The Logical Uttrakhandi

The Logical Uttrakhandi हमारी मांग उत्तराखंड मांगे भू कानून

29/06/2023

17/04/2023
हित और अहित तो सबको पता है किसका हो रहा है
17/04/2023

हित और अहित तो सबको पता है किसका हो रहा है

Mahendra Bhatt Pushkar Singh Dhami PMO India Satpal Maharaj इतनी कठिन मेहनत करने के लिए सभी राजनेताओं को बहुत बधाई ।
29/03/2023

Mahendra Bhatt
Pushkar Singh Dhami
PMO India
Satpal Maharaj

इतनी कठिन मेहनत करने के लिए सभी राजनेताओं को बहुत बधाई ।

हम तो रहेंगे मौज में, बेरोजगार जाए और उधारी पगारी कर के फीस भरते रहें - उत्तराखण्ड सरकार ।।
20/03/2023

हम तो रहेंगे मौज में, बेरोजगार जाए और उधारी पगारी कर के फीस भरते रहें - उत्तराखण्ड सरकार ।।

ना खुद रोड बनाएंगे न ही तुमको बनाने देंगे ।धामी की धमकी ।
18/03/2023

ना खुद रोड बनाएंगे न ही तुमको बनाने देंगे ।
धामी की धमकी ।

पहले मैं देखूंगा कौन सा पेपर कितने में बिकता है ।...
21/02/2023

पहले मैं देखूंगा कौन सा पेपर कितने में बिकता है ।...

18/02/2023

धाकड़ धामी जी का कहना है की जो उन्हें कैश नहीं देना चाहते वो चाहते हैं सीबीआई जांच हो ।
पैसे दो नौकरी लो, बीजेपी सरकार की नई युवा नीति है ।

13/02/2023

बनना नकल विरोधी कानून ने था और एफआईआर नकल का विरोध करने वालों पर ही कर दी ।
हैंडसम धामी का धाकड़ फैसला ।

11/02/2023

सभी प्रदेशवासियों देशवासियों को बड़े दुख के साथ अवगत कराना पड़ रहा है कि दिनांक 8 फरवरी 2023 से उत्तराखंड में सरकारी भर्तियों में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बेहतर सरकारी व्यवस्था स्थापित करने हेतु उत्तराखंड बेरोजगार संघ के बैनर तले सत्याग्रह शुरू किया था लेकिन आपने देखा कि 08 फरवरी 2023 रात को 12, 01 बजे पुलिस के कुछ कर्मचारियों ने अकेले निहत्थे बॉबी भाई व अन्य साथियों को बर्बरता पूर्ण तरीके से उठाया गया।
जिससे पूरे प्रदेश के आम जनमानस में आक्रोश फैला और वह आक्रोश दिनांक 9 फरवरी को देहरादून की सड़कों पर दिखा।

सभी युवा बेरोजगार शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को पूर्ण करने की बात कर रहे थे लेकिन वहां भी उनके साथ बर्बरता पूर्ण लाठीचार्ज हुआ और हमारे भाई बॉबी पवार एवं उनके तमाम साथियों को गंभीर धाराओं में गिरफ्तार कर दिया गया। आज तक उनको रिहा नहीं किया गया है।
सरकार लगातार धोखा युवाओं के साथ कर रही है।

सभी प्रदेश वासियों से अपील है कि जिस प्रकार से सरकार हमारे साथ धोखा कर रही है और जिस #पटवारी #लेखपाल पेपर का #प्रश्न_बैंक ही बाहर था ना तो उसे सार्वजनिक किया गया, उसके पश्चात भी सरकार ने जबरन उस पेपर को करवाने का निर्णय लिया।

जबकि #पहले_जांच_फिर_परीक्षा होनी चाहिए थी।

साथियों उत्तराखंड का इतिहास रहा है कि यहां भर्तियां निकालने के लिए भी सड़कों पर कूच करना पड़ता है और आज ऐसी क्या नौबत आ गई है कि सरकार और आयोग जबरदस्ती इस पेपर को करवाने पर तुली है।

जबकि प्रदेश का अधिकांश बेरोजगार इस पेपर को करवाने के पक्ष में नहीं है। फिलहाल मेरी सभी प्रदेशवासियों से विनम्र अपील है कि हमारे साथी जेलों के अंदर हैं और हम यहां शहीद स्मारक देहरादून में शांतिपूर्ण सत्याग्रह पर बैठे हुए हैं। पुलिस हमारी मानसिक प्रताड़ना कर रही है यहां लाइट काट दी जा रही है ।

इसलिए मेरी सभी प्रदेशवासियों से अपील है कि भाई बॉबी पवार द्वारा शुरू की गई भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम को आप पूरे प्रदेश वासी सहयोग करेंगे और यदि आज रात तक बॉबी भाई बाहर नहीं आते हैं, तो कल आयोजित होने वाले पटवारी पेपर का पूर्ण तरीके से सामाजिक बहिष्कार करेंगे, आप कुछ भी काला पहनकर या काली वस्तु से #सांकेतिक विरोध भ्रष्टाचार के खिलाफ परीक्षा केंद्र पर जाने से पूर्व तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट करेंगे।
हमें इस घड़ी में बॉबी भाई की मुहिम को सहयोग करना होगा ।

प्रदेश के सभी अभिभावकों से अपील है कि सहयोग करें।
साथ ही सभी राजनैतिक संगठनों से भी अपील है कि इस मुद्दे पर राजनीति न करके छात्र के हितों के अनुसार काम करें।
Copy from उत्तराखंड बेरोजगार संघ

#उत्तराखंड_मांगे_सीबीआई

#सत्याग्रह_जारी_रहेगा
Bobby Panwar
Pushkar Singh Dhami
PMO India

11/02/2023

सत्य वचन

10/02/2023

चोर चोरी ही तो करेगा ।
नेता झूठ ही तो बोलेगा ।
करनी अपनी ही मन की है । तुम्हारी कौन सुन रहा है ?
अंकिता भंडारी हत्याकांड में भी वही हो रहा है । वो रुके हुए हैं तुम भूल जाओ और सारे हत्यारे बाहर निकल दिए जाए और हम लगभग भूल चुके हैं ।
भर्ती घोटाओं से आधे लोग बाहर आ जायेंगे और हम फिर भूल जायेंगे । ना वो तुम्हारी मांगो पर सीबीआई जांच करवाएंगे न ही किसी बीजेपी नेता का नाम सार्वजनिक करेंगे और ना किसी नकलची का । खाने वाले ने जम कर के पैसे खा लिए हैं और छोटे मोटे से हैंडसम तक को हिस्सा मिल गया होगा । नाम सामने नहीं आयेंगे, फिर भर्ती होगी फिर वही लड़के चुने जाएंगे क्युकी पैसे तो खा ही लिए हैं ।

लेकिन धड़कने तो बड़ी ही होंगी हैंडसम की , लड़ाई जो बड़ी दिख रही है । कुछ खानापूर्ति होगी , सबके मन को बहलाने की बातें होंगी । लेकिन जो लड़ाई शुरू हुई है वो रुकनी नही चाहिए , न ही समय के साथ संघर्ष को भुला दिया जाना चाहिए ।
आने वाले चुनावों का निर्णय अभी कर दिया जाय , कोई पार्टी नहीं कोई विचारधारा नहीं । जो हमें नहीं समझे , जिन्हे पुलिस के डंडे चलवाए , न वो माफ किए जाने लायक हैं और ना ही उन्हें माफ करना है ।

09/02/2023

जय हो उत्तराखंड पुलिस
जय हो धामी
जय हो ukssc
जय हो ukpsc
जय हो नेता

01/02/2023



पहाड़ में होगी नये नेताओं की भर्ती या बनेगा मंकीलैंड
- 20 साल में 20 नेता भी नहीं पैदा कर सका पहाड
- अपनी बर्बादी की दास्तां लिख रहे हैं पहाड़ के लोग़

20 साल बीत गये। पहाड़ के सुदूर गांव में खड़े व्यक्ति तक विकास की एक किरण नहीं पहुंची। इस अवधि में पहाड़ के गांवों से शहर तक आने के लिए सड़कों का जाल बिछा दिया गया। आल वैदर रोड बन रही हैॅ। रेल मार्ग बन रहा है। लिंक मार्ग भी बन रहे हैं। लेकिन आज तक सरकारों ने पिछले 20 साल में पहाड़ में एक भी ऐसी सड़क नहीं बनाई जो शहर से गांव तक जाती हो।

20 साल बीत गये। न शिक्षा का स्तर सुधरा, न स्वास्थ्य सेवाओं के हालात। रोजगार आज भी मनरेगा आधारित है और पहाड़ में करवा चैथ और पंजाबी गीतों की धूम है। बेरोजगार पहाड़ी खाली समय में ताश खेलते हैं और मुर्गा या बकरा मैच खेलते हैं। जीवन काटने के लिए शार्ट कट तलाशा जा रहा है। दुखद है कि पहाड़ में पिछले 20 साल में एक भी नेता नहीं पैदा हुआ। न नये नेताओं की भर्ती हुई न जनता ने नये नेताओं की चाहत की। जनता ने नये नेताओं को नहीं पूछा, पुराने नेताओं ने जनता को नहीं पूछा।

पिछले 20 साल में पहाड़ों से नेताओं का पलायन हो गया। त्रिवेंद्र रावत, निशंक, खंडूड़ी, हरीश रावत, हरक सिंह रावत समेत अधिकांश नेताओं ने समझ लिया कि पर्वतीय लोग दोयम श्रेणी के नागरिक हैं और जब मैदानों में उनकी जीत हो रही है तो वो पहाड़ की उकाल यानी चढ़ाई क्यों चढ़ें? हमने पहाड़ की बर्बादी की दास्तां खुद लिखी है। अब पर्वतीय जिलों में ठेकेदार और दलाल हमारे भाग्यविधाता बन गये हैं। हमने अलग राज्य की जंग लड़ी और हम अपने ही राज्य में मजदूर हो गये। यानी इमारत हमने बनाई और राज बाहरी लोग कर रहे हैं।

जनता ने साफ नीयत और अच्छे लोगों को कभी वोट ही नहीं दिया। कभी कांग्रेस लहर तो कभी भाजपा लहर में जनता मदहोश डूबी रही। ठीक ऐसे जैसे शराबी नाली के पास पड़ा होता है और उसे यह चिन्ता नहीं सताती कि जमाना देख रहा है। अहित उसका हो रहा है। हमारी जनता भी ठीक ऐसी है। यदि पर्वतीय लोगों ने मंथन नहीं किया कि नये चेहरों और नये नेताओं की भर्ती करें तो 2026 के बाद नया परिसीमन होगा और पहाड़ मंकी लैंड बन जाएगा। हमारे नेता हमारे चारों धामों को हरिद्वार ले आएंगे और पहाड़ियो तुम या तो भूखे मरोगे या गुलदार तुम्हें मार डालेगा। सोचो, विचारो और तय करो करना क्या है। उम्मीद की किरण बस, घाट में चल रहे आंदोलन से आ रही है। यदि इस तरह के आंदोलन होंगे तो ही लगेगा कि पहाड़ जिंदा है। नहीं तो बस यूं ही जीना दोयम दर्जे की नागरिकता के साथ जिन्दगी।

19/10/2022

देश के माननीय प्रधानमंत्री जी केदारनाथ एवं बद्रीनाथ दर्शन के लिए आ रहे हैं कुछ प्रश्न एक उत्तराखंडी होने के नाते!
माननीय प्रधानमंत्री जी आपके नेता का बेटा पुल्कित आर्य ने 19 बर्षीय बहन अंकिता भण्डारी को सिर्फ इसलिए मार दिया कि वह भाजपा के वीआईपी लोगों को लिए स्पेशल सर्विस यानी देह व्यापार करने से मना कर दिया, उसका क्या गुनाह था??

माननीय प्रधानमंत्री जी आपके मुंह से एक शब्द नहीं निकला क्यों कोई संवेदनाएं परिवार के प्रति व्यक्त नहीं हुई??

माननीय प्रधानमंत्री जी आपके स्लोगन बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का क्या अर्थ है??

माननीय प्रधानमंत्री जी उन वीआईपी लोगों का नाम क्यों उजागर नही हुआ??

माननीय प्रधानमंत्री जी क्यों उत्तराखंड में भाजपा सरकार भाजपा नेता को बचाने में लगी हुई है??

माननीय प्रधानमंत्री जी घोटाले में सीबीआई जांच क्यों नहीं हुई??

माननीय प्रधानमंत्री जी सहकारिता विभाग में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हुआ है आपके नेतृत्व में भाजपा शासित राज्यों में जांच क्यों नहीं होती??

कहां है रोजगार? कहां है भू कानून? मूल निवास1950, कहां है स्वास्थ्य सुविधाएं??

माननीय प्रधानमंत्री जी कहां है अपराध मुक्त उत्तराखंड??

माननीय प्रधानमंत्री जी पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी क्यों पहाड़ के काम नहीं आ रही है??

माननीय प्रधानमंत्री जी क्या यही है आपका उत्तराखंड प्रति स्नेह???

माननीय प्रधानमंत्री जी हर स्तर पर डबल इंजन क्यों फेल है??

अगर आप इस सब को रोकने में असमर्थ हो तो आपका देव भूमि उत्तराखण्ड में पांव रखना भी महापाप है।


# Justice for Uttarakhandi People.

18/10/2022

हमेशा की तरह यह मामला भी ठंडे बस्ते में जा रहा है। न केवल अंकिता के साथ नाइंसाफी है बल्कि उस उम्मीद का गला घुटता भी दिख रहा है जो हमारे रिपोर्टर भाइयों ने, श्रीनगर/ऋषिकेश/देहरादून में विशाल जनसमूह ने, और सोशल मीडिया पर तथाकथित महानुभावों ने जगाई थी। हमेशा की तरह इस बार भी जनता का बेवकूफ बन रहा है।
"तुम जना सेवक नेता ह्वे ग्या लोकतंत्र मां"

17/10/2022

ये सरकार बनी किसलिए है पीड़ित को न्याय नहीं दिला सकती और शिक्षितों को नौकरी नहीं दिला सकती, अहो दुर्भाग्य हम उत्तराखंड वासियों का, बेहद शर्मनाक, ये घाव जो सरकार दे रही है इसे जनता याद रखेगी, अब और कितना गिरेंगे ये शासन प्रशासन को चलाने वाले,लग रहा है सरकार गिरने वाली है, कब तक अत्याचार सहेगी जनता

30/09/2022

This is second part of valley of flowers Chenap trek. in this part we cover the trek from chenap valley to Sonashikhar Trek. Chenap popularly known as valley...

11/09/2022

राष्ट्रवादी भैया की कलम से...👇👌

कल जिओ ब्रॉडबैंड से लड़का आया कि सर जिओ wifi लगवा लो नाम था सलमान

अमेजॉन की डिलीवरी देकर जो लड़का गया उसका नाम था आसिफ

ओला की बुकिंग की तो ड्राइवर का नाम आया मोहम्मद इख़्तियार

शाम को में जिस फलवाले से फल खरीद कर लाया उसका साथी उसे अंसार भाई कह रहा था

परसो ही AC की सर्विस करके शमशाद गया था

घर की टोटी बदलने जो आया थाउसका नाम नौशाद था

बाल मेरे शफ़ीक़ काटता है

घर के लोहे के गेट फ़िरोज़ ने बनाये हैं और लकड़ी का सारा काम बख्तियार करके गया

मेरी गाड़ी की सर्विस जावेद करता है और फिजिशियन का नाम शमीम है

लेकिन फेसबुक और ट्वीटर पर मुझे हिन्दू राष्ट्र चाहिए ऐसा हिन्दू राष्ट्र जिसका हिन्दू निठल्ला है

उसे बस सरकारी नौकरी चाहिए बाप दादाओ के काम वो छोड़ चुका है क्यूंकि उसे वो ब्राह्मणवादी और सामंतवादी शोषण मानता है

नाई बढ़ई लोहार महतो गडरिया सबको सरकारी नौकरी चाहिए नहीं तो बेरोज़गारी भत्ता दो BA, MA की डिग्री लेकर घर पर रोटी तोड़ेंगे और सरकार को कोसेंगे की रोज़गार नहीं दे रही

लेकिन कुछ काम नहीं करेंगे और अपना खानदानी जातिगत काम तो बिलकुल नहीं करेंगे

हिन्दू नाई रोज़गार मांगता घूम रहा है वहीँ जावेद हबीब ने हज़ारो रोज़गार दे दिए

सही है सोशल मीडिया पर ही हिन्दू राष्ट्र मिलेगा क्यूंकि जमीन पर उनकी जो तैयारी है वो 100 साल छोड़ो 30 साल में मुस्लिम राष्ट्र बना देंगे

बड़े बडे इस्लामिक विचारक 2062 मे इस्लामिक शाशन आने की बात कर रहे है और उनका मानना है कि इसे अब कोई भी नही रोक सकता और उसके 200 साल बाद यानि 2262 में भारत मे पाकिस्तान के बराबर भी हिंदू नही बचेंगें

मै अपने रिसर्च से भारत मे इस्लामिक शाशन 2052 में आने की बात कहता हू और जिस तरीके से सारी चीजें बदल रही है भारत में उसको देखते हुए मुझे कोई शक नही है

और अब एक बार इस्लामिक शाशन आने की देर है उसके बाद हिंदु और हिंदुस्तान सिर्फ आप सबको इतिहास मे मिलेगा जमीन पर नही

जो लोग मोदी योगी भाजपा के सहारे बैठे है या ये सोच रहे हैं कि मोदी हिंदू राष्ट घोषित कर देगा तो वो सुरझित हो जायेंगें तो उनके लिये बस मै इतना ही कहूगा कि भगवान उन्हे सद्बुद्धि दे

अगर किसी को मेरी बात से एतराज है तो वो अपना मत रख सकता है

09/09/2022

इतनी विनती तो प्रभु श्रीराम जी ने समुद्र से नहीं की होगी रास्ता देने के लिए, जितनी कि उत्तराखण्ड सरकार से कर रहे हैं सीबीआई जांच के लिए । लेकिन फिर भी इनपर कोई असर नहीं ....

29/08/2022

हां मैंने बेटे-बहू को नौकरी पर लगाया है।
पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि मेरा बेटा बेरोजगार था, मेरी बहू बेरोजगार थी, दोनों पढ़े-लिखे थे। नौकरी दे दी तो कौन सा पाप किया.
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कुंजवाल जी दुर्भाग्य की बात है को उत्तराखंड का हर युवा आपका बेटा या बेटी नही हो पाया।

https://www.amarujala.com/dehradun/uttarakhand-assembly-recruitment-rigged-former-vidhan-sabha-president-govind-singh-kunjwal-statement

नेता भी मैं सरकारी कर्मचारी भी मेरे परिवार सेबाकी जनता के लिए चुनाव के समय मुर्गा और दारू ।।
27/08/2022

नेता भी मैं
सरकारी कर्मचारी भी मेरे परिवार से
बाकी जनता के लिए चुनाव के समय मुर्गा और दारू ।।

09/06/2022
भाजपा अपनी जगह, हम अपनी जगह !हमारे लिए हिंदुत्व सियासी मजबूरी नहीं, आस्था की धूरी है।बिल्कुल   के साथ हैं।
06/06/2022

भाजपा अपनी जगह, हम अपनी जगह !

हमारे लिए हिंदुत्व सियासी मजबूरी नहीं, आस्था की धूरी है।

बिल्कुल के साथ हैं।

20/05/2022

पुण्यतिथि (20 मई, 2012) पर विशेष
पहाड़ की संवेदनाओं के कवि थे शेरदा 'अनपढ़'

मेरी र्इजा बग्वालीपोखर इंटर कालेज के दो मंजिले की बड़ी सी खिड़की में बैठकर रेडियो सुनती हुई हम पर नजर रखती थी। हम अपने स्कूल के बड़े से मैदान और उससे लगे बगीचे में ‘लुक्की’ (छुपम-छुपार्इ) खेलते थे। जैसे ही ‘उत्तरायण’ कार्यक्रम आता र्इजा हमें जोर से ‘धात’ लगाती। ‘उत्तरायण,’ ‘गिरि-गुजंन’ और ‘फौजी भाइयों के लिये’ कार्यक्रम के हम नियमित श्रोता थे। र्इजा इस कार्यक्रम के लिये हमारा वैसा ही ध्यान रखती जैसा खाने-सोने का। बीना तिवारी की मधुर आवाज में उन दिनों बहुत बार एक गीत रेडियो में आने वाला हुआ- ‘ओ परुआ बौज्यू चप्पल क्ये ल्याछा यस, फटफटानी होनि चप्पल क्ये ल्याछा यस।’ शेरदा 'अनपढ़' के गीत-कवितायें सुनते हुये हम बड़े हुये।शायद यह 1982-83 की बात होगी। पता चला कि चौखुटिया में एक कवि सम्मेलन या सांस्कृतिक कार्यक्रम होने वाला है। बाबू ने कहा वहां चलेंगे। लेकिन पता नहीं क्या हुआ पिताजी नहीं आ पाये।

उन दिनों हमें इतिहास-संस्कृति को जानने का चस्का भी लग चुका था। मुझे पता लगा कि चौखुटिया के पास बैरती के बाला दत्त त्रिपाठी जी के पास बद्रीदत्त पांडे की लिखी ‘कुमाऊं का इतिहास’ है। तब यह किताब आउट आॅफ प्रिंट थी। किताब को पाने और इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिये मैं अपने गांव मनेला (गगास) से चौखुटिया पैदल चला गया। लगभग 35 किलोमीटर। चौखुटिया हमारे लिये उन दिनों सात समंदर पार जैसा होने वाला हुआ। उन्होंने इस शर्त पर किताब दे दी कि मैं पढ़कर लौटा दूंगा। बहुत पुरानी, उखड़ी फटी सी। मैं किताब को घर लाया और उसे चार हिस्सों में उखाड़ दिया। चारों हिस्से चार दोस्तों ने बांट लिये और एक हफ्ते में पूरी किताब लिख मारी। रानीखेत जाकर किताब की खूबसूरत बाइंडिंग कर त्रिपाठी जी को लौटा दी। जब इंटर कालेज के कार्यक्रम में गया तो पता चला कि वहां मुख्य अतिथि हिन्दी अकादमी के सचिव डाॅ. नारायणदत्त पालीवाल हैं। उन दिनों ऐसे लोगों को देखना-सुनना हमारे लिये चेतना की बड़ी खिड़की का खुलना था। माइक से आवाज आई- ‘शेरदा-शेरदा हैगे भ्यार-भितेर, म्यर च्योल ले धात लगूंणों शेरदा कबैर/हुणीं हुनी मिलै कौंछि, य तो अड़हौति हैगे/दिदी भुली कुनै छी य ज्वै रानैकि लै कौंण भैगे।’ शेरदा 'अनपढ़' को देखने और सुनने का मौका पहली बार मिला। आज उनकी पुण्यतिथि है। पहाड़ की संवेदनाओं के कवि को शत-शत नमन।

शेरदा 'अनपढ़' का पूरा नाम शेर सिंह बिष्ट था। उन्होंने अपने जीवन को बहुत सहज अंदाज़ में अपनी इस कविता में व्यक्त किया- ‘गुच्ची खेलनै बचपन बीतौ,अल्माड़ गौं माल में/ बुढ़ापा हल्द्वानी कटौ, जवानी नैनीताल में/ अब शरीर पंचर हैगौ, चिमड़ पड़ गयी गाल में/ शेर दा सवा सेर ही, फंस गौ बडऩा जाल में।’ उनकी पैदाइश का दिन ठीक-ठीक पता नहीं है। उस जमाने में ऐसा चलन भी नहीं था। बाद में रचनाकर्म शुरू हुआ तो मित्रों ने तीन अक्टूबर 1933 जन्मतिथि घोषित कर दी। उनका जन्म अल्मोड़ा बाजार से दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित माल गांव में हुआ। जब चार साल के थे तो पिताजी चल बसे। माली हालत खराब हो गयी। जमीन, मां का जर-जेवर सब गिरवी रखना पड़ा। वे लोग गांव के ही किसी व्यक्ति के मकान में रहते थे। शेरदा दो भाई थे।

बहुत छोटी उम्र में गांव में किसी की गाय-भैंस चराने तो किसी के बच्चे को खिलाने का काम दिया। बच्चे को झूला झुलाने केअपने इसी अनुभव को उन्होंने इस कविता में व्यक्त किया-
‘पांच सालैकि उमर/गौं में नौकरि करण फैटूं/ काम छी नान भौक/ डाल हलकूण/ उलै डाड़ नि मारछी/ द्विनौका है रौछि/मन बहलुण।’ इस काम के बदले उन्हें आठ आने मिलते थे। आठ साल की उम्र हुई तो शहर आ गये। बचुली मास्टरनी के यहां काम करने लगे। घर में नौकर रखने से पहले हर कोई अता-पता पूछता है तो उसने भी पूछा। उसने भी सोचा कि बिना बाप का लडक़ा है। गरीब है, इसको पढ़ा देते हैं, तो उसने ही अक्षर ज्ञान कराया। फिर कुछ दिन वहीं गुजरे। बारह साल की उम्र में आगरा चले गये।

आगरा में छोटी-मोटी नौकरियां कीं। वहां रहने का साधन था। वहां उनके भाई इंप्लायमेंट दफ्तर में चतुर्थ श्रेणी कर्मी थे। एक साल घूमते रहे। एक दिन सौभाग्यवश आर्मी के भर्ती दफ्तर में पहुंच गये। वहां बच्चा कंपनी की भर्ती हो रही थी। लाइन मेें लग गये। अफसर ने पूछा कुछ पढ़े-लिखे हो तो अखबार पढऩे को दिया तो थोड़ा-थोड़ा पढ़ दिया। 31 अगस्त, 1940 को बच्चा कंपनी में भर्ती हो गये। बच्चा कंपनी में भर्ती होकर मेरठ चले गये। उसी खुशी के माहौल में कविता फूटी- ‘म्यर ग्वल-गंगनाथ/ मैहूं दैण है पड़ी/ भान मांजणि हाथ/ रैफल ऐ पड़ी।’ मेरठ में ही तीन-चार साल बच्चा कंपनी में गुजारे। उसके बाद 17-18 साल की उम्र में फौज के सिपाही बन गये। सिपाही बनने के बाद उन्हें मोटर ड्राइविंग ट्रेड मिला। गाड़ी चलाना सीखा। वहां से पासआउट हुए तो पहली पोस्टिंग में जालंधर भेज दिया गया। उसके बाद झांसी और जम्मू-कश्मीर रहे। बारह साल यहां रहने के बाद पूना चले गये।

शेरदा के काव्य कर्म की शुरुआत 1962 में पूना से हुई। उस समय भारत-चीन की लड़ाई चल रही थी। युद्ध में जो लोग घायल हो गये, उनके साथ संगत रहने लगी। उनसे लड़ाई के बारे में जिक्र सुना तो पहली किताब हिन्दी में ‘ये कहानी है नेफा और लद्दाख की’ शीर्षक से प्रकाशित होकर आयी। इस किताब को उन्होंने जवानों के बीच बांटा। कुमाउनी में लिखने की शुरुआत भी यहीं से हुई।पहाड़ी महिलाओं के दुख-दर्द को समेटती पुस्तक ‘दीदी-बैंणि’ लिखी। साथ ही जमाने को टोका। लिखा- ‘गरीबी त्यर कारण/ दिन रात नि देखी/ गुल्ली डंडा देखौ/ शेर दा कलम-दवात नि देखी।’ ‘दीदी-बैंणि’ काव्य संग्रह की ही ये कविता है-
‘सुण लिया भला मैसो, पहाड़ रूनैरो/ नान-ठुल सब सुणो, यौ म्यरौ कुरेदो/ दीदी-बैंणि सुण लिया, अरज करुंनू/ चार बाता पहाड़ा का, तुम संग कुनूं/ चार बात लिख दिनूं, जो म्यरा दिलै में/ आजकल पहाड़ में, हैरौ छौ जुलम/ नान ठुला दीदी-बैंणि, भाजण फै गई/ कतुक पहाडक़ बैंणि, देश में एै गयी/ भाल घर कतुक, हैगी आज बदनाम/ जाग-जाग सुणि, नई एक नई काम।’ फिर कुछ ऐसा हुआ कि कवितायें लिखने का सुर लग गया।

सन 1963 में पेट में अल्सर हो गया और वे मेडिकल ग्राउंड में रिटायर होकर घर आ गये। उम्र यही कोई रही होगी 24-25 साल की। किसी ने बताया कि कॉलेज में एक चारु चंद्र पांडे हैं। वो कविता भी करते हैं, विशेषकर पहाड़ी में। उनसे मिले। वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा मैं ब्रजेंद्र लाल शाह से मिलाता हूं। वह कविता के बड़े जानकार हैं। पहाड़ में सांस्कृतिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए एक सेंटर खुलने जा रहा है। वह उसके डायरेक्टर बनने वाले हैं। ब्रजेन्द्र लाल साह से परिचय हुआ। उन्हें अपनी किताबें दिखायीं। अपने जीवन की पहली कविता सुनाई- ‘नै घाघरि/ नै सुरयाव/ कसि काटीं ह्यून हिंगाव।’ यह कविता सुनकर वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा यहां पर होली आने वाली है। हम रैम्जे हाल में होली मनाते हैं। उस दिन सब कुछ-न-कुछ सुनाते हैं। कविता लाना, तुम्हें भी मौका देंगे। पंद्रह-बीस दिन के बाद होली आयी। शेरदा इसमें शामिल होने चले गये। तब शेरदा ने यह कविता सुनाई- ‘घर म न्हैति मेरि छबैलि, मैं कै दगै खेलूं होई/होई धमकी रै चैत में, सैंणि लटक रै मैत में।’ लोगों ने खूब तारीफ की। ब्रजेन्द्र लाल साह ने बताया कि नैनीताल में 'गीत एवं नाट्य प्रभाग' का सेंटर खुल गया है। तुम वहां एप्लाई कर दो। तुम्हारे जैसे कवि-कलाकार की जरूरत है। आवेदन कर दिया। कॉल लैटर आ गया। कुल पचास लोग छांटे गये। जिनमें शेरदा 'अनपढ़' का चयन भी हो गया।

गीत एवं नाट्य प्रभाग से शेरदा की रचनात्मकता का नया सफर शुरू हो गया। नये-नये गीत बनने लगे। कंपोज होने लगे। इस तरह बहुत सी कवितायें लिखीं। इन्हें लोगों ने काफी पसंद किया। उनके अधिकारी कहते थे ये पहाड़ का रवीन्द्रनाथ टैगोर है। लगातार आत्मविश्वास भी बढने लगा। कुछ कवितायें मंच के लिए लिखीं तो कुछ साहित्य के लिए। यहीं से उनका संपर्क आकाशवाणी लखनऊ से हो गया। वहां से कवि सम्मेलनों में बुलाया जाने लगा। उनकी कवितायें लोगों को प्रभावित करने लगीं। फिर यह सिलसिला कविता संग्रहों की शक्ल लेने लगा।
‘दीदी-बैंणि’, ‘हसणैं बहार’, ‘हमार मै-बाप’, ‘मेरी लटि-पटि’, ‘जांठिक घुंघुर’, ‘फचैक’ और ‘शेरदा समग्र।’ के रूप में उनकी रचनाएं लोगों के बीच लोकप्रिय हुई। कुमाऊं विश्वविद्यालय में उन पर शोध कार्य चल रहे हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में उनकी कवितायें शामिल हैं। ‘हंसणैं बहार’ और ‘पंच म्याव’ टाइटल से दो कैसेट बाजार में आयी। 20 मई, 2012 को उनका निधन हो गया।

शेरदा का रचना संसार मानवीय संवेदनाओं से भरा है। वे एक हास्य कवि नहीं, बल्कि जीवन दर्शन के कवि हैं। उनकी हर कविता में आमजन के भोगे गये यथार्थ के दर्शन होते हैं। दरअसल, उनकी कवितायें उन लोगों की आवाज हैं, जो बोल नहीं सकते। कितने रूपों में स्फुटित हुर्इ हैं ये आवाजें। प्रेम, सौन्दर्य, प्रकृति, जीवन, अध्यात्म, जनसंघर्षों, आम आदमी के संकट, प्रतिकार, दरकती सामाजिक संरचना, बढ़ती बाजारवादी संस्कृति, समसामयिक सवालों को खोजती, उसमें अपना रास्ता ढू़ंढती। यहां तक कि हर उन सवालों को उठाती जो हाशिये में धकेले जाते रहे हैं। शेरदा 'अनपढ़' ने अपनी कविताओं में समाज के जिस पूरे फैलाव को दर्शाया है, उसे हम जितना समेटने की कोशिश करते हैं, वह बढ़ता ही जाता है। बहुत दूर तक। चूंकि उनकी कविताओं में जीवन दर्शन बहुत गहरे तक है, इसलिये जिन्हें उनकी हास्य कवितायें कहा जाता रहा है और भी गंभीर हैं। उन्होंने अपनी कवितओं का जो शिल्प और बिंब गढ़ा है, वह आदमी के अन्तर्मन को छूता है। झकझोरता है। उसमें भारी-भरकम शब्दों या ढूंढे हुये विषयवस्तु की जरूररत नहीं पड़ती। वह सहज ही उनकी कविता के आसपास खड़े हैं।

शेरदा ‘अनपढ़ ने आमजन की आकांक्षाओं को बहुत सीमित साधनों में भी कितना उम्मीदों भरा बनाया है उसे उनकी सुप्रसिद्ध कविता-गीत- ‘ओ परूआ बौज्यू चप्पल कै ल्याछा यस/फटफटानी होनी चप्पल कै ल्याछा यस’ से समझा जा सकता है। अपनी बहुत छोटी जरूरतों के लिये संषर्घ करते समाज के संकटों को बहुत खूबसूरती और गहरी समझ के साथ रखने का हुनर उनमें है। उनकी कुछ रचनायें समाज को बहुत गहरार्इ से समझने का रास्ता खोलती हैं-

1.
आम कुणे सुन नाति बख्ताक हाल,
त्यार बुबुक बूब कूँ सी कलजुग आल।
सैणी पैराल फिर पैंट सुरयाव,
और मैंसाक ख्वार रौल पैसे धाव।
2.
मडुआ नि खाणी कुणे गयुं है ग्यी अकार,
शेरदा सैणीक देखो नौमुरी नखार।
खो हालि सिराणी मांगी रू हालि खतार,
शेरदा सैणीक देखो नौमुरी नखार।
3.
बूब जै जवान नाती जे लूल
बख्ता तेरी बले ल्ह्यून
च्येलेक लटि, ब्वारी बुलबुली
बख्ता तेरी बले ल्ह्यून।
4.
न्है घागेरी, न्है सुरयाव
कसि काटु हयून निगांव
टूटि घर छू, फूटि द्वार
जसि भिदेर उसै भ्यार
ख्वारेन चुन्गने पानी धार
जाड़ है रो जत्ती मार
5.
दातुली कुटैली हाथ कसिक थामूल
दुख-सुख हिरदै का कैहयणि कूल
तू सुवा परदेश जाले, मैं कसिक रूल?

शेरदा ‘अनपढ़’ की कविताओं में जिस तरह का शिल्प और बिंब है वह उन्हें औरों से अलग करता है-
1.
भादव भिन निझूत कनर्इ, साइ पौणिक चाव
इन्द्रानी नौली हलानी, हौल के अडाव!
डाना काना काखिन हसणी, चैमास क ब्याव
छलके हैलो अगास ले आपुन खवर क भान
धुर जगल खकोर्इ गयी, पगोयी गयी डान
गाव गाव तलक डूबी गयी, खेत स्यार सिमार!
नटु गध्यारा दगे बमकाण फैगे गाड़!!
2.
भुर-भुर उज्यार्इ जसी जाणि रते ब्याण
भेकुवे सिकड़ी कसि उड़ी जै निसाण
खित कनै हैंसण और झू कले चांण
क्वाथिन कुत्यार्इ जै लगनु मुखक बुलाण
मिसिर जै मिठि लाग के कार्तिकी मौ छे तू
पूषेकि पाल्यु जस ओ खड्योणि को छै तू!

शेरदा ‘अनपढ़’ ने अपनी कविताओं में व्यवस्था पर भी बहुत प्रहार किये हैं। बहुत सारी चेतना की कवितायें हैं जो उन्हें जनवादी विचार की अगुवार्इ करती दिखाती हैं-
1.
चार कदम लै नि हिटा
हाय तुम पटै गो छा
के दगडि़यों से गोछा।
2.
नेताज्यू बोटेकि ओट में चटण्िा चटै गर्इ,
यो-ऊ मिलौल कै सौ गिनती रटै गर्इं।
3.
बोट हरिया हीरों को हार पात सुनुक चुड़
बोटो म बसूं म्यर पहाड़ा झन चलाया छुर।
4.
जां बात और हाथ चलनी
उकैं कौनी ग्रामसभा
जां बात और लात चलनी
उकैं कौंनी विधानसभा
जां एक बुलां, सब सुणनि
उकैं कौनी शोकसभा
जां सब बुलानी, क्वै नि सुणन
उकैं कौनी लोकसभा।
5
तुम भया ग्वाव गुसांईं
हम भया निगाव गुसैं
तुम सुख में लोटी रया
हम दुख में पोती रया।

शेरदा ‘अनपढ़’ ने अध्यात्म को भी बहुत गहरे तक समझा है। उनकी बहुत सारी कवितायें ऐसी हैं, जिनमें जीवन दर्शन और अध्यात्म से चीजों को समझने की कोशिश है-
1.
जागिजा-जागिजा कै बेर दगौड़ नि हून
म्यर छू-म्यर छू कै बेर आपणनि हूंन
आंखों बटि आंसू औनि ऊनी
घुना बटिक जै के च्वीनी।
2.
जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावो-बट्यावो है गे
पराण लै छुटण नि दी, उठाओ-उठाओ हैं गे।
3.
गुणों में सौ गुण भरिया
यो दुनि में गुणै चैनी
जो फूलों में खूशबू हुनी
ऊ द्योप्त दगे पूजी जानी।
4.
मौत कुनै मारि हालो
मनखी कूना कां मरूं?
अनाड़ी
तू हार छै, मैं हारूं।
5.
खरीदनैर्इ लुकुड़ लोग
एक्के दुकान बटि
क्वै कै हूं लगनाक्
क्वै कै हूं कफनाक।

(शेरदा 'अनपढ़' जी का एक लंबा साक्षात्कार कभी मैंने 'जनपक्ष आजकल' में प्रकाशित किया था। यह साक्षात्कार हमारे मित्र दीप भट्ट ने लिया था। उसी के आधार पर उनके जीवन के बारे में लिखा है। हमने क्रिएटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़ की ओर से शेरदा 'अनपढ़' पर पोस्टर निकाला था)
लेख - चारू तिवारी

15/05/2022
13/03/2022

जिन्हे लगता है भू कानून और मूल निवास कानून जरूरी नहीं हैं वो एक बार The Kasmir File Movie जरुर देखें ।

28/01/2022

नेताओं की स्वार्थनिती देखनी तो उत्तराखण्ड की राजनीति देखिए । कोई खुद और बेटे के लिए टिकट नहीं मिला तो पार्टी बदल रहा है और कोई बहू के लिए ।
दल बदल का खेल पूरा उत्तराखंड देख रहा है
और अगर जनता की निरंकुशता देखनी हो तो वो भी उत्तराखंड की ही देखिए । सब कुछ देख रहे हैं लेकिन मजाल की बीजेपी और कांग्रेस का मोह त्यागने की हिम्मत रखे । 21 सालों से बारी बारी ठगे जाने पर भी इन पार्टियों के लिए प्रेम कम नहीं होता दिख रहा है ।
सरकारी कामों में दलाली , सरकारी नौकरी में रिश्वत , उपनल जैसी संस्थाओं के माध्यम से नौकरी के लिए सिफारिश , प्राइवेट नौकरी के लिए जुगाड और भी ना जाने क्या क्या की जरूरत हर एक उत्तराखंडी को महसूस होती है और लगभग हर रोज होती है ।
यहां का निवासी सिर्फ उस व्यक्ति को जिताना चाहता है , जिससे वो सोचता है कि अगर वो जीत गया तो उसका भी कुछ जुगाड कर देगा कहीं किसी विभाग में , कहीं उपनल में । उसे ना उठे हुए नेता के व्यक्तित्व से मतलब है ना ही उसकी योग्यता से । उसे लगता है उसके जीवन को वहीं तार सकता है , पार लगा सकता है । लेकिन वो शायद भूल रहे हैं उसके जैसे हजारों यही सोच कर उस नेता का सपोर्ट कर रहे हैं, उसके पीछे खड़े हैं । लेकिन एक बात तो सत्य है अगर वो नेता जीत भी गया तो सबको तो मलाई मिलेगी नहीं , बमुश्किल कोई होगा सगा संबंधी तो सही , वरना बाबा जी का ठुल्लू ही मिलेगा ।
इसलिए अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं से हटकर जो समाज के लिए सोचे उस व्यक्ति और पार्टी को सपोर्ट करिए , उस दल को वोट दीजिए जो उत्तराखंड को तार सके , अपने सगे संबंधियों, भाई भतीजों को तो 21 सालों से भला वो लोग कर ही रहे हैं, आप और हम तो बस कभी खुद को तो कभी किस्मत को कोस रहे हैं ।


उत्तराखण्ड क्रांति दल

22/01/2022

याद रखिए चुनाव बीजेपी जीतेगी या कांग्रेस का नहीं है ।
चुनाव पहाड़ के 21 सालों तक हुए बुरे हाल का है । बहस इस पर नहीं होनी चाहिए कि बीजेपी या कांग्रेस ? हिसाब इसका होना चाहिए इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने कैसे उत्तराखंड का 21 सालों तक सत्यानाश किया है ।
सोच समझकर नेता चुनिए , जो पहाड़ और पहाड़ियों के अच्छे बुरे की सोचे उसकी समझ रखे , उस पार्टी और उस नेता को चुनिए ।



ये तस्वीर देखना एक सुखद अनुभव है ।लेकिन साथ ही क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है कि उत्तराखंड में समूह ग से लेकर ऊपर त...
16/01/2022

ये तस्वीर देखना एक सुखद अनुभव है ।
लेकिन साथ ही क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है कि उत्तराखंड में समूह ग से लेकर ऊपर तक की किसी भर्ती में ये संभव हो ? शायद नहीं ।
अभी कुछ ही दिन हुए हैं वन दरोगा का परिणाम घोषित हुए और सबको पता है क्या खेल खेला गया है यहां पर बेरोजगारों के सपनों के उपर । एक अभियर्थी है जिसके की 93 नंबर हैं और नॉर्मलाइज के नाम पर उसे बाहर कर दिया गया और एक है जिसके की 49 नंबर है उसको नॉर्मलाइज में 30 नंबर दे कर अंदर कर दिया गया ।
उत्तराखंड में भर्तियों में इतना हद तक भ्रष्टाचार फैला हुआ है कि अगर आपके 100 में से 100 नंबर भी हैं तो भी अगर आपके पास पैसे नहीं हैं तो आप का चयन निश्चित ही नहीं होगा ।
एक ही परिवार के छोटा भाई और जेठा भाई सरकारी नौकरी की मलाई खा रहा है और होनहार देहरादून में किसी कमरे के कोने में अपनी किस्मत का रोना रो रहा है । वन विभाग में पोस्ट आयी तो पोस्ट ही वन विभाग वालों को बेच दी ।
नौजवान अपनी जवानी के दिनों को किसी कमरे की चारदीवारी में कैद कर के काट रहा है और नेता , अफसर और तथाकथित सोर्स वाले और उनके जानने वाले इन युवाओं की नौकरियों पर डाका डाला कर बैठे हैं ।
हमारा उत्तराखंड के नवजवानों से अनुरोध है कि इस बार के चुनाव में केवल सत्ता का परिवर्तन ना हो , व्यवस्था का परिवर्तन हो और उत्तराखंड बेरोजगार संघ के पाधिकारियों से अनुरोध है कि वो एकजुट हो कर आगे आएं और बीजेपी और कांग्रेस दोनों का खुले आम विरोध करें । युवाओं से अपील करें की जो आपको एक सुरक्षित भविष्य की गारंटी दे सके उसको समर्थन दें अन्यथा यूहीं सरकारी नौकरियों को बिकते हुए देखें और सिर्फ देखते रहें ।


10/01/2022

अभी भी वक़्त है bjp, कांग्रेस का किसी अन्य पार्टी का डंका ना पीटो, समझदारी से वोट देना , और मेरा वोट उसी प्रत्याशी को होगा जो पूरी जनता के सामने लिखित देगा की वो सरकारी नोकरियों में चल रही धनादलियो को रोके, कब तक सिर्फ पार्टी का झण्डा बोकोगै। अपने बच्चों के के भविष्य के साथ खिलवाड़ ना करें और युवा भी जरा इस्पे सोचे धन्यवाद।

06/01/2022

बीजेपी वाले कह रहे हैं कि उत्तराखंड उनकी देन है । कोई पास बैठा कर समझाओ इन लोगो को इनकी देन उत्तराखंड तो नहीं है बल्कि सड़कों पर दम तोड़ती गर्भवती महिलाएं हैं , कोर्ट के चक्कर काटते युवा बेरोजगार हैं , सड़कों के अभाव में किलोमीटर पैदल चलते लोग हैं , 10-10 शराब की फैक्टरियां पहाड़ों में इनकी ही देन है । और भी बहुत कुछ दिया है इन्होंने और इनकी सहपाठी कांग्रेस ने पहाड़ को जो आज 21 साल बाद भी ज़मीनी हकीकत और भी बदतर हुई है ।
समय बदलाव का है , पहाड़ को बचे रहना है तो बीजेपी और कांग्रेस को यहां से भागने का समय आ गया है ।

04/01/2022

आइए साथ मिलकर आगे बढ़ाएं राष्ट्रीय पार्टियों के मुंह को छोड़े और लड़ाई लड़ाई सशक्त भू कानून के लिए

इसे कहते हैं सही घोषणा 🙏🙏🙏खेती पशुपालन को बढ़ावा दे कर रोजगार और पलायन पर एक हद तक काबू पाया जा सकता है ओर संस्कृति भी ब...
27/12/2021

इसे कहते हैं सही घोषणा 🙏🙏🙏
खेती पशुपालन को बढ़ावा दे कर रोजगार और पलायन पर एक हद तक काबू पाया जा सकता है ओर संस्कृति भी बची रहेगी ✅✅
🚩 जय उत्तराखंड 🚩

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