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18/10/2022
13/10/2022
21/09/2022
14/09/2022
11/09/2022

ेबी ी
एक और षड्यंत्र जिसके तहत भारतीय मिष्ठानों को विदेशी घोषित करने की चेष्टा की गई... कुछ दोयम दर्जे के इतिहासकारों में हर और षड्यंत्र रच कर भारतीय इतिहास के साथ-साथ विज्ञान चिकित्सा यहां तक कि खाद्य क्षेत्रों में की इतिहास को दूषित और धूमिल करने का भरसक प्रयास किया है आइए जानते हैं जलेबी और इमरती के विषय में कुछ रोचक तथ्य और इतिहास 👇🏽

जलेबी यह शब्द वैदिक साइंस पेज पर सुनकर थोड़ा सा अचंभित होना स्वभाविक है किन्तु वास्तविकता यह है कि जलेबी हमारी संस्कृति का हिस्सा है जो की औषधि के साथ साथ बहुत ही स्वादिष्ट मिष्ठान भी है जो काफी गुणकारी भी है तो चलिए आज आपको जलेबी के विषय में कुछ रोचक और दुर्लभ जानकारी देते हैं

दुनिया के 90 फीसदी लोग जलेबी का
संस्कृत और अंग्रेजी नाम नहीं जानते?
सुबह जलेबी के नाश्ते में है बहुत गुणकारी, साथ ही जाने…. जलेबी से जुड़े दिलचस्प किस्से…..

क्या है जलेबी? – जाने

उलझनें भी मीठी हो सकती हैं,
जलेबी…… इस बात की मिसाल है।

जलेबी का जलजला….

जलेबी में जल तत्व की अधिकता होने से इसे जलेबी कहा जाता है। मानव शरीर में 70 फीसदी पानी होता है, इसलिए इसे खाने से जलतत्व की पूर्ति होती है।

जलेबी को रोगनाशक ओषधि भी बताया है। गर्म जलेबी चर्म रोग की बेहतरीन चिकित्सा है।

जलेबी तेरे कितने नाम..

▪️संस्कृत में कुण्डलिनी,

▪️महाराष्ट्र में जिलबी तथा

▪️बंगाल में जिलपी कहते है ।

▪️जलेबी का भारतीय नाम जलवल्लिका है।

▪️अंग्रेजी में जलेबी को स्वीट्मीट (Sweetmeet) और सिरप फील्ड रिंग कहते हैं।

▪️जलेबी के भेद वेद में भी लिखे है।

▪️महिलाएं अपने केशों से “जलेबी जूड़ा” भी बनाती हैं।

जलेबी का जलवा…

▪️ बंगाल में पनीर की,

▪️ बिहार में आलू की,

▪️ उत्तरप्रदेश में आम की,

▪️ म.प्र. के बघेलखण्ड-रीवा, सतना में मावा की जलेबी खाने का भारी प्रचलन है।

▪️ कहीं-कहीं चावल के आटे की और उड़द की दाल की जलेबी का भी प्रचलन है।

▪️ ग्रामीण क्षेत्रों में दूध-जलेबी का नाश्ता करते हैं।

जलेबी तेरे रूप अनेक….

जलेबी डेढ अण्टे, ढाई अण्टे और साढे तीन अण्टे की होती है। अंगूर दाना जलेबी, कुल्हड़ जलेबी आदि की बनावट वाली गोल-गोल बनती है।

जलेबी से तात्पर्य….

जलेबी दो शब्दों से मिलकर बनता है। जल +एबी अर्थात् यह शरीर में स्थित जल के ऐब (दोष) दूर करती है। शरीर में आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि एवं ऊर्जा में वृद्धि कर स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत करने में सहायक है। जलेबी के खाने से शरीर के सारे ऐब (रोग दोष )जल जाते हैं ।

जलेबी ओषधि भी है….

जलेबी अर्थात जल+एबी। यह शरीर में जल के ऐब, जलोदर की तकलीफ मिटाती है। जलेबी की बनावट शरीर में कुण्डलिनी चक्र की तरह होती है।

अघोरी की तिजोरी…..

अघोरी सन्त आध्यात्मिक सिद्धि तथा कुण्डलिनी जागरण के लिए सुबह नित्य जलेबी खाने की सलाह देते हैं । मैदा, जल, मीठा, तेल और अग्नि इन 5 चीजों से निर्मित जलेबी में पंचतत्व का वास होता है । जलेबी खाने से पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा पाॅंच फनवाले शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है!

अपने ऐब (दोष) जलाने, मिटाने हेतु नित्य जलेबी खाना चाहिये । वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष की शांति के लिए सुबह खाली पेट दही के साथ, वात विकार से बचने के लिए-दूध में मिलाकर और कफ से मुक्ति के लिए गर्म-गर्म चाशनी सहित जलेबी खावें ।
रोग निवारक जलेबी….

▪️जलेबी ओषधि भी है
जो लोग सिरदर्द, माईग्रेन से पीड़ित हैं वे सूर्योदय से पूर्व प्रातः खाली पेट २से 3 जलेबी चाशनी में डुबोकर खाकर पानी नहीं पीएं सभी तरह मानसिक विकार जलेबी के सेवन सेे नष्ट हो जाते हैं।

▪️जलेबी पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए यह चमत्कारी ओषधि है। सुबह खाने से पांडुरोग दूर हो जाता है।

▪️जिन लोगों के पैर की बिम्बाई फटने या त्वचा निकलने की परेशानी रहती हो हो वे 21 दिन लगातार जलेबी का सेवन करें।

▪️जलेबी का जलवा….

जलवा दिखाने की इच्छा रखने वालों को हमेशा सुबह नाश्ते में जलेबी जरूर खाना चाहिये, जिन्हे ईश्वर से जुड़ने की कामना हो, तब जलेबी खायें।

▪️आयुर्वेदिक जड़ी बूटी जलेबी…

जंगली जलेबी नामक फल उदर एवं मस्तिष्क रोगों का नाश करता है। भावप्रकाश निघण्टु में उल्लेख है –

जो जंगल जलेबी खावै,
दुःख संताप मिटावै।
जलेबी खाये जगत गति पावै!

जलेबी खाने वालों को ब्रह्मचर्य का विधिवत् पालन करना चाहिये ।

‘‘टपकी जाये जलेबी रस की’’

अतः आयुर्वेद में विवाह होने तक स्वयं पर अंकुश रखने का निर्देश है।
जलेबी केे फायदे…

जलने, कुढन में उलझे लोग यदि जानवरों को जलेबी खिलाये तो मन शांत होता है।

क्योंकि मन में अमन है, तो तन चमन बन जाता है और तन ही हमारा वतन है नहीं तो सबका पतन हो जाता है इसे जतन से संभालो।
जलेबी की कहावतें…..

खाये जलेबी बनो दयालु
तहि चीन्हे नर कोई।
तत्पर हाल-निहाल करत हैं
रीझत है निज सोई।

जलेबी खाने से दया, उदारता उत्पन्न होती है। पहचान बनती है। आत्मविश्वास आता है।

टूटी की नही बनी है बूटी
झूठी की नही बनी है खूॅंटी
फूटी को नही बनी है सूठी
रूठी तो बने काली कलूटी

अर्थात- जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास अंदर से टूट जाये उसको ठीक करने की कोई बूटी यानी ओषधि आज तक नहीं बनी है। जो आदमी बार -बार बदलता है इनकी एक खूटी यानि ठिकाना नही होता। जिसकी किस्मत फूटी हो, जो भाग्यहीन हो, उसका भला सूफी-संत भी नही कर सकते और स्त्री रूठ जाये तो काली का भयंकर रूप धारण कर लेती है। अतः इन सबका इलाज जलेबी है।

रोज सुबह जलेबी खाओ।
भव सागर से पार लगाओ ।

खाली पेट करे मुख मीठा
विद्वान वाद-विवाद बसो दे झूठा …..

बाबा कीनाराम सिद्ध अवधूत लिखते हैं –

बिनु देखे बिनु अर्स-पर्स बिनु,
प्रातः जलेबी खाये जोई ।
तन-मन अन्तर्मन शुद्ध होवे
वर्ष में निर्धन रहे न कोई

एक संत ने जलेबी का नाता आदिकाल से वताया है-

पार लगावे चैरासी से, मत ढूके इत और।

जलेबी का नियम से प्रातःकाल सेवन करें, तो बार-बार क जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है। जलेबी के अलावा अन्य मिठाई की कभी देखें भी नहीं।

एक बहुत मशहूर कहावत है कि-

तुम तो जलेबी की तरह सीधे हो

एक लोक गीत है –

■ मन करे खाये के जिलेबी
■ जब मोसे बनिया पैसा माॅंगे, वाये दूध-जलेबी खिलादऊॅंगी

जलेबी बनाने हेतु आवश्यक सामग्री:-

मैदा 900 ग्राम, उड़द दाल 50 ग्राम पानी में गला कर पीस कर 500 ग्राम मैदा में 50 ग्राम दही मिलाकर दो दिन पूर्व खमीर हेतु घोल कर रखे शेष मैदा जलेबी बनाते समय खमीर में मिलाये शक्कर करीब 1 किलो 300-400 ML पानी में डालकर चाशनी बनाये। जलेेबी को बहुत स्वादिष्ट बनाने के लिए चाशनी में एक चम्मच नीबू का रस और केशर मिला सकते हैं।

जलेबी के खाने से लाभ….

एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्तिबलप्रदा।
धातुवृद्धिकरीवृष्या रुच्या चेन्द्रीयतर्पणी।।

(आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश पृष्ठ ७४०)

अर्थात – जलेबी कुण्डलिनी जागरण करने वाली, पुष्टि, कान्ति तथा बल को देने वाली, धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक एवं इन्द्रिय सुख और रसेन्द्रीय को तृप्त करने वाली होती है।

जलेबी का अविष्कार…

दुनिया में सर्वप्रथम जलेबी का अविष्कार किसने किया यह तो ज्ञात नहीं हो सका। लेकिन उत्तरभारत का यह सबसे लोकप्रिय व्यंजन है। भारत की जलेबी अब अंतरराष्ट्रीय मिठाई है।

प्राचीन समय के सुप्रसिद्ध हलवाई शिवदयाल विश्वनाथ हलवाई के अनुसार जलेेबी मुख्यतः अरबी शब्द है।

तुर्की मोहम्मद बिन हसन “किताब-अल-तबिक़” एक अरबी किताब जलेबी का असली पुराना नाम ाबिया लिखा है। 300 वर्ष पुरानी पुस्तकें “भोजनकटुहला” एवं संस्कृतमें लिखी “ ुण्यगुणबोधिनी” में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन है।

घुमंतू लेखक श्री शरतचंद पेंढारकर ने जलेबी का आदिकालीन भारतीय नाम कुण्डलिका बताया है। वे बंजारे बहुरूपिये शब्द और ुनाथकृत “ #भोज__कौतूहल” नामक ग्रन्थ का भी हवाला देते हैं। इन ग्रंथों में जलेबी बनाने की विधि का भी उल्लेख है। मिष्ठान भारत की जान जैसी पुस्तकों में जलेबी रस से परिपूर्ण होने के कारण इसे ्लिका नाम मिला है।

जैन धर्म का ग्रन्थ “कर्णपकथा” में भगवान महावीर को जलेबी नैवेद्य लगाने वाली मिठाई माना जाता है।

ृती
वामपंथी इतिहासकार इमरती को ईरानी मिठाई बताते हैं.............. इन हराम खोरों के अनुसार इमरती जोकि अमृती शब्द का अपभ्रंश है........... ईरान से भारत आई और यहां आकर बेहद लोकप्रिय हो गयी।

इनके अनुसार अरब और ईरान से आने वालों ने भारतीयों को अपनी मिठाईयां सिखाने में कोई गुरेज नहीं किया...................और उन्हें दिल खोलकर अपने फॉर्मूले दिए।

उनके बेशकीमती हुनर से भारतीय रसोइयों और हलवाइयों ने मिठाई बनाने की कला में महारत हासिल कर ली।

जबकि इमरती उड़द की दाल से बनने वाली मिठाई है..................और वामपंथी दुष्ट ये नहीं बताते कि उड़द दाल ईरान में पैदा ही नहीं होती.............. उड़द केवल भारत और म्यांमार में होती है।

ईरानी तो जानते भी नहीं थे कि उड़द होती क्या है.....!!!!

ऐसे ही ये जलेबी को अरब की ईजाद बताते हैं जहां न गेहूं होता था न गन्ना।

इन मूर्खों से पूछो कि.........अरबी लोग कहां से मैदा, चीनी और देसी घी लाकर जलेबी बना लेते थे...????

अब आते हैं सबसे जरूरी यक्ष प्रश्न पर 👇🏽
अबे जहाँ हगने के बाद पिछवाड़ा धोने को पानी नहीं है.....तो रेत में गन्ना और गेहूं किसने उगा लिया.......??

11/09/2022

अद्भुत .......

11/09/2022
24/05/2022

एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की कृत्रिम झील - जयसमन्द (मेवाड़)

निर्माता :- महाराणा जयसिंह जी मेवाड़ (महाराणा राजसिंह जी के पुत्र)

24/05/2022

📍𝐋𝐨𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 : ~Kailasa Temple, Ellora, Maharashtra, India 🙏

🍁𝐀𝐛𝐨𝐮𝐭 𝐋𝐨𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 : ~ Kailasa Temple has been dubbed as 'Cave 16' of the Ellora Caves, and is notable for being the largest monolithic structure in the world that was carved out of a single piece of rock. Apart from the temple's impressive size, it is also remarkable for its sculptures, as well as for the fine workmanship of its other architectural elements. The Kailasa Temple [known also as the Kailasanatha (which translates as 'Lord of Kailasa') Temple] is an ancient Hindu temple located in the western Indian region of Maharashtra. A UNESCO World Heritage, this temple is part of the Ellora Caves, a religious complex consisting of 34 rock-cut monasteries and temples. This temple derives its name from Mount Kailasa, the Himalayan abode of the Hindu god Shiva. It is generally believed that this temple was constructed in the 8th century AD, during the reign of Krishna I, a ruler of the Rashtrakuta Empire. As the Kailasa Temple is supposed to represent the sacred mountain of Shiva, this temple was dedicated to this particular Hindu god. The construction of the Kailasa Temple is thought to have taken place between 757 and 783 AD. It has been commonly estimated that over this period of about two and a half decades, a total of 200,000 (other estimations range from 150,000 to 400,000) tons of rock were excavated out of a vertical basalt cliff in the Charanandri Hills to form the magnificent temple. It may be added that the temple was carved from top to bottom with only simple hammers and chisels.

Credits: ❤✨

ᴘʟᴇᴀꜱᴇ ᴠɪꜱɪᴛ ʜɪꜱ/ʜᴇʀ ɢᴀʟʟᴇʀʏ ᴀɴᴅ ᴀᴅᴍɪʀᴇ ᴛʜᴇɪʀ ᴡᴏʀᴋ.

©ᴄᴏᴘʏʀɪɢʜᴛ ʀᴇᴛᴀɪɴᴇᴅ ʙʏ ᴛʜᴇ ᴀʀᴛɪꜱᴛ.

𝐅𝐨𝐥𝐥𝐨𝐰 𝐮𝐬 :
𝐡𝐚𝐬𝐡𝐭𝐚𝐠 :

11/05/2022

हिन्दी बोलने वाली चीनी लड़की
भारत और चीन से प्यार है

22/04/2022

Temple at the Manikarnika Ghat, Benaras - 1850s
Photograph by Francis Frith

Francis Frith was one of the most successful commercial photographers from the 1850s and 1860s. He also established what was to become the largest photographic printing business in England. This image is part of the V&A's Francis Frith 'Universal Series' archive which consists of over 4000 whole-plate albumen prints predominantly of historical and topographical sites. Images such as these were highly desirable throughout the 1850s and 1860s.

Frith's growing business coincided with many technological developments taking place within the field of photography. These developments changed and expanded the audience for photography and Frith's operation was well-prepared to provide for it and, it can be argued, worked to develop it employing a diverse range of publishing channels. Targeted towards a market that would later adopt the postcard as the ideal format for its needs, the 'Universal Series' forms a bridge between the initial low volume craft/art production associated with photography of the 1850s and the more commercial mass production work of the latter half of the century.

Image and text credit:
© Victoria and Albert Museum, London

22/04/2022

दोस्तों भारत में कितने राज्य है और हर राज्य में जिले और जिलो में न जाने कितने ही गाँव है . गाँव शहरों से बहुत दूर दूर .....

20/04/2022
01/04/2022

नागौर-मारवाड़ के वीर योद्धा अमरसिंह जी राठौड़, जिन्होंने मुगल बादशाह शाहजहां के आदेशों की अवहेलना की, जिसके लिए उनको दरबार में पेश होना पड़ा। दरबार में शाहजहां के साले सलावत खां ने अमरसिंह जी को अपशब्द कहना शुरू किया। वह अपशब्द आधा ही बोल पाया था कि वीर अमरसिंह जी की तलवार ने उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया और लाल किले से घोड़े सहित कूद पड़े।

31/03/2022

इस देसी डिश का देसी स्वाद दिलों-दिमाग में घुल जाता है. जैसा इसका स्वाद है वैसा ही है इसका इतिहास है. इसके शुरू होने की...

30/03/2022
25/02/2022

#नौ_रत्न

महाराजा #विक्रमादित्य के नौ रत्नो का परिचय--

#अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया ।
पर महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई #चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है !

जबकि #सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की #नकल करके कुछ क्षत्रिय विरोधी #धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे ।
राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं ...✍️

#राजा_विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन।

राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।
ये हैं नवरत्न –

1– #धन्वन्तरि-
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।

2– #क्षपणक-
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और 'नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

3– #अमरसिंह-
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।

4– #शंकु –
इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।

5– #वेतालभट्ट –
विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

6– #घटखर्पर –
जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।

इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।

7– #कालिदास –
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।

जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।

8– #वराहमिहिर –
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

9– #वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।

इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि।

साभार :- #संजय_सिंह

#राजन्य_क्रॉनिकल्स_टीम

12/02/2022

#कुंभलगढ़_दुर्ग "महाराणा प्रताप" की जन्मस्थली 👌⚔️

02/01/2022
02/01/2022

हवामहल (जयपुर)
1799 ई. में इसका निर्माण जयपुर महाराजा सवाई प्रतापसिंह जी द्वारा करवाया गया।


Richhpal Singh bagseu

29/10/2021

Shbhi des vasiyo ko dipavali ki hardik shubhkamnaye. Vinod tomar

01/10/2021

भारत के राष्ट्रपति महोदय श्री रामनाथ कोविंद जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। मैं ईश्वर से आपके उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु की कामना करता हूँ l

25/04/2021

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