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30/11/2023
कुमाऊं के गांवों में आज से सातों-आठों लोकपर्व की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं. सातों-आठों कुमाऊं में बड़े उल्लास मनाया जाने...
21/08/2023

कुमाऊं के गांवों में आज से सातों-आठों लोकपर्व की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं. सातों-आठों कुमाऊं में बड़े उल्लास मनाया जाने वाला लोकपर्व है. (Biruda Panchami )
बिरुड़े का अर्थ पांच या सात प्रकार के भीगे हुये अंकुरित अनाज से है. कुमाऊं में भाद्रपद मास की पंचमी को बिरुड़े भिगाये जाते हैं. सामान्य रूप से यह महिना अंग्रेजी के अगस्त या सितम्बर महीने की तारीख में पड़ता है. (Biruda Panchami )
भाद्रपद महीने की पंचमी को बिरुड़-पंचमी कहते हैं. इस दिन एक साफ़ तांबे के बर्तन में पांच या सात अनाजों को भिगोकर मंदिर के समीप रखा जाता है . भिगो कर रखने वाले अनाजों में हैं मक्का, गेहूं, गहत , ग्रूस(गुरुस), चना, मटर व कलों.
सबसे पहले तांबे या पीतल का एक साफ़ बर्तन लिया जाता है. उसके चारों ओर गोबर से छोटी-छोटी नौ या ग्यारह आकृतियां बनाई जाती हैं जिसके बीच में दूब की घास लगाई जाती है. जो घर मिट्टी के होते हैं वहां मंदिर के आस-पास सफाई कर लाल मिट्टी से लिपाई की जाती है और मंदिर के समीप ही बर्तन को रखा जाता है.
कुमाऊं क्षेत्र में दालों में मसूर की दाल अशुद्ध मानी गयी है इसलिये कभी भी बिरुड़े में मसूर की दाल नहीं मिलायी जाती है. कुछ क्षेत्रों में जौं और सरसों एक पोटली में डालकर उस बर्तन में भिगो दिया जाता है जिसमें बिरुड़े भिगोए जाते हैं.सातों के दिन बिरुडों से गमारा (गौरा) की पूजा की जाती है और आठों के दिन बिरुडों से महेश (शिव) की पूजा की जाती है. पूजा किये गये बिरुडों को सभी लोगों को आशीष के रुप में दिया जाता है और अन्य बचे हुये बिरुड़े प्रसाद के रूप में पकाकर खाये जाते हैं.बिरुड़-पंचमी का लोक-महत्व के साथ-साथ कृषि महत्व भी है. पूरे कुमाऊं अंचल में मनाये जाने वाले सातों-आठों पर्व की शुरुआत है बिरुड़-पंचमी. ,🙏🙏🙏🙏

03/06/2022
Yum😋😋😋😋😋😋😋Kafal khalo
13/05/2022

Yum😋😋😋😋😋😋😋Kafal khalo

30/03/2022
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11/03/2022

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11/03/2022
20/01/2022
31/12/2021

Happy New Year 2022

पिथौरागढ़ के सोर घाटी स्थित मोस्टामानू मंदिर इस शहर के सबसे दिव्य स्थलों में से एक मन जाता है। विज्ञान की मानें तो जो पत...
20/12/2021

पिथौरागढ़ के सोर घाटी स्थित मोस्टामानू मंदिर इस शहर के सबसे दिव्य स्थलों में से एक मन जाता है। विज्ञान की मानें तो जो पत्थर ऊंगलियों के दम पर उठा लिया जाए उसे अकेले उठाना बच्चों का खेल माना जाता है लेकिन उस शिव मंदिर में विज्ञान का सिद्धांत भी फेल हो जाता है। बता दें कि, मोस्टा देवता को सोर घाटी क्षेत्र में वर्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। हर साल मोस्टामानू मंदिर परिसर में एक मेले का आयोजन किया जाता है, जहां रखे विशाल पत्थर उठाने की होड़ लगी रहती है। मान्यता है कि इस पत्थर को उठाने वाले की मनोकामना पूरी होती है, जिसे लेकर युवा सुबह से ही पत्थर उठाने में जुटे रहते हैं। हर साल इसमें से कुछ तो सफल रहते हैं और कुछ के हाथ मायूसी लगती है लेकिन सभी वर्ग के लोग इस मेले में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

मोस्टामानू मंदिर के परिसर में पहुंचते ही मन को असीम शांति मिलती है। चारों ओर से पर्वत शिखरों, चौड़ी-चौड़ी घाटियों से घिरे इस मंदिर से पूरे सोर के दर्शन होते हैं। बता दें कि इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि मोस्टादेवता वर्षा के देवता हैं। उन्हें इंद्र का पुत्र माना जाता है। माना जाता है कालिका मोस्टा देवता की माता हैं। मान्यता तो यह भी है कि कालिका जी भूलोक में मोस्टा देवता के साथ निवास करती हैं। इंद्र ने पृथ्वी लोक में उसे भोग प्राप्त करने हेतु मोस्टा को अपना उत्तराधिकारी बनाया। दंत कथाओं में कहा जाता है कि इस देवता के साथ चौंसठ योगिनी, बावन वीर, आठ सहस्त्र मशान रहते हैं। कहते हैं भुंटनी बयाल नामक आंधी-तूफान उसके बस में हैं वो जब चाहें उसे ला सकते हैं। शिव की तरह मोस्टा देवता अगर रूठ जाएं तो वे सर्वनाश कर देते हैं।

मान्यता है वहां जिस पत्थर को ऊंगलियों के दम पर उठा लिया जाता है, उसे बड़े से बड़े बाहुबली भी नहीं उठा पाते हैं और वो भी तब तक जब तक शिव के मंत्रों का जाप ना किया जाए। लोगों का दावा है कि बाहुबली भी उस पत्थर को हिला नहीं पाता, वहीं महादेव का नाम लेकर कोई भी उसे ऊंगलियों पर उठा सकता है। ये चमत्कार शिव के धाम में है। उस जाप में है या उस पत्थर में है। इसका पता तो वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए।

Picture and Story Credits - and wikipedia

गोरखों की कुलदेवी मां उल्का देवी को मानते हुए पिथौरागढ़ में मां उल्का देवी मंदिर की स्थापना की थी. गोरखों ने अपने समय में...
19/12/2021

गोरखों की कुलदेवी मां उल्का देवी को मानते हुए पिथौरागढ़ में मां उल्का देवी मंदिर की स्थापना की थी. गोरखों ने अपने समय में इसकी स्थापना राज्य के पर्वत शिखर पर की थी. आज यह मंदिर पिथौरागढ़ मुख्यालय से एक किमी की दूरी पर चंडाक जाने वाली सड़क पर स्थित है.

इस मंदिर का जीर्णोद्धार बाद में सेरा गांव के मेहता परिवार द्वारा किया गया था. इस मंदिर में पांडे गांव के पुनेठा पुजारी नियुक्त किये गये. आज भी हर दिन यहां पुजारी सुबह शाम दीया जलाते हैं.

कहा जाता है कि कैप्टन शेरसिंह मेहता पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मंदिर के वर्तमान स्वरूप के लिये सबसे पहले दान किया. कैप्टन शेर सिंह मेहता ने संतान प्राप्ति का वर मांगा था और मां उल्का देवी के समक्ष प्रण लिया था कि सन्तान प्राप्ति होने पर यहां भव्य मंदिर का निर्माण करेंगे.

1960 के में जिला अधिकारी ने यहां एक धर्मशाला का निर्माण कराया था. यह धर्मशाला जन मिलन केंद्र के रूप में बनायी गयी थी. वर्तमान में यह जन मिलन केंद्र पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त हो गया है.

चैत के महिने लगने वाले चैतोल के उत्सव पर यहां विशेष उत्सव होता है. इस मंदिर के पिथौरागढ़ शहर में बहुत मान्यता है. यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के अवसर पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है.

चंडाक रोड पर स्थित इस मंदिर के मुख्य मंदिर पर दोनों और शेर की मूर्तियां लगीं हैं. सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर मां का सुंदर देवालय है. इस मंदिर में लोग फूल इत्यादि के अतिरिक्त घंटी भी चढ़ाते हैं. मंदिर में अनेक लगी हुई घंटियां देखने को मिलती हैं जिनपर दान करने वालों के नाम भी गुदे रहते हैं.

मंदिर के परिवेश से पिथौरागढ़ शहर की शानदार छवि दिखती है. यहां बहुत से पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त के देखने के लिए आते हैं.

पर्यटन दृष्टि से यह मंदिर पिथौरागढ़ का एक महत्त्वपूर्ण व्यू पाइंट माना जाता है.

Credited -

Pithoragarh is a Himalayan city with a Municipal Board in Pithoragarh district in the Indian state of Uttarakhand. It is...
19/12/2021

Pithoragarh is a Himalayan city with a Municipal Board in Pithoragarh district in the Indian state of Uttarakhand. It is the fourth largest city of Kumaon and the largest in Kumaon hills, larger than Almora and Nainital.The town has all the facilities including an airport.

Photo credits -

16/12/2021

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05/12/2021

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30/11/2021

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