क्षत्रियों का इतिहास

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 #तनोट् के शासक राव तनुराव (भाटी ) राव तनुराव गढ़ तनोट के सिंहासन पर विक्रमी संवत 862 को विराजे । इनके 15 रानिया थी । इनक...
19/03/2024

#तनोट् के शासक राव तनुराव (भाटी )
राव तनुराव गढ़ तनोट के सिंहासन पर विक्रमी संवत 862 को विराजे । इनके 15 रानिया थी । इनका विवाह गढ़ जांझे के सोलंकी राव उदियादित की पुत्री भोजकंवर । गढ़ चितोड़ के गेहलोत राव भलोगदीत की पुत्री फुलकंवर से हुआ । इनके पुत्र 1 विजेराज चुडालो 2 भटड 3 चांडक 4 डागा 5 हाँसा 6 खड्लिया 7 आल 8 गांगल 9 भीम 10 माकड़ 11 सलून 12 कुलरिया 13 अभेरिया 14 सारंग 15 मुड 16 मलखट 17 अणखिया नामक 17 पुत्र हुए
:: भटड़ महाजन ::
भटड़ के पुत्र महाजन कहलाये
:: चांडक माहेश्वरी ::
चांडक के पुत्र चांडक माहेश्वरी कहलाये
:; डागा माहेश्वरी ::
डागा के पुत्र डागा माहेश्वरी कहलाये
:: हाँसा महाजन ::
हाँसा के पुत्र हाँसा महाजन कहलाये
:: खड्लिया महाजन ::
खड्लिया के पुत्र खड्लिया महाजन कहलाये
:: आलराइका ::
आल के वंशज आलराइका हुए
:: गांगल राइका ::
गांगल के वंशज गांल राइका हुए
भीम राइका :: इनके वंशज राइका भीम कहलाये
माकड़ सुथार :: इनके वंशज मांकड़ सुथार कहलाये
सलून सुथार :: इनके वंशज सलून सुथार कहलाये
कुलरिया सुथार :: इनके वंशज कुलरिया सुथार कहलाये
अभोरिया खवाश :: अभोरिया के वंशज अभोरिया खवास कहलाये
सारंग जाट :: सारंग के वंशज सारंग जाट कहलाये
मुड जाट :: इनके वंशज मूड जाट कहलाये
मलखट भील : इनके वंशज मलखट भील कहलाये
अणखिया मेघवाल :: अणखिया मेघवाल हुए

विजय राज को छोड़कर सारे दूसरी जाती में चले गए भील , जाट,खवास,मेघवाल,सुथार,रायका,माहेश्वरी,महाजन 16 पुत्रो ने उस दौरान जो कार्य किया वही जातीया कहलाई

तनोंट् वही तनोट माता का मंदिर जो वर्तमान में भारत पाक सीमा पर है तनुराव भाटी के पिताजी के पुत्र न होने के कारण उन्होंने अपनी कुलदेवी को अरदास की थी जिसके कारण पुत्र हुआ और बाद में उन्होंने अपने पुत्र का नाम तनुराव दिया और तनोटीया माता का मंदिर बनवाया !!

08/03/2024

भगवान प्रभू श्रीराम चंद्र जी के वंशज , अयोध्या राम मंदिर के निर्माणकर्ता ,सुर्यवंशी कुलभूषण राष्ट्रकूट वंशी महाराजाधिराज #जयचंद्र_राठौड़ / गहरवार / बुंदेला जी के जयंती पर शत-शत नमन् 🙏🚩

ऐसे प्रतापी महाराजाधिराज जिनको कई उपाधियो से नवाजा गया है कान्यकुब्जेश्वर धर्मपरायण देशभक्त महाराजा जयचंद जी को यौवनो के नाशक , दलपंगुल व नारायण का अवतार बताया गया है !
कान्यकुब्जेश्वर धर्मपरायण देशभक्त महाराजा जय चन्द्र जी का जन्म सन् 1114 ईस्वी मे महाशिवरात्रि के दिन हुआ था !!
इसी दिन इनके दादा महाराजा गोविन्द चंद्र गहरवार जी ने दशार्ण देश ( पूर्वी मालवा) पर विजय प्राप्त किया था !! इसका उल्लेख करते हुए नयचन्द्र ने अपनी पुस्तक 'रम्भामंजरी' में लिखा है-

पितामहेन तज्जन्मदिने दशार्णदेशेसु प्राप्तं प्रबलम् !!
यवन सैन्य जितम् अतएव तन्नाम जैत्रचन्द्रः !!
अर्थात् इनके जन्म के दिन पितामह ने युद्ध में यवन-सेना ( बाहरी आक्रमणकारी म्लेच्छो ) पर विजय प्राप्त किया अतः इनका नाम जैत्रचन्द्र पड़ा।
तत्कालीन संस्कृत-साहित्य में महाराज जयचन्द्र के अनेक नाम मिलते हैं।
मेरुतुंग ने प्रबन्धचिन्तामणि में 'जयचन्द्र', राजशेखर सूरि ने प्रबन्धकोश में 'जयन्तचन्द्र', नयचन्द्र ने रम्भामंजरी में 'जैत्रचन्द्र' कहा है !!
जबकि लोक में 'जयचन्द' कहा जाता है। 'रम्भामंजरी' के अनुसार महाराज जयचन्द्र की माता का नाम 'चन्द्रलेखा' था, जो अनंगपाल तोमर की ज्येष्ठ पुत्री थीं !
किन्तु 'पृथ्वीराज रासो' के छन्द संख्या 681-682 के अनुसार उनका नाम सुन्दरी देवी था।
'भविष्यपुराण' में महाराज जयचन्द्र की माता का नाम चन्द्रकान्ति बताया गया है।
आषाढ़ शुक्ल दशमी संवत् 1224 तदनुसार रविवार 16 जून, 1168 को पिता महाराज विजयचन्द्र ने जयचन्द्र को युवराज के पद पर अभिषिक्त किया।
आषाढ़ शुक्ल षष्ठी संवत् 1226 तदनुसार रविवार 21 जून, 1170 ई. को महाराज जयचन्द्र का राज्याभिषेक हुआ था।
राज्याभिषेक के पश्चात् महाराज जयचन्द ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त किया।
'पृथ्वीराज रासो' के अनुसार महाराज जयचन्द ने सिन्धु नदी पर मुसलमानों (सुल्तान, गौर) से ऐसा घोर संग्राम किया कि रक्त के प्रवाह से नदी का नील जल एकदम ऐसा लाल हुआ मानों अमावस्या की रात्रि में ऊषा का अरुणोदय हो गया हो।
महाकवि विद्यापति ने 'पुरुष परीक्षा' में लिखा है कि यवनेश्वर सहाबुद्दीन ोहम्मद__गौरी को जयचन्द्र जी ने कई बार रण में परास्त किया।
और युध्द क्षेत्र से भागकर मोहम्मद गौरी ने अपना जान बचाया था !!
'रम्भामञ्जरी' में भी कहा गया है कि महाराज जयचन्द्र ने यवनों ( बाहरी आक्रमणकारी म्लेच्छ तुर्को मुगलो )का नाश किया।
बल्लभदेव कृत 'सुभाषितावली' में वर्णित है कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी द्वारा उत्तर-पूर्व के राजाओं का पददलित होना सुनकर महाराज जयचन्द्र ने उसे प्रताड़ित करने हेतु अपने दूत के द्वारा निम्नलिखित पद लिखकर भेजा-
स्वच्छन्दं सैन्य संघेन चरन्त मुक्तो भयं।
शहाबुद्दीन भूमीन्द्रं प्राहिणोदिति लेखकम्।।
कथं न हि विशंकसेन्यज कुरग लोलक्रमं।
परिक्रमितु मीहसे विरमनैव शून्यं वनम्।।
स्थितोत्र गजयूथनाथ मथनोच्छलच्छ्रोणितम्।
पिपासुररि मर्दनः सच सुखेन पञ्चाननः।।
अर्थात् स्वतन्त्र और महती सेना के साथ निर्भय भारतवर्ष में शहाबुद्दीन द्वारा राजाओं का पददलित होना सुनकर महाराज जयचन्द्र ने यह पद्य अपने दूतों से भेजा; ऐ तुच्छ मृगशावक, तू अपनी चंचलता से इस महावन रूपी भारतवर्ष में उछल-कूद मचाये हुए है !!
तेरी समझ में यह वन शून्य है अथवा तुझ-सा पराक्रमी अन्य जन्तु इस महावन में नहीं है !
यह केवल तुझे धोखा और भ्रम है।
ठहर ठहर आगे मत बढ़, निःशंकता छोड़ देख यह आगे मृगराज गजराजों के रक्त का पिपासु बैठा है !!👈🖕
यह महा-अरिमर्दक है, तेरे ऐसों को मारते इसे कुछ भी श्रम प्रतीत नहीं होता !!
वह इस समय यहाँ सुख से विश्राम ले रहा है।

महाराज जयचन्द्र के सम्बन्ध में 1186 ई.(1243 वि.सं.) में लिखे गये फ़ैज़ाबाद ताम्र-दानपत्र में वर्णित है-
अद्भुत विक्रमादय जयच्चन्द्राभिधानः पतिर्
भूपानामवतीर्ण एष भुवनोद्धाराय नारायणः।
धीमावमपास्य विग्रह रुचिं धिक्कृत्य शान्ताशया
सेवन्ते यमुदग्र बन्धन भयध्वंसार्थिनः पार्थिकाः।।
छेन्मूच्छीमतुच्छां न यदि केवल येत् कूर्म पृष्टामिधात
त्यावृत्तः श्रमार्तो नमदखिल फणश्वा वसात्या सहस्रम्।
उद्योगे यस्य धावद्धरणिधरधुनी निर्झरस्फारधार-
श्याद्दानन्द् विपाली वहल भरगलद्वैर्य मुद्रः फणीन्द्रः।।
यहाँ अभिलेखकार ने पहले श्लोक में बताया है कि महाराज विजयचन्द्र (विजयपाल = देवपाल) के पुत्र महाराज जयचन्द्र हुए, जो अद्भुत वीर थे।
राजाओं के स्वामी महाराज जयचन्द्र साक्षात् #नारायण के अवतार थे !
जिन्होंने पृथ्वी के सुख हेतु जन्म लिया था।
अन्य राजागण उनकी स्तुति करते थे।👈
दूसरे श्लोक में कहा गया है कि उनकी हाथियों की सेना के भार से शेषनाग दब जाते थे और मूर्छित होने की अवस्था को प्राप्त होते थे।🖕
उत्तर भारत में महाराज जयचन्द्र का विशाल साम्राज्य था। उन्होंने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपने राज्य की सीमा का उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक तथा पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य तक विस्तार किया था। मुस्लिम इतिहासकार इब्न असीर ने अपने इतिहास-ग्रन्थ 'कामिल उत्तवारीख़' में लिखता है कि महाराज जयचन्द्र के समय कन्नौज राज्य की लम्बाई उत्तर में चीन की सीमा से दक्षिण में मालवा प्रदेश तक और चौड़ाई समुद्र तट से दस मैजल लाहौर तक विस्तृत थी। महाराजा जय चन्द्र जी उस समय भारत वर्ष के सबसे बडे राजा थे ! ऐसा मुस्लिम ईतिहासकारो ने स्वयं लिखा है !!
महाराजा जयचन्द के राज्य का विस्तार 5600 वर्ग मील था !!

उस सदी मे पूरे भारत वर्ष मे सबसे बडी सेना महाराजा जय चन्द्र जी का ही था !!
िश्ता के अनुसार महाराजा जय चन्द्र जी के पास सबसे बडी विशाल सेना थी !!

ामिलउत्तवारिख ने वर्णन किया है कि महाराजा जय चन्द्र जी महाराजा जय चन्द्र जी की सेना मे 700 हाथिया थी !!

ाजल-म-आथीर के अनुसार महाराजा जय चन्द्र जी की सेना बालुका कणों के अनुसार ंख्य थी !!

सुर्यप्रकाश लिखते है - महाराजा जय चन्द्र जी की सेना मे 80 हजार कवचधारी सैनिक , 3 लाख पैदल सेना , 2 लाख धनुर्धारी , 30 हजार अश्वारोही और बहुसंख्यक हाथी थी !!

इसके अलावा स्वयं पृथ्वी राज रासो के लेखक कवि चंदरवरदाई ने ही स्वयं महाराजा जय चन्द्र जी की #विशाल सेना का वर्णन किया !!
स्वयं पृथ्वी राज रासो मे चंदरवरदाई ने महाराजा जय चन्द्र जी को " दल पंगुल" कहा है !!
अर्थात जिसकी सेनाये हमेशा विचरण करती रहती थी !!
कुछ ईतिहासकारो ने तो हजारो हाथीओ और लाखो घोडो का भी वर्णन किया है इतनी विशाल सेना होने के कारण ही महाराजा जयचन्द जी को " ंगुल" की उपाधि मिली थी !!

राज शेखर सूरी ने अपने प्रबंधकोश मे कहा है कि काशीराज जय चंद्र विजेता थे ,और गंगा यमुना दोआब तो उनका विशेष रूप से अधिकृत प्रदेश था !
नयनचंद्र ने रंभामंजरी मे महाराजा जय चन्द्र जी को यौवनो का नाशक और विशाल सेना का संचालक लिखा है !!
उन्होने लिखा कि महाराजा जयचंद युध्दप्रिय होने के कारण अपनी सैन्य शक्ति ऐसी बढाई की वह ्वितीय हो गई !! जिस कारण से महाराजा जय चन्द्र जी को "दल पंगुल" उपाधि से जाना जाने लगा !!
विद्यापति जी अपने "पुरूष -परिक्षा" लिखते है कि महाराजा जय चन्द्र जी उसी मोहम्मद गौरी को कई बार हराया थे !!
्भामंजरी मे भी महाराजा जय चन्द्र जी के विशाल सेना और विशाल राज्य का उल्लेख है !!

इन सभी प्रमाणो के आधार पर कोई भी सत्य से अवगत हो सकता है कि बिना छल से महाराजा जय चन्द्र जी को हराना मुश्किल है !!
नयनचंद्रकृत "रंभामंजरी " मे जयचंद्र महाराज के भुजाओं की ताकत की तुलना चंदेलो के राजा " मदन वर्मा " राज्यश्री रूपी हाथी को बांधने के लिये खंभ से कि गयी है !!
महाराज मदन वर्मा ( 1129 - 1163 ) व महाराजा जयचंद्र का शासन काल ( 1170-1194 ) रहा जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह।उपलब्धि महाराजा जयचन्द जी ने अपने युवराज काल मे ही हासिल किया था !!
समकालीन साहित्य से पता चलता है कि चंदेलो के राजा परमाल चंदेल और महाराजा जयचंद्र जी मे मैत्रीपूर्ण संबंध रहे है !!
आल्हा ऊदल जैसे महान योद्धा भी महाराजा जयचंद्र जी के सेनापति थे !!
संवत् १२४१ (सन् 1184 ) में अयोध्या में श्रीराम मंदिर का पुनर्निर्माण करवाये थे वे सोने की परत चढवाये थे !!
80 वर्ष की आयु में महाराजा जयचंद्र जी संवत् १२५० (सन् 1194) में मोहम्मद गौरी से रणभूमि में युद्ध करते हुते वीरगति को प्राप्त हुते थे !!

महाराजा जयचंद्र जी के वंशजों के कुछ ऐतिहासिक कार्य
1- महाराजा जयचंद्र जी के दादा गोविन्दचंद्र जी ने अयोवृंदा राम मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था , और उन्ही के बनाये शिलालेखो ( श्री विष्णु हरि शिलालेख) के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने ोध्या_मन्दिर हिन्दुओ के पक्ष में फैसला दिया था ।

2. 1544 में गिरी सुमेल युद्ध मेंउसी के वंसज राव मालदेव से बुरी तरह हारने के बाद मुगल शासक ेर_शाह_सूरी ने कहा था की मुठ्ठी भर बाजरे की खातिर में आज हिंदुस्तान की सल्तनत खो बैठता ।

3. जयचंद के ही वंसज जयमल मेड़तिया द्वारा अकबर
की मेवाड़ पर चढ़ाई में पांव में गोली लगने के बाद भी अपने भतीजे के कन्धों पर बैठकर अकबर की
विशाल सेना को तहस नहस करने के बाद जब वीरगति को प्राप्त हुए
तो अकबर ने चैन की साँस लेते हुए कहा था की मैंने हिन्दुओ के चार हाथो वाले ेवता_विष्णु के बारे में सुना तो था आज के युद्ध में लगा की साक्षात् विष्णु ही मेरी सेना को तहस नहस कर रहा है ।
इसके पश्चात अकबर ने आगरा के किले के द्वार पर उन दोनों वीरो की संगमरमर की मूर्ति बना कर लगाई थी .

4. जयचंद के ही वंसज जसवंत सिंह के रहते औरंगजेब कोई भी हिन्दू मन्दिर को तोड़ने की हिमाकत नही कर स्का था
क्योंकि जसवंत सिंह ने कहा था की औरंगजेब अगर ्दिर तुड़वायेगा तो में ो_मस्जिद तहस नहस करूँगा ,
जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद ओरंगजेब का कथन था की आज कुफ़्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया ।

5. महाराजा जयचंद के ही वंसज ीर_दुर्गा_दास ने जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों को तोड़ने में अपना जीवन बिता दिया
उन्होंने औरंगजेब के पोते पोतियों को #बंधक बना कर रखा था
हालाँकि उनका लालन पालन इस्लामी परम्परानुसार ही करवाया ।

6. महाराजा जयचंद के ही वंसज बिकानेर महाराजा ने
औरंगजेब की छल से सभी राजाओ की मीटिंग बुलाकर उन्हें कैद करने और फिर जबरदस्ती इस्लाम ग्रहण करवाने के सडयंत्र को भांप कर उसके सैनिको को मारकर विफल किया था
जिसके पश्चात उन्हें #जांगलधर बादशाह की पदवी मिली थी ।

7. जयचंद के वंसज ाबूजी ने विधर्मियो द्वरा गायो के अपहरण की सुचना पर चोथे फेरे के बिच में ही विवाह बेदी छोड़कर धर्म निभाना उचित समझा और गौ रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए

8. जयचंद के ही वंसज #गोपाल_सिंह खरवा ने अंतिम सांसो तक आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो का डटकर मुकाबला किया था ।

9. इसी जयचंद के वंसज आऊआ ठाकुर खुशाल सिंह जी ने अपनी छोटी सी सेना से अंग्रेजो को धूल चटाई थी और अंग्रेज अफसर का सर काटकर गढ़ के दरवाजे पर टांगा था ।इनकी याद में आज भी आऊआ में मेला लगता है !
10- इन्ही के वंशज प्रतापी राजा प्रताप रुद्र देव बुंदेला जी ने ओरक्षा नगर को बसाया था !
11- इनके ही वंशज ओरक्षा नरेश महाराजाधिराज महेंद्र सवाई श्री सर प्रताप सिंह बहादुर वह उनकी धर्मपत्नी वृषभानु कुंवरी जू देवी ने सन् 1885 ईस्वी में अयोध्या में कनक भवन का निर्माण करवाया था , जो रामोपासना का सबसे महत्वपूर्ण ,मनोहारी तथा श्रध्दास्पष्ट मंदिर है जहां भगवान प्रभू श्रीराम चंद्र जी आराम करते है!!
12- अयोध्या में "कनक भवन" के निर्माण के बाद महाराजधिराज महेंद्र प्रताप सवाई श्री सर प्रताप सिंह बहादुर वह उनकी धर्मपत्नी कुंवरी जू देवी जी ने कनक भवन की ही तरह जगत नन्दिनी श्री जानकी(माता सीता)
जी के "नौ लखा" मंदिर का निर्माण करवाया था!
13- इन्हीं के वंशज महाराजा वीर सिंह जुदेव बुंदेला जी ने मथुरा में श्री कृष्ण जी के अंतिम बार का मंदिर
" केशरराय" मंदिर का निर्माण करवाया था।
14- इन्हीं के वंशज महाराजा छत्रसाल जो ' बुंदेलखंड केशरी' के नाम से भी विख्यात है !
जो एक अद्वितीय महान योध्या थे , जो अपने जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं सारे ! जिन्होंने औरंगजेब को धूल चटाया !
जिन्हें मुगलों के काल महाराजा छत्रसाल के नाम से जाना गया !
10. आजादी के बाद भारत की सभी सैन्य टुकड़ियों में इनके भी वंसज लगातार अपनी सेवा देते आ रहे है और देश को अपना लहू देते आ रहे है !!

लिस्ट बहुत लंबा हो जायेगा अगर महाराजा जयचंद्र जी के वंशजों के धार्मिक , राष्ट्रहीत व पराक्रम की ब्याख्या करूं तो !!

यौवनो के नाशक "दल पंगुल" सेना के संचालक
ाराजाधिराज_जयचंद्र राठौड़ / गहरवार जी को कोटिश: नमन् 🙏🚩

 #दुनिया____क्षत्रियों___की_____देन_____है 🚩🗡️दुनिया को कृषि विज्ञान,खेती करने का ज्ञान भगवान श्रीराम के पितामह  #महाराज...
15/02/2024

#दुनिया____क्षत्रियों___की_____देन_____है

🚩🗡️दुनिया को कृषि विज्ञान,खेती करने का ज्ञान भगवान श्रीराम के पितामह #महाराज____पृथु ने ही दिया था जो क्षत्रिय थे,उसी कुल के लोग आज राजपूत कहे जाते है||

🚩🗡️शून्य की खोज भी राजपुत काल मे हुई,बिना इसे चांद पर जाना और कोई भी आविष्कार हो पाना असंभव था,संसार के लिए विज्ञान की राह राजपूतो ने ही खोली #महाराजा_____विक्रमादित्य__परमार

🚩🗡️ नौकरशाही,राष्ट्रनीति , कूटनीति , सैनिक प्रबंधन का काम पूरे संसार को राजपूतो ने ही सिखाया ,आज पूरा विश्व उसी तरह शाशन व्यवस्था चला रहा है

🚩🗡️विश्व का प्रथम लिखित संविधान एक राजपूत #राजा___महाराज__सत्यव्रत ने ही दिया था, जिन्हें आज #मनु__महाराज के नाम से जाना जाता है

🚩🗡️किसी मानव द्वारा इंद्र के सिंहासन अर्थात स्वर्ग पर कब्जा एक #राजपूत__नहुष ने ही किया था

🚩🗡️बांध बनाना, नदियों को चैनलाइज करने का ज्ञान एक राजपूत ने ही दिया था, भारत की अधिकांश नदिया #परमार___राजा___भोज के समय हुई थी, उसके बाद अब तक स्थिति जस की तस है

🚩🗡️विश्व को सर्वप्रथम समाजवाद का दर्शन देने वाले #महाराज___अग्रसेन__राजपूत थे.. इन्होंने एक रुपये और एक ईंट का जो दर्शन दिया उसी के बल पर अग्रोहा सिकंदर के आक्रमण तक विश्व के सबसे अमीर व्यापारिक राज्यों में एक था..इन्ही की वंशज अग्रवाल जाती भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है...अग्रवालों ने ही अधीकांश आद्योगिक घरानों की स्थापना की..जो विदेशियों को टक्कर दे रहे हैं और भारत के रोजगार का सृजन कर रहे हैं।।

🚩🗡️राजपूतो के बिना हिंदुओ को मोक्ष भी नही मिलता, न जल, न रोजगार और गंगा को धरती पर लाने वाले #महाराज__भागीरथ भी राजपूत ही थे||

🚩🗡️ राक्षसों ने अत्याचार करके भगवान को चुनोती दी थी, लेकिन राजपूतो ने ज्ञान से भगवान को चुनौती दी, एक #राजपूत___विश्वामित्र ने अपना अलग ही ग्रह रच दिया था,जिसके प्राणी भगवान की रचना से भी सुंदर और उपयोगी थे,लेकिन ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर विश्वामित्र ने वह लोक भंग कर दिया ।

🚩🗡️ स्कूल अस्पताल बनाने का ज्ञान राजपुत ने ही दिया #राजा____भोज एक इंजीनियर, डॉक्टर दोनो थे, #मणिप्रबन्धनम में उन्होंने कम्प्यूटर जैसी चीज बनाने की बात की है, और आयुर्वेद मेडिकल साइंस पर उन्होंने पुस्तक Rãjamãrṭaṇḍa: Ancient Sanskrit Medical Text of Mahārāja Bhōja लिखी है । यह वह पुस्तक है, जिसमे लेक्चर डॉक्टरों के लिए है, तो राजा भोज के ज्ञान के स्तर का अनुमान लगाएं . राजपूत थे.. इन्होंने बौद्ध संघों का निर्माण किया था जिसने आगे जाकर दुनिया को मार्शल आर्ट का अनुपम ज्ञान दिया।

ाजपुताना🚩🚩

ाँ___भवानी🚩🚩

#क्षत्रिय___धर्म___युगे

#सभी__क्षत्रिय___महापुरुषों___की__जय__हो🚩🚩

ये है श्री अश्विनी बुडानिया जी और वर्तमान विधायक जी के व्यावसायिक साझेदार और प्रिय भतीजे इन्होंने सदा राजेंद्र राठौड़ के...
11/02/2024

ये है श्री अश्विनी बुडानिया जी और वर्तमान विधायक जी के व्यावसायिक साझेदार और प्रिय भतीजे

इन्होंने सदा राजेंद्र राठौड़ के बग़ल में रह कर मलाई सेवन करते रहे है । ख़ुद के पार्टनर को जितवाने के लिए कभी बीजेपी तो कभी जातिवाद की आग सुलगाने हेतु कांग्रेस में बिना पेंदे के लौटे की तरह गुलाटी लगाते रहते है ।
महाशय सामने से समानता और पार्टीहित के पर्चे भरते है लेकिन इनकी बड़ी आँत के नीचे गुद्दा से ठीक ऊपर बैठा जातिवाद का कीड़ा इन्हें दिन भर परेशान करता रहता है और उसी के चलते एक शांत चूरु जैसे क्षेत्र में जातिवाद रूपी ज़हर का बीज बोते रहते है ।
इस पोस्ट के माध्यम से मैं आम राजपूत उर्फ़ इनके द्वारा संबोधित ठाकर , वर्तमान विधायक श्री हरलाल जी सहारण से पूरे राजपूत समाज की तरफ़ से एक सवाल करता हूँ कि क्या आम राजपूत ने चूरु में आपको जातिवाद को मध्यनजर रखते वोट करे थे ?
आप हमारे दिलों में राज करते है किंतु आपके व्यावसायिक साझेदार व प्रिय भतीजे ऐसे जातिवाद के बीज बोकर भविष्य में आपके लिए ही खाई खो रहे है और आपके नाम के आगे पूर्व विधायक लिखवाने की पूरी व्यवस्था कर रहे है ।
आम राजपूत के दिल में ऐसे जातिवादी सोच रखने वाले व्यक्तियों के प्रति रोष है और भविष्य में यदि ये लोग आपके अग़ल बग़ल में दिखाई देते है तो चूरु विधानसभा का पूरा राजपूत समाज आपके बहिष्कार का उदघोष कर देगा , राजपूत समाज के लिए जाति से प्राथमिकता पार्टी है और आप से आशा करते है आप ऐसे व्यक्तियों को ख़ुद से अलग रखेंगे ।

सादर - आम राजपूत
चूरु

बन्ना लोगो आप भाईचारा मत भूल जाना।

‼️स्व:वीर वीरेंद्र सिंह न्यांगली ‼️जुल्म जब अपनी हद से गुजरता होगा,तभी कोई बगावत पर उतरता होगा।देश की आज़ादी की बाद देश म...
11/02/2024

‼️स्व:वीर वीरेंद्र सिंह न्यांगली ‼️

जुल्म जब अपनी हद से गुजरता होगा,
तभी कोई बगावत पर उतरता होगा।

देश की आज़ादी की बाद देश मे कुछ चालक किस्म के लोगो ने क्षत्रियो के विरुद्ध एक झूठा अभियान छेड़ा,जिसमे क्षत्रियो के विरुद्ध संपूर्ण समाज मे
नेरेटिव सेट किया गया कि क्षत्रिय अत्याचारी है..दमनकारी है❗

ऐसा एजेंडा शेखावाटी में जाटो ने क्षत्रियो के विरुद्ध प्रसारित करके राजनैतिक सत्ता प्राप्त की ,जिसके दम पर जाट जाट आर्थिक रूप से इतने अधिक सम्पन्न हो गए कि बाकी सब जातियां कब उनकी मानसिक गुलाम बन गयी पता ही नही चला...❗
1962 में बनी सादुलपुर विधानसभा में जाट लगातार विद्यायक, सांसद बनते रहे...नब्बे के दशक की मंडल राजनीति और भैरू सिंह सरकार द्वारा
ओबीसी आरक्षण के बाद जाट सादुलपुर में शीर्ष पर पहुँच गए..‼️
इसके बाद इन्होंने अन्य जातियों की दमन की सीमाएं ही लांघ दी...सरे आम किसी की हत्या...अपहरण,रेप इनके लिए सामान्य बात हो गयी...‼️

इन्ही सब के मध्य एक बदमाश सुमेर फगेड़िया ने एक घुमन्तु जाति की लड़की को जबरन उठा लिया..3 तीन तक उसने ओर उसके साथियों ने
जबरन रेप किया...उसके परिजनों ने पुलिस,प्रशासन से मदद की बहुत
गुहार लगाई...लेकिन बदमाशो को राजनैतिक संरक्षण होने के कारण कोई
कार्यवाही नही हुई...इसी के मध्य पीड़ित परिवार ने सूरत सिंह,वीरेंद्र सिंह आदि जो कि न्यांगली गांव के निवासी थे उनसे मदद की गुहार लगाई...
जब न्यांगली परिवार ने जब मामले में हस्तक्षेप किया तो जाट लॉबी ने
3 दिन बाद लड़की को वापस छोड़ दिया...यही से सुमेर फगेड़िया ओर न्यांगली परिवार ने अदावत शुरू हो गया...‼️

बदमाश सुमेर फगेड़िया ने इसी के मध्य स्व वीरेन्द्र न्यांगली के परिजनों पर एक हमला करवाया...उस हमले में न्यांगली परिवार के काफी लोग हताहत हुए..उसी दिन वीरेंद्र न्यांगली ने प्रण लिया...इसका जबाब क्षत्रियोचित तरीके से दिया जाएगा...

25 सितम्बर 2002 को सुमेर फगेड़िया को कोर्ट परिसर से भारी पुलिस बल की मौजूदगी के बावजूद...गोली मारकर...कोर्ट परिसर के मध्य से डैड बॉडी को घसीटते हुए...उठाकर कर ले गए...जिसके बाद उसकी बॉडी आज तक
बरामद नही हुई...❓
(इस कदम से पूरे क्षेत्र में न्यांगली का जबरदस्त दबदबा हो गया)

जाट गैंग की कमान की कमान संभाल रहे विजेंदर टिलिया ओर क्षत्रिय युवाओ के मध्य जबरदस्त फायरिंग हुई इसमे विजेंदर टिलिया की आंख
फुट गयी और वो जान बचाकर अंडरग्राउंड हो गया...‼️

इन सबके मध्य न्यांगली पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित हुए ...बहुजन समाज पार्टी जॉइन करने के बाद उनके विरोधियों की नींदे उड़ गई...
एक क्षत्रिय नौजवान ने पूरी जाट सत्ता को हिला कर रख दिया था❗

2008 के विधानसभा चुनाव में सादुलपुर से स्व: वीरेंद्र न्यांगली ने पर्चा भरा ओर बिना किसी राजनैतिक अनुभव के जबरदस्त चुनाव लड़ा ओर मात्र 6 हज़ार के आस पास मतों से हार गए...

6 फरवरी 2009 को शीतला चोक स्थित एक सलून से बाहर निकलते वक्त
कनपटी के पास से गोली मारकर हत्या कर दी ...😢😢

इसके पश्यात पूरे चुरू जिले में समर्थको ने चक्का जाम कर दिया...बसे फूंक दी गयी...सिधमुख थाने को जला दिया गया...जिसके बाद पूरे जिले में
कर्फ्यू लगा दिया गया..❗
इसके बाद वीरेंद्र की जगह इनके भाई मनोज न्यांगली ने ली ...उनके ऊपर भी उनके कार्यालय में जानलेवा हमला हुआ...जिसमे उनकी एक आंख क्षतिग्रस्त हो गयी...लेकिन स्व: वीरेंद्र के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए
इन्होंने भी लड़ाई जारी रखी‼️
2013 में जबरदस्त भाजपा लहर के बावजूद सादुलपुर से जाट तिलस्म को तोड़कर विद्यायक बने...ओर 3% के वोटिंग अंतराल से जीत दर्ज की...
इन्हें टोटल वोट का 39%वोट शेयर मिला था‼️

2018 के चुनाव में जाट लॉबी ने भाजपा -कांग्रेस के प्रत्याशी के मध्य डील करवाकर कांग्रेस के उम्मीदवार को जॉइंट उम्मीदवार बना दिया जिसके कारण मनोज न्यांगली 14 हज़ार मतों से पराजित हो गए...‼️

आज उस वीर की पुण्यतिथि है,जिसने क्षेत्र के लोगो को मानसिक गुलामी के विरुद्ध लड़ना सीखा दिया...ऐसे वीर को शत शत नमन...🙏🙏

तोमर राजपूतों के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता हुआ दिल्ली का पुराना किला
10/02/2024

तोमर राजपूतों के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता हुआ दिल्ली का पुराना किला

 #पूरी__पोस्ट_पढ़ें ाजन्य___क्षत्रिय____राजपूत___ #राजपूत हिन्दी का शब्द है। यह संस्कृत शब्द राजपुत्र शब्द का अपभ्रंश है।...
10/02/2024

#पूरी__पोस्ट_पढ़ें

ाजन्य___क्षत्रिय____राजपूत___

#राजपूत हिन्दी का शब्द है। यह संस्कृत शब्द राजपुत्र शब्द का अपभ्रंश है। यह भाषाविज्ञान से प्रमाणित होता है की पुत्र शब्द का अपभ्रंश 'पूत' है।
प्राचीन ग्रन्थों मे राजपूतों के लिय राजपुत्र, रजन्य, बाहुज आदि शब्द भी मिलते हैं। यजुर्वेद जो सायं ईश्वरकृत रचना है मे भी राजपूतों की खूब चर्चा हुई है।

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ब्रध्यतां राजपुत्राश्च बाहू राजन्य कृतः
बध्यतां राजपुत्राणाम क्रंदता मिततेरम .... यजुर्वेद अध्याय 3

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महाराज विक्रमादित्य के कवि अमरसिंघ अपनी रचना अमरकोश मे राजपूत या रजन्य के निम्नलिखित पर्यायवाची शब्द बताते हैं।

भूधारमिषिक्त राजन्यों बाहुज क्षत्रियो विरोट
राजा राट पार्थिव क्षमाभृनृय भूप महिक्षितः

अर्थात मूर्धाभिषिक्त, रजन्य, बहुज, क्षत्रिय, विरोट, राजा, पार्थिव, क्षमाभृनृय भूप और महीक्षित यह सभी क्षत्रियों के ही पर्यायवाची शब्द हैं। इसके बाद पुराणों मे सूर्य और चन्द्र वंश के राजपूतों के वंश हैं, की उत्पत्ति भी क्षत्रियों से मानी गयी हैं

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चंद्रादित्य मनुनांच प्रवाराः क्षत्रियाः स्मृतः.... ब्रह्मावैवर्त पुराण, 10-15

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इसके अतिरिक्त कालीदास के माल्विकाग्निमित्रम कौटिल्य के अर्थशास्त्र अश्वघोष कृत सौंदरानंद तथा बाण के हर्ष चरित मे भी राजपुत्र शब्द का उल्लेख किया गया है। कवि बाण लिखते हैं -

अभिजात राजपुत्र प्रेष्यमाण कुप्यमुक्ता कुल कुलीन कुल पुत्र वाहने.. सप्तम उच्छ्वास पृष्ठ 364
अर्थात सेना के साथ आभिजात्य राजपूतों द्वारा भेजे गए पीतल पत्रों से मढ़े वाहनों मे कुलीन राजपुत्रों की स्त्रियाँ जा रही हैं ।

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ॠगवेद में
‘कस्य धतधवस्ता भवथ: कस्य बानरा,।
राजपुत्रेव सवनाय गच्छद’॥

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यजुर्वेद में
‘पश्वी राजपुत्रो गोपायति राजन्यों वै प्रजानामधिपति रायुध्रुंव आयुरेव
गोपात्यथो क्षेत्रमेव गोवायते’॥

🙏🚩

ऋग्वेद में क्षत्रिय शब्द का उल्लेख हुआ है, जो आर्यों का एक महत्वपूर्ण वर्ग था-
मम द्रिता राष्ट्र क्षत्रियस्य ।
विश्वायोविर्श्वे अम्रता यथा न: ।।
वैदिक काल में इनका दूसरा नाम राजन्य रहा है।

💪💪

महाराजा हर्षवर्धन खुद को राजपुत्रः शिलादित्य कहलाना पसन्द करते थे

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नवशशांक - चरित' (९७४ - १०००) ई....नीलकंठ शास्री को अग्निवंश का प्रमाण दक्षिण भारत के एक शासक कुलोतुंग तृतीय (११७८ - १२१६ ई०) के शिलालेख से मिलता है।

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कुमारपाल प्रभंध
राजा कुमार पाल प्रब्न्ध में आप राजपूतो से प्राचीन वंश की जुडी बाते पढ सकते है

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पृथ्वीराजरासो
मध्यकाल से पूर्व में लिखी गयी इस किताब में राजपूतो के 36 राजवंशो का उललेख है

📖

हम्मीर महा काव्य
📖

12वीं शताब्दी का बिजोलिया शिलालेख

बिजोलिया में स्थित प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर विक्रम सम्वत् 1226 फाल्गुन कृष्णा तृतीया (5 फ़रवरी, 1170) का एक लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बिजोलिया शिलालेख कहलाता है। लेख की पुष्पिका में इसके रचयिता का नाम गुणभद्र, लेखक कायस्थ केशव, खोदने वाले का नाम आदि लिखा हुआ है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि 12वीं शती तक कायस्थ जाति विशेष नहीं होकर लेखक की पदवी होती थी।

बिजोलिया में उपलब्ध लेख संस्कृत भाषा में है। इसमें 13 पद्य हैं। इसमें मन्दिर निर्माण की जानकारी के साथ-साथ सांभर और अजमेर के चौहान वंश के शासकों की उपलब्धियों का भी प्राचीन उल्लेख किया गया है।

इतिहासकारो ने राजपूतो को भारतीय उपमहादिव्प का प्राचीन क्षत्रिय माना है कुछ इतिहास कारो के नाम और संदर्भ

📘 सी वि वैध
📘 गौरी शंकर
📘 हीराचन्द ओझा
📘 डॉ हरिराम
📘 डॉ रमेश चंद्र मजूमदार
📘 डॉ दशरथ शर्मा
📘 विश्वम्भर पाठक
📘 के ऍम

https://www.rajputland.in/

https://www.facebook.com/groups/465837800439629/

10/02/2024

चक्रवर्ती सम्राट,धार नरेश,मॉ सरस्वती के वरद पुत्र राजपूत सम्राट राजा भोज परमार की जयंती पर उनके चरणों मे कोटि कोटि नमन.....
06/02/2024

चक्रवर्ती सम्राट,धार नरेश,मॉ सरस्वती के वरद पुत्र राजपूत सम्राट राजा भोज परमार की जयंती पर उनके चरणों मे कोटि कोटि नमन... 👏👏👏

लेखक : सचिन सिंह गौड़, संपादक, "सिंह गर्जना" हिंदी पत्रिका

राजा भोज (Raja Bhoj) जो अपने समय के भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ सम्राट थे, विलक्षण योद्धा थे, अद्भुत पराक्रमी तथा कुशल प्रशासक थे। जिनका शासन लगभग पूरे भारतवर्ष पर था। राजा भोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनकी तुलना सम्राट विक्रमादित्य से होती है। राजा भोज एक ऐसे ऐतिहासिक सम्राट हैं जो अपने अद्भुत कृत्यों के कारण ऐतिहासिक होते हुए भी पौराणिक हो गये। क्योंकि साधारण जनमानस के लिये राजा भोज अपने कार्यों, अपने शौर्य अपने प्रभाव के कारण देवता तुल्य हो जाते हैं और उनके साथ अनेक किंवदंतियां भी जुड़ जाती हैं।

भारतीय इतिहास में राजा भोज आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय राजा और लोकनायक के रूप में जन-जन में विख्यात हैं। हिन्दी भाषी क्षेत्र में इस कहावत से सभी परिचित हैं कि कहां राजाभोज और कहां गंगूतेली। दसवीं सदी के अंतिम दशक में जन्में राजा भोज ने 1010 ईस्वी से 1055 ईस्वी तक मध्य भारत में राज्य किया। उनकी राजधानी धारा (Dhar, MP) नगरी, जिसे वर्तमान में धार कहा जाता है, थी और उनका राज्य गुजरात तथा मध्यप्रांत के क्षेत्रों में फैला हुआ था।
प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ. रेवा प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन संस्कृत साहित्य पर शोध के दौरान मलयाली भाषा में भोज की रचनाओं की खोज करने के बाद यह माना है, कि राजा भोज का शासन सुदूर केरल के समुद्र तट तक था। राजा भोज ने मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल नगर की स्थापना की थी। लोक विश्वास है कि भोपाल का नाम भोजकाल में भोजपाल था। राजा भोज ने ही भोपाल में विस्तृत और विशाल प्राकृतिक झील को बांधकर तालाब का रूप दिया था, जो आज भी कायम है। राजाभोज द्वारा निर्मित शिवमंदिर, भोपाल के निकट भोजपुर में आज भी अपने विगत वैभव की याद दिलाता है। समस्त भारत के ओज और गौरव का प्रतिबिम्ब हैं राजा भोज। ये महानायक भारत कि संस्कृति में, साहित्य में, लोक-जीवन में, भाषा में और जीवन के प्रत्येक अंग और रंग में विद्यमान है। ये वास्तुविद्या और भोजपुरी भाषा और संस्कृति के जनक है।

‘‘राजा भोज’’ पुस्तक के लेखक एवं राजा भोज पर गहन शोध और अध्ययन कर चुके डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित के अनुसार ‘‘भारतीय राजाओं में परमार राजा भोज अद्धितीय है। उनकी राजधानी धारानगरी (धार) होने से घारेश्वर और राज्य का केन्द्र मालवा होने से मालवाधीश भी कहलाते थे। वे परम विद्धान, परम शक्तिशाली और सुयोग्य तथा लोकप्रिय राजा के रूप में अपने समय ही विख्यात हो गये थे। उनके ताम्रपत्र, शिलालेख तथा मुर्तिलेख प्राप्त होते है। अपने असामान्य कर्मो के कारण राजा भोज अपने युग में ही कथा कहानियां के नायक के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे। बाद में तो महाराज विक्रमादित्य के समान महाराज भोज भी भारत के ऐसे लोकनायक के रूप में मान्य हो गये कि उनकी कहानियाँ न केवल भारतीय जनता में, लोक में प्रसिद्ध हो गयी थी अपितु लंका, नेपाल, तिब्बत, मंगोलिया सहित कई देशो में भी फैल गयी थी। मंगोली भाषा मे ‘अराजि बुजि’ पुस्तक राजा भोज सम्बन्धी है। राजा भोज की ‘चाणक्यमाणिक्य’ पुस्तक का एक तिब्बती रूप भी प्राप्त होता है। राजा भोज इतिहास पुरुष होते हुए भी मिथक पुरुष हो गये। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। वे अपने अपने युग के मित्र राजाओं के समान शत्रु राजाओं के भी अपने विविध वर्णी उदात्त गुणों के कारण आदर्श बन गये थे। यही नहीं सदियों तक परवर्ती अनेक राजा भी स्वयं को लघु भोजराज, अपर भोजराज, नव भोजराज आदि कहने में गौरव का अनुभव करते रहे है। राजा भोज के अभिलेख 1010 से 1034 ई. तक प्राप्त होते है।’’

राजा भोज की आयु
एक परम्परा कहती है कि राजा भोज की आयु 90 वर्ष रही। 1055 में से 90 कम होने पर 965 ई. भोज का जन्म सन प्रतीत होता है। अन्य परम्परा कहती है कि राजा भोज ने 55 वर्ष 7 मास 3 दिन तक राज्य किया। इससे प्रतीत होता है कि 999 ई. में राजा भोज ने राजसिंघासन ग्रहण किया था। और उस समय वे 34 वर्ष 4 मास 27 दिन के हो चुके थे। इस समय तक जिसका 1010 ई. का मोडासा (गुजरात) ताम्रपत्र प्राप्त होते है। दूसरे पुत्र देवराज का किराडू लेक 1002 ई. का प्राप्त होते है। यह राजस्थान के कुछ भाग (भिनमालादि) का राज्यपाल था। इनकी एक बेटी राजमती थी। इसका साँभर के राजा बीसलदेव से विवाह हुआ था। एक भीली लोक कथा के अनुसार राजा भोज के एक पुत्र का नाम वीरसिंघ था। एक जैन ग्रन्थ के अनुसार 1077 (1020ई.) में राजा भोज के पुत्र वीरनारायण ने सेवाणा बसाया। राजा भोज की एक उपाधि त्रिभुवननारायण थी। अतः उनके पुत्र का नाम वीरनारायण होना असंभव नहीं है। इस वीरनारायण को ही भीली कथा में वीरसिंघ कहा गया अथवा ये दोनों मित्र थे- यह प्रमाणाभाव में नहीं कहा जा सकता।

राजा भोज की यों तो सौ पत्नियों का उल्लेख प्राप्त होता है। परन्तु गुणमंजरी, सौभाग्यसुन्दरी, सत्यवती, मदनमंजरी, भानुमति, लीलावती, सुभद्रा आदि रानियों के नाम प्राप्त होते है। इनमें से लीलावती पटरानी बतायी गयी है। जिस प्रकार सम्भवतः अपात्र होने से मुंज ने अपने पुत्रांे को परमारों के मालवा की केन्द्रीय सत्ता नहीं सौपी थी और न भोज के अग्रज को सौंपी, बल्कि सर्वाधिक योग्य होने से भोजदेव को ही राजा बनाया था, यहाँ तक कि उसने अपने अनुज सिन्धुल को भी सत्ता नही सौंपी, उसी प्रकार सम्भवतः पात्रता के आधार पर ही राजा भोज ने अपने किसी भाई-बन्धु या पुत्र को सत्ता न सौंपते हुए पौत्र जयसिंघ को मालवा का अपना उत्तराधिकारी बनाया था।

राजा भोज के पराक्रम को भारतीय जनसाधारण ने जो स्वीकृति दी है। उसका ही परिणाम यह सर्वज्ञात और लोकप्रिय कहावत है ‘कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली (या गांगी तेलन)।’ इस कहावत के द्वारा जनता ने तत्कालीन परम प्रतापी गांगेयदेव और तेलन को एक साथ भोज ने पराजित कर दिया था-इस बात को सदा के लिए जनमन में स्थापित कर दिया। इससे राजा भोज की शक्ति की धाक सब मानने लगे थे। यही कारण है कि यह कहावत भारत की विभिन्न भाषाआंे और बोलियांे में सुप्रचलित और सर्वमान्य है।

राजा भोज की विजय और साम्राज्य
राजा भोज ने चेदि के कलचुरि राजा गांगेयदेव, कर्णाटक के चालुक्य राजा तैलप द्धितीय, आदि-नगर के राजा इन्द्ररथ, लाट के भीमदेव, कान्यकुब्ज के गुर्जर प्रतिहार राजा राज्यपाल, तुरुष्क (तर्क) राजा, शालम्भरी के चैहान राजा वीर्यराम, डुबकुण्ड के राजा अभिमन्यु, विदर्भ के राजा भिल्ल्स (तृतीय) सहित विभित्र राजाओं को पराजित करके अपनी राजशक्ति और राज्यसीमा में पर्याप्त वृद्धि कर ली थी। राजा भोज के बहुमुखी सामथ्र्य के कारण सैकड़ों राजा यशस्वी भोज को अपना राजाधिराज मानते थे। राजा भोज की कृपा अर्जित करने के लिए तथा उनसे सन्धि करने के लिए कन्योपायन आदि के लिए विभिन्न राजा आतुर रहते थे। परिणामः राजा भोज के राज्यक्षेत्र औए प्रभावक्षेत्र में प्रायः पूरा भारत बताया जाता रहा। प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार चोल, आन्ध्र, कर्णाटक, गुर्जर, चोदी, कान्यकुब्ज (कन्नौज का राजा) सहित विभिन्न राजा लोग राजा भोज के प्रभाव क्षेत्र में थे और वे सदा उसका भयभरा आदर करते थे।

पारम्परिक साहित्य में राजा भोज के राज्यक्षेत्र बताने वाले कई श्लोक है जिनकी पुष्टि शिलालेखों से भी होती है। ऐसे ही एक पूर्वाक्त श्लोक से ज्ञात होता है कि राजा भोज ने 55 वर्ष 7 माह और 3 दिन तक राज्य शासन किया।
राजा भोज ने गौड़ सहित दक्षिणापथ पर राज्य किया। उदरपुर प्रशासित नामक प्रसिद्ध शिलालेख में कहा गया है कि कैलास पर्वत (तिब्बत) से मलयगिरि (केरल) तक तथा पूर्व में उदयांचल से पश्चिम में अस्तांचल तक व्याप्त पुरे भारत की पृथ्वी पर राजा पृथु के समान राजा भोज ने शासन किया। राजा भोज के ग्रंथो से भी ज्ञात होता है कि उनके सामन्तों की संख्या सैकड़ों में थी। राजा भोज राजाओं के भी राजा थे।

राजा भोज का जीवन क्रम
965 ई. में राजा भोज का जन्म।
973 ई. में आठ वर्ष की अवस्था में युवराज (राजा?)बनना।
1015-1019 राजा भोज का चालुक्य जयसिंघ से युद्ध।
1019 कोंकण पर अधिकार।
1025 सोमनाथ पर महमूद का आक्रमण।
1030 भोज और भीम द्दारा सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण।
1030 भोज के राज्यकाल में अल्बरुनी का धार आना।
1035 भोज की त्रिपुरी पर विजय।
1036 भोज की कन्नौज पर विजय।
1042 कल्याणी के चालुक्य जयसिंघ को पराजित कर मार देना।

महान योद्धा  #अमरसिंहजी_राठौड़ को कोटिश: नमन ⚔️🌹
06/02/2024

महान योद्धा #अमरसिंहजी_राठौड़ को कोटिश: नमन ⚔️🌹

ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र बनवाने के संबंध में इस पोस्ट में विस्तृत जानकारी दी गई है।---------------------------------------...
05/02/2024

ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र बनवाने के संबंध में इस पोस्ट में विस्तृत जानकारी दी गई है।
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इन शर्तों में राजस्थान सरकार ने 5 एकड़ कृषि भूमि और 1000 वर्ग फुट के प्लॉट की शर्त को समाप्त कर दिया है। केवल 8 लाख वार्षिक आय की सीमा शर्त रखी गई है।

लेकिन केंद्र में और अन्य राज्यों में 5 एकड़ कृषि भूमि और 1000 वर्ग फुट के प्लाट की शर्त को समाप्त नहीं किया गया है।

केंद्र में और अन्य राज्यों में 5 एकड़ कृषि भूमि और 1000 वर्ग फुट के प्लॉट की शर्त को समाप्त करने की मांग की जा रही है। लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

अब 2024 में लोकसभा चुनाव नजदीक हैं ।तो इस मांग को जोर-शोर से उठाना चाहिए कि ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र बनवाने में 5 एकड़ कृषि भूमि और 1000 वर्ग फुट के प्लॉट की शर्त को केंद्र द्वारा एवं राज्यों द्वारा समाप्त किया जाए।

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