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Aayodhya.com The son of Vivaswan "Viavswat Manu" founded the city of Ayodhya.

The city served as the capital of the Hindu kingdom of Kosala (Kaushal), the court of the great king Dasaratha, the 63rd monarch of the Solar line in descent from Vivaswan or the Sun God.

22/10/2022

Jai Shri Ram

11/09/2022

गणेश विसर्जन :- ( गोबर गणेश )

यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है ??
हमारे देश में हिंदुओं की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता लेकिन भयवश वह चलती रहती है ।

आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुराचार होता है , उसको देख कर अपने हिन्दू मतावलंबियों पर बहुत ही ज्यादा तरस आता है और दुःख भी होता है ।

शास्त्रों में एकमात्र गौ के गोबर से बने हुए गणेश जी या मिट्टी से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन का ही विधान है ।

गोबर से गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है माता पार्वती द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का ।

चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसीलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है ।

इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा :- "गोबर गणेश"
इसिलिए पूजा , यज्ञ , हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है । जिसको बाद में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया ।

अब आईये समझते हैं कि गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है ????

भगवान वेदव्यास ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को वेदव्यास जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा ।
वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया ।
( जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं )

वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की या "श्री गणेश" किया ।
वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे । लगातार दस दिन तक लिखने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन इसका उपसंहार हुआ ।

भगवान की लीलाओं और गीता के रस पान करते करते गणेश जी को अष्टसात्विक भाव का आवेग हो चला था जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया था और गणेश जी अपनी स्थिति में नहीं थे ।

गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्कीलन या उनके शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया । इसके बाद उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया , जिसे विसर्जन का नाम दिया गया ।

बाल गंगाधर तिलक जी ने अच्छे उद्देश्य से यह शुरू करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा ।
गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है , परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है ।

आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने रुतबे , पैसे , दिखावे और अखबार में नाम छापने से बनाते हैं ।
जिसके जितने बड़े गणेश जी , उसकी उतनी बड़ी ख्याति , उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग , और चढ़ावे का तांता ।
इसके बाद यश और नाम अखबारों में अलग ।

सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब customer attract करने के लिए लोग DJ पर फिल्मी अश्लील गाने और नचनियाँ को नचवाते हैं ।

आप विचार करके हृदय पर हाथ रखकर बतायें कि क्या यही उद्देश्य है गणेश चतुर्थी या अनंत चतुर्दशी का ?? क्या गणेश जी का यह सम्मान है ??
इसके बाद विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र तरीके से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है ।
वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन करने का लेकिन हम लोग क्यों करते हैं यह बुद्धि से परे है ।
क्या हम भी वेदव्यास जी के समकक्ष हो गए ??? क्या हमने भी गणेश जी से कुछ लिखवाया ?
क्या हम गणेश जी के अष्टसात्विक भाव को शांत करने की हैसियत रखते हैं ??????????

गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ के बराबर बनाया जाता है और होना चाहिए , इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है ।

और एक बात और गणेश जी का विसर्जन बिल्कुल शास्त्रीय नहीं है ।
यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म , अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया ।

एकमात्र हवन , यज्ञ , अग्निहोत्र के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है ।

प्लास्टर ऑफ paris से बने , चॉकलेट से बने , chemical paint से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है ।
इससे केवल प्रकृति के वातावरण , जलाशय , जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र , भूमि , हवा , मृदा इत्यादि को नुकसान पहुँचता है ।

इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला ।
हाँ बाजारीकरण , सेल्फी पुरुष , सेल्फी स्त्रियों को अवश्य लाभ मिलता है लेकिन इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी ।

इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है ।
चलिए माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो करिए विसर्जन । लेकिन गोबर के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा 1 अंगुष्ठ से बड़ी नहीं होनी चाहिए ।

मुझे पता है मेरे इस पोस्ट से कुछ कट्टर झट्टर बनने वालों को ठेस लगेगी और वह मुझे हिन्दू विरोधी घोषित कर देंगे ।

पर मैं अपना कर्तव्य निभाऊँगा और सही बातों को आपके सामने रखता रहूँगा ।
बाकी का - सोई करहुँ जो तोहीं सुहाई ।

25/08/2022

अवश्य पढ़ें.....

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, "पुत्री भविष्य में कभी तुम पर दुख, पीड़ा या घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना सीधे भगवान की शरण में जाना

उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली:-आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता?" द्रौपदी बोली:-क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया

मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आंखे झुकाए आंसू बहाते रहे

फिर मैने भगवान श्रीद्वारिकाधीश को पुकारा:-हे प्रभु अब आपके सिवाय मेरा कोई भी नहीं है। भगवान तुरंत आए और मेरी रक्षा करी। इसलिए वेटी जीवन में जब भी संकट आये आप भी उन्हें ही पुकारना

जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्रीकृष्ण बहुत विचलित हो रहे थे। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था

रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है। रूकमणि बोलती हैं, "आप जाएं और उसकी मदद करें। "श्रीकृष्ण बोले," जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूं। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूंगा

तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए" मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई

उस समय "मेरी सभी 16 हजार 108 पत्नियां वहीं थी कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई" मगर उस समय "मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बांध दिया । आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं नहीं जाऊंगा

अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े चले गये

हमारे जीवन में भी कही संकट आते रहते है प्रभु-स्मरण, उनके प्रति किया "सत्-कर्म" हमारी सहयाता के लिए भगवान को बिवस कर देता है और तुरन्त संकट टल जाता है
जय श्री कृष्ण 🙏🙏

03/08/2022

⚜️कटू सत्य ⚜️
🛕📿पंडित जी की सत्य घटना

पंडित जी गांव मे एक यजमान के यहॉ सत्यनारायण कथा करके घर आए , और पत्नी सावित्री से बोले जरा एक गिलास पानी पिलाना । तभी पंडित जी की छोटी बेटी व बेटा दौडते हुए आए और बोले पापा हमारे लिए क्या लेकर आए तो पंडित जी ने थैली मे रखी आटे की प्रसाद और कुछ फल बच्चो को देते हुए कहा बेटा ये लो प्रसाद तुम्हारे लिए , तो बेटी बोली पापा मिठाई नही लाए पंडित जी बोले बेटा मिठाई यजमान लाए तो थे पर इतनी की सिर्फ वो व उनके घरवाले खा सके हमारे लिए तो सिर्फ आटे की प्रसाद बची ये खाऔ अगली बार मिठाई ले आऊंगा । तभी बेटा बोला पापा हमारे मास्टर जी कह रहे थे जल्दी स्कूल की फिस ( शुल्क ) भर दो नही तो परिक्षा मे नही बैठने देंगे । दुखी मन से पंडित जी ने कहा बेटा मास्टरजी से कहना जल्दी भर देगे । तभी पंडिताईन ( पत्नी ) बोली सुनते हो दुर के रिश्तेदार के यहॉ शादी है हमे उनको कुछ तो देना चाहिए न यदि नही देगे तो कल को हमारे बच्चों की शादी मे नही आएगे वो ।

पंडित जी की आंखो मे आंसु आ गए और बोले पंडिताईन तुम जानती हो पुरोहित कर्म करके मे तुम सबकी इच्छाएँ पुरी नही कर पा रहा हुं । आज सत्यनारायण कथा करवाई बदले मे 101 रुपये दक्षिणा दि और पचास रुपये चढावे मे आए अब तुम ही बताऔ इन 150 रुपये बेटे की स्कूल फिस भरु या बेटी को कपडे दिलवाऊ या रिश्तेदार की शादी के लिए सामान खरिदू ?? आज पैसा होता तो बेटी को सरकारी स्कुल मे नही पढा रहा होता बल्कि बेटे के साथ प्राईवेट स्कुल मे पढाता । ब्राह्मण कुल मे पैदा हुआ हुं यदि अपना पुरोहित कर्म छोडु तो पुर्वजो की कीर्ति को ठेस पहुंचे और ये सब ही करता रहुं तो बच्चो के भविष्य को बिगाडु ।

पंडिताईन आज हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम गरीब है⁉️
फिर भी लोग मुझसे कहते है जब मै पुजा करवाकर घर आता हुं तो कि यजमान को कितने का चुना लगाया । ये तो प्रभु जानते हे मैने चुना लगाया या नही लगाया । हम ब्राह्मण हैं तो हमे राशन नही मिलता , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चौ को छात्रवत्ती ( स्कालरशिप ) नही मिलती , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चो को निशुल्क किताबे नही मिलती , ब्राह्मण हैं इसलिए मेरे बच्चे की स्कुल फिस ज्यादा है । पंडिताईन हम ब्राह्मण कुल मे पैदा हुए क्या ये हमारा दोष है ??? ब्राह्मण गरिब नही हो सकता ??? पता नही हम ब्राह्मणो को सब लुटेरा क्यो समझते है ?? हमने किसका पैसा लुटा है ?? हे प्रभु हम कब तक ऐसे दयनिय स्थिती मे रहेगे ।

पंडिताईन बोली आप चिंता मत करिए ब्राह्मणो के हितैषी भगवान जानते है हमने कभी गलत नही किया एक न एक दिन हमारा भी भला होगा आप रोइए मत मेरे पायल गिरवी रखकर बेटे की फिस भर दीजिए और शादी का सामान ले आइए , इतना कहकर पंडिताईन रसोई मे भोजन बनाने चली गई व पंडित जी बच्चौ से बात करने लग गए.......।

ये अधिकांश ब्राह्मणो के घर की सच्ची कहानी है । हर ब्राह्मण अमिर नही होता ये बात समाज को समझ लेना चाहिए ।

आप सब का जवाब मित्रों मेरा विश्वास इन बातों में सच्चाई छुपी हुई है।

दोस्तों कुछ गलत लगा हो तो माफ करिए गा पर यही सच्चाई है एक सच्चा ब्राह्मण सच्चा पंडित आज भी एक पैसा शादी कराने का या पूजा कराने का नहीं मांगता है फिर हर चीज ब्राह्मणों से ही क्यों काटा जाता हैं ना तो उसे राशन मिलता है ना पढ़ने की कोई व्यवस्था हो पाती है हम तो कहते हैं गरीबों के लिए ही जो कुछ किया जाए किया जाए चाहे वह किसी जाति धर्म का हो।
⚜️ सनातन संस्कृति को बचाने के लिए आगे बढ़ो 💞
आपका दिन मंगलमय हो 🌹 ऊं नमः पार्वते पतेय शिव हर हर महादेव शम्भू 💞

30/07/2022

🙏🕉️🙏🏻क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?
यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती ?
और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ ?

एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया।
गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया।
वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे
उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया:

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें।
एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं ? उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया।
फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया, तो शिष्य ने कहा कि" वे चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।”

गुरु ने पुस्तक देखते हुए कहा“ श्लोक तो पुस्तक में ही है, तो तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया? शिष्य कुछ भी उत्तर नहीं दे पाया।
तब गुरु ने कहा “ पुस्तक में जो श्लोक है, वह स्थूल रूप में है। तुमने जब श्लोक पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में प्रवेश कर गया,
उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मस्तिष्क में रहता है। और जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ कर लिया, तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आई।

इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परमात्मा हमारे द्वारा चढ़ाए गए निवेदन को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं,
और इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती। उसी को हम *प्रसाद* के रूप में ग्रहण करते हैं।

शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया।

27/07/2022

*मंगल कामनाओं के साथ इस मधुर सी सुबह का प्यार भरा प्रणाम।*
🕉🙏🏻

*श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,*
*हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!*
*༺꧁ Զเधॆ Զเधॆ꧂bn༻*
🙏🏾🌹 *जय श्री *मंगल कामनाओं के साथ इस मधुर सी सुबह का प्यार भरा प्रणाम।*
🕉🙏🏻

*श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,*
*हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!*
*༺꧁ Զเधॆ Զเधॆ꧂༻*
🙏🏾🌹 *जय श्री कृष्णा*🌹🙏🏾*🌹🙏🏾

12/07/2022

बाँके बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा

वृंदावन में बाँकेबिहारी जी मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है। इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्रीकृष्ण और राधाजी समाहित हैं , इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा-कृष्ण के दर्शन के फल की प्राप्ति होती है। इस प्रतिमा के प्रकट होने की कथा और लीला बड़ी ही रोचक और अद्भुत है, इसलिए हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बाँकेबिहारी मंदिर में बाँकेबिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है।
बाँकेबिहारी जी के प्रकट होने की कथा-संगीत सम्राट तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास जी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वृंदावन में स्थित श्रीकृष्ण की रास-स्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे। भगवान की भक्ति में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते। इनकी भक्ति और गायन से रीझकर भगवान श्रीकृष्ण इनके सामने आ गये। हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर श्रीकृष्ण को दुलार करने लगे। एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप अकेले ही श्रीकृष्ण का दर्शन लाभ पाते हैं, हमें भी साँवरे सलोने का दर्शन करवाइये। इसके बाद हरिदास जी श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे। राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई और अचानक हरिदास के स्वर में बदलाव आ गया और गाने लगे-
भाई री सहज जोरी प्रकट भई,
जुरंग की गौर श्याम घन दामिनी जैसे।
प्रथम है हुती अब हूँ आगे हूँ रहि है न टरि है तैसे।
अंग-अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे।
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे।
श्रीकृष्ण और राधाजी ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की।
हरिदास जी ने कृष्णजी से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूँ। आपको लंगोट पहना दूँगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहाँ से लाकर दूँगा। भक्त की बात सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कराए और राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह के रूप में प्रकट हुई। हरिदास जी ने इस विग्रह को ‘बाँकेबिहारी’ नाम दिया। बाँके बिहारी मंदिर में इसी विग्रह के दर्शन होते हैं। बाँके बिहारी के विग्रह में राधा-कृष्ण दोनों ही समाए हुए हैं, जो भी श्रीकृष्ण के इस विग्रह का दर्शन करता है, उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
ठाकुर श्री बाँके बिहारी लाल की जय...

🙏 हर हर महादेव 🙏
🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏

11/07/2022

सुदामा को गरीबी क्यों मिली ?
एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा मांग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली। वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुंचते-पहुंचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नहीं खाऊंगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊंगी। यह सोंचकर ब्राह्मणी चनों को कपडे में बांधकर रख दिय और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी।
ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गए। इधर उधर बहुत ढूंढा चोरों को वह चनों की बंधी पोटली मिल गयी चोरों ने समझा इसमे सोने के सिक्के हैं इतने मे ब्राह्मणी जग गयी और शोर मचाने लगी । गांव के सारे लोग चोरों को पकड़ने के लिए दौडे। चोर वह पोटली लेकर भगे। पकडे जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। (संदीपन मुनि का आश्रम गांव के निकट था जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।)
गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं चोर समझ गये कोई आ रहा है चोर डर गये और आश्रम से भगे। भगते समय चोरों से वह पोटली वहीं छूट गयी। इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गये। तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया की ”मुझ दीनहीन असह।य के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा”।
उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू लगाने लगी झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने वह चने की पोटली सुदामा को दे दी और कहा बेटा जब वन मे भूख लगे तो दोनों लोग यह चने खा लेना।
सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ मे लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया। सुदामा जी ने सोंचा ! गुरु माता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना। लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जायेगी और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए। दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया।

10/07/2022

रामायण श्री राम के पदचिह्न 🚩
अपको आज से रोज अपको बताएंगे भगवान राम की पूरी यात्रा के बारे में ,और उन पवित्र स्थानों के बारे में जिस जिस स्थानों से भगवान राम ने वास किया

राम की राह को फिर से देखना: रामायण में वे स्थान जो आप आज भी देख सकते हैं

रामायण केवल धार्मिक महत्व की कथा नहीं है। एक सत्य है क्योंकि यह जीवन का एक तरीका है! आज हम आपको कालानुक्रमिक रूप से रामायण में वर्णित गलियों और स्थानों से रूबरू कराने जा रहे हैं। ये स्थान आज एक स्वर्ण युग की याद के रूप में खड़े हैं,

🚩शुरू करते हैं श्री राम के जन्म स्थान अयोध्या से 🚩

सरयू नदी के तट पर स्थित, अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है, जिन्हें भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में पूजा जाता था। रामायण की स्थापना, अयोध्या शहर को राम के पिता दशरथ द्वारा शासित प्राचीन कोसल साम्राज्य की राजधानी माना जाता है। शहर समृद्ध था और अच्छी तरह से गढ़वाले था और एक बड़ी आबादी थी।

स्थान: अयोध्या दक्षिण-मध्य उत्तर प्रदेश राज्य में है। यह फैजाबाद शहर के पूर्व में स्थित है।

आकर्षण: हर जगह बिखरे कई मंदिरों के साथ आध्यात्मिक उत्साह स्पष्ट है। रामनवमी शहर को पूरी तरह से देखने का सही समय है। हनुमान गढ़ी, कनक भवन, नागेश्वरनाथ मंदिर, रामकोट, चक्रवर्ती महाराज दशरथ महल, सरयू नदी घाट,

1. हनुमान गढ़ी

जब रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे, तो हनुमानजी यहां रहने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट रखा गया। यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा करते थे।

2. कनक भवन

कैकेयी ने सीता जी को मुंह दिखाई में दिया था कनक भवन

भगवान राम तथा माता सीता का भवन था कनक भवन
प्राचीन धार्मिक इतिहास के अनुसार, कनक भवन का निर्माण महारानी कैकेयी के अनुरोध पर अयोध्‍या के राजा दशरथ द्वारा विश्वकर्मा की देखरेख में श्रेष्ठ शिल्पकारों के द्वारा कराया गया था। मान्‍यताओं के अनुसार, कनक भवन के किसी भी उपभवन में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। भगवान के परम भक्‍त हनुमान जी को भी बहुत अनुनय विनय करने के बाद आंगन में ही स्‍थान मिल पाया। इसी मान्यता के तहत कनक भवन के गर्भगृह में भगवान श्रीराम-जानकी के अलावा किसी अन्य देवता का विग्रह स्थापित नहीं किया गया है।

3. राम कोट

अयोध्या की सरयू नदी के दाहिने तट पर ऊंचे टीले पर स्थित हनुमानगढ़ी सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। माना जाता है कि लंका विजय करने के बाद हनुमान यहां एक गुफा में रहते थे और राम जन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। इसी कारण इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट पड़ा। यही से श्रीराम भक्त हनुमान रामकोट पर नजर रखते हैं।

4.राजा दशरथ का महल अयोध्या

अयोध्या में रामकोट स्थित 'दशरथ महल' दशरथ जी का राजमहल जो जिसे आज एक सिद्ध पीठ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार राजा दशरथ ने त्रेता युग में इस महल की स्थापना की थी। इस स्थान पर श्री वैष्णव परम्परा की प्रसिद्ध पीठ एवं विन्दुगादी की सर्वोच्च पीठ भी स्थित है। इस पौराणिक महल का कालांतर में कई बार जीर्णोद्धार हुआ

09/07/2022

कई लोग ये पूछते हैं कि श्रीराम ने धनुष उठा कर स्वयंवर की शर्त तो पूरी कर ही दी थी, फिर उस धनुष को भंग करने की क्या आवश्यकता थी?

यदि आप मेरा दृष्टिकोण पूछें तो मैं यही कहूंगा कि उस धनुष की आयु उतनी ही थी। अपना औचित्य (देवी सीता हेतु श्रीराम का चुनाव) पूर्ण करने के उपरांत उस धनुष का उद्देश्य समाप्त हो गया। उसके उपरांत पिनाक का पृथ्वी पर कोई अन्य कार्य शेष नही था। कदाचित यही कारण था कि श्रीराम ने उस धनुष को भंग कर दिया।

यदि आप वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस का संदर्भ लें तो दोनों में एक ही चीज लिखी है - सीता स्वयंवर के समय श्रीराम द्वारा उस महान धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में वो धनुष टूट गया। अर्थात मूल रामायण के अनुसार श्रीराम ने उस धनुष को जान-बूझ कर नही तोड़ा था अपितु प्रत्यंचा चढ़ाते समय वो अनायास ही टूट गया। अब आप इसे स्वयं महादेव की इच्छा भी समझ सकते हैं।

हालांकि यदि आप पिनाक के इतिहास के बारे में पढ़े, जिसका वर्णन विष्णु पुराण और शिव पुराण दोनों में दिया गया है, तो इस धनुष के भंग होने का वास्तविक कारण आपके समझ मे आ जाएगा। इस कथा के अनुसार भगवान शंकर का धनुष पिनाक और भगवान नारायण का धनुष श्रांग दोनों का निर्माण स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने किया था। एक बार इस बात पर चर्चा हुई कि दोनों धनुषों में से श्रेष्ठ कौन है। तब ब्रह्मदेव की मध्यस्थता में भोलेनाथ और श्रीहरि में अपने-अपने धनुष से युद्ध हुआ। उस युद्ध में श्रीहरि की अद्भुत धनुर्विद्या देखने के लिए महादेव एक क्षण के लिए रुक गए।

युद्ध के अंत में दोनों ने ब्रह्माजी से निर्णय देने को कहा। शिवजी और विष्णुजी धनुर्विद्या में अंतर बता पाना असंभव था। किन्तु कोई निर्णय तो देना ही था इसी कारण ब्रह्माजी ने कहा कि चूंकि महादेव युद्ध मे रुक कर नारायण का कौशल देखने लगे थे इसी कारण श्रांग पिनाक से श्रेष्ठ है। ये सुनकर महादेव बड़े रुष्ट हुए और उन्होंने उसी समय पिनाक का त्याग कर दिया। उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि अब आप ही इस धनुष का नाश करें। महादेव की इच्छा का मान रखते हुए श्रीहरि ने कहा कि समय आने पर वे उस धनुष को भंग करेंगे।

पिनाक को ब्रह्माजी ने इंद्र को रखने को दिया। बाद में इंद्र ने उस धनुष का दायित्व मिथिला के तत्कालीन राजा देवरात को दिया। यही देवरात मिथिला नरेश जनक के पूर्वज थे। पीढ़ी दर पीढ़ी होता हुआ वो धनुष जनक को प्राप्त हुआ। कहते हैं कि एक बार माता सीता ने केवल 7 वर्ष की आयु में उस धनुष को उठा लाया था जिसे कोई हिला भी नही पाता था। तब राजा जनक ने ये प्रण किया कि वो उसी से सीता का विवाह करेंगे जो इस महान धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा।

उधर भगवान विष्णु श्रीराम के रूप में अवतरित हो चुके थे। सीता स्वयंवर में श्रीराम रूपी नारायण ने महादेव की इच्छा को फलीभूत करने के लिए ही अंततः उस धनुष को भंग कर दिया। अर्थात वो महान धनुष महादेव की इच्छा से ही भंग हुआ, सीता स्वयंवर तो केवल निमित्त मात्र था।

वास्तव में ये घटना सृष्टि के उस नियम को भी प्रतिपादित करती है जिसके अनुसार सृष्टि में कुछ भी अनश्वर नही है, चाहे वो मनुष्य हो अथवा वस्तु। समय पूर्ण होने पर सबका नाश होना अवश्यम्भावी है, यही सृष्टि का अटल नियम है।
🚩जय श्री राम🌺
⛳💪हर हर हर महादेव⚔️🔱

07/07/2022

कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी तथा पिता वसुदेव को छुड़ाया।
तब माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा, "बेटा, तुम भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की?"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "क्षमा करें आदरणीय माता जी, क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था।"
माता देवकी आश्चर्यचकित हो गईं और फिर पूछा, "बेटा कृष्ण, यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "माता, आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है। परंतु तब आप कैकेई थीं और आपके पति राजा दशरथ थे।"
माता देवकी ने और ज्यादा आश्चर्यचकित होकर पूछा, "फिर महारानी कौशल्या कौन हैं?"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला है।"

07/07/2022

कृष्ण कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ। मैं तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।"
पाँचों भाई वन में गये।
युधिष्ठिर महाराज ने
देखा कि किसी हाथी की दो सूँड है।
यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा।
अर्जुन दूसरी दिशा में गये। वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है
यह भी आश्चर्य है !
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास के कुओं में पानी है किन्तु बीच का कुआँ खाली है। बीच का कुआँ गहरा है फिर भी पानी नहीं है।
पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती आती और कितने ही वृक्षों से टकराई पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके। कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई पर वह रुक न सकीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।
पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं ! शाम को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-अलग दृश्यों का वर्णन किया।
युधिष्ठिर कहते हैं- "मैंने
दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न
रहा।"
तब श्री कृष्ण कहते हैं- "कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। ऐसे लोगों का राज्य होगा। इससे तुम पहले राज्य कर लो।
अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।
इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाये।
"संस्था" के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और
संस्था हमारे नाम से हो जाये।
हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध है ?
चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर) ही रहेगी।
परधन परमन हरन को वैश्या बड़ी चतुर।
ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरला ही संत पुरूष होगा।

भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
🌹कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा।
बालकों के लिए इतनी ममता करेगा कि उन्हें अपने
विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा।
""किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे....
किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा ?""
इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोह माया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा। अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा। वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं की अमानत हैं, लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह शरीर मृत्यु की अमानत है।
तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत है ।
तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस !

सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के बीच का कुआँ एक दम खाली !
कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में,
मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर देंगे परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं।
दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और
व्यसन में पैसे उड़ा देंगे।
किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में उनकी रूचि न होगी और जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव होगा।

पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़
पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह चट्टान रूक गई।
कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा।
यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से रूकेगा।
किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन होना रूक जायेगा ।

07/07/2022

भाग्य और कर्म....

एक बहुत गरीब ब्राह्मण था,उसका एक बेटा था वो भाग्य में ही उलझा रहता था और मानता था कि भाग्य ही सबकुछ हैं,ऐसा सोच कर वह कुछ मेहनत भी नहीं करता था और उसकी यह सोच थी कि जो भाग्य में होगा वह मिल जायेगा...

एक दिन अपने बेटे को मंदिर ले गया,वहां उसने मंदिर के पुजारी से पूछा कि भाग्य और कर्म का क्या रिश्ता है,वह मेरे पुत्र को आप समझाओ...

तो पुजारी ने उसके पिता जी से कहा कि आपके पुत्र का भाग्य तो बहुत अच्छा है,पर एक ग्रह गडबड कर रहा है, यदि वह ग्रह ठीक हो जाये तो सब ठीक हो जायेगा,तो ब्राह्मण ने कहा उसके लिए क्या करना होगा...

तो पुजारी कहते है कि इस गाँव में एक कुआँ खोद दो उससे गाँव वालों को पानी मिल जाएगा और आपसे एक नैक काम हो जायेगा,तो वो दोंनो बाप बेटा कुआँ खोदने लगे और कुछ दिनों बाद उसमें पानी आ गया और एक घडा भी निकल आया तो उस घड़े को पुजारी जी के पास लेकर गए,पुजारी ने घडे पर से कपड़ा हटाया तो उसमें सोने की मुहरें थी,यह देखकर ब्राह्मण और उसका बेटा खुश हुआ...

तो पुजारी कहते है कि आप को समझ में आया, ब्राह्मण और उसका बेटे को कुछ भी समझ में नहीं आया, पुजारी कहते है कि कि भाग्य का दूसरा नाम ही कर्म है, आपने कर्म किया तो आपका भाग्य बना व्यक्ति कर्म नहीं करेगा तो भाग्य कैसे बनेगा...

हम जैसे कर्म करते है वहीं हमारा भाग्य बन जाता है, भाग्य तो संसार में रहने वाले हर एक जीव के साथ जुड़ा हुआ है, इस तरह अच्छे कर्म करते जाओ और भाग्य का फल चखते जाओ...

जय श्री राधे.....

07/07/2022

हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है.प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था. आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था.अदभुद प्रसंग
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू🚩हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है, प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा रामजी का भक्त हूँ,राम नाम का जप करने वाला हूँ.
भगवान बोले कैसे ?
हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी ही असली संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है. आपको पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया.
"जौ मोरे मन बच अरू काया,
प्रीति राम पद कमल अमाया"
तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,
जौ मो पर रघुपति अनुकूला
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा,
कहि जय जयति कोसलाधीसा"
यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए.
यह वचन सुनते हुई मै श्री राम, जय राम, जय-जय राम कहता हुआ उठ बैठा. मै नाम तो लेता हूँ पर भरोसा भरत जी जैसा नहीं किया, वरना मै संजीवनी लेने क्यों जाता,
बस ऐसा ही हम करते है हम नाम तो भगवान का लेते है पर भरोसा नही करते,
1:-बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, बेटे ने नहीं की तो क्या होगा? उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है न, पर हम भरोसा नहीं करते. बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है.
2. - दूसरी बात प्रभु!
बाण लगते ही मै गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मै अभिमान कर रहा था कि मै उठाये हुए हूँ.
मेरा दूसरा अभिमान टूट गया,
इसी तरह हम भी यही सोच लेते है कि गृहस्थी के बोझ को मै उठाये हुए हूँ,
3. - फिर हनुमान जी कहते है -
और एक बात प्रभु ! आपके तरकस में भी ऐसा बाण नहीं है जैसे बाण भरत जी के पास है.
आपने सुबाहु मारीच को बाण से बहुत दूर गिरा दिया, आपका बाण तो आपसे दूर गिरा देता है, पर भरत जी का बाण तो आपके चरणों में ला देता है. मुझे बाण पर बैठाकर आपके पास भेज दिया.
भगवान बोले - हनुमान जब मैंने ताडका को मारा और भी राक्षसों को मारा तो वे सब मरकर मुक्त होकर मेरे ही पास तो आये,
इस पर हनुमान जी बोले प्रभु आपका बाण तो मारने के बाद सबको आपके पास लाता है पर भरत जी का बाण तो जिन्दा ही भगवान के पास ले आता है.
भरत जी संत है और संत का बाण क्या है?
संत का बाण है उसकी वाणी
लेकिन हम करते क्या है,
हम संत वाणी को समझते तो है पर सटकते नहीं है, और औषधि सटकने पर ही फायदा करती है.
4. - हनुमान जी को भरत जी ने पर्वत सहित अपने बाण पर बैठाया तो उस समय हनुमान जी को थोडा अभिमान हो गया कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा ?
परन्तु जब उन्होंने रामचंद्र जी के प्रभाव पर विचार किया तो वे भरत जी के चरणों की वंदना करके चले है.
इसी तरह हम भी कभी-कभी संतो पर संदेह करते है, कि ये हमें कैसे भगवान तक पहुँचा देगे, संत ही तो है जो हमें सोते से जगाते है जैसे हनुमान जी को जगाया,
क्योकि उनका मन,वचन,कर्म सब भगवान में लगा है. आप उन पर भरोसा तो करो, तुम्हे तुम्हारे बोझ सहित भगवान के चरणों तक पहुँचा देगे

🙏🌹।।मेरे प्रभु राम🙏🌹जय श्री राम🙏🌹

07/07/2022

#हनुमान जी से सम्बंधित उपाय शीघ्र फल देते है।

1. सरसों के तेल के दीपक में लौंग डालें और ये दीपक हनुमानजी के सामने जलाएं और आरती करें। इस उपाय से सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।

2. किसी मंदिर जाएं और वहां एक नारियल पर स्वस्तिक बनाएं। इसके बाद ये नारियल हनुमान जी को अर्पित करें। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करें। इससे बुरा समय दूर होता हैं।

3..हनुमान जयंती पर सूर्यास्त के बाद हनुमानजी के सामने चौमुखा दीपक जलाएं। चौमुखा दीपक यानी दीपक में चार बतियां रखकर चारों और जलाना है। इस उपाय से घर-परिवार की सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।

4. यदि आप विधिवत पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो हनुमानजी को लाल, पीले फूल जैसे कमल, गुलाब, गेंदा या सूर्यमुखी चढ़ा दें। इस उपाय से भी सभी सुख प्राप्त होते हैं।

5. हनुमान जयंती पर पारे से बनी हनुमान जी की प्रतिमा की पूजा करें। साथ ही, ॐ रामदूताय नमः मन्त्र का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपाय करें। इस उपाय से सभी कष्ट दूर होते हैं।
6. हनुमानजी को गाय के शुद्ध घी से बना प्रसाद चढ़ाएं। ये प्रसाद भक्तों में बाटें और खुद भी ग्रहण करें। इस उपाय से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और दुःख दूर करते हैं।

7. हनुमानजी को लाल लंगोट चढ़ाएं। साथ ही, सिंदूर भी चढ़ाएं और चमेली के तेल का दीपक जलाएं। इस उपाय से हर काम में सफलता मिलेगी।
8. हनुमानजी की तस्वीर घर में पवित्र स्थान पर इस तरह लगाएं कि हनुमानजी का मुंह दक्षिण दिशा की और हो। इस उपाय से शत्रुओं पर विजय मिलेगी और धन लाभ होगा।

9. हनुमान जी का विशेष श्रृंगार करें। सिंदूर और चमेली के तेल से चोला चढ़ाएं। इस उपाय से सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।

10. दुखों से मुक्ति के लिए पीपल के 11 पत्तें लें और साफ़ पानी से धो लें। इन पत्तों पर चंदन से या कुमकुम से श्रीराम नाम लिखें। पत्तों की माला बनाकर हनुमनजी को चढ़ाएं।

11. बनारसी पान लगवाकर हनुमनजी को चढ़ाएं। ऐसा करने से हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

12. किसी भी हनुमान मंदिर में काली उड़द के 11 दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद आदि चढ़ाएं। हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय से कुंडली के दोष दूर होंगें।

13. एक नारियल पर सिंदूर, लाल धागा, चावल चढ़ाएं और नारियल की पूजा करें। इसके बाद ये नारियल हनुमान जी को चढ़ा दें। इससे धन लाभ के योग बन सकते हैं।

14. काली गाय को रोटी खिलाएं। पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। दीपक में काली उड़द के 3 दाने भी डालें। ये उपाय बड़ी परेशानियों से भी बचा सकता हैं।

15. हनुमान मंदिर में ध्वजा यानी झंडे का दान करें बंदरों को चने खिलाएं। इससे हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं ।

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