HITTO PAHAD

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02/12/2023

दोस्त की शादी मे दिखी रवाईं की समृद्धि संस्कृति, और पारंपरिक नृत्य की झलक जो हर किसी का मन मोह लेती है।

02/12/2023
दोस्त की शादी मे दिखी रवाईं की समृद्धि संस्कृति, और पारंपरिक नृत्य की झलक  जो हर किसी का मन मोह लेती है।
02/12/2023

दोस्त की शादी मे दिखी रवाईं की समृद्धि संस्कृति, और पारंपरिक नृत्य की झलक जो हर किसी का मन मोह लेती है।

जागी जा मेरा पहाड़ी, राजी र मेरा पहाड़।
26/06/2023

जागी जा मेरा पहाड़ी,
राजी र मेरा पहाड़।

16/06/2023

_देहरादून के बारे में कुछ जानकारियां

यह शहर 1611ई में 3005 रुपये कीमत में बिका था,

1674 से पहले देहरादून का नाम पृथ्वीपुर था,

1676 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने देहरादून क्षेत्र गुरु रामराय को उपहार में दे दिया था,

1757 में नजीबुदौला ने टिहरी नरेश को हराकर हासिल किया,

1803 में गोरखाओं ने देहरादून पर कब्जा किया,

1804 14 मई को खुड़बुड़ा देहरादून में गोरखा सेना लड़ते हुए गढवाल नरेश प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हुए थे,

1811 में टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने कैप्टेन हरसी यंग को देहरादून हस्तगत किया,

1814 में कैप्टन हरसी ने देहरादून को मात्र ₹100 मासिक लीज़ पर ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया,

1815 में अंग्रेजों ने गोरखाओं को भगाकर देहरादून हथिया लिया,

1823 में पलटन बाजार बना, इसके दोनों तरफ पलटन रहती थी,

1840 में यहां चीन से लाया गया लीची का पौधा लगाया गया,

1842 में यहाँ अफगान शासक अमीर दोस्त द्वारा अफगानिस्तान से लायी बासमती बोई गयी,

1842 में दून में डाक सेवा शुरू हुई,

1854 में यहां मिशन स्कूल खोला गया,

1857 में डा. जानसन द्वारा चाय का बाग लगाया गया,

1863 में दून स्थित शिवाजी धर्मशाला में पहली बार रामलीला का विराट मंचन किया गया,

1867 में यहां नगर पालिका बनी,

1868 में यहां चकराता बना,

1873 में सहारनपुर रोड़ एवं*1892ई* में रायपुर रोड बनी,

1871 में देहरादून जिला बना,

1889 में नाला पानी से दून को जलापूर्ति हुई,

1901 में दून रेल सेवा आरंम्भ हुई,

1902 में महादेवी पाठशाला और *1904ई* में डीएवी कालेज आरंम्भ हुए,

1916 में यहाँ विद्युत आपूर्ति शुरू हुई,

1918 में यहाँ ओलम्पिया और ओरएन्ट सिनेमा घर खुले,

1920 में लोगों ने यहाँ पहली बार कार देखी,

1930 में देहरादून में मसूरी मोटर मार्ग बना,

1939 तक दून में केवल दो ही कारें थी,

1944 में लाला मंशाराम नें 58 बीघा जमीन में कनाट-प्लेस बनवाया,

1947 में यहाँ जातीय उपद्रव हुआ,

1948 में यहां प्रेमनगर और क्लेमनटाउन सिटी बस सेवा शुरू हुई,

1948 से 1953 तक आनंदसिंह ने यहां अपने पिता बलबीर सिंह की याद में घण्टाघर बनाया,

1978 में यहाँ वायु सेवा शुरू हुई,

1985 में यहाँ पहला विक्रम आया UGY - 229 नम्बर था

मित्रों देहरादून के सम्बन्ध मे छोटी सी जानकारी आपको शेयर कर रहा हूँ। आशा है आपको पसंद आयेगी।
साभार प्रशांत कुमार जी

14/06/2023

इस्लाम को पहाड से भगाने के लिए एक उग्र आंदोलन की शक्त जरूरत है , जिससे कि हमारी संस्कृति सभ्यता और हमारे पारंपरिक रीती रिवाज जिंदा रह सके।

20/05/2023

"हीटो पहाड़ (उत्तराखंडी ग्रुप )" का मुख्य उदेश्य आपको अपनी देवभूमि "उत्तराखंड" की जीवनशैली,गीत संगीत,रीति रिवाजों, अन्य परम्परावों और धार्मिक स्थलों से जोड़े रखना, उन्हें संजोये रखना , आपके माध्यम से इनका प्रसार करना, एवं आपको अपनी देवभूमि भ्रमण (हीटो पहाड़) की मीठी याद दिलाना है!

मित्रों जैसा की आप जानते है की आज रोजगार की तलाश में उत्तराखंड के समस्त गाँव खाली होते जा रहे है लेकिन ये हमारे उत्तराखंड के युवाओं की एक मजबूरी भी है की उन्हें अच्छा पढ़ लिखने के बाद भी अपने राज्य में रोज़गार के उचित अवसर प्रदान नही हो रहे है अतएव उन्हें रोज़गार की तलाश में अपने बूढ़े माँ बाप,भाई बहनों , अपने पति /पत्नी एवं बच्चो और अपनी स्वर्ग जैसी देवभूमि से बिछड़ना पड़ रहा है!
इस पलायन की कीमत कंही ना कंही हमें अपने रीती रिवाजो , पारम्परिक लोक गीत संगीत ,जीवनशैली ,मेल मिलाप और अन्य धार्मिक अनुष्ठानो को भूल कर चुकानी पड़ रही है !
"हीटो पहाड़ (उत्तराखंडी ग्रुप)" आप सब से निवेदन करता है की आप अपने बूढ़े माँ बाप से मिलने जुलने,अपने बच्चो,पति पत्नी, शादी ब्याह ,सैर सपाटे,मेले ,धार्मिक स्थलों और अन्य धार्मिक आयोजनों में भाग लेने के लिए अपने उत्तराखंड अवस्य आयें !

20/05/2023

"हीटो पहाड़ा (उत्तराखंडी ग्रुप )" का मुख्य उदेश्य आपको अपनी देवभूमि "उत्तराखंड" की जीवनशैली,गीत संगीत,रीति रिवाजों, अन्य परम्परावों और धार्मिक स्थलों से जोड़े रखना, उन्हें संजोये रखना , आपके माध्यम से इनका प्रसार करना, एवं आपको अपनी देवभूमि भ्रमण (हीटो पहाड़ा) की मीठी याद दिलाना है!

मित्रों जैसा की आप जानते है की आज रोजगार की तलाश में उत्तराखंड के समस्त गाँव खाली होते जा रहे है लेकिन ये हमारे उत्तराखंड के युवाओं की एक मजबूरी भी है की उन्हें अच्छा पढ़ लिखने के बाद भी अपने राज्य में रोज़गार के उचित अवसर प्रदान नही हो रहे है अतएव उन्हें रोज़गार की तलाश में अपने बूढ़े माँ बाप,भाई बहनों , अपने पति /पत्नी एवं बच्चो और अपनी स्वर्ग जैसी देवभूमि से बिछड़ना पड़ रहा है!
इस पलायन की कीमत कंही ना कंही हमें अपने रीती रिवाजो , पारम्परिक लोक गीत संगीत ,जीवनशैली ,मेल मिलाप और अन्य धार्मिक अनुष्ठानो को भूल कर चुकानी पड़ रही है !
"हीटो पहाड़ा (उत्तराखंडी ग्रुप)" आप सब से निवेदन करता है की आप अपने बूढ़े माँ बाप से मिलने जुलने,अपने बच्चो,पति पत्नी, शादी ब्याह ,सैर सपाटे,मेले ,धार्मिक स्थलों और अन्य धार्मिक आयोजनों में भाग लेने के लिए अपने उत्तराखंड अवस्य आयें !

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