Raman Deep Singla

Raman Deep Singla Have 17 year experience in stock market

05/01/2024

Ram Ram Ji

23/07/2023

लड़कियों के एक विद्यालय में आई नई अध्यापिका बहुत खूबसूरत थी, बस उम्र थोड़ी अधिक हो रही थी लेकिन उसने अभी तक शादी नहीं की थी...
सभी छात्राएं उसे देखकर तरह तरह के अनुमान लगाया करती थीं। एक दिन किसी कार्यक्रम के दौरान जब छात्राएं उसके इर्द-गिर्द खड़ी थीं तो एक छात्रा ने बातों बातों में ही उससे पूछ लिया कि मैडम आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की...?
अध्यापिका ने कहा- "पहले एक कहानी सुनाती हूं। एक महिला को बेटे होने की लालच में लगातार पांच बेटियां ही पैदा होती रहीं। जब छठवीं बार वह गर्भवती हुई तो पति ने उसको धमकी दी कि अगर इस बार भी बेटी हुई तो उस बेटी को बाहर किसी सड़क या चौक पर फेंक आऊंगा। महिला अकेले में रोती हुई भगवान से प्रार्थना करने लगी, क्योंकि यह उसके वश की बात नहीं थी कि अपनी इच्छानुसार बेटा पैदा कर देती। इस बार भी बेटी ही पैदा हुई। पति ने नवजात बेटी को उठाया और रात के अंधेरे में शहर के बीचों-बीच चौक पर रख आया। मां पूरी रात उस नन्हीं सी जान के लिए रो रोकर दुआ करती रही। दूसरे दिन सुबह पिता जब चौक पर बेटी को देखने पहुंचा तो देखा कि बच्ची वहीं पड़ी है। उसे जीवित रखने के लिए बाप बेटी को वापस घर लाया लेकिन दूसरी रात फिर बेटी को उसी चौक पर रख आया। रोज़ यही होता रहा। हर बार पिता उस नवजात बेटी को बाहर रख आता और जब कोई उसे लेकर नहीं जाता तो मजबूरन वापस उठा लाता। यहां तक कि उसका पिता एक दिन थक गया और भगवान की इच्छा समझकर शांत हो गया। फिर एक वर्ष बाद मां जब फिर से गर्भवती हुई तो इस बार उनको बेटा हुआ। लेकिन कुछ ही दिन बाद ही छह बेटियों में से एक बेटी की मौत हो गई, यहां तक कि माँ पांच बार गर्भवती हुई और हर बार बेटे ही हुए। लेकिन हर बार उसकी बेटियों में से एक बेटी इस दुनियां से चली जाती।"
अध्यापिका की आंखों से आंसू गिरने लगे थे। उसने आंसू पोंछकर आगे कहना शुरु किया।
"अब सिर्फ एक ही बेटी ज़िंदा बची थी और वह वही बेटी थी, जिससे बाप जान छुड़ाना चाह रहा था। एक दिन अचानक मां भी इस दुनियां से चली गई। इधर पांच बेटे और एक बेटी सब धीरे धीरे बड़े हो गए।"
अध्यापक ने फिर कहा- "पता है वह बेटी जो ज़िंदा बची रही, मैं ही हूं। मैंने अभी तक शादी इसलिए नहीं की, कि मेरे पिता अब इतने बूढ़े हो गए हैं कि अपने हाथ से खाना भी नहीं खा सकते और अब घर में और कोई नहीं है जो उनकी सेवा कर सकें। बस मैं ही उनकी सेवा और देखभाल किया करती हूं। जिन बेटों के लिए पिताजी परेशान थे, वो पांच बेटे अपनी अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ अलग रहते हैं। बस कभी-कभी आकर पिता का हालचाल पूछ जाते हैं।"
वह थोड़ा मुस्कराई। फिर बोली -
"मेरे पिताजी अब हर दिन शर्मिंदगी के साथ रो-रो कर मुझ से कहा करते हैं, मेरी प्यारी बेटी जो कुछ मैंने बचपन में तेरे साथ किया उसके लिए मुझे माफ कर देना।"
दोस्तों, बेटी की बाप से मुहब्बत के बारे में एक प्यारा सा किस्सा यह भी है कि एक पिता बेटे के साथ खेल रहा था। बेटे का हौंसला बढ़ाने के लिए वह जान बूझ कर हार जा रहा था। दूर बैठी बेटी बाप की हार बर्दाश्त ना कर सकी और बाप के साथ लिपटकर रोते हुए बोली- "पापा ! आप मेरे साथ खेलिए, ताकि मैं आपकी जीत के लिए हार सकूँ।"

ऐसी होती हैं बेटियां....!

06/05/2023

*प्रेरक प्रसंग: कॉमन सेंस'*

एक पंडितजी के घर में उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था।

उनका नाम पंडित विष्णुदत्त शास्त्री था। पंडितजी ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने दाई से कह रखा था कि जैसे ही बालक का जन्म हो नींबू प्रसूतिकक्ष से बाहर लुढ़का देना।

बालक जन्मा लेकिन बालक रोया नहीं तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी और पीठ को मला और अंततः बालक रोया।
दाई ने नींबू बाहर लुढ़काया और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई।

उधर पंडितजी ने गणना की तो उन्होंने पाया कि बालक की कुंडली में पितृहंता योग है अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों ही उनकी मृत्यु का योग है।

पंडितजी शोक में डूब गए और अपने पुत्र को इस लांक्षन से बचाने के लिए बिना कुछ कहे बताए घर छोड़कर चले गए।

सोलह साल बीते।

बालक अपने पिता के विषय में पूछता लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सबकुछ बताकर चुप हो जाती क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था।

अस्तु! पंडितजी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना।

उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई।

राजा ने डौंडी पिटवाई जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा उसे मुंहमांगा इनाम मिलेगा लेकिन गलत साबित हुई तो उसे मृत्युदंड मिलेगा।

बालक ने गणना की और निकल पड़ा।

लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।

"राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी।" वृद्ध ज्योतिषी ने कहा।

बालक ने अपनी गणना से मिलान किया और आगे आकर बोला,"महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा।"

राजा ने अनुमति दे दी।

"राजन वर्षा आज ही होगी लेकिन चार बजे नहीं बल्कि चार बजे के कुछ पलों के बाद होगी।"

वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया और उन्होंने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली।

"महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे और ओले पचास ग्राम के होंगे।"

बालक ने फिर गणना की।

"महाराज ओले गिरेंगे लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से अडतालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं होगा।"

अब बात ठन चुकी थी।

लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का इंतजार करने लगे।

साढ़े तीन तक आसमान पर बादल का एक कतरा नहीं था लेकिन अगले बीस मिनिट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी।

अंधेरा सा छा गया। बिजली कड़कने लगी लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद न गिरी।

लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनिट हुये धरासार वर्षा होने लगी।

वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया।

आधे घण्टे की बारिश के बाद ओले गिरने शुरू हुए।

राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये।

कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला।

शर्त के अनुसार सैनिकों ने वृद्ध ज्योतिषी को सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा।

"महाराज, इन्हें छोड़ दिया जाये।" बालक ने कहा।

राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को मुक्त कर दिया गया।

"बजाय धन संपत्ति मांगने के तुम इस अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो।"

बालक ने सिर झुका लिया और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया तो उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे।

"क्योंकि ये सोलह साल पहले मुझे छोड़कर गये मेरे पिता श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं।"

वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा।

दोनों महल के बाहर चुपचाप आये लेकिन अंततः पिता का वात्सल्य छलक पड़ा और फफक कर रोते हुए बालक को गले लगा लिया।

"आखिर तुझे कैसे पता लगा कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ।"

"क्योंकि आप आज भी गणना तो सही करते हैं लेकिन कॉमन सेंस का प्रयोग नहीं करते।" बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा।

"मतलब"? पिता हैरान था।

"वर्षा का योग चार बजे का ही था लेकिन वर्षा की बूंदों को पृथ्वी की सतह तक आने में कुछ समय लगेगा कि नहीं?"

"ओले पचास ग्राम के ही बने थे लेकिन धरती तक आते आते कुछ पिघलेंगे कि नहीं?"

"और..."

"दाई माँ बालक को जन्म लेते ही नींबू थोड़े फैंक देगी, उसे कुछ समय बालक को संभालने में लगेगा कि नहीं और उस समय में ग्रहसंयोग बदल भी तो सकते हैं और पितृहंता योग पितृरक्षक योग में भी तो बदल सकता है न?"

पंडितजी के समक्ष जीवन भर की त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी और वह समझ गए कि केवल दो शब्दों के गुण के अभाव के कारण वह जीवन भर पीड़ित रहे और वह थे--
'कॉमन सेंस'।
🙏 *राधे राधे*🙏

01/05/2023

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