The Enchanting Holidays

The Enchanting Holidays Experience Varanasi/India through us with best travel services and walk tours of Varanasi.....
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Colors makes one's life joyful...Catering joy to our guests...
15/12/2023

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18/11/2023

Organised cultural program for our special spanish group....

Our special Spanish Group at Varanasi..
18/11/2023

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Added another member to our Fleet and Family...
17/07/2023

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27/02/2023

Our group from Australia enjoying Classical dance with music followed with Cocktail dinner well arranged by us..

*बनारस - एक बेमिसाल व जीवंत शहर*बनारस जिसे वाराणसी और काशी के नाम से भी जानते हैं, पतितपावनी मां गंगा के तट पर बसा विश्व...
19/07/2022

*बनारस - एक बेमिसाल व जीवंत शहर*

बनारस जिसे वाराणसी और काशी के नाम से भी जानते हैं, पतितपावनी मां गंगा के तट पर बसा विश्व के प्राचीनतम एवं पवित्र नगरों में से एक है । इसे अविमुक्त क्षेत्र माना जाता है । लोगों की मान्यता है कि यहां मरने पर मोक्ष मिलता है लेकिन बनारस मरना नहीं जीना सिखाता है । प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं - "बनारस इतिहास से भी अधिक पुरातन है, परंपराओं से भी अतिशय पुराना है, किवदंतियों (मिथकों) से भी कहीं अधिक प्राचीन है और जब इन तीनों को एकत्र कर दें तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है ।" इसका इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है । स्कंद पुराण, पद्म पुराण, मत्स्य पुराण, महाभारत, रामायण के साथ-साथ प्राचीनतम ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख है । प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है ।

बनारस अपने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के कारण संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है । इसका विस्तार गंगा नदी के दो संगमों - वरूणा नदी और असी नदी के बीच बताया जाता है जिनके बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है । मशहूर शायर नजीर बनारसी लिखते हैं -
*"लेके अपनी गोद में, गंगा ने पाला है मुझे*
*नाम है मेरा नजी़र और मेरी नगरी बेनजीर*

बनारस में विभिन्न कुटीर उद्योग हैं जिनमें बनारसी रेशमी साड़ी उद्योग, कपडा़ उद्योग, कालीन उद्योग, हस्तशिल्प, लकडी़ व मिट्टी के खिलौने व सजावटी सामान प्रमुख हैं । बनारसी मगही पान विश्व प्रसिद्ध है ।इसकी खासियत यह है कि इसे चबाना नहीं पड़ता । मुंह में डालते ही पूरे मुंह में घुल जाता है । बनारस के मशहूर लंगड़ा आम और मलइयो के लोग दीवाने हैं । बनारसी रेशम विश्व भर में अपनी महीनता एवं मुलायमपन के लिए विख्यात है । बनारसी रेशमी साड़ियों पर बारीक डिजाइन और जरी का काम साड़ी की सुंदरता और गुणवत्ता कई गुना बढ़ा देते हैं जिस कारण ये साड़ीयां आज भी वैवाहिक कार्यक्रमों व सभी पारंपरिक उत्सवों में अपनी सामर्थ्य अनुसार पहनी जाती हैं । फिर इन्हें यत्न से संभाल कर रखा जाता है ताकि ये खराब ना हो । मैकाले लिखते हैं - "बनारस की खड्डियों से महीनतम रेशम निकलता है जो सेंट जेम्स और वर्सेल्स के मंडपों की शोभा बढ़ाता है ।" जरी सोने का पानी चढ़ा हुआ चांदी का तार है । जरी के इस कार्य को जरदोजी कहते हैं । पहले इसमें शुद्ध सोने की जरी का प्रयोग होता था परंतु इससे साड़ी बहुत महंगी हो जाती है जिससे अब नकली चमकदार जरी का काम होने लगा है । इसमें अनेकों प्रकार के चमकदार व परंपरागत मोटिफ जैसे बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल, जंगला, झालर इत्यादि लगाए जाते हैं । बनारसी साड़ियां सुहाग का प्रतीक मानी जाती हैं । हिंदू समाज में बनारसी साड़ी का महत्व चूड़ी और सिंदूर के समान है । आज भी बनारसी साडी़ का बाजार चौक के पास कुंजगली में और मैदागिन के पास गोलघर में प्रतिदिन लगता है

यहां समय-समय पर अनेकों महान विभूतियों का प्रादुर्भाव होता रहा है ।महर्षि अगस्त्य, संत कबीर, संत रैदास, बाबा कीनाराम, जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ, रानी लक्ष्मीबाई, लाल बहादुर शास्त्री, मुंशी प्रेमचंद्र, महाकवि जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित राजन मिश्र एवं पंडित साजन मिश्र, किशन महाराज, बिरजू महाराज, छन्नूलाल मिश्र, सामता प्रसाद (गुदई महाराज) आदि विभूतियों की जन्मभूमि है, वहीं स्वामी रामानंदाचार्य, वल्लभाचार्य, तैलंग स्वामी, पंडित मदन मोहन मालवीय, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, देवकीनंदन खत्री, डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी, काशीनाथ सिंह, शिव प्रसाद गुप्त आदि विभूतियों ने इसे अपनी कर्मभूमि बनाया । बनारस ने राजा हरिश्चंद्र को शरण दिया । गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस और विनय पत्रिका की रचना यहीं की । गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद अपना प्रथम उपदेश यहीं सारनाथ में दिया था । यह शहर रत्नों की खान है । धर्म, संस्कृति, खेल, नृत्य, संगीत, कला, शिक्षा सभी क्षेत्रों से बनारस से एक नहीं कई रत्न निकले हैं जिन्होंने देश में ही नहीं विश्व में भारत का नाम रोशन किया है । यहां से परोक्ष या अपरोक्ष तरह जुड़े आठ महान विभूतियों को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है । इनमें कई लोगों का जन्म जरूर शहर से बाहर हुआ पर उनकी पढ़ाई लिखाई और कर्मभूमि बनारस ही रही है। डॉक्टर भगवान दास, लाल बहादुर शास्त्री, पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां तो काशी में ही जन्मे थे पर बाकी चार डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, चिंतामणि नागेशरामचंद्र राव, महामना मदन मोहन मालवीय और भूपेन हजारिका काशी हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध रहे हैं और उनके लिए काशी बहुत कुछ था ।

वाराणसी में 4 बड़े विश्वविद्यालय हैं - काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ हाईयर टिबेटियन स्टडीज । काशी हिंदू विश्वविद्यालय का पूरा कैंपस पेड़ पौधों से हरा भरा है और किसी शहर से कम नहीं है । यहां की इमारतें महल जैसी हैं । ये सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं है, बनारस की शान है, विरासत है, अभिमान है । मुख्य परिसर 1360 एकड़ भूमि में स्थित है जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी । 75 छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है जिसमें लगभग 35000 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं । यहां की सेंट्रल लाइब्रेरी अब एशिया की सबसे बड़ी साइबर लाइब्रेरी बन गई है । ई-रिसोर्सेज से युक्त 450 कंप्यूटर्स वाली इस अत्याधुनिक लाइब्रेरी की सुविधा 24 घंटे उपलब्ध होगी । यहां के चिकित्सा विज्ञान संस्थान से संबद्ध सर सुंदरलाल चिकित्सालय में रोजाना लगभग 5000 मरीज बहिरंग सेवा (ओपीडी) का लाभ हासिल करने आते हैं । अब तो ट्रामा सेंटर भी खुल चुका है ।

यहां के स्थानीय निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं जो हिंदी की ही एक बोली है । काशी के साहित्यकार काशीनाथ सिंह कहते हैं - 'गुरू' यहां की नागरिकता का सरनेम है । जो पैदा भया वह भी गुरु, जो मरा वह भी गुरु । नदियों की कल - कल, घंटे - घड़ियालों और अजान की आवाज सुनकर जागते हुए इस शहर में चेला कोई नहीं है । हर कोई राजा है, प्रजा कोई नहीं है । वर्गहीन समाज का सबसे बड़ा जनतंत्र है बनारस । इसकी तुलना किसी अन्य शहर से नहीं हो सकती - "लाख मीठा हो तुम्हारे शहर का पानी, वो बनारस तो हो ही नहीं सकता ।"

*वाराणसी के प्रमुख मंदिर -* यहां हर गली में मंदिर है । वाराणसी का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर भगवान शिव को समर्पित 'काशी विश्वनाथ मंदिर' है जो चौक के पास ज्ञानवापी क्षेत्र में अनादिकाल से स्थित है और देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है । 'बिड़ला मंदिर' या 'नया विश्वनाथ मंदिर' काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित है जो श्वेत संगमरमर से बना है और देश का सबसे ऊंचा मंदिर है । 'काल भैरव मंदिर' विशेश्वरगंज और गोलघर के पास है । भगवान काल भैरव को काशी के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है । इनके हाथ में बड़ी एवं मोटे पत्थर की लाठी होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहते हैं । जो भी प्रशासनिक अधिकारी वाराणसी आता है इनका दर्शन अवश्य करता है । 'मां अन्नपूर्णा मंदिर' काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है जिन्हें अन्न की देवी माना जाता है । दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव पर भक्तगण मां की स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन लाभ करते हैं । इसी मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्तोत्र की रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। 'तुलसी मानस मंदिर' दुर्गाकुंड के पास सफेद संगमरमर से बना है जो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को समर्पित है । इसकी संपूर्ण दीवार पर रामचरितमानस लिखी गई है और रामायण के प्रसिद्ध चित्रण को नक्कासी किया गया है । दूसरी मंजिल पर स्वचालित श्रीराम एवं श्रीकृष्ण लीला होती है । 'संकटमोचन मंदिर' श्रीराम के अनन्य भक्त श्रीहनुमान को समर्पित है जो दुर्गाकुंड के पास है । इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी । सामने की ओर श्रीराम का मंदिर है । परिसर में बहुत सारे वानर विचरण करते रहते हैं । 'दुर्गा मंदिर' शक्ति की देवी मां दुर्गा का भव्य मंदिर है जो लाल पत्थरों से बना है । एक तरफ दुर्गाकुंड है । यहां माता स्वयंभू (अपने आप) प्रकट हुई थी इसीलिए यहां प्रतिमा के स्थान पर देवी मां के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है । 'बटुकभैरव मंदिर' महादेव का बालरूप है जो कमच्छा में स्थित है । 'मृत्युंजय महादेव मंदिर' भगवान शिव का मंदिर है जो दारानगर और विशेश्वरगंज के समीप है । 'संकठा मंदिर', 'मंगला गौरी मंदिर', 'ब्रह्मचारिणी मंदिर', 'बिंदु माधव मंदिर', 'गोपाल मंदिर' पक्का महाल ठठेरी बाजार की तंग व संकरी गलियों में स्थित है और लोगों की आस्था के केंद्र है । 'भारत माता मंदिर' काशी विद्यापीठ परिसर में स्थित है जहां संगमरमर से भारत माता का मानचित्र बनाया गया है ।

'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट था जिसका मुख्य लक्ष्य विश्वनाथ मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण और गंगा तट पर ललिता घाट से मंदिर तक पहुंचने के मार्ग को चौड़ा करना था । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में 8 मार्च 2019 को इस परियोजना के लिए भूमि पूजन किया था और 13 दिसंबर 2021 को धाम का लोकार्पण किया । इसमें जमीन अधिग्रहण में 390 करोड़ रुपए और निर्माण में 339 करोड रुपए कुल लगभग 900 करोड़ रूपये का अनुमानित खर्च है । 5.3 लाख वर्गफीट में तैयार हो रहे भव्य कारिडोर में छोटी बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। इसी से आप इसकी भव्यता का अंदाजा लगा सकते हैं । अब श्रदालुओं को गलियों और तंग रास्तों से नहीं गुजरना होगा। लगभग 3100 वर्ग मीटर में मंदिर परिसर बना है । पूरे परिसर में मकराना के सफेद मार्बल और चुनार के गुलाबी पत्थर लगे हैं । अब पूरे परिसर में एक समय में 50 से 75 हजार श्रद्धालु प्रवेश कर सकेंगे जबकि पहले सैकड़ों की संख्या में ही श्रद्धालु आ पाते थे। इसके लिए 300 से अधिक इमारतों को खरीदा गया और उन्हें ध्वस्त किया गया । पूरे कारिडोर को 3 भागों में बांटा गया है । इसमें 4 बड़े बड़े गेट और प्रदक्षिणा पथ पर संगमरमर के 22 शिलालेख लगाए गए हैं जिसमें काशी की महिमा का वर्णन है। यहां मंदिर चौक, मुमुक्षु भवन, तीन यात्री सुविधा केंद्र, चार शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मल्टीपरपज हॉल, सिटी म्यूजियम, वाराणसी गैलरी, जलपान गृह आदि की व्यवस्था की गई है । धाम में महादेव के प्रिय पौधे रूद्राक्ष, बेल, पारिजात, वट और अशोक लगाए गए हैं। धाम की चमक बढ़ाने के लिए 5000 लाईटें लगाई गई हैं जो रंग बदलती रहती हैं।
इसके अलावा मुस्लिमों के लिए अनेकों प्रसिद्ध मस्जिदें हैं जैसे गंगा किनारे पंचगंगा घाट स्थित 'आलमगीर मस्जिद' जो औरगंजेब द्वारा बनवाई गई है और इसका स्थापत्य मुगल कला का बेहतरीन नमूना है । 'ज्ञानवापी मस्जिद' जो विश्वनाथ मंदिर से महज 10 मीटर दूर है और बीच में लोहे की बैरिकेडिंग कर दी गई है, आदमपुर की 1400 साल पुरानी 'ढा़ई कंगूरा मस्जिद', नई सड़क स्थित 'लंगड़ा हाफिज मस्जिद', नदेसर स्थित 'जामा मस्जिद', दोषीपुरा की 'लंगड़ की मस्जिद' और काशी विद्यापीठ रोड स्थित 'बड़ी ईदगाह मस्जिद' इत्यादि । सिक्खों के लिए नीचीबाग स्थित 'गुरुद्वारा बड़ी संगत', गुरु बाग स्थित 'गुरुद्वारा गुरु का बाग', दशाश्वमेध स्थित 'गुरुद्वारा छोटी संगत' इत्यादि है । ईसाइयों के लिए कैंटोंमेंट स्थित 'सेंट मैरी कैथड्रल चर्च', गिरजा घर चौराहा स्थित 'सेंट थॉमस चर्च' और सिगरा स्थित 'सेंट पॉल चर्च'
मुख्य हैं ।

*गंगा -* मां गंगा से पहचान है बनारस की । बनारस को गंगा के किनारे बसना था या गंगा को बनारस के किनारे बहना था, ये कोई नहीं जानता । इस नगरी की बहुवचनीय सभ्यता और संस्कार के पीछे अमृत जलधारा वाली गंगा है । पूरे देश में बनारस ही ऐसा शहर है जहां गंगा उत्तरवाहिनी है यानि दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है । गंगा की हर बूंद में बनारस बसा है । गंगा सब धर्मों और कौमों की मां है । मशहूर शायर नजी़र बनारसी लिखते हैं - "हमने तो नमाजें भी पढी़ हैं अक्सर, गंगा के पानी में वजू कर-करके" । गालिब कहते हैं - *अगर दरिया-ए-गंगा इसके कदमों पर अपनी पेशानी (माथा) न मलता तो वह हमारी नजरों में मोहतरम (पावन) न रहता ।* गंगा के बायें तट पर उत्तर से दक्षिण तक फैले 84 घाटों की श्रृंखला में सबसे दक्षिण का अंतिम घाट अस्सी घाट है । तट के 5 घाट - अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट और आदिकेशव घाट पौराणिक महत्व के हैं । सभी 84 घाट पक्के हैं और पत्थरों के बने हैं । ये घाट यूनेस्को द्वारा "विश्व धरोहर" के रूप में चिन्हित हैं । इनके बारे में कहते हैं "ये गंगा के घाट, काशी के हैं ठाठ ।" अधिकांश घाट स्नान और पूजा समारोह घाट हैं जबकि दो घाटों - मणिकार्णिका और हरिश्चंद्र को श्मसान स्थलों के रूप में उपयोग किया जाता है । गर्मी के मौसम में लोग घाट पर गंगा में पैर डुबोकर बैठते हैं जो उन्हें अलग ही अहसास कराता है । मणिकर्णिका की विशेषता यह है कि यहां घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती रहती है, कभी बुझने नहीं पाती । यहीं ये एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है । लेकिन बनारस मरना नहीं जीना सिखाता है । दशाश्वमेध घाट पर प्रतिदिन 'गंगा आरती' का आयोजन पूरी भव्यता के साथ होता है जिसमें लगभग 45 मिनट लगते हैं । यह आरती सात लकड़ी के तख्तों पर सात पंडितों द्वारा की जाती है जिसमें कर्णप्रिय मंत्रों की गूंज वातावरण को आध्यात्मिक बना देती है । अस्सी घाट युवाओं में सबसे ज्यादा मशहूर है । यहां भी शाम को गंगा आरती का आयोजन होने लगा है । गंगा के बीच धारा से सभी 84 घाटों का विहंगम दर्शन कराने हेतु 2000 वर्ग फीट का 90 सैलानियों की क्षमता वाला 'अलकनंदा क्रूज' तैयार है । यह खिड़किया घाट से अस्सी घाट के बीच चलता है जिसका भाड़ा रूपये 750 प्रति व्यक्ति (कर अतिरिक्त) है जिसमें नाश्ता भी सुलभ है । इंजन पूरी तरह से साउंड प्रूफ है । गंगा में गंदगी ना गिरे इसके लिए बायो-टॉयलेट की सुविधा है । क्रूज की खिड़कियां काफी बड़ी बनाई गई हैं ताकि बाहर के खूबसूरत नजारे का भरपूर आनंद उठाया जा सके ।

*सारनाथ -* वाराणसी से केवल 10 किलोमीटर दूर सारनाथ एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है जहां भगवान बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था जिसे 'धर्मचक्र प्रवर्तन' का नाम दिया जाता है । इसी स्थल पर 'धम्मेक स्तूप' का निर्माण करवाया गया जहां बुद्ध ने आर्य अष्टांग मार्ग की अवधारणा को बतलाया था, जिस पर चलकर व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है । 'चौखंडी स्तूप' को बौद्ध धर्म और संस्कृति के सबसे दिव्य और महत्वपूर्ण स्मारकों में एक माना गया है । स्तूप ठीक उस जगह है जहां भगवान बुद्ध की मुलाकात अपने पांच शिष्यों से हुई थी । 'अशोक स्तंभ' सम्राट अशोक द्वारा 50 मीटर लंबा पत्थरों से निर्मित भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है जिसके शीर्ष पर चार शेर हैं और स्तंभ का चक्र हमारे तिरंगे का चक्र है । 'मूलगंध कुटी विहार' में आकर्षक भित्ति चित्र देखे जा सकते हैं । प्रवेश द्वार पर तांबे का बड़ा घंटा लगा है और भीतर बुद्ध की सोने की आदमकद प्रतिमा है । 'थाई मंदिर' खूबसूरत बगीचे में बनाया गया है जो बेहद शांत और एकांत जगह है और थाई वास्तुकला को दर्शाता है । 'सारनाथ संग्रहालय' में बौद्ध मूर्तियों और कलाकृतियों का बेजोड़ विस्तृत संग्रह है ।

*रामनगर किला -* किला वाराणसी से 14 किलोमीटर दूर गंगा के पूर्वी तट पर तुलसी घाट के सामने स्थित है जहां सड़क मार्ग के अलावा गंगा के किसी भी घाट से नौका द्वारा पहुंचना भी आनंददायक है । किला सन् 1750 में चुनार के बलुआ पत्थर से मुगल शैली में बना है और तब से ही काशी नरेश का आधिकारिक और स्थायी निवास रहा है । किले की आकर्षक नक्काशीदार बालकनी, खुले आंगन और संग्रहालय इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं । दुर्ग में छोटे-बड़े 1010 कमरे हैं और सात आंगन हैं । संग्रहालय के अंदर 19वीं सदी की विंटेज कारें, चांदी, हाथीदांत और लकड़ी की शाही पालकियां, ढा़ल, तलवारों और पुरानी बंदूकों का शस्त्रागार, प्राचीन घड़ियां, हाथीदांत के नक्काशीदार सामान रखे गये हैं । यहां खगोलीय (ज्योतिष/पंचांग घड़ी) भी मौजूद है जो आधुनिक समय, दिन तथा तारीखों को तो बताती है साथ ही यह भारतीय ज्योतिष शास्त्र पर आधारित गणनाओं को भी व्यक्त करती है । इसमें नक्षत्रों, ग्रहों, राशियों, सूर्योदय, सूर्यास्त, चंद्रोदय, चन्द्रास्त के साथ घड़ी, घंटा, पल तथा क्षण जैसे समय मानकों का भी पता चलता है । घड़ी किसी आश्चर्य से कम नहीं है । किले में महर्षि वेदव्यास का एक मंदिर है और दक्षिणी दीवाल पर हनुमानजी की काली, दक्षिण मुखी मूर्ति है जिसमें हनुमानजी जमीन को दोनों हाथों से दबाए हुए हैं मानो गंगा के प्रकोप से किले को अपने बलशाली हाथों से रोके हुए हैं । इसके अलावा रामनगर की रामलीला भी बहुत प्रसिद्ध है । यहां की रामलीला देखने के लिए बनारस के कोने कोने से लोग आते हैं।

*बनारस की गलियां-* बनारस वस्तुतः गलियों का शहर है । यहां छोटी-बड़ी, पतली-संकरी सैकड़ों गलियां हैं । इनमें जंतर-मंतर भी है, भूलभुलैया भी है । "तू बन जा गली बनारस की, मैं शाम तलक भटकूं तुझमें ।" आप बस खाली हों और किसी भी गली में घुस जाएं । घूमते-घूमते कहां निकलेंगे कोई नहीं जानता । यहां कोई निशान लगा नहीं मिलेगा । जहां चूके कि काफी आगे जाने पर रास्ता बंद मिलेगा । " गलियों बीच काशी है, कि काशी बिच गलियां । कि काशी ही गली है, कि गलियों की ही काशी है ।" इन गलियों में सभी जाति, धर्म, संप्रदाय, बोली के लोग आपसी भाईचारे से मिलजुल कर रहते हैं इसीलिए डॉ राम अवतार पांडेय जी कहते हैं -
*वरूणा और अस्सी के भीतर, है अनुपम विस्तार बनारस ।*
*विविध धर्म भाषा-भाषी, रहते ज्यों परिवार बनारस ।*
*जिसकी गली-गली में बसता, है सारा संसार बनारस ।*
*एक बार जो आ बस जाता, कहता इसे हमार बनारस*
बड़े से बड़े खाटी बनारसी से भी अगर पूछा जाए कि आप बनारस की सभी गलियों के बारे में जानते हैं तो वह भी अपना उत्तर नकारात्मक ही देते हैं । ये गलियां पूरे बनारस को आपस में जोड़े रखती हैं । कभी बनारस की तंग गलियों में घूमते वक्त खिड़की से उड़ती हुई पान की फुहार सिर पर पड़ जाए तो इससे किसी के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचती बल्कि सामने वाला *का गुरु ! तईं देख के थूका* कह कर आगे निकल जाता है । अब पता ही नहीं चलता कि सामने वाला गुस्से में गरिया रहा है या मोहब्बत में ।

*बनारस के लक्खी मेले-* बनारस के पांच मेले ऐसे हैं जिनमें लाखों की भीड़ जुटती है और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है इसीलिए इसे लक्खी मेला कहते हैं -
*(1) चेतगंज की नक्कटैया का मेला-* यह मेला विजयादशमी के बाद कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ की रात को आयोजित होता है । इसमें रामचरितमानस की घटनाओं के क्रमवार प्रदर्शन के साथ-साथ तमाम तरह की सामाजिक बुराइयों और समकालीन समस्याओं जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, लूटपाट आदि की झांकी निकाली जाती है । मेले का आधार लक्ष्मण द्वारा सुपर्णखा की नाक काट कर बुरी व आसुरी शक्तियों का अंत करना है । यह मेला पिशाचमोचन से लेकर संकटमोचन तक चलता है । इसमें बनारस के अलावा आसपास के जिलों द्वारा भी झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं ।
*(2) रथयात्रा मेला -* इस मेले में रथयात्रा चौराहे पर लकडी़ के 14 पहिए वाले, 20 फीट चौडे़ और 18 फीट लंबे विशाल रथ पर भगवान जगन्नाथ, बडे़ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के काष्ठ के विग्रहों का दर्शन-पूजन किया जाता है जो 3 दिन तक चलता है । पुरी के बाद बनारस में ही रथयात्रा का इतना विशाल मेला आयोजित होता है । मान्यता है कि इन 3 दिनों में भगवान के विशाल रथ का पहिया अगर बारिश से भींग जाए तो वर्ष पर्यंत धन-धान्य की कमी नहीं रहती । फसल अच्छी होती है । यह मेला महमूरगंज से लेकर गिरिजाघर तक और कमच्छा से लेकर सिगरा तक फैला होता है ।
*(3) नाग नथैया मेला-* तुलसी घाट पर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को यह मेला आयोजित होता है । इस दिन काशी में उत्तर वाहिनी गंगा यमुना में बदल जाती है । यमुना तट पर बालकृष्ण सखाओं के साथ गेंद खेलते हैं । खेलते-खेलते गेंद यमुना में चली जाती है । तब श्रीकृष्ण कदंब की डाल से यमुना रूपी गंगा में छलांग लगाते हैं और प्रदूषण के प्रतीक कालिया नाग का मान मर्दन कर प्रकृति के संरक्षण का संदेश देते हुए फन पर खड़े होकर बंसी बजाते हुए प्रकट होते हैं तो श्रद्धालुओं की सांसे मानों थम सी जाती हैं और संपूर्ण गंगा तट किशन कंहैया लाल की जय और हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठता है । पांच मिनट की इस अनूठी लीला का साक्षी बनने के लिए अस्सी घाट से लेकर निषादराज घाट तक गंगा किनारे, नौकाओं व बजडो़ं पर लोग डटे रहते हैं ।
*(4)नाटी इमली का भरत मिलाप-* आश्विन शुक्ल एकादशी को श्रीचित्रकूट रामलीला समिति द्वारा नाटी इमली स्थित भरत मिलाप मैदान में ठीक सायं 4.40 पर भरत मिलाप का आयोजन होता है । 14 वर्ष के वनवास और रावण वध के बाद भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान पर सवार होकर मैदान पर पहुंचते हैं । हनुमान द्वारा सूचना पाकर भरत और शत्रुघ्न नंगे पांव दौड़ते हुए वहां पहुंचकर साष्टांग दंडवत करते हैं । राम लक्ष्मण दौड़कर उनके पास पहुंचते हैं और चारों भाई आपस में गले मिलते हैं । इसके बाद परंपरा अनुसार यदुवंशी अपनी पारंपरिक वेशभूषा में रघुवंशियों से सुशोभित पुष्पक विमान को अपने मजबूत कंधों पर उठाकर बड़ा गणेश स्थित अयोध्या के लिए चल पड़ते हैं । इस 10 मिनट की लीला को देखने के लिए देश-विदेश के लाखों लोग एकत्र होते हैं ।
*(5) देव-दीपावली -* हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन सायंकाल बनारस के सभी घाटों को मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । लगभग 3 किलोमीटर में फैले गंगा के अर्ध चंद्राकार घाटों पर जगमग करते लाखों-करोड़ों दीप गंगा की निर्मल धारा में इठलाते-बहते 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का शाश्वत संदेश देते हैं । इसके आयोजन में हजारों-हजार लोग सुबह से ही तन-मन-धन से लग जाते हैं । दिलचस्प बात यह है कि ये दिए बुझने नहीं पाते । लोग लगातार इनमें तेल डालते रहते हैं । घाटों के साथ ही नगर के सभी सरोवरों, कुंडों, मंदिरों, मठों, आश्रमों और प्रत्येक हिंदू घरों में भी दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं । लोग गंगा किनारे पैदल और गंगा की धार में किराए की नावों और बजडो़ं में बैठकर परंपरा और आधुनिकता के इस अद्भुत संगम और नयनाभिराम दृश्य का अवलोकन करके अपने को धन्य मानते हैं । ऐसा लगता है मानों काशी में पूरी आकाशगंगा ही उतर आयी है ।
लेकिन यदि आप जल्दी में हों और एक दिन में बनारस घूमना चाहते हों तो बनारस घूमने मत आना । बनारस की नींद बहुत धीरे - धीरे खुलती है । आहिस्ता - आहिस्ता जागता है यह शहर । एक दिन में आप बनारस नहीं देख सकते । देख भी लें तो घूम नहीं सकते । घूम भी लें तो समझ नहीं सकते और बनारस को समझना पड़ता है । जिसने बनारस को समझ लिया, यहां की नब्ज पकड़ ली फिर वो सीधे प्रधानमंत्री तक बन सकता है । जिस प्रकार आप मंदिर में समय लेकर, इत्मीनान से जाते हैं, कोशिश करते हैं कि भाव शांत रहे, भगवान के सम्मुख श्रद्धा से शीश नवाते हैं, भगवान से जुड़ने की कोशिश करते हैं वैसे ही आना है बनारस । किसी मोटे थुलथुल व्यक्ति को तेज- तेज चलते देखकर यह मत समझ लेना कि वो किसी जल्दी में है । आगे उसकी चौकड़ी (मित्र मंडली) इंतजार कर रही है । किसी चाय या पान की दुकान पर खड़े खड़े पिछले दिन की सारी भड़ास, सारा गुबार निकालेगा । पूरे देश दुनिया की चिंता करेगा । चुनाव में किसी को हराएगा, किसी को जिताएगा, किसी की जमानत भी जब्त करा देगा । चाय वाला जल्दी से चाय नहीं दे देगा । वो जानता है कि भईया जी को चाय की तलब नहीं, चाय पे चर्चा खींच लाई है । पान वाला भी जल्दी से नहीं देगा पान । उसे मालूम है कि चचा को पान खाने की पिनक नहीं है । यदि ऐसा होता तो किसी को भेजकर भी मंगा लेते । यहां गमछा, फटी धोती और सूट-बूट एक ही दुकान पे चाय पीता है, एक ही दुकान पे पान खाता है ।
केवल पढ़ सुनकर बनारस को नहीं समझा जा सकता । उसे देखना पड़ता है, समझना पड़ता है । ये वो शहर है जहां बिस्मिल्लाह खां भोले बाबा के दर पर शहनाई बजाते थे तो प्रेमचंद बच्चों को ईदगाह की कहानी सुनाते थे । कबीर गंगा घाट की सीढ़ियों पर रात को लेटकर अपना गुरु रामानंद को बनाए तो नजीर गंगा के जल से वजू करते थे । यहां आज भी राधा कृष्ण की चुनरी नजमा बीबी सिलती है तो उर्स की चादर चंपाकली बुनती है । इमरान आज भी रामलला की झांकी सजाता है तो बांकेलाल ताजिये को कंधा देता है । रहमान के घर आज भी बुनी जाती है हमारी बहनों के सुहाग के जोड़े तो अतीक आज भी धागे में पिरोता है रुद्राक्ष के दाने । सलीम होली मिलने आता है गुझिया और श्रीखंड के लिए तो पप्पू ईद का इंतजार करता है सेवइयों के लिए । यहां जितने उल्लास से रथयात्रा का मेला निकलता है, उतने ही धूमधाम से ताजिया का जुलूस भी निकलता है । यहां क्रिसमस भी उतने ही जोर शोर से मनाया जाता है जितना होली ।
सार ये है कि बनारस के बारे में कभी कुछ पूरा बताया ही नहीं जा सकता । गालिब लिखते हैं-
*बनारस को दुनिया के दिल का नुक्ता (बिंदु) कहना दुरुस्त होगा । इसकी हवा मुर्दों के बदन में रूह फूंक देती है। इसकी खाक के जर्रे मुसाफिरों के तलवे से कांटे खींच निकालते हैं । अगर सूरज इसके दर-ओ-दीवार के ऊपर से न गुजरता तो वह इतना रोशन और ताबनाक (प्रखर) न होता ।*
बनारस न रुकता है, न थमता है, न सोता है, न अलसाता है ।बस चलता रहता है । यहां कभी रात नहीं होती ।
*जहां राख भी रख दो तो पारस हो जाता है ।*
*यूं ही नहीं कोई शहर बनारस हो जाता है*
बनारस अपने बारे में कहता है -
*जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ,*
*सब कहें मुझे मैं पारस हूं ।*
*मेरा जन्म महाश्मसान मगर,*
*मैं जिंदा शहर बनारस हूं ।*
फिलहाल बनारस से निकलते समय दिमाग में यही ख्याल आता है - अद्भुत, अद्वितीय, असाधारण, अप्रतिम, अतुलनीय, अकल्पनीय, अनूठी, अकलंकित, अविनाशी, अलौकिक, अकिल्विष ।

Our presence at TTF Kolkata..We will be available tomorrow as well.. Please call to meet us near UP Tourism pavilion..  ...
01/07/2022

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A Group from Malaysia exploring varanasi through us..
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The trip to Kashi was an overwhelming one for our new Spanish guests today..
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17/05/2022

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Had an opportunity to cater current MLA, Film Star and celebrity Madam Roja Selvamani of Andhra with Famous advocate of ...
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Honoured to host Her Holiness Tara Maa and Sri Bal Gopal ji again in Varanasi
02/04/2022

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Our First International Arrival after Covid..Grew a new ray of hope..
23/03/2022

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Mr. Michel Steven is our first International guest from Belgium after Covid.

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