Shivam Travels Dwarahat

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10/06/2019

पड़ोसन :- कल तुम दिन भर कहाँ थी❓

पूजा :- अरे कल मेरा इंटरव्यू था।

पड़ोसन:- कैसा इंटरव्यू❓

पूजा :- नयी कामवाली बाई रखनी है तो उसने मेरा इंटरव्यु लिया !

पड़ोसन :- अरे याद आया,,,,
कल मेरा भी इंटरव्यू है।
तेरी वाली बाई ने क्या क्या पूछा ?
मेरी तो बिलकुल तैयारी नहीं हो पायी है। बहुत डर लग रहा है।

पूजा :- अब क्या बताऊँ... आजकल हाऊसमेड इंटरव्यू भी बहुत टफ हो गया है।
मैं बहुत मुश्किल से पास हुई हूँ।

पड़ोसन :- हाँ! जल्दी बताओ ना।

पूजा :-बाई ने जो जो पूछा बताती हूँ,,,,,,

1.घर में केबल कनेक्शन है ना?
2. AC है ?
3.वैक्यूम क्लीनर है ?
4.पॉवर बैक अप है ?
5.रिश्तेदारों का ज्यादा आना जाना तो नहीं है ?

⚡ शर्ते :-

1.बासी और जूठा खाना देने की कोशिश ना करना।

2.परफ्यूम्ड 'लोइज़ोल' डालने के बाद ही पोछा लगाएगी।

3.काम के बाद आधा घंटा TV देखेगी

4.बर्तन गरम पानी से धोएगी।

5. 'बाई' नहीं बोलने का,
मेरा नाम 'रानी' है वही बोलने का।

6.लेट हो जाए तो मोबाइल पर बारबार फोन नहीं करने का।

7. मेरेकु भी फैमिली है। हर रवीवार छुट्टी ।

8.बारिस होयेगा तो 'रेनीडे' हालीडे हो जायेगा ।

9.दूसरे घर की चुगली सुनना है तो अलग से पैसा लेगी।

10.मै फेसबुक पर है,,, मेरी हर 'पिक' को लाइक करने का ।

*पड़ोसन बेहोश*
😡
😜🐲😳

10/06/2019

रौबीला चेहरा ..घुमावदार बडी बडी मूंछे ……आँखों में चमक …
हाथों में दोनाली बंदूक और पैरो के पास पड़ा हुआ कम से कम
10 फुटा बब्बर शेर…


पेंटिंग्स की दुकान में तस्वीरें देखते देखते में अचानक इस तस्वीर के सामने रुक गया और एकटक देख जा रहा था उस …

तस्बीर ने जैसे मुझको जकड़ सा लिया था …

5000 /-रु. ………मेरे पूछने पर दुकानदार ने उस तस्वीर की
कीमत बताई…

हालांकि कीमत कुछ ज्यादा लगी फिर भी मेंने अपनी जेब से
रुपये निकाल कर गिने तो वे महज 4500/- ही निकले

तब मेंने उस दुकानदार से वह तस्वीर 4500/- रु. मे बेचने का
आग्रह किया किंतु दुकानदार ने मना कर दिया…

दो दिन बाद जब में पूरे 5000/- रु़ लेकर दुकान पर पहुँचा तो पाया
कि वह तस्बीर तो बिक चुकी है

कई महीनों तक मुझे वो तस्वीर ना खरीद पाने का मलाल रहा…

आज 4 बर्षो के पश्चात अपने मित्र के ड्राइंगरुम की शोभा बढाते
हुऎ उसी तस्वीर को देखकर मेंने जब अपने मित्र से पूछा ……..तो …

उसने बताया कि ये उनके दादाजी की तस्बीर है….. बहुत ही बड़े
शिकारी थे दादाजी… बीसियों शेरो का शिकार किया था दादाजी ने… अकेले
ही….. कई अंग्रेज अपॉइंटमेंट लेते थे दादाजी से …. शिकार करने को …

….. तब मित्र की बातें सुन मन ही मन में सोच रहा था…….

कि साले पाँच सौ रुपये कम पड गऎ थे …….
वरना आज ये मेरे दादाजी होते !!!

😛😊😁

10/06/2019

ये हुस्न की कशिश है या है हसरते दीदार,
वो भी पूरी खुल गई आखं जो थी बेकार 😊😊

10/06/2019

उसका काला टीका किसी सुदर्शन चक्र से कम नही

माँ एक चुटकी काजल से हर बला को टाल देती है...

09/06/2019

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी।

मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से।

बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं।
हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है।
*वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”*

निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।”

फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।

बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं।
निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं
अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था,
कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर।
दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए।
निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे
बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था।
दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी।
दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।

रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का।
निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है,

मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार।

विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं।

रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है।
वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”

विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो।
अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।”

निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए।
और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।”

विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें।
रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है

वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है।

आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।
तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?”

निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा।
पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा।

बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।

निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।”

सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।

बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता।
वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।”

रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे।
खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं।
विवेक का घर बहुत छोटा है,

उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा❓
तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है।
मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है।
जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी।
रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।”

पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”

अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है।
बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।”
निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं।

क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया?

क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा?

अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है।

तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो।

आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती।

कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।

भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।
कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे।
पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे।
लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी

उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे।
सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं।
अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।
उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।
पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं।
मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है।

ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।”
निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।

दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा।
क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था।
बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है।
मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।”
तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए।

निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का।

फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं?

इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।
दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है।
किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना।
विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।

रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर

पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी।
तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती।
वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की।

वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।

वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद।
बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।”

सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”

निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे *कोई किसी का नहीं होता,*

फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’

*” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “*

ये पैसा ही है जो एक हर रिश्ते की रिश्तेदारी निभा रहा है।

मैं भी एक बेटी हूँ मगर एक बात कहना चाहती हूँ कि हर इंसान को अपने हाथ नहीं काट देने चाहिए ममता मे हो के ........

अपने भाविष्य के लिए कुछ न कुछ रख लेना चाहिए

.......बाद में तो उनका ही हैं मगर जीते जी मरने से तो अच्छा है ....

शायद ही कोई इसे पढ़े फिर भी एक उम्मीद के साथ..🙏🙏

30/05/2019

#एक #बार #जरूर #पढे

एक घर के मोबाइल नम्बर पर “रॉंग नम्बर” से कॉल आई.. घर की एक औरत ने कॉल रिसीव की तो सामने से किसी अनजान शख्स की आवाज़ सुनकर उसने कहा ‘सॉरी रॉंग नम्बर’ और कॉल डिस्कनेक्ट कर दी.. उधर कॉल करने वाले ने जब आवाज़ सुनी तो वो समझ गया कि ये नम्बर किसी लड़की का है, अब तो कॉल करने वाला

लगातार रिडाइल करता रहता है पर वो औरत कॉल रिसीव न करती। फिर मैसेज का सिलसिला शुरू हो गया जानू बात करो न!! मोबाइल क्यूँ रिसीव नहीं करती..?

एक बार बात कर लो यार! उस औरत की सास बहुत मक्कार और झगड़ालू थी.. इस वाक़ये के अगले दिन जब मोबाइल की रिंग टोन बजी तो सास ने रिसीव कर लिया.. सामने से उस लड़के की आवाज़ सुनकर वो शॉक्ड रह गई, लड़का बार बार कहता रहा कि जानू! मुझसे बात क्यूँ नहीं कर रही, मेरी बात तो सुनो प्लीज़, तुम्हारी आवाज़ ने मुझे पागल कर दिया है, वगैरह वगैरह… सास ने ख़ामोशी से सुनकर मोबाइल बंद कर दिया जब रात को उसका बेटा घर आया तो उसे अकेले में बुलाकर बहू पर बदचलनी और अंजान लड़के से फोन पर बात करने का इलज़ाम लगाया..

पति ने तुरन्त बीवी को बुलाकर बुरी तरह मारना शुरू कर दिया, जब वो उसे बुरी तरह पीट चुका तो माँ ने मोबाइल उसके हाथ में दिया और कहा कि इसी में नम्बर है तुम्हारी बीवी के यार का.. पति ने कॉल डिटेल्स चेक की फिर एक एक करके सारे अनरीड मैसेज पढ़े तो वो गुस्से में बौखला गया.. उसने तुरन्त बीवी को रस्सी से बाँधा और फिर से बेतहाशा पीटने लगा और उधर माँ ने लड़की के भाई को फोन किया और कहा कि हमने तुम्हारी बहन को अपने यार से मोबाइल पर बात करते और मैसेज करते हुवे पकड़ लिया है.. जिसने तुम्हारी इज़्ज़त की धज्जियां बिखेर दीं…

खबर सुनकर तुरन्त उस लड़की का भाई और उसकी माँ भी वहां पहुँच गये.. पति और सास ने इल्जाम लगाये और ताने मारे तो लड़की के भाई ने भी उसे बालों से पकड़कर खूब पीटा.. लड़की कसमें खाती रही, झूठे इलज़ाम के लिये चीखती चिल्लाती रही, अपनी सफाई देती रही जाहिल और शैतान सास और पति के आगे बेबस रही… लड़की की माँ ने अपनी बेटी से कहा कि भारतीय होकर गीता पर हाथ रखकर कसम खाओ, तो उसने नहाकर फ़ौरन सबके सामने गीता पर हाथ रखकर कसम भी खाई, मगर शैतान सास ने इसे भी नकार दिया और कहा कि जो अपने पति से गद्दारी कर सकती है तो उसके लिये गीता की कसम भी कोई मुश्किल काम नहीं है..

इसके साथ पति ने वो सारे मैसेजेस उसके भाई को दिखाये जो लड़के ने लड़की को करने के लिये किये थे.. सास ने मक्कार और चालाक कहकर आग पर घी डाल दिया.. लड़की के भाई को गुस्सा आई और उसका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा, उसने तुरन्त पिस्तौल निकाली और लड़की के सर में चार गोलियां दाग दी और इस तरह एक “रॉंग नंबर” ने एक खानदान उजाड़ दिया.. 3 बच्चों को अनाथ कर दिया.. जब लड़की के दूसरे भाई को खबर हुई तो उसने अपने भाई भाभी और बहन के शौहर और सास के साथ उस अनजान नम्बर पर FIR दर्ज कर दी..

पुलिस साइबर ने जब मोबाइल की जांच की तो मालूम हुवा कि लड़की ने सिर्फ एक बार उस रॉंग नम्बर को रिसीव किया था, इसके बाद उस नम्बर से वो कॉल और मैसेजेस के जरिये लड़की को फंसाने के चक्कर में लगा रहा.. सारी बातें साफ़ होने के बाद जब दूसरे भाई को खबर हुई जिसने बहन को गोली मारी थी तो उसने उसी वक़्त जेल में ख़ुदकुशी कर ली और रॉंग नम्बर मिलाने वाले लड़के को पुलिस ने पकड़कर हवालात में डाल दिया और इस तरह एक “रॉंग नम्बर” ने सिर्फ तीन दिनों में एक भारतीय दामन औरत को उसके 3 बच्चों से पूरी ज़िन्दगी के लिये दूर कर दिया और अगले 13 दिनों के अन्दर 3 बच्चे अनाथ और 2 खानदान तबाह और बर्बाद हो गये

ज़रा सोचिये और बताइये कि कसूरवार कौन..??

1- रॉंग कॉल वाला..

2- मक्कार सास..

3- शक्की और जाहिल पति..

4- गैरतमंद भाई..

5- मोबाइल ..

आप सब लोग गौर से सोच कर जवाब जरूर दीजियेगा और वो पति और भाई लोग से सर्वनीय निवेदन है की किसी भी औरत पर इल्जाम लगाने से पहले सच्चाई जान ले तब फैसला करे क्योंकि पत्निया और बेटिया ऐसे नही होती। और वआपसेो लोग जो रांग नंबर जान कर भी किसी महिला के पास फोन बार बार करते है, उन्हें खुद समझना चाहिए की हमारे घर मे भी एक माँ बहन बेटी है। सब का सम्मान करे।

नोट-इस कहानी से ये सबक मिलता है शक के बिना पे निर्णय नही लेना चाहिए पहले पूरी तहकीकात करनी चाहिए। अगर कॉल रिकार्ड पहले ही जांच किया होता तो आज 3 की जान नही जाती और 2 परिवार अनाथ नही होता। जिसको आप जानते नहीं प्लीज काॅल मत करो
🙏🙏 हाथ जोड़कर विनती है 🙏🙏
एक कोशिश परिवर्तन की ओर
.......मेरी पोस्ट पढ़ना आपको अच्छा लगता हो तो मेरे पेज को लाइक या सिर्फ फौलो भी कर सकते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ पोस्ट लेकर ही आएंगे जो आपके दिल को छू जाएगा शुक्रिया आपका धन्यवाद दिल से आपका दोस्त...😭😭

22/05/2019

👩😂👩😂👩😂

आ गई पत्नी मायके से...

बैग रखा और घर को निहारा...

साफ था एकदम से घर...

फिर रसोई में गई....

सब कुछ अपने स्थान पर....

बर्तन साफ करके अलमारी में रखे हुए थे....

सिंक चमाचम थी...

अचरज था चेहरे पर...

इधर उधर अलमारी,दराज खोली....

देखा सब ओके...

मुस्कराते मुखड़े के साथ
पति के गले लग गई.....

कंधे पर पानी की बूंदें गिरी...

पति ने पूछा: "क्या हुआ?

सफर तो ठीक था!
किसी से कोई बात तो नहीं हुई...?"

वह हंसते हुए बोली: "जी सब ठीक है,
ये तो खुशी के आंसू थे।

मुझे तो आज मालूम हुआ कि
आपको इतना काम आता है...

कमाल है....

कभी आपने जिक्र ही नहीं किया...

मैं तो ऐसे ही 'बाई बाई' का वहम पाले हुई थी...

अब बाई रखने की बात कभी नहीं करूंगी...!"

😂👩😂👩

बीबी को इंप्रेस करने की कोशिश ना करें....

लेने के देने पड़ सकते हैं...!
😛😛😛😛

शादीशुदा सदस्यों के लिये चेतावनी स्वरुप
जन हित मॆ जारी ॥😆😀

🤣🤣😆😆😜😜

22/05/2019

🙏🙏🙏🙏🙏🙏

कोई बाझ नी कहेगा

आधी रात का समय था रोज की तरह एक बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर की तरफ जाने वाली गली से झूमता हुआ जा रहा था, रास्ते में एक खंभे की लाइट जल रही थी, उस खंभे के ठीक नीचे एक 15 से 16 साल की लड़की पुराने फटे कपड़े में डरी सहमी सी अपने आँसू पोछते हुए खड़ी थी जैसे ही उस बुजुर्ग की नजर उस लड़की पर पड़ी वह रूक सा गया, लड़की शायद उजाले की चाह में लाइट के खंभे से लगभग चिपकी हुई सी थी, वह बुजुर्ग उसके करीब गया और उससे लड़खड़ाती जबान से पूछा तेरा नाम क्या है, तू कौन है और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है...?

लड़की चुपचाप डरी सहमी नजरों से दूर किसी को देखे जा रही थी उस बुजुर्ग ने जब उस तरफ देखा जहाँ लड़की देख रही थी तो वहाँ चार लड़के उस लड़की को घूर रहे थे, उनमें से एक को वो बुजुर्ग जानता था, लड़का उस बुजुर्ग को देखकर झेप गया और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया लड़की उस शराब के नशे में बुजुर्ग से भी सशंकित थी फिर भी उसने हिम्मत करके बताया मेरा नाम रूपा है मैं अनाथाश्रम से भाग आई हूँ, वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे, दबी जुबान से बड़ी मुश्किल से वो कह पाई...!

बुजुर्ग:- क्या बात करती है.......तू अब कहाँ जाएगी...!
लड़की:- नहीं मालूम.....!
बुजुर्ग:- मेरे घर चलेगी.....?
लड़की मन ही मन सोच रही थी कि ये शराब के नशे में है और आधी रात का समय है ऊपर से ये शरीफ भी नहीं लगता है, और भी कई सवाल उसके मन में धमाचौकड़ी मचाए हुए थे!
बुजुर्ग:- अब आखिरी बार पूछता हूँ मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए...?

बदनसीबी को अपना मुकद्दर मान बैठी गहरे घुप्प अँधेरे से घबराई हुई सबकुछ भगवान के भरोसे छोड़कर लड़की ने दबी कुचली जुबान से कहा जी हाँ

उस बुजुर्ग ने झट से लड़की का हाथ कसकर पकड़ा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चला वो नशे में इतना धुत था कि अच्छे से चल भी नहीं पा रहा था किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने मिट्टी से बने कच्चे घर तक पहुँचा और कुंडी खटखटाई थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और पत्नी कुछ बोल पाती कि उससे पहले ही उस बुजुर्ग ने कहा ये लो सम्भालो इसको "बेटी लेकर आया हूँ हमारे लिए" अब हम बाँझ नहीं कहलाएंगे आज से हम भी औलाद वाले हो गए, पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे और उसने उस लड़की को अपने सीने से लगा लिया।।

{दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?}
मेरा पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया इस तरह का पोस्ट पढ़ने के लिए आपको अच्छा लगता हो तो मुझे फेंड रिकवेस्ट भेजे या सिर्फ फौलो भी कर सकते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ पोस्ट लेकर ही आएंगे जो आपके दिल को छू जाएगा शुक्रिया आपका धन्यवाद दिल से आपका दोस्त..😭😭

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे

16/05/2019

एक प्रेमी जोड़ें को शादी के दस वर्ष बाद बड़े जतन से एक लड़का हुआ जो उनकी आखों का तारा था.!
एक सुबह, जब वह लड़का तक़रीबन दो वर्ष का था, लड़के के पिता ने एक दवाई की शीशी खुली देखी और तब उसे काम पर जाने के लिए देरी भी हो रही थी, इसलिए उसने अपनी पत्नी से उस शीशी को ढक्कन लगाकर अलमारी में रखने को कहा.!
लड़के की माँ रसोईघर में तल्लिन थी और यह बात वो पूरी तरह से भूल गई.!
लड़के ने वो शीशी देखी और खेलने के इरादे से उसकी तरफ गया, शीशी के रंग और गंध ने उसे मोह लिया था जिस कारण उसने उसमें भरी दवा पी ली, जबकि उस दवा की मामूली सी मात्रा ही बच्चों के लिए खतरनाक और जहरीली थी.!
वह लड़का बेसुद हो गिरा, तब उसकी माँ उसे जल्द से जल्द चिकित्सालय ले गई जहां उसकी मौत हो गई, इस घटना से लड़के की माँ बुरी तरह भयभीत और दुखी थी कि कैसे अब अपनी पति का सामना करेगी.?
जब लड़के के चिंतित पिता ने चिकित्सालय में अपने बेटे को मृत पाया तो अपनी पत्नी को देखते हुये सिर्फ चार शब्द कहें.!
वो चार शब्द क्या थे.?
आपको क्या लगता है.?
उसने सिर्फ इतना ही कहाँ कि
*I Love You Darling.!*
उसके पति का अनअपेक्षित व्यवहार उसे आश्चर्यचकित करने वाला था, पर उसका लड़का मर चूका था, जिसे वो कभी वापिस नहीं ला सकता था और वो अपनी पत्नी पर भी कोई आरोप नहीं लगा सकता था क्योंकि यदि उसने खुद वह शीशी उठाकर अलमारी में रख दी होती तो, आज उसके साथ यह सब न होता, वो बेबस था, किसी पर आरोप नहीं लगा सकता था क्योंकि उसकी पत्नी ने भी एकलौता बेटा खो दिया था.!
और उस समय उसे अपने पति से सिर्फ सहानुभूति और दिलासा चाहिए था और यही उसके पति ने उसे दिया.!
सारांश- कभी-कभी हम अपनी बुरी या खस्ता परिस्तिथियों के लिए कौन दोषी या जिम्मेदार है, इस बात पर जोर देते है और ऐसा हमारें रिश्तों के बीच होता रहता है, जिनके साथ हम काम करतें है या जिन्हें हम जानतें है, उन सभी के साथ होता है.!
हम परिस्थिती के वश में आकर या आवेशित होकर अपने रिश्तो को भूल जाते है और एक-दुसरे का सहारा बनने के बजाये एक-दुसरे पर आरोप लगाते है.!
सलाह- उन सभी परिस्तिथियों का सामना करो जो आपको अभी मुश्किल लगती है या जिनसे आपको डर लगता है, सामना करने के बाद आप पाओगे कि वो चीजे उतनी मुश्किल नहीं है, जितना कि आप पहले सोच रहे थे.!
और हमें परिस्थिती को समझकर ही लोगों के साथ व्यवहार करना चाहिये, कठिन परिस्थितियों में लोगों का साथ देना चाहिए और हमदर्द बनना चाहिये.!
बस इसी ख़्याल से...

22/12/2018

अखबार में इश्तिहार छपा।*मर्सिडीज कार बिकाऊ है मात्र 100 रुपये में ......*कोई इस पर विश्वास ही नहीं कर रहा था।पर,एक साहब पेपर में ये ad देख कर चल पड़े।लिखे एड्रेस पे पहुँच के उन्होंने बेल बजाई ।एक अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला ।वे बोले - आप एक कार बेच रही हैं?महिला बोली - जी हाँ ।मैं गाड़ी देख सकता हूँ ?शौक से, आईये - ये कह के महिला ने गैराज खुलवाया।साहब ने बडे ध्यान से गाड़ी को देखा तो उनकीआँखें👀फैल गईं।😳बोले - ये तो नई है ?जवाब मिला - एकदम तो नई नहीं है ,18000 किलोमीटर चल चुकी है ।साहब बोले - लेकिन पेपर में तो इसकी कीमत मात्र 100 रुपयेलिखी है ?🤔जवाब मिला - सही छपा है , 100 की ही है ।आप 100 रुपये दीजिये और ले जाइए ।साहब ने कांपते हाथों से 100 रुपए निकाल के दिये..महिला ने रुपये लेकर फौरन रसीद बनाई ,साहब को गाड़ी के कागज एवं चाभी दे दिए ।साहब बोले - बहिन जी , अब तो बता दीजियेकि मामला क्या है , मैं तो सस्पेंस से मरा जा रहा हूँ ।महिला बोली - कोई सस्पेंस नहीं है , मैं तो अपने स्वर्गीय पति की इच्छा पूरी कर रही हूँ ।वो अपनी वसीयत में लिख गये थे कि उनके मरने के बाद ये *गाड़ीबेच दी जाये* औरमिली हुई सारी रकम......उनकी *सेक्रेटरी* को दे दी जाए...........बीवियों की जलन*जिंदगी के साथ भी*औऱ*जिंदगी के बाद भी*🤣😂🧐�

22/12/2018

रसोई में गैस पर कूकर चढ़ाया... सेल्फी वाली पोस्ट डाली... और लिखा...“बीवी मायके गयी है और मुझे चाय बनानी है, कुकर में कितनी सिटी लगाऊँ...???”*Comments box:**Pramod Bhai* :“कुकर में ऑलरेडी एक सीटी लगी है और कितनी लगाएगा...”😛*Gopal Bhai* : “बेवकूफ चाय कुकर में थोड़ी बनती है... कड़ाही चढा...”😝*Mukesh Bhai*: “पहले दो घण्टे चाय पत्ती भिगो ले... दो तीन सीटी में काम चल जाएगा...”😜*Manoj Bhai* : “खिड़की पर जा के एक सीटी बजा... पड़ौसन चाय दे जाएगी...!!!”*Ultimate Answer**सुंदर लाल*: अबे बीवी मायके गई है तो चाय क्यों पी रहा है?🥃बेवकूफ बोतल पी और मौज कर, साथ हमें भी बुला, सीटी हम बजादेंगे।🤪😂🤣😂😂😜😜😜

22/12/2018

निगाहें बदल गयी अपने और बेगाने की,तू न छोड़ना दोस्ती का हाथ,वरना तम्मना मिट जायेगी कभी दोस्त बनाने की ||

03/11/2018

"सुनो जी, सब्जी खत्म हो गयी है। ले आयो।
"क्या क्या लाना है।"
" जो पसन्द आये ले आना।"
" ये बाद की झंझट मुझे पसन्द नंही। ये सब्जी बेटा नंही खाता। लोकी बहु नंही खाती। बच्चों को भिंडी पसन्द है।
"तुम तो बता दो। वही ले आऊंगा।"
" मुझे क्यों सुना रहे हो। सामने बैठे हैं। पूछलो।"
"क्यों भई राजा क्या खायोगे"
बहू ने बन्द गोबी,बेटे ने मशरूम,काश्वी नातिन ने भिंडी
दूसरी नातिंन वानया ने फुल गोबी की फरमाईश बता दी।
"सुनो करेले दिखे तो ले लेना। आलू,प्याज,धनिया मिर्ची तो ले ही आयोगे। और कोई सब्जी दिखे तो ले आना।
अरे हां याद आया। अरहर की दाल दो किलो ले आना"
" जी हजूर"
सूधीर के इन शब्दों पर बेटा और बहु हंस दिये। और सुधीर थैला उठा बाजार के लिये रवाना हो गये।
बाजार से लोट सुधीर ने सारी सब्जियां टेबल पर एक दूकान की तरह सजा दी। कि बीबी खुश हो शाबाशी देगी।
" इतने दिन हो गये सब्जी खरीदते। लेकिन आज तक सब्जी खरीदनी नंही आयी। बन्द गोबी इतनी बडी ले आये हो। जैसे पडोसियों को भी खिलानी है। भिन्डी आधा कि.
लानी थी। एक पाव ले आये। फूल गोबी चार दिन की बासी उठा लाये हो। आलू नये ले आये। मीठे निकल जाते हैं।
प्याज छोटे ले आये। बडे नंही थे क्या। और करेले कंहा है।
मुझे इतने अच्छे लगते है। लेकिन मेरी पसन्द का क्या है।
और ये क्या ककोडे ले आये। जानते हो। घर में कोई नंही खाता। कडवे लगते हैं। यह दाल कैसी ले आये। क्या भाव है।"
सुधीर ने डरते हुये दबी आवाज में कहा।
63/- रु।
" अच्छी दाल नंही ला सकते थे। अस्सी रु कि. है अच्छी दाल। खाने पीने में तो कंजूसी मत करो। छाती पर रखकर ले जायोगे क्या इतना पैसा"
ऐसे लग रहा था। शौले का गब्बर दहाड कर पूछ रहा है।
"क्या सोच कर आये थे। बीबी बहुत खुश होगी। शाबाशी देगी"
अपने पर कंजूस का ठप्पा लगा देख सुधीर का पुरूषत्व
जाग उठा वो जोर से चिल्लाया।
" मेरी लायी चीजें पसन्द नंही आती। तो खुद ले आया करो। तुम्हें तो बस डांटने का बहाना चाहिये।"
" हां हां जानते हो ना। मेरे घुटनों में दर्द रहता है। चल नंही सकती। बडा अहसान जता रहे हो। ये दाल तो गले के नीचे नंही उतरेगी। बदलकर लायो।"
" मैं नंही जा रहा बदलने। तुम चल रही हो तो चलो। जैन साब की दूकान पास ही तो है।"
जैन साब की दूकान पर पंहुच राशन पानी ले चढाई शुरू कर दी।
" जैन साब, कैसी घटिया दाल दी है। अच्छी दाल दिखायो।
चाहे मंहगी हो।"
जैन साब दूकान के अन्दर वाले कमरे में जा दो सेम्पल की दालें ले आये।
" हां यह दाल है बढिया। क्या भाव है"
" ये नब्बे रु और ये सौ रु"
"सौ वाली दो कि. दे दो। और यह तैरसठ वाली वापिस कर लो।"
" तैरसठ वाली, भाभी जी ये अस्सी रु किलो बाबूजी को बेची है"
बीबी ने मुझे घूर कर देखा। अपनी चोरी पकडे जाने पर मैंने दबी आवाज में कहा।
" वो भूल गया। मुंह से तैरेसठ निकल गया।"
जैन साब भी हमारी बेचारगी पर हंस दिये
" भाभी जी, एक बात बताऊं। यह तीनों दालें एक ही बोरी के सेम्पल हैं। कहिये। अस्सी वाली दूं या सौ वाली।"
यह आज की नंही रोज की तकरार है। लेकिन एक बात का संतोष है। कि पैंतिस साल से रोज उनका Good Morning कहने का तरीका वही हैं

29/09/2018

एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है...
:
नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा...
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नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है...
:
आदमी बहुत खुश रहने लगा...
उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...
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एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ...
:
आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना...
इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को...
:
मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है...
:
अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई...
:
उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...??
:
नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...??
:
हाँ हुई है...
:
तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है...
इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे...
:
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...
:
फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...
क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...??
:
मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है...
:
हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है...
किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...
:
लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,
मेरा है,,,
मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है...
:
हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है...।। अगर अच्छा लगे तो आगे बढ़ने दो।

29/09/2018

एक बादशाह की आदत थी कि वह भेस बदलकर लोगों की खैर-खबर लिया करता था। एक दिन अपने वज़ीर के साथ गुज़रते हुए शहर के किनारे पर पहुंचा तो देखा एक आदमी गिरा पड़ा है।
बादशाह ने उसको हिलाकर देखा तो वह मर चुका था ! लोग उसके पास से गुजर रहे थे। बादशाह ने लोगों को आवाज दी लेकिन लोग बादशाह को पहचान ना सके और पूछा क्या बात है? बादशाह ने कहा इस को किसी ने क्यों नहीं उठाया? लोगों ने कहा यह बहुत बुरा और गुनाहगार इंसान था। बादशाह ने कहा क्या ये "इंसान" नहीं है क्या? और उस आदमी की लाश उठाकर उसके घर पहुंचा दी उसकी बीवी शौहर की लाश देखकर रोने लगी और कहने लगी:- मैं गवाही देती हूं मेरा शौहर बहुत नेक इंसान है।
इस बात पर बादशाह को बड़ा ताज्जुब हुआ कहने लगा:- यह कैसे हो सकता है? लोग तो इसकी बुराई कर रहे थे और तो और इसकी लाश को हाथ लगाने को भी तैयार ना थे।
उसकी बीवी ने कहा:- मुझे भी लोगों से यही उम्मीद थी। दरअसल हकीकत यह है कि मेरा शौहर हर रोज शहर के शराबखाने में जाता शराब खरीदता और घर लाकर नालियों में डाल देता और कहता कि चलो कुछ तो गुनाहों का बोझ इंसानों से हल्का हुआ। किसी किसी रात इसी तरह एक बुरी औरत यानी वेश्या के पास जाता और उसको एक रात की पूरी कीमत देता और कहता कि अपना दरवाजा बंद कर ले। कोई तेरे पास ना आए घर आकर कहता ख़ुदा का शुक्र है कि आज उस औरत और नौजवानों के गुनाहों का मैंने कुछ बोझ हल्का कर दिया। लोग उसको उन जगहों पर जाता देखते थे।
मैं अपने शौहर से कहती:- याद रखो जिस दिन तुम मर गए लोग तुम्हें नहलाने तक नहीं आएंगे ना तुम्हारी नमाज-ए-जनाजा पढ़ाएंगे और ना तुम्हें दफनायेंगे वह हंसते और मुझसे कहते कि घबराओ नहीं तुम देखोगी कि मेरा जनाजा वक्त का बादशाह और नेक लोग पढ़ाएंगे।
यह सुनकर बादशाह रो पड़ा और कहने लगा:- मैं बादशाह हूं। कल हम इसको नहलायेंगे। इसकी नमाज-ए-जनाजा भी पढ़ाएंगे और इसकी मैय्यत भी हम दफ्न करवाएंगे।

25/09/2018

मोहल्ले की एक औरत पड़ोस में दही लेने गई ..
सास बाजार गई थी, बहु ने कहा - दही नहीं है, कल हमने कढ़ी बना ली |
औरत वापस जा रही थी .. रास्ते में सास मिल गई,
औरत ने सास को बताया, तुम्हारे घर दही लेने गई थी, तुम्हारी बहू ने कहा - दही नहीं है, कल हमने कढ़ी बना ली |
सास बोली ' मेरे साथ चल '
घर आकर सास उस औरत से बोली - दही नहीं है, कल हमने कढ़ी बना ली |
वो औरत बोली, ये बात तो तुम्हारी बहु ने ही कही थी, फिर मुझे वापस क्यों लाईं ?
सास बोली : *बहु कौन होती है! मना करने वाली, मना करना है तो मैं करुंगी*

25/09/2018

*क्षमा*-एक कहानी
एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये।
आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। साधक हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे। उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी।
संत श्री ने कहाः- 'बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो।'
साधक ने कहाः "महाराज ! मैंने ही उसकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !"
संत श्री ने उत्तर दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।"
साधक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- "महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई ?"
"बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा – यह है तुम्हारी भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगो। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।"
साधक की आँखें खुल गयीं। संत श्री को प्रणाम करके वे दामाद के घर पहुँचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहते ने खोला। सामने नाना जी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर जोर से चिल्लाने लगाः "मम्मी ! पापा !! देखो तो नाना जी आये हैं, नाना जी आये हैं....।"
माता पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, 'अहा !पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिता जी आये हैं।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। साधक ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहाः "बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो।"
"क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा। दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे। पिता पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी। क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप ! सबकी आँखों सके अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रूपये लाकर ससुर जी के सामने रख दिये। ससुरजी कहने लगेः "बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ।
मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है।"
दामाद ने कहाः- "पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें।"
साधक ने दामाद से रूपये लिये और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये। सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो।
सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था। क्षमा माँगने के बाद उस साधक के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी।
* क्षमा वीरस्य भुषणं *

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