04/05/2024
लखनऊ की आन बान शान रानी ऊदा देवी और उनके पति मक्का पासी, दोनों नवाब वाजिद अली शाह की सेना में तैनात थे. ऊदा देवी की ड्यूटी बेगम हजरत महल की सुरक्षा में लगी थी. 1857 की जंग शुरू थी. देश में आजादी की अलख जग उठी थी. पति की मौत के बाद वे शोक में नहीं बैठीं. बल्कि उनके अंदर एक ज्वाला उठी.वे एक मामूली सैनिक थीं, जो अवध के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात थीं. देश भक्ति उनके खून में उबाल मारती रहती. अंग्रेजी राज उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था. वे चाहती थीं कि किसी भी तरह से अंग्रेज अवध से चले जाएं, ऐसा हुआ नहीं. लखनऊ के चिनहट इलाके में अंग्रेजी सेना और नवाब की सेना आपस में भिड़ी. खूब खून-खराबा हुआ और उनके पति भी इस युद्ध में शहीद हो गए.फिर यह एक मामूली सिपाही बदले की ज्वाला लिए अंग्रेजों पर टूट पड़ी और एक ही दिन में 36 अंग्रेजों को मौत की नींद सुला दिया. अंग्रेजी सेना को दिन में ही यह कारनामा दिखाने वाली वीरांगना का नाम था ऊदा देवी.
पति की मौत का बदला
ऊदा देवी और उनके पति मक्का पासी, दोनों नवाब वाजिद अली शाह की सेना में तैनात थे. ऊदा देवी की ड्यूटी बेगम हजरत महल की सुरक्षा में लगी थी. 1857 की जंग शुरू थी. देश में आजादी की अलख जग उठी थी. इस बीच अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को अवध से निर्वासित जीवन बिताने को कलकत्ता भेज दिया. तब बेगम हजरत महल ने आजादी की अलख बुझने नहीं दी. वे खुद सेना का नेतृत्व करने लगीं.उनके निर्देश पर चिनहट में अंग्रेजी सेना और नवाबी सेना में तगड़ी भिड़ंत हो गई. इसमें दोनों ही पक्षों के कई जवान मारे गए. बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात ऊदा देवी के पति मक्का पासी भी इस युद्ध में शहीद हुए. तब ऊदा देवी का सैन्य रूप जाग उठा. उन्होंने अंग्रेजों से पति की मौत का बदला लेने की ठानी. नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता भेजने से वे पहले ही खफा थीं. अब उन्हें एक और कारण मिल गया.
16 नवंबर का गदर
पति की मौत के बाद वे शोक में नहीं बैठीं. बल्कि उनके अंदर एक ज्वाला उठी. चूंकि उन्हें भी शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग मिली हुई थी. उन्होंने बंदूक उठाया और पहुंच गईं सिकंदर बाग. यहां बड़ी संख्या में भारतीय जवान पहले से मौजूद थे. अंग्रेजों को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने सिकंदरबाग पर हमला करने की तैयारी के साथ पहुंचे. अंग्रेज कुछ करते, उससे पहले ऊदा देवी सिकंदरबाग में मौजूद पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं.वे पुरुषों की वर्दी पहने हुए थीं. 16 नवंबर 1857 का दिन था. पीपल के पेड़ से ही उन्होंने एक-एक कर कुछ तय अंतराल पर 36 अंग्रेज सिपाही गोलियों से भून दिया. जब अंग्रेज अफसरों को इस घटना की जानकारी मिली तो वे भौंचक रह गए. किसी को कुछ नहीं पता चल पा रहा था कि आखिर यह हमला कैसे और कहां से हुआ? गुस्से से भरे अंग्रेजों ने सिकंदर बाग में शरण लिए भारतीय वीरों पर हमला कर दिया और बड़ी संख्या में नरसंहार किया. इसे 16 नवंबर के गदर के रूप में याद किया जाता है.
सिपाही कैसे मरे, अंग्रेज भी चौंक गए
मौके पर पहुंचे कैप्टन वायलस और डाउसन को समझ नहीं आ रहा था कि उनके सिपाही कैसे मरे? उन पर गोलियां कहां से चलाई गईं? किसी अंग्रेज का ध्यान पीपल के पेड़ पर गया जहां लाल वर्दी में एक सिपाही बैठ कर गोलियां चला रहा था. अब उन्हें समझ आ गया था कि 36 अंग्रेज सिपाही कैसे मरे? बिना समय गंवाए अंग्रेजों ने उसी जवान पर निशाना साध दिया.गोली लगते ही वह जवान नीचे आ गिरा. वह कोई और नहीं ऊदा देवी थीं, बाद में जांच-पड़ताल में पता चला कि वह पुरुष नहीं, महिला थीं, जिसने अंग्रेजों से बदला लेने के लिए पुरुष वेश धारण किया था.
तभी से वीरांगना ऊदा देवी को देश की आजादी के सिपाही के रूप में, शहीद के रूप में याद किया जा रहा है. लखनऊ में आज भी उनका नाम बेहद सम्मान से लिया जाता है. उसी सिकंदरबाग चौराहे पर ऊदा देवी की प्रतिमा लगी हुई है. वहां हर साल उनकी जयंती-पुण्यतिथि पर आयोजन भी होते हैं. जब से यूपी में जातिवादी राजनीति शुरू हुई तब से ऊदा देवी को उनकी जाति का समर्थन पाने की लालसा रखने वाले दल कुछ ज्यादा ही शिद्दत से याद करते हैं.यूं तो, लखनऊ उनके योगदान को याद करता रहा है. हां, इतिहास में उन्हें और शानदार तरीके से दर्ज किया जाना चाहिए था, जो शुरुआती दिनों में नहीं हो सका. बाद में वीरांगना ऊदा देवी पर केंद्रित किताबें भी सामने आईं.