Kashi Karmkand

Kashi Karmkand We provide scholar pandit ji of kashi with pujan samgri for rudrabhishek, mahamritunjay path, bhagwat katha, grah shanti Puja etc. across India.
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Shastrarth (debate in search for true meaning of Scriptures and philosophic aspects), is still deeply rooted in the daily lives of the people of Kashi. Every evening people assemble on the ghats at the bank of the river Ganges, flowing through the city and hold Shastrarth among themselves. One such evening, at Assi Ghat, which is the sangam (meeting point) of the Ganges with its tributary river As

i, under the Fig tree, a bunch of vibrant young enthusiasts Arvind, Shakti, Kusumakar, Ranjan and Amit, had a prolonged debate on Karm Kand (the ritualistic practices) and Vedic traditions. The hypnotic debate lasted several hours. Around mid-night it was realised that most of the current practices outside Kashi are actually not in sync with the Vedic traditions. Thus began the quest for original Vedic traditions. Gradually, when the like-minded people flocked together, it was decided to spread awareness about the actual Vedic traditions and the organisation “Kashikarkand” was born.

क्यों मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी, जानिए इतिहास और महत्व!भगवान विष्णु ने धरती पर पाप और अधर्म का नाश करने के लिए हर यु...
26/08/2024

क्यों मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी, जानिए इतिहास और महत्व!

भगवान विष्णु ने धरती पर पाप और अधर्म का नाश करने के लिए हर युग में अवतार लिया। विष्णु जी के एक अवतार भगवान श्रीकृष्ण हैं, जिनका जन्म मथुरा की राजकुमारी देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में हुआ था। राजा कंश की जेल में जन्में कान्हा का बचपन गोकुल में माता यशोदा और नंद बाबा की गोद में बीता। राजा कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने कान्हा के जन्म के बाद ही अपने चचेरे भाई नंदबाबा और यशोदा को दे दिया था।

श्रीकृष्ण ने अपने जन्म से लेकर जीवन के हर पड़ाव पर चमत्कार दिखाए। श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कई किस्से हैं, जो मानव समाज को सीख देते हैं। अधर्म और पाप के खिलाफ सही मार्गदर्शन करते हैं। उनके जन्मदिवस को उत्सव की तरह हर साल भक्त मनाते हैं। इस मौके पर जानिए कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास और महत्व।

कब है कृष्ण जन्माष्टमी 2024

कृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की आष्टमी तिथि को मनाई जाएगी। इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 28 अगस्त, 2024 को मनाया जा रहा है।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

पुराणों के मुताबिक, श्रीकृष्ण त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु के अवतार हैं। कृष्ण के आशीर्वाद और कृपा को पाने के लिए हर साल लोग इस दिन व्रत रखते हैं, मध्य रात्रि में विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। भजन कीर्तन करते हैं और जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन के लिए मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया जाता है। कुछ स्थानों पर जन्माष्टमी पर दही-हांडी का भी उत्सव होता है।

कैसे मनाते हैं कृष्ण जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी पर भक्त श्रद्धानुसार उपवास रखते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं।

बाल गोपाल की जन्म मध्य रात्रि में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी की तिथि की मध्यरात्रि को घर में मौजूद लड्डू गोपाल की प्रतिमा का जन्म कराया जाता है। फिर उन्हें स्नान कराकर सुंदर वस्त्र धारण कराए जाते हैं। फूल अर्पित कर धूप-दीप से वंदन किया जाता है। कान्हा को भोग अर्पित किया जाता है। उन्हें दूध-दही, मक्खन विशेष पसंद हैं। इसलिए भगवान को भोग लगाकर सबको प्रसाद वितरित किया जाता है।

क्यों और कैसे मनाते हैं दही हांडी?

कुछ जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है। गुजरात और महाराष्ट्र में दही हांडी का विशेष महत्व है। दही हांडी का इतिहास बहुत दिलचस्प है। बालपन में कान्हा बहुत नटखट थे। वह पूरे गांव में अपनी शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। कन्हैया को माखन, दही और दूध बहुत प्रिय था। उन्हें माखन इतना प्रिय था कि वह अपने सखा संग मिलकर गांव के लोगों के घर का माखन चोरी करके खा जाते थे।

कान्हा से माखन बचाने के लिए महिलाएं माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटका दिया करती, लेकिन बाल गोपाल अपने मित्रों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाकर उसके जरिए ऊंचाई पर लटकी मटकी से माखन चोरी कर लेते।

कृष्ण के इन्ही शरारतों को याद करने के लिए जन्माष्टमी में माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग दिया जाता है। लड़के नाचते गाते पिरामिड बनाते हुए मटकी तक पहुंचकर उसे फोड़ देते हैं। इसे दही हांडी कहते हैं, जो लड़का ऊपर तक जाता है, उसे गोविंदा कहा जाता है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत-पूजन कैसे करें, 10 जरूरी बातें

जब-जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया।
चूंंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अतः इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांंकियांं सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

व्रत-पूजन कैसे करें

1. उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

2. उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएंं।

3.पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।

4. इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥

5. अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।

6. तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

7. मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।

8. इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।

पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए।

9. फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-

'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'

10. अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें।

अगर चाहते कर्ज से मुक्ति तो सावन में करें इन दो पदार्थों से शिव का महाअभिषेककहा जाता हैं कि सावन का महीना आता ही हैं भक्...
07/08/2024

अगर चाहते कर्ज से मुक्ति तो सावन में करें इन दो पदार्थों से शिव का महाअभिषेक

कहा जाता हैं कि सावन का महीना आता ही हैं भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए और भक्त भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से शिवजी की आराधना करते हैं । अगर आपके भी जीवन में धन संबंधित समस्याएं है, कोई पुराना कर्ज है जिसे आप चुका नहीं पा रहे है तो इस सावन के महिने में किसी भी दिन या सावन सोमवार के दिन भगवान शिवजी को इन दो पदार्थों से महाअभिषेक अवश्य करें ।

धर्म-कर्म
अगर चाहते कर्ज से मुक्ति तो सावन में करें इन दो पदार्थों से शिव का महाअभिषेक
इनसे करें शिवजी का महाअभिषेक, मिलेगा धन और होगी कर्ज मुक्ति

अगर चाहते कर्ज से मुक्ति तो सावन में करें इन दो पदार्थों से शिव का महाअभिषेक

कहा जाता हैं कि सावन का महीना आता ही हैं भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए और भक्त भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से शिवजी की आराधना करते हैं । अगर आपके भी जीवन में धन संबंधित समस्याएं है, कोई पुराना कर्ज है जिसे आप चुका नहीं पा रहे है तो इस सावन के महिने में किसी भी दिन या सावन सोमवार के दिन भगवान शिवजी को इन दो पदार्थों से महाअभिषेक अवश्य करें ।



(1)- गाय के दुध से अभिषेक

सभी प्रकार के की समस्याओं के निवारण के लिए एवं शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गाय के ताजे और कच्चे दूध से अभिषेक करें । भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करते हुए चांदी या स्टील के पात्र से अभिषेक करें । ध्यान रखे कि जब दूध से अभिषेक किया जा रहा हो तो तांबे के बर्तन उपयोग भूलकर भी नहीं करें, और ना ही तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि रखें । क्योंकि तांबे के साथ दूध का संपर्क दूध को विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक बिल्कुल वर्जित होता है । क्योंकि तांबे के पात्र में दूध अर्पित या उससे भगवान शंकर को अभिषेक कर उन्हें अनजाने में आप विष अर्पित करते हैं ।

1- ॐ श्री कामधेनवे नम: मंत्र का जप करते हुए अभिषेक वाले पात्र में लाल कलावा बाधें ।
2- शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जप करते हुए लाल फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें ।
3- शिवलिंग पर गाय के दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें ।
4- अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जप करते रहे ।
5- अभिषेक पूर्ण होने पर शिवलिंग को शुद्ध जल से धोकर साफ वस्त्र से अच्छी तरह पोछ लें ।



(2)- फलों के रस से अभिषेक करें



1- अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्जो से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें ।
2- अभिषेक करते हुए भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें ।
3- ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें ।
4- ॐ कुबेराय नम: मंत्र का जप करते हुए पात्र पर लाल कलावा बाधें ।
5- पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जप करते हुए लाल फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें ।
6- शिवलिंग पर फलों के रस की पतली धार बनाते हुए- महारुद्राभिषेक करें ।
7- अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का मानसीक जप करते रहे ।

सावन के ये 9 दिन हैं बेहद खास, कर्ज मुक्ति के लिए करें ये उपाय

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस वर्ष श्रावण मास 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त को सर्वार्थ सिद्धि योग पर पूर्णिमा के दिन समाप्त हो जाएगा। इस माह आप न सिर्फ भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि मां लक्ष्मी को भी प्रसन्न कर सकते हैं। इसके अलावा अगर आप कर्ज से परेशान हैं तो आपको सावन के 9 दिनों में कुछ अचूक उपाय जरूर करने चाहिए और सावन में भगवान शिव की पूजा और कुछ आसान उपायों से आप कर्ज से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में।

सावन के श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त
इस बार श्रावण मास में 10 विशेष शुभ मुहूर्त वाले दिन बन रहे हैं। पांच सोमवार के अलावा 1 और 17 अगस्त को प्रदोष व्रत और 4 अगस्त को सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि पुष्य योग के साथ अमावस्या है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त वाले विशेष दिनों पर पूजा-अर्चना, जलाभिषेक और रुद्राभिषेक जैसे विशेष उपाय कर दोष दूर किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त में विशेष पूजा-अर्चना और उपाय कर आप मनवांछित फल पा सकते हैं।

सावन के विशेष 9 दिन
सावन का पूरा महीना जहां बेहद शुभ होता है, वहीं सावन के सोमवार, एकादशी, प्रदोष और शिवरात्रि भगवान शिव की कृपा पाने के लिए बेहद खास होते हैं।

सावन में करें ये उपाय

गन्ने के रस से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें।
सावन के इन 9 दिनों में समृद्धि पाने के लिए लोगों को गन्ने के रस से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना चाहिए।
इस दौरान हमें उन्हें बेलपत्र, बेल की माला और नैवेद्य अर्पित करना होता है।ऐसा करने से भगवान शिव के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है।

यदि आपके ऊपर कर्ज चढ़ा हुआ है और आप इससे मुक्ति चाहते हैं तो सावन के विशेष नौ दिनों में गंगा जल में भस्म मिलाकर पूरे विधि विधान से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें। इस उपाय से कर्ज से मुक्ति पाना आसान हो जाता है।
माना जाता है कि राहु-केतु का अशुभ प्रभाव कम करने, कर्ज और कई तरह के कष्टों से छुटकारा पाने के लिए और गृह शांति के लिए सोमवार को विशेष पूजा, जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करना शुभ है माना जाता है।
रोग निवारण, पितृ दोष और कर्ज मुक्ति के लिए अमावस्या के दिन रवि पुष्य योग में विशेष पूजा-अर्चना करना अच्छा है।

मान्यतानुसार सावन शिवरात्रि और प्रदोष में पूजा, जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से संतान की प्राप्ति होती है।

सावन में पाना चाहते हैं भगवान शिव की असीम कृपा, तो करें इन मंत्रों का जापधार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना शिव ज...
07/08/2024

सावन में पाना चाहते हैं भगवान शिव की असीम कृपा, तो करें इन मंत्रों का जाप

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना शिव जी को प्रसन्न करने से लिए सबसे उत्तम माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव सच्चे मन से केवल जल चढ़ाने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे में यदि आप भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए सावन सोमवार के दिन व्रत जरूर करें और महादेव के मंत्रों का जाप करें।

सावन का महीना भगवान शिव को अति प्रिय माना गया है, इसलिए इस माह में भगवान शिव की आराधना करने से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। इस बार सावन की शुरुआत 22 जुलाई, सोमवार के दिन से हो रही है, जिसका समपान भी 19 अगस्त 2024, सोमवार के दिन ही होगा। ऐसे में आप इस सावन भगवान शिव के मंत्रों का जाप कर उनकी विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

महामृत्युंजय मंत्र, भगवान शिव का सबसे प्रभावशाली और शक्तिशाली मंत्र माना जाता है। ऐसे में यदि आप सावन में रोजाना इस मंत्र का जाप से करते हैं तो इससे महादेव की कृपा तो प्राप्त होती ही है, साथ ही आर्थिक स्थिति में भी लाभ देखने को मिलता है। इस मंत्र का जाप सुबह के समय कम-से-कम -108 बार करना चाहिए।

ओम नमः शिवाय

यह मंत्र भी भगवान शिव को समर्पित एक सरल, लेकिन प्रभावशाली मंत्र है। ऐसे में आप सावन में इस मंत्र का रोजाना जाप करके महादेव की असीम कृपा के पात्र बन सकते हैं।

जल चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र

सावन में शिवलिंग पर जल अर्पित करने का विशेष महत्व माना गया है। ऐसे में आप शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। ऐसा करने से महादेव जल्दी प्रसन्न होते हैं।

ॐ नमो भगवते रूद्राय नम:

करें इन मंत्रों का जाप

‘ऊँ शं शंकराय भवोद्भवाय शं ऊँ नमः’ ‘नमामिशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं’।।
‘ऊँ शं भवोद्भवाय शं ऊँ नमः’।। ‘ऊँ शं विश्वरूपाय अनादि अनामय शं ऊँ’ ‘ऊँ

भगवान शिव को करें इस मंत्र के साथ नमस्कार

शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिमहिर्बम्हणोधपतिर्बम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

भगवान शिव का रूद्र मंत्र

ॐ नमो भगवते रूद्राय ।
रूद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय
धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

भगवान शिव से क्षमा मांगने का मंत्र

ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन ।
तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती ।।
वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।
नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने ।
आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः ।
नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय ।।
देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम् ।
नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।
नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ।।
अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम् ।
नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम् ।।
सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये ।।

शिव प्रार्थना मंत्र

करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

गुरु का ज्योतिष में महत्व जानें ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को देवगुरू, ज्ञान का कारक कहकर परिभाषित किया गया है। जन्मकु...
26/06/2024

गुरु का ज्योतिष में महत्व जानें

ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को देवगुरू, ज्ञान का कारक कहकर परिभाषित किया गया है। जन्मकुण्डली में गुरू बलवान होने पर व्यक्ति ज्ञानवान एवं सद्गुण सम्पन्न होता है क्योंकि नवग्रहों में बृहस्पति सर्वाधिक शुभ ग्रह है। अगर किसी कन्या की जन्मकुण्डली में गुरू ग्रह कमजोर हो तो उसके विवाह में विलम्ब होता है।

गुरु को ज्‍योतिष में एक शुभ ग्रह माना गया है जो कि जातकों को करियर और धन संबंधी मामलों में लाभ प्रदान करते हैं। कुंडली में गुरु के अनुकूल होने पर माना जाता है कि जातक अपने जीवन में खूब नाम कमाएगा और उसे तरक्‍की के साथ शुभ फल और आनंद की प्राप्ति होगी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं गुरु ग्रह की खूबियों के बारे में और आपके जीवन पर ये क्‍या प्रभाव डालता है।

गुरु प्रथम भाव में हो

अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु प्रथम भाव में हो तो ऐसे लोग काफी विद्वान होते हैं और ये पेशे से ज्‍योतिषी, तेजस्‍वी, स्‍वाभिमानी, सुखी और सुंदर व धर्मात्‍मा होते हैं।

गुरु द्वितीय भाव में हो

किसी जातक की कुंडली में गुरु यदि दूसरे भाव में हो तो ऐसे लोग मधुरभाषी होते हैं। ऐसे लोग स्‍वभाव से बहुत ही सदाचारी, शांत और पुण्‍यात्‍मा होते हैं। ऐसे लोग अक्‍सर व्‍यवसाय को अपना पेशा चुनते हैं।

गुरु तृतीय भाव में हो

कुंडली में गुरु यदि तृतीय भाव में हो तो ऐसे जातक लेखक बनते हैं। ऐसे जातकों की रुचि विपरीत लिंग से संबंध बनाने में काफी होती है। ऐसे लोगों की अपने बहन और भाइयों से काफी पटरी खाती है। ऐसे लोग विदेश गमन भी करते हैं।

गुरु चतुर्थ भाव में हो

कुंडली के चौथे भाव में गुरु के होने पर जातक काफी शौकीन टाइप के होते हैं। ऐसे लोगों को आराम तलबी काफी पसंद होती है और इसके साथ ही ये सदैव उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

गुरु पांचवें भाव में हो

अगर किसी की कुंडली में गुरु पांचवें भाव में हो तो ऐसे लोग नीति में ज्ञान प्राप्‍त करने वाले और स्‍वभाव से काफी लोकप्रिय होते हैं। इनका अपने परिवार में सबसे ऊंचा स्‍थान होता है। ये ज्‍योतिष भी बनते हैं।

गुरु छठें भाव में हो

अगर आपकी कुंडली में जातक छठें भाव में गुरु हो तो ऐसे लोग रोग से घिरे रहते हैं। ऐसे लोग मुकदमे में जीत हासिल करते हैं और सदैव सफलता प्राप्‍त करते हैं व अपने शत्रुओं को भी पटखनी देने की क्षमता रखते हैं।

गुरु सातवें भाव में हो

अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु सातवें भाव में होते हैं तो उनकी बुद्धि श्रेष्‍ठ होती है और ऐसे लोग भाग्‍यवान, नम्र और धैर्यवान होते हैं। ऐसे जातकों को धार्मिक कार्यों में काफी रुचि रहती है। इसके साथ ही ऐसे जातक सभी से मिलने-जुलने वाले होते हैं।

गुरु आठवें भाव में हो

जिनकी कुंडली के आठवें भाव में गुरु होते हैं ऐसे जातक दीर्घायु होते हैं और इनका मन अधिक समय तक पिता के घर में नहीं लगता और ये अपने जीवन में अपने दम पर कुछ हासिल करना चाहते हैं। ऐसे जातक सभी प्रकार के सांसारिक सुखों को प्राप्‍त करते हैं। इनके भाग्‍य में भी वृद्धि होती है।

गुरु नवें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली में गुरु नवें भाव में होते हैं ऐसे जातक सुंदर से मकान का निर्माण करवाते हैं और भाई-बहनों से विशेष स्‍नेह रखते हैं। इस भाव में गुरु के होने पर जातक काफी प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं और इनका जन्‍म एक अमीर परिवार में होता है।

गुरु 10वें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली में गुरु 10वें भाव में होता है ऐसे जातकों की प्रॉपर्टी में काफी रुचि रहती है। ऐसे लोग अपना घर बनवाने में सफल होते हैं। इन लोगों की पेंटिंग में काफी रुचि होती है। इस भाव में गुरु के होने पर जातक सदैव खुश रहना पसंद करते हैं।

गुरु 11वें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली के 11वें भाव में गुरु होता है ऐसे लोग व्‍यापार में काफी दक्षता लिए होते हैं। ऐसे लोगों को बिजनस में काफी सफलता प्राप्‍त होती है। इस घर में बृहस्पति अपने शत्रु ग्रहों बुध, शुक्र और राहु से संबंधित चीजों और रिश्तेदारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। नतीजतन, जातक की पत्नी दुखी रहती है।

गुरु 12वें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली में गुरु 12वें भाव में होते हैं ऐसे लोग स्‍वभाव से आलसी, कम खर्च करने और कई बार तो दुष्‍ट प्रकृति के भी होते हैं। ऐसे जातक स्‍वभाव से काफी लोभी और लालची भी होते हैं।

Nirjala Ekadashi vrat kathaनिर्जला एकादशी पर भीम से जुड़ी यह पौराणिक व्रत कथा, इसके बिना व्रत नहीं होता पूरानिर्जला एकाद...
18/06/2024

Nirjala Ekadashi vrat katha

निर्जला एकादशी पर भीम से जुड़ी यह पौराणिक व्रत कथा, इसके बिना व्रत नहीं होता पूरा

निर्जला एकादशी का शास्त्रों में मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। इस साल निर्जला एकादशी व्रत 18 जून को हैं |

सालभर में 24 एकादशी आता है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण निर्जला एकादशी को माना जाता है। इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। इस दौरान गंगा घाटों में लोग स्नान करते हैं और दान करते हैं। इस दिन जलदान का बहुत महत्व कहा जाता है।

व्रत की कथा-

जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब युधिष्ठिर ने कहा - जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी के बारे में विस्तार से बताएं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसके बारे में परम धर्मात्मा व्यासजी बताएंगे।
तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में भोजन नहीं किया जाता है, अगले दिन द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें। फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में खुद भोजन करें।
इस पर भीमसेन बोले- पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूं। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूं। मैं पूरे सालभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूं। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो , ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुंगा।
व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें। वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है,

जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुंचा दिया है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है।


भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुंचकर आनन्द का अनुभव करता है। इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया।

*☆ अयोध्या में किसका मंदिर बन रहा है?*▪क्या भगवान "राम" का? *नहीं।*क्योंकि वे स्वयं परमात्मा स्वरूप हैं, सारा जगत ही उनक...
08/01/2024

*☆ अयोध्या में किसका मंदिर बन रहा है?*

▪क्या भगवान "राम" का? *नहीं।*
क्योंकि वे स्वयं परमात्मा स्वरूप हैं, सारा जगत ही उनका मंदिर है।

▪क्या राजा रामचन्द्र जी का? *नहीं।*
क्योंकि पृथ्वी पर कई राजा आये और गए, बड़े बड़े सम्राट आये और गए, सब अपने आलीशान महलों को यहीं छोड़के चले गए।

▪क्या भाजपा के जय श्रीराम का? *नहीं।*
क्योंकि इस मंदिर के लिए पिछले 500 सालों से अब तक लाखों लोगों ने लड़ाइयां लड़ी हैं और अपनी जानें गंवाई है। आज तक विश्वभर के करोड़ों गैर राजनीतिक लोग राम मंदिर बनने का सपना देखते आ रहे हैं।

*☆ तो फिर ये मंदिर बन किसका रहा है?*

यह मंदिर बन रहा है *हिंदू अस्मिता* का, जिसे सैकड़ो वर्षों से रौंदा जा रहा था।
हिंदू आत्म सम्मान का, जिसे लगातार ठेस पहुंचाई जा रही थी।
उदार हिंदुओं की गरिमा और गौरव का, जिसे आतताइयों ने बेरहमी से कुचला था कभी।

यह मंदिर हिंदू पुनर्जागरण का प्रतीक है। हिंदू पुनरुत्थान की उद्घोषणा है। हिंदू आत्म विश्वास के पुनः उठ खड़े होने का सूचक है। प्राचीन अस्त हिंदू सभ्यता के उदय होने का शंखनाद है।
*लाखों हिंदू-सिक्ख-जैन-बौद्ध बलिदानियों के लिए श्रद्धांजलि है ये मंदिर।*

*यह मंदिर उन परमपिता परमेश्वर श्री राम का मंदिर है* जो प्रत्येक हिंदू के हृदय में इस श्रद्धा विश्वास के रूप में विधमान थे कि एक दिन उनका भी दिन आएगा और वे पुनः अपनी खोई हुई शक्ति दर्प और स्वाभिमान को वापस प्राप्त कर लेंगे।

सभी श्री राम भक्त हिन्दू २२ जनवरी २०२४ को अपने अपने घरों में रामायण का पाठ करें, दिए जलाएं, शंखनाद करें, घंटियाँ बजाएं, कीर्तन-भजन करें, ढोलक मृदंग डमरू इत्यादि जो कुछ भी जिनके पास जो है वह बजाएं इससे पूरी दुनियां को संदेश जाएगा कि हिंदू जाग गया है, हिंदुओं के एक नए युग का प्रारंभ हो चुका हैं।

🙏जय श्रीराम🚩

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Bishnu Deo Poddar, Suman Kumar, Kundan Kumar, Santu Kumar...
22/10/2023

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Bishnu Deo Poddar, Suman Kumar, Kundan Kumar, Santu Kumar, Vikas Kumar Sah Vikas, Rupesh Sah, Saurabh Kumar Lalan, Rdx Rajesh Yadav, Mithlesh Kumar, Rahul Yadav, Kumar Deepak, Lallesh Pandey, शंकर शंकर, Himanshu Kumar, Nandan Mistri, Jiten Kumar, Suman Kumar Sah, Shivam Kumar, Shekhar Yadav, बिमलेश बिमलेश, श्ररवण कुमार, Abhay Kumar Yadav, Ashok Verma, Dinesh Roy Dinesh, Upen Kumar Sah, Rajesh Kumar, Sonelal Rishi, Manish Patel, Dk Dablu Yabav, Sudama Kumar, Sanjay Ramdev, Prince Kumar Prince Kumar, Bablu Mandal, Arvind Kumar, Bandun Kumar, प्रकाश यादव, ऊमेशयादव ऊमेशयादव, Indal Paswan, Nigam Kumar, Laltesh K Sharma, Kiran Yaduvanshi, Mitthu Mitth, मनोज साह मनोज, Rajesh Kumar, Karvindar Singh, Sudhir Kumar, Ravinader Kumar, अमन यादव

नवरात्रि में महाष्‍टमी का विशेष महत्व क्यों है?अष्टमी को आठम या अठमी भी कहते हैं। नवरात्रि की अष्टमी को महाष्टमी या दुर्...
22/10/2023

नवरात्रि में महाष्‍टमी का विशेष महत्व क्यों है?

अष्टमी को आठम या अठमी भी कहते हैं। नवरात्रि की अष्टमी को महाष्टमी या दुर्गाष्टमी कहते हैं जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। इस दिन माता के आठवें रूप महागौरी की पूजा और आराधना की जाती है। आओ जानते हैं कि महा अष्टमी का क्या है विशेष महत्व।


1. नवरात्रि के 8वें दिन की देवी मां महागौरी हैं। मां गौरी का वाहन बैल और उनका शस्त्र त्रिशूल है। परम कृपालु मां महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से संपूर्ण विश्व में विख्यात हुईं। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं।

2. कलावती नाम की यह तिथि जया संज्ञक है। मंगलवार की अष्टमी सिद्धिदा और बुधवार की मृत्युदा होती है। इसकी दिशा ईशान है। ईशान में शिव सहित सभी देवताओं का निवास है इसीलिए इस अष्टमी का महत्व अधिक है। यह तिथि परम कल्याणकारी, पवित्र, सुख को देने वाली और धर्म की वृद्धि करने वाली है।

3. अधिकतर घरों में अष्टमी की पूजा होती है। देव, दानव, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि सभी अष्टमी और नवमी को ही पूजते हैं।

4. कथाओं के अनुसार इसी तिथि को मां ने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था।

5. नवरात्रि में महाष्टमी का व्रत रखने का खास महत्व है। मान्यता अनुसार इस दिन निर्जला व्रत रखने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।

6. अष्टमी के दिन सुहागन औरतें अपने अचल सुहाग के लिए मां गौरी को लाल चुनरी जरूर चढ़ाती हैं।

7. अष्टमी के दिन कुल देवी की पूजा के साथ ही मां काली, दक्षिण काली, भद्रकाली और महाकाली की भी आराधना की जाती है। माता महागौरी अन्नपूर्णा का रूप हैं। इस दिन माता अन्नपूर्णा की भी पूजा होती है इसलिए अष्टमी के दिन कन्या भोज और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है।

8. अष्टमी के दिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है। इसके आवला तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है। माता को नारियल का भोग लगा सकते हैं। कई जगह कद्दू और लौकी का भी निषेध माना गया है क्योंकि यह माता के लिए बलि के रूप में चढ़ता है।

9. यदि अष्टमी को पराण कर रहे हैं तो विविध प्रकार से महागौरी का पूजन कर भजन, कीर्तन, नृत्यादि उत्सव मनाना चाहिए विविध प्रकार से पूजा-हवन कर 9 कन्याओं को भोजन खिलाना चाहिए और हलुआ आदि प्रसाद वितरित करना चाहिए। माता को अर्पित करें ये- 1.खीर, 2.मालपुए, 3.मीठा हलुआ, 4.पूरणपोळी, 5.केले, 6.नारियल, 7.मिष्ठान्न, 8.घेवर, 9.घी-शहद और 10.तिल और गुड़।

10. मां भगवती का पूजन अष्टमी को करने से कष्ट, दुःख मिट जाते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती। मां की शास्त्रीय पद्धति से पूजा करने वाले सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं और धन-वैभव संपन्न होते हैं।

11. महाष्टमी के दिन महास्नान के बाद मां दुर्गा का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। महाष्टमी के दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है इसलिए इस दिन मिट्टी के नौ कलश रखे जाते हैं और देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है।

12. भारत के कुछ राज्यों में नवरात्रि के नौ दिनों में कुमारी या कुमारिका पूजा होती है। इस दिन कुमारी पूजा अर्थात अविवाहित लड़की या छोटी बालिका का श्रृंगार कर देवी दुर्गा की तरह उनकी आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्या कुमारी पूजा के लिए उपयुक्त होती हैं। कुमारी पूजा में ये बालिकाएं देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं- कुमारिका, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, काली, चंडिका, शनभावी, दुर्गा और भद्रा।

13. इस दिन संधि पूजा का भी महत्व है। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। इस पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते हैं। मान्यता है कि इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध कर दिया था। संधि पूजा के समय देवी दुर्गा को पशु बलि चढ़ाई जाने की परंपरा तो अब बंद हो गई है और उसकी जगह भूरा कद्दू या लौकी को काटा जाता है। कई जगह पर केला, कद्दू और ककड़ी जैसे फल व सब्जी की बलि चढ़ाते हैं। इसके अलावा संधि काल के समय 108 दीपक भी जलाए जाते हैं।

सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि🙏🙏🙏🙏🙏रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वा...
24/07/2023

सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि
🙏🙏🙏🙏🙏

रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।

वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है। श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है।

रुद्राभिषेक क्या है ?
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अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।

रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?
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रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
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प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक की पूर्ण विधि
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गत पोस्ट में हमने भक्तो की सुविधा हेतु महादेव का आसान लौकिक मंत्रो से पूजन विधि बताई थी पूजा समाप्ति के उपरांत शिव अभिषेक का नियम है इसके लिये आवश्यक सामग्री पहले ही एकत्रित करलें।

सामग्री👉 बाल्टी अथवा बड़ा पात्र जल के लिये संभव हो तो गंगाजल से अभिषेक करे। श्रृंगी (गाय के सींग से बना अभिषेक का पात्र) श्रृंगी पीतल एवं अन्य धातु की भी बाजार में सहज उपलब्ध हो जाती है।, लोटा आदि।

रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंचामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है। ब्राह्मण के अभाव में स्वयं भी संस्कृत ज्ञान होने पर रुद्राष्टाध्यायी के पाठ से अथवा अन्य परिस्थितियों में शिवमहिम्न का पाठ करके भी अभिषेक किया जा सकता है। इस सबकी सुविधा ना होने पर भी निम्नलिखित मंत्रो से भी महादेव को स्नान एवं अभिषेक करने से बहुत पूण्य मिलता है।

श्लोक मंत्र
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ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥
ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय्‌ ॥
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥
वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः
बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्‌भवाय नमः ॥
नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥
यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् ।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥
विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥

रुद्राभिषेक से लाभ
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शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा। रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं ।

रुद्राभिषेक कैसे करे
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1 जल से अभिषेक
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👉 हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।

सर्वप्रथम भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें तत्पश्चाततांबे को छोड़ अन्य किसी भी पात्र विशेषकर चांदी के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें, ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

2 दूध से अभिषेक
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👉 शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें

👉 भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें।
अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। खासकर तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। इससे ये सब मदिरा समान हो जाते हैं। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक बिल्कुल वर्जित होता है। क्योंकि तांबे के पात्र में दूध अर्पित या उससे भगवान शंकर को अभिषेक कर उन्हें अनजाने में आप विष अर्पित करते हैं। पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें। और पुष्प गंध धूप दीप नैवेद्य अर्पण करें।

3👉 फलों का रस
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👉 अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें।

भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।

4 सरसों के तेल से अभिषेक
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👉 ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें।

भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

5 चने की दाल
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👉 किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें।

भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

6 काले तिल से अभिषेक
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👉 तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें।

इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

7 शहद मिश्रित गंगा जल
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👉 संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें।

सबसे पहले भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’ का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।

8 घी व शहद
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👉 रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें।

इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें फिर ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।

9 कुमकुम केसर हल्दी
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👉 आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें।
सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें ताम्बे के पात्र में ‘कुमकुम केसर हल्दी और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें – ‘ॐ उमायै नम:’ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-‘ॐ नम: शिवाय’ फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें. अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा’ इसके बाद शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।

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