूसरा विकल्प:-
सहस्त्रताल से आते वक्त क्यार्की बुग्याल से दो रास्ते कटते है एक तो महासरताल से बूढाकेदार वाला ही है लेकिन दूसरा रास्ता क्यार्की बुग्याल से होता हुआ भैंस का सींग पहुंचता है जहां लगभग 30-35 साल पुराने भैसे का मुड कंकाल है जो आज तक अपनी जगह से हिला तक नही,
फिर नीचे उतर कर द्रौपदी की कुण्ठी (माला) जगह पडती है
ठीक उससे नीचे झुण्ड गला के बाद कूश व कल्याण आता है
यहां से भी दो ट्रैक बनते है एक तो पिंस्वाड होते हुए पुन: बूढाकेदार आता है जबकि दूसरा उतरकाशी के भटवाडी लाटा तक बनता है. बूढाकेदार व भटवाडी के बाद पर्यटक गाडी से ऋषिकेश देहरादून को लौट जाते है.
सहस्त्रताल ट्रेक के पडाव:-
1- महासरताल
2- अर्जुन की कुर्सी या देवाटॉप
3- क्यार्की बुग्याल
ट्रैक पर जाने वाले पर्यटक बूढाकेदार से चलकर पहला स्टे महासर ताल करते है, फिर अगले दिन का स्टे कुछ लोग अर्जुन की कुर्सी व कुछ देवाटॉप में टेंट लगाकर करते है फिर अन्तिम स्टे क्यार्की बुग्याल में किया जाता है, जहां से पर्यटक सहस्त्रताल की लौट-पौट यात्रा करते है
सहस्त्रताल ट्रैक पर मुख्य आकर्षण:-
महासरताल- सहस्त्रताल के ट्रैक पर पहला पडाव महासर ताल का पडाव पडता है जो नाग देवता के ताल के लिए प्रसिद्ध जगह है, दो तालों के स्थान पर पर्यटक इस जगह का आनंद उठाने के लिए बूढाकेदार से चलकर पहला स्टे यहीं करते है,
महासरताल में गंगा दशहरा के दिन स्थानीय गॉवों के लोगों द्वारा स्नान का प्रमुख महत्व है
मैंल टॉप- महासरताल के आगे मैंल टॉप पडता है जहां से प्रतापनगर, क्लांच पर्वत आदि स्थानों का मनोरम दृश्य देखने को मिलता है
अर्जुन की कुर्सी- मैंल टॉप से आगे चलकर अर्जुन की कुर्सी जगह आती है, बताया जाता है कि यहां अर्जुन द्वारा आराम करने के लिए शिलाओं द्वारा कुर्सी के आकार की जगह है, यह स्थान बडा बुग्याल है, यहां से ही विभिन्न प्रकार के फूलों का मनोरम दृश्य दिखाई देना प्रारंभ हो जाता है.
देवा टॉप- लगभग 11-12000 फीट की ऊंचाई पर देवा टॉप पूरे ट्रैक का सबसे ऊंचा पडाव है, जहां से लगभग सारे उतराखण्ड के सर्वोच्च पीक दिखायी देते है जिनमें प्रमुख खतलिंग ग्लेशियर, सतोपंथ, भृगुपंथ आदि है,
यहीं से आगे चलकर मोनाल पक्षी, कस्तूरी मृग आदि उच्च हिमालयी वन्य जीव आदि देखने को मिलते है.
क्यार्की बुग्याल- हिमायल के घास के मैदानों में क्यार्की बुग्याल भी एक प्रसिद्ध बुग्याल है जो दयारा बुग्याल, पंवाली कांठा आदि की श्रेणी का बुग्याल है, यहां बुग्याल द्रोपदी की ज्यो की राश (खेती) के लिए प्रमुख है,
मान्यता के अनुसार इस स्थान पर जब पांडव रहे तो वहां द्रोपदी ने ज्यो की खेती की जिसके प्रमाण इतनी ऊंचाई पर बने सीढीनुमा खेत से मिलते है.
क्यार्की बुग्याल में लगभग 15 हजार फूलों की प्रजाति पायी जाती है, जिस वजह से सहस्त्रताल ट्रैक पर यह स्थान "वैली ऑफ फ्लावर" के नाम से जाना जाता है.
क्यार्की बुग्याल के अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां से गंगोत्री में पडने वाला सुखी-बुखी का डांडा दिखाई पडता है
खुंखली टॉप- सहस्त्रताल ट्रैक में सबसे अधिक ऊचाई पर स्थित खुंखली टॉप पडता है, जो प्रकृति की भव्य, दैवीय प्रतिमा को पर्यटकों के सामने पिरोता है, खुंखली टॉप के पीक पर पहुचने के बाद चारों और दूर-दूर के शिखर जैसे भृगुपंथ, सतोपंथ, तुंगनाथ, कीर्ती स्तंभ व चौखम्भा पर्वत क्रॉच पर्वत आदि दिखाई देते है, साथ ही आसमान के बादल पर्यटकों से नीचे और मानों समस्त आकाश में मंडराते पर्यटक इस दैवीय दृश्य को देखकर उत्साहित, भाविक होने लगते है.
कस्तुरीमृग- सहस्त्रताल उच्च हिमालय क्षेत्र पर होने के कारण यहां कस्तूरी मृग बहुतायत में देखने को मिलते है, साथ ही घ्वेड काखड मिलना सामान्य सी बात है
ब्रह्मकमल- उतराखण्ड का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल सहस्त्रताल में सबसे अधिक उगते है, जिनके प्रति स्थानीय लोगों की आस्था बहुत ज्यादा देखने को मिलती है, सहस्त्रताल की यात्रा पर गये यात्री यहां का माथम ब्रह्मकमल को मानते है, जिसे लाकर अपने सगे सम्बन्धियों को प्रसाद के रूप मे भेंट करना व मन्दिर,तिजोरी आदि में रखना व पूजना शुभ मानते है.
पारस पत्थर- पौराणिक तथ्यों के अनुसार माना जाता है कि दुनियां का बेसकीमती पारस पत्थर भी सहस्त्रताल के किसी एक ताल में है, लेकिन आज तक इसकी खोज व प्रमाण किसी को प्राप्त नही हुआ, पारस पत्थर की मान्यता है कि इस पर लौहा टकराने पर वह सौने में बदल जाता है, सुना जाता है कि बदरीनाथ में वैकुण्ड के स्वामी की मूर्ति रूप शिला भी इसी पत्थर की है,