06/02/2024
चक्रवर्ती सम्राट,धार नरेश,मॉ सरस्वती के वरद पुत्र राजपूत सम्राट राजा भोज परमार की जयंती पर उनके चरणों मे कोटि कोटि नमन... 👏👏👏
लेखक : सचिन सिंह गौड़, संपादक, "सिंह गर्जना" हिंदी पत्रिका
राजा भोज (Raja Bhoj) जो अपने समय के भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ सम्राट थे, विलक्षण योद्धा थे, अद्भुत पराक्रमी तथा कुशल प्रशासक थे। जिनका शासन लगभग पूरे भारतवर्ष पर था। राजा भोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनकी तुलना सम्राट विक्रमादित्य से होती है। राजा भोज एक ऐसे ऐतिहासिक सम्राट हैं जो अपने अद्भुत कृत्यों के कारण ऐतिहासिक होते हुए भी पौराणिक हो गये। क्योंकि साधारण जनमानस के लिये राजा भोज अपने कार्यों, अपने शौर्य अपने प्रभाव के कारण देवता तुल्य हो जाते हैं और उनके साथ अनेक किंवदंतियां भी जुड़ जाती हैं।
भारतीय इतिहास में राजा भोज आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय राजा और लोकनायक के रूप में जन-जन में विख्यात हैं। हिन्दी भाषी क्षेत्र में इस कहावत से सभी परिचित हैं कि कहां राजाभोज और कहां गंगूतेली। दसवीं सदी के अंतिम दशक में जन्में राजा भोज ने 1010 ईस्वी से 1055 ईस्वी तक मध्य भारत में राज्य किया। उनकी राजधानी धारा (Dhar, MP) नगरी, जिसे वर्तमान में धार कहा जाता है, थी और उनका राज्य गुजरात तथा मध्यप्रांत के क्षेत्रों में फैला हुआ था।
प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ. रेवा प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन संस्कृत साहित्य पर शोध के दौरान मलयाली भाषा में भोज की रचनाओं की खोज करने के बाद यह माना है, कि राजा भोज का शासन सुदूर केरल के समुद्र तट तक था। राजा भोज ने मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल नगर की स्थापना की थी। लोक विश्वास है कि भोपाल का नाम भोजकाल में भोजपाल था। राजा भोज ने ही भोपाल में विस्तृत और विशाल प्राकृतिक झील को बांधकर तालाब का रूप दिया था, जो आज भी कायम है। राजाभोज द्वारा निर्मित शिवमंदिर, भोपाल के निकट भोजपुर में आज भी अपने विगत वैभव की याद दिलाता है। समस्त भारत के ओज और गौरव का प्रतिबिम्ब हैं राजा भोज। ये महानायक भारत कि संस्कृति में, साहित्य में, लोक-जीवन में, भाषा में और जीवन के प्रत्येक अंग और रंग में विद्यमान है। ये वास्तुविद्या और भोजपुरी भाषा और संस्कृति के जनक है।
‘‘राजा भोज’’ पुस्तक के लेखक एवं राजा भोज पर गहन शोध और अध्ययन कर चुके डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित के अनुसार ‘‘भारतीय राजाओं में परमार राजा भोज अद्धितीय है। उनकी राजधानी धारानगरी (धार) होने से घारेश्वर और राज्य का केन्द्र मालवा होने से मालवाधीश भी कहलाते थे। वे परम विद्धान, परम शक्तिशाली और सुयोग्य तथा लोकप्रिय राजा के रूप में अपने समय ही विख्यात हो गये थे। उनके ताम्रपत्र, शिलालेख तथा मुर्तिलेख प्राप्त होते है। अपने असामान्य कर्मो के कारण राजा भोज अपने युग में ही कथा कहानियां के नायक के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे। बाद में तो महाराज विक्रमादित्य के समान महाराज भोज भी भारत के ऐसे लोकनायक के रूप में मान्य हो गये कि उनकी कहानियाँ न केवल भारतीय जनता में, लोक में प्रसिद्ध हो गयी थी अपितु लंका, नेपाल, तिब्बत, मंगोलिया सहित कई देशो में भी फैल गयी थी। मंगोली भाषा मे ‘अराजि बुजि’ पुस्तक राजा भोज सम्बन्धी है। राजा भोज की ‘चाणक्यमाणिक्य’ पुस्तक का एक तिब्बती रूप भी प्राप्त होता है। राजा भोज इतिहास पुरुष होते हुए भी मिथक पुरुष हो गये। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। वे अपने अपने युग के मित्र राजाओं के समान शत्रु राजाओं के भी अपने विविध वर्णी उदात्त गुणों के कारण आदर्श बन गये थे। यही नहीं सदियों तक परवर्ती अनेक राजा भी स्वयं को लघु भोजराज, अपर भोजराज, नव भोजराज आदि कहने में गौरव का अनुभव करते रहे है। राजा भोज के अभिलेख 1010 से 1034 ई. तक प्राप्त होते है।’’
राजा भोज की आयु
एक परम्परा कहती है कि राजा भोज की आयु 90 वर्ष रही। 1055 में से 90 कम होने पर 965 ई. भोज का जन्म सन प्रतीत होता है। अन्य परम्परा कहती है कि राजा भोज ने 55 वर्ष 7 मास 3 दिन तक राज्य किया। इससे प्रतीत होता है कि 999 ई. में राजा भोज ने राजसिंघासन ग्रहण किया था। और उस समय वे 34 वर्ष 4 मास 27 दिन के हो चुके थे। इस समय तक जिसका 1010 ई. का मोडासा (गुजरात) ताम्रपत्र प्राप्त होते है। दूसरे पुत्र देवराज का किराडू लेक 1002 ई. का प्राप्त होते है। यह राजस्थान के कुछ भाग (भिनमालादि) का राज्यपाल था। इनकी एक बेटी राजमती थी। इसका साँभर के राजा बीसलदेव से विवाह हुआ था। एक भीली लोक कथा के अनुसार राजा भोज के एक पुत्र का नाम वीरसिंघ था। एक जैन ग्रन्थ के अनुसार 1077 (1020ई.) में राजा भोज के पुत्र वीरनारायण ने सेवाणा बसाया। राजा भोज की एक उपाधि त्रिभुवननारायण थी। अतः उनके पुत्र का नाम वीरनारायण होना असंभव नहीं है। इस वीरनारायण को ही भीली कथा में वीरसिंघ कहा गया अथवा ये दोनों मित्र थे- यह प्रमाणाभाव में नहीं कहा जा सकता।
राजा भोज की यों तो सौ पत्नियों का उल्लेख प्राप्त होता है। परन्तु गुणमंजरी, सौभाग्यसुन्दरी, सत्यवती, मदनमंजरी, भानुमति, लीलावती, सुभद्रा आदि रानियों के नाम प्राप्त होते है। इनमें से लीलावती पटरानी बतायी गयी है। जिस प्रकार सम्भवतः अपात्र होने से मुंज ने अपने पुत्रांे को परमारों के मालवा की केन्द्रीय सत्ता नहीं सौपी थी और न भोज के अग्रज को सौंपी, बल्कि सर्वाधिक योग्य होने से भोजदेव को ही राजा बनाया था, यहाँ तक कि उसने अपने अनुज सिन्धुल को भी सत्ता नही सौंपी, उसी प्रकार सम्भवतः पात्रता के आधार पर ही राजा भोज ने अपने किसी भाई-बन्धु या पुत्र को सत्ता न सौंपते हुए पौत्र जयसिंघ को मालवा का अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
राजा भोज के पराक्रम को भारतीय जनसाधारण ने जो स्वीकृति दी है। उसका ही परिणाम यह सर्वज्ञात और लोकप्रिय कहावत है ‘कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली (या गांगी तेलन)।’ इस कहावत के द्वारा जनता ने तत्कालीन परम प्रतापी गांगेयदेव और तेलन को एक साथ भोज ने पराजित कर दिया था-इस बात को सदा के लिए जनमन में स्थापित कर दिया। इससे राजा भोज की शक्ति की धाक सब मानने लगे थे। यही कारण है कि यह कहावत भारत की विभिन्न भाषाआंे और बोलियांे में सुप्रचलित और सर्वमान्य है।
राजा भोज की विजय और साम्राज्य
राजा भोज ने चेदि के कलचुरि राजा गांगेयदेव, कर्णाटक के चालुक्य राजा तैलप द्धितीय, आदि-नगर के राजा इन्द्ररथ, लाट के भीमदेव, कान्यकुब्ज के गुर्जर प्रतिहार राजा राज्यपाल, तुरुष्क (तर्क) राजा, शालम्भरी के चैहान राजा वीर्यराम, डुबकुण्ड के राजा अभिमन्यु, विदर्भ के राजा भिल्ल्स (तृतीय) सहित विभित्र राजाओं को पराजित करके अपनी राजशक्ति और राज्यसीमा में पर्याप्त वृद्धि कर ली थी। राजा भोज के बहुमुखी सामथ्र्य के कारण सैकड़ों राजा यशस्वी भोज को अपना राजाधिराज मानते थे। राजा भोज की कृपा अर्जित करने के लिए तथा उनसे सन्धि करने के लिए कन्योपायन आदि के लिए विभिन्न राजा आतुर रहते थे। परिणामः राजा भोज के राज्यक्षेत्र औए प्रभावक्षेत्र में प्रायः पूरा भारत बताया जाता रहा। प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार चोल, आन्ध्र, कर्णाटक, गुर्जर, चोदी, कान्यकुब्ज (कन्नौज का राजा) सहित विभिन्न राजा लोग राजा भोज के प्रभाव क्षेत्र में थे और वे सदा उसका भयभरा आदर करते थे।
पारम्परिक साहित्य में राजा भोज के राज्यक्षेत्र बताने वाले कई श्लोक है जिनकी पुष्टि शिलालेखों से भी होती है। ऐसे ही एक पूर्वाक्त श्लोक से ज्ञात होता है कि राजा भोज ने 55 वर्ष 7 माह और 3 दिन तक राज्य शासन किया।
राजा भोज ने गौड़ सहित दक्षिणापथ पर राज्य किया। उदरपुर प्रशासित नामक प्रसिद्ध शिलालेख में कहा गया है कि कैलास पर्वत (तिब्बत) से मलयगिरि (केरल) तक तथा पूर्व में उदयांचल से पश्चिम में अस्तांचल तक व्याप्त पुरे भारत की पृथ्वी पर राजा पृथु के समान राजा भोज ने शासन किया। राजा भोज के ग्रंथो से भी ज्ञात होता है कि उनके सामन्तों की संख्या सैकड़ों में थी। राजा भोज राजाओं के भी राजा थे।
राजा भोज का जीवन क्रम
965 ई. में राजा भोज का जन्म।
973 ई. में आठ वर्ष की अवस्था में युवराज (राजा?)बनना।
1015-1019 राजा भोज का चालुक्य जयसिंघ से युद्ध।
1019 कोंकण पर अधिकार।
1025 सोमनाथ पर महमूद का आक्रमण।
1030 भोज और भीम द्दारा सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण।
1030 भोज के राज्यकाल में अल्बरुनी का धार आना।
1035 भोज की त्रिपुरी पर विजय।
1036 भोज की कन्नौज पर विजय।
1042 कल्याणी के चालुक्य जयसिंघ को पराजित कर मार देना।