Uttarakhand hamari sanskriti hamari pehchan".

Uttarakhand hamari sanskriti hamari pehchan". 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से अलग होकर भारत का 27वां राज्य बना। On its north-west lies Himachal Pradesh, while on the south is Uttar Pradesh.
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Uttarakhand was formed on 9th November 2000 as the 27th State of India, when it was carved out of northern Uttar Pradesh. Located at the foothills of the Himalayan mountain ranges, it is largely a hilly State, having international boundaries with China (Tibet) in the north and Nepal in the east. It is rich in natural resources especially water and forests with many glaciers, rivers, dense forests

and snow-clad mountain peaks. Char-dhams, the four most sacred and revered Hindu temples of Badrinath,Kedarnath, Gangotri and Yamunotri are nestled in the mighty mountains. It’s truly God’s Land (Dev Bhoomi). Dehradun is the Capital of Uttarakhand. It is one of the most beautiful resort in the submountain tracts of India, known for its scenic surroundings. The town lies in the Dun Valley, on the watershed of the Ganga and Yamuna rivers.

05/03/2024

साईं के दीवाने एक बार अपनी हाजरी जरूर लगायें....❤️❤️

07/11/2023
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कुमाऊनी झोई का स्वाद लाजवाब हैझोई अथवा झोली यानि कि कढ़ी हमारे कुमाऊं के भोजन में विभिन्न प्रकार से बनती है. कम से कम एक...
15/06/2020

कुमाऊनी झोई का स्वाद लाजवाब है

झोई अथवा झोली यानि कि कढ़ी हमारे कुमाऊं के भोजन में विभिन्न प्रकार से बनती है. कम से कम एक सप्ताह हम अपनी अलग-अलग झोई के स्वाद ले कर सभी को चख सकते हैं. गरीब से लेकर अमीर तक सबके घर में बनने वाली झोई को सबने अपने-अपने तरीके तथा क्षमता से नवीन रूप देकर उसे स्वादिष्ट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. (Uttarakhand Food Kumaon Garhwal)
झोई किसी के भी घर की खाओ अच्छी ही लाने वाली ठैरी. झोई के साथ सफेद अथवा लाल चावल का भात, कौणी या झिंगोरे का भात लजीज माना जाता है लेकिन सभी तरह के भात के साथ झोई का एक अच्छा गठबंधन हुआ. कुछ लोग झोई को रोटी के साथ भी खाना पसंद करते हैं. अगर कुछ दिन तक पहाड़ी झोई ना खाए पहाड़ी तो उसको झोई की नराई (याद) लग जाने वाली हुई. पहले के लोग भात का मांड निकाल कर भी झोई तथा अन्य सब्जियों, दालों आदि में डाल देते थे जिससे खाने का स्वाद और अच्छा हो जाता था.
मैंने बचपन से लेकर आज कई प्रकार की झोई बनाई और खाई भी, किन्तु मुझे अपने कुमाऊं की उस साधारण झोई का असाधारण स्वाद हमेशा याद रहता है, जो मां, दीदी और आमा के हाथ से बनी होती थी.
मैदानी क्षेत्रों में झोई यानि कढ़ी थोड़ा अलग प्रकार से बनती है. दही, बेसन के घोल से कढ़ी तैयार कर उसमें पहले से तैयार पकोड़े डाले जाते हैं और कढ़ी में कढ़ी पत्ते का भी खूब जमकर इस्तेमाल किया जाता है, जिससे स्वाद दोगुना हो जाता है. खैर अब तो मैदानों की ये कढ़ी भी पहाड़ पहुंच गई है. लेकिन पहले हमने ये वाली कढ़ी से ज्यादा पहाड़ी तरीके से बनी अपनी झोई खूब खाई है.
पहाड़ में झोई में कणझोली – जो सरसों के तेल में धनिए के बीज या मेथी या राई अथवा जखिऐ के छौंक में गाढ़ा दही और हाथ के पीसे लहसन, धनिए के नूण (नमक) एवम् हल्के मसाले डालकर – पकाई जाती है. इसके अलावा दही अथवा मठ्ठे की झोली आटा अथवा बेसन में भूनकर बनाई जाती है. इसमें पकोड़े के स्थान पर कद्दूकस की हुए मूली अथवा पेठे के गुदे को मसलकर या ककड़ी (खीरे) के गुदे को मसलकर उबलती हुई झोई में डालकर पकाया जाता है तथा परोसने से पहले धनिया काटकर डाल देते हैं.
ढिनाई (दूध, दही अथवा मठ्ठे अथवा दूध से बने पदार्थ) का अभाव होने पर दूसरे खाद्य पदार्थों की झोई भी बना लेते हैं, जिसके लिए तड़का लगाने के बाद आटा अथवा बेसन को भूनकर उसमें पानी मिलाकर खूब पका लेते हैं तथा उतारने से पहले बड़े वाले नींबू (पहाड़ में बहुतायत में होता है) को निचोड़कर अच्छी प्रकार से मिला कर परोसने से पहले धनिये की पत्तियां काटकर मिला लेते हैं.
एक और झोई भी बनती है जो दही, मठ्ठे और नींबू के अभाव में भी बनाई जाती है – पहाड़ी टमाटर की झोई. इसके अलावा अमचूर की झोई भी बनती है. अमचूर की झोई भी बिल्कुल नींबू की झोई की तरह बनती है किन्तु इसमें नींबू की जगह भिगाए हुए अमचूर के ख्वेडे़ (काट कर छोटे टुकड़ों में सुखाया हुआ आम) डालकर काफी देर तक पकाया जाता है, ताकि अमचूर झोई में अपना रस छोड़कर खूब मुलायम हो जाएं और खाने में स्वादिष्ट लगे. पहाड़ में झोई को प्रत्येक ने अपनी- अपनी क्षमता से बनाने की कोशिश की और हर एक झोली अपने स्वाद में लाजवाब होती है.
इनके नाम कुछ इस प्रकार है : कणझोई, दै झोई, छां झोई, निमूवे झोई, पहाड़ी टमाटरे झोई, अमचूरे अथवा ख्वैड़ा झोई. अब शायद बहुत कम लोग इतने प्रकार की झोई बनाते होंगे, किन्तु कुछ पुराने लोग हैं, जिन्होंने इन सब झोई के स्वाद लिए. इसके अलावा जिन्होंने भी कुछ और तरीके से बनने वाली कुमाऊनी झोई के स्वाद भी लिए होंगे वे सब अपनी मूल झोई के स्वाद को कभी नहीं भूल पाएंगे. कुमाऊं में कहते हैं कि झोई में तब ज्यादा स्वाद आता है जब कम-से-कम 22 उबाल तक झोई को पकाया जाता है.

22/11/2017

hello frds kaise hai aap log

24/10/2017
31/07/2017

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