हर हर महादेव ! जय बाबा बर्फानी , भुखे को अन्न , प्यासे को पानी - अमरनाथ यात्रा हिन्दू धर्म की पवित्र यात्रा है, जो मोक्ष प्रधान करती है , सब दुखो का निवारण करती है , बाबा बर्फानी सबकी झोलिया भरते है ! आओ बाबा अमरनाथ धाम , बाबा अपनी गुफा में बर्फ के लिंगम के स्वरूप में दर्शन देते है ! हर हर महादेव
श्री अमरनाथ यात्रा - जिसने कभी अमरनाथ की रोमांचक यात्रा नहीं की, वह बहुत दुर्भाग्यशाली इंसान है, क्योंकि वह धरती के स्वर्ग के एक ख़ास आनंद से वंचित रह गया है। इतना ही नहीं, अमरनाथ यात्रा पर न जाने वाला बड़ा नैसर्गिक खुशी भी मिस कर देता है। दरअसल, तमाम कठिनाइयों, बाधाओं और ख़तरों के बावजूद मॉनसून के समय दो महीने चलने वाली यह पवित्र यात्रा एक सुखद एहसास तो होती ही है। यही वजह है कि दिनोंदिन इसे लेकर उत्साह बढ़ता ही जा रहा है।
हिमालय की गोदी में स्थित अमरनाथ हिंदुओं का सबसे ज़्यादा आस्था वाला पवित्र तीर्थस्थल है। पवित्र गुफा श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 13 हज़ार फ़ीट ऊंचाई पर है। पवित्र गुफा की लंबाई (भीतरी गहराई) 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है। अमरनाथ की ख़ासियत पवित्र गुफा में बर्फ़ से नैसर्गिक शिवलिंग का बनना है। प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ भी कहा जाता है।
दरअसल, स्थानीय सरकार की लगातार उपेक्षा के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। अब तो अमरनाथ यात्रा धार्मिक यात्रा से बढ़कर राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गई है। जम्मू बेस कैंप से जब श्रद्धालुओं का जत्था निलता है तो 'जय भालेनाथ' ‘बम-बम भोले’ और ‘हर-हर महादेव’ के साथ साथ 'वंदे मातरम्' 'जयहिंद' और ‘भारत माता की जय’ के भी सुर निकलते हैं। यही वजह है कि इस यात्रा पर आतंकवादियों की धमकियों और हमलों का भी कोई असर नहीं पड़ा। जम्मू से लेकर श्रीनगर, पहलगाम-बालटाल ही नहीं, पूरी यात्रा के दौरान जगह-जगह गैरसरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। लोग खाते-पीते धूनी रमाए भोलेनाथ के दर्शन के लिए आगे बढ़ते रहते हैं।
बाबा अमरनाथ की अमर कहानी
अमरनाथ गुफा एक हिन्दू तीर्थ स्थान है जो भारत के जम्मू कश्मीर में स्थित है। अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। हिन्दू धर्म में इस तीर्थ स्थान का काफी महत्त्व है और हिन्दुओ में अमरनाथ तीर्थ स्थान को सबसे पवित्र भी माना जाता है।
इस गुफा के चारो तरफ बर्फीली पहाड़ियाँ है। बल्कि यह गुफा भी ज्यादातर समय पूरी तरह से बर्फ से ढंकी हुई होती है और साल में एक बार इस गुफा को श्रद्धालुओ के लिये खोला भी जाता है। हजारो लोग रोज़ अमरनाथ बाबा के दर्शन के लिये आते है और गुफा के अंदर बनी बाबा बर्फानी को मूर्ति को देखने हर साल लोगो भारी मात्रा में आते है।
इतिहास में इस बात का भी जिक्र किया जाता है की, महान शासक आर्यराजा कश्मीर में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा करते थे। रजतरंगिनी किताब में भी इसे अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम दिया गया है। कहा जाता है की 11 वी शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, बनालिंग और दुसरे पवित चिन्हों को मंदिर में भेट स्वरुप दिये थे। अमरनाथ गुफा की यात्रा की शुरुवात प्रजाभट्ट द्वारा की गयी थी। इसके साथ-साथ इतिहास में इस गुफा को लेकर कयी दुसरे कथाए भी मौजूद है।
कहा जाता है की मध्य कालीन समय के बाद, 15 वी शताब्दी में दोबारा धर्मगुरूओ द्वारा इसे खोजने से पहले लोग इस गुफा को भूलने लगे थे।
आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं। गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। यहीं पर ऐसी जगह है, जहां टपकने वाली हिम बूंदों से क़रीब दस फ़िट ऊंचा शिवलिंग बनता है। चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ बर्फ़ के लिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। सावन की पूर्णिमा को यह पूर्ण आकार में हो जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा हो जाता है। हैरान करने वाली बात है कि शिवलिंग ठोस बर्फ़ का होता है, जबकि आसपास आमतौर पर कच्ची और भुरभुरी बर्फ़ ही होती है।
भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। मान्यता है कि इस गुफा में शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुन सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए। गुफा में आज भी कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है, जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव-पार्वती दर्शन देते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने 'अनीश्वर कथा' पार्वती को गुफा में ही सुनाई थी। इसीलिए यह बहुत पवित्र मानी जाती है। शिव ने पार्वती को ऐसी कथा भी सुनाई थी, जिसमें यात्रा और मार्ग में पड़ने वाले स्थलों का वर्णन था। यह कथा अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कई विद्वानों का मत है कि शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गड़ेरिए को चला था। आज भी चौथाई चढ़ावा मुसलमान गड़रिए के वंशजों को मिलता है।
यह एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां फूल-माला बेचने वाले मुसलमान होते हैं। अमरनाथ गुफा एक नहीं है, बल्कि अमरावती नदी पर आगे बढ़ते समय और कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। सभी बर्फ से ढकी हैं। मूल अमरनाथ से दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड हैं।
अमरनाथ जाने के दो मार्ग हैं। पहला पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से। जम्मू या श्रीनगर से पहलगाम या बालटाल बस या छोटे वहन से पहुंचना पड़ता है। उसके बाद आगे पैदल ही जाना पड़ता है। कमज़ोर और वृद्धों के लिए खच्चर और घोड़े की व्यवस्था रहती है। पहलगाम से जानेवाला रास्ता सरल और सुविधाजनक है।
बालटाल से पवित्र गुफा की दूरी हालांकि केवल 14 किलोमीटर है, परंतु यह सीधी चढ़ाई वाला बहुत दुर्गम रास्ता है, इसलिए सुरक्षा की नज़रिए से ठीक नहीं है, इसलिए इसे सेफ नहीं माना जाता। लिहाज़ा, ज़्यादातर यात्रियों को पहलगाम से जाने के लिए कहा जाता है। हालांकि रोमांच और ख़तरे से खेलने के शौकीन इस मार्ग से जाना पसंद करते हैं। इस रास्ते से जाने वाले लोग अपने रिस्क पर यात्रा करते हैं। किसी अनहोनी की ज़िम्मेदारी सरकार नहीं लेती है।
दरअसल, श्रीनगर से पहलगाम 96 किलोमीटर दूर है। यह वैसे भी देश का मशहूर पर्यटन स्थल है। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। लिद्दर और आरू नदियां इसकी ख़ूबसूरती में चार चांद लगाती हैं। पहलगाम का यात्री बेस केंप छह किलोमीटर दूर नुनवन में बनता है। पहली रात भक्त यहीं बिताते हैं। दूसरे दिन यहां से 10 किलोमीटर दूर चंदनबाड़ी पहुंचते हैं। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ़ का पुल है। यहीं से पिस्सू घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सू घाटी में देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई, जिसमें राक्षसों की हार हुई। यात्रा में पिस्सू घाटी जोख़िम भरा स्थल है। यह समुद्रतल से 11120 फ़ीट ऊंचाई पर है।
पिस्सू घाटी के बाद अगला पड़ाव 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में पड़ता है। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यात्रा बहुत कठिन होती है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और ख़तरनाक है। यात्री शेषनाग पहुंचने पर भयानक ठंड का सामना करता है। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इसमें झांकने पर भ्रम होता है कि आसमान झील में उतर आया है। झील करीब डेढ़ किलोमीटर व्यास में फैली है। कहा जाता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है। 24 घंटे में शेषनाग एक बार झील के बाहर निकलते हैं, लेकिन दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होता है। तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर दूर है। बीच में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे पार करने पड़ते हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: 13500 फ़ीट व 14500 फ़ीट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी नदियों बहने के कारण ही इसका नाम पंचतरणी पड़ा। यह जगह चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी बहुत ज़्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतज़ाम करने पड़ते हैं।
पवित्र अमरनाथ की गुफा यहां से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती है। रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नज़दीक पहुंचकर लोग रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा-अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग वापस पहुंच जाते हैं। रास्ता काफी कठिन है, लेकिन पवित्र गुफा में पहुंचते ही सफ़र की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
दरअसल, जब चंदनवाड़ी या बालटाल से श्रद्धालु निकलते हैं, तो रास्ते भर उन्हें प्रतिकूल मौसम का सामना करना पड़ता है। पूरा बेल्ट यानी चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, ज़ोली बाल, नागा कोटि, शेषनाग, वारबाल, महागुणास टॉप, पबिबाल, पंचतरिणी, संगम टॉप, अमरनाथ, बराड़ी, डोमेल, बालटाल, सोनमर्ग और आसपास का इलाक़ा साल के अधिकांश समय बर्फ़ से ढंका रहता है। इससे इंसानी गतिविधियां महज कुछ महीने रहती हैं। बाक़ी समय यहां का मौसम इंसान के रहने लायक नहीं होता। गर्मी शुरू होने पर यहां बर्फ पिघलती है और अप्रैल से यात्रा की तैयारी शुरू की जाती है।
पवित्र गुफा की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए चंदनवाड़ी से अमरनाथ और बालटाल के बीच ठहरने या विश्राम करने का कोई अच्छा ठिकाना नहीं है। 30 किलोमीटर से अधिक लंबे रास्ते में अकसर तेज़ हवा के साथ कभी हल़की तो कभी भारी बारिश होती रहती है और श्रद्धालुओं के पास भीगने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता। बचने के लिए कहीं कोई शेड नहीं है, सो बड़ी संख्या में लोग बीमार भी हो जाते हैं। यही वजह है कि कमज़ोर कद-काठी के यात्री शेषनाग की हड्डी ठिठुराने वाली ठंड सहन नहीं कर पाते और उनकी मौत तक हो जाती है, इसलिए मेडिकली अनफिट लोगों को अमरनाथ यात्रा पर नहीं जाने की सलाह दी जाती है।
इस गुफा से संबंधित एक और कहानी भृगु मुनि की है। बहुत समय पहले, कहा जाता था की कश्मीर की घाटी जलमग्न है और कश्यप मुनि ने कुई नदियों का बहाव किया था। इसीलिए जब पानी सूखने लगा तब सबसे पहले भृगु मुनि ने ही सबसे पहले भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किये थे। इसके बाद जब लोगो ने अमरनाथ लिंग के बारे में सुना तब यह लिंग भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग कहलाने लगा और अब हर साल लाखो श्रद्धालु भगवान अमरनाथ के दर्शन के लिये आते है।
40 मीटर ऊँची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से पत्थर का एक आरोही निक्षेप बन जाता है। हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीले पत्थर को शिवलिंग मानते है। यह गुफा मई से अगस्त तक मोम की बनी हुई होती है क्योकि उस समय हिमालय का बर्फ पिघलकर इस गुफा पर आकर जमने लगता है और शिवलिंग समान प्रतिकृति हमें देखने को मिलती है। इन महीने के दरमियाँ ही शिवलिंग का आकर दिन ब दिन कम होते जाता है। कहा जाता है की सूर्य और चन्द्रमा के उगने और अस्त होने के समय के अनुसार इस लिंग का आकार भी कम-ज्यादा होता है। लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नही है।
हिन्दू महात्माओ के अनुसार, यह वही गुफा है जहाँ भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन के महत्त्व के बारे में समझाया था। दूसरी मान्यताओ के अनुसार बर्फ से बना हुआ पत्थर पार्वती और शिवजी के पुत्र गणेशजी का का प्रतिनिधित्व करता है।
इस गुफा का मुख्य वार्षिक तीर्थस्थान बर्फ से बनने वाली शिवलिंग की जगह ही है।
अमरनाथ गुफा के लिए रास्ता –
भक्तगण श्रीनगर या पहलगाम से पैदल ही यात्रा करते है। इसके बाद की यात्रा करने के लिये तक़रीबन 5 दिन लगते है।
राज्य यातायात परिवहन निगम और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर रोज़ जम्मू से पहलगाम और बालताल तक की यात्रा सेवा प्रदान करते है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से प्राइवेट टैक्सी भी हम कर सकते है।
उत्तरी रास्ता तक़रीबन 16 किलोमीटर लंबा है लेकिन इस रास्ते पर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल है। यह रास्ता बालताल से शुरू होता है और डोमिअल, बरारी और संगम से होते हुए गुफा तक पहुचता है। उत्तरी रास्ते में हमें अमरनाथ घाटी और अमरावाथी नदी भी देखने को मिलती है जो अमरनाथ ग्लेशियर से जुडी हुई है।
कहा जाता है की भगवान शिव पहलगाम (बैल गाँव) में नंदी और बैल को छोड़ गए थे। चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओ से चन्द्र को छोड़ा था। और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था। महागुनास (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था। पंजतारनी पर उन्होंने पाँच तत्व- धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था। और इस प्रकार दुनिया की सभी चीजो का त्याग कर भगवान शिव ना वहाँ तांडव नृत्य किया था। और अंत में भगवान देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे।
हिन्दुओ के लिये यहाँ भगवान अमरनाथ बाबा का मंदिर प्रसिद्ध और पवित्र यात्रा का स्थान है। कहा जाता है की 2011 में तक़रीबन 635, 000 लोग यहाँ आये थे, और यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है। यही संख्या 2012 में 625,000 और 2013 में 3,50,000 थी। श्रद्धालु हर साल भगवान अमरनाथ के 45 दिन के उत्सव के बीच उन्हें देखने और दर्शन करने के लिये पहुचते है। ज्यादातर श्रद्धालु जुलाई और अगस्त के महीने में श्रावणी मेले के दरमियाँ ही आते है, इसी दरमियाँ हिन्दुओ का सबसे पवित्र श्रावण महिना भी आता है
अमरनाथ की यात्रा जब शुरू होती है तब इसे भगवान श्री अमरनाथजी का प्रथम पूजन भी कहा जाता है।
पुराने समय में गुफा की तरफ जाने का रास्ता रावलपिंडी (पकिस्तान) से होकर गुजरता था लेकिन अब हम सीधे ट्रेन से जम्मू जा सकते है, जम्मू को भारत का विंटर कैपिटल (ठण्ड की राजधानी) भी कहा जाता है। इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई है। ताकि भक्तगण आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सके। लेकिन कई बार यात्रियों की यात्रा में बारिश बाधा बनकर आ जाती है। जम्मू से लेकर पहलगाम (7500 फीट) तक की बस सेवा भी उपलब्ध है। पहलगाम में श्रद्धालु अपने सामन और कपड़ो के लिये कई बार कुली भी रखते है। वहाँ हर कोई यात्रा की तैयारिया करने में ही व्यस्त रहता है। इसीके साथ सूरज की चमचमाती सुनहरी किरणे जब पहलगाम नदी पर गिरती है, तब एक महमोहक दृश्य भी यात्रियों को दिखाई देता है। कश्मीर में पहलगाम मतलब ही धर्मगुरूओ की जमीन।
अमरनाथ यात्रा आयोजक –
अधिकारिक तौर पे, यात्रा का आयोजन राज्य सरकार श्री अमरनाथ यात्रा बोर्ड के साथ मिलकर करती है। सरकारी एजेंसी यात्रा के दौरान लगने वाली सभी सुख-सुविधाए श्रद्धालुओ को प्रदान करती है, जिनमे कपडे, खाना, टेंट, टेलीकम्यूनिकेशन जैसी सभी सुविधाए शामिल है।
अमरनाथ हिंदी के दो शब्द “अमर” मतलब “अनश्वर” और “नाथ” मतलब “भगवान” को जोड़ने से बनता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिये कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे। तब यह रहस्य बताने के लिये भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाये और यही भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
सुरक्षा –
हर साल हजारो सेंट्रल और राज्य सरकार के पुलिस कर्मी श्रद्धालुओ की सुरक्षा में तैनात रहते है। जगह-जगह पर सेनाओ के कैंप भी लगे हुए होते है।
सुविधाए –
गुफा के रास्ते में बहुत सी समाजसेवी संस्थाए श्रद्दालुओ को खाना, आराम करने के लिये टेंट या पंडाल की व्यवस्था करते है। यात्रा के रास्ते में 100 से भी ज्यादा पंडाल लगाये जाते है, जिन्हें हम रात में रुकने के लिये किराये पर भी ले सकते है। निचले कैंप से पंजतारनी (गुफा से 6 किलोमीटर) तक की हेलिकॉप्टर सुविधा भी दी जाती है।