06/16/2022
उत्तराखंड के चार धाम | छोटा चार धाम
उत्तराखंड के चारधाम को छोटा चार धाम कहा जाता है। यह चार धाम करने से 1 धाम की यात्रा पूर्ण होती है। बल्कि असली चार धाम तो बद्रीनाथ ,द्वारका ,जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम को कहा जाता है। पर उत्तराखंड के चार धाम का भी विशेष महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथो के अनुसार अगर तीर्थ यात्री यहाँ की यात्रा संपूर्ण कर लेता है तो वह जीवन मरण के चक्रो से मुक्त होकर सदगति को प्राप्त होता है। इस स्थान का विशेष महत्व इसलिए है की यह वही स्थान है जो पृथ्वी और स्वर्ग को एकाकार करवाता है।
हिमालय में बसे इन चार धामों को हिन्दू ग्रंथो में पवित्रम स्थानों में से बताया गया है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह यात्रा उत्तराखंड से गढ़वाल में उत्तरकाशी ,रुद्रप्रयाग और चमोली ज़िले में पड़ती है। और यह उत्तराखंड के चार धाम के नाम है,
1. यमुनोत्री
2. गंगोत्री
3. केदारनाथ और
4. बद्रीनाथ।
उत्तराखंड के चार धाम में बद्रीनाथ को भारत के चार धामों में पहला उत्तर स्थित धाम बताया गया है। यह उत्तराखंड के चार धाम को लगभग 4000 मीटर से भी अधिक ऊंचाई को चढ़ना होता है। यह इतना भी आसान नहीं है। पर श्रद्धा और विश्वास हो तो यह भी कठिन नहीं लगता।
उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा अधिक कठिन थी। पर चीन के साथ युद्ध के वक्त हमारे सैनिको का आना जाना लगा रहा ,इसकी वजह से यात्रालु के लिए यह रस्ते धीरे-धीरे आसान से होने लगे। फिर छोटा चार धाम मेसे छोटा शब्द को हटा दिया गया और हिमालय के चार धाम यात्रा और उत्तराखंड के चार धाम के नाम से प्रचलित होने लगा। जैसे जैसे पर्यटक और यात्रालू का भारी मात्रा में आना जाना बढ़ा , वैसे-वैसे यह स्थान उत्तराखंड के चार धाम का प्रमुख तीर्थ यात्रा धाम बन गया। अप्रैल से नवम्बर तक यहाँ तक़रीबन 2 लाख से 2.5 लाख के आस पास यात्रालु यहाँ आते है। मानसून से पहले तीर्थ यात्री ज्यादा आते है। क्यूंकि मानसून में भूस्खलन का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसीलिए उत्तराखंड के चार धाम अप्रैल और मई यात्रा का श्रेष्ठ समय माना जाता है।
उत्तराखंड के चार धाम
1. यमुनोत्री:
बांदरपूछ के पश्चिमी जगह, पवित्र यमुनोत्री का मंदिर मिलता है। प्राचीन रूप से यमनोत्री तीर्थयात्री का पहला पड़ाव है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर चढ़ाई करके यमुनोत्री पहुंचते है। जयपुर की महारानी गुलेरिया ने इस मंदिर का निर्माण 19 मि शतापदि में किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार यमराज और यमुना देवी दोनों सूर्य के पुत्र ,पुत्री थे। यह कहा गया है ,अगर कोई तीर्थयात्री श्रद्धा से यह यमुना नदी में स्नान करता है ,तो उसे यमराज की पीड़ा नहीं सहनी पड़ती। यमुना देवी को अपने भाई यमराज से यह वरदान मिला था।
यमुनोत्री के पास कई गरम पानी के कुंड भी मिलते है। जैसे सूर्य कुंड काफी प्रसिद्ध कुंड में से एक है। कहते है, सूर्यदेव ने अपनी पुत्री को आशीर्वाद स्वरुप यह गरम पानी का रूप लिया।
तीर्थ यात्री इसी कुंड में चावल डालते है, फिर जब वह चावल गर्म पानी में पक जाते है, तब प्रसाद स्वरुप श्रद्धालु उसे अपने घर ले जाते है। सूर्य कुंड के पास एक दिव्य शिला भी है। श्रद्धालु इस शिला की पूजा भी करते है।
चार धाम की यात्रा में यमनोत्री तीर्थयात्री पहले पहुंचते है। नदी किनारे का यह धाम का उद्गम स्थल कलिंद पर्वत से निकलता है।
पुराण कथा के अनुसार एक बार भैयादूज पर यमराज ने अपनी बहन यमुना को यह आशीर्वाद दिया था, के जो कोई तीर्थयात्री यमुना नदी में स्नान करे, या डुबकी लगता है, तो उसे यमलोक नहीं लेजाया जायेगा।
उसे सीधा मोक्ष का मार्ग मिलेगा। यह भी कहते है, की यमुना में स्नान से आकस्मिक और दर्दनाक मृत्यु से छुटकारा मिलता है। शायद इसीलिए यमनोत्री जानेका महत्व सबसे पहले माना गया है।
2. गंगोत्री:
गंगोत्री की ऊंचाई समुद्र तल से 3140 मीटर तक है। गंगोत्री को भागीरथी नदी भी कहते है। हिन्दू धर्म की पवित्रम नदिओं में से एक भागीरथी नदी मानी जाती है। राजा भगीरथ ने यह नदी को पृथ्वी पे लाने के लिए तपस्या की थी। इसीलिए इसका नाम भागीरथी कहा गया है।
पुराण कथा मिलती है की राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था। यह अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को उन्होंने जहा-जहा दौड़वाया ,वहा की जगहों को उनके 60,000 पुत्रो ने अपने आधिपत्य यानि कब्ज़े में ले लिया था।
इससे देवराज इंद्र को चिंता हुई और उन्होंने उस यज्ञ के घोड़े को कपिलमुनि के आश्रम में पंहुचा दिया। राजा सगर के पुत्रो ने ज़बरजस्ती करके कपिल मुनि के आश्रम से वह घोडा छुड़ा लिया ,तब कपिल मुनि काफी नाराज़ हुवे।
उन्होंने क्रोध वश राजा सगर के सभी पुत्रो को श्राप दे डाला। जिससे सारे पुत्र एक राख में बदल गए। राजा सगर की विनती से कपिल मुनि ने अपनी नाराज़गी दूर की और उन्होंने एक उपाय बताया, की स्वर्ग में विचरण करने वाली नदी को अगर पृथ्वी पे ला सके, तो उसके पवित्र जल से आपके सारे पुत्र पुनः जीवित हो उठेंगे।
पर राजा सगर स्वर्ग की नदी को लाने में सफल नहीं हुवे। फिर राजा सगर के पुत्र भगीरथ ने घोर तपस्या करि ,और नदी को प्रुथ्वी पर लाने में सफल हुवे।
पर गंगा के तेज़ प्रवाह को पृथ्वी में पटकना इतना आसान नहीं था। उन्होंने भगवन शंकर से सहाय मांगी और कहा आप इस नदी के प्रवाह को अपनी जटा से नियंत्रित करे।
उसके बाद राजा भगीरथ ने सगर के 60,000 पुत्रो को गंगा के पवित्र जल के स्पर्श से जीवित किया। भारत में गंगा नदी को मोक्षदायनी नदी के रूप में माना जाता है।
इसी वजह से हिन्दू अपने पितृ का श्राद्ध और पिंड दान चंद्र पंचांग के अनुसार करते है। इसके बाद गंगा नदी के जल में स्नान करके श्रद्धालु गंगा नदी के पवित्र जल को अपने साथ ले जाते है।
गंगोत्री में लिया गया जल तीर्थयात्री केदारनाथ और सभी तीर्थो में भी अर्पित करते है। गंगा नदी सबसे पवित्र और सबसे लंबी नदी में से एक है। गंगोत्री मंदिर से 19 किलोमीटर दूर गौमुख ग्लेशियर गंगा नदी का वास्तविक स्थान है। भगीरथ ने 1000 वर्षो तक तप्या के पश्चात् गंगा स्वर्ग से उतरी थी।
3. केदारनाथ:
समुद्र से 11746 फिट ऊंचाई में केदारनाथ स्थित है। यमुनोत्री के बाद केदारनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने को पवित्र माना गया है।
वायु पुराण में बताया गया है की भगवान् विष्णु मनुष्यो के कल्याण के लिए पृथ्वी लोक आके बसे थे। सबसे पहले बद्रीनाथ पर उनका पावन चरण पड़ा।
यह जगह पहले भगवान् शिव की थी, परन्तु भगवन विष्णु को यह जगह ध्यान के लिए योग्य लगी, तो फिर भगवन शिव ने भगवन विष्णु के लिए यह स्थान को त्याग दिया ,और केदारेश्वर चले गए।
इसीलिए केदारनाथ का स्थल त्याग की भावनाओ को भी दर्शाता है, इसीलिए शायद पंचकेदार यात्रा करने में केदारनाथ को उत्तम अवं अहम् स्थान कहा गया है।आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में यही समाधी मग्न होकर अपने प्राण त्यागे थे।
केदारनाथ मात्र आध्यात्मिक दृस्टि से नहीं बल्कि स्थापत्य कला में भी यह मंदिर सबसे अलग है। इस मंदिर को कत्युरी शैली में बनाया गया है।
केदारनाथ तीर्थ 12 ज्योर्तिर्लिंगो मे से एक है। और पंचकेदार में सबसे ख़ास। केदारनाथ मंदिर के पास मन्दाकिनी नदी स्थित है ,और केदारनाथ हिमालय की गोद में बिराजमान है।
इससे जुडी एक कथा हमे मिलती है, की महाभारत युद्ध के बाद पांडवो को भातृ हत्या का पाप लगा था। पांडवो को ऋषि ने इस पाप से बचने के लिए भगवन शंकर के दर्शन का मार्ग बताया।
तब भगवन शंकर पांडवो के भातृहत्या से नाराज़ थे, तो भगवन शंकर उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे ,तो वह केदारनाथ जाके बस गए।
पांडव उनको ढूँढ़ते हुवे हिमालय आ पहुंचे। तब भगवन शिव ने अपने आप को एक बेल में बदल लिया। भीम को पता चल गया की यह बेल नहीं है बल्कि भगवन शंकर ही है।
भीम ने उनको पकड़ना चाहा पर वह अंतर्धान हो गए ,तब भीम ने उनकी पीठ पकड़ली थी। तब पांच अलग-अलग जगह पर वापस से दिखाई पड़े थे।
कहा जाता है, की बेल के रूप में शिवजी अंतर्धान हुवे, तब उनके धड़ के ऊपर का भाग, काठमांडू में प्रगट हुआ। जिसे आज पशुपतिनाथ मंदिर के रूप में माना जाता है।
उनकी भुजाये तुंगनाथ में ,उनका मुख रुद्रनाथ में ,नाभि मधेश्वर में ,और उनकी जटा कल्पेश्वर में प्रगट हुई। इसीलिए इन चार स्थान के साथ पांचवा स्थान केदारेश्वर को पंच केदार के नाम से भी जाना जाता है।
4. बद्री नारायण:
बद्री नारायण नर और नारायण दोनों पर्वत के मध्य में स्थित है। जो समुद्र ताल से 3133 मीटर की उंचाइओ पर स्थित है। अलकनंदा नदी मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता को निखारती है।
कहते है की भगवन विष्णु इसी स्थान पर ध्यान में लीन रहते है। विष्णु जी को छाया मिल सके इसलिए लक्ष्मीजी ने बैर (बदरी) के पेड़ का रूप लिया था।
अचंभे की बात यह है की अभी बैर के पेड़ बहुत ही कम मात्रा में दिखाई पड़ते है, पर बद्रीनारायण का पेड़ अभी भी वही के वही ही है। नारदजी जो नारायण के सबसे बड़े भक्तो में से एक है, उनकी उपासना भी यहाँ की जाती है।
अभी जो मंदिर बना हुवा है, उसका निर्माण राजा गढ़वाल द्वारा किया गया था। शंकुधारी शैली में बना यह मंदिर की ऊंचाई 15 मीटर की है। मंदिर में 15 मुर्तिया बिराजमान है।
मंदिर में नर और नारायण के साथ श्री विष्णु भी ध्यान की स्थिति में विद्धमान है। वैदिक काल में बना यह मंदिर को पुनउद्धार आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया। इस मंदिर में देवी लक्ष्मी ,माता पारवती, शंकर भगवन और भगवन गणेश जी की भी मूर्ति है।
चार धाम यात्रा का अंतिम और चौथा स्थान बद्रीनाथ धाम है। बद्रीनाथ धाम उपमहाद्रीप में सबसे पवित्रम स्थान माना गया है।
बद्रीनाथ हर साल 10 लाख से ज्यादा तीर्थयात्री आने का अनुमान है। यह एक ही ऐसा स्थान है, की चारधाम और छोटा चारधाम दोनों का ही भाग है।
मंदिर के अंदर भगवन बद्रीनाथ की एक मीटर काले पथ्थर से जुडी लंबी मूर्ति विद्धमान है। यह मूर्ति 8 स्वयंभू मूर्तियों में से एक है, जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी।
पौराणिक कथा अनुसार भगवन विष्णु ध्यान के लिए स्थान खोज रहे थे ,और अचानक इस स्थान पर आ पहुंचे। यहाँ विष्णु जी इतने ध्यान में लीन हो गए की यहाँ की अत्यधिक ठंड का भी उनको एहसास नहीं हुआ।
उनको इस ठन्डे मौसम से रक्षा हेतु लक्ष्मीजी ने अपने आपको बैर के वृक्ष, यानि बद्री के वृक्ष में धारण कर लिया। भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी की भक्ति से प्रसन्न होकर इस जगह को ‘बद्रिकाश्रम ‘ नाम दिया।
उत्तराखंड के चार धाम से जुड़े प्रश्न उत्तर।
चार धाम का क्या अर्थ है?
चार धाम यात्रा करने से हमारे सभी पाप धूल जाते है ,और हमारे अंदर आध्यात्मिकता का संचार होता है। हिन्दू ग्रंथो अनुसार व्यक्ति जीवन मरण से मुक्त होकर ,मोक्ष का भागिदार बनता है।
चार धाम कौन से?
वैसे तो हिन्दू धर्म में चार धाम बद्रीनाथ ,द्वारका ,जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम को बताया गया है। पर उत्तराखंड के चार धाम के नाम भी इसमें शामिल है जिसे छोटा चार धाम भी कहा जाता है। इसमें यमनोत्री ,गंगोत्री ,केदारनाथ और बद्रीनाथ शामिल है।
चार धाम की यात्रा करने से क्या होता है?
चार धाम की यात्रा से यमुनोत्री और गंगोत्री नदी का अधिक महत्व बताया गया है। इस यात्रा में यह दो नदियों में स्नान करने से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है ,और जीवन मरण से मुक्त होकर, मोक्ष की गति को प्राप्त करता है।
भारत का पहला धाम कौन सा है?
हिन्दू ग्रंथो के अनुसार भारत का पहला धाम भगवान् विष्णु के बद्रीनाथ धाम को बताया गया है।